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Tuesday, 1 November 2016

पैराविधिक स्वयं सेवक की भूमिका (पैरालीगल वालिंटियर्स के कार्य)

सामान्यः-
भारत की अधिकॉश जनसंख्या गॉवों में बसती है, जहां ज्यादातर लोग अशिक्षित ,गरीब, वंचित और अपने अधिकारों से अनभिज्ञ हैं। गॉवों तक पहुॅच के साधन आज भी सीमित है।
विधिक सेवा के परम उद्वेश्य ’’न्याय सबके लिए’’ की सफलता तभी है, जब देश के प्रत्येक व्यक्ति तक, चाहे वह दूरस्थ क्षेत्र में स्थित हो, उन तक विधिक सहायता पहुॅचें।
’’न्याय सबके लिए’’ अभियान के अन्तर्गत नालसा का उद्वेश्य विधिक सेवा प्राधिकरणों की सक्रियता इस स्तर तक बढ़ाना है कि समाज के अंतिम व्यक्ति को भी अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों की जानकारी हो तथा प्राधिकरण विधिक सहायता के लिये जरूरतमंदों तक स्वयं पहुॅचें, उन्हें अपने पास आने की प्रतिक्षा नहीं करें।
इन्हीं उद्वेश्यों की पूर्ति के लिये पैरा विधिक स्वयंसेवकों का संगठन तैयार करने हेतु नालसा ने वर्ष 2009-10 में एक स्कीम तैयार की जिसे वर्ष 2011 में और पुनः वर्ष 2013 में संशोधित किया। छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में पैरा विधिक स्वयं सेवकों का चयन किया गया एवं प्रशिक्षण दिया गया है, जिनके द्वारा समाज के अंतिम व्यक्ति को विधिक सेवा प्रदान करने का प्रयास किया जा रहा है।
इस स्कीम का उद्वेश्य पैरा विधिक स्वयं सेवकों का कैडर तैयार करना है। पैरा लीगल वॉलिंटियर्स से यह अपेक्षा की जाती है कि वे ऐसा कार्य करें, जिससे आम जरूरतमंद ब्यक्ति और विधिक सेवा संस्था के मध्य की दूरी को मिटाकर सबके लिये न्याय के अभियान में आने वाली बाधाओं को हटा सके।
सामान्यतः पैरा विधिक स्वयं सेवक के रूप में ऐसे व्यक्तियों को चुना जाना है जिनका उद्वेश्य केवल पैरा विधिक स्वयं सेवक के रूप में कार्य कर मानदेय प्राप्त करना न हो बल्कि वह समाज के कमजोर, वंचित एवं जरूरतमंदों के उत्थान के लिये संवेदनशीलता, सहानुभूति एवं जुड़ाव के साथ कार्य कर सकें।
पारम्परिक रूप में पैरा विधिक ऐसे व्यक्ति है जो अधिवक्ताओं को उनके द्वारा दी जाने वाली विधिक सेवा में सहयोग करतें है। परन्तु नालसा की स्कीम के अन्तर्गत चयनित ’’पैरा विधिक स्वयं सेवक’’ का कार्य किसी व्यक्ति को विधिक राय देना नहीं है, बल्कि उसका कार्य जरूरतमंदों को विधिक सेवा प्राधिकरणों के माध्यम से विधिक सहायता प्राप्त करने में सहयोग प्रदान करना है। उसका कार्य जरूरतमंद एवं विभिन्न संस्थानों के बीच सेतु का कार्य करना है। 
पैरा विधिक स्वयंसेवक के रूप में शिक्षक (सेवानिवृत्त शिक्षकों सहित) सेवानिवृत्त सरकारी सेवक, वरिष्ठ नागरिक, सामाजिक कार्यकर्ता, विद्यार्थी, आगनबाड़ी कार्यकर्ता, डाक्टर, एन0जी0ओ0 विधि छात्र, गैर राजनीतिक दल के व्यक्ति, महिलायें, दंडित शिक्षित कैदी आदि को चुना जाना है।
पैरा लीगल स्व्यंसेवकों को विशेषज्ञ के रूप में योग्य अधिवक्ताओं, विधि महाविद्यालय के शिक्षकों एवं स्नातकोत्तर के छात्र, विधिक महाविद्यालय से सेवा निवृत्त शिक्षक, सेवा निवृत्त न्यायिक अधिकारी, राजस्व अधिकारी, समाज कल्याण विभाग के अधिकारी, लोक अभियोजक, वरिष्ठ पुलिस अधिकारी इत्यादि के द्वारा प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
पैरा विधिक स्वयं सेवकों को कई चरणों में प्रशिक्षण दिया जाता है। इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में आम नागरिकों के मौलिक अधिकार एवं कर्तव्य, परिवारिक विधियों, सम्पदा विधियॉ, श्रम विधियॉ उपभोक्ता कानून, औद्योगिक विधियॉ, बंदियों के अधिकार, राजस्व विधियॉ, बच्चों से संबंधित विधियॉ, सूचना का अधिकार अधिनियम, मोटरयान अधिनियम, शिक्षा का अधिकार अधिनियम, लोक अदालत , प्ली-बार्गेनिंग, अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम, पर्यावरण संबंधी विधियॉ शासन की विभिन्न योजनाएॅ एवं जनहित से संबंधित कानूनी विषयों पर जानकारी प्रदान की जाती है।
अंतिम रूप से चयनित एवं प्रशिक्षित पैरा विधिक स्वयं सेवकों को परिचय पत्र जारी किया जायेगा, जो एक वर्ष के लिए वैद्य होगा। एक वर्ष पश्चात् पुनः उसका परिचय पत्र नवीनीकृत किया जायेगा यदि अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण उससे आगे पैरा विधिक स्वयं सेवक के रूप में कार्य लेने हेतु उसे पात्र पाते हैं।
पैरा विधिक स्वयंसेवकों को विभिन्न स्तरों पर भिन्न-भिन्न प्रकार की सेवायें प्रदान करनी है। अतः यह संभव है कि अपने कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान उन्हें सलाह एवं सहयोग की आवश्यकता पड़े। पैरा विधिक स्वयंसेवकों की इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये प्रत्येक प्राधिकरण /समिति सलाहकारों का पैनल तैयार करेगी। 10 पैरा विधिक स्वयं सेवक पर एक सलाहकार होगा जिसका संपर्क नंबर उसके ग्रुप के पैरा विधिक स्वयं सेवकों के पास होगा । पैरा विधिक स्वयं सेवक आवश्यकता होने पर सलाहकार से सलाह एवं सहयोग प्राप्त कर सकेगा।
पैरा विधिक स्वयंसेवकों के कार्य:-
पैरा विधिक स्वयंसेवक सामान्यतः निम्नलिखित कार्य करेंगेंः-
1. लोगों, विशेषतः समाज के कमजोर वर्ग के लोगों को मान-सम्मान के साथ रहने के अधिकार, संविधान एवं अन्य विधियों द्वारा प्रदत्त अधिकारों आदि के संबंध में जागरूक करना साथ ही उनके कर्तव्यों एवं दायित्वों के संबंध में भी जागरूक करना।
2. पैरा विधिक स्वयं सेवक अपने क्षेत्र में होने वाले कानून के उल्लंघन एवं अन्याय पर लगातार दृष्टि रखेंगें तथा उसे तत्काल फोन से या लिखित या व्यक्तिगत रूप से प्राधिकरण/समिति के संज्ञान में लायेगें ताकि प्राधिकरण/समिति प्रभावी उपचार के लिए कदम उठा सकें।
3. यदि पैरा विधिक स्वयं सेवक को क्षेत्र के किसी व्यक्ति के गिरफ्तार होने की सूचना मिलती है, तो वह थाना जायेगा तथा यदि आवश्यक हो तो यह सुनिश्चित करेगा कि वह नजदीक के प्राधिकरण/समिति से उसे विधिक सहायता पहुचायें।
4. पैरा विधिक स्वयं सेवक का यह भी दायित्व है कि वह देखे कि अपराध के पीड़ित को समुचित संरक्षण और सहयोग मिले। हत्या, बलात्कार, एसिड़ हमला, बालकों पर होने वाले लैंगिक अपराधों में पीड़ित को लैंगिक अपराधों से बालकों की सुरक्षा अधिनियम 2012, धारा 357-ए दं0प्र0सं0 एवं छत्तीसगढ़ पीड़ित क्षतिपूर्ति स्कीम 2011 के अन्तर्गत क्षतिपूर्ति दिलाने में भी सहयोग करेगा।
5. प्राधिकरण द्वारा प्राधिकृत किये जाने पर जेल, मनःचिकित्सालय, बाल सरंक्षण गृह जायेगा तथा उन स्थानों पर निरूद्व व्यक्तियों की विधिक आवश्यकताओं को सुनिश्चित करेगा तथा यदि वह पाता है कि निरूद्व व्यक्तियों की मूलभूत सुविधाओं में कोई कमी है तो उसे सक्षम प्राधिकरणी को सूचित करेगा।
6. पैरा विधिक स्वयं सेवक बच्चों के अधिकारों के उल्लंघन, बालश्रम, बच्चों की गुमशुदगी, लड़कियों के दुर्व्यापार के बारे में नजदीकी सक्षम प्राधिकरणी या बाल कल्याण समिति को सूचित करेगा।
7. पैरा विधिक स्वयं सेवक अपने क्षेत्र में विधिक जागरूकता शिविरों के आयोजन में प्राधिकरण/समिति की सहायता करेगा।
8. पैरा विधिक स्वयं सेवक अपने क्षेत्र के लोगों को विधिक सेवा प्राधिकरणों से प्राप्त होने वाली विधिक सहायता की जानकारी देगा तथा प्राधिकरणों /समितियों का पता बतायेगा ताकि लोग, प्राधिकरणों /समिति से प्राप्त होने वाले मुफ्त विधिक सहायता का लाभ उठा सकें।
9. पैरा विधिक स्वयं सेवक लोगों को पूर्व-विवाद स्तर पर मध्यस्थता, लोक अदालत, पंचाट या सुलह समझौते के माध्यम से विवादों के निपटारे के लिए जागरूकता पैदा करेगा तथा लाभ बतायेगा।
10. पैरा विधिक स्वयं सेवक लोगों को स्थायी लोक अदालात (लोकोपयोगी सेवाओं के लिये) के माध्यमों से निम्न विवादों को निपटारे की जानकारी देगाः-
  • वायु, सड़क या जल मार्ग द्वारा यात्रियों या माल के वहन के लिये यातायात सेवा.
  • डाक, तार या टेलीफोन सेवा.
  • किसी स्थापना द्वारा जनता को विद्युत, प्रकाश या जल का प्रदाय.
  • सार्वजनिक मल वहन या स्वच्छता प्रणाली.
  • अस्पताल या औषधालय सेवा.
  • बीमा सेवा.
  • बैंकिग तथा अन्य वित्तीय संस्थानों की सेवाएं.
  • किसी स्थापना द्वारा जनसामान्य को किसी भी प्रकार के ईधन का प्रदाय.

