छत्तीसगढ़ राज्य विरुध्द गुरुचरण सिंह मुण्डा धारा 302 भादसं
न्यायालय: सत्र न्यायाधीश, दुर्ग जिला दुर्ग (छत्तीसगढ़)
(पीठासीन न्यायाधीशः नीलम चंद सांखला)
सत्र प्रकरण क्रमांक 79/2014
संस्थापन दिनांक 25-04-2014.
छत्तीसगढ़ राज्य,व्दारा- पुलिस थाना नेवई,
जिला-दुर्ग (छत्तीसगढ़) अभियोजन
वि रु ध्द
अजय मुण्डा उर्फ गुरुचरण सिंहमुण्डा, आत्मज मान सिंह मुण्डा,
आयु लगभग 20 वर्ष, साकिन-
सराईकेला बोरबिल थाना
सराईकेला बोरबिल, जिला
चाईबासा (झारखंड)
हाल मुकाम-एच.एस.सी.एलकालोनी
स्टेशन मड़ौदा मोतीलाल
ठेकेदार के मकान के पीछे, थाना
नेवई, जिला दुर्ग (छत्तीसगढ़) अभियुक्त
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श्री वेन्सेस्लास टोप्पो, तत्कालीन न्या.मजि.प्र.श्रे., दुर्ग व्दारा आ.प्र.क्र. 1929/2014 राज्य वि. अजय मुण्डा उर्फ गुरुचरण सिंह मुण्डा, अपराध अंतर्गत धारा 302 भारतीय दण्ड संहिता को दिनांक 16/04/2014 को
सत्र न्यायालय में उपार्पित किए जाने से उद्भूत सत्र प्रकरण.
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राज्य की ओर से श्री सुदर्शन महलवार, लोक अभियोजकअभियुक्त (अभिरक्षा में) की ओर से श्री प्रवीण वैष्णव, अधिवक्ता.
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नि र्ण य
(आज दिनांक 25 मार्च सन् 2015 को घोषित)
01. ऊपर नामित अभियुक्त के विरुध्द धारा 302 भारतीय दण्ड संहिता, 1860 के अधीन दण्डनीय अपराध का आरोप है ।
02. प्रकरण में सिर्फ यह अविवादित तथ्य है कि, मृतक रामप्रसाद अपने पिता मानसिंह के साथ एच.एस.सी.एल.कालोनी, मड़ौदा, थाना नेवई, जिला दुर्ग (छ.ग.) में रहता था और अभियुक्त जुनवानी में
रहता था जो कभी-कभी इनके घर आना-जाना करता था
03. संक्षिप्त में अभियोजन वृतान्त निम्नानुसार है:-
(I) लखन मुण्डा (अ.सा.नं.3) एच.एस.सी.एल. कालोनी, स्टेशन मड़ौदा, मोतीलाल ठेकेदार के घर के पीछे, थाना नेवई में रहता है और रोजी मजदूरी का काम करता है । उसके बड़े भाई मान सिंह के दो लड़कों में से बड़ा लड़का रामप्रसाद मुण्डा, मान सिंह के साथ रहता था और छोटा लड़का अजय उर्फ गुरुचरण सिंह मुण्डा (अभियुक्त) बाहर रहता था, कभी-कभी आते-जाते रहता था । दिनांक 22-12-2013 को अजय उर्फ गुरुचरण सिंह मुण्डा (अभियुक्त) करीब 06.00 बजे शाम रामप्रसाद के घर आया तो रामप्रसाद के यह कहने पर कि बहुत दिन बाद आये हो कितना पैसा कमा कर लाये हो दो, दोनों के बीच झगड़ा-विवाद होने लगा । उसके बाद अजय उर्फ गुरुचरण सिंह मुण्डा उस समय वहां से चला गया और रात्रि के करीब 10 बजे पुनः आया तो रामप्रसाद ने लकड़ी के फट्टा से अजय उर्फ गुरुचरण सिंह मुण्डा को मार दिया तो गुस्से में आकर अजय उर्फ गुरुचरण सिंह ने भी लकड़ी के फट्टा से रामप्रसाद के सिर में मार दिया, जिससे रामप्रसाद गिर गया तो और उसे फट्टा से मारने लगा, वह बेहोश हो गया तो मोहल्ले के लोगों की मदद से रामप्रसाद मुण्डा को 108 वाहन से जिला अस्पताल, दुर्ग ले जाकर भर्ती किये, जहां डॉक्टर एस.के.फटिंग, चिकित्साधिकारी (अ.सा.नं.8) ने रात्रि 11 बजकर 45 मिनट पर उसका उपचार कर प्रदर्श पी-15 की रिपोर्ट दिया । आहत रामप्रसाद को आपात वार्ड में इमरजेंसी में भर्ती कराया गया। आहत रामप्रसाद के आगे की जांच एवं उपचार के निर्देश दिये गये। आहत के सिर पर ग ंभीर रुप से घातक चोटें थी, जो किसी कड़े एवं भोथरे वस्तु से कारित की गई थी । दिनांक 23-12-2013 को ही रात्रि 00.40 बजे रामप्रसाद का परीक्षण कर उसकी मृत्यु की घोषणा कर उसके शव को शव परीक्षण हेतु मरच्युरी भेजा गया । डॉक्टर एस.के.फटिग व्दारा रामप्रसाद के मृत्यु की सूचना की पर्ची प्रदर्श पी-16 वार्ड ब्वाय, सोनूराम बंजारे (अ.सा.नं.9) को दी गई, जिसने उसे थाना दुर्ग में ले जाकर पेश किया, जिसके आधार पर थाना दुर्ग में प्रदर्श पी-16 ए का मर्ग इंटीमेशन प्रधान आरक्षक, रम्महन लाल ठाकुर (अ.सा.नं.10) ने दर्ज किया ।
(II) दिनांक 23-12-2013 को प्रदर्श पी-16 ए की मर्ग सूचना प्राप्त होने पर आर.डी.नेताम, सहायक उपनिरीक्षक, पुलिस थाना नेवई (अ.सा.नं.12) जिला चिकित्सालय, दुर्ग के मरच्युरी जाकर मृतक के शव का पंचनामा करने बाबत् साक्षियों को प्रदर्श पी-05 की नोटिस दिया और उनकी उपस्थिति में प्रदर्श पी-06 का नक्शा पंचायतनामा तैयार किया और प्रदर्श पी-02 की देहाती नालिसी दर्ज किया और मृतक के शव को आरक्षक पुनेश साहू के माध्यम से शव परीक्षा आवेदन प्रदर्श पी-13 के साथ शव परीक्षण हेतु जिला चिकित्सालय, दुर्ग भेजा, और इस हेतु आरक्षक पुनेश साहू को प्रदर्श पी-18 का कर्तव्य प्रमाण-पत्र दिया । डॅाक्टर एन.सी.राय, चिकित्साधिकारी (अ.सा.नं.15) ने मृतक रामप्रसाद के शव का परीक्षण कर प्रदर्श पी-13 ए की रिपोर्ट दिया । उनके मतानुसार
