142- अ.सा.77 राकेश भट्ट के साक्ष्य की कंडिका-3 के अनुसार उन्होंने घटना स्थल से ही दिनांक 11/02/05 को साक्षी तारकेश्वर एवं सुधीर आचार्य के समक्ष महादेव महार के शव के पास पड़े (1)- दो खाली कारतूस के खोखे पीतल के, जिसमें एक खोखे के पेंदे में 8 एम.एम. केएफ लिखा है, दूसरे खोखे के पेंदे में 9 एमएम 2 जेड 91केएफ लिखा है, (2) एक कारतूस, जिसके पेंदे में 9एमएम 2795 केएफ लिखा है एवं (3) दो बुलट, जिसमें एक बुलट में कट का निशान है, को जप्तीपत्र प्रदर्श पी 4 के अनुसार जप्त किया था जिसके ब से ब भाग पर उनके हस्ताक्षर है एवं गवाह के भी हस्ताक्षर है। इस साक्षी के साक्ष्य की कंडिका 4 के अनुसार उन्होंने दिनांक 11/02/2005 को ही घटना स्थल से गवाह तारकेश्वर एवं सुधीर आचार्य के समक्ष खून आलूदा मिट्टी तथा सादी धूल मिट्टी को जप्तीपत्र प्रदर्श पी 5 के अनुसार जप्त किया था, जिसके ब से ब भाग में उनके हस्ताक्षर है। जप्तीपत्र प्रदर्श पी 4 एवं पी 5 की कार्यवाही को अ.सा.1 तारकेश्वर सिंह ने अपने साक्ष्य की कंडिका 4 में प्रमाणित किया है। अ.सा.1 तारकेश्वर सिंह ने अपने साक्ष्य की कंडिका 4 में कथन किया है कि पुलिस वाले मौके पर पिस्टल की दो गोली का खोखा एवं खून आलूदा मिट्टी और सादी मिट्टी जप्त किए थे, जिसका जप्तीपत्र प्रदर्श पी 4 एवं पी 5 है, जिसके अ से अ भाग पर उनके हस्ताक्षर है।
143- अ.सा.77 राकेश भट्ट की साक्ष्य की कंडिका 1 व 2 के अनुसार उन्होंने प्रदर्श पी 1 की सूचना पत्र देकर गवाहों को शव पंचनामा के लिए बुलाया था, शव पंचनामा प्रदर्श पी 2 है और उसके पश्चात् उन्होंने पोस्टमार्टम हेतु फार्म भरकर जिला अस्पताल पोस्टमार्टम हेतु प्रदर्श पी 35 की तहरीर अभिलिखित कर भेजा था। तब अ.सा.10 डॉ. जे.पी. मेश्राम ने मृतक के शव का पोस्टमार्टम दिनांक 11/02/05 को ही किया था । अ.सा.10 डॉ. जे.पी. मेश्राम ने मृतक के शव के परीक्षण पश्चात् उसके शरीर में पाए गए कपड़े, टी-शर्ट, जिसमें डी.ओ.एम. स्टीकर लगा हुआ था, फुलपैंट ब्लू कलर का, लक्स अंडरवियर नीले रंग का, हाफ टीशर्ट डार्क ब्लू कलर का, कॉटन की लाल रंग की लंगोट, ब्लू कलर की टीशर्ट टेरीकॉट की, जूते, एक बुलेट जो शरीर के बाहर टीशर्ट में मिली थी, एन्टी और एक्जिट वुंड से एवं चेहरे के बांये हिस्से से लिया गया स्किन, 6 ताबीज लाल कलर की डोरी में और एक ताबीज लाल कलर की डोरी में व रक्त का सेम्पल को पैक सील करके केमिकल एक्जामिनेशन और अदर एक्जामिनेशन हेतु पुलिस कांस्टेबल होलसिंह नं. 891 पुलिस थाना सुपेला को सौंपा था ।
144- अ.सा.15 होलसिंह भुवाल ने अपने साक्ष्य की कंडिका 2 में कथन किया है कि वे दिनांक 11/02/05 को मृतक के शव को लेकर परीक्षण हेतु गए थे और शव परीक्षण पश्चात् एक बंडल सील पैक कपड़ों का, एक जोड़ी जूता सील पैक, एक बुलेट सील पैक, चमड़ी की सीलबंद तीन बरनी, सीलबंद खून की दो शीशी, सीलबंद बिसरा की दो बरनी, एक सेम्पल शीशी, सीलबंद सात ताबीज पैक, एक्सरे रिपोर्ट एवं सीलबंद ब्रेन की बरनी प्राप्त किया था, जिसकी पावती उन्होंने दिया था, जो प्रदर्श पी 35 के ब से ब भाग पर उनके हस्ताक्षर है। इस साक्षी का यह भी कथन है कि विवेचक द्वारा गवाहों के समक्ष उक्त संपूर्ण वस्तुओं को जप्त किया गया था, जिसका जप्तीपत्र प्रदर्श पी 9 है, जिसके ब से ब भाग पर उनके हस्ताक्षर है, उसने कर्तव्य प्रमाणपत्र प्रदर्श पी 47 थाने में जमा किया था, जिसकी छायाप्रति प्रदर्श पी 47 ए है। अ.सा.76 आर0के0 राय ने अपने साक्ष्य की कंडिका 2 में कथन किया है कि अ.सा.15 होलसिंह भुवाल द्वारा प्रस्तुत करने पर दिनांक 12/02/05 को प्रदर्श पी 9 के अनुसार सीलबंद पैकेट जप्त किए थे।
