171- देहाती नालिशी की प्रति संबंधित मजिस्टेंट को प्रेषित किये जाने का कोई प्रावधान नही है, लेकिन दं0प्र0सं0 की धारा 157 में यह उल्लेखित है कि प्रथम सूचना पत्र की प्रति संबंधित न्यायिक मजिस्टेंट को प्रेषित किया जाना चाहिये। इस संबंध में अ0सा062 नेमन साहू ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 1 में कथन किया है कि उसने थाना सुपेला के अपराध क्रमांक 141/05 में प्रथम सूचना पत्र की कार्बन नॉलिशी एवं गिरफ्तारी पंचनामा की कार्बन प्रति न्यायालय में दिनांक 12/2/2005 को लाकर दी, जिसकी पावती न्यायालय के रीडर द्वारा दी गयी है जो प्रदर्श पी 133 है। इस प्रदर्श पी 133 की पावती का अवलोकन किया गया। यद्यपि अ0सा062 नेमन साहू के थाने से रवानगी और वापसी का कोई सान्हा प्रकरण में प्रस्तुत नही किया गया है, लेकिन अ0सा062 नेमन साहू के साक्ष्य की कण्डिका 2 के अनुसार वह कोर्ट डयुटी का ही काम करता है। इस साक्षी ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 3 में यह भी स्वीकार किया है कि वह नही बता सकता कि पावती देने वाला रीडर द्वितीय न्यायिक मजिस्टेंट का रीडर था या प्रथम न्यायिक मजिस्टेंट का रीडर था। इस साक्षी ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 3 में यह भी स्वीकार किया है कि उसने लगभग पांच वर्षो तक कोर्ट डयुटी किया है। अतः प्रदर्श पी 133 का अवलोकन किया गया। प्रदर्श पी 133 की पावती दिनांक 12/2/2005 की है जिसके अ से अ भाग पर संबंधित रीडर के हस्ताक्षर भी है और जिसमें न्यायालय न्यायिक मजिस्टेंट द्वितीय श्रेणी की गोल सील भी लगी है।
172- अतः यह स्पष्ट है कि घटना दिनांक 11/2/2005 के ठीक दूसरे दिन दिनांक 12/2/2005 को प्रकरण में दर्ज प्रथम सूचना पत्र की प्रति दं0प्र0सं0 की धारा 157 के तहत न्यायिक मजिस्टेंट के न्यायालय में प्रेषित कर दी गयी थी। यद्यपि इस एक दिन के विलम्ब का कोई कारण आरोपीगण के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा उपस्थित साक्षीगण से नही पुछा गया है, लेकिन जैसा कि इस न्यायालय द्वारा इस निर्णय के पूर्व में ही विवेचित किया जा चुका है कि घटना दिनांक 11/2/2005 को कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ गयी थी और वह रात 8.30 बजे तक बिगड़ी रही। अतः ऐसी स्थिति में यदि प्रथम सूचना पत्र की प्रति घटना के दूसरे दिन न्यायिक मजिस्टेंट के न्यायालय में प्रेषित की गयी है तो उससे कोई विलम्ब नही हुआ है और यदि विलम्ब हुआ भी है तो वह स्पष्टीकृत है। एफआईआर की प्रति विलम्ब से भेजने एवं विलम्ब का स्पष्टीकरण होने पर अभियोजन के शेष विश्वसनीय साक्ष्य को अस्वीकार नही किये जाने के संबंध में माननीय उच्चतम न्यायालय का न्यायदृष्टांत (2003) 11 एससीसी 286, (2007) 13 एससीसी 501, (2001) 3 एससीसी 147 अवलोकनीय है जिसमें माननीय उच्चतम न्यायालय ने एफआईआर को एन्टी-टाईन्ड नही माना था। इसी प्रकार धारा 157 में उल्लेखित ‘‘तत्क्षण‘‘ के मायने को एआईआर 2011 एससी 2552 में बताते हुए यह अवलोकित किया है कि अभियोजन को प्रत्येक घण्टे के विलम्ब का स्पष्टीकरण देना आवश्यक नही है।