मृत्यु का कारण सिर पर आई सांघातिक चोटें थी और मृत्यु का प्रकार हत्यात्मक हो सकता था। शव परीक्षण उपरान्त पुनेश कुमार साहू, आरक्षक (अ.सा.नं.7) ने मृतक के शव को अन्त्येष्टि हेतु उसके परिजन को प्रदर्श
पी-08 के व्दारा सुपुर्द किया आ ैर चिकित्सक व्दारा दिये गये सीलबंद पैकेट, जिसमें मृतक के कपड़े इत्यादि थे, को प्रदर्श पी-14 के व्दारा थाने में जब्त कराया ।
(III) आर.डी.नेताम, सहायक उपनिरीक्षक, पुलिस थाना नेवई (अ.सा.नं.12) थाना नेवई वापस आकर थाना दुर्ग से प्राप्त बिना नंबरी मर्ग इंटीमेशन प्रदर्श पी-16 ए को मर्ग क्रमांक 56/2013, प्रदर्श पी-19 के रुप में नंबरी किया और थाना नेवई में अपराध क्रमांक 305/2013 का प्रथम सूचना प्रतिवेदन प्रदर्श पी-20 दर्ज किया और संक्षिप्त शव परीक्षण प्रतिवेदन देने हेतु संबंधित चिकित्सक को प्रदर्श पी-21 की तहरीर लिखा।
(IV) बी.एल.साहू, सहायक उपनिरीक्षक (अ.सा.नं.13) को उपरोक्त अपराध क्रमांक 305/2013 की डायरी विवेचना हेतु प्राप्त होने पर वे घटनास्थल जाकर साक्षी से पूछताछ कर उसकी उपस्थिति में प्रदर्श पी-03 का नज़री नक्शा तैयार किये । दिनांक 23-12-2013 को अजय उर्फ गुरुचरण सिंह मुण्डा को साक्षियों की उपस्थिति में अभिरक्षा में लेकर उससे पूछताछ कर उसका मेमोरेंण्डम कथन प्रदर्श पी-09 लेखबध्द किया, जिसमें उसने घर मे रखे लकड़ी के फट्टा को उठाकर मृतक रामप्रसाद को सिर मे मारना और उस लकड़ी के फट्टे को घर में छुपाकर रखने तथा चलकर बरामद कराने की बात बतायी । मेमोरेण्डम कथन प्रदर्श पी-09 के आधार पर घटना स्थल जाकर अभियुक्त व्दारा अपने घर के अंदर से निकालकर देने पर एक लकड़ी का फट्टा साक्षियों की उपस्थिति में जब्ती पत्र प्रदर्श पी-10 के अनुसार जब्त किया । बी.एल.साहू, सहायक उपनिरीक्षक (अ.सा.नं.13) ने घटनास्थल से सादी मिट्टी, खून आलूदा मिट्टी और एक फटा-पुराना कपड़ा, जिसमें खून सरीखे दाग लगे थे, जब्ती पत्र प्रदर्श पी-11 के अनुसार जब्त किया और अभियुक्त के विरुध्द प्रथम दृष्टया अपराध प्रमाणित पाये जाने पर अभियुक्त को गिरफ्तारी पंचनामा प्रदर्श पी-22 के व्दारा गिरफ्तार किया और उसके गिरफ्तारी की सूचना उसके परिजन को प्रदर्श पी-23 के व्दारा दी और विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन उनके बताये अनुसार दर्ज किया ।
(V) एम.बी.पटेल, निरीक्षक (अ.सा.नं.14) को अपराध क्रमांक 305/2013 की डायरी विवेचना हेतु प्राप्त होने पर उन्होंने, मृतक रामप्रसाद के शव का पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सक से क्वेरी आवेदन प्रदर्श पी-25 के व्दारा 03 बिन्दुओं पर क्वेरी किया, जिसका उत्तर उन्हें संबंधित चिकित्सक से प्राप्त हुआ । इन्होंने जब्तशुदा वस्तुओं को पुलिस अधीक्षक, दुर्ग के ज्ञापन प्रदर्श पी-26 के व्दारा रासायनिक परीक्षण हेतु राज्य न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला, रायपुर भिजवाया, जहां से बाद में प्रदर्श पी-24 की रिपोर्ट प्राप्त हुई, जिसके अनुसार खून आलूदा मिट्टी, पुराना छीटदार कपड़ा, मृतक के कपड़े स्वेटर, कमीज, फुलपेन्ट में रक्त पाया गया तथा खून आलूदा मिट्टी और पुराना छीटदार कपड़ा पर मानव रक्त पाया गया ।
(VI) डॅाक्टर अनिल अग्रवाल, वरिष्ठ चिकित्साधिकारी (असा.नं..11) ने दिनांक 23-12-2013 को अभियुक्त का परीक्षण कर प्रदर्श पी-17 की रिपोर्ट दिया । पटवारी, डी.के.साहू (अ.सा.नं..4) से घटना स्थल का नक्शा प्रदर्श पी-04 तैयार करवाया गया और अनुसंधान पूर्ण होने के उपरान्त अभियुक्त के विरुध्द भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 302 के तहत अभियोग-पत्र न्या.मजि.प्र.श्रे., दुर्ग के न्यायालय में पेश किया गया, जहां से प्रकरण सत्र न्यायालय द्वारा विचारण योग्य होने से सत्र न्यायालय को उपार्पित किया गया ।
04. अभियुक्त ने धारा 302 भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत दंडनीय अपराध के आरोप को अस्वीकार कर विचारण का दावा किया । अभियोजन ने अपने पक्ष समर्थन मेंकुल 15 साक्षियों का परीक्षण कराया है। अभियोजन साक्षियों के परीक्षण के उपरान्त धारा 313 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत अभियुक्त का परीक्षण किया गया तथा उसे प्रतिरक्षा में प्रवेश कराया गया । प्रतिरक्षा में अभियुक्त व्दारा किसी बचाव साक्षी का परीक्षण नहीं कराया गया है ।
05. प्रकरण मेंअभिनिर्धारण हेतु निम्नलिखित विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं:-
(1) क्या मृतक रामप्रसाद की हत्यात्मक मृत्यु हुई है ?
(2) क्या अभियुक्त अजय मुण्डा उर्फ गुरुचरण सिंह मुण्डा ने साशय अथवा जानते हुए मृतक रामप्रसाद को लकड़ी के फट्टा से उसके सिर मेंमारकर उसकी मृत्यु कारित कर हत्या किया ?