11. पैरा विधिक स्वयं सेवक नियत फार्मेट में उसके द्वारा किये गये कार्य की मासिक विवरणी प्राधिकरण/समिति को देगा।
12. प्रतिदिन की कार्यवाही को दर्ज करने हेतु प्रत्येक पैरा विधिक स्वयं सेवक एक डायरी रखेगा। यह डायरी प्राधिकरण द्वारा छपवायी और उपलब्ध करायी जायेगी तथा प्राधिकरण /समिति के सचिव / अध्यक्ष द्वारा अभिप्रमाणित की जायेगी।
13. पैरा विधिक स्वयं सेवक यह भी देखेगा कि विधिक सेवा से संबंधित प्रचार सामग्री उनके क्षेत्र के प्रमुख स्थानों पर प्रदर्शित किये जायें।
पैरा विधिक स्वयं सेवकों के प्रबंध कार्यालयों में कार्य:-
नालसा (मुफ्त एवं प्रभावी विधिक सहायता) विनियम 2010 के विनियम 4 के अन्तर्गत प्रबंध कार्यालय के कार्यालयीन समय के दौरान उपलब्ध पेनल अधिवक्ता के साथ एक या अधिक पैरा विधिक स्वयं सेवक को नियुक्त किया जा सकता है।
विधिक सहायता केन्द्र में पैरा विधिक स्वयं सेवक के कार्य :-
नालसा (विधिक सहायता क्लीनिक) विनियम 2011 विनियम 5 के अन्तर्गत विधिक सहायता क्लीनिक में कार्य समय के दौरान कम से कम दो पैरा विधिक स्वयं सेवक उपस्थित रहकर विधिक सहायता/सलाह प्रदान करेंगे।
नालसा (विधिक सहायता क्लीनिक) विनियम 2011 के विनियम 10 के अन्तर्गत पैरा विधिक स्वयंसेवक निम्नलिखित कार्य करेंगें:-
1. विधिक सहायता केन्द्र में प्रतिनियुक्त पैरा विधिक स्वयंसेवक विधिक सहायता चाहने वाले व्यक्ति को प्रारंभिक सलाह प्रदान करेगा।
2. विभिन्न सरकारी योजनाओं के अन्तर्गत लाभ प्राप्त करने हेतु सहायता चाहने वाले, विशेषतः अशिक्षित व्यक्तियों के लिये आवेदन, नोटिस आदि का मसौदा तैयार करेगा और फार्म भरने में सहायता प्रदान करेगा।
3. यदि आवश्यकता हो तो पैरा विधिक स्वयं सेवक विधिक सेवा चाहने वाले व्यक्ति के साथ सरकारी कार्यालय जायेगा तथा अधिकारी/कर्मचारी से मिलकर उक्त व्यक्ति की समस्या के निदान का प्रयास करेगा।
4. यदि विधिक सहायता केन्द्र में अधिवक्ता की सेवा की आवश्यकता है तो पैरा विधिक स्वयं सेवक बिना विलम्ब किये जिला विधिक सेवा प्राधिकरण/तालुक विधिक सेवा समिति से संपर्क कर अधिवक्ता की सेवा तत्काल उपलब्ध कराने का अनुरोध करेगा।
5. आकास्मिकता की स्थिति में विधिक सेवा चाहने वाले ब्यक्ति को पैरा विधिक स्वयं सेवक जिला विधिक सेवा प्राधिकरण / तालुका विधिक सेवा समिति में ले जायेगा।
6. विधिक सहायता चाहने वाले व्यक्तियों को जागरूक करने हेतु पैरा विधिक स्वयं सेवक पर्चे एवं अन्य सामग्री बॉटेगा।
7. पैरा विधिक स्वयं सेवक जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा आयोजित विधिक जागरूकता शिविर में सक्रिय भागीदारी करेगा।
8. इसके अतिरिक्त पैरा विधिक स्वयं सेवक जिला प्राधिकरण /समिति की सलाह से अपने क्षेत्र में श्रमिकों, महिलाओं, बच्चों, अनुसूचित जाति/ जनजाति एवं अन्य लोगों के छोटे-छोटे समूहों के बीच विभिन्न विषयों यथा उनके मूल अधिकारों, विधिक अधिकारों, संपत्ति संबंधी अधिकारों, सूचना के अधिकार, शिक्षा के अधिकार, सेवा के अधिकार, पुलिस के संबंध में उनके अधिकार, सरकार द्वारा उनके लिए संचालित विभिन्न लाभकारी स्कीमों एवं लाभकारी अधिनियमों आदि विषयों के बारे में विधिक जागरूकता एवं साक्षरता शिविरों
का आयोजन करेगा।
अनुकल्पी विवाद निपटारा(ए.डी.आर.)द्वारा स्थानीय विवादों का निपटारा करानाः- 
स्थानीय स्तर पर लोगों के बीच अक्सर छोटे-छोटे विवाद होते रहते हैं जिन्हें यदि समय से नहीं सुलझाया जाय तो बड़े विवादों और मुकदमें का रूप ले लेते हैं। पैरा विधिक स्वयं सेवकों का यह कर्तव्य है वे अपने क्षेत्र के ऐसे विवादों की पहचान करेगा तथा पक्षकारों को इस बात के लिए प्रेरित करेगा कि वे अपने विवादों को लोक अदालत, मध्यस्थता, या बातचीत के माध्यम से सुलझाये तथा इसके लिये उन्हें जिला विधिक सेवा प्राधिकरण / ए.डी.आर. केन्द्र में लाने का प्रयास करेगा।
जेल में पैरा विधिक स्वय सेवक:-
प्रत्येक जेल में विधिक सहायता केन्द्र स्थापित करने के अतिरिक्त लम्बी सजा भुगत रहे कैदियों में से कुछ कैदियों का चयन पैरा विधिक स्वयं सेवक के रूप में कर उन्हें प्रशिक्षित किया जाना है, ताकि वे अपने अन्य कैदियों को विधिक सहायता प्रदान कराने के लिए हमेशा उपलब्ध रहें।
पैरा विधिक स्वयं सेवकों की थाने में प्रतिनियुक्ति :-
बचपन बचाओं आन्दोलन बनाम भारत सरकार के मामलें में माननीय सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्देश है कि यदि किसी बच्चे के गायब होने की शिकायत की जाती है तो यह माना जायेगा कि उस बच्चे का अपहरण या दुर्व्यापार हुआ है और तत्काल प्राथमिकी दर्ज किया जायेगा ताकि अनुसंधान के क्रम में तत्काल उनकी खोज प्रारंभ की जा सके।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार प्रदेश के प्रत्येक थाने में पैरा विधिक स्वयं सेवक की प्रतिनियुक्ति की जाती है जो यह देखेगा कि गायब हुए किसी बच्चे से संबंधित शिकायत प्राथमिकी के रूप में दर्ज हो रहा है या नहीं एवं प्राथमिकी दर्ज होने के उपरान्त पुलिस बच्चे की तलाश में तत्पर है या नही।
यदि पुलिस ने बच्चे की गुमशुदगी को सिर्फ सान्हा के रूप में दर्ज किया है तो संबंधित पैरा विधिक स्वयं सेवक थाना प्रभारी को माननीय उच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए प्राथमिकी दर्ज कर बच्चे की तलाश किये जाने का अनुरोध करेगा।
यदि पैरा विधिक स्वयं सेवक यह पाता है कि प्राथमिकी दर्ज होने के उपरान्त पुलिस बच्चे की खोज में तत्पर नहीं है तो भी वह संबंधित अनुसंधानकर्ता एवं थाना प्रभारी को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लेख करते हुए बच्चे की तलाश हेतु कदम उठाने का अनुरोध करेगा।
यदि थाना प्रभारी अथवा अनुसंधानकर्ता प्राथमिकी दर्ज करने अथवा बच्चे की तलाश में तत्परता के अनुरोध पर ध्यान नहीं देता है तो संबंधित पैरा विधिक स्वयं सेवक इसकी तत्काल लिखित सूचना संबंधित जिले के जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को देगा ताकि प्राधिकरण के स्तर से उस संबंध में आवश्यक कदम उठाया जा सकें।
नोटः-उल्लेखनीय है कि थाने में प्रतिनियुक्त पैरा विधिक स्वयंसेवक किसी भी रूप में थाना कार्य का पर्यवेक्षक नहीं है, बल्कि वह जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के प्रतिनिधि के रूप में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के अनुपालन में बच्चों से संबंधित शिकायत पर निगाह रखने के लिए है।
पैरा विधिक स्वयं सेवकों के गुण :-
एक सफल पैरा विधिक स्वयंसेवक होने के लिये पैरा विधिक स्वयंसेवक में निम्नलिखित गुण होने चाहिए:-
1. लोगों के साथ मिलकर कार्य करने की क्षमता.
2. घटना को विस्तार से समझने की क्षमता.
3. कठिन परिस्थितियों में धैर्य के साथ कार्य करने की क्षमता.
4. गंभीरता.
5. ईमानदारी.
6. सुनियोजित रहना.
7. बहुआयामी.
8. टीम वर्क.
9. समझदारी.
10. बातचीत करने की क्षमता.
11. कठिन परिस्थितियों में भी विवेकशील रहना.
12. साफ-साफ बोलना और लिखना.
13. सतत् सीखते रहने की क्षमता.
याद रखें पैरा विधिक स्वयं सेवकों को क्या नहीं करना हैः-
पैरा विधिक स्वयंसेवकों के लिये जितना आवश्यक यह जानना है कि उसे क्या करना है, उतना ही आवश्यक यह भी जानना है कि उसे क्या नही करना है। पैरा विधिक स्वयं सेवकों को निम्नालिखित कार्य नही करना है-
1. पैरा विधिक स्वयं सेवक फीस नहीं ले सकता।
2. क्लाईंट के लिए कोर्ट में पेश नहीं होना।
3. न्याय का दलाल नही बनना है।
4. जाति, धर्म, लिंग आदि के आधार पर कोई भेद-भाव नहीं करना है।
5. सहानुभूति और समझदारी से निर्णय लेगा।
6. पैरा विधिक स्वयंसेवक अपनी नियुक्ति का किसी भी रूप में दुरूपयोग नही करेंगें।
7. पैरा विधिक स्वयं सेवक जरूरतमंद तथा संबंधित विभाग के बीच सेतु का कार्य करते समय ऐसा कोई कार्य नही करेगा जो अधिकार क्षेत्र से बाहर हो। यदि विभाग से उसे सहयोग नही मिलता है तो वह इसकी सूचना संबंधित जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को देगा।
8. झूठा आरोप लगाने वाला और अवमानकारक आवेदन नहीं लिखेगा।
9. आवेदन, नोटिस, जवाब, लिखने के समय गलत तथ्यों या आवेदक द्वारा बताये गये तथ्यों से अलग या अतिरिक्त तथ्य नहीं लिखेगा।
10.आवेदक की सहायता के लिए किसी कार्यालय में जाने के दौरान पैरवीकार के रूप में कार्य नही करेगा।
11. अधिकारों की उपलब्धता के संबंध में कोई विधिक राय नहीं देगा।
12.पैरा विधिक स्वयंसेवक की हैसियत से किसी कार्यालय या व्यक्ति को कोई पत्र नही लिखेगा।
13.पैरा विधिक स्वयंसेवक किसी का कार्य करा देने का वादा नहीं करेगा या काम कराने की गारण्टी नही लेगा। वह एजेन्ट की तरह कार्य नही करेगा। उदाहरण के लिये यदि कोई व्यक्ति वृद्वावस्था पेंशन पाने का हकदार है तो- पैरा विधिक स्वयं सेवक उसे यह बतायेगा कि व्यक्ति वृद्वावस्था पेंशन पाने का हकदार है। यदि वह व्यक्ति यह नहीं जानता है कि उसे पेंशन कैसे प्राप्त होगी तो पैरा विधिक स्वयंसेवक उसे आवेदन का फार्म उपलब्ध करायेगा तथा फार्म भरवाने में उसकी मदद करेगा। यदि आवेदक अशिक्षित है तो पैरा विधिक स्वयंसेवक स्वयं उसका फार्म भरेगा। फार्म भरने के पश्चात् पैरा विधिक स्वयंसेवक आवेदक को वह आफिस बतायेगा जहॉ फार्म जमा करना है, और यदि आवश्यक हो तो फार्म जमा कराने में सहायता करेगा।
पैरा विधिक स्वयंसेवक यह नही करेगा कि वह आवेदक से कहे कि आवेदन फार्म दो मैं वृद्वावस्था पेंशन दिलवा दूॅगा, या वह आवेदक के साथ जाकर कार्यालय में वृद्वावस्था पेंशन के लिए पैरवी करें।
14. पैरा विधिक स्वयंसेवक किसी कार्यालय जाकर पैरा विधिक स्वयंसेवक की हैसियत से किसी कार्य को करने के लिए दबाव नहीं बनायेगा।
15. यदि किसी पैरा विधिक स्वयंसेवक की ऐसी शिकायत मिलती है तो वह पैनल से हटाने का आधार हो सकेगा।
16. यदि पैरा विधिक स्वयंसेवक से कोई आवेदक यह शिकायत करता है कि किसी कार्यालय में उसका कोई कार्य नही हो रहा है, ऐसी स्थिति में पैरा विधिक स्वयं सेवक आवेदक को यह बतायेगा कि आवेदक किस प्रकार उसकी शिकायत उच्चाधिकारी से कर सकता है।
पैरा विधिक स्वयंसेवकों का निष्कासन:-
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष निम्नलिखित परिस्थितियों में किसी पैरा विधिक स्वयं सेवकों को पैरा विधिक स्वयंसेवकों की सूची से हटा सकते हैं:-
1. यदि पैरा विधिक स्वयंसेवक को स्कीम में अभिरूचि नहीं रह जाती है।
2. यदि वह दिवालिया घेषित हो जाता है।
3. यदि वह किसी अपराध का अभियुक्त हो जाता है।
4. यदि वह सक्रिय पैरा विधिक स्वयंसेवक के रूप में कार्य करने में शारीरिक या मानसिक रूप से अस्वस्थ्य हो जाता है।
5. यदि वह अपने नियुक्ति का इस प्रकार दुरूपयोग या भ्रष्टाचार करता है, कि किसी भी रूप् में उसका पैरा विधिक स्वयं सेवक रहना लोकहित को प्रभावित करेगा।
6. यदि वह किसी राजनीतिक दल से संबंध हो जाता है।
पैरा विधिक स्वयंसेवकों का मानदेय एवं अन्य खर्चे:-
  • पैरा विधिक स्वयंसेवक को जिस दिन विशेष कार्य पर लगाया जाता है उस दिन का मानदेय  दिया जायेगा।
  • पैरा विधिक स्वयंसेवक जिस दिन गॉव से विधिक सहायता का आवेदन लेकर जिला  प्राधिकरण या तालुका समिति आता है उस दिन का मानदेय भी वह पाने का हकदार होगा।
  • यदि कोई पैरा विधिक स्वयंसेवक किसी व्यक्ति की सहायता हेतु न्यायालय या अन्य कार्यालय  में जाता है तो वह उस दिन का मानदेय पाने का हकदार होगा परन्तु उसे इस प्रकार सहायता  दिये जाने का प्रमाण देना होगा।
  • विधिक सहायता प्रदान करने के क्रम में पैरा विधिक स्वयंसेवक द्वारा बस/ट्रेन का न्यूनतम  भाड़ा, फोन आदि पर जो खर्च किया जाता है वह भी खर्च का प्रमाण देने पर देय होगा।
  • पैरा विधिक स्वयंसेवक से जिस दिन प्रबंध कार्यालय और विधिक सहायता केन्द्र में कार्य  लिया जाता है उस दिन का मानदेय देय होगा।
  • विधिक जागरूकता शिविर के लिये कार्य करने वाले दिन का मानदेय देय होगा।
  • मानदेय के रूप में 250/-रूपये देय होगा।

पैरा विधिक स्वयंसेवकों का राष्ट्रीय स्तर सम्मेलन:-
’’न्याय सबके लिए ’’ उद्वेश्य की प्राप्ति हेतु समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक पहुॅच कर उसे विधिक सेवा उपलब्ध कराने के लिए पैरा विधिक स्वयंसेवक सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। पैरा विधिक स्वयंसेवक की संवेदनशीलता, सक्रियता, क्षमता एवं दक्षता पर ही विधिक सेवा अभियान की सफलता निर्भर है।
अतः नालसा ने यह घोषित किया है कि समय-समय पर पैरा विधिक स्वयंसेवकों का राष्ट्रीय स्तर पर सम्मलेन किया जायेगा तथा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों द्वारा चुन कर भेजे गये श्रेष्ठ पैरा विधिक स्वयंसेवकों में से राष्ट्रीय स्तर पर सर्वश्रेष्ठ पैरा विधिक स्वयंसेवक को पुरूस्कृत एवं सम्मानित किया जायेगा।
अतः पैरा विधिक स्वयंसेवक का कार्य राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रकट होगा। इसलिये समस्त पैरा विधिक स्वयंसेवकों से यह अपेक्षा है कि ’’ सबके लिये न्याय’’ अभियान में शुद्ध अतंःकरण से देश के अंतिम व्यक्ति तक विधिक सहायता/सलाह पहुंचाने में योगदान करें।