145- अ.सा.76 आर0के0 राय के साक्ष्य की कंडिका 19 के अनुसार उन्होंने उक्त जप्तशुदा संपत्ति को दिनांक 29/07/05 को राज्य न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला प्रदर्श पी 212 के ज्ञापन के अनुसार प्रेषित किया था । इसी प्रकार अ.सा.76 आर0के0 राय ने आरोपीगण के बयान मेमोरेण्डम के आधार पर जप्त किए गए फायर आर्म्स को केंद्रीय न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला, चंडीगढ़ प्रदर्श पी 213 के अनुसार प्रेषित किया था । अ.सा.76 आर0के0 राय के साक्ष्य की कंडिका-39 के अनुसार उन्होंने दिनांक 06/05/05 को एक बांस की लाठी एफएसएल रायपुर में परीक्षण हेतु प्रदर्श पी 216 के अनुसार भेजा था, तब उन्हें एफ.एस.एल. रायपुर से प्रदर्श पी 218 की परीक्षण रिपोर्ट प्राप्त हुई जो तीन पन्नों में है। प्रदर्श पी 219 के अनुसार एफ.एस.एल. रायपुर ने सेरोलॉजिस्ट कलकत्ता को आर्टिकल जांच हेतु भेजा था, जिसकी रिपोर्ट प्रदर्श पी 220 है, जो दो पन्नों में है। एफ.एस.एल. रायपुर से परीक्षण रिपोर्ट प्रदर्श पी 221 भी प्राप्त हुई जो दो पन्नों में है। एफ.एस.एल. ने प्रदर्श पी 222 के पत्र के जरिए सेरोलॉजिस्ट, कलकत्ता को भेजा था ।
146- अतः न्यायालय द्वारा राज्य न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला से प्राप्त रिपोर्ट प्रदर्श पी 218, सेरोलॉजिस्ट कलकत्ता से प्राप्त रिपोर्ट प्रदर्श पी 220, पी 221 का अवलोकन किया गया, जिससे यह दर्शित होता है कि मृतक की जैकेट (सी-3), मृतक की लंगोट (सी-4), मृतक की बनियान (सी-5), मृतक के जांघिया (सी-6), ताबीज (सी-8), एक अन्य ताबीज (सी-9) में मानव रक्त पाया गया था । मृतक महादेव महार का रक्त समूह ’’ओ’’ समूह का था। लेकिन अन्य जप्त संपत्तियों में रक्त के स्त्रोत का पता नहीं लगाया जा सकता, क्योकि वे विघटित हो गए थे । इसी प्रकार प्रदर्श पी 218 के परीक्षण प्रतिवेदन से भी यह दर्शित होता है कि आरोपी राजू खंजर से जप्त दांव (आई), आरोपी विद्युत चौधरी से जप्त खुखरी (जे), आरोपी पिताम्बर से जप्त दांव (के), आरोपी छोटू उर्फ कृष्णा से जप्त दांव (एल) में रक्त पाया गया था ।
147- अतः प्रदर्श पी 218 एवं प्रपी 220 के परीक्षण प्रतिवेदन से यह प्रमाणित होता है कि घटना स्थल की मिट्टी में रक्त पाया गया था, जिससे घटना स्थल सुभाष चौक होना ही प्रमाणित होता है। इसके अतिरिक्त आरोपी राजू खंजर, विद्युत चौधरी, पिताम्बर, छोटू उर्फ कृष्णा के बताए अनुसार जप्त दांव, खुखरी में रक्त कैसे आया, इसका कोई स्पष्टीकरण उन्होंने अपने कथन में नहीं दिया है जो कि उनके विरूद्ध एक परिस्थिति है।