विचारणीय प्रश्न क्रमांक-01-
06. लखन मुण्डा (अ.सा.नं.3) ने अपने साक्ष्य में कहा है कि प्रदर्श पी-02 की सूचना उसने पुलिस थाने में दर्ज करायी थी और उसे प्रदर्श पी-05 की नोटिस देकर उसके समक्ष पुलिस ने प्रदर्श पी-06 का नक्शा पंचायतनामा तैयार किया था । मानसिंह यादव (अ.सा.नं.5) ने भी अपने साक्ष्य में कहा है कि उसे प्रदर्श पी-05 की नोटिस देकर उसके समक्ष पुलिस ने प्रदर्श पी-06 का नक्शा पंचायतनामा तैयार किया था । आर.डी.नेताम, सहायक उपनिरीक्षक (अ.सा.नं..12) ने अपने साक्ष्य में कहा है कि मृतक के शव का पंचनामा करने बाबत् उसने पंचों को प्रदर्श पी-05 की नोटिस दिया था और उनकी उपस्थिति में प्रदर्श पी-06 का नक्शा पंचायतनामा तैयार किया था । इस साक्षी के अनुसार पंचों ने यह राय दी थी कि मृतक के सिर से, कान से खून निकल रहा है, मृतक की मौत सिर मेंचोट लगने से होना प्रतीत होता है तथा पंचों ने मृत्यु का सही कारण जानने के लिए शव का पोस्टमार्टम कराये जाने की सलाह दी थी।
07. डॅाक्टर एस.के.फटिंग , चिकित्साधिकारी (अ.सा.नं..8) ने अपने साक्ष्य मेंकहा है कि, दिनांक 22.12.2013 को रात्रि 11 बजकर 45 मिनट पर राम प्रसाद, उम्र 32 वर्ष, पुरूष, पिता श्री मान सिंह, निवासी स्टेशन मड़ौदा को इस हिस्ट्री के साथ कि भाई के साथ झगड़ा हुआ है और भाई ने मारा है; यह बात उसके चाचा लखन और बहन कुंती ने बताया था, उनके समक्ष मुलाहिजा हेतु आरक्षक किरतू राम क्रमांक 176 थाना दुर्ग द्वारा लाया गया था । उन्होंने परीक्षण पर पाया कि आहत राम प्रसाद मूर्च्छित अवस्था में था । उसकी स्थिति अत्यन्त नाजुक थी। आहत की नब्ज अत्यन्त धीरे -धीरे चल रही थी । ब्लड प्रेशर 60 सिस्टोलिक था। श्वसन तंत्र मेंक्रेप्ट्स एण्ड कन्डक्टेड साउण्ड सुनाई दे रहे थे । हृदय गति धीमी सुनाई दे रही थी । आहत पूर्ण रूप से मूर्च्छित था । उन्होंने आहत के शरीर पर निम्नलिखित चोटें पाई थी:-
(1) एक लेसरेटेड वूण्ड बॉयी ऑख के भौंह के पास था, जिसका आकार 02 ग 1/2 ग 1/4 सें.मी. था, जिससे रक्तस्राव हो रहा था ।
(2) नाक तथा मुह से भी रक्तस्राव हो रहा था ।
(3) बॉयी ऑख काली पड़ गयी थी जिसमेंरक्त भरा हुआ था ।
(4) बॉये कान से रक्तस्राव हो रहा था ।
आहत राम प्रसाद को आपात वार्ड में इमरजेंसी में भर्ती कराया गया था। आहत राम प्रसाद के आगे की जॉच एवं उपचार के निर्देश दिये गये थे । आहत के सिर पर गंभीर रूप से घातक चोटें थीं । आहत को आई चोटें किसी कड़े एवं भोथरे वस्तु से कारित की गयी थी और उनके परीक्षण करने के समय से छः घंटे के भीतर की थी । इस संबंध मेंउनकी रिपोर्ट प्रदर्श पी-15 है जिसके अ से अ भाग पर उनके हस्ताक्षर हैं । दिनांक 23.12.2013 को ही रात्रि 12.40 बजे आहत राम प्रसाद का परीक्षण कर उसकी मृत्यु की घोषणा कर उसके शव को शव परीक्षण के लिये मरच्युरी भेजा गया था जिसके संबंध में सूचना की पर्ची प्रदर्श पी-16 है जिसके अ से अ भाग पर उनके हस्ताक्षर हैं ।
08. आर.डी.नेताम, सहायक उपनिरीक्षक (अ.सा.नं..12) का कहना है कि उन्होंने मृतक के शव को आरक्षक पुनेश साहू, क्रमांक 1481 के माध्यम से जिला चिकित्सालय, दुर्ग शव परीक्षा आवेदन प्रदर्श पी-13 के साथ शव परीक्षण हेतु भेजा था । उक्त साक्ष्य का समर्थन पुनेश कुमार साहू, आरक्षक (अ.सा.नं.7) ने भी अपने साक्ष्य में किया है ।
09. डॉक्टर एन.सी.राय, चिकित्साधिकारी (अ.सा.नं..15) ने अपने साक्ष्य में कहा है कि, दिनांक 23.12.2013 को दोपहर बारह बजे आरक्षक पुनेश क्रमांक 1481 थाना नेवई के द्वारा रामप्रसाद पिता मानसिंह मुण्डा, उम्र 30 वर्ष, निवासी-मरौदा, थाना नेवई के शव को पोस्टमार्टम के लिये लाया गया था जिसे मानसिंह यादव-पड़ोसी, लखन मुण्डा-चाचा व आरक्षक पुनेश साहू के द्वारा पहचान किया गया था । इन्होंने शव के बाह्य परीक्षण मेंपाया कि शरीर ठ ंडा था । अकड़न मौजूद थी । ऑख व मुह बंद था व जीभ अंदर थी । बाह्य चोटें मौजूद थीं। डायफ्रॉम एवं नाक के दोनों छिद्रों से खून बहा हुआ था। यह एक औसत कदकाठी का युवा था। इन्होंने शव के आंतरिक परीक्षण मेंपाया कि फेफड़े व छाती के अन्य अंग कंजेस्टेड थे । हृदय के दोनों ओर थोड़ी मात्रा मेंरक्त भरा था । पेट खाली था व लीवर, स्प्लीन, किडनी कंजेस्टेड थे और निम्नानुसार चोटें पाई थी:-
1. शव के कान व नाक से खून बहा हुआ था जो कि सिर के आधार की फ्रेक्चर की निशानी है ।
2. सिर पर एक कुचला हुआ घाव था जो कि 03 से.मी. ग 01 सें. मी. ग 0.5 सें.मी. था ।
3. एक हीमेटोमा (रक्त का जमाव) ब्रेन के अंदर था जिसका साइज 06 सें.मी. ग 05 सें.मी. ग 02 सें.मी. था और यह बॉयें पेराइटल व सिर के सामने के हिस्से में था । ये सभी चोटें मृत्यु पूर्व की थीं। इनके मतानुसार मृत्यु का कारण सिर पर आई संघातिक चोटें थीं । शव को फ्रीजर मेंरखा गया था, इसलिये मृत्यु का सही समय बताना संभव नहीं था । इनके अभिमत मेंमृत्यु का प्रकार हत्यात्मक हो सकता है । इनकी रिपोर्ट प्रदर्श पी-13 ए है जिसके अ से अ भाग पर इनके हस्ताक्षर हैं ।
10. उपरोक्त साक्षियों के उपरोक्त बिन्दु पर दिये गये कथन मेंऐसी कोई बात नर्हीं आइ है, जिसके कारण उनके व्दारा उक्त बिन्दु पर दिये गये कथन पर अविश्वास किया जा सके । डॉक्टर एन.सी.राय, चिकित्साधिकारी (अ.सा.नं..15) के मतानुसार मृत्यु का कारण सिर पर आई संघातिक चोटें थीं । इनके अभिमत में मृत्यु का प्रकार हत्यात्मक हो सकता है । जिस व्यक्ति का पोस्टमार्टम किया गया, वह मृतक रामप्रसाद का शव था, इस बिन्दु पर कोई विवाद नहीं है। इससे अभियोजन की इस कहानी को बल मिलता है कि दिनांक 23-12-2013 को मृतक की मृत्यु हुई और मृतक की मृत्यु का कारण सिर पर आई संघातिक चोटें थी, या दूसरे शब्दों में ऐसा कहा जा सकता है कि घटना दिनांक को रामप्रसाद का किसी व्यक्ति व्दारा वध करने के कारण मृत्यु हुई ।
विचारणीय प्रश्न क्रमांक-02-
11. अभियोजन की ओर से तर्क के दौरान कहा गया है कि उन्होंने उनका मामला साबित किया है । दूसरी ओर अभियुक्त के विव्दान अधिवक्ता ने लिखित तर्क पेश कर कहा है कि इस प्रकरण में अभियोजन चक्षदर्शी साक्षियों की साक्ष्य से अथवा परिस्थितिजन्य साक्ष्य से अपना मामला सिध्द करने मेंपूरी तरह असफल रहा है, अतः अभियुक्त को दोषमुक्त किया जाना चाहिए ।
(VI) डॅाक्टर अनिल अग्रवाल, वरिष्ठ चिकित्साधिकारी (असा.नं..11) ने दिनांक 23-12-2013 को अभियुक्त का परीक्षण कर प्रदर्श पी-17 की रिपोर्ट दिया । पटवारी, डी.के.साहू (अ.सा.नं..4) से घटना स्थल का नक्शा प्रदर्श पी-04 तैयार करवाया गया और अनुसंधान पूर्ण होने के उपरान्त अभियुक्त के विरुध्द भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 302 के तहत अभियोग-पत्र न्या.मजि.प्र.श्रे., दुर्ग के न्यायालय में पेश किया गया, जहां से प्रकरण सत्र न्यायालय द्वारा विचारण योग्य होने से सत्र न्यायालय को उपार्पित किया गया ।
04. अभियुक्त ने धारा 302 भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत दंडनीय अपराध के आरोप को अस्वीकार कर विचारण का दावा किया । अभियोजन ने अपने पक्ष समर्थन मेंकुल 15 साक्षियों का परीक्षण कराया है। अभियोजन साक्षियों के परीक्षण के उपरान्त धारा 313 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत अभियुक्त का परीक्षण किया गया तथा उसे प्रतिरक्षा में प्रवेश कराया गया । प्रतिरक्षा में अभियुक्त व्दारा किसी बचाव साक्षी का परीक्षण नहीं कराया गया है ।
05. प्रकरण मेंअभिनिर्धारण हेतु निम्नलिखित विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं:-
(1) क्या मृतक रामप्रसाद की हत्यात्मक मृत्यु हुई है ?