’’प्ली बारगेनिंग’’ अभिवाक चर्चा : दांडिक न्याय की सरल प्रक्रिया

भारतीय संसद ने दंड प्रक्रिया संहिता में संशोधन अधिनियम 2/2006 द्वारा एक नया अध्याय 21 (ए) (धारा 265-ए से 265-एल) ’’प्ली बारगेनिंग’’ नामक शीर्षक जोड़कर दांडिक प्रकरणों को शीघ्रता से निपटाने का एक सराहनीय कदम उठाया है।
’’प्ली बोरगेनिंग’’ अवधारणा के अंतर्गत अभियुक्त, अभियोजन व पीड़ित पक्ष आपसी सामंजस्य पूर्ण तरीके से प्रकरण के निपटारे हेतु न्यायालय के अनुमोदन से एक रास्ता निकालते हैं। इसके अंतर्गत अभियुक्त द्वारा अपराध स्वीकृति पर उसे हल्के दंड से दंडित किया जाता है, जो अन्यथा कठोर भारी हो सकता है।
भारत में ’’प्ली बोरगेनिंग’’ का लाभ गंभीर अपराधों में नहीं उठाया जा सकता है। 
ऐसे अपराधों में ’’प्ली बोरगेनिंग’’ लागू नहीं होता, जो मृत्यु दंड, आजीवन कारावास सात वर्ष से अधिक कारावास से दंडनीय होते हैं। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित श्रेणियों के अपराधों को भी ’’प्ली बोरगेनिंग’’ की परिधि से बाहर रखा गया है:-
1. ऐसे अपराध जो देश की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं। केंद्रीय सरकार ने अधिसूचना दिनांक 11 जुलाई 2006 द्वारा 19 अधिनियमों में वर्णित अपराधों को ’’प्ली बारगेनिंग’’ से अपवर्जित किया है।
2. महिलाओं के विरूद्ध अपराध।
3. 14 वर्ष से कम उम्र के बालक के विरूद्ध।
सौदा अभिवाक् (’’प्ली बारगेनिंग’’) के आवेदन देने के लिए प्रक्रिया -
पुलिस द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट (चालान) अथवा परिवाद प्रकरण में अभियुक्त ’’प्ली बारगेनिंग’’ हेतु आवेदन प्रस्तुत कर सकता है। यह आवेदन शपथ पत्र द्वारा समर्थित होना चाहिए। अभियुक्त के आवेदन में यह वर्णित होना चाहिए कि उसने अपराध की प्रकृति को एवं दंड की सीमा को समझ लिया है और स्वेच्छा से आवेदन पेश कर रहा है। यदि अभियुक्त उसी अपराध में पूर्व में दोषसिद्ध हुआ हो तो वह ’’प्ली बारगेनिंग’’ के लिए अयोग्य होगा।
आवेदन प्राप्त होने के पश्चात् सूचना:-
आवेदन प्राप्त होने के पश्चात् न्यायालय लोक अभियोजक, परिवादी/पीड़ित एवं अनुसंधानकर्ता अधिकारी को न्यायालय में उपस्थित रहने के लिए नोटिस जारी करेगा। न्यायालय उक्त पक्षों को आपसी संतोषजनक हल निकालने के लिए समय देगा। 

छत्‍तीसगढ़ पीड़ित क्षतिपूर्ति योजना- 2011

’’पीड़ित का आशय’’ ऐसे व्यक्ति से है जिसे किसी अपराध के कारण नुकसान या क्षति हुई हो तथा इसके अंतर्गत उसके आश्रित परिवारजन भी शामिल है।
स्वयं कोई नुकसान या क्षति सहा हो अथवा किसी अपराध के फलस्वरूप जिसे चोट आई हो एवं जिसे पुनर्वास की आवश्यकता हो, इसके अंतर्गत पीड़ित के आश्रित परिवारजन भी शामिल है।
क्षतिपूर्ति के लिए अर्हताएं:- निम्नलिखित अर्हताएं पूर्ण करने वाला पीड़ित व्यक्ति या उसका आश्रित इस योजना के अंतर्गत क्षतिपूर्ति के पात्र होंगे।
पीड़ित को चोट अथवा क्षति के कारण उसके परिवार की आय में पर्याप्त कमी हो गयी हो, जिसके कारण आर्थिक सहायता के बिना परिवार का जीवन यापन कठिन हो गया हो अथवा मानसिक/शारीरिक चोट के उपचार में उसे उसके सामर्थ्य से ज्यादा व्यय करना पड़ता हो।
पीड़ित अथवा उसके परिजन द्वारा अपराध की रिपोर्ट संबंधित क्षेत्र के थाना प्रभारी/कार्यपालिक दण्डाधिकारी/न्यायिक दण्डाधिकारी को बिना अनुचित विलम्ब के किया गया हो।
पीड़ित/आश्रित व्यक्ति अपराध की विवेचना एवं अभियोजन कार्यवाही में क्रमशः पुलिस एवं अभियोजन पक्ष का सहयोग करता हो।
क्षतिपूर्ति की स्वीकृति की प्रक्रिया:- अधिनियम की धारा 357 के अंतर्गत जब किसी सक्षम न्यायालय के द्वारा क्षतिपूर्ति की अनुशंसा की जाती है अथवा धारा 357 ए की उपधारा 4 के अंतर्गत किसी पीड़ित व्यक्ति अथवा उसके आश्रित के द्वारा जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को आवेदन पत्र प्रस्तुत किया जाता है तब उक्त प्राधिकरण संबंधित पुलिस अधीक्षक से परामर्श तथा समुचित जांच पश्चात तथ्य एवं दावे की पुष्टि करेगा तथा 02 माह के अंदर जांच पूर्ण कर योजना के प्रावधानों के अनुरूप पर्याप्त क्षतिपूर्ति की घोषणा करेगा।
इस योजना के अंतर्गत क्षतिपूर्ति का भुगतान इस शर्त पर किया जायेगा कि यदि बाद में निर्णय पारित करते हुए विचारण न्यायालय आरोपित व्यक्तियों द्वारा अधिनियम की धारा 357 के उप नियम 3 के अंतर्गत क्षतिपूर्ति दिये जाने हेतु आदेशित करता है तो जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा पूर्व में घोषित क्षतिपूर्ति को उसमें समायोजित किया जावेगा। इस आशय का एक वचन पत्र पीड़ित/दावेदार द्वारा क्षतिपूर्ति के भुगतान के पूर्व दिया जायेगा।
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा पीड़ित या उसके आश्रित के लिए क्षतिपूर्ति की राशि निर्धारित करने में पीड़ित को हुए नुकसान, उपचार खर्च, पुनर्वास हेतु आवश्यक न्यूनतम निर्वाह राशि तत्समय लागू न्यूनतम मजदूरी एवं अन्य प्रासंगिक व्यय जैसे अंत्येष्ठि व्यय इत्यादि को ध्यान में रखा जायेगा। तथ्यों के आधार पर क्षतिपूर्ति की राशि में प्रकरण दर प्रकरण भिन्नता हो सकती है।
पीड़ित व्यक्ति द्वारा प्रश्नाधीन अपराध के संबंध में किसी अन्य स्त्रोत जैसे बीमा राशि, अनुग्रह राशि अथवा केन्द्र/राज्य सरकार के किसी अधिनियम/योजनान्तर्गत भुगतान से प्राप्त क्षतिपूर्ति को इस योजना अंतर्गत क्षतिपूर्ति के अंश के रूप में माना जायेगा तथा इस योजनान्तर्गत घोषित क्षतिपूर्ति के विरूद्ध समायोजित किया जायेगा।
पीड़ित अथवा उसके आश्रितों को दी जाने वाली क्षतिपूर्ति की अधिकतम सीमा अनुसूची में दी गयी राशि से अधिक नहीं होगी।
मोटर यान अधिनियम 1988 (1988 का अधिनियम क्रमांक 59) के अंतर्गत शामिल प्रकरणों को जिनमें मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा क्षतिपूर्ति का आदेश दिया जाना है, इस योजना में शामिल नहीं किया जायेगा।
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, पीड़ित व्यक्ति के कष्ट को कम करने के लिए, संबंधित थाना प्रभारी अथवा क्षेत्र के कार्यकारी मजिस्ट्रेट के प्रमाण पत्र के आधार पर पीड़ित व्यक्ति को तत्काल प्राथमिक चिकित्सा सुविधा अथवा निःशुल्क चिकित्सा लाभ अथवा अन्य अंतरिम सहायता जैसा भी उचित हो, उपलब्ध कराने हेतु आदेशित कर सकता है।
परिसीमन:- अधिनियम की धारा 357 ए की उपधारा 4 के अंतर्गत पीड़ित अथवा उसके आश्रितों के द्वारा प्रस्तुत कोई आवेदन चोट/क्षति कारित किये जाने की एक एक वर्ष की समयावधि के पश्चात ग्राह्य नहीं होगा।
अपील:- जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के द्वारा किसी पीड़ित अथवा उसके परिवारजन को क्षतिपूर्ति देने से इंकार करने की दशा में वह व्यक्ति 90 दिनों के भीतर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में अपील प्रस्तुत कर सकता है।
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को यदि संतुष्टि हो तो तत्संबंधी कारणों का उल्लेख करते हुए अपील प्रस्तुत करने में हुए विलम्ब की अवधि को माफ कर सकता है।
अनुसूची-
क्षतिपूर्ति की अधिकतम सीमा 
1.जीवन की क्षति - रूपये 1,00,000/-
2.एसीड अटैक के कारण शरीर के अंग या भाग के 80 प्रतिशत या इससे अधिक विकलांगता या गंभीर क्षति - रूपये 50,000/-
3.शरीर के अंग या भाग की क्षति परिणामस्वरूप 40 प्रतिशत से अधिक एवं 80 प्रतिशत से कम विकलांगता - रूपये 25,000/- 4.अवयस्क का बलात्कार - रूपये 50,000/-
5.बलात्कार - रूपये 25,000/- 6.पुनर्वास - रूपये 20,000/-
7.शरीर के अंग या भाग की क्षति परिणामस्वरूप 40 प्रतिशत से कम विकलांगता- रू.10,000/-
8. महिलाओं एवं बच्चों के मानव तस्करी जैसे मामलों में गंभीर मानसिक पीड़ा के कारण क्षति - रूपये 20,000/-
9 साधारण क्षति या चोट से पीड़ित बच्चे - रूपये 10,000/-

Monday, 31 October 2016

छत्तीसगढ़ लोक सेवा गारंटी अधिनियम, 2011

छ.ग. लोक सेवा गारंटी अधिनियम वर्ष 2011 से छत्तीसगढ़ राज्य में लागू किया गया है। जिसे छ.ग.शासन के कार्यों के संबंध में किन्ही सिविल सेवाओं अथवा पदों पर नियुक्त व्यक्तियों, स्थानीय निकायों, लोक प्राधिकारियों या अभिकरणों जो शासन के स्वामित्व, नियंत्रण में हैं या सारवान् रूप से वित्तीय सहायता प्राप्त हैं, उन पर लागू किया गया है।
स्थानीय निकाय से आशय है कि कोई प्राधिकारी, नगर पालिका, पंचायत या कोई अन्य निकाय जिसे किसी भी नाम से जाना जाता हो, जिसे छ.ग. राज्य के भीतर लोक सेवा प्रदान किये जाने के लिए निहित किया गया है या जो उसके स्थानीय सेवा में ऐसी सेवाओं का नियंत्रण, प्रबंधन या विनियमन करता हो।
नियत समय में लोक सेवा प्राप्त करने का अधिकार
प्रत्येक व्यक्ति को इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर यथा अधिसूचित नियत समय के भीतर छ0ग0 राज्य में लोक सेवा प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है। नियत समय में लोक सेवा प्रदाय करने का दायित्व, परिव्यय का अधिरोपन, वसूली एवं भुगतान  
1. प्रत्येक विभाग इस अधिनियम के प्रारंभ होने के तिथि से लोक सेवा प्रदान करने के लिए उत्तरदायी व्यक्ति के पद को नामित किया जायेगा (पदाविहीत) तथा ऐसे तथ्य को सर्वसाधारण की जानकारी के लिए विभाग के किसी सहज दृश्य स्थान पर प्रदर्शित किया जायेगा।
2. उत्तरदायी व्यक्ति आवेदन प्राप्त होने पर आवेदक को एक अभिस्वीकृति देगा। आवेदक अपने आवेदन के संबंध में क्या कार्यवाही हुई, जानने का हकदार होगा।
3. लोक सेवा प्रदाय करने वाला उत्तरदायी प्रत्येक व्यक्ति निश्चित समय के भीतर सेवा प्रदान करने में असफल रहता है तो विलंब की अवधि के लिए 100/-रू. की दर से प्रत्येक दिन के लिए अधिकतम 1000/-रू. परिव्यय भुगतान करने का दायी होगा। यदि उत्तरदायी व्यक्ति आवेदक को सेवा प्रदान करने में असफल रहा तो उक्त राशि आवेदक को दिलाये जाने हेतु उत्तरदायी व्यक्ति से वसूली योग्य होगा।
सक्षम अधिकारी की नियुक्ति
प्रत्येक विभाग इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए एक या एक से अधिक व्यक्तियों को सक्षम अधिकारी के रूप में अधिसूचित करेगा जो लोक सेवा प्रदाय करने के लिए उत्तरदायी व्यक्ति की श्रेणी से निम्न का न हो।
लोक सेवा प्राप्त करने हेतु असत्य जानकारी प्रस्तुत करने पर दायित्व
कोई व्यक्ति लोक सेवा प्राप्त करने के लिए ऐसा आवेदन नहीं देगा जिसमें ऐसा तथ्य या जानकारी अंतर्विष्ट हो जिसे वह जानता है या विश्वास करने का कारण है कि वह असत्य है तथा वह जो ऐसा तथ्य या जानकारी प्रस्तुत करता है, उसम समय प्रवृत्त विधि के अधीन आपराधिक कार्यवाही के लिए दायी हो सकेगा।
अपील का अधिकार
कोई व्यक्ति जो इस अधिनियम के अधीन सक्षम अधिकारी द्वारा पारित आदेश से व्यथित हो आदेश की प्राप्ति से 30 दिवस के भीतर अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील प्रस्तुत कर सकता है।
अपीलीय अधिकारी अपील संस्थित होने के दिनांक से 45 दिवस की अधिकतम अवधि के भीतर अपील निराकृत करेगा, अपीलीय प्राधिकारी का आदेश अंतिम एवं बाध्यकारी होगा।

