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Saturday, 23 June 2018

राजीव तिवारी विरुद्ध छ.ग. राज्य

न्यायालय-प्रफुल्ल सोनवानी, विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम)
बलौदाबाजार, जिला-बलौदाबाजार भाटापारा (छ.ग.)
सेंट्रल फाईलिंग नं.01/2016
विशेष दाण्डिक प्रकरण (भ्रष्टाचार
नि.अधिनियम) क्र.01/2016
संस्थित दिनांक 23.12.2016
छ.ग.राज्य, द्वारा - आरक्षी केन्द्र-एंटी करप्शन ब्यूरो रायपुर
रायपुर (छ.ग.)                                                                                  ..... अभियोजन
।। विरुद्ध ।।
राजीव तिवारी पिता ऋषि कुमार तिवारी, उम्र 37 साल,
पटवारी हल्का नंबर 12, ग्राम टिकुलिया, भाटापारा
जिला-बलौदाबाजार, छ.ग.
स्‍थायी पता मकान नं. 150, कर्मचारी आवास कॉलोनी
5 नं.06 सिमगा, जिला बलौदाबाजार-भाटापारा (छ.ग.)                          ...... अभियुक्त
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छ.ग. राज्य द्वारा श्री अमिय अग्रवाल अतिरिक्त लोक अभियोजक।
आरोपी द्वारा श्री देवा देवांगन अधिवक्ता
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                                                                         ।। निणर्य ।।
(आज दिनांक 30 /अक्टूबर/2017 को घोषित)
1. आरोपी राजीव तिवारी पर धारा 07, 13(1)(डी) व 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अन्तर्गत आरोप है कि, उसने लोक सेवक के रूप में पटवारी हल्का नंबर 12 तहसील भाटापारा, जिला बलौदाबाजार (छ.ग.) में पटवारी के पद पर पदस्थ रहते हुए प्रार्थी गंगाप्रसाद वर्मा जो कि पिलेश्वर निषाद से एक खेत क्रय किया था का नामांतरण प्रमाणीकरण कराने के एवज में प्रार्थी से 15,000/-रूपये वैध पारिश्रमिक से भिन्न पारितोषण के रूप में मांग किया और दिनांक 01.06.2016 को 10,000/- रिश्वत प्राप्त कर आपराधिक अवचार कारित किया।
2. प्रकरण में स्वीकृत तथ्य कुछ भी नहीं है।
3. अभियोजन का प्रकरण संक्षेप में इस प्रकार है कि, प्रार्थी गंगाप्रसाद वर्मा (अ.सा.04) ने दिनांक 28.05.2016 को पुलिस अधीक्षक एंटी करप्शन ब्यूरो रायपुर के समक्ष उपस्थित होकर एक लिखित शिकायत पत्र प्र.पी. 19 प्रस्तुत कर निवेदन किया कि वह ग्राम दावनबोड थाना भाटापारा जिला बलौदाबाजार भाटापारा का रहने वाला है। उसने माह अप्रेल 2016 में ग्राम टिकुलिया थाना भाटापारा में पिलेश्वर निषाद के खेत 01 एकड 15 डिसमिल को 05,10,000/- (पाँच लाख दस हजार रूपये) में पावर ऑफ अटार्निं के आधार पर कमल किशोर साहू से पंजीयन ऑफिस में चेक के माध्यम से पूरा पैसा भुगतान कर रजिस्ट्री कराया था रजिस्ट्री होने के बाद स्टाम्प पेपर लाकर उसके नाम से ऋण पुस्तिका बनवाने एवं नामांतरण कराने के लिए ग्राम टिकुलिया के पटवारी राजीव तिवारी से स्टाम्प पेपर रजिस्ट्री पेपर के साथ सम्पर्क किया । पटवारी रजिस्ट्री पेपर देखकर कहा कि इस रजिस्ट्री में आपत्ति लगा है ऋण पुस्तिका बनवाने एवं नामांतरण के लिए 15000/- (पन्द्रह हजार रूपये) लगेगा तब वह कहा कि किसान आदमी हूँ, 15000/- (पन्द्रह हजार रूपये) कहां से दूंगा ? तब उसने तहसीलदार से चर्चा कर एक-दो दिन में बताउंगा कहा तब उसने पटवारी से फोन से सम्पर्क किया तो उसने 10,000/-(दस हजार रूपये) से कम में काम नहीं होगा कहा तथा यह भी कहा कि यदि आपत्ति नहीं लगता तो इस काम को तीन हजार रूपये में कर देते वह अपने स्तर पर किया किसी ने भी प्रमाणीकरण नामांतरण में आपत्ति नहीं किया है। पटवारी राजीव तिवारी ऋण पुस्तिका बनाने,प्रमाणीकरण नामांतरण के एवेज में उससे 10,000/-(दस हजार
रूपये) की मांग कर रहा है। वह उसे रिश्वत नहीं देना चाहत है बल्कि रिश्वत लेते पकड्वाना चाहता है।
4. प्रार्थी के उक्त लिखित शिकायत आवेदन के सत्यापन हेतु दिनांक 28.05.2016 को प्रार्थी गंगाप्रसाद को एक डिजीटल वाईस रिकार्डर देकर पुन: आरोपी के पास उसके द्वारा रिश्वत की मांग की जाने वाली वार्तालाप को रिकार्ड कर लाने बोला गया। तब प्रार्थी गंगाप्रसाद द्वारा दिनांक 31.05.2016 मोबाईल के माध्यम से निरीक्षक एस.के.सेन को जानकारी दिया कि, वह दिनांक 29.05.2016 को पटवारी कार्यालय जाकर उससे सम्पर्क कर रिश्वत की मांग की बातचीत को रिकार्ड कर लिया तथा रिकार्ड वार्तालाप में पटवारी राजीव तिवारी द्वारा दस हजार रूपये लेने को सहमत हो जाना बताया तब प्रार्थी गंगाप्रसाद वर्मा को डिजीटल वाईस रिकार्डर के साथ एवं आरोपी को रिश्वत में दिये जाने वाली रकम लेकर महेन्द्र टैक्टर शो रूम के सामने ग्राम तरेंगा लिमतरा भाटापारा रोड में दिनांक 01.06.2016 को उपस्थित होने हेतु निर्देशित किया गया । प्रार्थी के उक्त सूचना की पुलिस अधीक्षक को अवगत कराया गया एवं उसके निर्देशानुसार ट्रेप दल का गठन किया गया एवं ट्रेप कार्यवाही हेतु मौके पर उपस्थित रहने के लिए दो स्वतंत्र राजपत्रित अधिकारियों को ए.सी.बी.कार्यालय रायपुर भेजने हेतु कलेक्टर रायपुर को प्र.पी. 27 का ज्ञापन प्रेषित किया गया। जिस पर दो पंच साक्षी डॉक्टर ए.के.प्रसाद (अ०सा० 01) एवं शादाब मेमन(अ०सा०० 6) एंटी करप्शन ब्यूरो कार्यालय रायपुर में उपस्थित हुए जिन्हें ट्रेप दल में शामिल किया गया ट्रेप दल के सदस्य डी.एस.पी. श्री डी.एस.परिहार,निरीक्षक श्री एस.के.सैन,उपनिरीक्षक रविशंकर तिवारी,उप निरीक्षक श्री झनक लाल साहू, आरक्षक शिवप्रसाद साहू,सैनिक दशरथ धृतलहरे,एवं वाहन चालक चंद्रप्रकाश साहू ए.सी.बी.कार्यालय में दिनांक 01.06.2016 को प्रात: 09.30 बजे उपस्थित होने पर पूर्व निर्धारित स्थान महेन्द्र ट्रेक्टर शो रूम के सामने ग्राम तरेंगा लिमतरा भाटापारा रोड पहुंचे जहां प्रार्थी गंगाप्रसाद उपस्थित मिला जहां प्रार्थी का परिचय ट्रेप दल के सदस्यों से कराया गया । उसी समय प्रार्थी द्वारा द्वितीय शिकायत पत्र प्र.पी.02 दिया गया एवं रिकार्डेड डिजीटल वायस प्रस्तुत किया गया । प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत द्वितीय
शिकायत पत्र का अवलोकन करने एवं रिकार्डेड डिजीटल वांयस को सुनने के पश्चात द्वितीय आवेदन पत्र पर टीप अंकित करने के पश्चात आरोपी के विरूद्घ प्रथम दृष्टया अपराध धारा 7 पी.सी. एक्ट 1988 का पाये जाने से अपराध पंजीबद्ध किया गया। वायस रिकार्ड में रिकार्डेड वार्तालाप का प्रार्थी के सहयोग से आवाज सुनकर प्र.पी.03 का लिप्यांतरण तैयार किया गया पश्चात लेपटाप की मदद से रिकार्डेड वार्तालाप का सी.डी.तैयार किया जाकर मूल सी.डी. को लिफाफा में रखकर प्र.पी.04 के अनुसार जप्त किया गया ।
5. प्रार्थी द्वारा पटवारी को रिश्वत के रूप में दिये जाने वाले रिश्वती रकम 1000-1000/-रूपये के 10 नोट, कुल 10,000/-नोट दिये जाने पर पंचसाक्षी ए.के.प्रसाद द्वारा उक्त नोट को अपने हाथ में लेकर गिनती किया गया तथा नोटों के नंबरों को पढ एवं बोलकर निरीक्षक एस.के.से द्वारा तैयार किये गये प्रारंभिक पंचनामा में नोट कराया गया एवं उक्त नोटों पर फिनाफथलीन पावडर लगाने के लिए सैनिक दशरथ धृतलहरे (अ०सा० 07) को दिये जाने पर उसके द्वारा नोटों के दोनों तरफ फिनाफथलीन की हल्की परत लगा कर प्रार्थी के पहने हुए पेंट के पीछे जेब में सावधानी पूर्वक रखवाया गया एवं प्रार्थी को समझाया गया कि उक्त नोट आरोपी के मांगने पर ही
उसके हाथ में देवे तथा रिश्वत देने के पहले और बाद में हाथ न मिलाने को कहा गया एवं यह भी समझाया गया था कि सिर से गमछा उतार कर ट्रेप दल के सदस्यों को ईशारा करना तथा यह भी ध्यान रखना कि उक्त रकम लेने के पश्चात कहां रखता है उसके पश्चात उसके निर्देश पर आरक्षक शिवप्रसाद साहू (अ०सा० 09) के द्वारा एक साफ कांच के गिलास में साफ पानी लेकर सोडियम कार्बोनेट का जलीय घोल तैयार किया गया जो रंगहीन था उस घोल में फिनाफथलीन पावडर लगाने वाले आरक्षक दशरथ धृतलहरे को छोडकर ट्रेप दल के सभी सदस्यों के हाथों की उंगलियों को डुबाया गया तो घोल के रंग में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं हुआ उस घोल को सभी को दिखाकर उसकी आवश्यकता नहीं होने पर फेक दिया गया। आरक्षक शिव प्रसाद साहू द्वारा पुन: सोडियम कार्बोनेट का जलीय घोल तैयार करवाकर फिनाफथलीन पावडर लगाने वाले आरक्षक के हाथों की उंगलियों को धुलवाये जाने पर घोल का रंग परिवर्तित होकर गुलाबी हो गया। उक्त घोल को सभी को दिखाकर समझाया गया कि, यदि आरोपी फिनाफथलीन पावडर लगे नोटों को अपने हाथों में लेगा तो उसके हाथों की उंगलियों में से फिनाफथलीन पावडर चिपक जायेगा और सोडियम कार्बोनेट का जंलीय घोल उसके हाथ धुलाये जाने पर घोल का रंग गुलाबी हो जायेगा। उसके बाद आरक्षक दशरथ धृतलहरे से कोरे कागज पर फिनाफथलीन पावडर का नमूना पुडिया एवं साफ कागज पर उपयोग लागे गये पीतल सील नमूना तैयार कर पृथक-पृथक लिफाफो में सीलबंद कर प्र.पी.06 के अनुसार जप्त किया गया ।




6. पश्चात ट्रेप दल का गठन कर नोटों पर फिनाफथलीन पावडर लगाने वाले आरक्षक दशरथ धृतलहरे को ट्रेप दल में शामिल न कर उससे जप्त समान एवं फिनाफथलीन पावडर के डिब्बे के साथ ए.सी.बी.कार्यालय में रहने बोला गया तथा प्रार्थी को छाया साक्षी आरक्षक शिव प्रसाद साहू के साथ मोटर सायकल से आगे रवाना किया गया तथा ट्रेप दल के शेष सदस्यों एवं पंच साक्षी पीछे-पीछे शासकीय वाहन से पटवारी कार्यालय मोहता बिल्डिंग पहुंच कर प्रार्थी को आगे रवाना किया तथा ट्रेपदल के सभी सदस्य वाहन से उतर कर आपस में नजरी लगाव रखते हुए पटवारी कार्यालय के पास खडे हो गये तथा प्रार्थी एवं छाया साक्षी शिवप्रसाद साहू के साथ पटवारी के पास रिश्वत देने भेजा गया । प्रार्थी द्वारा आरोपी को रिश्वती रकम देकर पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार ईशारा किया गया तत्पचात् प्रार्थी के ईशारा पाकर ट्रेप दल के सभी सदस्य आरोपी राजीव तिवारी के कार्यालय में प्रवेश किये और आरेपी पटवारी राजीव तिवारी के दाहिने हाथ को निरीक्षक सेन एवं बांया हाथ को आरक्षक शिवप्रसाद साहू ने पकड लिये निरीक्षक सेन ने आरोपी को अपना परिचय दिया तथा आरोपी का नाम पता पूछने पर अपना नाम राजीव तिवारी पटवारी हल्का नं. 12 होना बताया गया ट्रेप दल प्रभारी श्री डी.एस.परिहार उप पुलिस अधीक्षक द्वारा आरोपी पटवारी से प्रार्थी गंगा प्रसाद वर्मा से दस हजार रूपये रिश्वत लेने की बात पूछने पर उसने रिश्वत लेने से इंकार किया तथा प्रार्थी से कोई रूपये नहीं लेना बताया गया । उसके पश्चात निरीक्षक सेन के निर्देश पर शिवप्रसाद साहू द्वारा आरोपी के हाथ छोडकर साफ कांच के गिलास में पानी लेकर सोडियम कार्बोनेट का जलीय घोल तैयार कर आरोपी एवं प्रार्थी को छोडकर ट्रेप दल के सभी सदस्यों का हाथ धुलाये जाने पर घोल रंगहीन रहा जिसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं हुआ जिसे कांच की शीशी में सीलबंद कर रखा गया । उसके बाद पुन: सोडियम कार्बोनेट का जलीय घोल तैयार कर आरोपी राजीव तिवारी के दोनों हाथों की उंगलियों को डुबाये जाने पर घोल का रंग गुलाबी हो गया जिसे एक साफ कांच की शीशी में सीलबंद किया गया । उसके बाद ट्रेप प्रभारी डी.एस.परिहार द्वारा प्रार्थी से लिया गया रिश्वती रकम लिये जाने के संबंध में पटवारी से पूछने पर रिश्वत लेने से इंकार किया तब प्रार्थी को बुलाकर पूछा गया तो प्रार्थी द्वारा बताया गया कि, आरोपी उसे अपने कंप्यूटर कक्ष में ले जाकर अपने हाथ में हाथ में रूपये लेना और कम्प्युटर टेंबल में रखना बताया जहां रिश्वती रकम दिखाई दे रहा था उक्त रिश्वती रकम को पंच साक्षी ए.के.प्रसाद द्वारा बरामद किया गया । संपूर्ण कार्यवाही में प्राप्त घोलों का रासायनिक परीक्षण कराया गया। परीक्षण रिपोर्ट में धनात्मक पाया गया। प्रार्थी से संबंधित दस्तावेज की जप्ती किया गया। घटनास्थल का नजरी नक्शा पटवारी के द्वारा तैयार करवाया गया तथा रिश्वत लेन-देन के समय की बातचीत के संबंध में लिप्यांतरण पंचनामा तैयार किया गया और सी.डी.तैयार की गयी तथा आरोपी को गिरफ्तार किया गया और देहाती नालिसी को राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण /एंटी करप्शन ब्यूरो रायपुर के अपराध क्रमांक 42/2016 में प्रथम सूचनापत्र दर्ज किया गया जो प्र.पी. 15 है । जप्तशुदा घोल एवं फिनाफथलीन पावडर को रासायनिक जांच के लिए राज्य विधि विज्ञान प्रयोगशाला रायपुर प्र.पी.36 का प्रेषित किया गया । आरोपी की सेवा पुस्तिका हेतु तहसीलदार भाटापारा को प्र.पी. 42 का ज्ञापन भेजा गया उक्त ज्ञापन के परिपालन में तहसीलदार भाटापारा द्वारा प्र.पी. 22 के अनुसार ज्ञापन भेजा गया । तत्पश्चात गवाहों के कथन लेखबद्घ किया गया व राज्य शासन से आरोपी के संबंध में अभियोजन स्वीकृति हेतु विधि एवं विधायी कार्य विभाग न्यायिक रायपुर से प्राप्त किया गया जो प्र.पी. 26 है, तत्पश्चात विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) के समक्ष अभियोग पत्र दिनांक 23.12.2016 को प्रस्तुत किया गया ।
7. मेरे पूर्वाधिकारी श्री बृजेन्द्र कुमार शास्त्री विशेष न्यायाधीश(भ्रष्टाचार नि.अधिनियम) द्वारा दिनांक 18.01.2017 को आरोपी के विरूद्घ धारा 07, 13(1) (डी) व 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अन्तर्गत आरोप की विरचना की गयी। आरोपी का अभिवाकृ लिया गया जिस पर आरोपी ने अपना अपराध अस्वीकार किया और विचारण चाहा है । अभियोजन साक्ष्य के उपरांत धारा 313 द.प्र.सं. के अन्तर्गत अभियुक्त परीक्षण में आरोपी ने स्वयं को निर्दोष होना कहा और अपने कथन में कहा कि '' ए. सी.बी.वालों के सीखाने पर विद्वेषषश झूठ बोल रहे हैं, मैं निर्दोष हूँ , मुझे झूठा फंसाया गया हैं |'' तथा आरोपी ने अपने प्रतिरक्षा में साक्ष्य नहीं देना व्यक्त किया है।
8. अभियोजन ने अपने समर्थन में निम्न लिखित साक्षियों का साक्ष्य कराया गया है -
अभियोजन अभियोजन साक्षी का नाम साक्ष्य का प्रकार साक्षी क्र. अ.सा.01) श्री ए.के.प्रसाद पंचसाक्षी श्री अनिल बक्शी प्रथम सूचना पत्र लेख 02 (अ.सा.02) कर्ता। अ.सा.03) श्री खिलेश्वर प्रसाद पटवारी पटवारी नक्शा। अ.सा.04) श्री गंगाप्रसाद वर्मा प्रार्थी। 5 अ.सा.05) श्री महेश सिंह राजपूत आरोपी के पदस्थापना जानकारी अ.सा.06) श्री शादाब मेमन पंचसाक्षी | ((अ०सा० 10) श्री विश्वनाथ स्वर्णकार अभियोजन स्वीकृति 10 सहायक ग्रेड-3 9. आरोपी ने अपने समर्थन में किसी साक्षी का साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है।

प्रकरण के निराकरण हेतु निम्न विचारणीय प्रश्नों पर विचार करना आवश्यक है:-
1- क्या घटना दिनांक को आरोपी लोक सेवक के रूप में पटवारी हल्का नंबर 12 तहसील भाटापारा में पटवारी
के पद पर पदस्थ था ?
2- क्या घटना दिनांक को आरोपी के समक्ष प्रार्थी का नामांतरण एवं प्रमाणीकरण का कार्य लंबित था ?
3- क्या आरोपी, प्रार्थी का नामांतरण एवं प्रमाणी -करण संबंधी कार्य करने हेठु सक्षम प्राधिकारी था ?
4- क्या आरोपी द्वारा प्रार्थी के नाम पर नामांतरण एवं प्रमाणीकरण करने के बदले में वैध पारिश्रमिक से भिन्न राशि र 15, 000 रिश्वत के रूप में प्रार्थी से मांग की थी ?
5- क्या आरोपी द्वारा दिनांक 01.06.2016 को उपरोक्त कार्य के एवज में प्रार्थी से र 10,000 वैध पारिश्रमिक से भिन्न रिश्वत के रूप में प्राप्त किया था ?
6. क्या आरोपी द्वारा लोकसेवक के रूप में आपर्राधिक अवचार कारित किया गया हैं ?