173- जहां तक प्रदर्श पी 133 की पावती में न्यायिक मजिस्टेंट द्वितीय श्रेणी की सील लगी होने का प्रश्न है तो इस संबंध में स्पष्ट है कि दिनांक 12/2/2005 को न्यायालय के अवकाश का दिन था। अवकाश के दिनों में कभी-कभी न्यायिक मजिस्टेंट द्वितीय श्रेणी की रिमाण्ड ड्युटी होती है। इसके अतिरिक्त यदि प्रदर्श पी 133 की पावती में न्यायिक मजिस्टेंट द्वितीय श्रेणी की सील अंकित है, तो उससे भी कोई प्रतिकुल प्रभाव अभियोजन के साक्ष्य पर नही पड़ता है। मुख्य बात है कि प्रकरण में दर्ज प्रथम सूचना पत्र की प्रति न्यायिक मजिस्टेंट के न्यायालय में प्रेषित की गयी थी। अतः स्पष्ट है कि इस संबंध में आरोपीगण की प्रतिरक्षा क्रमांक 5 और 8 स्वीकार योग्य नही है।
प्रतिरक्षा क्रमांक 10
174- अ0सा024 परमजीत सिंह वह साक्षी है, जिसने अ0सा069 अनिता सागर द्वारा दर्ज शून्य की नॉलिशी प्रदर्श पी 15 को थाना सुपेला में लाकर प्रस्तुत किया था। तब थाना सुपेला के सहायक उपनिरीक्षक अ0सा066 जे0पी0चन्द्राकर ने प्रथम सूचना पत्र क्रमांक 141/05 लेखबद्ध किया था, जो प्रदर्श पी 76 है। अ0सा066 जे0पी0चन्द्राकर ने शून्य के मर्ग इन्टीमेशन प्रदर्श पी 138 के आधार पर प्रदर्श पी 139 का असल मर्ग दर्ज किया था। प्रदर्श पी 76 का प्रथम सूचना पत्र घटना दिनांक 11/2/2005 को 10ः10 बजे दर्ज किया गया है, जबकि अ0सा024 परमजीत सिंह ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 4 में कथन किया है कि ऐसा नही है कि वह वहां (थाना सुपेला) 10 बजे दिन को पहुंचा था। अ0सा024 परमजीत सिंह के साक्ष्य की कण्डिका 4 के अनुसार वह घटनास्थल पर सुबह 7.30 से पौने आठ बजे तक था और उसके पांच-दस मिनट में मोटर सायकल से थाने पहुंच गया था। इसी स्थिति को दृष्टिगत रखते हुये आरोपी तपन सरकार एवं सत्येन माधवन के विद्वान अधिवक्ता ने यह तर्क प्रस्तुत किया है कि जब अ0सा024 परमजीत सिंह थाने 8 बजे पहुंच गया था, तो अ0सा066 जे0पी0चन्द्राकर ने शून्य की नॉलिशी के आधार पर दो घण्टे विलम्ब से प्रदर्श पी 76 का प्रथम सूचना पत्र क्यों दर्ज किया है? लेकिन इस प्रश्न के स्पष्टीकरण के लिये अ0सा066 जे0पी0चन्द्राकर से कोई भी प्रश्न नही किया गया है। अ0सा066 जे0पी0चन्द्राकर से आरोपीगण के विद्वान अधिवक्ता ने मात्र यही प्रश्न किया है कि उन्हें देहाती नॉलिशी प्रदर्श पी 15 कितने बजे प्राप्त हुई थी, जिसका उत्तर अ0सा066 जे0पी0चन्द्राकर ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 5 में यह कहकर दिया है कि वह देहाती नॉलिशी दर्ज करने का निश्चित समय नही बता सकता है। अतः उक्त स्थिति में आरोपीगण की प्रतिरक्षा क्रमांक 10 भी स्वीकार योग्य नही है।
प्रतिरक्षा क्रमांक 11, 12 एवं 13
175- घटनास्थल का नक्शा प्रदर्श पी 225 को अ0सा077 राकेश भट्ठ द्वारा घटना दिनांक 11/2/2005 को प्रातः 7.15 बजे बनाया गया था। अतः स्पष्ट है कि घटना 6.28 बजे के 47 वें मिनट में प्रदर्श पी 225 का नक्शा बनाया गया है। इस प्रदर्श पी 225 के नक्शे में अ0सा077 राकेश भट्ठ ने प्रत्यक्षदर्शी साक्षी प्रशांत, गिरवर, चंदन व लिंगाराजू के खड़े होने के स्थान को क्रमांक 4, 5, 6 व 7 से चिन्हित करके बताया गया है। इसके अतिरिक्त अ0सा077 राकेश भट्ठ ने लाल स्याही से चिन्हित कर बी, सी, डी, ई, एफ से मृतक के पास में कारतूस खोखे पड़ा होना उल्लेखित किया है। इसी प्रकार जप्ती पत्रक प्रदर्श पी 4 में यह उल्लेखित है कि मृतक महादेव महार के शव के पास दो खाली कारतूस (पेन्दे में 8एमएमकेएफ लिखा एवं 9एमएम2जेडकेएफ लिखा), एक कारतूस(पेन्दे में 9एमएम2795केएफ लिखा), दो बुलट जिसमे एक बुलट में कट का निशान पाया गया। जप्ती पत्र प्रदर्श पी 4 के उक्त कारतुस व बुलेट की गिनती कुल पांच ही है, जो कि प्रदर्श पी 225 में उल्लेखित पांच कारतूस खोखों से मिलती है, जो मृतक के शव के पास पाया गया है। अतः