झगड़ों को कैसे रोकें

(दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत प्रतिबंधात्मक उपाय)
झगड़ों को कैसे रोकें ?
कभी-कभी छोटी-सी बात के लिए लोग आपस में झगड़ने लगते हैं और यह झगड़ा विकराल रूप धारण कर लेता है, जो अप्रिय घटना को निमंत्रित कर लेता है। इसलिए चिंगारी भीषण आग का रूप न ले, उसे वहीं दबा देना लाभकारी होता है। अतः झगड़ों को रोकने दंड प्रक्रिया संहिता (सी.आर.पी.सी.) की विभिन्न धाराओं की व्यवस्था की गई है। जैसे जब किसी व्यक्ति के द्वारा लोक शांति भंग करने का कार्य किया जाता है अथवा इसकी संभावना व्यक्त की जाती है तो उसके विरूद्ध धारा 107/116 के अंतर्गत कार्यपालक मजिस्ट्रेट के सामने कार्यवाही कर उसे शांति कायम करने हेतु एवं सदाचार बनाए रखने के लिए जमानत सहित वचनबद्ध किया जा सकता है।
यदि किसी व्यक्ति के द्वारा किसी स्थान या मार्ग में बाधा उत्पन्न किया जाता है, जिसके गंभीर परिणाम होने की संभावना व्यक्त की जाती है तो ऐसी स्थिति में सी.आर.पी.सी. की धारा 133 एवं 144 के तहत यह व्यवस्था की गई है, जिससे झगड़ा शुरू होने से पहले रोका जा सके एवं न्यूसेंस को हटाने की व्यवस्था की जाती है। इसी प्रकार जमीन जायदाद के जबरन कब्जे को लेकर उत्पन्न विवाद को शांत करने के लिए सी.आर.पी.सी. की धारा 145 का प्रावधान है। झगड़ों को रोकने के लिए सी.आर.पी.सी. की मुख्य धाराएं 107/116, 133, 144 एवं 145 है।
दंड प्रक्रिया संहिता (सी.आर.पी.सी.) की धारा 107/116 धारा 107:- यदि किसी व्यक्ति के विरूद्ध परिशांति भंग करने की संभावना व्यक्त करते हुए कार्यपालक मजिस्ट्रेट को सूचना दी जाती है तो सी.आर.पी.सी. की धारा 107 के तहत कार्यवाही की जाती हैं
कार्यपालक
यदि किसी व्यक्ति के विरूद्ध परिशांति भंग करने की संभावना व्यक्त करते हुए कार्यपालक मजिस्ट्रेट को सूचना दी जाती है तो सी.आर.पी.सी. की धारा 107 के तहत कार्यवाही की जाती है।
कार्यपालक मजिस्ट्रेट परिशांति भंग करने वाले व्यक्ति के विरूद्ध पर्याप्त आधार मिलने पर उसे नोटिस भेजकर अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए कहता है कि उसे शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए क्यों नहीं उपबंधित किया जाए। इस धारा के तहत कार्यवाही कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष तब तक चलती है, जब तक शांति व्यवस्था बहाल न हो जाए। यदि व्यक्ति झगड़ालू चरित्र का है और उसके व्यवहार से शांति भंग होने की संभावना है तो कार्यपालक मजिस्ट्रेट के द्वारा उसे जमानत सहित बंधपत्र भरवाकर एक वर्ष की अवधि तक अपने व्यवहार को ठीक रखकर शांति भंग नहीं करने के लिए पाबंद किया जाता है।
धारा 107 के अंतर्गत प्रार्थना पत्र दाखिल करना -
शांति भंग करने वाले व्यक्ति के विरूद्ध सी.आर.पी.सी. की धारा 107 के तहत दाखिल किया जाता है। प्रार्थना पत्र में लोक शांति भंग करने वाले व्यक्ति के झगड़ालू चरित्र होने का प्रमाण भी देना होता है, जिसके आधार पर मजिस्ट्रेट द्वारा उक्त व्यक्ति को नोटिस जारी किया जाता है, वह कारण पेश करे कि उन्हें शांति भंग करने की संभावना के आरोप में क्यों न उपबंधित किया जाए। 
जब एस.डी.एम. को धारा 107 के अंतर्गत कार्यवाही करने की गुहार करते हुए प्रार्थना पत्र प्राप्त होता है तो मजिस्ट्रेट धारा 111 के अंतर्गत कार्यवाही शुरू करते हुए उस व्यक्ति को जिसके विरूद्ध आरोप दाखिल किया गया है, कारण पेश करने हेतु नोटिस जारी करता है। धारा-111 के अंतर्गत शांति भंग करने वाले व्यक्ति को कारण पेश करने के लिए धारा-114 के अंतर्गत सम्मन या वारंट के माध्यम से भी नोटिस तामिल किया जा सकता है। वारंट जारी करने पर उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया जाता है। तब इसकी जांच धारा 116 के अंतर्गत जांचः धारा-107 की कार्यवाही शुरू करते हुए धारा-116 के अंतर्गत शांतिभंग करने संबंधी साक्ष्य लेखबद्ध किया जाता है तथा इसकी कार्यवाही छः माह के अंदर पूरी करने का प्रयास किया जाता
है, क्योंकि छः महीने पूरे हो जाने पर यह कार्यवाही स्वतः समाप्त हो जाती है।
धारा-107 के तहत जमानत दाखिल करना
धारा-116 के अंतर्गत जांच पूरी होने के बाद उक्त शांति भंग करने वाले व्यक्ति को शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए धारा-117 के अंतर्गत आदेश दिया जाता है कि वह बंध पत्र एवं जमानत के साथ एक वर्ष तक शांति बनाए रखे।
धारा-107/117 की कार्यवाही का एक दृष्टांत:-
यदि कोई व्यक्ति ’क’ अपने पड़ोसी ’ख’ की शांति भंग करता है तथा समझाने पर भी नहीं मानता है तो ’क’ विरूद्ध परिशांति भंग करने के एवं शांति कायम करने की गुहार करते हुए ’ख’ एस.डी.एम. के न्यायालय में प्रार्थना पत्र दाखिल करता है। जिसे धारा 107 की कार्यवाही करने हेतु ’क’ के विरूद्ध पर्याप्त सबूत भी उपलब्ध कराया जाता है। प्रार्थना पत्र का अवलोकन कर उससे संतुष्ट होकर एस.डी.एम. धारा-111 के तहत ’ख’ को नोटिस जारी करता है। यदि नोटिस की तामिल सम्मन या गिरफ्तारी शांति कायम करने के हित में हो, गिरफ्तारी वारंट किया जा सकता है अन्यथा नहीं। इसके बाद धारा 116 के तहत कार्यवाही शुरू की जाती है। कार्यवाही पूरी होने पर यदि ’ख’ के विरूद्ध शांति भंग करने की संभावना सही साबित होती है तो धारा-117 सी.आर.पीसी. के अंतर्गत एक वर्ष या एक निश्चित अवधि के लिए ’ख’ से शांति कायम रखने हेतु बंध पत्र जमानत ली जाती है।
चोरी जैसे अपराध को रोकने संदेहास्पद व्यक्ति पर जमानत द्वारा पाबंदी रखना -
जिस व्यक्ति पर यह आशंका हो कि वह चोरी जैसे अपराध को अंजाम दे सकता है, उस पर पाबंदी लगाने के लिए धारा-109 और नंबरी बदमाशों के लिए धारा-110 के तहत उनके विरूद्ध पुलिस द्वारा रिपोर्ट पेश की जाती है, जिस पर एस.डी.एम. द्वारा धारा-107 की कार्यवाही की तरह पूरी कार्यवाही के बाद धारा-11 के तहत जमानत दाखिल करने का आदेश जारी किया जाता हैं
सार्वजनिक मार्ग में रूकावट, सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरा एवं दूसरे प्रकार के लोक न्यूसेंस का निवारण:-
जब कोई व्यक्ति सार्वजनिक मार्ग में रूकावट डालता है अथवा सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरा पहुंचाता है या दूसरे प्रकार का लोक न्यूसेंस पैदा करता है तो इसके निवारण के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-133 की व्यवस्था की गई है। इस धारा के तहत न्यूसेंस हटाने के सशर्त आदेश इस प्रकार हैंः-
(क) किसी सार्वजनिक स्थान या मार्ग, नदी या जलखंड से जो जनता द्वारा उपयोग में लायी जा सकती है, कोई विधि विरूद्ध बाधा या न्यूसेंस हटाया जाना चाहिए।
(ख) किसी व्यापार या उपजीविका को चलाना या माल या व्यापारिक वस्तु को रखना समाज के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। उसे रखना निषिद्ध किया जाना चाहिए।
(ग) किसी भवन निर्माण या किसी विस्फोटक का व्ययन जिससे खतरा पैदा हो सके तो उसे बंद कर दिया जाना चाहिए।
(घ) कोई मकान या संरचना या वृक्ष इस दशा में हो कि उसके गिरने से पड़ोसी को क्षति की संभावना हो तो उसकी मरम्मत या उसे हटाने की व्यवस्था की जानी चाहिए।
(ड.) किसी मार्ग या सार्वजनिक स्थान के पास स्थित तालाब, कुएं या खड्डे जिससे जनता को खतरा होने की संभावना हो, उसमें बाड़ लगाना चाहिए, ताकि खतरे का निवारण हो।
(च) किसी भयानक जंतु से लोक स्वास्थ्य को खतरा हो तो उसे नष्ट या व्ययन किया जाना चाहिए। उपरोक्त दशाओं से संबंधित व्यक्ति से सशर्त आदेश द्वारा खतरे के निवारण की अपेक्षा की जाती है। यदि संबंधित व्यक्ति को किसी आदेश को मानने में कोई आपत्ति है तो वह कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित होकर आपत्ति के कारण उपबंधित प्रकार से उपस्थित करें।
नोट - सार्वजनिक स्थान के अंतर्गत राज्य की संपत्ति, पड़ाव के मैदान और स्वच्छता या आमोद-प्रमोद के लिए खाली छोड़े गए मैदान भी हैं।
लोक न्यूसेंस हटाने की प्रक्रिया -
किसी व्यक्ति के द्वारा सार्वजनिक रास्ते या स्थान में रूकावट डाला जाता है अथवा लोक स्वास्थ्य को खतरा पैदा किया जाता है अथवा अन्य प्रकार का लोक न्यूसेंस पैदा किया जाता है तो उसके विरूद्ध धारा-133 के तहत एस0डी0एम0 के न्यायालय में प्रार्थना पत्र के द्वारा किया जाता है जिस पर न्यायालय द्वारा उक्त न्यूसेंस को हटाने का आदेश दिया जाता है। यदि संबंधित व्यक्ति को आदेश मानने से आपत्ति है तो वह अपनी आपत्ति का कारण न्यायालय में उपस्थित होकर दिखाता है। ऐसा नहीं करने पर भा.दं.वि. की धारा धारा 188 के अंतर्गत न्यायालय के आदेश की अवहेलना के अपराध के लिए व्यक्ति के लिए विरूद्ध मुकदमा चलाया जा सकता है। जब उक्त व्यक्ति न्यायालय में उपस्थित होकर पब्लिक रास्ता होने से इंकार करता है तो न्यायालय द्वारा
रूकावट हटाने के लिए धारा-136 के तहत आदेश जारी किया जाता है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-144 के अंतर्गत रूकावट हटाने की व्यवस्था -
दं.प्र.सं. की धारा-144 के तहत अविलम्ब रूकावट हटाने के आदेश जारी करने की व्यवस्था है।
1- इस धारा के तहत उन मामलों में रूकावट तुरंत हटाने का आदेश जारी किया जाता है, जिनमें जिला मजिस्ट्रेट या उपखंड मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार द्वारा नियुक्त कार्यपालक मजिस्ट्रेट की राय में कार्यवाही करने हेतु पर्याप्त आधार हो तथा रूकावट तुरंत हटाना वांछनीय हो।
2- इस धारा के तहत आपात की दशाओं में या उन दशाओं में जब परिस्थितियों में ऐसी है कि उस व्यक्ति पर जिसके विरूद्ध आदेश निर्दिष्ट है, सूचना की तामील सम्यक् समय में करने की गुंजाइश न हो, एकपक्षीय रूप में आदेश पारित किया जा सकता है।
3- इस धारा के तहत किसी विशिष्ट व्यक्ति को या किसी विशेष स्थान या क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों को अथवा आम जनता को, जब वे किसी विशेष स्थान क्षेत्र में जाते हैं, या जाएं निषिद्ध किया जा सकता है।
4- इस धारा के तहत कोई आदेश उस आदेश के दिए जाने की तारीख से दो माह से आगे प्रवृत्त नहीं रहेगा, किंतु यदि राज्य सरकार मानव जीवन या स्वास्थ्य को होने वाले खतरे का निवारण या किसी बलवे या दंगे का निवारण करने के लिए ऐसा करना आवश्यक समझती है तो अधिक से अधिक महीने की अतिरिक्त अवधि के लिए उक्त आदेश प्रभावी हो सकता है।
5- कोई मजिस्ट्रेट स्वप्रेरणा से या किसी व्यक्ति के आवेदन पर इस आदेश को परिवर्तित कर सकता है, जो स्वयं उसने या उसके पूर्ववर्ती या अधीनस्थ ने धारा-144 के तहत जारी किया है।
6- राज्य सरकार उपधारा-4 के परंतु-क, के अधीन अपने द्वारा किए गए आदेश को या तो स्वप्रेरणा से या किसी व्यक्ति के आवेदन पर परिवर्तित कर सकती है।
7- जहां उपधारा-5 या उपधारा-6 के अधीन आवेदन प्राप्त होता है, वहां यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार आवेदक का या स्वयं या वकील के द्वारा उसके समक्ष उपस्थित, मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार आवेदक का या तो स्वयं या वकील के द्वारा उसके समक्ष उपस्थित होने और आदेश के विरूद्ध कारण दर्शित करने पर उसके कारणों को लेखबद्ध किया जाता है।
अचल संपत्ति को लेकर उत्पन्न विवाद के निवारण हेतु धारा-145 
जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट के पास पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट या अन्य इत्तिला द्वारा यह उल्लेख किया जाता है कि उसकी संपत्ति की स्थानीय अधिकारिता के अंदर किसी भूमि या जल या उसकी सीमाओं से संबद्ध ऐसा विवाद विद्यमान है, जिससे परिशांति भंग होने की संभावना है। न्यायालय द्वारा धारा-145 की कार्यवाही कर झगड़े का निवारण किया जाता है। इस धारा के प्रयोजनों के लिए भूमि या जल पद के अंतर्गत भवन, बाजार, मछली का क्षेत्र, फसलें भूमि की अन्य उपज आम है।
धारा-145 के अंतर्गत की जाने वाली कार्यवाही:-
जब कोई व्यक्ति किसी अचल संपत्ति के कब्जे को हटाने का प्रयास करता है और इस प्रकार की शांति भंग होती है तो ऐसे व्यक्ति के विरूद्ध अशांति को रोकने और कब्जे में किसी प्रकार की गड़बड़ी करने से रोकने के लिए एस.डी.एम. के पास द.प्र.सं. की धारा 145 के अंतर्गत प्रार्थना पत्र देकर कार्यवाही की जा सकती है। एस.डी.एम. द्वारा इस धारा के अंतर्गत दाखिल प्रार्थना पत्र की जांच रिपोर्ट से पुष्टि होने पर एस.डी.एम. दोनों पक्षों को नोटिस भेजते हैं कि वे न्यायालय में उपस्थित होकर अपने-अपने पक्ष प्रस्तुत करें। दोनों पक्षों का साक्ष्य लेने के बाद न्यायालय यह मत व्यक्त करता है कि अचल संपत्ति पर झगड़े की तिथि तथा उसे दो माह पहले से किस पक्षकार का कब्जा था और इस तरह कब्जे को उस व्यक्ति का कायम रखते हुए ऐसा आदेश पारित किया जाता
है कि झगड़े को लेकर शांति भंग होने की संभावना व्यक्त की गई थी, उसका निवारण हो सके।
कोई भी झगड़ा अपराध का रूप न धारण कर ले, उससे पहले उसका निवारण आवश्यक है। झगड़ों के निवारण हेतु उपरोक्त धाराओं के तहत एस.डी.एम. के पास प्रार्थना पत्र दिया जा सकता है।