विचारणीय प्रश्न क्रमांक 01 पर निष्कर्ष व निष्कर्ष के आधार:-
10. प्रकरण में आरोपी को पटवारी हल्का नंबर 12 तहसील भाटापारा, तहसील-भाटापारा पलारी, जिला बलौदाबाजार (छ.ग.) में पटवारी के पद पर पदस्थ रहना बताया गया है। इस संबंध में (अ.सा.11)एस.के.सेन ने बताया है कि, उसके द्वारा दिनांक 08.06.2016 को तहसीलदार भाटापारा आरोपी राजीव तिवारी की सेवा पुस्तिका की प्रमाणित प्रतिलिपि प्रदान करने हेतु एक पत्र प्रेषित किया था उक्त पत्र प्रदर्श पी 42 है। उक्त पत्र के परिपालन में तहसीलदार भाटापारा के द्वारा पुलिस अधीक्षक एंटी करप्शन ब्यूरो रायपुर को संबोधित करते हुए एक ज्ञापन प्रेषित कर आरोपी राजीव तिवारी पटवारी की सेवा पुस्तिका, नियुक्ति संबंधी प्रविष्टि एवं पटवारी हल्का नंबर 12 ग्राम टिकुलिया में आरोपी के पदस्थापना संबंधी दस्तावेजों की सत्य प्रतिलिपि प्रेषित किया। उक्त ज्ञापन प्रदर्श पी 24 है।
11. उक्त ज्ञापन के संबंध में अभियोजन की ओर से तहसीलदार महेश सिंह राजपूत (अ.सा.05) ने अपने परीक्षण में बताया है कि, दिनांक 28.06.2016 को कार्यालय पुलिस अधीक्षक एंटी करप्शन ब्यूरो रायपुर से अपराध क्रं० 42/2016 धारा 7,13(1)0,13(2)पी.सी.एक्ट आरोपी राजीव तिवारी हल्का पटवारी क्रमांक 12 टिकुलिया के प्रकरण के संबंध में उनके कार्यालय से निम्न जानकारी चाही गयी थी उन जानकारियों को उसके कार्यालय द्वारा प्र.पी. 22 के अनुसार आवश्यक दस्तावेजा संलग्न कर प्रेषित किया गया है जिसके अ से अ भाग पर उसके हस्ताक्षर है । आरोपी की सेवापुस्तिका की प्रमाणित प्रतिलिपि प्र.पी.23,आरोपी के कतरव्यों एवं उत्तरदायित्वों की विभागीय प्रपत्रों की प्रमाणित प्रतिलिपि, गोपनीय प्रतिवेदन प्रस्तुत किया है जो प्र.पी.24 है ।
12. प्रकरण में आरोपी के विरूद्घ दांडिक प्रकरण चलाने हेतु अभियोजन स्वीकृति प्रदान की गयी है जो प्र.पी.26 है। जिसमें आरोपी को टिकुलिया का पटवारी होना लेख है। उपरोक्त दस्तावेजों के आधार पर यह स्पष्ट है कि आरोपी पटवारी हल्का क्रमांक 12 ग्राम टिकुलिया तहसील भाटापारा जिला बलौदाबाजार में पटवारी के रूप में 
लोक सेवक के पद पर पदस्थ था। उपरोक्त आधारों पर यह स्पष्ट है कि, आरोपी पटवारी हल्का नंबर 12,ग्राम टिकुलिया, तहसील-भाटापारा, जिला बलौदाबाजार- भाटापारा (छ.ग.) में पटवारी के पद पर लोक सेवक के रूप में पदस्थ रहना प्रमाणित हो जाता है ।




विचारणीय प्रश्न क्रमांक 02 एवं 03 पर निष्कर्ष व निष्कर्ष के आधार -
13. प्रकरण में प्रार्थी अ०सा० 4 गंगा प्रसाद वर्मा का कहना है कि, उसने कमल किशोर के पावर ऑफ एटार्नि के माध्यम से तिजेश्वर निषाद की भूमि क्रय की थी जिसके नामांतरण हेतु वह तहसीलदार एवं पटवारी के पास चक्का लगाया करता था उसके पश्चात उसे एक दलाल के माध्यम से उसका काम करवाने के लिए पन्द्रह हजार
रूपये की मांग उक्त दलाल ने की थी उसे उक्त दलाल का नाम मालूम नहीं था जिस कारण वह ए.सी.बी.कार्यालय शिकायत करने के लिए गया था। जहां उसने बताया कि दलाल के द्वारा उसका नामांतरण करवाये जाने के लिए पन्द्रह हजार रूपये की मांग की जा रही है।
14. प्रतिपरीक्षण में साक्षी ने स्वीकार किया कि, उसने पिलेश्वर निषाद के स्वामित्व की भूमि खसरा नं. 677/1 रकबा 0.470 हे. को आम मुख्त्यार के आधार पर कमल किशोर से खरीदा था। साक्षी यह स्वीकार करता है कि उसने उक्त भूमि की संपूर्ण राशि चेक के माध्यम से कमल किशोर को दे दिया। साक्षी यह भी स्वीकार करता है कि रजिस्ट्री बैनामा मिलने के पश्चात वह तहसील कार्यालय भाटापारा गया था। साक्षी ने इस बात से इंकार किया कि भाटापारा तहसील आफिस में उसे पता चला कि पिलेश्वर निषाद ने उक्त भूमि के नामांतरण पर आपत्ति लगाया है। स्व्त: कहता है कि जब वह पटवारी कार्यालय गया था तब आरोपी ने उसे बताया था कि जिस जमीन को आप खरीदे है उस जमीन पर तहसीलदार के न्यायालय में नामांतरण व प्रमाणीकरण की कार्यवाही पर रोक लगाये जाने हेतु आपत्ति किया है। साक्षी ने यह स्वीकार किया कि उसके पश्चात वह तहसीलदार भाटापारा में गया था। जहां उसे पता चला कि पिलेश्वर ने नांमातरण व प्रमाणीकरण पर आपत्ति किया है जिसके संबंध में तहसीलदार भाटापारा ने उसे भी नोटिस दिया था। आरोपी अधिवक्ता के द्वारा दस्तावेज दिखाकर साक्षी से प्रतिपरीक्षण किया गया है जिसमें साक्षी ने आदेश पत्र दिनांक 10.05.20 16 प्र.डी.01 पिलेश्वर द्वारा तहसीलदार को दिया गया आवेदन प्र.डी.02 है। नोटिस प्र.डी.05 तथा कमल किशोर को दी गयी नोटिस प्र.डी.06 व पिलेश्वर को दी गयी नोटिस प्र.डी.07 है प्रार्थी को दी गयी नोटिस प्र.डी.08 है।
15. साक्षी ने स्वीकार किया है कि, नामांतरण और प्रमाणीकरण करने का अधिकार तहसीलदार का है और तहसीलदार के आदेश पर ही नामांतरण और प्रमाणीकरण को पटवारी पंजी में चढाता है । स्वत: कहता है कि, भूमि के नामांतरण हेतु सर्वप्रथम आवेदन पटवारी को देते है।
16. प्रकरण में प्रार्थी ने नामांतरण व प्रमाणीकरण का कार्य लंबित होना कहा है और अपने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार करता है कि, नामांतरण और प्रमाणीकरण का अधिकार तहसीलदार को है तथा आरोपी से सीधे बात न होना और दलाल के द्वारा उक्त काम करवाये जाने का कथन करना दर्शित होता है। प्रकरण में प्रस्तुत दस्तावेज प्र..डी.01 से लेकर प्र.डी. 11 तक के दस्तावेज में तहसीलदार के समक्ष उक्त आवेदन प्रस्तुत किया जाना दर्शित होता है वैसे भी नामांतरण का कार्य तहसीलदार का होता है और पटवारी का कार्य नहीं होता है यद्यपि पटवारी उक्त प्रतिवेदन तैयार करता है। परन्तु प्रार्थी ने आरोपी के द्वारा आरोपी के समक्ष अपने नामांतरण का कार्य लंबित नहीं रहना बताया है। तथा प्रार्थी ने अपनी भूमि के नामांतरण हेतु आरोपी के समक्ष कोई आवेदन लिखित में नहीं देना स्वीकार किया है। साथ ही भू राजस्व संहिता के प्रावधानों के अनुसार नामांतरण का अधिकार तहसीदार को होता है।
17. चूंकि नामांतरण का अधिकार तहसीलदार को होता है और प्रार्थी ने आरोपी को कोई भी आवेदन नहीं देना बताया है। जिससे आरोपी के समक्ष प्रार्थी का कोई कार्य लंबित रहने की स्थिति दर्शित नहीं होती है। साथ ही दलाल के माध्यम से नामांतरण के संबंध में जानकारी होना बताया है । ऐसी स्थिति में आरोपी के समक्ष प्रार्थी
का कोई कार्य लंबित रहना प्रमाणित नही हो पाता है। प्रकरण में छ.ग.भू-राजस्व संहिता के प्रावधानों के अनुसार नामांतरण करने का अधिकार तहसीलदार का होता है जिससे आरोपी प्रार्थी का कार्य करने हेतु सक्षम प्राधिकारी होना प्रमाणित नहीं हो पाता है और आरेपी के समक्ष प्रार्थी का कोई कार्य लंबित रहना भी प्रमाणित नहीं हो पाता है।




विचाणीय प्रश्न क्रमांक 04 ,05 व 06 पर निष्कर्ष एवं निष्कर्ष के आधार-
18. प्रार्थी गंगा प्रसाद वर्मा अ०सा० 04 का कहना है कि, एक दलाल के माध्यम से उसका काम करवाने के लिए पन्द्रह हजार रूपये की मांग उक्त दलाल ने किया था जिसका नाम उसे नहीं मालूम है तब वह शिकायत करने ए.सी.बी.कार्यालय चला गया । जहां उसने बताया कि, एक दलाल के द्वारा नामांतरण करवाये जाने के लिए पन्द्रह हजार रूपये की मांग की जा रही है तब ए.सी.बी.कार्यालय में उससे पूछा गया कि, किसके विरूद्घ शिकायत करना चाहते हो तब उसने बताया कि, हो सकता है पटवारी ही मांग रहा हो जिस कारण उसने पटवारी के विरूद्घ शिकायत की थी।
19. प्रतिपरीक्षण में साक्षी ने स्वीकार किया है कि, वह जमीन के नामांतरण हेतु पटवारी के पास गया था । तब आरोपी ने उससे कहा था कि जमीन के नामांतरण के संबंध में पिलेश्वर ने आपत्ति लगाया है । साक्षी ने इस बात से इंकार किया कि पटवारी ने उससे नामातरण के संबंध में पैसे की मांग की थी। स्वत: कहा कि तहसीलदार से करवा लो कहा था। साक्षी ने यह भी स्वीकार किया है कि, दिनांक 01.06.2016 को आरोपी ने अपने कार्यालय में उससे प्रत्यक्ष रूप से रिश्वत की मांग नहीं की थी। स्वत: कहा कि, आरोपी से उसकी केवल मोबाईल पर बात हुई थी और आमने-सामने कोई बात नहीं हुई थी। साक्षी ने यह भी स्वीकार किया कि, उसने मोबाईल में आरोपी को कहा था कि, तहसीलदार आपको कार्यालय में बुला रहे है इसके अलावा और कोई बात नहीं हुई थी।
 20. साक्षी से धारा 165 साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत प्रश्न पूछे गये हैं । जिसमें दलाल लोगों ने दस हजार रूपये स्वयं को देने के लिए कहा था बताया है और उसने सोचा कि पटवारी ने पैसे की मांग की है जिस कारण उसने पटवारी को ले जाकर दिया था। इस प्रकार स्वयं प्रार्थी ने आरोपी के द्वारा पैसे की मांग किये जाने की बात को समर्थन प्रदान नहीं किया है।
 21, अभियोजन के द्वारा आरोपी की मांग के संबंध में टेप रिकार्ड और लिप्यांतरण पंचनामा जिसमें रिश्वत पूर्व बातचीत प्र०पी० 03 है और उसकी सी.डी.लेपटाप के माध्यम से तैयार की गयी जिसका जप्तीपत्र प्र०पी0 04 है। इस संबंध में अ०सा० 11 एस.के.सेन ने बताया है कि प्रार्थी के द्वारा दिनांक 28.05.2016 को ए.सी.बी. में आवेदन प्रस्तुत किया था जो प्र.पी. 19 है उक्त लिखत आवेदन के सत्यापन के लिए उसने प्रार्थी को डिजीटल वायस रिकार्डर को चलाने की विधि समझा कर दिया था जिसका पंचनामा प्र.पी.20 है जिसके ब से ब भाग पर उसके हस्ताक्षर है। दिनांक 30.05.2016 को प्रार्थी ने उसे फोन करके बताया कि, उसने आरोपी के साथ दिनांक 29.05.2016 को कार्यालय में जाकर बातचीत कर रिश्वत मांग वार्ता को रिकार्ड किया है जिसमें आरोपी दस हजार रूपये लेने के लिए सहमत हो गया है। तब उसने प्रार्थी को दिनांक 01.06.2016 को उक्त रिकार्डेड वार्तालाप और द्वितीय शिकायत आवेदनपत्र के साथ लिमतरा भाटापारा रोड मेहन्द्रा ट्रेक्टर शो-रूम के सामने मिलने के लिए कहा था।
 22. प्रतिपरीक्षण में साक्षी ने स्वीकार किया है कि उक्त डिजीटल वायस रिकार्डर में पहले से कोई आवाज मौजूद थी या नहीं अथवा खाली था अथवा नहीं इसकी उसने कोई जांच नहीं किया है। साक्षी ने यह भी स्वीकार किया कि उसने दिनांक 28.05.2016 को डिजीटल वायंस रिकार्डर को प्रार्थी को दिया था जिसे प्रार्थी ने उसे दिनांक 01.06.2016 को वापस किया था। साक्षी ने स्वीकार किया कि उक्त अवधि में वाईस रिकार्डर प्रार्थी के पास था और यदि इस बीच प्रार्थी ने किसी और की बातचीत को पुन: रिकार्ड कर लिया हो तो वह नहीं जानता । साक्षी ने यह भी स्वीकार किया कि उक्त वाईस रिकार्डर में कितने लोगों की आवाज थी वह नहीं बता सकता है। साक्षी ने यह भी स्वीकार किया कि वह घटना के पूर्व आरोपी के आवाज को नहीं पहचानता था। साक्षी यह भी स्वीकार करता है कि लिप्यांतरण पंचनामा में दस हजार रूपये दोगें तब प्रमाणीकरण नामांतरण और ऋणपुस्तिका बनाउंगा वाली बात नहीं है। साक्षी ने यह भी स्वीकार किया कि, उक्त वाईस रिकार्डर में किसी अन्य व्यक्ति की भी आवाज थी।
 23, अ०सा० 04 गंगाप्रसाद वर्मा का कहना है कि इसे शिकायत प्रस्तुत करने के बाद एक माईक्रो वाईस रिकार्डर दिया गया था जिसके संबंध में पंचनामा प्र.पी.20 है वह उक्त टेप रिकार्ड को लेकर आरोपी के कार्यालय में गया था और वहां अत्यधिक भीड थी जिस कारण वह टेप रिकार्ड ठीक से चालू नहीं कर पाया था। प्रतिपरीक्षण में साक्षी ने दिनांक 01.06.2016 को लिमतरा भाटापारा रोड में महिन्द्रा शो-रूम के सामने ए.सी.बी.वालों द्वारा उक्त वायस रिकार्डर की रिकार्डिंग को सुना जाना इंकार किया है और उसका लिप्तयांतरण पंचनामा बनाया जाना भी याद नहीं होना कहा है। साक्षी ने उक्त टेप रिकार्ड की सी.डी.बनाये जाने को भी इंकार किया है।
 24. अ०सा० 01ए.के.प्रसाद पंच साक्षी है जिसने अपने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि, उसने डिजीटल वायस रिकार्डर को सुना था जिसमें स्पष्ट आवाज नहीं थी और कौन क्या बोल रहा है यह समझ नहीं आ रहा था। अ०सा० 06 शादब मेमन जो भी अन्य पंच साक्षी है उसने अतिरिक्त लोक अभियोजक के द्वारा सूचक प्रश्न पूछे जाने पर प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत टेप रिकार्ड की रिकार्डिंग को सुनना इंकार किया है। अ०सा० 07 दशरथ लाल धृतलहरे सैनिक ने अपने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि जो सी.डी.जप्ती की गयी थी वह खाली थी। 25. प्रकरण में डिजीटल वॉयस रिकार्डर कैसेट के आधार पर रिकार्ड किया जाता है और ऐसे बातचीत को प्रमाणित करने के संबंध में उक्त टेप में जिन व्यक्तियों की आवाजें है उनका आवाज का नमुना लेकर परीक्षण किया जाता है परन्तु प्रकरण में ऐसी कोई जांच कराये जाने का उल्लेख नहीं है। ऐसी स्थिति में उक्त बातचीत आरोपी से ही की गयी है यह स्पष्ट नहीं हो पाता है साथ ही उक्त टेप की आवाजों का भी परीक्षण नहीं करवाया गया है तथा टेप रिकार्ड दो दिन विलंब से प्रार्थी द्वारा जमा किया गया है और उक्त टेप रिकार्ड सीलबंद भी नहीं किया गया था । तथा स्वयं प्रार्थी ने आरपी के पास जाने पर उक्त टेप रिकार्ड को चालू नहीं कर पाना बताया है। जिससे भी स्वयं प्रार्थी के साक्ष्य से उक्त वॉयस रिकार्डर की बातचीत और लिप्यांतरण पंचनामा की कार्यवाही को समर्थन प्राप्त नहीं हो पाता है।
 26. टेप रिकार्डर से टेप की गई वार्ता को साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 के अंर्तगत दस्तावेज की श्रेणी में रखा गया है इस संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायदृष्टांत Ziyauddin Barhanuddin Bukhari Vs Brijmohan Ramdass Mehra and others में टेप रिकार्ड को साक्ष्य में ग्राहय होने की शर्ते बतायी गयी है-




