Saturday 27 August 2016

छ.ग.राज्य शासन विरूद्ध रामबहोर सिंह पिता स्व. दामोदर सिंह

 

समक्ष - विशेष न्यायाधीश, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम बस्तर - स्थान,
जगदलपुर,
(पीठासीन न्यायाधीश-एस.शर्मा  )
विशेष प्रकरण क्र0 - 04/2009
संस्थित दिनांक - 30.06.2009
छ.ग.राज्य शासन,द्वारा
आरक्षी केन्द्र -एंटी करप्शन ब्यूरो,
जगदलपुर
जिला-बस्तर (छ.ग.)  ......................... ................... अभियोजन
 विरूद्
रामबहोर सिंह पिता स्व. दामोदर सिंह,
उम्र-50 वर्ष, पद श्रम निरीक्षक,
कार्यालय-श्रम पदाधिकारी,जगदलपुर,
जिला-बस्तर(छ.ग.)
स्थायी पता ग्राम खरमसेड़ा,
थाना-तहसील-पाटन,
जिला-सतना (म.प्र.) ............. .... .............अभियुक्त
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शासन की ओर से श्री शकील अहमद, लोक अभियोजक ।
आरोपी द्वारा श्री अरूण ठाकुर अधिवक्ता।
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 निर्णय
 (आज दिनांक- 29.09.2014 का घोषित)
01. अभियुक्त राम बहोर पर धारा - 07 एवं 13(1)(डी) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अंतर्गत आरोप है कि उसने दि.20.08.2007 को श्रम पदाधिकारी कार्यालय,जगदलपुर में, लोक सेवक की हैसियत से श्रम निरीक्षक के पद पर रहते हुये, प्रार्थी उदय सिंह बघेल से मजदूरों की मजदूरी भुगतान के मामले को रफा-दफा करनें की बात कहकर वैध पारिश्रमिक से भिन्न पारितोषण 2000/-रूपये (दो हजार रूपये) की मांग की और उक्त अवैध पारितोषण को अभिप्राप्त कर आपराधिक अवचार किया।

02. अभियोजन की कथा जिन तथ्यों से व्युत्पन्न हुई वे इस प्रकार है कि, प्रार्थी उदय सिंह बघेल शिक्षाकर्मी वर्ग-03 के रूप में प्राथमिक शाला डोगरीगुडा (अलवा), थाना-दरभा में 1998 से पदस्थ होकर जन भागीदारी एवं विकास समिति का सचिव था। वर्ष 2006 में सर्वशिक्षा अभियान के तहत प्राथमिक पाठशाला भवन डोंगरीगुड़ा के निर्माण हेतु 4,35,000.00 रूपये की धनराशि स्वीकृत हुई थी। उक्त भवन के निर्माण कार्य तीरथगढ़ निवासी श्री मोहन सिंह ठाकुर (राजमिस़्त्री) को दिया गया। उक्त राजमिस्त्री के द्वारा दि.13.05.2006 से 21.05.2006 तक प्लींथ लेबल तक कार्य किया गया। उक्त कार्य हेतु प्रार्थी द्वारा राजमिस्‍त्री मोहन सिंह को 4000/-रूपये मजदूरी का भुगतान कर पावती प्राप्त की गई थी। दि. 17.08.2007 को श्रम पदाधिकारी से डाक द्वारा प्रार्थी के नाम पर एक पत्र प्राप्त हुआ जिसमें श्रम निरीक्षक द्वारा लिखा गया था कि आवेदक फगनू एवं अन्य 17 श्रमिकों का भुगतान बकाया है।
03. प्रार्थी ने श्रम पदाधिकारी के उक्त पत्र के आधार पर दि.20.08.2007 को लिखित जवाब तैयार कर मजदूरों के भुगतान की राशि राजमिस़्त्री मोहन सिंह ठाकुर को दिये जाने के तथ्य को उल्लेखित किया। उक्त जवाब को लेकर प्रार्थी दि.20.08.2007 को 12.00 बजे अपने साथी बलराम नाम के साथ श्रम न्यायालय, जगदलपुर पहुंचा, वहां पर एक बाबू ने उसकी मुलाकात वहां उपस्थित आर.बी.सिंह, श्रम निरीक्षक (आरोपी) से कराई। आर.बी.सिंह नें प्रार्थी का जवाब पढ़कर कहा उसकी नौकरी चली जाएगी। आरोपी ने भी कहा कि श्रम न्यायालय से बाहर वह मामले को रफ-दफा कर देगा। आरोपी ने नोटिस के पीछे 2000/- रूपये लिखकर दिया। प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत लिखित जवाब को आरोपी ने बिना पावती दिये रख लिया। इस पर प्रार्थी ने उप पुलिस अधीक्षक, एंटी करप्शन ब्यूरो, जगदलपुर को आरोपी को दो हजार रूपये की रिश्वत नही देने तथा उसके विरूध्द कार्यवाही किये जाने बाबत लिखित आवेदन प्रस्तुत किया।