अंतर्राज्यिक प्रवासी श्रमिक (नियोजन तथा सेवा परिस्थितियों का विनियमन) अधिनियम, 1979

अधिनियम के अंतर्गत परिभाषाएं -
1- अंतर्राज्यिक प्रवासी श्रमिक - हर वह व्यक्ति जो एक ठेकेदार द्वारा भर्ती किया जाता है और, और किसी एक राज्य से दूसरे राज्य में कार्य करने के लिए किसी कारखाने में या किसी व्यवस्था के अंतर्गत किसी जगह में चाहे नियोजक की जानकारी से हो या बिना जानकारी के, अंतर्राज्यिक प्रवासी श्रमिक कहलाया जाएगा।
2- प्रतिष्ठान का पंजीकरण आवश्यक है - ऐसे प्रतिष्ठान जिन पर यह अधिनियम लागू होता है, उनका पंजीकरण करवाना अनिवार्य है।
3- ठेकेदारों को अनुज्ञप्ति (लाइसेंस) - केवल वह ठेकेदार जिनको लाइसेंस जारी हुआ है, प्रवासी श्रमिकों की भर्ती कर सकते हैं, इसके अलावा कोई दूसरा व्यक्ति श्रमिकों की भर्ती नहीं कर सकता।
ठेकेदारों के कर्तव्य -
1- ठेकेदार प्रवासी श्रमिकों के बारे में वह सभी जानकारियां जो निश्चित की गई हों, दोनों राज्य की सरकारों को, अर्थात् जिस राज्य से वे आए हैं और जिस राज्य में का कर रहे हैं, काम पर लगाए जाने के पंद्रह दिनों के अंदर देगा।
2- ठेकेदार सभी प्रवासी श्रमिकों को एक पासबुक, जारी करेगा, जिसमें उस श्रमिक की एक फोटो लगी होगी तथा हिंदी और अंग्रेजी या उस भाषा में जो मजदूर जानता हो, निम्न सूचना भी दी जाएगी -
  • कार्य का नाम और जगह का नाम जहां काम हो रहा हो।
  • नियोजन की अवधि।
  • दी जाने वाली मजदूरी की दर एवं मजदूरी देने का तरीका।
  • विस्थापन भत्ता, वापसी का किराया जो कि मजदूरी को दिया जाता है तथा कटौती आदि के बारे में जानकारी।

प्रवासी श्रमिकों के अधिकार -
वेतन एवं कार्य की शर्तें -
प्रवासी श्रमिक की मजदूरी दर, छुट्टियां, काम करने का समय एवं अन्य सेवा शर्ते, वहां पर काम करने वाले अन्य मजदूरों के समान होंगी। प्रवासी श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी अधिनियम में बताई गई मजदूरी से कम मजदूरी नहीं दी जाएगी। सामान्य तौर पर प्रवासी श्रमिकों को मजदूरी नगद रूप में दी जाएगी।
विस्थापन भत्ता - भर्ती के समय ठेकेदार प्रवासी श्रमिकों को विस्थापन भत्ता जो उसके एक महीने के वेतन का पचास प्रतिशत या 75/- रूपये इनमें जो भी ज्यादा होगा, देना होगा। और यह भत्ता उसे उसकी मजदूरी के अलावा मिलेगा।
यात्रा भत्ता - ठेकेदार प्रवासी श्रमिकों को उनके गृह राज्य के निवास स्थान से काम करने की जगह तक आने व जाने के लिए यात्रा भत्ता भी प्रदान करेगा, जो उसकी मजदूरी के अलावा दिया जाएगा। यात्रा के दौरान मजदूर को काम पर समझा जाएगा।
सुविधाएं - इस अधिनियम के अंतर्गत कुछ सुविधाएं ठेकेदार के द्वारा मजदूर को देनी होंगी, जैसे 1. मजदूरी का नियमित भुगतान। 2. पुरूष और महिला को समान वेतन।
3. कार्य स्थल पर अच्छी सुविधाएं।
4 कार्य के दौरान मजदूरों के रहने की व्यवस्था करना।
5. मुफ्त चिकित्सीय सुविधाएं। 6. सुरक्षात्मक कपड़ों को उपलब्ध कराना।
7. किसी प्रकार की कोई दुर्घटना होने पर उसके सगे-संबंधियों एवं दोनों राज्यें के संबंधित अधिकारियों को सूचना देगी।
यदि ठेकेदार द्वारा यह जिम्मेदारी पूरी नहीं की जाती है तो प्रधान नियोजक पूरी व्यवस्था करेगा।
वेतन की जिम्मेदारी - ठेकेदार की जिम्मेदारी है कि प्रत्येक प्रवासी श्रमिक को नियत समय में वेतन दें। इसके साथ-साथ प्रधान नियोजक भी इसकी देख-रेख के लिए किसी व्यक्ति को नामित करेगा जो कि यह प्रमाणित करेगा कि मजदूर को जितना वेतन मिलना चाहिए उतना मिला है या नहीं। ठेकेदार इस नामित व्यक्ति के सामने वेतन बांटेगा यदि ठेकेदार वेतन नहीं देता है तो प्रधान नियोजक उनको वेतन देने के लिए जिम्मेदार होगा। अगर इस अधिनियम के अंतर्गत दी जाने वाली सुविधाएं नहीं दी जाती है, तो सुविधाओं के बदले भत्ता देना होगा।
निरीक्षक - सरकार इस अधिनियम के अंतर्गत निरीक्षकों की नियुक्ति कर सकती है, जो किसी भी समय किसी भी कार्य स्थान जहां प्रवासी श्रमिक काम करते हों, प्रवेश कर सकता है, कोई भी रिकार्ड मंगवा अथवा देख सकता है, किसी भी श्रमिक से पूछताछ कर सकता है।
उल्लंघन पर सजा एवं दण्ड - यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम का उल्लंघन करता है तो उसे एक वर्ष तक की जेल या 1000/- रूपये तक का जुर्माना या दोनों भी हो सकते हैं। अगर कोई व्यक्ति दोबारा ऐसे अपराध का दोषी पाया जाता है, तो उसे 100/- रूपये का जुर्माना रोज देना होगा, जब तक वह उल्लंघन करता है।
यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के ऐसे नियमों का उल्लंघन करता है, जिसके लिए इस अधिनियम में कोई दंड या प्रावधान नहीं है तो वह अधिकतम दो साल की जेल या 2000/- रूपये के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
शिकायत दर्ज करने की समय सीमा:- इस अधिनियम के अंतर्गत शिकायत अपराध घटित होने के दिन से तीन महीने के अंदर दर्ज करवा सकते हैं।