it was held by this court that taperecords of speeches were "documents". as defined by Section 3 of the Evidecne Act, which stood on no different footing than photograplhs, and that they were admissible in evidence on staisfying the following conditions : " (a) The voice of the person alleged to be speaking must be duly identified by the maker of the record or by others who know it. (b) Accuracy of what was actually recorded had to be proved by the maker of the record and satisfactory evidence , direct or circumstantial, had to be there so as to rule out possibilities of tamering with the record. (c) The subjectmatter recorded had to be shown to be relevant according to rules of 1 (1976) 2 SCC 17 : 1975(supp) SCR 281 relevancy found in the Evidence Act." 
 27. इसी प्रकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्याय दृष्टांत R.M.Malkani v. State of Maharashtra में टेप अभिलिखित बातचीत के साक्ष्य में ग्राहय होने की शर्ते बतायी गयी है-
this Court has observed that tape recorded conversation is admissible provided first the conversation is rlevant to the matters in issue: secondly, there is identification of the voice; and, thirdly the accuracy of the tape recorded conversation is proved by eliminating the possiblility of erasing the tape record. 
28. इसके अतिरिक्त प्रकरण में रिश्वत मांगे जाने के संबंध में रिश्वत मांग वार्ता को प्रार्थी व आरोपी के मध्य हुए वार्तालाप को टेप रिकार्ड के माध्यम से टेप किया गया है जिसका लिप्यांतरण पंचनामा तैयार किया गया है। चूंकि लिप्यांतरण पंचनामा को इलेक्ट्रानिक माध्यम से तैयार किया गया है ऐसी स्थिति में वह इलेक्ट्रानिक साक्ष्य की श्रेणी में आता है और ऐसे इलेक्ट्रानिक साक्ष्य को साक्ष्य में ग्राह्य किये जाने हेतु धारा 65(8) साक्ष्य अधिनियम का प्रमाण पत्र होना आवश्यक है । इस संबंध में माननीय 2 (1973)19300471:1973 (2) 507 417 सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा प्रतिपादित न्याय दृष्टांत Anvar P.V. Vs P.K.Basheer & Others में इलेक्ट्रानिक एविडेंस की ग्राह्यता के संबंध में सिद्धांत प्रतिपादित किये गये हैं और प्रकरण में लिप्यांतरण पंचनामा के संबंध में धारा 65(B)साक्ष्य अधिनियम का कोई प्रमाण पत्र नहीं है ऐसी स्थिति में लिप्यांतरण पंचनामा एवं रिश्वत लेन-देन वार्ता से अभियोजन को कोई सहायता प्राप्त नहीं हो पाती है।
29. अ०सा० 04 गंगाप्रसाद वर्मा ने बताया है कि, घटना दिनांक को रिश्वती रकम को उसे फिनाफथलीन पावडर लगाकर दिया गया तथा उसके साथ ए.सी.बी.का एक अधिकारी रिश्वती रकम दिये जाते समय गया था उसे निर्देश दिया गया था कि, रिश्वती रकम देने के पश्चात वह सिर का गमछा खोलकर संकेत देगा। वह जब आरोपी के कार्यालय गया तब उस समय वह कार्यालय में नही था उसके पश्चात उसने आरोपी को फोन करके कहा कि, उसे तहसीलदार बुला रहे हैं तब आरोपी आया उस समय बहुत धूल उड रही थी इसलिए वह अपने आंख को पोछने के लिए सिर से गमछा उतार कर आंख पोछने लगा । जिसे ए.सी.बी.वाले ईशारा समझ कर आ गये तब उसने हडबडाहट में रिश्वती रकम को आरोपी के टेबल में रख दिया था। उस समय आरोपी वहां पर मौजूद नहीं था। इसके पश्चात ए.सी.बी.वाले कार्यालय में आकर उससे पूछे कि पटवारी कौन है तब उसने आरोपी की ओर ईशारा किया तब ए.सी.बी.वाले आरोपी को पकड लिए और उसके पश्चात ए.सी.बी.वालों ने उससे पूछा कि, रूपया कहां है तब उसने बताया कि, रूपया टेबल के उपर है।
30. प्रतिपरीक्षण में साक्षी ने स्वीकार किया है कि, आरोपी से दस हजार रूपये रिश्वत लेने की बात पूछे जाने पर आरोपी ने इंकार किया था। साक्षी ने यह भी स्वीकार किया कि,घटना दिनांक को उसने आरेपी को कोई रकम नहीं दिया था | इस साक्षी से धारा 165 साक्ष्य अधिनियम के अन्तर्गत प्रश्न पूछे गये हैं जिसमें पूछा गया है कि, जब साक्षी ने पटवारी को पैसा नहीं दिया है और टेबल पर रख दिया है उक्त बात को ए.सी.बी.को बताया था या नहीं जिस पर प्रार्थी ने बताया कि उसने उक्त बात ए.सी.बी.को नहीं बतायी उक्त बात नहीं बताने का कारण पूछे जाने पर साक्षी ने बताया कि, ए.सी.बी.वालों ने उससे पैसा कहां है पूछा था और पैसे देने के संबंध में पूछा था जिसे उसने टेबल पर रखना बताया था। इस संबंध में पुन: साक्षी से प्रश्न पूछा गया कि किसे पैसा देना बताये थे तब साक्षी ने पटवारी को दस हजार रूपये नामांतरण के लिए देना बताया था। तत्पश्चात साक्षी से पुन: पूछा गया कि, नामांतरण के लिए दस हजार रूपये देने की बात किसने बतायी थी जिस पर साक्षी ने बताया कि उसे दलाल लोगों ने बताया था और दलाल लोगों ने स्वयं को पैसा देने के लिए कहा था। साक्षी का कहना है कि उसने सोचा कि पटवारी ने पैसे की मांग की है जिस कारण पटवारी को लेकर दिया था।
 31. प्रकरण में प्रार्थी ने आरोपी को रिश्वती रकम नही देने की बात कही है और आरोपी के टेबल में रिश्वती रकम को रख देना बताया है और उस समय आरोपी को वहां पर मौजूद नहीं रहना बताया है। अ०सा० 1 ए.के. प्रसाद जो कि पंचसाक्षी है ने बताया है कि आरपी की तलाशी लेने पर कोई पैसा नहीं मिला तब प्रार्थी से पूछने पर प्रार्थी ने बताया कि पैसा उसने टेबल पर रखा है तब टेबल से पैसे को उठाकर नंबर का मिलान किया गया था । तथा साक्षी ने बताया है कि, ए.सी.बी.के कर्मचारी ने सादा पानी लेकर घाल बनाया था जिसमें आरोपी का हाथ धुलाये जाने पर घोल का रंग परिवर्तित नहीं हुआ था। प्रतिपरीक्षण में साक्षी ने यह स्वीकार किया है कि पटवारी कार्यालय के पास तोड-फोड चल रही थी और धूल उड रही थी। साक्षी यह भी स्वीकार करता है कि जहां वह खडा था वहां से आरोपी का कमरा नहीं दिखाई देता है।




32. अ०सा० 06 शादाब मेमन पंच साक्षी ने बताया है कि, आरोपी जहां था वहां ए.सी.बी.वालें कुछ कार्यवाही कर रहे थे जिसे वह स्पष्ट रूप से नहीं देख पाया था।अतिरिक्त लोक अभियोजक के द्वारा सूचक प्रश्न पूछने पर साक्षी ने इस बात की जानकारी नहीं होना कहा है कि अरोपी से रिश्वत की बात पूछने पर आरोपी ने इंकार किया था और यह स्वीकार किया कि प्रार्थी को बुलाकर पूछने पर प्रार्थी ने बताया कि आरोपी ने कम्प्यूटर कक्ष में ले जाकर रूपये लेकर कम्प्यूटर टेबल में रखा है। साक्षी ने स्वीकार किया है कि पंच साक्षी ए.के. प्रसाद ने उक्त नोट को कम्प्यूटर टेबल से उठाया था । साक्षी ने इस बात की जानकारी नहीं होना कहा कि घोल में आरोपी का हाथ धुलाये जाने पर उसका रंग गुलाबी हो गया था।
33. प्रतिपरीक्षण में साक्षी ने स्वीकार किया है कि, पटवारी कार्यालय के आस- पास तोड-फोड की कार्यवाही चल रही थी और वहां बहुत भीड थी और धूल भी उड रहा था। साक्षी ने स्वीकार किया कि, पटवारी कार्यालय के अंदर थोडी देर रूक कर नास्ता करने बाहर चला गया था। साक्षी ने यह स्वीकार किया कि आरोपी के कार्यालय में कम्प्यूटर टेबल में नोट को किसने रखा है उसने नहीं देखा है और यह भी स्वीकार करता है कि ए.सी.बी.वालों ने प्रार्थी से पूछा था तब प्रार्थी ने बताया कि उसने कम्प्यूटर टेबल में नोट को रखा है। 34. अ०सा० 08 रविशंकर तिवारी निरीक्षक हमराह ने बताया है कि, प्रार्थी के द्वारा ईशारा करने के पश्चात तब वे लोग आरेपी के कार्यालय में गये और आरेपी से रिश्वती रकम लेने के संबंध में पूछने पर आरोपी ने इंकार किया और रिश्वती रकम कहां रखे हो यह पूछने पर आरेपी ने रिश्वत लेने से इंकार किया तब प्रार्थी को बुलाकर पूछा गया जिसमें प्रार्थी ने बताया कि उसे कम्प्यूटर रूम ले गये थे जिसमें कम्प्यूटर टेबल के उपर रिश्वती रकम को रखे थे। साक्षी का कहना है कि आरोपी का हाथ घोल में डुबाये जाने पर घोल का रंग हल्का परिवर्तित हुआ था जो गुलाबी नहीं हुआ था।
35. प्रतिपरीक्षण में साक्षी ने यह स्वीकार किया कि आरोपी के कार्यालय के आस-पास तोड-फोड की कार्यवाही चल रही थी जिस कारण बहुत भीड थी और बहुत धुल उड रहा था। साक्षी ने स्वीकार किया कि, पटवारी कार्यालय में चार रूम थे और जिस रूम में आरोपी को पकडे थे उस रूम में रिश्वती रकम नहीं थी और वहां से कम्प्यूटर टेबल नहीं दिख रहा था। साक्षी ने यह भी स्वीकार किया कि, आरपी की तलाशी लेने पर उसकी जेब से कुछ नहीं निकला था। तब प्रार्थी को बुलाकर रिश्वती रकम के संबंध में पूछताछ करने पर प्रार्थी ने बताया था कि रिश्वती रकम कम्प्यूटर टेबल के पास रखा है।
36. अ०सा० 09 शिव प्रसाद साहू आरक्षक ने बताया है कि उसे छाया साक्षी के रूप में प्रार्थी के साथ भेजा गया था और जब प्रार्थी रिश्वत देने आरोपी के कार्यालय के अंदर गया था तब वह बाहर ही खडा था । उसके पश्चात प्रार्थी के ईशारा मिलने पर ए.सी.बी.वाले अंदर चले गये और आरोपी को पकड लिये थे। तब उसने घाल कार्यवाही की थी। आरेपी से रिश्वती रकम के संबंध में पूछने पर आरोपी ने रिश्वत लेने से इंकार किया था इसके पश्चात प्रार्थी को बुलाकर पूछने पर प्रार्थी ने रिश्वती रकम को कम्प्यूटर टेबल में रखना बताया था। उक्त कम्प्यूटर कक्ष में आरोपी को साथ ले जाकर प्रार्थी द्वारा बताये गये कम्प्यूटर टेबल से पंच साक्षियों द्वारा ढूढने पर नोट प्राप्त हुआ था। साक्षी ने बताया कि उसने आरोपी के उंगलियों को घोल में डुबाया था तब घोल का रंग हल्का गुलाबी हो गया था।
37. प्रतिपरीक्षण में साक्षी ने स्वीकार किया कि, जिस कमरे में आरोपी को पकडे थे उसके दूसरे कमरे में रिश्वती रकम बरामद हुआ था। साक्षी यह भी स्वीकार करता है कि जिस रूम में आरोपी को पकडा गया था वहां से रिश्वती रकम रखा हुआ कम्प्यूटर टेबल नहीं दिखायी देता। साक्षी यह स्वीकार करता है कि पटवारी कार्यालय के कम्प्यूटर टेबल पर किसने रिश्वती रकम को रखा था वह नहीं देख पाया था।
38. अ०सा० 11 एस.के.सेन विवेचना अधिकारी ने बताया है कि, प्रार्थी का ईशारा पाकर जब वे लोग आरोपी के कार्यालय के अंदर गये तब आरोपी से पूछने पर आरोपी ने रिश्वत लेने से इंकार किया तब प्रार्थी को बुलाकर पूछने पर प्रार्थी ने बताया कि आरोपी ने कम्प्यूटर कक्ष में ले जाकर रिश्वती रकम को अपने हाथ में लिया और कम्प्यूटर टेबल पर रखवा दिया था। आरोपी का हाथ घोल से धुलाये जाने पर घोल का रंग परिवर्तित होकर हल्का गुलाबी हो गया । साक्षी ने आरोपी के हाथ के घोल को प्र.पी.45 के रूप में पहचाना है। 39. प्रतिपरीक्षण में साक्षी ने इंकार किया कि प्र.पी.45 में गुलाबी घोल नहीं है। साक्षी ने आरेपी के कार्यालय के पास तोडफोड की कार्यवाही होने की जानकारी नहीं होना कहा। साक्षी ने स्वीकार किया कि आरेपी की तलाशी लेने पर आरिपी के पास से रिश्वती रकम की बरामदगी नहीं हुई थी। साक्षी ने यह भी स्वीकार किया कि, आरोपी से रिश्वती रकम के संबंध में पूछने पर आरापी ने अनभिज्ञता जाहिर की थी और किसी से रिश्वती रकम नहीं लेना कहा था। साक्षी ने स्वीकार किया कि, तत्पश्चात प्रार्थी को बुलाकर पूछने पर प्रार्थी ने दूसरे कमरे में कम्प्यूटर टेबल के उपर रिश्वती रकम को रखा होना बताया था। साक्षी ने यह भी स्वीकार किया कि जिस कमरे में उन्होंने आरोपी को पकडा था उस कमरे से दूसरे कमरे में रखा हुआ कम्प्यूटर टेबल दिखाई नहीं देता था | साक्षी ने यह स्वीकार किया कि, रिश्वती रकम दूसरे कमरे के कम्प्यूटर टेबल में रखा हुआ था।
40. प्रकरण में स्वयं प्रार्थी ने आरापी को रिश्वती रकम देने से इंकार है और रिश्वती रकम को टेबल पर रख देना बताया है और प्रकरण में रिश्वती रकम आरोपी के शरीर से बरामद नहीं हुई है साथ ही जिस कक्ष में आरोपी था उस कक्ष से भी रिश्वती रकम बरामद नही हुई है और रिश्वती रकम दूसरे कमरे में रखे कम्प्यूटर टेबल से बरामद हुआ है। आरोपी का हाथ धुलाने पर घोल का रंग परिवर्तित नही होना पंच साक्षी ए.के. प्रसाद ने स्वीकार किया है। जिससे दर्शित होता है कि, आरोपी ने रिश्वती रकम को हाथ में नहीं लिया है इसके अतिरिक्त अन्य साक्षियों ने आरापी का हाथ धुलाये जाने पर हल्का गुलाबी होना बताया है जिससे इस बिन्दु पर विरोधाभाष की स्थिति दर्शित हो रही है। साथ ही आरोपी के द्वारा प्रार्थी से रिश्वती रकम की मांग किया जाना भी प्रमाणित नही हुआ है जो ऐसे अपराधों में आवश्यक शर्त है साथ ही आरोपी के समक्ष प्रार्थी का कार्य लंबित नही था और आरोपी प्रार्थी का कार्य करने हेतु सक्षम प्राधिकारी भी नहीं है जिससे उपरोक्त आधारों पर अभियोजन के प्रकरण पर सन्देह करने का आधार उत्पन्न हो जाता है।
41. प्रकरण में मात्र रिश्वती रकम की बरामदगी से आरोपी को दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता। इस संबंध विभिन्न न्यायदृष्टांतों में सिद्धांत प्रतिपादित किये गये हैं जिनमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय Krishan Chander Vs. State of Delhi तथा C.M.Girish Babu v. CBI, Cochin तथा M.Narsinga Rao v. State of A.P. माननीय छ.ग. माननीय छ.ग.उच्च न्यायालय के न्यायदृष्टांत S.K.Nande v State of Madhya Pradesh में इसी प्रकार के सिद्धांत प्रतिपादित किये गये हैं।
42, उपरोक्त साक्ष्य की विवेचना के आधार पर आरोपी के समक्ष प्रार्थी का कोई कार्य लंबित रहना प्रमाणित नहीं हुआ है इससे आरोपी के द्वारा रिश्वत की मांग किया जाना और रिश्वत की रकम स्वेच्छापूर्वक प्राप्त किया जाना भी सन्देह से परे प्रमाणित नहीं हो पाता है तथा आरोपी के कब्जे से रिश्वती रकम की जप्ती भी नहीं हुई है । ऐसी स्थिति में आरोपी के द्वारा लोक सेवक के रूप में प्रार्थी से रिश्वत की राशि प्राप्त करना और लोक सेवक के रूप में अवचार कारित किया जाना सन्देह से परे प्रमाणित नहीं हो पाता है।
43. उपरोक्त सभी आधारों पर अभियोजन अपना प्रकरण आरोपी के विरूद्घ धारा (डी) व 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अन्तर्गत सन्देह से परे प्रमाणित करने में असफल रहा है। अत: सन्देह का लाभ देकर आरोपी राजीव तिवारी को धारा 07,13(1)(डी) व 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के आरोप से दोष मुक्त किया जाता है। 
44. आरोपी दिनांक 01.06.2016 से 04.08.2016 तक कुल दो माह 05 दिन न्यायिक अभिरक्षा में निरूद्ध रहा है। 45. प्रकरण में जप्त संपत्ति 10,000/-(दस हजार रूपये) 1000/-, 1000/-(एक-एक हजार रूपये का दस नोट) की राशि अपील अवधि पश्चात् प्रार्थी को वापस किया जावे अन्यथा किसी दावेदार के उपस्थित न होने पर धारा 458 दं.प्र.सं. के अन्तर्गत कार्यवाही की जावे । प्रकरण में जप्तशुदा 7 नग सीलबंद घोल की शीशियां, दो नग सीलबंद लिफाफा, एक पैकेट में फुलपेंट एवं पर्स, दो नग सी.डी. अपील अवधि बाद नष्ट किया जावे। प्रकरण में जप्त ग्राम टिकुलिया पटवारी हल्का नं. 12 रा.नि.मं. भाटापारा का नामांतरण पंजी वापस किया जावे, अपील होने की दशा में माननीय अपीलीय न्यायालय के निर्देशानुसार निराकरण किया जावे।
निर्णय खुले न्यायालय में दिनांकित हस्ताक्षरित व मुद्रांकित कर घोषित।
मेरे निर्देश में टंकित।
सही /-

(प्रफुल्ल सोनवानी
विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार अधि.) 
बलौदाबाजार (छ.ग.) 




Friday, 31 March 2017

एन्टी करप्शन ब्‍यूरो विरूद्ध माधव सिंह चन्देल

प्रकरण में उपलब्ध साक्ष्य एवं दस्तावेजां से यह स्पष्ट होता है कि अभियुक्त का, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा-7 एवं धारा-13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) के तहत् आपराधिक अवचार का अपराध कारित करने का आपराधिक आशय था । विवेचना एवं विचारण की कार्यवाही में कुछ विसंगतियां दर्शित हुई हैं, किन्तु उक्त विसंगतियां तात्विक नहीं हैं । अभियोजन द्वारा आरोपित अपराध के आवश्यक तत्वों की पूर्ति किया गया है । इस प्रकार अभियोजन द्वारा आरोपित अपराध को सन्देह से परे प्रमाणित किया गया है । अतएव विचारणीय बिंदु क्रमांक-1 से 3 का निष्कर्ष ’’प्रमाणित’’ में दिया जाता है, अतः अभियुक्त को आरोपित अपराध, अंतर्गत धारा-7 एवं धारा-13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, में दोष-सिद्ध पाया जाता है । 


न्यायालय : विशेष न्यायाधीश (भ्रष्‍टाचार निवारण अधिनियम), दुर्ग (छ.ग.) 
(पीठासीन अधिकारी : सत्‍येन्‍द्र कुमार साहू) 
विशेष प्रकरण क्रमांक-03/2005 
संस्थित दिनांक : 24-09-2005 (सी.आई.एस.नं.102000000212005) 
छत्तीसगढ़ शासन, द्वारा : पुलिस अधीक्षक,
एन्टी करप्शन ब्‍यूरो, रायपुर (छ.ग.)                                                     ..... अभियोजन
।। विरूद्ध ।। 
माधव सिंह चन्देल आत्मज स्व0 नेपाल सिंह चन्देल,
वर्तमान उम्र करीब 49 वर्ष, तत्कालीन पटवारी,
प.ह.नं. 43, ग्राम सुरडुंग, रा.नि.मं.अहिवारा,
तहसील धमधा, जिला दुर्ग
वर्तमान पता : कैलाशनगर, कुम्हारी, जिला दुर्ग (छ.ग.)                               ..... अभियुक्त
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एन्टी करप्शन ब्यूरो, रायपुर द्वारा पंजीबद्ध अपराध क्रमांक-11/2003 से उद्भुत विशेष प्रकरण । 
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राज्य की ओर से सुश्री फरिहा अमीन, विशेष लोक अभियोजक । अभियुक्त की ओर से श्री विवेक शर्मा एवं श्री उपेन्द्र सिंह, अधिवक्तागण 
------------------------------------------------ 
।। निणर्य ।। 
(आज दिनांक 30-03-2017 का घोषित किया गया) 

Friday, 10 March 2017

भारत संघ द्वारा सी.बी.आई. विरूद्ध त्रिनाथ गौड

न्यायालय- स्पेशल जज ऑफ स्पेशल कोर्ट फॅार ट्रायल ऑफ सी.बी.आई केसेज) रायपुर (छ0ग0) 
(पीठासीन न्यायाधीश  - पंकज कुमार जैन) 

प्रकरण क्रमांक- CBI/70/2013 
अपराध क्र.- RC1242013A0001 
भारत संघ, द्वारा : सी.बी.आई.,
ए.सी.बी. ब्रांच भिलाई, जिला दुर्ग(छ0ग0)                     .............................. अभियोजन

// वि रू द्ध // 

त्रिनाथ गौड, पिता-स्व. मंगला गौड,उम्र-लगभग 64वर्ष, क्लर्क(ग्रेड-1)
कार्यालय- सबएरिया मैनेजर, 1 एस.ई.सी.एलडोमन हिल कॅालेरी चिरमिरी।
पता- औल्ड माइनर्स क्वार्टर, ओरिया स्कूल के पास, पोस्ट- गुडरीपारास,
जिला-कोरिया, छ.ग.
स्थाई पता- द्वारा श्री रामचंद्र गौड, ग्राम/पोस्ट/थाना- पुरूषोत्तमपुर,
अमाडिया साही, जिला-गुंजाम, उडीसा।                          ............................. अभियुक्त
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एफ.आई.आर.की तारीख : 28.01.2013 अभियोग पत्र प्रस्तुति तारीख : 29.05.2013 
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उपस्थिति
सी.बी.आई द्वारा लोक अभियोजक श्री अनिल पिल्लई । 
अभियुक्त की ओर से श्री प्रशान्त बाजपेयी अधिवक्ता । 
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नि र्ण य 
(आज दिनांक 31/01/2017 को घोषित) 