148- जहां तक आरोपी राजू खंजर, विद्युत चौधरी, पिताम्बर और छोटू उर्फ कृष्णा की इस प्रतिरक्षा का प्रश्न है कि जप्त खुखरी एवं दांव में पाए गए रक्त का स्त्रोत निर्धारित नहीं किया जा सका है। अतः उनकी दोषसिद्धि हेतु प्रदर्श पी 220 की सेरोलॉजिस्ट की रिपोर्ट का अवलंब नहीं लिया जा सकता है। तो आरोपीगण की उक्त प्रतिरक्षा स्वीकार योग्य नहीं है, क्योंकि घटना के प्रत्यक्षदर्शी साक्षी भी हैं, और यदि रक्त विघटित हो गए हैं तो उससे समूह या स्त्रोत ज्ञात नहीं किया जा सकता है और यह भी निष्कर्ष नहीं दिया जा सकता है कि उक्त आरोपियों से जप्त दांव और खुखरी में मानव रक्त नहीं था। इस संबंध में माननीय उच्चतम न्यायालय का न्यायदृष्टांत क्रि.लॉ.जन. 2012, पेज नं. 4657 का पैरा 29 और 33 अवलोकनीय है, जो इस प्रकार है:-
A similar issur arose for consideration by this Court in gura singh v. State of Rajasthan, AIR149- अ.सा.76 आर0के0 राय द्वारा आरोपीगण से जप्त फायर आर्म्स एवं कारतूस, कट्टा को जांच हेतु केंद्रीय विज्ञान प्रयोगशाला चंडीगढ़ प्रेषित किया गया था। केंद्रीय विज्ञान प्रयोगशाला, चंडीगढ़ में प्रेषित आयुधों का परीक्षण अ.सा.63 डॉ. पी.सिद्दम्बरी ने किया है। अ.सा. 63 डॉ. पी.सिद्दम्बरी ने अपने साक्ष्य की कंडिका 1 में कथन किया है कि वे केंद्रीय न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला चंडीगढ़ में वर्ष 1994 से कनिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी से वरिष्ठ वैज्ञानिक, सहायक बैलेस्टिक के पद पर पदस्थ रहे हैं । वर्तमान में वे हैदराबाद, सी.एफ.एस.एल. में पदस्थ हैं । इस दौरान उन्होंने बहुत सारे प्रकरणों में बैलेस्टिक एक्सपर्ट के रूप में आर्म्स एवं एम्यूनेशन का परीक्षण किया है। इस साक्षी को इस प्रकरण में जप्त फायर आर्म्स एवं कारतूस परीक्षण हेतु प्रेषित किए गए थे, जिन्हें उन्होंने सीलबंद स्थिति में पाने का कथन किया है और उन्होंने प्रेषित फायर आर्म्स एवं कारतूस की जांच व परीक्षण किया था, जिसके संबंध में उनकी रिपोर्ट प्रदर्श पी 134 है जो दो पेज में है, जिसके से अ भाग में उनके हस्ताक्षर है और ब से ब भाग पर नमूना सील है। इस साक्षी ने जांच उपरांत प्रदर्श पी 134 का प्रतिवेदन दिया है जो इस प्रकार है:-
2001 sc 330 : (2000 AIR SCW 4439), wherein the Court, relying upon erlier judgments of this Court, Particularly in Prabhu babaji Navle v. State of Bombay, (AIR 1956 SC 1776 : 1999 AIR SCW 1514) (supra) observed that a failure by the serologist to detect the origin of the blood due to dis-integration of the serum, does not mean that the blood stuck on the axe
would not have been human blood at all. Sometimes it is possible, either because the stain is too insufficient, or due to haematological changes and plasmatic coagulation, that a serologist may fail to detect the origin of the blood. In view of the above, the court finds it
impossible to accept the submission that, in the absence of the report regarding the origin of the blood, the accused cannot be convicted, upon an observation that it is only tion of the
blood cannot be determined. Therefore, no advantage can be conferred upon the accused,
to enable him to claim any benefit, and the report of dis-integation of blood etc. cannot be termed as missing link on the basis of which, the chain of circumstances may be presumed
to be broken.