कानून को जानें व समझें

1. हिन्दू दत्तक एवं भरण-पोषण कानून में यह प्रावधान है कि कोई भी हिन्दू चाहे पुरूष हो या स्त्री, उनका दायित्व होगा कि वे अपने अन्य रिश्तेदारों के अतिरिक्त अपने संतान व वृद्ध माता-पिता की परवरिश करेंगे, जिसमें सौतेली मां भी परवरिश पाने की अधिकारिणी है। ऐसा न करने पर उनके विरूद्ध दीवानी अदालत में आवेदन दिया जा सकता है, जिसके लिए निःशुल्क विधिक सहायता प्रदान करने का भी प्रावधान है।
2. हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण कानूनों के तहत विवाहित पत्नी, पति की मृत्यु के पश्चात अपने ससुर से भरण-पोषण पाने की हकदार होती है, बशर्ते उसके पास आय का कोई साधन न हो।
3. शासन की शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना, सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना, राष्ट्रीय परिवार सहायता योजना, निःशक्त जन छात्रवृत्ति योजना चलायी जाती है, जिसकी सम्पूर्ण जानकारी नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत तथा ग्राम पंचायत से प्राप्त कर उसका सम्पूर्ण लाभ नागरिक प्राप्त कर सकता है।
4. माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जनहित याचिका क्रमांक-173, 177/99 में दिनांक 17.10.2006 को पारित आदेश के अनुसार राज्य शासन के महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा महिला उत्पीड़न मामले की सतत निगरानी करने, महिला अत्याचार के विरूद्ध कारगर कार्यवाही कर पीड़ित महिलाओं को समुचित मार्गदर्शन एवं सहायता दिलाने के लिये प्रत्येक जिले में महिला उत्पीड़न निवारण समिति का गठन करना आवश्यक किया गया है।
5. राज्य शासन द्वारा समेकित बाल विकास सेवा योजना, पोषण आहार कार्यक्रम, किशोरी शक्ति योजना, स्वयंसुधा, एकीकृत महिला सशक्तीकरण कार्यक्रम, आयुष्मती योजना, बालिका समृद्धि योजना, दत्तक पुत्री शिक्षा योजना, महिला जागृति शिविर, महिला कोष्ठ की़ ऋण योजना, महिला सशक्तीकरण मिशन, स्व-शक्ति परियोजना कार्यक्रम महिला एवं बाल कल्याण हेतु दिलाया जाता है। इसके साथ ही नारी निकेतन, बाल संरक्षण गृह, शासकीय झूला घर, मातृ कुटीर, बालवाड़ी सह संस्कार केन्द्र भी संचालित होते हैं। इन सारी योजनाओं के संबंध में जिला महिला बाल विकास अधिकारी, बाल विकास परियोजना अधिकारी, पर्यवेक्षक, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
6. यदि आपके द्वारा लिखा गया चैक, बैंक द्वारा बिना भुगतान किये इस कारण वापस लौटा दिया जाता है कि आपके खाते में भुगतान हेतु पर्याप्त धनराशि नहीं है या उस रकम से अधिक है, जिसका बैंक के साथ किये गये करार के द्वारा उस खाते में से संदाय करने का ठहराव किया गया है तो आपका यही कृत्य चैक के प्रति अनादरण तथा अपेक्षापूर्ण कृत्य होगा, जो धारा 138 चैकों का अनादरण अधिनियम के अंतर्गत दण्डनीय अपराध है।
7. किसी भी नागरिक को उसके धर्म, वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर किसी दुकान, भोजनालय, होटल, मनोरंजन स्थान, कुआं, तालाब, घाट, स्नान घाट, सड़क पर प्रवेश करने या आने-जाने से नहीं रोका जा सकता है। उसे रोकना उसके मौलिक अधिकारों का हनन है।
8. जहां किसी मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति के अभिभावक की ईच्छा है कि उस मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति को मनोचिकित्सालय में चिकित्सा हेतु भर्ती करवाया जावे, वहां वह प्रभारी स्वास्थ्य अधिकारी से उस संबंध में निवेदन कर सकता है। उस मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति के देखभाल का समस्त खर्च शासन को वहन करना पड़ेगा। इसके अलावा प्रत्येक पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी, जिनके थाने की सीमाओं में स्वच्छंद विचरण करते हुये मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति दिखता है तो उसे अपने संरक्षण में लेकर दो घण्टे के अंदर निकटतम मजिस्टेªट के समक्ष प्रस्तुत करना उसका कानूनी दायित्व बताया गया है।
9. जिला उपभोक्ता फोरम, जिसका कार्यालय कलेक्टेªट परिसर में स्थित है, वहां पर कोई भी उपभोक्ता, जिसने उपभोग हेतु सामग्री क्रय की है और उसकी कीमत चुकायी है और उसके पास उस सामग्री को क्रय करने की रसीद है तो वह सामग्री के खराब होने, आशा से कम प्रकृति की होने, गुण या महत्व का कम होने, सामग्री के हानिकारक होने, गंदी या रोगयुक्त होने, सही पैकिंग न होने, अस्वच्छ अवस्था में तैयार होने, विष या कोई हानिकारक वस्तु के मिले होने, जो स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हो, जिस डिब्बा में रखी गई हो वह डिब्बा स्वास्थ्य के लिये हानिकारक व जहरीला हो, मिठाई में मिलाया गया रंग या अनुमति से अधिक मात्रा में मिलाया गया रंग, पदार्थ के गुण, महत्व व शुद्धता तय मानक से कम हो, तो उसकी शिकायत सादे आवेदन में पूर्ण विवरण सहित कर सकता है।
इसके अलावा खाद्य पदार्थ को गलत नाम देकर बेचे जाने, अगर उसका नाम किसी दूसरे पदार्थ से ऐसे मेल खाता हो कि ग्राहक धोखा खा जाय, अगर झूठ बोलकर उस पदार्थ को विदेशी बताया गया हो, अगर वह किसी और पदार्थ के नाम से बेचा जाय, अगर उसमें किसी भी प्रकार का बदलाव करके उसे ज्यादा मूल्य का बताया जाय, अगर उसके पैकिंग के अंदर विवरण न दिया गया हो या गलत विवरण दिया गया हो अथवा लेबल झूठी
कम्पनी बताता हो, अगर वह पोषक आहार के रूप में बनाया गया हो और उसका लेबल उसमें प्रयोग की गई सामग्रियों के बारे में न बताता हो, अगर उसमें कोई भी बनावटी रंग, खुशबू या स्वाद का प्रयोग हुआ हो, जिसके बारे में लेबल पर न लिखा गया हो, अगर उसका लेबल उपभोक्ता संरक्षण नियम, 1986 के बनाये गये नियमों के अनुसार न हो, तो उसकी लिखित शिकायत जिला उपभोक्ता फोरम में पेश कर संबंधित व्यापारी व कम्पनी
को दण्डित कराया जा सकता है।
10. किसी सामान्य जाति का व्यक्ति अगर किसी अनुसूचित जाति या जनजाति वर्ग के व्यक्ति को जातिगत आधार पर उसके साथ छुआछूत के तहत तथा अन्य घिनौने कृत्य अथवा उत्पीड़ित किया जाता है तो उसका कृत्य अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (उत्पीड़न एवं छुआछूत निवारण) अधिनियम, 1989 के प्रावधानों के तहत दण्डनीय अपराध है।
11. रिश्वत लेना ही नहीं, बल्कि रिश्वत देना भी दण्डनीय अपराध है। यदि कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक को रिश्वत देता है या लोक सेवक को भ्रष्ट आचरण या अवैध साधनों द्वारा पदेन कृत्य अनुग्रह करने के लिये उत्प्रेरित करता है तो ऐसी रिश्वत देकर लोक सेवक को गुमराह करने वाले व्यक्तियों को कानून के तहत 5 वर्ष के लिये कारावास से दण्डित किये जाने का प्रावधान है।
12. लोक सेवक के अंतर्गत शासकीय सेवक के अलावा ऐसे सभी व्यक्ति आते हैं जो शासन के किसी पद पर आसीन हैं जिसके आधार पर वे किसी लोक कर्तव्य का पालन करने के लिए प्राधिकृत हैं, जैसे गांव का प्रधान, एम.एल.ए., एम.पी., न्यायालय द्वारा नियुक्त सरकारी वकील भी लोक सेवक है। भ्रष्टाचार का मतलब घूस या रिश्वत लेना अथवा उसके पदीय कृत्य के पालन के साथ परितोषण या ईनाम, अपने पदेन कार्य में अपने पदीय कर्तव्यों के प्रयोग में अनुग्रह दिखाने के लिये, यदि कोई लोक सेवक प्राप्त करता है तो वह पद का दुरूपयोग करता है, जिसके लिए दण्ड का प्रावधान कानून में किया गया है।
13. भारत सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून के तहत प्रत्येक गांव के वयस्क व्यक्तियों को प्रति वर्ष 100 दिन का रोजगार प्रदान करने का प्रावधान किया गया है, जिसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों में निवास कर रहे वयस्क व्यक्ति, अकुशल व्यक्ति, जो शारीरिक कार्य करने हेतु इच्छुक हो, उसे ग्राम पंचायत में अपना नाम, पता व उम्र लिखाकर पंजीयन कराना होगा, जो 5 वर्ष के लिये मान्य होगा। उसे पंचायत द्वारा एक फोटोयुक्त जाब कार्ड जारी किया जायेगा। काम करने के लिये उसे ग्राम पंचायत या कार्यक्रम अधिकारी को कम से कम 14 दिनों तक लगातार काम करने हेतु आवेदन देना होगा, जिसकी प्राप्ति के 15 दिनों के अंदर ही उसे रोजगार प्राप्त होगा। ग्राम पंचायत के सूचना पटल तथा कार्यक्रम अधिकारी के कार्यालय पर सूचना टांगी जायेगी, जिसमें काम करने वाले व्यक्ति का नाम, काम का स्थान और काम के लिये कब से जाना है, से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी रहेगी।
महिलाओं को रोजगार प्रदान करने में प्राथमिकता रहेगी और कम से कम एक तिहाई संख्या में महिलायें वहां रोजगार पर रहेंगी। मजदूरी कम से कम 75/-रूपये प्रतिदिन की रहेगी। उसका भुगतान साप्ताहिक होगा। अधिकतम 15 दिनों में भुगतान निश्चित करना होगा। मजदूरी का भुगतान नगद या किसी वस्तु के रूप में होगा। फिर भी एक चौथाई भुगतान नगद के रूप में होगा। काम के समय दुर्घटना की स्थिति में मुफ्त ईलाज का
प्रावधान है। श्रमिक का बैंक या पोस्ट ऑफिस में खाता खोलकर मजदूरी की राशि उसमें जमा कराये जाने का भी प्रावधान है।
14. सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक किसी भी लोक निकाय के दैनिक क्रियाकलापों के संबंध में आवश्यक सूचना प्राप्त कर सकता है। वह निर्माण कार्यों का निरीक्षण कर सकता है। लोक अधिकारी के पास मौजूद दस्तावेजों और अभिलेखों का निरीक्षण कर सकता है और उनकी प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त कर सकता है।
विकास कार्यों या योजनाओं के निर्माण में लगायी गयी सामग्री के प्रमाणित नमूने ले सकता है। डिस्केट, फ्लापी, टेप, वीडियो कैसेट के रूप में या अन्य किसी इलेक्ट्रानिक रूप से भंडारित की गई सूचनाओं को भी प्राप्त कर सकता है। संबंधित सूचनायें वह उस विभाग के लोक सूचना अधिकारी, सहायक लोक सूचना अधिकारी के समक्ष हिन्दी अथवा अंग्रेजी में आवेदन लिखकर आवश्यक विवरण देकर 10/-रूपये नगद/चालान (जो मुख्य
शीर्ष-0070-उपमुख्य शीर्ष 800-अन्य प्राप्तियों में लोक प्राधिकारी के नाम देय हो) मनीआर्डर, ज्युडिसियल स्टाम्प देकर 10 दिवस के अंदर प्राप्त कर सकता है, अन्यथा अपीलीय अधिकारी के पास 10 दिवस में आवेदन दे सकता है। उसके आदेश से संतुष्टि न हो तो द्वितीय अपील 90 दिन के अंदर राज्य सूचना आयोग, मुख्यालय रायपुर में भी कर सकता है। गरीबी रेखा के नीचे के व्यक्ति को कोई भी फीस नहीं लगती है। समय-समय पर सूचना न देने पर, आवेदन लेने से इंकार करने पर, असद्भावपूर्वक सूचना देने पर, इंकार करने पर, गलत या अपूर्ण या गुमराह करने वाली सूचना देने, सूचना को नष्ट करने पर, आर्थिक दण्ड का प्रावधान है।

Sunday, 30 October 2016

आप सबके फायदे का कानून, समझें और जानें

1. कोई भी असामाजिक व्यक्ति चाहे वह स्कूल, कालेज का छात्र हो, गुंडा तत्व हो, वह किसी भी महिला अथवा लड़की के साथ किसी भी तरह की छेड़खानी करता है, तो बिल्कुल चुप न रहिये। अपने परिवार के सदस्यों, पुलिस अथवा समाज के लोगों की जानकारी में लायें।
अपने सहयोगी अथवा सहेलियों को भी बतायें, अन्यथा ऐसे तत्वों के हौसले बढ़ेंगे और कोई बड़ी घटना भी वे घटित कर सकते हैं।
2. पति के पास जो भी जायदाद (खेती की जमीन, घर, प्लाट) है, वह पत्नी या दोनों के संयुक्त नाम पर भी रजिस्टर हो सकती है।
3. पत्नी को अपनी शादी के समय और बाद में माता-पिता और ससुराल से मुंह दिखाई के तौर पर जो कुछ भी मिला हो, वह स्त्री धन कहलाता है, उस पर कानूनी हक पत्नी का ही होता है।
4. कानून के तहत कोई भी गैर शादीशुदा या शादीशुदा औरत अनचाहा गर्भपात करवा सकती है। गर्भपात कराना औरत का निजी फैसला है, जिसके लिए उसे कोई भी नहीं रोक सकता है।
5. मॉं-बाप के बीच तलाक हो जाने के बावजूद बच्चे का पिता की जायदाद में हक/हिस्सा बराबर बना रहता है।
6. शादीशुदा पति-पत्नी संयुक्त रूप से अदालत में अर्जी पेश कर आपसी सहमति से बिना विलम्ब के तलाक प्राप्त कर सकते है।
7. जन्म, मुत्यु और विवाह का पंजीयन अवश्य करायें। इससे आप भविष्य में होने वाली परेशानियों से बचे रहेंगे।
8. किसी को टोनही कहना काननून गम्भीर अपराध है। आप दंडित हो सकते हैं।
9. किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य के विरूद्ध कोई अपमानजनक बात न करें, जातिगत गाली न दें, ऐसा करना गम्भीर प्रकृति का अपराध होता है, जो दण्डनीय तथा अजमानतीय है।
10. पी.आई.एल. द्वारा आम लोगों के फायदे या सार्वजनिक महत्व के मामले, जो मौलिक अधिकार से संबंधित हों, उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में पेश किये जा सकते हैं।
11. किसी भी मिलावटी पदार्थ, जो स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हो, उसके आयात करने, बनाने, रखने, बेचने या बांटने से प्रतिकूल असर हो तथा झूठी वारन्टी देना आदि कानूनन अपराध है। इसमें कम से कम 6 माह और अधिकतम 3 वर्ष तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
12. प्रत्येक नागरिक को संविधान, उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का पूर्ण आदर करना चाहिये। ध्वज फहराने से ठीक पहले सावधान हो जाना चाहिये। ध्वज अभिवादन के बाद राष्ट्रगान (जन,गण,मन) पूर्ण होने तक उसी अवस्था में ही रहना चाहिये।
13. कोई व्यक्ति, जो अनुसूचित जाति या जनजाति का सदस्य है, स्त्री या बालक है, मानसिक अस्वस्थता, विनाश, जातीय हिंसा, बाढ़, सूखा का शिकार है या वार्षिक एक लाख रूपये से कम है, उसे विधिक सेवा प्राधिकरण जिला न्यायालय, तहसील सिविल कोर्ट में निःशुल्क कानूनी सहायता पाने का अधिकार है।
14. महिला के नाम पर जमीन, मकान की रजिस्ट्री कराये जाने पर शासन द्वारा पंजीयन शुल्क में छूट का प्रावधान किया गया है।
15. रैगिंग एक गम्भीर अपराध है, जिसके लिये कानून में कारावास और जुर्माने के दण्ड का प्रावधान है। ध्यान रहे दंडित होने पर शासकीय सेवा के अयोग्य होने की स्थिति भी निर्मित हो सकती है।
16. शासन द्वारा नागरिकों के हितों के लिये मानव अधिकार आयोग, महिला अधिकार आयोग का भी गठन किया गया है। जहां मानवीय/स्त्री अधिकारों के हनन की शिकायत सीधे भेजी जा सकती है।
17. राज्य शासन ने संपूर्ण छत्तीसगढ़ में 9 से 12 कक्षा तक के शासकीय विद्यालयों में अध्ययनरत अनुसूचित जाति-जनजाति की छात्राओं को शाला आवागमन हेतु निःशुल्‍क सायकल प्रदाय योजना लागू की है। जिसने सुविधा प्राप्त नहीं की है, वे अपने शिक्षा केन्द्र से सुविधा प्राप्त कर सकते हैं।
18. प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण हेतु चिकित्सीय परीक्षण कराना कानूनन अपराध घोषित किया गया है। परीक्षण कराने वाला और परीक्षण करने वाला चिकित्सक, दोनों को ही दंडित किये जाने का प्रावधान कानून में है।
19. बालिग व्यक्ति, जो कम से कम 21 वर्ष की आयु प्राप्त कर चुका है, स्त्री, जो कम से कम 
18 वर्ष की आयु प्राप्त कर चुकी है, वे अविवाहित रूप में भी साथ-साथ रह सकते हैं।
उनका साथ रहना किसी भी कानून के तहत जुर्म नहीं है। उन्हें कोई (पुलिस प्रशासन या रिश्तेदार) प्रताड़ित करने का हक नहीं रखता है।
20. हिन्दू पति-पत्नी क्रूरता, जारता, परित्याग असाध्य रूप से विकृत चित्तता, गुप्तरोग या कुष्ठरोग, सन्यासी हो जाने की स्थिति, दूसरा धर्म अपना लेने, 7 वर्ष से अधिक अवधि तक गायब हो जाने के आधार पर दूसरे पक्ष के विरूद्ध तलाक की डिक्री अदालत में याचिका पेश कर प्राप्त कर सकता है।
21. 21 वर्ष से कम उम्र के बालक व 18 वर्ष से कम उम्र की बालिका का विवाह कानूनन अपराध है। इस विवाह में सहयोग करने वाले को भी सजा हो सकती है।
22. छत्‍तीसगढ़ विवाह का अनिवार्य पंजीयन नियम, 2006 के तहत विवाह का पंजीयन कानूनन जरूरी है, जो ग्राम पंचायत, नगरपालिका या नगरपालिक निगम में कराया जा सकता है।
23. कोई पति बिना किसी उचित व पर्याप्त कारण के अपनी पत्नी अथवा बच्चों का परित्याग किया हो तो पत्नी-बच्चे उससे उचित व पर्याप्त भरण-पोषण खर्च पाने के कानूनन अधिकारी होते हैं। इसके लिये उन्हें मजिस्टेªट की अदालत में विवरण सहित अर्जी लगानी चाहिये।
24. संविधान के अंतर्गत बेटियों को भी जन्म लेने और गरिमामय जीवन जीने का अधिकार है। भ्रूण की लिंग जांच एवं कन्या-भ्रूण हत्या दंडनीय अपराध है।
25. विज्ञान के अनुसार महिला के ग क्रोमोसोम से पुरूष का ग क्रोमोसोम मिलता है, तो लड़की का जन्म होता है। यदि महिला का ग क्रोमोसोम से पुरूष का ल क्रोमोसोम मिलता है, तो लड़के का जन्म होता है। अतः पुरूष ही वह प्रधान कारक है, जिसके क्रोमोसोम से लड़के या लड़की का जन्म तय होता है।
26. किसी भी धर्म, सम्प्रदाय या जाति के बालिग पुरूष (21 वर्ष) व स्त्री (18 वर्ष), जो जड़ या पागल न हो, पूर्व पति या पत्नी जीवित न हो, प्रतिसिद्ध कोटि की नातेदारी न हो, विशेष विवाह अधिनियम 1954 के अंतर्गत विवाह कर सकते हैं। प्रत्येक जिलाधीश कार्यालय में विवाह अधिकारी नियुक्त है। उचित आवेदन पत्र, शपथ पत्र, जन्म तिथि प्रमाण पत्र पेश कर बहुत ही कम व्यय पर विवाह कर सकते हैं।