Wednesday, 8 February 2017

छत्तीसगढ़ शासन विरूद्ध शिवप्रसाद धृतलहरे (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम)


अभियोजन यह संदेह से प्रमाणित करने में असफल रहा है कि आरोपी शिवप्रसाद धृतलहरे ने दिनांक 03.09.2008 को तथा उसके पूर्व छात्रावास अधीक्षक, अनुसूचित जाति बालक छात्रावास, सिद्धार्थ चौक, टिकरापारा रायपुर में लोक सेवक के पद पर पदस्थ रहते है, प्रार्थी संजय कुमार बांधे से उसका छात्रावास में चयन करवाने हेतु उससे रूपये 1500/- रिश्वत की मांग की और 600/- रूपये प्राप्त किया, जो वैध पारिश्रमिक से भिन्न था और ऐसा करके आरोपी ने अपने पद का दुरूपयोग कर अपराधिक अवचार/कदाचार किया, इसलिए आरोपी शिवप्रसाद धृतलहरे को धारा 7 एवं 13(1)(डी), 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अपराध से दोषमुक्त किया जाता है।
न्यायालय :- विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) 
एवं प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, रायपुर (छ0ग0) 
(पीठासीन न्यायाधीश - जितेन्द्र कुमार जैन) 
विशेष दाण्डिक प्रकरण क्रमांक- 07/2010 
सी.आई.एस. नंबर करप्शन केस/89/2010 
संस्थित दिनांक-06.09.2010 
छत्तीसगढ़ शासन,
द्वारा-आरक्षी केन्द्र, एंटी करप्‍शन ब्यूरो, रायपुर (छ0ग0)                                   -- अभियोजन
 // वि रू द्ध // 
शिवप्रसाद धृतलहरे उम्र 61 वर्ष
पिता स्व0 श्री जुड़ावन धृतलहरे
पेशा छात्रावास अधीक्षक, मूल पद शिक्षक
 साकिन-ग्राम व पोस्ट अमेरा, थाना पलारी,
जिला बलौदाबाजार (छ0ग0)                                                                               -- आरोपी
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अभियोजन व्दारा श्री योगेन्द्र ताम्रकार विशेष लोक अभियोजक। 
आरोपी व्दारा श्री एस0के0फरहान अधिवक्ता ।
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// निर्णय // 
( आज दिनांक-31, माह-जनवरी, सन् 2017 ई0 को घोषित )

Tuesday, 31 January 2017

छत्तीसगढ़ शासन विरूद्ध गणेशलाल मेश्राम (भ्रष्‍ट्राचार निवारण अधिनियम)

उभय-पक्ष के निवेदन पर विचार करते हुये धारा-7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अपराध में अभियुक्त का एक वर्ष के कठोर कारावास और 1,000/-(एक हजार) रुपये के अर्थदण्ड से दण्डित किया जाता है। अर्थदण्ड नहीं पटाने की दशा में एक माह का कठोर कारावास की सजा पृथक् से भुगताया जावे। अभियुक्त को धारा-13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत् दो वर्ष के कठोर कारावास और 2,000/-(दो हजार) रुपये के अर्थदण्ड से दण्डित किया जाता है एवं अर्थदण्ड नहीं पटाने की दशा में दो माह का कठोर कारावास की सजा पृथक् से भुगतायी जावे। अभियुक्त को दी गई दोनां सश्रम कारावास की सजाएं साथ-साथ भुगतायी जावे।

न्यायालय : विशेष न्यायाधीश (भ्रष्‍ट्राचार निवारण अधिनियम), दुर्ग 
(पीठासीन अधिकारी : सत्‍येन्‍द्र कुमार साहू)  
विशेष प्रकरण क्रमांक-04/2006
संस्थित दिनांक : 08-05-2006 
छत्तीसगढ़ शासन, 
द्वारा : पुलिस अधीक्षक, एन्टी करप्शन व्‍यूरो, रायपुर (छ0ग0)           ..... अभियोजन 
।। विरूद्ध।। 
गणेशलाल मेश्राम पिता स्‍व.मोहनलाल मेश्राम उम्र 35 साल, 
निवासी : गजानन नगर, दुर्ग थाना मोहन नगर, दुर्ग, 
तहसील व जिला दुर्ग 
हाल- सहायक ग्रेड-2, खण्ड शिक्षा अधिकारी कार्यालय, 
दुर्ग, जिला दुर्ग (छ0ग0)                                                                   ..... अभियुक्त 
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एन्टी करप्शन ब्यूरो, रायपुर द्वारा पंजीबद्ध अपराध क्रमांक-22/2005 से उद्भुत विशेष प्रकरण। 
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राज्य की ओर से सुश्री फरिहा अमीन, विशेष लाक अभियोजक। अभियुक्त की ओर से श्री एस.के.फरहान, अधिवक्ता। 
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।। निणर्य।। 
(आज दिनांक 28-01-2017 का घोषित किया गया) 
1- अभियुक्त के विरूद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा-7, 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) के अंतर्गत यह आरोप है कि उसने दिनांक 25-05-2005 के पूर्व छत्तीसगढ़ शासन के अंतर्गत कार्यालय विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी, दुर्ग, जिला दुर्ग में सहायक ग्रेड-3 के पद पर, जो कि लोक-सेवक का पद है, पदस्थ रहते हुए प्रार्थी राजू राजपूत, जो कि जवाहर नगर, दुर्ग में ब्राईट 2  मंदबुद्धि विद्यालय का संचालन करता है और जहां के अनुसूचित जाति-जनजाति के छात्रा को विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी, दुर्ग द्वारा प्रदान की जाने वाली छात्रवृत्ति के लिये 6,750/-रुपये का चेक जारी किया गया था, जिसे प्रार्थी को देने में लाक-सेवक की पदीय हैसियत में शासकीय कार्य के सम्पादन हेतु वैध पारिश्रमिक से भिन्न 2,000/-रुपये रिश्वत की मांग किया तथा दिनांक 25-05-2005 का प्रातः 8. 00 बजे 2,000/-रुपये रिश्वत के रूप में प्राप्त किया। 


Tuesday, 3 January 2017

छ.ग.राज्य विरूद्ध मंतराम निषाद

आरोपी के विरूद्घ प्रथम दृष्टया मामला पाये जाने पर अन्तर्गत धारा 07 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं धारा 13(1)(डी)सहपठित धारा 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आरोप विरचित किया गया आरोपी का अभिवाक लिया गया, आरोपी के द्वारा अपराध अस्वीकार किया गया

न्यायालय:-विशेष न्यायाधीश (ए.सी.बी.)एवं प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश, बलौदाबाजार,छग. 
(पीठासीन अधिकारी -बृजेन्द्र कुमार शास्त्री) 
विशेष सत्र प्रक्ररण क्रमांक 02/2015 
संस्थित दिनांक-07-05-2015 
छ.ग.राज्य
द्वारा राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण एंटी करप्शन ब्यूरो रायपुर, (छ.ग.) - - - - - अभियोजन
/ वि रू द्ध / 
 मंतराम निषाद पिता स्व० महेत्तर निषाद,  उम्र 48 वर्ष
पटवारी हल्का नम्बर-12,
ग्राम-चंदेरी,तहसील सिमगा
जिला-बलौदाबाजार-भाटापारा (छ.ग.)                                          - - -- - - - -- - --अभियुक्त
 राज्य द्वारा श्री अमिय अग्रवाल अतिरिक्त लोक अभियोजक।
 आरोपी की ओर से श्री अनादिशंकर मिश्रा अधिवक्ता उपस्थित।

 / नि र्ण य / 
(आज दिनांक 04 /नवम्बर/2016 को घोषित) 

Monday, 2 January 2017

विशेष दाण्डिक प्रकरण छत्तीसगढ शासन विरूद्ध डी.के.दीवान

प्रकरण की परिस्थितियों के अनुसार आरोपी द्वारा वरिष्ठ शासकीय अधिकारी होते हुए करोडों रूपये की अनुपातहीन संपत्ति अर्जित किया है, इसलिए आरोपी के लिये नरमी बरता जाना उचित नहीं है, माननीय सर्वोच्च न्यायालय एवं छ0ग0 उच्च न्यायालय ने अपने अनेकों न्याय-सिद्धांतों में आरोपी द्वारा किये गये अपराध के आधार पर उसका दंड निर्धारित किये जाने की व्यवस्था दी है, धारा-16 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में भी यह प्रावधान किया गया है कि न्यायालय द्वारा अर्थदण्ड की राशि निर्धारित करते समय अनुपातहीन संपत्ति की राशि का ध्यान रखेगा, प्रकरण की उक्त परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए आरोपी दिलीप कुमार दीवान को निम्नलिखित दंडादेश दिया जाता है । भारतीय दण्ड विधान की धारा 467, 468, 471, 420, 200, 201 तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 1301)(ई) सहपठित 130) के तहत....  



Sunday, 1 January 2017

विशेष दांडिक प्रक्ररण भ्रष्टाचार निवा.अधि. : छ.ग.राज्य विरूद्ध रोहित कुमार देवांगन



अभियोजन का मामला संक्षेप में इस प्रकार है कि, प्रार्थिया कुमारी परमेश्वरी पैकरा ने ए.सी.बी.कार्यालय रायपुर में उपस्थित होकर पुलिस अधीक्षक एंटी करप्शन ब्युरो रायपुर के समक्ष इस आशय का लिखित आवेदन प्रस्तुत की थी कि उसकी नियुक्ति जनपद पंचायत बिलाईगढ में शिक्षाकर्मी वर्ग 03 के पद पर नियुक्त हुई है,आर०के० देवांगन बी.ई.ओ. बिलाईगढ ने कतर्व्य स्थल एवं वेतन निकालने के लिए 5000/-(पॉच हजार रूपये) रिश्वत की मांग कर रहा है,उक्त शिकायत पर एस॰०पी० के द्वारा कार्यवाही किये जाने हेतु निरीक्षक सहदेव ठाकुर को निर्देशित किया जिस पर निरीक्षक सहदेव ठाकुर के द्वारा प्रार्थिया से चर्चा के पश्चात आरोपी द्वारा लेनदेन की बात रिकार्ड करने हेतु एक वायंस रिकार्डर प्रदान किया उस वायस रिकार्डर में प्रार्थिया ने आरोपी से लेनदेन की बात कर वापस कर निरीक्षक को सूचित किया जिस पर ए०सी०बी० कार्यालय के द्वारा विधिवत ट्रेप दल का गठन कर आरोपी रोहित कुमार देवांगन के विरूद्घ कार्यवाही किये जाने हेतु अग्रसर हुए और दिनांक 19.02.2008 को आरोपी से प्रार्थिया परमेश्वरी पैकरा से रिश्वत लेते रंगे हाथ पकडा उसके पश्चात कार्यवाही पूर्ण कर विधि एवं विधायी कार्य विभाग कार्यालय रायपुर से आरोपी के विरूद्घ अभियोजन की स्वीकृति आदेश प्राप्त कर अभियोगपत्र न्यायायलय के समक्ष प्रस्तुत किया ।

Thursday, 3 November 2016

छ.ग. राज्य विरूद्ध श्रीमती शान्ति सिन्हा

न्यायालयः-विशेष न्यायाधीश,(पी.सी.एक्ट) एवं प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश,
 बलौदाबाजार ,जिला-बलौदाबाजार,छ.ग.
( पीठासीन अधिकारी- बृजेन्द्र कुमार शास्त्री)
 विशेष सत्र प्रकरण (ए.सी.बी.) क्रं0 01/2015
 संस्थित दिनांक 08.04.2015
 C.I.S.17/2015