स्पष्ट है कि आरोपी की प्रतिरक्षा क्रमांक 11, 12 एवं 13 भी स्वीकार योग्य नही है। जहां तक प्रदर्श पी 225 के नजरी नक्शा एवं प्रदर्श पी 4 के जप्ती पत्रक में दर्शाये गये खोखे के आइडेन्टिकल प्रगट नही होने का प्रश्न है तो यह सही है लेकिन प्रदर्श पी 225 नजरी नक्शा है, जिसमें घटनास्थल पर पाये गये वस्तुओं का विवरण होता है, घटनास्थल पर पाये गये वस्तुओं की विशिष्टियां अंकित नही की जाती है। अतः इसीलिये प्रदर्श पी 225 के नजरी नक्शे में खोखे के पेन्दे में लिखी गयी विशिष्टियां अंकित नही है तो उसका कोई प्रतिकुल प्रभाव अभियोजन के शेष साक्ष्य पर नही पड़ता है।
प्रतिरक्षा क्रमांक 14 एवं 15
176- प्रदर्श पी 2 अ0सा077 राकेश भट्ठ द्वारा की गयी शव पंचनामा के कार्यवाही का विवरण है, जिसमें मृतक का शव धनजी के मकान के बगल दक्षिण भाग पर पाया जाना और मृतक का सिर पश्चिम की तरफ और दोनों पैर पूर्व दिशा में पाया जाना उल्लेखित है। प्रदर्श पी 2 का शव पंचनामा घटना के तुरन्त बाद बनाया गया है, जबकि अ0सा013 सत्यनारायण कौशिक ने घटना दिनांक 11/2/2005 के दो माह बाद दिनांक 28/4/2005 को बनाया है। अतः स्पष्ट है कि घटना के तुरन्त बनाया गये पंचनामा प्रदर्श पी 2 में शव की सही स्थिति दर्शायी गयी है, क्योंकि वह शव पड़े होने की स्थिति में बनाया गया था। अतः नक्शा प्रदर्श पी सही बना माना जा सकता है, जबकि वह दो माह बाद बनाया गया नक्शा प्रदर्श पी 13 सही नक्शा नही माना जा सकता है। इसके अतिरिक्त अ0सा013 सत्यनारायण कौशिक को प्रदर्श पी 2 के नजरी नक्शे को बताकर या दिखाकर उससे विशेष रूप से शव के पड़े होने की दिशा के बारे में कोई भी प्रश्न नही किया गया है। जहां तक शव के सिर के पास कारतूस के खाली खोखे पाये जाने का प्रश्न है तो प्रदर्श पी 2 एवं प्रदर्श पी 225 में ऐसा कोई अंतर नही है, बल्कि प्रदर्श पी 225 में भी मृतक के सिर के पास ई स्थान पर कारतूस के खोखे पड़े होने का उल्लेख किया गया है, जो मृतक के सिर के पास ही है। अतः स्पष्ट है कि आरोपीगण की प्रतिरक्षा क्रमांक 14, 15 स्वीकार योग्य नही है, अतः अस्वीकार की जाती है।
प्रतिरक्षा क्रमांक 16 से क्रमांक 22
177- आरोपीगण की प्रतिरक्षा क्रमांक 16, 17, 19, 20, 21, 22 का प्रश्न है, तो यह सही है कि मृतक की टी.शर्ट में पायी गयी बुलेट की कोई विवेचना अ0सा076 एवं अ0सा077 ने नही की है। इसी प्रकार अ0सा015 होलसिंह दिनांक 11/2/2005 को पोस्टमार्टम के बाद डॉक्टर द्वारा दिये गये सीलबंद पैक को लेकर दिनांक 11/2/2005 को ही थाने के मालखाने में रखना स्वीकार किया है लेकिन अ0सा076 आर0के0राय ने अस्पताल से प्राप्त सीलबंद पैक को दिनांक 12/2/2005 को जप्ती पत्रक प्रदर्श पी 9 के अनुसार जप्त किया है। यह भी सही है कि मृतक के पहने हुये कपड़ों में धारदार हथियार से कटने का कोई उल्लेख किसी दस्तावेज में नही है। इसी प्रकार अ0सा010 डॉ0 जे0पी0मेश्राम ने मृतक की तीन टी. शर्ट आरक्षक होलसिंह को सीलपैक करके प्रदान की थी। लेकिन राज्य न्यायालयीक विज्ञान प्रयोगशाला की रिपोर्ट प्रदर्श पी 218 में दो टी.शर्ट का उल्लेख नही है। इसी प्रकार आरोपी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा जो परिशिष्ट लिखित तर्क के साथ संलग्न किया गया है, उसमें भी जप्त वस्तुओं के हुलिये को लेकर आंशिक लोप है, जैसे कहीं पीतल लिखा है तो कही नही लिखा है, कहीं रायफल व पिस्टल लिखा है तो कहीं नही लिखा है, कहीं कारतूस के पेन्दे में उल्लेखित क्रमांक व चिन्ह का उल्लेख है तो कहीं नही है।