(2) क्या अभियुक्त अजय मुण्डा उर्फ गुरुचरण सिंह मुण्डा ने साशय अथवा जानते हुए मृतक रामप्रसाद को लकड़ी के फट्टा से उसके सिर मेंमारकर उसकी मृत्यु कारित कर हत्या किया ?
विचारणीय प्रश्न क्रमांक-01-
06. लखन मुण्डा (अ.सा.नं.3) ने अपने साक्ष्य में कहा है कि प्रदर्श पी-02 की सूचना उसने पुलिस थाने में दर्ज करायी थी और उसे प्रदर्श पी-05 की नोटिस देकर उसके समक्ष पुलिस ने प्रदर्श पी-06 का नक्शा पंचायतनामा तैयार किया था । मानसिंह यादव (अ.सा.नं.5) ने भी अपने साक्ष्य में कहा है कि उसे प्रदर्श पी-05 की नोटिस देकर उसके समक्ष पुलिस ने प्रदर्श पी-06 का नक्शा पंचायतनामा तैयार किया था । आर.डी.नेताम, सहायक उपनिरीक्षक (अ.सा.नं..12) ने अपने साक्ष्य में कहा है कि मृतक के शव का पंचनामा करने बाबत् उसने पंचों को प्रदर्श पी-05 की नोटिस दिया था और उनकी उपस्थिति में प्रदर्श पी-06 का नक्शा पंचायतनामा तैयार किया था । इस साक्षी के अनुसार पंचों ने यह राय दी थी कि मृतक के सिर से, कान से खून निकल रहा है, मृतक की मौत सिर मेंचोट लगने से होना प्रतीत होता है तथा पंचों ने मृत्यु का सही कारण जानने के लिए शव का पोस्टमार्टम कराये जाने की सलाह दी थी।
07. डॅाक्टर एस.के.फटिंग , चिकित्साधिकारी (अ.सा.नं..8) ने अपने साक्ष्य मेंकहा है कि, दिनांक 22.12.2013 को रात्रि 11 बजकर 45 मिनट पर राम प्रसाद, उम्र 32 वर्ष, पुरूष, पिता श्री मान सिंह, निवासी स्टेशन मड़ौदा को इस हिस्ट्री के साथ कि भाई के साथ झगड़ा हुआ है और भाई ने मारा है; यह बात उसके चाचा लखन और बहन कुंती ने बताया था, उनके समक्ष मुलाहिजा हेतु आरक्षक किरतू राम क्रमांक 176 थाना दुर्ग द्वारा लाया गया था । उन्होंने परीक्षण पर पाया कि आहत राम प्रसाद मूर्च्छित अवस्था में था । उसकी स्थिति अत्यन्त नाजुक थी। आहत की नब्ज अत्यन्त धीरे -धीरे चल रही थी । ब्लड प्रेशर 60 सिस्टोलिक था। श्वसन तंत्र मेंक्रेप्ट्स एण्ड कन्डक्टेड साउण्ड सुनाई दे रहे थे । हृदय गति धीमी सुनाई दे रही थी । आहत पूर्ण रूप से मूर्च्छित था । उन्होंने आहत के शरीर पर निम्नलिखित चोटें पाई थी:-
(1) एक लेसरेटेड वूण्ड बॉयी ऑख के भौंह के पास था, जिसका आकार 02 ग 1/2 ग 1/4 सें.मी. था, जिससे रक्तस्राव हो रहा था ।
(2) नाक तथा मुह से भी रक्तस्राव हो रहा था ।
(3) बॉयी ऑख काली पड़ गयी थी जिसमेंरक्त भरा हुआ था ।
(4) बॉये कान से रक्तस्राव हो रहा था ।
आहत राम प्रसाद को आपात वार्ड में इमरजेंसी में भर्ती कराया गया था। आहत राम प्रसाद के आगे की जॉच एवं उपचार के निर्देश दिये गये थे । आहत के सिर पर गंभीर रूप से घातक चोटें थीं । आहत को आई चोटें किसी कड़े एवं भोथरे वस्तु से कारित की गयी थी और उनके परीक्षण करने के समय से छः घंटे के भीतर की थी । इस संबंध मेंउनकी रिपोर्ट प्रदर्श पी-15 है जिसके अ से अ भाग पर उनके हस्ताक्षर हैं । दिनांक 23.12.2013 को ही रात्रि 12.40 बजे आहत राम प्रसाद का परीक्षण कर उसकी मृत्यु की घोषणा कर उसके शव को शव परीक्षण के लिये मरच्युरी भेजा गया था जिसके संबंध में सूचना की पर्ची प्रदर्श पी-16 है जिसके अ से अ भाग पर उनके हस्ताक्षर हैं ।
08. आर.डी.नेताम, सहायक उपनिरीक्षक (अ.सा.नं..12) का कहना है कि उन्होंने मृतक के शव को आरक्षक पुनेश साहू, क्रमांक 1481 के माध्यम से जिला चिकित्सालय, दुर्ग शव परीक्षा आवेदन प्रदर्श पी-13 के साथ शव परीक्षण हेतु भेजा था । उक्त साक्ष्य का समर्थन पुनेश कुमार साहू, आरक्षक (अ.सा.नं.7) ने भी अपने साक्ष्य में किया है ।
09. डॉक्टर एन.सी.राय, चिकित्साधिकारी (अ.सा.नं..15) ने अपने साक्ष्य में कहा है कि, दिनांक 23.12.2013 को दोपहर बारह बजे आरक्षक पुनेश क्रमांक 1481 थाना नेवई के द्वारा रामप्रसाद पिता मानसिंह मुण्डा, उम्र 30 वर्ष, निवासी-मरौदा, थाना नेवई के शव को पोस्टमार्टम के लिये लाया गया था जिसे मानसिंह यादव-पड़ोसी, लखन मुण्डा-चाचा व आरक्षक पुनेश साहू के द्वारा पहचान किया गया था । इन्होंने शव के बाह्य परीक्षण मेंपाया कि शरीर ठ ंडा था । अकड़न मौजूद थी । ऑख व मुह बंद था व जीभ अंदर थी । बाह्य चोटें मौजूद थीं। डायफ्रॉम एवं नाक के दोनों छिद्रों से खून बहा हुआ था। यह एक औसत कदकाठी का युवा था। इन्होंने शव के आंतरिक परीक्षण मेंपाया कि फेफड़े व छाती के अन्य अंग कंजेस्टेड थे । हृदय के दोनों ओर थोड़ी मात्रा मेंरक्त भरा था । पेट खाली था व लीवर, स्प्लीन, किडनी कंजेस्टेड थे और निम्नानुसार चोटें पाई थी:-
1. शव के कान व नाक से खून बहा हुआ था जो कि सिर के आधार की फ्रेक्चर की निशानी है ।
2. सिर पर एक कुचला हुआ घाव था जो कि 03 से.मी. ग 01 सें. मी. ग 0.5 सें.मी. था ।
3. एक हीमेटोमा (रक्त का जमाव) ब्रेन के अंदर था जिसका साइज 06 सें.मी. ग 05 सें.मी. ग 02 सें.मी. था और यह बॉयें पेराइटल व सिर के सामने के हिस्से में था । ये सभी चोटें मृत्यु पूर्व की थीं। इनके मतानुसार मृत्यु का कारण सिर पर आई संघातिक चोटें थीं । शव को फ्रीजर मेंरखा गया था, इसलिये मृत्यु का सही समय बताना संभव नहीं था । इनके अभिमत मेंमृत्यु का प्रकार हत्यात्मक हो सकता है । इनकी रिपोर्ट प्रदर्श पी-13 ए है जिसके अ से अ भाग पर इनके हस्ताक्षर हैं ।