छ.ग. राज्य
द्वारा भ्रष्टाचार निवारण शाखा, रायपुर
केम्प बलौदाबाजार,जिला-रायपुर (छ0ग0)--                                 ---------अभियोजन
-:विरूद्ध:-
श्रीमती शान्ति सिन्हा पति योगेश कुमार सिन्हा, उम्र 35 वर्ष
पटवारी हल्का नम्बर-09,ग्राम चौरेंगा, तहसील सिमगा,
जिला-बलौदाबाजार-भाटापारा (छ0ग0)- -                                      --------- अभियुक्ता
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राज्य द्वारा श्री अमिय अग्रवाल अतिरिक्त लोक अभियोजक।
आरोपिया की से श्री रूपेश त्रिवेदी अधिवक्ता।
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 // नि र्ण  य //
 {आज दिनांक 24/अगस्त/2016 का घोषित}
01/ आरोपिया श्रीमती शान्ति सिन्हा जो कि एक लोक सेवक के पद पर पदस्थ रहते हुए शासकीय कार्य हेतु वैध पारिश्रमिक से भिन्न रिश्वत के रूप में 3000/-रूपये(तीन हजार रूपये) मांग कर आपराधिक कदाचार किया। इस प्रकार आरोपिया के द्वारा अन्तर्गत धारा 7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं धारा-13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दण्डनीय अपराध कारित करने का आरोप है।
02/- आरोपिया के द्वारा यह स्वीकृत है कि वह पटवारी हल्का नम्बर-09 ग्राम चौरेंगा, तहसील सिमगा में पटवारी के पद पर पदस्थ रहते हुए एक लोक सेवक है।
03/- अभियोजन का मामला संक्षेप में इस प्रकार है कि, प्रार्थी लोभन वर्मा अपने पिता के मृत्यु होने के कारण पिता के नाम की भूमि का फौती चढाने के लिए पटवारी हल्का नंम्बर- 09 के पटवारी श्रीमती शांति सिन्हा को एक माह पहले आवेदन किया था, उसके दोनो बहनो ने भी स्टाम्प पेपर में लिखकर दिया था कि पूरी जमीन लोभन वर्मा के नाम कर दिया जावे। पटवारी श्रीमती शान्ति सिन्हा ने फौती चढाने के एवज में प्रार्थी से 3000/-रूपये(तीन हजार रूपये) रिश्वत की मांग किया वह रिश्वत नही देना चाहता था इसलिए उसने एन्टी करप्शन व्‍यूरो रायपुर से सम्पर्क किया जहां एन्टी करप्शन ब्यूरो के द्वारा प्रार्थी की शिकायत का सत्यापन एक डिजिटल वाईस रिकार्डर देकर कराया गया ।
प्रार्थी लोभन वर्मा ने डिजिटल वाईस रिकार्डर को आरोपिया शान्ति सिन्हा से सिमगा जाकर रिश्वत की मांग की वार्तालाप को रिकार्ड किया जिसके आधार पर एन्टी करप्शन व्‍यूरो के द्वारा योजना तैयार कर दिनांक 09.05.2014 को ट्रेप दल पंच साक्षियो सहित रायपुर से सिमगा पहुंचा,प्रार्थी से द्वितीय शिकायत पत्र प्राप्त कर रिश्वत पूर्व बातचीत का वाईस रिकार्डर पंचसाक्षियो को सुनाया गया, पंचसाक्षियों के द्वारा आवेदन पत्र पर कार्यवाही कार्यवाही किये जाने की टीप अंकित किया गया उसके पश्चात् आरोपिया के विरूद्ध प्रथम दृष्टया धारा 7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं धारा-13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत अपराध पाये जाने पर नम्बरी अपराध पंजीबद्ध किया गया और औपचारिकताएं पूर्ण करते हुए आरोपिया के टेबल से रिश्वती रकम बरामद किया उसके पश्चात् आवश्यक कार्यवाही पूर्ण कर अभियोजन की स्वीकृति शासन से प्राप्त कर अभियोगपत्र न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया ।
04/ अभियोगपत्र प्रस्तुत होने पर आरोपिया के विरूद्ध प्रथम दृष्टया मामला पाये जाने पर अन्तर्गत धारा 7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं धारा-13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आरोप विरचित किया गया आरोपिया का अभिवाक लिया गया, आरोपिया के द्वारा अपराध अस्वीकार किया गया एवं विचारण चाहा गया ।
05/- न्यायालय के समक्ष निम्न विचारणीय प्रश्न है:-
(1) क्या आरोपिया शान्ति सिन्हा के द्वारा लोक सेवक पटवारी के पद पर रहते हुए प्रार्थी  लोभन वर्मा  से 3000/- रूपये (तीन हजार रूपये) रिश्वत के रूप में फौती दर्ज  कराने के लिए मांग की गयी ?
(2) क्या आरोपिया शान्ति सिन्हा के द्वारा फौती दर्ज किये जाने हेतु रिश्वत के रूप में 3000/-रूपये (तीन हजार रूपये) प्राप्त की गयी ?
(3) दोषसिद्धि अ थवा दोषमुक्ति ?
 -:सकारण निष्कर्ष :-
विचारणीय प्रश्‍न क्रमांक 01 एवं 02:- साक्ष्य की पुनरावृत्ति से बचने के लिए विचारणीय प्रश्न क्रमांंक 01 एवं 02 का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
06/- आरोपिया के विरूद्ध, प्रार्थी के पिता के मृत्यु पश्चात् प्रार्थी का नाम राजस्व अभिलेखों पर दर्ज किये जाने हेतु फौती दर्ज कराने के लिए 3000/-रूपये(तीन हजार रूपये) की रिश्वत मांगने का आरोप है ? यह अविवादित है कि, आरोपिया पटवारी है।
07/- अभियोजन साक्षी सुन्दरलाल धृतलहरे (अ0सा006) के द्वारा अपने अभिसाक्ष्य में यह बताया गया है कि, आरोपिया शान्ति सिन्हा के शासकीय सेवा में प्रथम नियुक्ति आदेश एवं सेवा निवृत्ति एवं सेवा से पृथक करना एवं सक्षम अधिकारी का पद नाम एवं पदस्थापना आदेश एवं सेवा पुस्तिका का प्रमाणित प्रतिलिपि ए.सी.बी. को दिया था जो कि, क्रमशः प्रदर्श पी0 12, 13 एवं 14 है । प्रदर्श पी-12 के अनुसार श्रीमती शान्ति सिन्हा की शासकीय सेवा में प्रथम नियुक्ति दिनांक 13.2.2007 को होना एवं सेवा से निवृत्ति दिनांक 13.02.2041 को है। पटवारी की नियुक्ति का अधिकार अनुविभागीय अधिकारी राजस्व को है। इस साक्षी के द्वारा श्रीमती शान्ति सिन्हा पटवारी की पदस्थाना एवं सेवा पुस्तिका की प्रतिलिपि संलग्न की गयी है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि,
आरोपिया पटवारी के पद पर होते हुए एक लोक सेवक है।
08/- आरोपिया के द्वारा यह स्वीकृत भी है कि, ग्राम चौरेंगा पटवारी हल्का नम्बर-09 तहसील सिमगा जिला बलौदाबाजार में पटवारी के पद पर कार्यरत थी।
09/- अब प्रश्न यह है कि, क्या आरोपिया ने प्रार्थी लोभन वर्मा से फौती चढाये जाने हेतु 3000/-रूपये (तीन हजार रूपये) रिश्वत के रूप में मांग की थी ?
10/- अभियोजन साक्षी एस.के.सेन ( अ0सा009) ने अपने साक्ष्य में बताया है कि प्रार्थी लोभन वर्मा निवासी ग्राम चौरेगा ने दिनांक 06.05.2014 को कार्यालय में आकर पुलिस अधीक्षक को लिखित शिकायत पेश किया था जिसमें यह बताया गया था कि उसके पिता की फौत होने से जमीन पर उसका नाम दर्ज करने के लिए पटवारी हल्का नं. 09 की पटवारी श्रीमती शांति सिन्हा ने 3000/-रूपये रिश्वत की मांग किया है जिसे वह देना नहीं चाहता है और रंगे हाथों पकडाना चाहता है। पुलिस अधीक्षक आर.पी.साय के द्वारा कार्यवाही करने हेतु निर्देशित किया और आवेदन उसे सौंपा गया तब इस साक्षी के द्वारा शिकायत का सत्यापन डिजिटल वायस रिकार्डर से करने के पश्चात् ट्रेप दल का गठन किया और फिर योजना बद्ध तरीके से औपचारिक कार्यवाहियों को पूर्ण करते हुए दिनांक 09.05.2014 को सिमगा बस स्टेण्ड पहुंचा था ट्रेप दल में दो पंच साक्षी कलेक्टर रायपुर को पत्र भेजकर बुलाये गये थे सिमगा बस स्टेंड पर दिनांक 09.05.2014 प्रार्थी लोभन वर्मा मिला था जिसने रिकाडेर्ट
वार्तालाप वायस रिकार्डर तथा द्वितीय शिकायत आवेदन पेश किया था द्वितीय शिकायत आवेदनपत्र को पंच साक्षियों द्वारा पढकर कर कार्यवाही करने हेतु टीप लिखा गया था एवं रिकार्डट वार्तालाप को पंच साक्षियों को भी सुनाया गया था और उसका लिप्यांतरण प्रार्थी के बताये अनुसार पंच साक्षियों के समक्ष किया गया था और उसकी आवाज की सी.डी. भी तैयार की गयी थी। प्रार्थी लोभन वर्मा के द्वारा रिश्वत के रूप में दी जाने वाली रकम पॉच पॉच सौ रूपये के 6 नोट कुल तीन हजार पेश किया गया था जिसे पंच साक्षी एस.के.लाल के हाथों में दिया गया और उनके द्वारा नोटों के नम्बर को बोलकर नोट करवाया गया था जो प्रारंभिक पंचनामा में नोट किया गया था उसके पश्चात् उन नोटों पर फिनाफ्थलीन पावडर लगाने के लिए आरक्षक रामप्रवेश मिश्रा को दिया गया था रामप्रवेश मिश्रा ने नोटों पर फिनाफ्थलीन पावडर की हल्की परत लगा कर प्रार्थी की जमा तलाशी के पश्चात उसके पेंट की जेब में रख दिया गया था और उसे समझाईस भी दिया गया था कि इन नोटों को बार-बार नहीं छुऐगा। आरोपी के द्वारा मांगे जाने पर उसे देगा और फिर यह भी ध्यान रखेगा कि इन नोटों को कहां रखेगा। उसके पश्चात् प्रदर्शन घोल की कार्यवाही की गयी थी। प्रार्थी लोभन वर्मा को एक डिजिटल वायस रिकार्डर दिया गया था और उसे समझाया गया था कि रिश्वत देते समय के बातचीत को रिकार्ड करेगा। प्रार्थी को छाया साक्षी एस.के.लाल के साथ आरोपी के कार्यालय में भेजा गया, प्रार्थी आरोपी के कक्ष में गया और थोडी देर बाद बाहर निकाल कर ईशारा किया तो सभी सदस्य पटवारी के कक्ष में गये तथा महिला आरक्षक रोजलीन ने आरोपी के हाथ को पकडा था और नाम पूछने पर उसने अपना नाम शांति सिन्हा और पटवारी होना बताया था। रिश्वत के बारे में पूछताछ करने पर आरोपी ने रिश्वत लेने से मना किया, तब शिवशरण साहू से सोडियम कार्बोनेट का घोल बनाने के लिए कहा गया और उसमें प्रार्थी और आरोपी को छोड करके शेष सदस्यों का हाथ धुलवाया गया तो घोल का रंग नहीं बदला पुनः सोडियम कार्बोनट का घोल तैयार कर आरोपिया का हाथ धुलाया गया तब भी घोल का रंग परिवर्तित नहीं हुआ तब प्रार्थी से पूछा गया कि रिश्वत की रकम को आरोपी कहा रखा है तब प्रार्थी ने बताया था कि उसने नोट हाथ में नहीं लिया था टेबल पर रखे रजिस्टर में रखने को कहा था तब रजिस्टर पर रख दिया था। वहांं पर बैठे एक अन्य व्यक्ति झम्मन वर्मा ने बताया कि आरोपिया के कहने पर प्रार्थी ने यह नोट टेबल पर रखा था। प्रार्थी बार-बार गिनने के लिए बोल रहा था लेकिन आरोपी नहीं गिन रखी थी तब झम्मन वर्मा ने नोटों को गिना था। पुनः सोडियम कार्बोनेट का घोल तैयार कराकर झम्मन वर्मा का हाथ धुलवायागया था तो घोल का रंग गुलाबी हो गया था और रजिस्टर को भी जहां पर नोट रखे हुए थे साफ कागज से पोछकर सोडियम कार्बोनेट के घोल में डुबोया गया था तो घोल का रंग गुलाबी हो गया था।
11/- प्रार्थी को दिया गया दूसरा वायस रिकार्डर जिसमें रिश्वत देते समय की बातचीत रिकार्ड करने के लिए दिया था उसे प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत किया गया जिसे सुनने का प्रयास किया गया किन्तु उसमें बहुत से आवाजे थी इसलिए स्पष्ट नहीं हो रहा था कि कौन क्या बोल रहा था।
12/- अभियोजन साक्षी लोभन राम (अ0सा0 01) के द्वारा अपने अभिसाक्ष्य में बताया गय है कि, उसके पिता जी की मृत्यु हो गयी थी तो उसकी फौती उठाने के लिए एक माह तक उसे घुमायी थी। आरोपिया ने उससे पैसा की मांग नहीं की थी गांव वालों ने कहा था कि जबतक पैसा नहीं दोगे तब तक कोई काम नहीं होगा तब वह रायपुर ए0सी0बी0 गया था और वह रायपुर ए0सी0बी0 इसलिए गया था क्योंंकि वह काम नहीं कर रही थी उसे गांव का रविदास लेकर गया था उसने लिखित में शिकायत दिया था और उस शिकायत को रविदास ने लिखा था शिकायत पत्र प्र0पी0 01 है । इस साक्षी के द्वारा यह भी बताया गया है कि, वहां उसे एक टेप रिकार्ड दिया गया था जिसे रविदास ने रख लिया था जिसमें क्या टेप किया गया था उसे नहीं मालूम है उसके बाद पुनः वह रायपुर शिकायत करने के लिए गया था दूसरा शिकायत पत्र प्र0पी0 02 है । इस साक्षी के द्वारा यह बताया गया है कि, वहांं लिखापढी हुई थी लेकिन क्या हुई थी उसे नहीं मालूम है। टेपरिकार्ड का लिप्यांंतरण किया गया था और टेप रिकार्ड उससे जप्त किया गया था, उसके पश्चात् आठ-नौ तारीख को ए0सी0बी0वाले उसे बुलाये थे। अभियोजन पक्ष के द्वारा पक्षद्रोही घोषित कराये जाने के पश्चात् पूछे गये सूचक प्रश्न के अन्तर्गत इस सुझाव को गलत बताया है कि, पटवारी ने फौती दर्ज कराने के नाम पर 3000/-रूपये(तीन हजार रूपये) रिश्वत की मांग की थी तथा इस साक्षी ने यह भी बताया है कि, ए0सी0बी0 कार्यालय में जाकर उसने शिकायत रविदास के कहने पर किया था । आरोपी से पैसे की लेन-देन की बात की टेप हुआ था या नहीं उसे नहीं मालूम यह बात रविदास बता सकता है।
13/- इस साक्षी के साक्ष्य से स्पष्ट होता है कि, आरोपिया के द्वारा प्रार्थी से सीधे रिश्वत की कोई मांग नहीं की गयी थी। प्रार्थी गांंव वालोंं के यह कहने पर कि जब तक पैसा नहीं दोगे काम नहीं होगा, रिश्वत देने में काम होता है। ए0सी0बी0कार्यालय में शिकायत के सत्यापन के लिए टेप दिया था वह भी प्रार्थी द्वारा अपने पास नहीं रखा गया था एक अन्य व्यक्ति रविदास के द्वारा उस टेप को रखा गया था। इसके अतिरिक्त प्रार्थी का यह भी कहना है कि शिकायत करने के लिए ए0सी0बी0 कार्यालय रविदास के कहने से गया था।
14/- प्रार्थी लोभन वर्मा के द्वारा अभियोजन साक्षी एस.के.सेन निरीक्षक के कथनोंं का समर्थन नहीं किया गया है। प्रार्थी लोभन वर्मा के द्वारा स्पष्ट रूप से यह बताया गया है कि आरोपिया के द्वारा उससे रिश्वत की कोई मांग नहीं की गयी थी गांंव वालोंं ने कहा था कि जबतक रिश्वत नहीं दोगे तब तक काम नहीं होगा साथ ही यह भी बताता है कि, रविदास ने उसे ए.सी.बी. कार्यालय लेकर गया था और उसने ही शिकायत पत्र लिखा था और यह भी बताता है कि टेप रिकार्डर को रविदास अपने पास रखा उसके द्वारा टेप रिकार्डर को अपने पास नहीं रखा था। साथ ही प्रार्थी यह भी बताता है कि वह इस बात की शिकायत करने गया था कि, आरोपिया पटवारी उसका काम नहीं कर रही है। 
15/- अभियोजन साक्षी निरीक्षक एस.के.सेन एवं पंच साक्षियों के साक्ष्य से भी यह स्पष्ट होता है कि आरोपिया के द्वारा रिश्वत की रकम अपने हाथ में नहीं ली गयी थी, रिश्वत की रकम टेबल पर पायी गयी थी। प्रार्थी के द्वारा जो रकम रिश्वत के रूप में पटवारी को रंगे हाथ पकडे जाने हेतु दिया गया था, वह रकम प्रार्थी के हाथ से लिया जाना प्रमाणित नहीं है हालांकि यह प्रमाणित है कि आरोपिया के रजिस्टर पर रखा गया था, और वह वही नोट थे जो कि फिनाफथलीन पावडर लगाकर आरोपी को दिये जाने के लिए दिया गया था। प्रमुख तथ्य यह है कि क्या आरोपिया के द्वारा रिश्वत की मांग की गयी थी ?
16/- आरोपिया की ओर तर्क दिया गया है कि , आरोपिया के द्वारा रिश्वत की कोई मांग नहीं की गयी थी क्योंकि प्रार्थी लोभन वर्मा के द्वारा रिश्वत के मांग के संबंध में क्लेशमात्र भी कथन नहीं किया गया है और जब मांग के सबंध में सारवान साक्ष्य का अभाव है तो मात्र दुषित धन की बरामदगी के आधार पर दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता जिसके समर्थन न्याय निर्णय N.Sunkanna v. State of Andhra Pradesh. AIR. 2015 SC (Criminal) 1943  जिसमें यह अभिनिर्धा रित किया गया है कि, Accused alleged to have demanded and
accepted bribe of Rs. 300/- from complainant, a fair price shop dealer by threatening to seize stocks and foist a false case against him- Complainant himself had disowned his complaint and has turned
hostile- There is no other evidence to prove that the accused had made any demand--
Mere possession and recovery of currency notes from accused without proof of demand would not constitute offence under S.7-- 
Unless there is proof of demand of illegal gratification proof of acceptance will not follow--Legal presumption under S. 20 hence cannot be drawn--Accused acquitted.
अवलंबित एक अन्‍य न्‍याय निर्णय M.R. Purushotham v. State of Karnataka Pradesh. AIR. 2015 SC (Criminal) 139 का अवलंब लिया गया है जिसमें यह अभिनिर्धारित किया गया है कि ProofAllegations
that accused working as Second Division Survey or demanded and accepted Rs. 500/- from complainant for issuance of survey sketch --Complainant himself not supporting prosecution case insofar as demand by accused is concerned--Mere possession and recovery of the currency notes from accused without proof of demand would not attract offence under13(1)(d)-
अवलंबित एक अन्य न्याय निर्णय Selvaraj v. State of Karnataka. AIR. 2015 SC (Criminal) 1829 का अवलंब लिया गया है जिसमें यह अभिनिर्धारित किया गया है कि Criminal P.C. (2of 1974),S. 378--Appeal against acquittal- -Bribery case --Acceptance of bribe has not been established by adducing cogent evidence--
View takon by trial court while acquitting accused was a plausible one --Same cannot be interfered with by High Court, that too without coming to close quarters of reasoning and re- ap praisal of evidence-
एक न्‍याय निर्णय PRAMOD KUMAR LAL v. STATE OF M.P. (NOW C.G.) 2015 (3) C.G.L.J. 308
का अवलंब लिया गया है जिसमें यह अभिनिर्धा रित किया गया है कि अभिनिर्णी त- दुग्धशाला में जाकर निजी प्रैक्टिस करने की अनुमति देने का प्रावधान है और पशु चिकित्सा मैनुवल के अनुसार शुल्क भी प्रभार्य है-मैनुवल के लेखांश(प्ररदर्श  पी/3) के परिशीलन से स्पष्ट रूप से यह सिद्ध होता है कि, चिकित्सक स्थल पर जाने पर शुल्क लेने का हकदार है-अपीलार्थी  दिनांक 19.03.1987 को प्रदर्श  पी/21 द्वारा काफी पहले पशुओं के लिए उपयुक्तता प्रमाण-पत्र जारी कर चुका था, और बीमा के लिए निक्षेप के चालान प्रदर्श  18क- और प्रदर्श  पी/20 में मांग की तारीख से काफी पहले जारी कर दिये गये थे-उन परिस्थितियों से पृथक कलुषित धन की केवल बरामदगी जिसके अधीन उसका संदाय किया जाता है, उस समय अभियुक्त को दोषसिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं है जब वाद में सारवान साक्ष्य विश्वसनीय न हो-रिश्वत के संदाय को सिद्ध करने अथवा यह दर्शित करने के लिए विश्वसीनय साक्ष्य के अभाव में कि अभियुक्त के धन को उसका रिश्वत होना जानते हुए स्वेच्छया स्वीकार किया था, स्वयं बरामदगी अपने आप में अभियुक्त के विरूद्ध अभियोजन के आरोप को सिद्ध नहीं कर सकती है।
एक अन्य न्याय निर्णय SMT.MEENA v. STATE OF MAHARASHTRA II. (2000)CCR 118 (SC) SUIPREM COURT OF INDIA का अवलंब लिया गया है जिसमें यह अभिनिर्धा रित किया गया है कि 
(i) Bribery: Mere Recovery of Currency Note of Rs. 20/- Denomination Lying on pad on Table : Insufficient proof of Acceptance of Bribe--Currency note in question was not recovered from person on from table drawer but found on pad on table and Seized from that place by trap party Lady Constable, Shadow witness, who first arrived on the spot after signal was given by PW 1, was not examined at the trial Evidence of DW 1 completely belies prosecution storyCorroboration essential in case like this for what actually transpired during, alleged occurrence and acceptance of bribe, wanting
in this case--Results of phenolphthalein test not relevant perfunctory nature of materials and prevaricating type of evidence of P Ws 1 and 3, having strong prejudice against appellant --Not safe but dangerous of rest conviction upon their testimony.
(ii) Criminal Trial : Shadow Witness Presence and Importance Always Favoured by Law in Trap Party--To enable this witness to see and overhear what happens and how it happens, law has always favoured presence & importance of shadow witness in trap party.
एक अन्य न्याय निर्णय गणपती सान्या नाइक बनाम कर्नाटक राज्य 2007(3) सी सी एस सी 1487 (एस सी) का अवलंब लिया गया है जिसमें यह अभिनिर्धा रित किया गया है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम-, 1988-धारा-7 एवं 13-रिश्वतखोरी का जाल-विचारण न्यायालय का संपरीक्षण कि अत्यधिक प्रारम्भिक प्रक्रम पर ही प्रतिरक्षा का अभिवाक यह कि परिवादी की अपीलार्थी  के प्रति घोर शत्रुता-और यह कि करेंन्सी नोट पूर्ववर्ती  के द्वारा मेज पर रखे गये, जो सम्भाव्य स्पष्टीकरण--यह दर्शित करने वाला साक्ष्य कि करेन्सी नोटों का अपीलार्थी  द्वारा स्पर्श  तक नहीं, या उसके शरीर से उसकी बरामदगी नहीं--
अभियोजन मामला यह कि मेज पर धन रख दिये जाने के तत्काल बाद परिवादी को सुसंगत दस्तावेज हस्तगत- अत:, तर्क  कि रिश्वत की मांग करने का कोई  अवसर नहीं--भी सम्भाव्य--विचारण न्यायालय द्वारा दोषमुक्ति के विरूद्ध अपील में उच्च न्यायालय के लिए विचारण न्यायालय के निर्णय को उलटने का कोई  न्यायोचित्य ही नहीं- उच्च न्यायालय का निर्णय अपास्त।
17/- प्रतिरक्षा पक्ष की ओर से उपरोक्त न्याय निर्णयनों का अवलंब लेते हुए तर्क दिया गया है कि, प्रार्थी लोभन वर्मा जो कि प्रकरण का सारवान साक्षी है पक्षद्रोही रहा है एंव अन्य साक्ष्य समर्थन कारी साक्षी है जिनके साक्ष्य के आधार पर आरोपिया को दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता। प्रार्थी के द्वारा स्पष्ट रूप से यह बताया गया है कि, आरोपी ने उससे पैसे की मांग नहीं की है। रविदास उसे लेकर गया था और विवेचक ने भी अपने अभिसाक्ष्य में बताया है कि रविदास उसके साथ आया था, एवं कार्यावाही के दौरान ही रविदास मौजूद था, उसके बावजूद रविदास को साक्षी नहीं बनाया गया है। रिश्वत के रूप में ऐच्छिक स्वीकृति नहीं है, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत ट्रेप कार्यवाही के दौरान एक छाया साक्षी का होना आवश्यक होता है जबकि इस प्रकरण में कोई छाया साक्षी नहीं है। पी0डब्ल्यू0 2 ने अपने अभिसाक्ष्य में बताया है कि लिप्यातरण पूर्ण में ही कर लियागया था और साथ ही साक्ष्य  अधिनियम की धारा 65 बी के तहत प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं किया गया है। आरोपिया के द्वारा प्रार्थी का काम 15 दिनों के भीतर ही कर दिया गया था सिर्फ ऋण पुस्तिका नहीं होने के कारण उसे ऋण पुस्तिका प्रदान नहीं की गयी थी जिसे उपलब्ध होने पर दिया जाना कहा गया था, किन्तु दुर्भावनावश रविदास के कहने पर क्योंकि रविदास और प्रार्थी के शासकीय भूमि से अतिक्रमण हटाया गया था इसलिए झूठा फसाया गया है।
18/- प्रकरण के संपूर्ण साक्ष्य का मूल्यांकन करने से स्पष्ट होता है कि, आरोपिया के कक्ष से रिश्वत के रूप में दी जाने वाली रकम उसके रजिस्टर में रखे गये स्थिति में बरामद हुआ था, और वह वही रकम था जो कि फिनाफ्थलीन पावडर लगाकार आरोपिया को दिये जाने हेतु प्रार्थी को दिया गया था। प्रार्थी लोभन वर्मा पूर्णतः पक्षद्रोही रहा है और उसने आरोपिया के द्वारा पैसे की मांग नहीं किये जाने का स्पष्ट कथन किया गया है। प्रार्थी ने यह भी बताया है कि वह कार्यवाही रविदास के कहने पर किया था। आरोपिया के द्वारा रिश्वत हाथ में भी नहीं लिया गया है।
आरोपिया की ओर से इस मामले से हुबहू मिलते जुलते तथ्य से संबंधित एक न्याय निर्णयन् गणपती सान्या नाइक बनाम कर्ना टक राज्य 2007(3) सी सी एस सी 1487 (एस सी) का अवलंब लिया गया है इस मामले में भी रिश्वत की रकम मेंज पर प्राप्त हुआ था, जिसे आरोपिया के द्वारा स्पर्श नहीं किया गया है जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने आरोपी को दोषमुक्त घोषित किया है।
19/- उपरोक्त न्याय निर्णयन् के आलोक में यह पाया जाता है कि, इस मामले में भी आरोपिया के द्वारा रिश्वत की रकम प्राप्त नहीं की गयी हैं हालांंकि रिश्वत की रकम आरोपिया के मेंज से बरामद हुआ है, और प्रतिरक्षा पक्ष यह स्पष्ट नहीं किया है कि, जिस समय प्रार्थिया के द्वारा मेंज पर रूपये रखे गये उस समय उसके द्वारा किस प्रकार से विरोध किया गया उसका कोई स्पष्टी करण नहीं है किन्तु कार्यावाही से यह स्पष्ट है कि, मेंज पर रखने के पश्चात् ही प्रार्थी तत्काल बाहर निकलकर ईशारा किया और ट्रेपदल के सदस्य आकर आरोपिया को पकड लिये। अभियोजन पक्ष के द्वारा आरोपिया के द्वारा रिश्वत की मांग किये जाने के संबंध में कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं है। प्रार्थी को जो वायस रिकार्डर प्रदान किये गये थे उसमें प्रथम वायस रिकार्डर के संबंध में प्रार्थी के द्वारा स्पष्ट रूप से बताया गया है कि उसे रविदास के द्वारा रखा गया था उसके द्वारा उसमें कोई आवाज टेप नहीं की गयी थी और दूूसरे वायस रिकार्डर में कोई आवाज नहीं है। साथ ही छाया साक्षी के रूप में भी आरोपिया के कक्ष में प्रार्थी के साथ नहीं भेजा गया है जबकि इस प्रकार के मामले में छाया साक्षी का होना नितांत आवश्यक है। इस प्रकार आरोपिया के द्वारा रिश्वत की मांग किये जाने का कोई साक्ष्य प्रकरण में पेश नहीं है।
विचारणीय प्रश्‍न क्रमांक 03:-
20/- प्रकरण में आये अभिसाक्ष्य से आरोपिया के द्वारा प्रार्थी से रिश्वत की मांग किया जाना एवं उसे स्वेच्छा से प्रतिग्रहण करना प्रमाणित नहीं होता है। अतः उपरोक्त न्याय निर्णयनों के आलोक में आरोपिया को सन्देह का लाभ देते हुए अन्तर्गत धारा-7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं धारा-13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) के आरोप से दोष मुक्त किया जाता है।
21/- आरोपिया जमानत पर है उनके जमानत मुचलके छः माह तक प्रवृत्त रहेगे।
22/- प्रकरण में जप्तशुदा राशि पॉच-पॉच सौ के छः नोट कुल 3000/-रूपये (तीन हजार रूपये) के संबंध में अभियुक्ता एवं प्रार्थी के द्वारा कोई दावा नहीं किया गया है। प्रकरण में आये साक्ष्य से यह स्पष्ट है कि, उक्त रकम प्रार्थी द्वारा प्रदान किया गया था, अतः उक्त रकम 3000/-रूपये(तीन हजार रूपये) अपील अवधि पश्चात् प्रार्थी को वापस किया जावे। अपील होने की स्थिति में माननीय अपीलीय न्यायालय के निर्णयानुसार व्ययन किया जावे।
23/- धारा 428 द0प्र0सं0 का प्रमाण पत्र तैयार किया जावे।
24/- निर्णय की प्रति एक-एक लोक अभियोजक एवं जिला
दण्डाधिकारी बलौदाबाजार को प्रेषित किया जावे।
निर्णय घोषित हस्ताक्षरित व दिनांकित कर मेरे निर्देशानुसार टंकित
 किया गया
 सही/-
(बृजेन्द्र कुमार शास्त्री)
 विशेष न्यायाधीश(पी.सी.एक्ट)
 एवं प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश
बलौदाबाजार,छ0ग0 