04. विवेचक एल.खेस के द्वारा प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत आवेदन पत्र के आधार पर प्रथम सूचना प्रतिवेदन दर्ज किया गया तथा पंच साक्षी अजय शर्मा , जिला महिला बाल विकास अधिकारी जगदलपुर एवं जगदीश प्रसाद सहायक जिला आबकारी अधिकारी को प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत आवेदन पत्र से अवगत कराया तथा ट्रैप दल का गठन किये जाने के साथ ही प्रारम्भिक पंचनामा भी तैयार किया गया। प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत दो हजार रूपयों पर फिनॉफ्थलीन पावडर लगाकर उन्‍हें प्रार्थी की शर्ट की जेब में रखा गया। प्रार्थी के साथी को रिश्वती लेन देन की बात-चीत टेप करने के लिये एक छोटा टेप रिकार्डर व खाली कैसेट दी गयी। प्रार्थी और अभियुक्त की रिश्वत संबंधी बात-चीत को रिकार्ड करने के उपरांत स्क्रिप्ट तैयार की गयी। प्रार्थी द्वारा आर.बी.सिंह से फोन से बातचीत की गयी। तब आरोपी ने प्रार्थी को 12.45 बजे आफिस में बुलाया था। विवेचना की अन्य आवश्यक सामग्री लेकर प्रार्थी व ट्रेप दल के सदस्य आरोपी के कार्यालय में दि.21.08.2007 को 12.40 बजे पहुंचे। प्रार्थी उदय अपने साथी बलराम के साथ कार्यालय के अंदर गया तब आरोपी अपने चेम्बर में बैठा हुआ था। आरोपी ने उदय व बलराम को कुर्सी पर बैठने के लिये कहते हुये पूछा कि क्या रूपया लेकर आये हो ? प्रार्थी द्वारा हाँ, रूपया लेकर आया हूं कहने के बाद अपनी जेब में रखे दो हजार रूपये निकाल कर आरोपी आर.बी.सिंह को दिये। आरोपी द्वारा उक्त रिश्वती रकम को हाथ से लेकर अपने दाहिने पेन्ट की जेब में रख लिया। प्रार्थी ने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार प्रार्थी ने श्रम पदाधिकारी कार्यालय से बाहर निकल कर ट्रैप दल को इशारा किया।
05. प्रार्थी, उसका दोस्त एवं आरोपी कार्यालय के सामने मेन रोड पर आ चुके थे। ट्रैप दल के सदस्यों एम.एल.नेगी ने अपना परिचय देते हुये आरोपी का हाथ पकड़ लिया तथा आरोपी को पुनः कार्यालय में उसके ही कक्ष में लाया गया। ट्रैप दल के सभी सदस्यों व प्रार्थी के साथी बलराम के हाथ की उंगलियों को सोडियम कार्बोनेट के जलीय घोल में धोया गया तब धोअन का रंग परिवर्तित नही हुआ। लेकिन जब सोडियम कार्बोनेट के घोल में आरोपी की उंगलियों को डुबाया गया तो घोल का रंग हल्का गुलाबी हो गया। आरोपी के फुल पैंट की पीछे की दाहिनी जेब में रखी रिश्वती रकम के नोटों के नम्बरों का मिलान प्रारम्भिक पंचनामा से किये जाने पर पंचनामा में उल्‍लेखित नम्बरों के नोट ही आरोपी की जेब से प्राप्त किये थे।