10. उपरोक्त साक्षियों के उपरोक्त बिन्दु पर दिये गये कथन मेंऐसी कोई बात नर्हीं आइ है, जिसके कारण उनके व्दारा उक्त बिन्दु पर दिये गये कथन पर अविश्वास किया जा सके । डॉक्टर एन.सी.राय, चिकित्साधिकारी (अ.सा.नं..15) के मतानुसार मृत्यु का कारण सिर पर आई संघातिक चोटें थीं । इनके अभिमत में मृत्यु का प्रकार हत्यात्मक हो सकता है । जिस व्यक्ति का पोस्टमार्टम किया गया, वह मृतक रामप्रसाद का शव था, इस बिन्दु पर कोई विवाद नहीं है। इससे अभियोजन की इस कहानी को बल मिलता है कि दिनांक 23-12-2013 को मृतक की मृत्यु हुई और मृतक की मृत्यु का कारण सिर पर आई संघातिक चोटें थी, या दूसरे शब्दों में ऐसा कहा जा सकता है कि घटना दिनांक को रामप्रसाद का किसी व्यक्ति व्दारा वध करने के कारण मृत्यु हुई ।
विचारणीय प्रश्न क्रमांक-02-
11. अभियोजन की ओर से तर्क के दौरान कहा गया है कि उन्होंने उनका मामला साबित किया है । दूसरी ओर अभियुक्त के विव्दान अधिवक्ता ने लिखित तर्क पेश कर कहा है कि इस प्रकरण में अभियोजन चक्षदर्शी साक्षियों की साक्ष्य से अथवा परिस्थितिजन्य साक्ष्य से अपना मामला सिध्द करने मेंपूरी तरह असफल रहा है, अतः अभियुक्त को दोषमुक्त किया जाना चाहिए ।
12. अभियोजन की कहानी के अनुसार इस प्रकरण के साक्षी सोमारी बाई मुण्डा (अ.सा.नं..1), सनत यादव (अ.सा.नं..6) और लखन मुण्डा (अ.सा.नं..3) चक्षुदर्शी साक्षी होने से महत्वपूर्ण साक्षी हैं ।
13. सोमारी बाई मुण्डा (अ.सा.नं.1) को अभियोजन पक्ष ने पक्षविद्रोही साक्षी घोषित कर विस्तारपूर्वक प्रश्न पूछे हैं । इस साक्षी के पूरे कथन को पढने से यह पता चलता है कि यह साक्षी बदल-बदल कर कथन दी है । सोमारी बाई मुण्डा (अ.सा.नं..1) ने उसके कथन में पहले यह कही है कि उसके लड़के रामप्रसाद एवं अभियुक्त गुरुचरण उर्फ अजय मुण्डा का झगड़ा हुआ था । यह साक्षी अपने कथन के पैरा-05 में कहती है कि दोनों के बीच पिता के इलाज को लेकर वाद-विवाद हुआ था । फिर उसने मृतक और अभियुक्त, जो दोनों र्भाइ हैं, उन्हें समझाकर बाहर भेज दिया था । उसके बाद साक्षी अपने कथन के पैरा-06 मेंयह कहती है कि शाम के बाद रात को पुनः अभियुक्त और मृतक के बीच झगड़ा हुआ था और इसी पैरा में आगे यह साक्षी कहती है कि उस समय वह हाजिर नहीं थी । यह साक्षी अपने कथन के पैरा-03 में यह कहती है कि अभियुक्त ने उससे कहा था कि उसे मृतक ने मारा था इसलिए उसने भी मृतक को सिर मेंमार दिया था । बाद में यह साक्षी प्रतिपरीक्षण की कंडिका-07 मेंयह कहती है कि उसके सामने कोई घटना घटित नहीं हुई है और उसने पुलिस को कोई बयान भी नहीं दिया था और उसे घटना की कोई जानकारी भी नहीं है । ऐसी दशा में इस महत्वपूर्ण साक्षी के कथन में एकरुपता नहीं होने से और बदल-बदल कर कथन करने से इस साक्षी के इस कथन पर विश्वास नहीं किया जा सकता कि अभियुक्त ने उसे कहा था कि वह गुस्से में था और उसने मृतक को मार दिया था। चूंकि अभियोजन की कहानी के अनुसार यह साक्षी चक्षुदर्शी साक्षी है और इसी के सामने घटना घटित हुई थी, किन्तु इसने ऐसा कथन नहीं की है और यह भी कही है कि उसने पुलिस को कोई बयान भी नहीं दी थी ।
14. इस प्रकरण के महत्वपूर्ण साक्षी लखन मुण्डा (अ.सा.नं.3), जिसे अभियोजन ने चक्षुदर्शी साक्षी बताया है, को भी अभियोजन ने पक्षविद्रोही साक्षी घोषित कर विस्तारपूर्वक प्रश्न किये हैं । यह साक्षी अपने कथन के पैरा-03 मेंयह कहता है कि घटना दिनांक को शाम को करीब सात बजे वह, उसकी भाभी सोमारी बाई तथा उसकी भतीजी कुंती बाई, गोवर्ध न के यहां खाना खाने के लिए गये थे और रात करीब नौ-दस बजे अभियुक्त और मृतक के बीच झगड़ा हुआ था । उसने रामप्रसाद के सिर पर चोट देखी थी। फिर उसे अस्पताल ले जाया गया था, जहां उपचार के दौरान उसकी मृत्यु हो गई । इस साक्षी ने अपने कथन के पैरा-07 में अभियोजन के इस सुझाव को गलत बताया है कि जब वह मान सिंह के घर पहुंचा तब आरोपी और मृतक के बीच मारपीट हो रहा था । प्रतिपरीक्षण की कंडिका-09 में यह साक्षी कहता है कि उसने घटना को उसकी आंखों से नहीं देखा था, घटना कैसे घटी उसे नहीं मालूम और उसने जो प्रथम सूचना प्रतिवेदन लिखाया है उसे पुलिस वाले पढ़कर नहीं सुनाये थे और उसने सिर्फ उसमें अंगूठा निशानी लगा दिया था । यह साक्षी कहता है कि पुलिस वाले आये थे और उसे यही बताया था कि उन लोगों ने नक्शा बनाया है हस्ताक्षर कर दो, इसलिए उसने हस्ताक्षर कर दिया था। इस साक्षी ने भी उसके कथन मेंघटना के समय मौके पर उपस्थित होने और उसके सामने मारपीट होने की बात को इंकार किया है।
15. इस प्रकरण के महत्वपूर्ण चक्षुदर्शी साक्षी सनत यादव (अ.सा नं.6) को भी अभियोजन पक्ष ने पक्षविद्रोही साक्षी घोषित कर विस्तारपूर्वक प्रश्न किये हैं, किन्तु इस साक्षी ने भी अभियोजन की कहानी का समर्थन नहीं किया है और अपने कथन की कंडिका-04 में यह कहा है कि उसने पुलिस को प्रदर्श पी-12 का बयान नहीं दिया था । इस साक्षी ने अपने कथन की कंडिका-03 में अभियोजन के इस सुझाव को गलत बताया है कि जब वह आवाज सुनकर मौके पर गया तो देखा कि अभियुक्त, मृतक को मार रहा था ।