Wednesday, 2 November 2016

छत्तीसगढ़ शासन विरूध्द महेशराव बाघमारे व अन्‍य curruption case mahesh rao bagmare

न्यायालय:-विशेष न्यायाधीश(भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम)
एवं प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, रायपुर (छ0ग0)
 (पीठासीन न्यायाधीश - जितेन्द्र कुमार जैन)

विशेष दाण्डिक प्रकरण क0-04/1997
सीआइएस नंबर 55/97
संस्थित दिनांक-01.04.1997
छत्तीसगढ़ शासन,
द्वारा-आरक्षी केन्द्र, एंटी करप्‍शन ब्यूरो, 
रायपुर (छ0ग0)                                                                         -- अभियोजन।
 // वि रू ध्द //
1/महेशराव बाघमारे, उम्र 39 वर्ष, 
पिता गोपीचंद,
तत्का0 कार्यपालन अधिकारी 
अंत्यावसायी समिति,
कार्यपालन अधिकारी 
जिला अंत्यावसायी कार्यालय, 
बिलासपुर, (छ0ग0)
2/सलीम बख्श शेख, उम्र 41 वर्ष, 
पिता शब्बीर बख्श शेख,
तत्का0 लिपिक 
जिला अंत्यावसायी समिति रायपुर,
वर्तमान-लेखापाल 
जिला अंत्यावसायी कार्यालय, 
बिलासपुर, (छ0ग0)
3/गणेश ठाकरे, उम्र 55 वर्ष, 
पिता स्व0उत्तमराव ठाकरे,
भृत्य जिला अंत्यावसायी समिति रायपुर, 
जिला अंत्यावसायी कार्यालय, 
निवासी कालीबाडी चौक,रायपुर, (छ0ग0)
4/मनोज कुमार जसवानी, उम्र 55 वर्ष, 
पिता स्व0ओटनदास जसवानी, निवासी
डी-26, सेक्टर-4, देवेन्द्र नगर, रायपुर, (छ0ग0)
5/अरूण बरेठवार, उम्र 63 वर्ष,
पिता स्व0गनपत राव, 
निवासी 10ए, चाणक्य काम्पलेक्स,
देवेन्द्र नगर, थाना गंज, रायपुर, (छ0ग0)                                           -- आरोपीगण।
--------------------------------------
अभियोजन व्दारा श्री योगेन्द्र ताम्रकार विशेष लोक अभियोजक।
आरोपी मनोज व्दारा श्री एस0के0शर्मा अधिवक्ता ।
आरोपी सलीम, महेश एवं गणेश व्दारा श्री मनीष सिन्हा अधिवक्ता ।
आरोपी अरूण द्वारा श्री शरद राठौर अधिवक्ता ।
---------------------------------------------
>
// निर्णय //
( आज दिनांक: 07.07.2016 को घोशित )
1. आरोपीगण के विरूध्द भारतीय दण्ड विधान की धारा 120-बी, 409, विशेष दाण्डिक प्रकरण क्रमांक- 03/1997 420, 467, 468, 471, 477 तथा भ्रश्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा- 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) के अंतर्गत यह आरोप है कि आरोपीगण ने वर्ष 1995 में या उसके लगभग परस्पर सहमति द्वारा एकराय होकर अंत्यावसायी सहकारी विकास समिति मर्यादित (जिसे आगे समिति कहा गया है) के हितग्राहियों के नाम से फर्जी सदस्य बनाकर, उनके फर्जी प्रकरण तैयार कर उन्हें बेैंक में भेजे बिना भेजना बताकर बैंक द्वारा अनुदान की और मार्जिन की राशि की मांग किये बिना ही अनुदान राशि और मार्जिन राशि का चेक भेजा तथा अनुदान राशि भेजकर उस राशि को पे-आर्डर के द्वारा अन्य किसी व्यक्ति के खाते में जमा कर मार्जिन राशि की एफ0डी0आर0 बनवाकर उसे समय-सीमा से पूर्व ही तुड़वाकर रूपये प्राप्त कर अन्य बैंक में जमा किया फिर उस अन्य बैंक से उस जमा राशि के बदले रूपये प्राप्त कर इंडियन बैंक में जमा कर शेष रूपये प्राप्त करने के कार्य अवैध साधनों से कारित किये, लोक सेवक के नाते हितग्राहियों की मार्जिन मनी 39750/-रूपये और अनुदान राशि 39750/-रूपये से न्यस्त रहते हुए बेईमानी से दुर्विनियोग कर उसे अपने उपयोग में सम्परिवर्तित किया, उक्त समय, दिनांक एवं स्थान पर इंडियन बैंक के नाम के पत्र की जो कि इंडियन बैंक द्वारा तैयार नहीं किया गया और नहीं भेजा गया था, की कूटरचना चेक और मार्जिन मनी भेजने के संबंध में की तथा कार्यालय की डाक बुक में उक्त बैंक के पत्र के आधार पर चेक भेजने बाबत इंद्राज कर कूटरचित दस्तावेज की रचना की, छल के प्रयोजन से बैंक के कथित पत्र, कार्यालयीन डाक बुक की कूटरचना की तथा हितग्राहियों की सूची बनाने एवं उन्हें सदस्य बनाये जाने बाबत रसीदों की कूटरचना की और कूटरचित दस्तावेजों का उपयोग असली के रूप में प्रयोग में लाया, जबकि उसका कूटरचित होना आरोपीगण जानते थे।
2. आरोपीगण पर यह भी आरोप है कि उन्होंने उक्त दिनांक एवं समय पर या उसके लगभग मूल्यवान दस्तावेज, कार्यालय की डाक बुक को छिपाने की नीयत से नष्ट किया और इस प्रकार रिष्टि की, आरोपीगण ने उक्त दिनांक एवं समय पर या उसके लगभग छल किया और ऐसा करके इंडियन बैंक के अधिकारियों को प्रवंचित किया या बेईमानी से उत्प्रेरित किया कि वे अनुदान राशि के चेक को मनोज क्लाथ स्टोर्स के खाते में पे आर्डर के द्वारा जमा करें या मनोज क्लाथ स्टोर्स के खाते में जमा करने के लिए कोई आर्डर जारी करें जिसके अनुक्रम में इंडियन बैंक के अधिकारियों के द्वारा मनोज क्लाथ स्टोर्स के खाते में जमा करने हेतु अनुदान राशि का पे आर्डर जारी किया गया, इसके अलावा आरोपीगण ने लोक सेवक रहते हुए अपने पद का दुरूपयोग अपने स्वयं के एवं साथियों के लिए अवैध लाभ पाने के लिए और पहुंचाने के लिए किया ।
3. प्रकरण में यह तथ्य अविवादित है कि घटना के समय मृत आरोपी बालक दास कार्यपालन अधिकारी, आरोपी सलीम बक्श लिपिक एवं आरोपी गणेश ठाकरे भृत्य के पद पर जिला अंत्यावसायी सहकारी समिति रायपुर में पदस्थ थे।
4. अभियोजन का मामला संक्षेप में इस प्रकार है कि शासन की ओर से अल्प आय वर्ग के हरिजन आदिवासियों को विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत लाभ पहुंचाकर उनके जीवन स्तर को उंचा उठाने हेतु मध्यप्रदेश के प्रत्येक जिले में अंत्यावसायी सहकारी विकास समिति मर्यादित की स्थापना की गयी थी, जिसके तहत निम्न आय वर्ग को लाभ पहुंचाने के लिए स्वरोजगार हेतु बैंकों के माध्यम से ऋण दिया जाना था, जिसमें हरिजन और आदिवासी हितग्राहियों को उक्त समिति के विधिवत सदस्य बनने के बाद ऋण देने की अनुशंसा कार्यपालन अधिकारी द्वारा किये जाने पर समस्त औपचारिकताओं की पूर्ति उपरान्त बैंक द्वारा ऋण दिया जाना था । 
5. वर्ष 1985 में रायपुर शहर में उक्त समिति में पदस्थ आरोपीगण ने एक राय होकर आपराधिक षडयंत्र कर समिति के माध्यम से अवैध धन प्राप्त करने की योजना बनायी और दिनांक 01.05.1985 को 16 हितग्राहियों को समिति का सदस्य होना जाहिर करने के लिए प्रत्येक के नाम की रसीद काटकर फर्जी प्रकरण तैयार किये और उन प्रकरणों को इंडियन बैंक भेजना दर्ज किया लेकिन प्रकरण नही भेजे गये और डाक बुक गायब कर दी गयी, फर्जी चेकों के बैंक पहुंचने पर अंत्यावसायी शाखा रायपुर से फर्जी पत्र भेजकर इंडियन बैंक रायपुर के शाखा प्रबंधक को 39750/-रूपये का पे-आर्डर मनोज क्लाथ स्टोर्स के नाम बनाने का आदेश दिया गया और बैंक कर्मचारियों की मिली-भगत से मनोज क्लाथ स्टोर के खाते से राशि आरोपी मनोज जसवानी के माध्यम से आपराधिक षडयंत्रपूर्वक निकाल ली गयी, प्रकरण की विवेचना के दौरान विभिन्न दस्तावेज अंत्यावसायी सहकारी विकास समिति के कार्यालय एवं बैंक से जब्त किये गये ।
6. अन्वेषण के दौरान पाया गया कि 16 अस्तित्वहीन व्यक्तियों के नाम से फर्जी सदस्यता शुल्क जमा कर सदस्य बनाना दर्शित कर फर्जी प्रकरण तैयार कर ऋण प्राप्त कर लिया गया, बेैंक के आरोपी अधिकारियों के द्वारा भी बिना ऋण के औचित्य एवं हितग्राहियों की जांच किये बिना और उनके खाते खोले बिना ही उनके नाम से प्राप्त अनुदान राशि को पे-आर्डर के जरिये मनोज क्लाथ स्टोर के खाते में जमा कराने एवं मार्जिन मनी का एफ.डी.आर. बना दिया, फर्जी ऋण आवेदनों में विभिन्न व्यवसायों के लिए ऋण का जिक्र है, परंतु उनकी अनुदान राशि कपडा विक्रेता मनोज जसवानी के माध्यम से आहरित कर ली गयी, इस प्रकार सभी आरोपीगण द्वारा आपराधिक षडयंत्र कर एक राय होकर फर्जी दस्तावेज तैयार करते हुए धोखाधडी की गयी और फर्जी ऋण प्रकरण तैयार कर, उन्हें बैंक भेजना बताकर अन्य व्यवसाय वाले व्यक्ति के नाम पे-आर्डर बनवाकर उसके नाम राशि जमा कर दी गयी ।
7. अन्वेषण के दौरान देहाती नालिसी दर्ज की गयी, जिसे ले जाकर पुलिस थाना आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो भोपाल में दिये जाने पर उक्त के आधार पर आरोपीगण के विरूध्द प्रथम सूचना पत्र दर्ज किया गया, पटवारी से घटनास्थल का नजरी-नक्शा तैयार करवाया गया, आरोपीगण के माध्यम से दस्तावेज जप्त किये गये तथा अन्य कार्यवाहियां की गयी, विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन लेखबद्ध किये गये, आरोपीगण को गिरफ्तार किया गया, शासकीय सेवक आरोपीगण के विरूध्द विधिवत् अभियोजन स्वीकृति प्राप्त की गयी, तदोपरांत संपूर्ण विवेचना पश्चात अभियोग-पत्र इस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
8. आरोपी बालक दास, महेश राव, सलीम बक्श, गणेश ठाकरे को धारा 120-बी, 409, 420, 467, 468, 471, 477 तथा भ्रश्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा- 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) एवं आरोपी मनोज व अरूण के विरूद्ध धारा 120-बी, 409, 420, 467, 468, 471, 477 के तहत आरोप विरचित कर पढकर सुनाये, समझाये जाने पर आरोपीगण ने अपराध करना अस्वीकार किया, विचारण के दौरान आरोपी बालक दास की मृत्यु होने के कारण उसके विरूद्ध प्रकरण उपशमित किया गया था तथा विचारण का दावा किया, अभियोजन की ओर से कुल तेईस साक्षियों का कथन करवाया गया है, विचारण उपरांत धारा-313 दण्ड प्रक्रिया संहिता के तहत अभिलिखित किये गये अभियुक्त कथन में आरोपीगण ने स्वयं को निर्दोश होना तथा झूठा फंसाया जाना बताया है।
9. इस प्रकरण में अवधारणीय प्रश्‍न निम्नानुसार है:-
(1) क्या आरोपीगण ने दिनंाक वर्ष 1995 में या उसके लगभग परस्पर सहमति द्वारा एकराय होकर अंत्यावसायी सहकारी विकास समिति मर्यादित (जिसे आगे समिति कहा गया है) के हितग्राहियों के नाम से फर्जी सदस्य बनाकर, उनके फर्जी प्रकरण तैयार कर, फर्जी रसीद काटकर उन्हें बेैंक में भेजे बिना भेजना बताकर बैंक के द्वारा अनुदान की और मार्जिन की राशि की मांग किये बिना ही अनुदान राशि और मार्जिन राशि का चेक भेजा?
(2) क्या आरोपीगण ने अनुदान राशि भेजकर उस राशि को पे-आर्डर बनवाकर अन्य किसी व्यक्ति के खाते में जमा कर मार्जिन राशि की एफ0डी0आर0 बनवाकर प्राप्त करने के कार्य अवैध साधनों से कारित किये?
(3) क्या आरोपीगण ने लोक सेवक के नाते हितग्राहियों की मार्जिन मनी 39750/-रूपये और अनुदान राशि 39750/-रूपये से न्यस्त रहते हुए बेईमानी से दुर्विनियोग कर उसे अपने उपयोग में सम्परिवर्तित किया?
(4) क्या आरोपीगण ने उक्त समय, दिनांक एवं स्थान पर इंडियन बैंक के नाम के पत्र की जो कि इंडियन बैंक द्वारा तैयार नहीं किया गया और न हीं भेजा गया था, की कूटरचना चेक और मार्जिन मनी भेजने के संबंध में की तथा कार्यालय की डाक बुक में उक्त बैंक के पत्र के आधार पर चेक भेजने बाबत इंद्राज कर कूटरचित दस्तावेज की रचना की,
(5) क्या आरोपीगण ने उक्त दिनांक समय एवं स्थान पर छल के प्रयोजन से बैंक के कथित पत्र, कार्यालयीन डाक बुक की कूटरचना की तथा हितग्राहियों की सूची बनाने एवं उन्हें सदस्य बनाये जाने बाबत रसीदों की कूटरचना की और कूटरचित दस्तावेजों का उपयोग असली के रूप में प्रयोग में लाया?
(6) क्या आरोपीगण ने उक्त दिनांक एवं समय पर या उसके लगभग मूल्यवान दस्तावेज, कार्यालय की डाक बुक को छिपाने की नीयत से नष्ट किया?
(7) क्या आरोपीगण ने उक्त दिनांक एवं समय पर इंडियन बैंक के अधिकारियों को प्रवंचित किया या बेईमानी से उत्प्रेरित किया कि वे अनुदान राशि के चेक को मनोज क्लाथ स्टोर्स के खाते में पे आर्डर के द्वारा जमा करें या मनोज क्लाथ स्टोर्स के खाते में जमा करने के लिए कोई आर्डर जारी करें जिसके अनुक्रम में इंडियन बैंक के अधिकारियों के द्वारा मनोज क्लाथ स्टोर्स के खाते में जमा करने हेतु अनुदान राशि का पे आर्डर जारी कर छल किया गया?
(8) क्या आरोपी महेश, सलीम बक्श, एवं गणेश ने जिला अंत्यावसायी समिति में क्रमशः सहायक कार्यपालन अधिकारी, लिपिक एवं भृत्य के पद पर पदस्थ होते हुए अपने लोक सेवक के पद का दुरूपयोग कर अपने स्वयं के एवं साथियों के लिए अवैध लाभ पाने के लिए और पहुंचाने के लिए किया? 
// अवधारणीय प्रश्न पर निष्‍कर्ष एवं निष्कर्ष के कारण//
10. अवधारणीय प्रश्न क्रमांक-(1) से (8) पर निष्कर्ष एवं निष्कर्ष के कारण:-- सभी अवधारणीय प्रश्न एक दूसरे से संबंधित होने के कारण उन पर एक साथ विचार किया जा रहा है । डिप्टी कलेक्टर शंकरलाल डगला अ0सा015 का कथन है कि दिनांक 08.08.89 को वह उप जिलाधीश एवं प्रभारी जिला अंत्यावसायी समिति रायपुर के पद पर था, नगर निगम से गरीबों की सूची आती थी, जिसमें लोन फार्म तैयार कर बैंक भेजा जाता था, जांच पश्चात बैंक लोन देने संबंधी कार्यवाही करता था, उनके कार्यालय से आवेदन भेजने पर राशि लेनदेन की कार्यवाही बैंक एवं संबंधित पक्षकार के मध्य होती थी, बैंक द्वारा लोन देने की सूचना ही अंत में कार्यालय को भेजी जाती थी, अनुदान राशि के रूप में लोन दिये जाने वाले व्यक्ति को पचास प्रतिशत राशि कार्यालय द्वारा दी जाती थी, यू0डी0पाटनी अ0सा08 का कथन है कि बैंक अधिकारी से पूछने पर यह जानकारी मिली कि अंत्यावसायी समिति से मिले आदेशानुसार वहां राशि ट्रांसफर की गयी थी, अंत्यावसायी समिति के द्वारा भेजी गयी मार्जिन मनी बैंक में ही थी, हितग्राहियों के नाम से अंत्यावसायी समिति द्वारा ऋण के एवज में अनुदान राशि एवं मार्जिन मनी भेजी जाती थी, मार्जिन मनी की राशि का कुल ब्याज हितग्राहियों के नाम से उनके खाते में संयोजित होता था, योजना के संबंध में उक्त साक्षियों के कथन अखंडित रहे हैं ।  
11. लक्ष्मीनारायण मालवीय असा012 का कथन है कि वर्तमान प्रकरण में तत्कालीन प्रबंध संचालक नन्हंे सिंह द्वारा अंत्यावसायी योजना का स्वरूप निर्धारण किया था । समिति के माध्यम से बैंक से ऋण प्रदान करने की योजना बनायी गयी चूंकि योजना शासन द्वारा जारी की गयी है इसलिए इस संबंध में शासन द्वारा विभिन्न परिपत्र, निर्देश पत्र जारी किये गये, जिसके अनुसार योजना का स्वरूप, कार्यक्षेत्र निर्धारण पत्र दिनांक 31.03.84 प्र0सी-1, निर्देश दिनांक 07.04.84 प्र0सी-2, योजना बाबत अर्ध शासकीय पत्र दिनांक 24.04.84 प्र0सी-3, समितियों में कार्यरत विकास अधिकारी, कार्यपालन अधिकारी, सहायक कार्यपालन अधिकारी, वरिष्ठ निरीक्षक का कार्य विभाजन आदेश दिनांक 18.01.82 प्र0पी04 भृत्य, निम्न श्रेणी लिपिक, उच्च श्रेणी लिपिक का कार्य विभाजन आदेश प्र0पी05 है ।
12. उक्त साक्षियों के कथनों एवं दस्तावेजों से यह प्रमाणित होता है कि शासन द्वारा 4500/-रूपये वार्षिक से अधिक आय न होने वाले अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति के सदस्यों को उनके उत्थान हेतु ऋण दिये जाने की योजना बनायी गयी, जिसमें अनुदान राशि एवं मार्जिन मनी भी दिये जाने की व्यवस्था थी, उक्त योजना के अनुसार उसके सदस्य/हितग्राही बनने वाले व्यक्तियों को ही रूपये 12,000/-तक ऋण विभिन्न कायों के लिए दिये जाने का प्रावधान था, जिसके अनुसार व्यवसाय/व्यापार के लिए विशेष दुर्बल समूह को अनुदान राशि 33 1/3 प्रतिशत मार्जिन मनी 20ः एवं अन्य को अनुदान राशि 25ः दिये जाने का प्रावधान था।
13. समिति द्वारा योजना के अनुसार सदस्य बनाकर प्रकरण दो प्रतियों में तैयार कर एक प्रति बैंक को भेजने, बैंक द्वारा जांच कर अनुदान राशि एवं मार्जिन मनी की मांग समिति से करने पर समिति द्वारा अनुदान राशि एवं मार्जिन मनी का चैक बैंक को भेजे जाने, बैंक द्वारा उक्त अनुदान राशि के प्राप्त होने पर उसे ऋणी के खाते में जमा करने तथा मार्जिन मनी का तीन वर्ष के लिए सावधि जमा बनाकर समिति को वापस भेजने का प्रावधान किया गया था तथा उक्त मार्जिन मनी की राशि की प्रत्येक 12 माह में गणना करने और तीन वर्ष पश्चात मार्जिन मनी की जमा राशि को 4 प्रतिशत के साथ शासन को वापस करने तथा शेष ब्याज की राशि प्रतिशत सदस्य/हितग्राही के खाते में जमा किये जाने का प्रावधान किया गया था, हितग्राही को 36 किश्तों में ऋण राशि अदा करना था, उक्त योजना में निर्धारित शर्तो के अनुसार अधिकारियों एवं कर्मचारियों के उक्त अधिकार एवं दायित्व के साथ मध्यप्रदेश राज्य में लागू की गयी।
14. जिला निर्वाचन शाखा रायपुर के स्टोर कीपर जीएस यदु अ0सा01 का कथन है कि आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो वाले कुछ वोटर लिस्ट जब्ती पत्र प्र0पी01 के माध्यम से जब्त किये थे, बाबूभाई अ0सा07 का कथन है कि वह पांच वर्ष से स्टेशनरोड रायपुर का पार्षद है वहां के सभी लोगों को जानता है, वार्ड में परसराम वल्द आशाराम, मानसिंह वल्य जयनारायण, चिंतामणी वल्द रघुवीर नामक व्यक्ति रहते हैं या नहीं याद नहीं है, सूर्यकांत अ0सा010 का कथन है कि वह जन्म से पुरानी बस्ती रायपुर में निवास करता है, 6-7 साल पहले डीएसपी साहब ने कुछ व्यक्तियों के बारे में उससे नाम लेकर पूछा था, कुछ लोगों ने शिकायत की थी कि फर्जी नाम से बैंक लोन दिया जा रहा है, खुशाल अ0सा019 का कथन है कि वह जोरापारा में चालीस वर्ष से रहा है, वहां लक्ष्मीकांत पिता हेमराज, अमर पिता परसुराम, धनीराम पिता पूनाराम, रामजी पिता बलीराम, बसीमा पिता मनीराम गोंड, बलदाउ पिता राजेन्द्र नामक व्यक्ति को नहीं जानता न ही उस नाम का कोई व्यक्ति 1985 या उसके बाद निवास किया । बाबूभाई ने अपने प्रतिपरीक्षण में इस कथन से इंकार किया है कि झूठी गवाही दे रहा है, खुशाल ने प्रतिपरीक्षण में बताया है कि किरायेदार लोग आते जाते रहेते हैं सूर्य कांत ने प्रतिपरीक्षण में इंकार किया है कि वह थाने में बैठता है और वहां जाकर गवाहीं देता है, बाबूभाई, सूर्यकांत एवं खुशाल के कथन अखंडित रहे हैं ।
15. निरीक्षक जेपी द्विवेदी ने प्रतिपरीक्षण में बताया है कि उसने हितग्राहियों के बारे में उनके बताये पते पर जाकर तलाश किया परंतु कोई हितग्राही उस पते पर नहीं मिला पते में जिन हितग्राहियों का पता लिखा था उन मोहल्लों में भी जा जाकर उसने पता किया, परंतु इस कथन से इंकार किया है कि उसने हितग्राहियों का पता नहीं किया । जी0एस0यदु के कथनों से उसके द्वारा वोटर लिस्ट ए0सी0बी0 वालों को देना बताया है, उक्त साक्षियों के कथनों एवं वोटर लिस्ट से यह प्रमाणित हुआ है कि जदमी बाई, रामेश्वर, रतन, लक्ष्मी, संतोष, बलदाउ, पीतांबर, मानसिंह, भैयालाल, चिंतामणी, घसनिन बाई, छबिलाल, सुखराम, आनंद राम, यशवंतराव, परसराम नामक व्यक्ति प्रकरण में दिये गये पते पर घटना के समय निवास नहीं करते थे।
16. अपर कलेक्टर नवल सिंह अ0सा09 का कथन है कि वह 1989 में डिप्टी कलेक्टर एवं कार्यपालन अधिकारी जिला अंत्यावसायी समिति में पदस्थ था, उनके कार्यालय से खाता क्रमांक 5575 दिनांक 1.10.84 से 15.01.86 तक के इंद्राज का स्टेशनरी स्टाक रजिस्टर 14.10.82 से 22.2.84, स्टेशनरी रजिस्टर 1985-86, उक्त रजिस्टरों में सील का उल्लेख है, काउंटर चेक नंबर 032750, केशबुक दिनांक 1.7.84 से 30.6.85 एवं 1.7.85 से 30.6.86 तक जब्त कर, जब्ती पत्र प्रपी-2 बनाये थे, उक्त जब्ती का समर्थन नामदेव अ0सा02 द्वारा भी किया गया है, निरीक्षक आर0डी0सिंह अ0सा0 13 द्वारा नवल सिंह से जब्ती पत्र प्रपी-2 के माध्यम से उक्त दस्तावेज जब्त होना बताया है जिसके संबंध में उक्त साक्षियों के कथन अखंडित रहे हैं, जिससे यह प्रमाणित पाया जाता है कि नवल सिंह से गवाहों के समक्ष निरीक्षक रामद्वार सिंह ने काउंटर चेक, दो स्टेशनरी स्टाक रजिस्टर, खाते की प्रति, दो केशबुक जब्त किया था।
17. अपर कलेक्टर नवल सिंह अ0सा09 का यह भी कथन है कि दिनांक 17.7.89 को पुलिस वाले उसके पेश करने पर जब्ती पत्र प्रपी010 के माध्यम से 16 हितग्राहियों का आवेदन, जिला सहकारी केंद्रीय बेंक की जमा पर्ची दिनांक 11.9.84 से 30.01.85, सदस्यता रसीद बुक क्रमांक 19 एवं 20, बैंक की जमा पर्ची, चेक काउंटर, जब्त किये थे, निरीक्षक आरडी सिंह ने उक्त दस्तावेज जब्ती पत्र प्रपी010 के माध्यम से नवल सिंह से जब्त करना बताया है, नवल सिंह ने प्रतिपरीक्षण में बताया है कि उसने जब्ती पत्र देखकर दस्तावेजों के संबंध में बताया है, जब्ती पत्र वर्ष 1989 में बनाया है, साक्षी का कथन 2001 में हुआ है परंतु जब्ती के संबंध में साक्षियों के कथन अखंडित रहे हैं जिससे यह प्रमाणित पाया जाता है कि एनएस मडावी से निरीक्षक ने 16 आवेदन पत्र, जमा पर्ची, दो सदस्यता रसीद बुक, काउंटर चेक, जब्त किया था ।
18. जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित रायपुर के नगर शाखा प्रबंधक शिव कुमार शर्मा अ0सा06 का कथन है कि जिला अंत्यावसायी को-आपरेटिव सोसाइटी का खाता क्रमांक 5575 उनके बैंक में है, जिसका लेजर प्र0पी06ए है, चेक क्रमांक 052897 प्र0पी07 एवं चेक क्रमांक 062160 पी08 क्रमशः रूपये 42,763/- एवं रूपये 39750/- जिला अंत्यावसायी को-आपरेटिव सोसाइटी द्वारा इंडियन बैंक रायपुर के नाम से जारी किया गया था, उक्त साक्षी का कथन प्रतिपरीक्षण में अखंडित रहा है, चेक क्रमांक 052897 रूपये 42,763/-मार्जिन मनी से संबंधित है तथा चेक क्रमांक 062160 रूपये 39750/-अनुदान राशि से संबंधित है, जिसका उल्लेख उक्त चेकों में किया गया है, निरीक्षक जेपी द्विवेदी का कथन है कि उसने धारा 91 दप्रस का नोटिस शाखा प्रबंधक केंद्रीय सहकारी बैंक को देकर दस्तावेज मांगा था, इस तरह शिवकुमार शर्मा के कथन से यह प्रमाणित पाया जाता है कि जिला अंत्यावसायी को-आपरेटिव सोसाइटी द्वारा उक्त दोनों चेक जारी किये गये थे जो इंडियन बैंक के माध्यम से कोआपरेटिव सोसाइटी में क्लीयरिंग हेतु आये थे और क्लीयरिंग के माध्यम से रूपये 42,763/- एवं रूपये 39750/- को-आपरेटिव सोसाइटी के जिला को आपरेटिव सोसाइटी के खाता क्रमांक 5575 से इंडियन बैंक को भेजे गये थे।