i- The Countrymade pistols marked "A/1", "A/2" and "A/3" were test fired and found in working order and capable of firing .315"/8MM and .303" rifle cartridegs.150- इसी प्रकार अ.सा.63 डॉ.पी.सिद्दम्बरी ने दिनांक 27/09/05 को पुनः तीन सीलबंद पैकेट में प्राप्त एक पिस्टल, दो देसी कट्टा, एक फायर्ड 9एमएम पिस्टल का खोखा, 09 कारतूस, 303 रायफल का, एक खाली खोखा फायर्ड .303 रायफल का परीक्षण किया और उन्होंने प्रदर्श पी 135 का प्रतिवेदन किया जो इस प्रकार हैः-
ii- On thorough examination and comparison of individual characteristic marks present on the crime and test fired cartridge cases under the Comparison Microscope, I came to the conclusion that the .315"/8MM rifle cartridge case marked "C/1" had been fired through the countrymade postol marked "A/3" and it could have not been fired through any other firearm because every firearm has its own individual characteristic marks.
iii. On thorough examination and comparison of individual characteristic marks present on the crime and test fired cartridge cases and bullets under the comparison Microscope, I came to the conclusion that the .315"/8MM rifle cartridge case marked "C/3" and the marked .315"/8MM rifle bullet marked "B/1" had been fired through the countrymade pistol marked "A/1" and they could have not been fired through any other firearm because every firearm has its own individual characteristic marks.
iv. On thorough examination and comparison of individual characteristic marks present on the crime and test fired cartridge cases and bullets under the comparison Microscope, I came to the conclusion that the .315"/8MM rifle cartridge case marked "C/4" and the marked .315"/8MM rifle bullet marked "B/2" had been fired through the countrymade pistol marked "A/2" and they could have not been fired through any other firearm because every firearm has its own individual characteristic marks.
v. It could not be possible to form a definite opinion regarding the linkage of the crime . 315"/8MM rifle bullet marked "B/3" with respect to the countrymade pistols marked "A/1", "A/2" and "A/3" due to lack of sufficient individual characteristic marks.
vi. The holes present on skin pieces under reference could have been caused by firing within the close range.
vii. The 9mm pistol cartridge marked "L/1" and the .315"/8MM rifle cartridge marked "L/2" wire test fired and found to be live.
i. The pistol marked "A/4" was test fired and found in working order and capable of firing 9 mm pistol cartridges.
ii. The countrymade pistols marked "A/5" and "A/6" were test fired and found in working order and capable of firing .303" rifle cartridgs.
iii. It could not be possible to form a definite opinion regarding the linkage of the 9 mm pistol
cartrkdge case marked "C/2" with respect to the pistol marked "A/4" due to lack of sufficient
individual characteristic marks.
iv. On thorough examination and comparison of individual characterstic marks present of the crime and test fired cartridge cases under the Comparison Micriscope, I came to the conclusion that the 9mm pistol cartridge case marked "C/5" had been fired through the pistol marked "A/4" and it could have not been fired through any other firearm because every firearm has its own individual characteristic marks.
v. On thorough examination and comparison of individual characteristic marks present on the crime and test fired cartridge cases under the Comparison Microscope, I came to the conclusion that the firing pin impression of .303" rifle cartridge case marked "C/6" does not tally with the firing pin impressions of the test fired cartridge cases fired through the countrymade pistols marked "A/1", "A/2", "A/3", "A/5" and "A/6".
vi. The three .303" rifle cartridges marked "L/3" to "L/5" were found misfired. The six .303"
rifle cartridges marked "L/6" to "L/11" were test fired and found to be live.
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