16. अभिलेख मेंजितने भी चक्षुदर्शी साक्षी हैं, उनमेंसे किसी भी साक्षी ने ऐसा स्पष्ट कथन नहीं किया है कि उनके सामने अभियुक्त ने मृतक को मारा था।
17. अब इस प्रकरण में जो परिस्थितिजन्य साक्ष्य है, उस पर विचार करेंगे ।
18. बी.एल.साहू, सहायक उपनिरीक्षक (अ.सा.नं..13) ने उसके कथन में कहा है कि जब उसे इस प्रकरण की डायरी विवेचना के लिए मिली, तब उसने दिनांक 23-12-2013 को अभियुक्त को अभिरक्षा में लेकर उसका मेमोरेण्डम कथन प्रदर्श पी-09 लेखबध्द किया था और मेमोरेण्डम कथन के आधार पर गवाहों के समक्ष अभियुक्त से जब्ती पत्र
प्रदर्श पी-10 के अनुसार एक लकड़ी का फट्टा जब्त किया था ।
19. मेमोरेण्डम और जब्ती पत्र का अवलोकन किया गया । मेमोरेण्डम और जब्ती पत्र के गवाह नुरुल इस्माइल खान तथा मान सिंग यादव (अ.सा.नं.5) हैं । मान सिंग यादव (अ.सा.नं..5) ने अभियोजन की कहानी का समर्थन नहीं किया है और उसे पक्षविद्रोही साक्षी घोषित कर इस साक्षी से जब अभियोजन ने विस्तारपूर्वक प्रश्न किये, तब भी इस साक्षी ने अभियुक्त के मेमोरेण्डम कथन के आधार पर जब्ती किए जाने की बात को गलत बताया है । अन्य दूसरे गवाह नुरुल इस्माइल खान का कथन नहीं कराया गया है ।
20. विवेचक के अनुसार उसने जब्तशुदा फट्टे को रासायनिक परीक्षण हेतु भेजा था और रासायनिक परीक्षण प्रतिवेदन प्रदर्श पी-24 प्राप्त हुई है । उक्त प्रतिवेदन मेंअभियोजन व्दारा प्रेषित अभियुक्त से जब्तशुदा फट्टा आर्टिकल ‘‘ ई ‘‘ पर रक्त नहीं पाया गया है । विवेचक के कथन का समर्थ न स्वतंत्र साक्षी ने मेमोरेण्डम और जब्ती के संबंध में नहीं किया है तथा जब्तशुदा फट्टे पर रक्त नहीं पाया गया है । इसलिए अभियुक्त की निशानदेही पर फट्टे की जब्ती को अभियोजन ने साबित किया है, यह नहीं माना जा सकता ।
21. अभियोजन ने उनके तर्क के दौरान कहा है कि इस प्रकरण मेंअभियुक्त के सिर पर भी चोट थी, किन्तु अभियुक्त ने उसका कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है इसलिए उसके संबंध मेंविपरीत उपधारणा की जानी चाहिए । मृतक और अभियुक्त की मां सोमारी बाई मुण्डा (अ.सा.नं. 1) के अनुसार रात्रि के घटना के पूर्व भी अभियुक्त और मृतक के बीच झगड़ा हुआ था, तब वह समझायी थी । ऐसी दशा मेंपरिस्थितियों की अन्य कोई कड़ी न होने से यदि अभियुक्त के सिर पर चोट के निशान थे और अभिलेख मेंघटना के पहले भी लड़ाई-झगड़े की बात आई थी, तब यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि उसके सिर पर चोट होने मात्र से ही अभियुक्त ने मृतक को मारा हो । अभियोजन ने उनके तर्क के समर्थन मेंढाल सिंह देवांगन बनाम छत्तीसगढ़ राज्य, 2013 (4) सी.जी.एल.जे. 433 (डी.बी.) के न्यायिक निर्ण य का अवलम्ब लिया है । अध्ययन करने पर अवलंबित न्यायिक निर्णय के प्रकरण की परिस्थितियां इस प्रकरण की परिस्थितियों से भिन्न पायी जाती है, इस कारण उक्त न्यायिक निर्णय का लाभ अभियोजन को प्राप्त नहीं होना पाया जाता है ।
22. अभियोजन की ओर से तर्क के दौरान यह कहा गया है कि, डॅाक्टर एस.के.फटिंग (अ.सा.नं..8) ने आहत/मृतक का जो डॅाक्टरी परीक्षण किया था, जिसकी रिपोर्ट प्रदर्श पी-15 तैयार की गई थी, उसमें डॅाक्टर ने यह लिखा है कि आहत को उसके र्भाइ ने मारा है, यह बात उसके चाचा लखन और बहन कुन्ती ने बताया था । डॅाक्टर एक स्वतंत्र साक्षी है, इसलिए उसके उक्त साक्ष्य पर अविश्वास न किया जाकर अभियुक्त के विरुध्द विपरीत उपधारणा की जानी चाहिए । अभिलेख के अवलोकन से ये दोनों ही साक्षी लखन मुण्डा (अ.सा.नं..3) और कुन्ती बाई मुण्डा (असा.नं.2) ने उनके कथन मेंअभियुक्त व्दारा मृतक को मारने की बात डॅाक्टर को बताने की बात नहीं कही है । इसलिए डॅाक्टर एस.के.फटिंग (अ.सा.नं..8) के इस कथन को कि मृतक को अभियुक्त ने मारा था, यह बात लखन और कुन्ती ने बतायी थी, साक्ष्य में ग्राह्य नहीं किया जा सकता ।
23. पूर्व मेंकी गई विस्तृत विवेचन के फलस्वरुप अभियोजन ने यह तो साबित किया है कि मृतक की हत्या की गई है, किन्तु अभियोजन चक्षुदर्शी साक्षियों की साक्ष्य से अथवा परिस्थितिजन्य साक्ष्य से यह साबित करने में असफल रहा है, जिसका सिर्फ एक ही निष्कर्ष निकलता हो कि उक्त हत्या सिर्फ अभियुक्त ने की हो ।
24. फलस्वरुप अभियुक्त को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 302 के अपराध के आरोप से संदेह का लाभ देकर दोषमुक्त किया जाता है ।
25. अभियुक्त अभिरक्षा मेंहै । उसके जेल वारंट मेंयह नोट लगाई जावे कि यदि अन्य किसी प्रकरण मेंउसकी आवश्यकता न हो तो उसे तत्काल इस प्रकरण मेंरिहा किया जावे ।
26. अभियुक्त व्दारा अभिरक्षा में बितायी गई अवधि का गणना-पत्रक तैयार किया जावे, जो निर्णय का अंग होगा ।
27. प्रकरण मेंजब्तशुदा सम्पत्तियां-सादी मिट्टी, खून आलूदा मिट्टी, खून आलूदा एक फटा-पुराना छीटदार कपड़ा, मृतक रामप्रसाद के कपड़े-स्वेटर, कमीज, फुलपेंट और लकड़ी का फट्टा मूल्यहीन होने से, अपील न होने की दशा मेंअपील अवधि बाद नष्ट कर दी जॉंए । अपील होने पर माननीय अपीलीय न्यायालय के आदेशानुसार उनका निराकरण किया जा सकेगा ।
28. निर्णय की एक-एक सत्य प्रतिलिपि जिला दण्डाधिकारी, दुर्ग और लोक अभियोजक, दुर्ग को सूचनार्थ प्रदान की जावे ।
दुर्ग, दिनांक 25-03-2015.