19. निरीक्षक जेपी द्विवेदी असा016 का कथन है कि उसने धारा 91 दप्रस का नोटिस प्र0पी024 शाखा प्रबंधक इंडियन बैंक रायपुर को दिया था, हरिशंकर अ0सा05 का कथन है कि पुलिस वाले उसके सामने इंडियन बैक के अधिकारी से कुछ दस्तावेज एवं कागजात जब्ती पत्र प्रपी05 के माध्यम से जब्त किये थे, निरीक्षक रामद्वार सिंह अ0सा013 का कथन है कि जब्ती पत्र प्रपी05 के माध्यम से उसने एच.नारायण के पेश करने पर शत्रुघन एवं हरिशंकर के समक्ष पुनर्निवेश जमा योजना राशि का पत्र दिनांक 23.2.85, कलेक्टर अंत्यावसायी का मूल पत्र क्रमांक 555 दिनांक 8.2.85 को जब्त किया था उक्त जब्ती के संबंधमें उक्त साक्षियों के कथन अखंडित रहे हैं, उक्त पत्र क्रमांक 555 आर्टिकल आई के द्वारा चेक क्रमांक 062160 रूपये 39750/- का बेंक पे आर्डर मनोज क्लाथ स्टोर के नाम से बनाने का निर्देश कार्यालय कलेक्टर अंत्यावसायी द्वारा शाखा प्रबंधक इंडियन बैंक रायपुर को दिये जाने का उल्लेख है जिससे यह प्रमाणित होता है कि समिति द्वारा दिये गये निर्देश के आधार पर इंडियन बैंक द्वारा मनोज क्लाथ स्टोर के नाम से 39750/- का बेंक पे आर्डर बनाया गया एवं अन्य राशि का एफ डी बनाया गया ।
20. शत्रुघन अ0सा03 का कथन है कि जब्ती पत्र प्रपी03 के माध्यम से पुलिस वाले दस्तावेज जब्त किये थे, चंद्रकुमार बंजारे का कथन है कि पुलिस वाले अनूप टोप्पों से उसके सामने जब्ती पत्र प्रपी03 के माध्यम से दस्तावेज जब्त किये थे उक्त जब्ती के संबंध में उक्त साक्षियों के कथन अखंडित रहें है जिससे प्रमाणित पाया जाता है कि निरीक्षक पीएन शुक्ला ने अनूप से गवाह शत्रुघन एवं पी0बंजारे के समक्ष इंडियन बैंक का करंेट लेजर जिसके पृष्ठ क्र0197, 483 एवं 486 में मनोज क्लाथ स्टोर के नाम क्लीरिंग पश्चात क्रमशः रूपये 39750/-, 57000/- एवं 27250/- जमा किये जाने का लेख है । एच0नारायणयन अ0सा020 सीनि0मैनेजर इंडियन बैंक का कथन है कि एस0रामास्वामी एवं भट्टाचार्य को जानता है पत्र प्र0पी018 में उनके हस्ताक्षर हैं, विजय कुमार नायर अ0सा021 का कथन है कि वह इंडियन बैंक रायपुर में वर्ष 1989 से 1993 तक शाखा प्रबंधक था, दिनांक 9.9.91 को राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो द्वारा उससे उनके बैंक का एक इंटर्नल क्रेडिट वाउचर दिनांक 9.2. 85 रूपये 39750/- प्र0पी026, मनोज क्लाथ स्टोर के नाम का पे आर्डर रूपये 39750/- प्र0पी014 को जब्ती पत्र प्र0पी027 के माध्यम से जब्त किया था, उक्त संबंध में उक्त साक्षियों के कथन अखंडित रहे हैं, प्रकरण में आये उक्त साक्ष्य से यह प्रमाणित पाया जाता है कि जिला अंत्यावसायी समिति द्वारा इंडियन बैंक को चेक क्रमांक 062160 रूपये 39750/- का भेजा और उसे पत्र आर्टिकल आई के माध्यम से मनोज क्लाथ स्टोर के नाम से पे आर्डर बनाने का निर्देश दिया जिसके आधार पर जिला सहकारी बैंक में उक्त चेक को भेजकर उसके आहरित होने के बाद वह राशि इंडियन बैंक में प्राप्त हुई और इंडियन बैंक द्वारा उक्त राशि का पे आर्डर प्र0पी014 मनोज क्लाथ स्टोर के नाम से बनाया गया और मनोज क्लाथ स्टोर के खाते में उक्त राशि जमा की गयी ।
21. शंकर लाल डगला अ0सा015 का यह भी कथन है कि प्रस्तुत प्रकरण में उसने पाया था कि प्रस्तुत प्रकरण में उसके कार्यकाल में हितग्राहियों के पैसे की हेराफेरी हुई थी, बैंक वालों ने जानकारी दी थी कि गलत व्यक्ति को लोन दिया गया है, उसके पास के दस्तावेजों एवं जानकारी के आधार पर शिकायत प्र0पी018 एवं प्रथम सूचना पत्र प्र0पी019 आर्थिक  अपराध अन्वेषण वालों को किया था, पुलिस ने उससे प्र0पी04 के माध्यम से आर्टिकल ए से जे तक के दस्तावेज जब्त किये थे, जिसमें इंडियन बैंक को चेक नंबर उल्लेख कर भेजा गया पत्र, चेक 39750/-, 16 हित ग्राहियों की सूची, कार्यपालन अधिकारी द्वारा इंडियन बैंक को अनुदान राशि बाबत लिखा गया पत्र है, हितग्राहियों का जो पता दिया गया था वहां कोई हितग्राही नहीं मिले थे अनुदान राशि का भुगतान किया जाता है, मार्जिन मनी बैंक में रह जाती है ।
22. शंकरलाल का यह भी कथन है कि घटना के समय आरोपी बालक दास कार्यपालन अधिकारी, एमके बाघमारे सहायक कार्यपालन अधिकारी, एसबी शेख लिपिक, अरूण कुमार ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी में टाइपिस्ट के पद पर थे, बैंक वालों ने हितग्राहियों को राशि का भुगतान नहीं किया जिससे उस राशि का गबन होना वह समझता है, बालक दास ने बैंक को पत्र लिखकर शासकीय राशि का मनोज क्लाथ स्टोर के नाम से चेक बनाने का निर्देश दिया, एसबी शेख द्वारा गलत प्रकरण बैंक भेजे एवं आरोपी गणेश ठाकेरे द्वारा गलत प्रकरणों को बैंक भेजने की रसीद प्राप्त की, आरोपी बालकदास कार्यपालन अधिकारी थे, इसलिए बैंक से केश निकालना, पैसा भेजना उनका कर्तव्य था, आरोपी शेख लिपिक होने के कारण प्रकरणों को प्राप्त करना बैंकों को भेजना आदि उसका कर्तव्य था एवं चपरासी ठाकरे का कार्य जितने प्रकरण प्राप्त होते हैं उन्हें बेंक में जमा करने का था, साक्षी चंद्रकुमार बंजारे एवं निरीक्षक आरडी सिंह ने कथन किया है कि एसएल डगला से निरीक्षण सिंह द्वारा जब्ती पत्र प्रपी04 के माध्यम से इंडियन बैंक का पत्र, हितग्राहयों के नाम लिखे आवेदन, अनुदान स्वीकृति आदेश जब्त किया गया था ।
23. शंकरलाल डगला ने अपने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि वह यह भी नहीं बता सकता कि मनोज क्लाथ स्टोर का स्वामी आरोपी मनोज है, प्रथम सूचना पत्र में ठाकरे का नाम नहीं है तथा उसने दस्तावेज की जांच नहीं की परंतु इस कथन से इंकार किया है कि उसने झूठी कार्यवाही की है, संबंधित बैंक द्वारा जिन हितग्राहियों को ऋण दिया जाता है उसकी मार्जिन मनी एवं अनुदान राशि की मांग करती है, हरिशंकर ने अपने प्रतिपरीक्षण में दस्तावेजों को नहीं देखना व पढना बताया परंतु डगला से दस्तावेज जब्त होना बताया है, उक्त साक्षियों के कथनों से दस्तावेजों की जब्ती संदेह से परे प्रमाणित हुई है जिसमें चेकों का विवरण, सदस्य/हितग्राहियों के नाम,ऋण राशि एवं ऋण के कारण का विस्तृत उल्लेख है, जिस सदस्य/हितग्राही को जिस कार्य के लिए जितनी राशि का ऋण स्वीकृत किया गया था, उसको प्रमाणित करता है।
24. यू0डी0 पाटनी का यह भी कथन है कि सन 1987 से 1990 तक आदिम जाति कल्याण विभाग में जिला संयोजक के पद पर था, कलेक्टर साहब ने उसे स्टेप अप के प्रकरणों में गडबड़ी की जांच के लिए आदेशित किया था जिसकी जांच डगला साहब कर रहे थे, आदेश मिलने पर उसने बैंक जाकर जांच कर, पाया था कि बैंक को हितग्राहियों के ऋण के विरूद्ध अनुदान राशि अंत्यावसायी निगम द्वारा भेजी गयी थी, जिसे हितग्राहियों के खाते में जमा न कर मनोज क्लाथ स्टोर रायपुर के नाम से टांसफर किया गया था, उसने जांच कर सभी प्रकरण जिलाध्यक्ष को भेजा था, उक्त साक्षी ने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि डगला साहब ने उसे जांच रिपोर्ट नहीं दी थी और उसने उसे पुलिस को नहीं दिया, शेष के संबंध में किये गये इस साक्षी के कथन अखंडित रहे हैं ।
25. निरीक्षक सुधीर केलकर अ0सा022 का कथन है कि समिति के प्रभारी अधिकारी का पत्र प्राप्त होने पर उसने प्रथम सूचना पत्र क्रमांक 03/89 प्र0पी028 दर्ज किया था, निरीक्षक जे0पी0द्विवेदी अ0सा016 का कथन है कि उसने प्रकरण में एस0डगला का पूरा कथन लिया है, गवाह सूर्यकांत, भैयालाल, खुशाल, के0सुब्रमणियम, शिव कुमार शर्मा, बी0बी0गांधी, जी0एस0यदु, आर0के0गुप्ता, यू0डी0पाटनी का कथन लिया था । रमेश गुप्ता ब0सा017 के द्वारा अभियोजन प्रकरण का समर्थन नहीं किया गया है, डी0एस0पी0 के.के.अग्रवाल अ0सा014 का कथन है कि उसके द्वारा आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था एवं अभियोग पत्र प्रस्तुत किया था ।
26. लक्ष्मीनारायण मालवीय अ0सा012 का कथन है कि वह म0प्र0राज्य सहकारी अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम भोपाल में सहायक ग्रेड-1 के पद पर है, आरोपी महेश राव, आरोपी सलीम बख्श एवं गणेश ठाकरे के विरूद्ध अभियोजन स्वीकृति हेतु तत्कालीन प्रबंध संचालक को प्राप्त हुआ था, तब तत्का0प्रबंध संचालक रामसजीवन द्वारा अभियोजन स्वीकृति आदेश प्र0पी017 दिया गया था, इस साक्षी ने अपने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि वह नहीं बता सकता कि किन-किन दस्तावेजों को देखकर अभियोजन स्वीकृति दी गयी थी, अभियोजन स्वीकृति आदेश प्र0पी017 के अवलोकन से दर्शित होता है कि उसमें रामसजीवन द्वारा विस्तृत रूप से प्रकरण के संबंध मे विचार करते हुए अभियोजन स्वीकृति दी है, उक्त आदेश में अभियोग पत्र एवं उससे संबंधित दस्तावेजों का विस्तृत रूप से उल्लेख किया गया है, इसलिए उनके साक्ष्य से यह प्रमाणित पाया जाता है कि अभियोजन स्वीकृति आदेश प्र0पी017 विधि अनुसार जारी करते हुए आरोपी महेश राव, आरोपी सलीम बख्श एवं गणेश ठाकरे के विरूद्ध अभियोजन स्वीकृति प्रदान किये थे ।
27. अरूण कुमार मिश्रा अ0सा023 का कथन है कि वह विधि एवं विधायी कार्य विभाग मंत्रालय भोपाल में सहायक ग्रेड-1 के पद पर है, राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो द्वारा अपराध क्रमांक 03/89 में आरोपी बालक दास के विरूद्ध अभियोजन स्वीकृति चाही गयी थी, जिसके आधार पर तत्कालीन अतिरिक्त सचिव द्वारा अभियोजन स्वीकृति आदेश प्र0पी029 दिया गया था, प्रकरण में आरोपी बालक दास की मृत्यु हो गयी है, परंतु अभियोजन स्वीकृति आदेश प्र0पी029 के अवलोकन से दर्शित होता है कि उसमें विस्तृत रूप से प्रकरण का उल्लेख करते हुए अभियोजन स्वीकृति दी गयी है, जो विधि अनुसार होना दर्शित होती है ।
28. डिप्टी कलेक्टर नवल सिंह अ0सा09 के कथनों से यह प्रमाणित हुआ है कि उससे जब्ती पत्र प्र0पी010 के माध्यम से 16 हितग्राहियों के आवेदन, काउंटर चेक, जमा पर्ची, सदस्यता शुल्क की कार्बन रसीद जब्त की गयी थी, उक्त जब्ती पत्र के माध्यम से जब्त 16 हितग्राहियों के आवेदन क्रमांक 1881 दिनांक 17.01.85, 1886 से 1892 एवं 1894 दिनांक 21.01.85, क्रमंाक 1950 से 1956 दिनांक 05.02.85 के अवलोकन से दर्शित होता है कि उसमें प्रत्येक हितग्राही के लिए आवेदन पत्र, मय फोटो आवेदन पत्र, अनुबंध पत्र संलग्न है, परंतु किसी आवेदन में सदस्य/हितग्राही का फोटो नहीं है तथा सारे आवेदन, अनुबंध पत्र आधे अधूरे भरे हुए हैं और तीनों दस्तावेज अपूर्ण हैं।
29. सदस्यता शुल्क की जो कार्बन रसीद जब्त की गयी है, जो वर्तमान प्रकरण से संबंधित रसीद क्रमांक 1881 दिनांक 17.01.85, 1886 से 1892 एवं 1894 दिनांक 21.01.85, क्रमंाक 1950 से 1956 दिनांक 05.02.85 तक है, जिनके क्रमांकों का उल्लेख आवेदन पत्रों एवं अनुबंध पत्र में दर्ज है, उक्त रसीद में 10/-रूपये सदस्यता शुल्क एवं 50 पैसा प्रवेश शुल्क के रूप में काटा गया है, उक्त आवेदन पत्र के संबंध में ही उक्त 10 रूपये पचास पैसे की रसीद काटी गयी है, प्रकरण में जब्ती पत्र प्र0पी05ए के माध्यम से निरीक्षक जेपी द्विवेदी ने आरोपी सलीम से समिति की उपस्थिति पंजी मार्च 83 से दिसंबर 85 तक की जब्त की है जिसमें आरोपी महेशराव एवं आरोपी सलीम के वैसे ही हस्ताक्षर हैं, जैसे कि रसीदों में हस्ताक्षर हैं इसलिए धारा 73 साक्ष्य अधिनियम में दिये गये प्रावधान अनुसार उक्त दोनों हस्ताक्षरों का मिलान करने पर वे एक समान होना पाये जाते हैं, इसलिए रसीद क्रमांक 1881, 1886 से 1892, 1894, 1950 से 1956 में आरोपी महेशराव एवं आरोपी सलीम के हस्ताक्षर होना पाया जाता है।
30. कलेक्टर अंत्यावसायी शाखा रायपुर के पत्र क्रमांक 555 दिनांक 08.02. 1985 द्वारा शाखा प्रबंधक इंडियन बैंक रायपुर को भेजना बताया है परंतु जावक रजिस्टर में पत्र क्रमांक 555 दिनांक 14.02.85 को शा0प्रबंधक स्टेट बेंक को भेजे जाने का उल्लेख है, जबकि भृत्य गणेश की जिम्मेदारी उक्त पत्र को बैंक में ले जाने की थी, परंतु आरोपी गणेश की अन्य आरोपियों के साथ अपराध में सहभागिता को प्रमाणित करती है ।
31. आवेदन पत्रों, अनंुबंध पत्र एवं शंकर लाल डगला से जब्त दस्तावेज आर्टिकल ए से सी के अवलोकन से दर्शित होता है कि फर्जी व्यक्ति जदमी बाई, रामेश्वर, रतन, लक्ष्मी, संतोष, बलदाउ, पीतांबर, मानसिंह, भैयालाल, चिंतामणी, घसनिन बाई, छबिलाल, सुखराम, आनंद राम, यशवंतराव, परसराम का आधा अधूरे दस्तावेज तैयार किये और उनको जीवित व्यक्ति बताते हुए, बिना ऋण स्वीकृत किये, पृथक-पृथक रूपये 39750/-के ऋण स्वीकृत किये गये और 39750/-रूपये अनुदान राशि, मार्जिन मनी की राशि नियत की गयी, जिसका चैक प्र0पी08 एवं पी015 के द्वारा इंडियन बैंक भेजा गया तथा बैंक द्वारा मार्जिन मनी 39750/-रूपये का पुनर्निवेश योजना का प्रमाण पत्र प्र0पी013 बनाया गया तथा उसकी राशि प्राप्त कर चेक प्र0पी07 रूपये 42763/-का इंडियन बैंक भेजकर पुनर्निवेश योजना रसीद प्र0पी026 तैयार करवायी गयी ।
32. आर्टिकल ए से जे से यह भी दर्शित होता है कि उसमें क्रमांक 10 एवं 16 में वर्णित चिंताराम एवं परसराम का ही रेडिमेड एवं कपडे के व्यवसाय का उल्लेख है, शेष व्यक्ति का अलग-अलग कार्य किये जाने का उल्लेख है परंतु समिति के कार्यपालन अधिकारी द्वारा अनुदान की राशि 39750/-रूपये का पे आर्डर मनोज क्लाथ स्टोर के नाम से बनवाने के संबंध में पत्र लिखा गया और उक्त आधार पर कपडों के संबंध में उक्त पे आर्डर बनवा दिया गया, जबकि अनुदान की राशि का पे आर्डर नहीं बनाया जा सकता क्योंकि वह राशि हितग्राही के खाते में जमा होती है, हितग्राही उनके दिये गये पते पर थे ही नहीं तथा फर्जी व्यक्तियों के नाम से आवेदन पत्र, रसीद काटी गयी और उसमे ंआरोपी महेश राव एवं सलीम बक्श द्वारा हस्ताक्षर किये गये, आर्टिकल बी, ई, एच में आरोपी महेशराव के हस्ताक्षर हैं तथा पत्र आर्टिकल ए, सी, एफ में टाइपिंग से शेख लिखा है, आरोपी सलीम बक्श शेख घटना के समय समिति में लिपिक था और टाइप करने वाले का नाम पत्र में लिखा जाता है, उक्त आर्टिकल में शेख लिखा जाना यही प्रमाणित करता है कि आरोपी सलीम शेख द्वारा उक्त पत्रों को तैयार किया गया, इस तरह उक्त आर्टिकल ए से एफ तक के फर्जी दस्तावेजों को तैयार कर उपरोक्तानुसार उसमें आरोपी महेशराव एवं सलीम द्वारा अवैध कार्य किया गया। बैंक को ऋण प्रकरण भेजे बिना, जांच उपरान्त अनुदान एवं मार्जिन राशि समिति से बैंक द्वारा मांगे बिना भी उसे भेजा जाना प्रमाणित हुआ है, उक्त पे आर्डर की राशि मनोज क्लाथ स्टोर के इलाहाबाद बैंक के खाते में जमा की गयी और राशि आहरित कर लिया गया, तथा डाक बुक के माध्यम से भृत्य गणेश ठाकरे द्वारा पत्र बैंक में ऋण प्रकरण न देकर फर्जी तौर पर तैयार किये गये प्रकरण के आधार पर अनुदान एवं मार्जिन मनी की राशि के चैक बैंक में ले जाकर दिया गया ।
33. भ्रश्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा- 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) का प्रावधान निम्नानुसार है:- धारा 13, लोक सेवक द्वारा आपराधिक अवचार-(1) लोक सेवक आपराधिक अवचार का अपराध करने वाला कहा जाता है -(डी) यदि वह- (एक) भ्रष्ट या अवैध साधनों से अपने लिये या किसी व्यक्ति के लिये कोई मूल्यवान वस्तु या धन संबंधी लाभ अभिप्राप्त करता है या (दो) लोक सेवक के रूप में अपनी स्थिति का दुरूपयोग करके अपने लिये या किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई मूल्यवान चीज या धन संबंधी लाभ अभिप्राप्त करता है। प्रकरण में आये साक्ष्य से यह प्रमाणित हुआ है कि आरोपी महेश राव, सलीम बक्श एवं गणेश ठाकरे लोक सेवक होते हुए भ्रष्ट, अवैध साधन एवं अपनी स्थिति का दुरूपयोग कर अपने लिये एवं मनोज क्लाथ स्टोर के लिए धन संबंधी लाभ अभिप्राप्त किया 34. प्रकरण में आये दस्तावेजी एवं मौखिक साक्ष्य से यह प्रमाणित हुआ है
कि समिति में लोक सेवक के पद पर सहायक कार्यपालन अधिकारी महेशराव, लिपिक शेख सलीम बक्श एवं भृत्य गणेश ठाकरे पदस्थ होते हुए अन्य के साथ मिलकर अपराधिक षडयंत्र कर अवैध रूप से योजना का पालन किये बिना फर्जी तौर पर हितग्राहियों के रूप में, ऐसे व्यक्तियों को हितग्राही बनाया गया, जो अस्त्वि में नहीं थे और उनके आधे अधूरे आवेदन पत्र, अनुबंध पत्र तैयार किये, रसीद काटी, उसमें फर्जी तौर पर हितग्राहियों के हस्ताक्षर और अंगूठे किये गये और उनका उपयोग असली के रूप में करते हुए इंडियन बैंक में हितग्राहियों का प्रकरण भेजे बिना चेक भेजकर अनुदान की राशि के चेक को मनोज क्लाथ स्टोर का पे आर्डर बनाने का अवैध पत्र इंडियन बैंक का सील लगा हुआ, डाक बुक में फर्जी इंद्राज कर इंडियन बैंक को लिखा गया और ऐसे दस्तावेजों की कूटरचना की, डाक बुक मूल्यवान दस्तावेज को नष्ट किया, अनुदान राशि हितग्राहियों के खाते में जमा न कर उक्त राशि समिति के खाते से निकलवाकर मनोज क्लाथ स्टोर के नाम का पे आर्डर बनवाकर आहरण करवा लिया और आहरण करवाकर गबन किया तथा समिति को रूपये 39750/-की क्षति पहुंचायी एवं लोकसेवक रहते हुए पद का दुरूपयोग कर स्वयं या अन्य को अवैध लाभ पहुंचाया ।
35. प्रकरण में रूपये 39750/- का पे आर्डर मनोज क्लाथ स्टोर रायपुर के नाम से बनाया गया है, परंतु मनोज क्लाथ स्टोर का स्वामी प्रकरण का आरोपी मनोज हो और उसके द्वारा राशि प्राप्त की गयी हो इस संबंध में कोई दस्तावेज प्रमाणित नहीं किया गया है, इसलिए अभियोजन आरोपी मनोज की वर्तमान प्रकरण में संलिप्तता प्रमाणित करने में असफल रहा है। प्रकरण में आरोपी अरूण के विरूद्ध कोई साक्ष्य नहीं है, इसलिए अभियोजन उसके विरूद्ध अपराध प्रमाणित करने में असफल रहा है। 
36. उक्त कारणों से अभियोजन यह संदेह से परे प्रमाणित करने में सफल रहा है कि आरोपी महेशराव सहायक कार्यपालन अधिकारी, सलीम बक्श लिपिक एवं गणेश ठाकरे भृत्य के पद पर जिला अंत्यावसायी समिति में लोक सेवक के रूप में पदस्थ रहते हुए अन्य के साथ परस्पर सहमति से 1995 में या उसके लगभग अंत्यावसायी सहकारी समिति के हितग्राहियों के नाम से फर्जी सदस्य बनाये, फर्जी ऋण प्रकरण तैयार किये, उन्हें बैंक में भेजे बिना भेजना बताकर बैंक द्वारा अनुदान की और मार्जिन मनी की राशि की मांग किये बिना ही अनुदान राशि और मार्जिन मनी का चेक भेजना, अनुदान राशि भेजकर उस राशि को पे आर्डर द्वारा अन्य व्यक्ति के खाते में जमा कर मार्जिन मनी का एफ0डी0बनवाकर पे आर्डर को उसे अन्य बैंक में जमा कर राशि प्राप्त करने का अवैध कार्य अवैध साधनों से किया, आरोपीगण लोक सेवक होते हुए लोक सेवक के नाते हितग्राहियों की अनुदान राशि रूपये 39750/-से न्यस्त रहते हुए बेईमानी से उसका दुर्विनियोग किया, इंडियन बैंक के नाम के पत्र जो इंडियन बैंक द्वारा तैयार नहीं किया गया और भेजा ही नहीं गया उसकी कूटरचना चेक और मार्जिन मनी  भेजने के संबंध में की, कार्यालय की डाक बुक में बैंक के उक्त पत्र के आधार पर चेक भेजने बाबत इंद्राज कर कूटरचित दस्तावेज की रचना की, छल के प्रयोजन से बैंक के कथित पत्र डाक बुक हितग्राहियों की सूची बनाने, आवेदन पत्र अनुबंध पत्र एवं रसीदों की कूटरचना की, कूटरचित दस्तावेजों को उनका कूटरचित होना जानते हुए उसका असली के रूप में प्रयोग किया, मूल्यवान दस्तावेजों को छिपाने की नीयत से नष्ट किया, इंडियन बैंक के अधिकारियों को प्रवंचित कर बेईमानी से उत्प्रेरित कर अनुदान राशि के चेक की राशि का मनोज क्लाथ स्टोर के नाम से पे आर्डर बनवाकर उसके खाते में जमा कर छल किया तथा लोक सेवक के पद पर रहते हुए पद का दुरूपयोग कर अपने स्वयं के एवं अन्य के लिए अवैध लाभ पाने एवं पहुंचाने के लिए किया, इसलिए आरोपी महेश राव, सलीम बख्श, गणेश ठाकरे को धारा 409, 420, 467, 468, 471, 477,120-बी भा0द0वि0 तथा धारा- 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) भ्रश्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अपराध में दोषी पाकर दोषसिद्ध ठहराया जाता है ।
37. अभियोजन आरोपी मनोज एवं अरूण के विरूद्ध अपराध को प्रमाणित करने में असफल रहा है, इसलिए आरोपी मनोज एवं अरूण को धारा 409, 420, 467, 468, 471, 477, 120-बी भा0द0वि0 के अपराध से दोषमुक्त किया जाता है।
38. प्रकरण की परिस्थितियों को देखते हुए आरोपीगण को परिवीक्षा का लाभ दिया जाना उचित प्रतीत नहीं होता, दंड के प्रश्न पर सुनने के लिए निर्णय थोडे समय के लिए स्थगित किया गया ।
 (जितेन्द्र कुमार जैन)
 विशेष न्यायाधीश(भ्रष्टा0निवा0अधि0)
 एवं प्रथम अपर सत्र न्यायाधीष,
 रायपुर, छ0ग0
पुनश्च:-
39. दंड के प्रश्न पर आरोपीगण एवं उनके अधिवक्ताओं के तर्क सुने गये, उन्होंने निवेदन किया कि आरोपीगण बीस वर्षों से प्रकरण में उपस्थित होते रहे हैं, वे शासकीय नौकरी में हैं इसलिए उन्हें कम से कम दंड से दंडित किया जाये।
40. दंड के प्रश्न पर विचार किया गया, आरोपीगण द्वारा बिना हितग्राहियों को ऋण दिये ऋण से संबंधित शासकीय राशि का गबन किया जाना प्रमाणित हुआ है इसलिए आरोपी महेश राव, सलीम बक्श शेख एवं गणेश ठाकरे को निम्नलिखित दंडादेश दिया जाता है:-