दैनिक उपयोगी कानून की जानकारी

  • 18 साल की उम्र के बाद लड़की बालिग हो जाती है और उसके बाद उसे अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेने का पूरा हक मिल जाता है।
  • कानूनी तौर पर कोई भी व्यक्ति किसी बालिग को उसकी इच्छा के विरूद्ध कुछ भी करने को मजबूर नहीं कर सकता, यहां तक कि अभिभावक (माता/पिता या संरक्षक) को भी इस बारे में कोई हक प्राप्त नहीं है।
  • पति-पत्नी के विवाद के चलते पति, पत्नी को घर से बेदखल नहीं कर सकता। ऐसा होने पर वह घरेलू हिंसा कानून के तहत मजिस्ट्रेट के न्यायालय में आवेदन पेश कर तुरंत राहत ले सकती है।
  • तलाक के 7 वर्ष तक के बच्चे पर मां का ही कानूनी अधिकार रहता है। उसके बाद न्यायालय द्वारा बच्चे का हित देखते हुए अनुतोष दिया जाता है।
  • लड़कियों को भी लड़कों की तरह पिता की संपत्ति में बराबर का कानूनी अधिकार प्राप्त है।
  • पुलिस हिरासत में किसी भी व्यक्ति को सताना, मारपीट करना या किसी अन्य तरह से यातना देना एक गंभीर अपराध माना गया है।
  • किसी की गिरफ्तारी के समय पुलिस को उसे यह बताना आवश्यक है कि उसका अपराध जमानती है या गैर जमानती।
  • सिर्फ एक महिला पुलिस अफसर ही महिला के शरीर की तलाशी ले सकती है।
  • थाने में रिपोर्ट मुहजबानी या लिखित हो सकती है। रिपोर्ट की एक प्रति पाने का सभी को कानूनन हक है।
  • थाने में रिपोर्ट न लिखे जाने पर उसकी शिकायत उस थाने के उच्चाधिकारियों से की जा सकती है अथवा पंजीकृत डाक से पुलिस अधीक्षक को रिपोर्ट भेजी जा सकती है अथवा अदालत में परिवाद (ब्वउचसंपदजद्ध भी पेश किया जा सकता है।
  • घरेलू हिंसा की शिकार महिला, मजिस्ट्रेट के समक्ष अपनी शिकायत का आवेदन पेश कर सकती है,जिसकी सुनवायी मजिस्ट्रेट 3 दिनों के अंदर सम्पादित करेगा और फैसला 60 दिनों के अंदर करेगा।
  • जिस घर में महिला निवास कर रही हो, वहां से उसे जबरन नहीं निकाला जा सकता। मजिस्ट्रेट को आवेदन देने पर वह उस महिला को संबंधित निवास में फिर से निवास करने का आदेश दे सकता है।
  • दहेज देना, लेना या दहेज की मांग करने को कानूनी रूप से दंडनीय अपराध बनाया गया है, जिसकी शिकायत थाने या मजिस्ट्रेट के न्यायालय में की जा सकती है।
  • शादी-शुदा महिला भरण-पोषण के लिए न्यायालय में साधारण आवेदन पेश कर सकती है।
  • कोई भी वरिष्ठ नागरिक, जो स्वयं आय अर्जित करने में असमर्थ है, आय अर्जित करने वाले पुत्र-पुत्री, पौत्र-पौत्री से अधिकतम दस हजार रूपये तक भरण-पोषण पाने का अधिकारी हो सकता है। इस हेतु उसे एस.डी.ओ. (राजस्व) के न्यायालय में आवेदन करना होगा।
  • बलात्कार होने की स्थिति में संबंधित महिला को तुरंत घटना की जानकारी सगे-संबंधी व दोस्तों को देनी चाहिए। थाने में रिपोर्ट लिखानी चाहिए। तत्काल डाक्टरी जांच भी करानी चाहिए और उस जांच के पूर्व तक स्नान करने से बचना चाहिए। घटना के समय पहने हुए कपड़ों को उसे धोना नहीं चाहिए और पुलिस को उसे जप्त कराना चाहिए तथा रिपोर्ट की एक प्रति काननून मुफ्त लेनी चाहिए। प्रत्येक कार्य स्थल पर कार्यरत महिला कर्मचारी को उनके विरूद्ध होने वाले यौन उत्पीड़न पर तत्काल उसकी सूचना लिखित या मौखिक रूप से अपने नियोक्ता को देनी चाहिए और संबंधित नियोक्ता को तत्काल शिकायत कमेटी से उसकी जांच करानी चाहिए।
  • 21 वर्ष से कम के पुरूष और 18 वर्ष से कम युवती के मध्य विवाह गैर कानूनी है, इसलिए बालिग होने पर ही विवाह किया जाना चाहिए, अन्यथा वे दंड के भागी हो सकते हैं।
  • देश का प्रत्येक नागरिक सूचना का अधिकार कानून के अंतर्गत किसी भी लोक निकाय से अपने काम की सूचना प्राप्त कर सकता है, जिसके लिए उसे आवेदन के साथ 10/- रू. का नान-ज्युडिशियल स्टाम्प, नगर या चालान या मनीआर्डर से राशि अदा करनी होगी।
  • राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून के तहत प्रत्येक गांव के वयस्क को 100 दिन तक रोजगार प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।
  • जिला में स्थित जिला अदालत/जिला विधिक सेवा प्राधिकरण तथा तहसील में स्थित तहसील विधिक सेवा प्राधिकरण से कोई भी व्यक्ति, जिनकी आय एक लाख रूपये वार्षिक से कम है, वे व्यक्ति अदालती कार्यवाही हेतु निःशुल्क विधिक सेवा प्राप्त करने के अधिकारी हैं।
  • भारत सरकार द्वारा बनायी गई तोषण निधि योजना, 1989 के अनुसार दुर्घटना में किसी वाहन से, जिसका विवरण पता न हो, किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसके वारिसानों को 25000/- रूपये, घायलशुदा व्यक्ति को 12500/- रू. मुआवजा जिला कलेक्टर अथवा उनके अधीनस्थ अधिकारी को आवेदन दिए जाने पर दिलाए जाने का प्रावधान किया गया है।
  • दुर्घटना कारित करने वाली वाहन व वाहन का नंबर जहां पता हो, तो उस संबंध में मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण में आवेदन कर उचित व पर्याप्त क्षतिपूर्ति राशि प्राप्त की जा सकती है।
  • बाजार से उपभोग करने हेतु प्राप्त की जाने वाली वस्तुओं की सेवाओं में कमी, वस्तुओं में मिलावट होने की स्थिति या उपभोक्ता का शोषण होने की स्थिति में उस उपभोक्ता को एक आवेदन जिला मुख्यालय में स्थित जिला उपभोक्ता न्यायालय में उचित मुआवजा अनुतोष हेतु पेश करना चाहिए। इसके लिए उसे दस्तावेज के रूप में सामग्री क्रय किए जाने से संबंधित रसीद व अन्य दस्तावेज वारंटी/गारंटी कार्ड इत्यादि भी पेश करने चाहिए।
  • भ्रष्टाचार रोकने के लिए तथा भ्रष्ट सेवक को दंडित कराने के लिए उस लोक सेवक के खिलाफ लिखित शिकायत राज्य शासन द्वारा गठित विशेष शिकायत सेल या एंटीकरप्शन ब्यूरो या आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो को करनी चाहिए।
  • कोई भी व्यवसायी, जो वस्तुओं के पूर्व से ही प्रिंटेड रेट पर स्टीकर चिपकाकर नवीन रेट प्राइस लिखता है, वह पूर्णतया गैरकानूनी कृत्य है, जो पैकेजिंग रूल्स के विरूद्ध है। उपभोक्ता उसके विरूद्ध जिला न्यायालय में अर्जी दे सकता है, जिला उपभोक्ता न्यायालय, जो कलेक्ट्रेट परिसर में है, उनके समक्ष शिकायत दर्ज करा सकता है।
  • बालिग हिंदू महिला-पुरूष के विवाह हेतु कर्मकाण्ड (अग्नि के समक्ष मंत्रोच्चार सात फेरे) आवश्कता है, किसी मंदिर में माला बदलने या सिंदूर लगा दिए जाने से विवाह संपन्न नहीं होता है। उसकी कोई कानूनी मान्यता नहीं होगी।
  • प्रत्येक कलेक्टर कार्यालय में विवाह अधिकारी नियुक्त होता है। उसके समक्ष महिला व पुरूष उचित आवेदन पत्र भरकर शपथ पत्र सहित आयु संबंधी प्रमाण पत्र लगाकर कानूनन विवाह कर सकते हैं। उसकी मान्यता वेद या अग्नि के समक्ष किए गए विवाह से किसी भी तरह से कम नहीं होती है। यह सबसे कम खर्चीला कानूनी विवाह होता है।
  • जिला न्यायालय में जनोपयोगी सेवा से संबंधित स्थायी लोक अदालत है, जिसमें कोई भी नागरिक, जो लोकोपयोगी सेवा, जिसमें परिवहन (सड़क, वायु या जल द्वारा सेवा) पोस्ट आफिस, टेलीग्राफ, टेलीफोन विद्युत आपूर्ति, रोशनी, लोगों हेतु जल सेवा वाले किसी भी संस्था द्वारा प्रदाय होती हो, स्वच्छता संबंधी सुविधाओं की सेवा, अस्पताल अथवा डिस्पेंसरी संबंधी सेवा, बीमा संबंधी सेवा, जो राज्य शासन अथवा केंद्रीय शासन से संबंधित हो, उन संस्थाओं के विरूद्ध एक साधारण या सामान्य आवेदन बिना शुल्क का पेश किया जा सकता है और संबंधित स्थायी लोक अदालत से अतिशीघ्र अनुतोष प्राप्त किया जा सकता है।
  • पहली पत्नी के जीते जी दूसरी शादी करना कानूनन अपराध है। पहली पत्नी, चाहे तो पति के खिलाफ थाने में या सीधे मजिस्ट्रेट के न्यायालय में शिकायत दर्ज करा सकती है। कानूनन उस पति को सात साल कैद की सजा हो सकती है।
  • पहली पत्नी की सहमति से भी गई दूसरी शादी गैर कानूनी होती है और ऐसी दूसरी पत्नी कानूनन अपने पति की संपत्ति में कोई हक या भरण-पोषण खर्चा पाने की अधिकारिणी नहीं होती है।
  • किसी विवाहित स्त्री की मृत्यु अग्नि या शारीरिक क्षति द्वारा कारित की जाती है और ऐसी मृत्यु के कुछ समय पूर्व उसके पति या रिश्तेदारों ने दहेज की मांग की हो, तो ऐसे व्यक्तियों के विरूद्ध दहेज मृत्यु का मुकदमा चलता है, जिसमें आजीवन कारावास की सजा तक का प्रावधान किया गया है।
  • हवाई यात्रा में वरिष्ठ नागरिक को आने-जाने की टिकट खरीदने पर 50 प्रतिशत तक की छूट का प्रावधान है।
  • शासकीय कर्मचारी/अधिकारी शासन के नियम अनुसार एक ही पत्नी रख सकता है।
  • शादी-शुदा पत्नी के रहते दूसरी पत्नी रखने से उस पर विभागीय कार्यवाही का प्रावधान किया गया है।
  • वरिष्ठ नागरिक को रेल यात्रा भाड़ा में 30 प्रतिशत तक की छूट का प्रावधान है, जिसके लिए आयु प्रमाण पत्र रखना अनिवार्य है।
  • 60 वर्ष का निराश्रित वृद्ध और 50 वर्ष से ऊपर की निराश्रित वृद्धा गरीबी रेखा के नीचे 6 से 14 वर्ष के नागरिक के बच्चों को सामाजिक सुरक्षा पेंशन की पात्रता है, जिसमें उन्हें नगरीय निकाय या ग्राम पंचायत से राशि प्राप्त होती है।