(नीलम चंद सांखला)
सत्र न्यायाधीश, दुर्ग
(छत्तीसगढ़)
13. सोमारी बाई मुण्डा (अ.सा.नं.1) को अभियोजन पक्ष ने पक्षविद्रोही साक्षी घोषित कर विस्तारपूर्वक प्रश्न पूछे हैं । इस साक्षी के पूरे कथन को पढने से यह पता चलता है कि यह साक्षी बदल-बदल कर कथन दी है । सोमारी बाई मुण्डा (अ.सा.नं..1) ने उसके कथन में पहले यह कही है कि उसके लड़के रामप्रसाद एवं अभियुक्त गुरुचरण उर्फ अजय मुण्डा का झगड़ा हुआ था । यह साक्षी अपने कथन के पैरा-05 में कहती है कि दोनों के बीच पिता के इलाज को लेकर वाद-विवाद हुआ था । फिर उसने मृतक और अभियुक्त, जो दोनों र्भाइ हैं, उन्हें समझाकर बाहर भेज दिया था । उसके बाद साक्षी अपने कथन के पैरा-06 मेंयह कहती है कि शाम के बाद रात को पुनः अभियुक्त और मृतक के बीच झगड़ा हुआ था और इसी पैरा में आगे यह साक्षी कहती है कि उस समय वह हाजिर नहीं थी । यह साक्षी अपने कथन के पैरा-03 में यह कहती है कि अभियुक्त ने उससे कहा था कि उसे मृतक ने मारा था इसलिए उसने भी मृतक को सिर मेंमार दिया था । बाद में यह साक्षी प्रतिपरीक्षण की कंडिका-07 मेंयह कहती है कि उसके सामने कोई घटना घटित नहीं हुई है और उसने पुलिस को कोई बयान भी नहीं दिया था और उसे घटना की कोई जानकारी भी नहीं है । ऐसी दशा में इस महत्वपूर्ण साक्षी के कथन में एकरुपता नहीं होने से और बदल-बदल कर कथन करने से इस साक्षी के इस कथन पर विश्वास नहीं किया जा सकता कि अभियुक्त ने उसे कहा था कि वह गुस्से में था और उसने मृतक को मार दिया था। चूंकि अभियोजन की कहानी के अनुसार यह साक्षी चक्षुदर्शी साक्षी है और इसी के सामने घटना घटित हुई थी, किन्तु इसने ऐसा कथन नहीं की है और यह भी कही है कि उसने पुलिस को कोई बयान भी नहीं दी थी ।
14. इस प्रकरण के महत्वपूर्ण साक्षी लखन मुण्डा (अ.सा.नं.3), जिसे अभियोजन ने चक्षुदर्शी साक्षी बताया है, को भी अभियोजन ने पक्षविद्रोही साक्षी घोषित कर विस्तारपूर्वक प्रश्न किये हैं । यह साक्षी अपने कथन के पैरा-03 मेंयह कहता है कि घटना दिनांक को शाम को करीब सात बजे वह, उसकी भाभी सोमारी बाई तथा उसकी भतीजी कुंती बाई, गोवर्ध न के यहां खाना खाने के लिए गये थे और रात करीब नौ-दस बजे अभियुक्त और मृतक के बीच झगड़ा हुआ था । उसने रामप्रसाद के सिर पर चोट देखी थी। फिर उसे अस्पताल ले जाया गया था, जहां उपचार के दौरान उसकी मृत्यु हो गई । इस साक्षी ने अपने कथन के पैरा-07 में अभियोजन के इस सुझाव को गलत बताया है कि जब वह मान सिंह के घर पहुंचा तब आरोपी और मृतक के बीच मारपीट हो रहा था । प्रतिपरीक्षण की कंडिका-09 में यह साक्षी कहता है कि उसने घटना को उसकी आंखों से नहीं देखा था, घटना कैसे घटी उसे नहीं मालूम और उसने जो प्रथम सूचना प्रतिवेदन लिखाया है उसे पुलिस वाले पढ़कर नहीं सुनाये थे और उसने सिर्फ उसमें अंगूठा निशानी लगा दिया था । यह साक्षी कहता है कि पुलिस वाले आये थे और उसे यही बताया था कि उन लोगों ने नक्शा बनाया है हस्ताक्षर कर दो, इसलिए उसने हस्ताक्षर कर दिया था। इस साक्षी ने भी उसके कथन मेंघटना के समय मौके पर उपस्थित होने और उसके सामने मारपीट होने की बात को इंकार किया है।
15. इस प्रकरण के महत्वपूर्ण चक्षुदर्शी साक्षी सनत यादव (अ.सा नं.6) को भी अभियोजन पक्ष ने पक्षविद्रोही साक्षी घोषित कर विस्तारपूर्वक प्रश्न किये हैं, किन्तु इस साक्षी ने भी अभियोजन की कहानी का समर्थन नहीं किया है और अपने कथन की कंडिका-04 में यह कहा है कि उसने पुलिस को प्रदर्श पी-12 का बयान नहीं दिया था । इस साक्षी ने अपने कथन की कंडिका-03 में अभियोजन के इस सुझाव को गलत बताया है कि जब वह आवाज सुनकर मौके पर गया तो देखा कि अभियुक्त, मृतक को मार रहा था ।
16. अभिलेख मेंजितने भी चक्षुदर्शी साक्षी हैं, उनमेंसे किसी भी साक्षी ने ऐसा स्पष्ट कथन नहीं किया है कि उनके सामने अभियुक्त ने मृतक को मारा था।
17. अब इस प्रकरण में जो परिस्थितिजन्य साक्ष्य है, उस पर विचार करेंगे ।
18. बी.एल.साहू, सहायक उपनिरीक्षक (अ.सा.नं..13) ने उसके कथन में कहा है कि जब उसे इस प्रकरण की डायरी विवेचना के लिए मिली, तब उसने दिनांक 23-12-2013 को अभियुक्त को अभिरक्षा में लेकर उसका मेमोरेण्डम कथन प्रदर्श पी-09 लेखबध्द किया था और मेमोरेण्डम कथन के आधार पर गवाहों के समक्ष अभियुक्त से जब्ती पत्र
प्रदर्श पी-10 के अनुसार एक लकड़ी का फट्टा जब्त किया था ।