आरोपीगण को दी गयी कारावास की सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी ।
41. प्रकरण में आरोपी सलीम बक्श दिनांक 02.04.97 एवं 03.04.97 को अभिरक्षा में रहा है, उसे दी गयी सजी में उक्त अवधि धारा 428 द0प्र0सं0 के तहत समायोजित की जावे।
42. प्रकरण में अन्य आरोपी के विरूद्ध पूरक चालान प्रस्तुत किये जाने का उल्लेख अभियोग पत्र में है इसलिए संपत्ति का निराकरण नहीं किया जा रहा है ।
43. आरोपीगण जमानत-मुचलके पर हैं, उनके जमानत मुचलके धारा 437-ए द0प्र0सं0 के अंतर्गत छह माह के लिए विस्तारित किये जाते हैं जो उक्त अवधि उपरान्त स्वयमेव समाप्त माने जाएंगे।
निर्णय मेरे निर्देश में टंकित निर्णय खुले न्यायालय में पारित  किया गया। किया गया।
 सही/- 
 (जितेन्द्र कुमार जैन)
 विशेष न्यायाधीश(भ्रष्टा0निवा0अधि0)
 एवं प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश,
 रायपुर, छ0ग0

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03 A Explosive Substances Act 149 IPC 295 (a) IPC 302 IPC 304 IPC 307 IPC 34 IPC 354 (3) IPC 399 IPC. 201 IPC 402 IPC 428 IPC 437 IPC 498 (a) IPC 66 IT Act Aanand Math Abhishek Vaishnav Ajay Sahu Ajeet Kumar Rajbhanu Anticipatory bail Arun Thakur Awdhesh Singh Bail CGPSC Chaman Lal Sinha Civil Appeal D.K.Vaidya Dallirajhara Durg H.K.Tiwari HIGH COURT OF CHHATTISGARH Kauhi Lalit Joshi Mandir Trust Motor accident claim News Patan Rajkumar Rastogi Ravi Sharma Ravindra Singh Ravishankar Singh Sarvarakar SC Shantanu Kumar Deshlahare Shayara Bano Smita Ratnavat Temporary injunction Varsha Dongre VHP अजीत कुमार राजभानू अनिल पिल्लई आदेश-41 नियम-01 आनंद प्रकाश दीक्षित आयुध अधिनियम ऋषि कुमार बर्मन एस.के.फरहान एस.के.शर्मा कु.संघपुष्पा भतपहरी छ.ग.टोनही प्रताड़ना निवारण अधिनियम छत्‍तीसगढ़ राज्‍य विधिक सेवा प्राधिकरण जितेन्द्र कुमार जैन डी.एस.राजपूत दंतेवाड़ा दिलीप सुखदेव दुर्ग न्‍यायालय देवा देवांगन नीलम चंद सांखला पंकज कुमार जैन पी. रविन्दर बाबू प्रफुल्ल सोनवानी प्रशान्त बाजपेयी बृजेन्द्र कुमार शास्त्री भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम मुकेश गुप्ता मोटर दुर्घटना दावा राजेश श्रीवास्तव रायपुर रेवा खरे श्री एम.के. खान संतोष वर्मा संतोष शर्मा सत्‍येन्‍द्र कुमार साहू सरल कानूनी शिक्षा सुदर्शन महलवार स्थायी निषेधाज्ञा स्मिता रत्नावत हरे कृष्ण तिवारी