मध्यस्थता के संबंध में जानकारी

(1) मध्यस्थता क्या है?
मध्यस्थता विवादों को निपटाने की न्यायिक प्रक्रिया से भिन्न एक वैकल्पिक प्रक्रिया है, जिसमें एक तीसरे स्वतंत्र व्यक्ति मध्यस्थ (मीडियेटर) दो पक्षों के बीच अपने सहयोग से उनके सामान्य हितों के लिए एक समझौते पर सहमत होने के लिए उन्हें तैयार करता है। इस प्रक्रिया में लचीलापन है और कानूनी प्रक्रियागत जटिलताएं नहीं है। इस प्रक्रिया में आपसी मतभेद समाप्त हो जाते है अथवा कम हो जाते हैं।
(2) मध्यस्थता क्यों?
न्यायालय में विवादों को सुलझाने की एक निर्धारित प्रक्रिया है, जिसमें एक बार प्रक्रिया शुरू हो जाने के पश्चात पक्षों का नियंत्रण समाप्त हो जाता है और न्यायालय का नियंत्रण स्थापित हो जाता है। न्यायालय द्वारा एक पक्ष के हित में निर्णय सुनिश्चित है, किन्तु दूसरे पक्ष के विपरीत होना भी उतना ही सुनिश्चित है। दोनों पक्षों के हित में निर्णय, जिससे दोनों पक्ष संतुष्ट हो सकें, ऐसा निर्णय, न्यायालय नहीं दे सकता। न्यायालय द्वारा तथ्यों, विधिक स्थिति तथा न्यायिक प्रक्रिया को ध्यान में रखकर निर्णय दिया जाता है। जब कि मध्यस्थता दो पक्षों को खुलकर बातचीत करने के लिए प्रेरित और उत्साहित करता है। वह पक्षों के बीच संवाद स्थापित करने में सहयोग प्रदान करता है। वह दोनों पक्षों को अपनी बात कहने का समान अवसर देकर, पक्षों में सामंजस्य स्थापित करता है। मध्यस्थता में विवादों को निपटाने का सारा प्रयास स्वयं पक्षों का होता है, जिसमें मध्यस्थ
(मिडियेटर) उनकी सहातया करता है। पूरी प्रक्रिया पर पक्षों का नियंत्रण बना रहता है। निर्णय लेने का अधिकार भी पक्षों का ही रहता है। कहीं भी विवशता एवं दबाव नहीं रहता, पूरी प्रक्रिया पर पक्षों का नियंत्रण बना रहता है। निर्णय लेने का अधिकार भी पक्षों का ही रहता है। कहीं भी विवशता एवं दबाव नहीं रहता, पूरी प्रक्रिया स्वतंत्र और निष्पक्ष होती है।
(3) मध्यस्थता से होने वाले लाभ:-
1. मध्यस्थता एक ऐसा मार्ग प्रस्तुत करती है, जिसमें पक्षों को समझौता कराने के लिए सहमत किया जाता है तथा पक्षों के मध्य उत्पन्न मतभेदों को दूर करने के लिए अवसर प्राप्त होता है।
2. रिश्तों में आई दरार से हुए नुकसान की पूर्ति करने का अवसर प्राप्त होता है।
3. एक ऐसा उपाय है, जिसमें पक्ष स्वयं अपना निर्णय ले सकते हैं।
4. हिंसा, घृणा, धमकियों से हटकर एक सभ्य उपाय है, जिससे विवादों का निराकरण निकाला जा सकता है।
5. विवादग्रस्त पक्षों में आपसी बातचीत और मधुर संबंध बनाने का अवसर प्राप्त होता है।
6. यह प्रक्रिया मुकदमें का विचारण नहीं करती और न ही गुणदोष पर निर्णय देती है।
7. यह प्रक्रिया किसी भी न्यायिक प्रक्रिया की अपेक्षा सस्ती है।
8. इसमें सफलता की संभावनाएं अधिक है तथा यह किसी भी स्थिति में पक्षों के लिए लाभकारी है।
9. इस प्रक्रिया में पक्षों में एक-दूसरे की बातें सुननें, भावनाओं को समझने का सही अर्थों में अवसर प्राप्त होता है।
10. इस प्रक्रिया में पक्षों में किसी प्रकार का भय नहीं होता, पक्ष अपने को सुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि प्रक्रिया गोपनीयतापूर्ण है, अतः पक्ष अपनी बात को खुले मन से कह पाते हैं, उन्हें किसी का भय नहीं होता।
11. इस प्रक्रिया में पक्ष स्वयं अपना निर्णत लेते हैं, अतः उनकी आशाओं के विपरीत किसी भी अप्रत्याशित निर्णय प्राप्त होने की संभावना नहीं रहती, जैसा कि न्यायालय की प्रक्रिया में अक्सर होता है।
12. मध्यस्थता से समझौता कुछ घंटों या दिनों में ही प्राप्त हो जाता है। अनेक महीनों या वर्षों तक यह प्रक्रिया नहीं चलती अर्थात समय की बचत होती है।
13. जहां न्यायालय के आदेश के अनुपालन कराने में भी अनेक कठिनाईयां उत्पन्न होती है, वहां मध्यस्थता से प्राप्त समझौता स्वयं पक्षों का स्वेच्छा से प्राप्त निर्णय होता है, अतः उसके क्रियान्वयन में कोई कठिनाई नहीं होती है।
14. न्यायिक प्रक्रिया के वाद समय में ही प्रस्तुत किया जा सकता है, जबकि मध्यस्थता में विवादों को किसी भी स्तर पर निपटाया जा सकता है, इसमें विलंब कभी नहीं होता।
15. इस प्रक्रिया द्वारा प्राप्त समझौते से मन को शान्ति मिलती है।
16. मध्यस्थता के माध्यम से निराकृत प्रकरणों में न्याय शुल्क की छूट प्रदान की गई है।
(4) मध्यस्थता से कौन से विवाद का समझौता संभव है:-
(अ) सिविल केस (व्यवहार वाद)
1. निषेधाज्ञा के प्रकरण। 
2. विशिष्ट अनुतोष 
3.पारिवारिक वाद
4. मोटर दुर्घटना 
5. मकान मालिक एवं किरायेदार
6. सिविल रिकवरी 
7. व्यावसायिक झगड़े 
8. उपभोक्ता वाद
9. वित्तीय एवं लेन-देन के विवाद
(ब) दांडिक प्रकरण (सभी राजीनामा योग्य अपराध के मामले तथा 1- 498 ए आई पी सी 2- 138 निगोशिएबल इन्सटूमेन्ट एक्ट (चेक बाउंस से संबंधित)
 राजस्व प्रकरण
(5) मध्यस्थता का लाभ कैसे प्राप्त करें:- मध्यस्थता हेतु आवेदन जिस न्यायालय में मामला लंबित हो, वहां प्रस्तुत करें।

Saturday, 29 October 2016

लोक अदालत

लोगों को शीघ्र एवं सस्ता न्याय सुलभ कराने हेतु लोक अदालतों का आयोजन तहसील, जिला तथा उच्च न्यायालय में किया जाता है। लोक अदालत में आपसी समझाईस एवं सुलह के आधार पर सौहाद्र पूर्वक वार्ता कर प्रकरणों का निराकरण किया जाता है। लोक अदालतों में दीवानी, फौजदारी (समझौता योग्य) राजस्व, श्रम तथा अन्य न्यायालयीन प्रकरणों के निराकरण हेतु संबंधित न्यायालय में आवेदन दिया जा सकता है। निराकृत प्रकरणों की अपील नहीं की जा सकती है। निराकृत प्रकरणों पर पूर्व में लगाया गया न्याय शुल्क की संपूर्ण राशि वापस की जाती है। ऐसे प्रकरण जो न्यायालय में पेश नहीं हुए हैं, प्री-लिटिगेशन को भी लोक अदालत में निराकरण हेतु विधिवत् तैयार कर बिना न्याय शुल्क के पेश किया जा सकता है। लोक अदालत का अधिनिर्णय सिविल न्यायालय की डिक्री के समतुल्य है तथा उसी प्रकार निष्पादित किया जा सकता है। प्रत्येक माह जिला तथा तहसील न्यायालयों में एक स्थायी एवं निरंतर लोक अदालतों की बैठक तथा प्रत्येक दूसरे माह एक वृहद लोक अदालत का आयोजन किया जाता है। साथ ही राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, नई दिल्ली के निर्देशानुसार नेशनल लोक अदालत का आयोजन किया जाता है।
न्यायालय में विचारधीन मामलों को लोक अदालत के माध्यम से निराकृत कराने हेतु सम्बधित न्यायालय के पीठासीन अधिकारी को आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं। प्री-लिटिगेशन मामले को लोक अदालत के माध्यम से निराकृत कराने हेतु जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को आवेदन प्रस्तुत किया जा सकता है।
प्री-लिटिगेशन मामले पर न्याय शुल्क से छूट प्रदान की गई है तथा न्यायालय के विचाराधीन मामले जिनका निराकरण लोक अदालत के माध्यम से होता है उनमें पूर्व से अदा की गई न्याय शुल्क वादी को वापस कर दिया जाता है।
पेंशन लोक अदालत
सेवानिवृत्त शासकीय/अर्द्धशासकीय सेवकों को सेवानिवृत्ति के पश्चात् मिलने वाली परिलब्धियों के निराकरण हेतु बिलासपुर, रायपुर तथा दुर्ग में पेंशन लोक अदालत का गठन किया गया है। माह के दूसरे, तीसरे एवं चौथे रविवार को जिला न्यायालय में इसकी बैठक निर्धारित की गई है। आवेदन संबंधित क्षेत्रानुसार सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को पूर्ण जानकारी सहित बिना किसी शुल्क के अपने तथा नियोक्ता के पूरे नाम व पते के साथ प्रेषित की जा सकती है।
स्थायी लोक अदालत जनोपयोगी सेवाऐं
छ.ग. राज्य के अंतर्गत आम नागरिकों के लिए स्थायी लोक अदालत जनोपयोगी सेवाऐं जिला विधिक सेवा प्राधिकरण रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, जगदलपुर एवं अम्बिकापुर में स्थापित की गई है। इनका जिलेवार क्षेत्राधिकार निम्नानुसार है
1. रायपुर - रायपुर, बलौदा-बाजार, महासमंुद एवं धमतरी सिविल जिले।
2. बिलासपुर - बिलासपुर, कोरबा, जांजगीर-चांपा एवं रायगढ़ सिविल जिले;
3. दुर्ग - दुर्ग, राजनांदगॉव, बालोद, बेमेतरा एवं कबीरधाम सिविल जिले।
4. जगदलपुर - बस्तर (जगदलपुर), उत्तर बस्तर (कांकेर), कोंण्डागॉव एवं दक्षिण बस्तर (दंतेवाड़ा) सिविल जिले।
5. अम्बिकापुर - सरगुजा (अम्बिकापुर), कोरिया, जशपुर एवं सुरजपुर सिविल जिले।
उपरोक्त प्रत्येक जनोपयोगीय लोक अदालत में एक न्यायिक अधिकारी (उच्चतर न्यायिक सेवा से) अध्यक्ष के रूप में तथा दो सदस्य नियुक्त किये गये है।
उक्त जनोपयोगीय स्थायी लोक अदालत के समक्ष बिना कोई शुल्क या फीस अदा किए कोई भी नागरिक निम्न सेवाओं से संबंधित अव्यवस्था, असुविधा, अनियमितता, असावधानी या सेवा में कमी को दूर कर उसे व्यवस्थित एवं ठीक कराने के साथ-साथ पीड़ित पक्षकार आवश्यक व उचित क्षतिपूर्ति भी प्राप्त करने हेतु आवेदनपत्र पूर्ण विवरण सहित कर सकता है।
जनोपयोगी स्थायी लोक अदालत में निम्न लोक उपयोगी सेवा के विषयों पर आवेदन किया जा सकता है-
01. परिवहन की सेवा जिसमें यात्री वाहन, सामग्री ढोने वाली वाहन के साथ-साथ वायु सेवा व जलयान सेवा भी शामिल है,
02. डाक तार या दूरभाष की सेवा संबंधी,
03. किसी संस्थापन (अधिष्ठान) के द्वारा जनता को शक्तिप्रकाश (लाईट) अथवा जल की आपूर्ति की जाती है उससे संबंधित शिकायत संबंधी आवेदन दे सकते हैं,
04. सार्वजनिक सफाई अथवा स्वच्छता की प्रणाली की शिकायत,
05. औषधालय या चिकित्सालय में सेवा की शिकायत,
06. बीमा सेवा (तृतीय पक्षकार के मामलों को छोड़कर)।
उपरोक्त संबंध में किसी भी प्रकार की शिकायत का आवेदन स्थायी लोक अदालत में देकर शीघ्रातिशीघ्र उस समस्या का उपचार कराया जा सकता है। संबंधित स्थायी लोक अदालत को जिम्मेदारी दी गई है कि वे संबंधित समस्या का तत्काल अर्थात अविलंब निराकरण करे।
नागरिकों को उपरोक्त सेवा का लाभ लेते हुए अविलम्ब आवश्यक सुधार करवाने की ओर कदम बढ़ाकर नगर को स्वच्छ सुन्दर और खुशहाल बनाना चाहिए।
लीगल एड क्लीनिक
जिस प्रकार बीमारियों के उपचार हेतु क्लीनिक की स्थापना की जाती है, इसी प्रकार कानूनी समस्याओं के निवारण/समाधान हेतु पैरालीगल एड क्लीनिक की स्थापना की जाती है।
इसके अंतर्गत विधि के प्राध्यापक, छात्र तथा अधिवक्ता अपनी सेवाएं देते हैं तथा पीड़ित व्यक्ति को निःशुल्क कानूनी सलाह आवश्यकता पड़ने पर विधिक सहायता उपलब्ध कराने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। प्रत्येक लीगल एड क्लीनिक में दो प्रशिक्षित पैरालीगल वालांटियर्स की नियुक्ति की गई है जो निर्धारित कार्य दिवस में जरूरतमंद लोगो की सहायता/मदद के लिए कार्यालीन समय में उपलब्ध रहते है।

Category

03 A Explosive Substances Act 149 IPC 295 (a) IPC 302 IPC 304 IPC 307 IPC 34 IPC 354 (3) IPC 399 IPC. 201 IPC 402 IPC 428 IPC 437 IPC 498 (a) IPC 66 IT Act Aanand Math Abhishek Vaishnav Ajay Sahu Ajeet Kumar Rajbhanu Anticipatory bail Arun Thakur Awdhesh Singh Bail CGPSC Chaman Lal Sinha Civil Appeal D.K.Vaidya Dallirajhara Durg H.K.Tiwari HIGH COURT OF CHHATTISGARH Kauhi Lalit Joshi Mandir Trust Motor accident claim News Patan Rajkumar Rastogi Ravi Sharma Ravindra Singh Ravishankar Singh Sarvarakar SC Shantanu Kumar Deshlahare Shayara Bano Smita Ratnavat Temporary injunction Varsha Dongre VHP अजीत कुमार राजभानू अनिल पिल्लई आदेश-41 नियम-01 आनंद प्रकाश दीक्षित आयुध अधिनियम ऋषि कुमार बर्मन एस.के.फरहान एस.के.शर्मा कु.संघपुष्पा भतपहरी छ.ग.टोनही प्रताड़ना निवारण अधिनियम छत्‍तीसगढ़ राज्‍य विधिक सेवा प्राधिकरण जितेन्द्र कुमार जैन डी.एस.राजपूत दंतेवाड़ा दिलीप सुखदेव दुर्ग न्‍यायालय देवा देवांगन नीलम चंद सांखला पंकज कुमार जैन पी. रविन्दर बाबू प्रफुल्ल सोनवानी प्रशान्त बाजपेयी बृजेन्द्र कुमार शास्त्री भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम मुकेश गुप्ता मोटर दुर्घटना दावा राजेश श्रीवास्तव रायपुर रेवा खरे श्री एम.के. खान संतोष वर्मा संतोष शर्मा सत्‍येन्‍द्र कुमार साहू सरल कानूनी शिक्षा सुदर्शन महलवार स्थायी निषेधाज्ञा स्मिता रत्नावत हरे कृष्ण तिवारी