178- लेकिन मृतक महादेव महार को जो 21 चोटें आयी हैं, वे सभी उसके सिर में ही आयी है, अतः ऐसी स्थिति में मृतक के कपड़ों में धारदार हथियार से कटने का प्रश्न ही उत्पन्न नही होता है। जहां तक शव पंचनामा प्रदर्श पी 2 में बुलेट इंजुरी का उल्लेख नही है, तो यह विवेचक अ0सा077 राकेश भट्ठ की लापरवाही दर्शित होती है, लेकिन अभियोजन के शेष साक्ष्य को दृष्टिगत रखते हुये उसका कोई लाभ आरोपीगण को नही दिया जा सकता है। केवल टी.शर्ट में पायी बुलेट ही एकमात्र ऐसी प्रतिरक्षा है, जिसका कोई उत्तर अभियोजन के साक्ष्य में नही है। लेकिन आरोपीगण ने भी अभियोजन साक्षियों से टी.शर्ट में पायी गयी बुलेट के बारे में कोई प्रश्न भी नही किया है। इसके अतिरिक्त अन्य सभी उक्त प्रतिरक्षाएं क्रमांक 16, 18, 21 एवं 22 ऐसी नगण्य प्रकृति की है, जो अभियोजन के साक्ष्य की जड़ को प्रभावित नही करती। प्दुनमेज तमचवतज में लोप या अंतर होने से अभियोजन का प्रकरण प्रभावित नही होने के संबंध में माननीय उच्चतम न्यायालय का न्यायदृष्टांत ब्रम्हस्वरूप एवं अन्य बनाम स्टेट आफ यु.पी. 2010 (7) सुप्रीम पेज क्रमांक 549 अवलोकनीय है।
179- अतः उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि माननीय उच्चतम न्यायालय के उक्त उल्लेखित न्यायदृष्टांतों के अनुसार एवं आरोपीगण की उक्त प्रतिरक्षाओं की अभियोजन के द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य के परिप्रेक्ष्य में सुक्ष्म एवं सावधानीपूर्वक विवेचना के बाद इस न्यायालय का यह निष्कर्ष है कि आरोपीगण की कोई भी प्रतिरक्षा स्वीकार योग्य नही है। अतः
अस्वीकार की जाती है।
अनुसचित जाति जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3 (2)(5) के आरोप एवं उपपुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारियों द्वारा विवेचना नही करने की प्रतिरक्षा के संबंध में निष्कर्ष
180- जहां तक उक्त अधिनियम की धारा 3 (2)(5) के तहत अधिरोपित आरोप का प्रश्न है, तो इस प्रकरण में अ0सा035 सदवन महार, जो मृतक का छोटा भाई है, ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 2 में मृतक के जाति प्रमाण पत्र प्रदर्श पी 7 को प्रमाणित किया है, जिसकी जप्ती अ0सा076 आर0के0राय ने जप्ती पत्रक प्रदर्श पी 10 के अनुसार की थी। लेकिन प्रदर्श पी 7 का यह प्रमाण पत्र पार्षद अ0सा02 केशवप्रसाद चौबे द्वारा जारी किया गया है, जिसका कोई साक्ष्यिक मूल्य नही है। अभियोजन को तहसीलदार या अनुविभागीय अधिकारी या नायब तहसीलदार द्वारा जारी जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना चाहिये था। अतः प्रदर्श पी 7 के जाति प्रमाण पत्र के आधार पर मृतक महादेव महार के जाति के संबंध में कोई निष्कर्ष नही दिया जा सकता।
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Write commentsमहत्वपूर्ण सूचना- इस ब्लॉग में उपलब्ध जिला न्यायालयों के न्याय निर्णय https://services.ecourts.gov.in से ली गई है। पीडीएफ रूप में उपलब्ध निर्णयों को रूपांतरित कर टेक्स्ट डेटा बनाने में पूरी सावधानी बरती गई है, फिर भी ब्लॉग मॉडरेटर पाठकों से यह अनुरोध करता है कि इस ब्लॉग में प्रकाशित न्याय निर्णयों की मूल प्रति को ही संदर्भ के रूप में स्वीकार करें। यहां उपलब्ध समस्त सामग्री बहुजन हिताय के उद्देश्य से ज्ञान के प्रसार हेतु प्रकाशित किया गया है जिसका कोई व्यावसायिक उद्देश्य नहीं है।
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