19. मेमोरेण्डम और जब्ती पत्र का अवलोकन किया गया । मेमोरेण्डम और जब्ती पत्र के गवाह नुरुल इस्माइल खान तथा मान सिंग यादव (अ.सा.नं.5) हैं । मान सिंग यादव (अ.सा.नं..5) ने अभियोजन की कहानी का समर्थन नहीं किया है और उसे पक्षविद्रोही साक्षी घोषित कर इस साक्षी से जब अभियोजन ने विस्तारपूर्वक प्रश्न किये, तब भी इस साक्षी ने अभियुक्त के मेमोरेण्डम कथन के आधार पर जब्ती किए जाने की बात को गलत बताया है । अन्य दूसरे गवाह नुरुल इस्माइल खान का कथन नहीं कराया गया है ।
20. विवेचक के अनुसार उसने जब्तशुदा फट्टे को रासायनिक परीक्षण हेतु भेजा था और रासायनिक परीक्षण प्रतिवेदन प्रदर्श पी-24 प्राप्त हुई है । उक्त प्रतिवेदन मेंअभियोजन व्दारा प्रेषित अभियुक्त से जब्तशुदा फट्टा आर्टिकल ‘‘ ई ‘‘ पर रक्त नहीं पाया गया है । विवेचक के कथन का समर्थ न स्वतंत्र साक्षी ने मेमोरेण्डम और जब्ती के संबंध में नहीं किया है तथा जब्तशुदा फट्टे पर रक्त नहीं पाया गया है । इसलिए अभियुक्त की निशानदेही पर फट्टे की जब्ती को अभियोजन ने साबित किया है, यह नहीं माना जा सकता ।
21. अभियोजन ने उनके तर्क के दौरान कहा है कि इस प्रकरण मेंअभियुक्त के सिर पर भी चोट थी, किन्तु अभियुक्त ने उसका कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है इसलिए उसके संबंध मेंविपरीत उपधारणा की जानी चाहिए । मृतक और अभियुक्त की मां सोमारी बाई मुण्डा (अ.सा.नं. 1) के अनुसार रात्रि के घटना के पूर्व भी अभियुक्त और मृतक के बीच झगड़ा हुआ था, तब वह समझायी थी । ऐसी दशा मेंपरिस्थितियों की अन्य कोई कड़ी न होने से यदि अभियुक्त के सिर पर चोट के निशान थे और अभिलेख मेंघटना के पहले भी लड़ाई-झगड़े की बात आई थी, तब यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि उसके सिर पर चोट होने मात्र से ही अभियुक्त ने मृतक को मारा हो । अभियोजन ने उनके तर्क के समर्थन मेंढाल सिंह देवांगन बनाम छत्तीसगढ़ राज्य, 2013 (4) सी.जी.एल.जे. 433 (डी.बी.) के न्यायिक निर्ण य का अवलम्ब लिया है । अध्ययन करने पर अवलंबित न्यायिक निर्णय के प्रकरण की परिस्थितियां इस प्रकरण की परिस्थितियों से भिन्न पायी जाती है, इस कारण उक्त न्यायिक निर्णय का लाभ अभियोजन को प्राप्त नहीं होना पाया जाता है ।
22. अभियोजन की ओर से तर्क के दौरान यह कहा गया है कि, डॅाक्टर एस.के.फटिंग (अ.सा.नं..8) ने आहत/मृतक का जो डॅाक्टरी परीक्षण किया था, जिसकी रिपोर्ट प्रदर्श पी-15 तैयार की गई थी, उसमें डॅाक्टर ने यह लिखा है कि आहत को उसके र्भाइ ने मारा है, यह बात उसके चाचा लखन और बहन कुन्ती ने बताया था । डॅाक्टर एक स्वतंत्र साक्षी है, इसलिए उसके उक्त साक्ष्य पर अविश्वास न किया जाकर अभियुक्त के विरुध्द विपरीत उपधारणा की जानी चाहिए । अभिलेख के अवलोकन से ये दोनों ही साक्षी लखन मुण्डा (अ.सा.नं..3) और कुन्ती बाई मुण्डा (असा.नं.2) ने उनके कथन मेंअभियुक्त व्दारा मृतक को मारने की बात डॅाक्टर को बताने की बात नहीं कही है । इसलिए डॅाक्टर एस.के.फटिंग (अ.सा.नं..8) के इस कथन को कि मृतक को अभियुक्त ने मारा था, यह बात लखन और कुन्ती ने बतायी थी, साक्ष्य में ग्राह्य नहीं किया जा सकता ।
23. पूर्व मेंकी गई विस्तृत विवेचन के फलस्वरुप अभियोजन ने यह तो साबित किया है कि मृतक की हत्या की गई है, किन्तु अभियोजन चक्षुदर्शी साक्षियों की साक्ष्य से अथवा परिस्थितिजन्य साक्ष्य से यह साबित करने में असफल रहा है, जिसका सिर्फ एक ही निष्कर्ष निकलता हो कि उक्त हत्या सिर्फ अभियुक्त ने की हो ।
24. फलस्वरुप अभियुक्त को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 302 के अपराध के आरोप से संदेह का लाभ देकर दोषमुक्त किया जाता है ।
25. अभियुक्त अभिरक्षा मेंहै । उसके जेल वारंट मेंयह नोट लगाई जावे कि यदि अन्य किसी प्रकरण मेंउसकी आवश्यकता न हो तो उसे तत्काल इस प्रकरण मेंरिहा किया जावे ।
26. अभियुक्त व्दारा अभिरक्षा में बितायी गई अवधि का गणना-पत्रक तैयार किया जावे, जो निर्णय का अंग होगा ।
27. प्रकरण मेंजब्तशुदा सम्पत्तियां-सादी मिट्टी, खून आलूदा मिट्टी, खून आलूदा एक फटा-पुराना छीटदार कपड़ा, मृतक रामप्रसाद के कपड़े-स्वेटर, कमीज, फुलपेंट और लकड़ी का फट्टा मूल्यहीन होने से, अपील न होने की दशा मेंअपील अवधि बाद नष्ट कर दी जॉंए । अपील होने पर माननीय अपीलीय न्यायालय के आदेशानुसार उनका निराकरण किया जा सकेगा ।
28. निर्णय की एक-एक सत्य प्रतिलिपि जिला दण्डाधिकारी, दुर्ग और लोक अभियोजक, दुर्ग को सूचनार्थ प्रदान की जावे ।
दुर्ग, दिनांक 25-03-2015.
(नीलम चंद सांखला)
सत्र न्यायाधीश, दुर्ग
(छत्तीसगढ़)