06. पुनः अजय शर्मा  के द्वारा रिश्वती नोटों को तथा पंच साक्षी जगदीश प्रसाद द्वारा आरोपी की पैंट की जेब से रिश्वती रकम के अतिरिक्त प्राप्त 510 रूपये को डुबाये जाने पर पृथक-पृथक जलीय घोल में डुबाने पर घोलों का रंग गुलाबी हो गया। अजय शर्मा एवं जगदीश शर्मा  की उंगलियों को पृथक-पृथक जलीय घोल में डुबाये जाने पर घोलों का रंग गुलाबी हो गया। आरोपी के फुल पैंट के दाहिने साईड की जेब, प्रार्थी उदय सिंह बघेल के दोनों हाथों की उंगलियों, को घोल में डुबोकर धुलाये जाने पर भी घोल का रंग हल्का गुलाबी हो गया। उक्त सभी घोलों को सीलबंद कर चिन्हांकित कर जप्त किया गया। ट्रैप दल के अन्य सदस्यों के हाथों की उंगलियों को जलीय घोल में डुबाने पर रंगहीन धोवन को भी जप्त किया गया था।
07. विवेचना के आगामी अनुक्रम में प्रार्थी द्वारा दि.20.08.2007 को प्रस्तुत जवाब की मूल प्रति को, प्रार्थी के प्रकरण से संबंधित नोट शीट, उसे प्रेषित पत्र क्र.1628 दि.03.08.2007 की कार्यालयीन प्रति एवं प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत जवाब को विधिवत जप्त किया गया। प्रार्थी उदय सिंह बघेल एवं उसके साथी बलराम नाग ने आरोपी से बात-चीत की स्क्रिप्ट का पंचनामा तैयार किया गया। आरोपी से बात-चीत के एस.टी.डी. बिल जप्त किये गये। सम्पूर्ण विवेचना के उपरांत आरोपी को गिरफ्तार किया गया। साक्षी उदय सिंह बघेल, बलराम नाग, अजय शर्मा , ए.के.कौशिक, जगदीश प्रसाद, श्रीमती नमिता जॉन, एम.एल.नेगी, आर.धनश्याम साहू, रामसेवक सिन्हा, बृजेश कपूर, भंवर बरिया, लम्बरू मंडावी के कथन लेखबध्द किये गये। विधि एवं विधायी कार्य विभाग मंत्रालय से अभियोजन की स्वीकृति प्राप्त की गई। प्र.पी.28 में उल्‍लेखित प्रदर्शा को प्र.पी.27 के माध्यम से विधि विज्ञान प्रयोगशाला रायपुर प्रेषित किया गया था। विधिवत सम्पूर्ण विवेचना उपरांत आरोपी के खिलाफ अभियोग पत्र प्रस्तुत किया गया।
08. अभियुक्त के विरूध्द पूर्व विद्वान पीठासीन अधिकारी द्वारा सुसंगत धारा में आरोप की विरचना किए जाने पर उन्‍होंने आरोपित अपराध से इन्कार करते हुए विचारण का दावा किया। धारा-313 दं.प्र.सं. के अंतर्गत लेखबध्द किये गये कथनों में उसने यह व्यक्त किया कि,वह निर्दोष हैं, उसे झूठा फंसाया गया है।
09. अभियोजन ने अपना पक्ष साबित करने के लिए साक्षी उदयसिंह बघेल (अ.सा.01), श्रीमती नमिता जॉन (अ.सा.02), अजय शर्मा (अ.सा.03), ए.के.कौशिक (अ.सा.04), भँवरसिंह बरिहा (अ.सा.05), रामसेवक सिन्हा (अ.सा.06),जगदीश (अ.सा.07), धनश्याम साहू (अ.सा.08), सूरजसिंह माँझी (अ.सा.09), श्रीमती भारती प्रधान (अ.सा.10), रणबहादुर ज्ञवाली(अ.सा.11), एम.एल.नेगी(अ.सा.12), लारेंस खेस(अ.सा.13) के कथन लेखबध्द कराये है तथा प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत लिखित शिकायत (प्र.पी.01), प्रारम्भिक पंचनामा (प्र.पी. 02), प्रथम सूचना प्रतिवेदन (प्र.पी.3), श्रम पदाधिकारी का नोटिस (प्र.पी.04), फगनूराम का बकाया मजदूरी बाबत प्रस्तुत आवेदन (प्रपी.05), प्रार्थी उदय सिंह द्वारा प्रस्तुत जवाब दि.20.08.2007(प्र.पी.06), जप्ती पत्रक (प्र.पी.07), स्क्रिप्ट (प्र.पी.08), नजरी नक्शा पंचनामा (प्र.पी.09),नजरी नक्शा (प्र.पी.09-ए), जन भागीदारी एवं निर्माण विकास समिति, प्रा.शाला डोंगरीगुडा, ग्राम अलवा से संबंधित प्रपत्रों का जप्ती पत्र(प्र.पी.10), कार्यवाही पंचनामा(प्र.पी.11), नमिता जॉन से नोट शीट का जप्ती पत्रक (प्र.पी.12), आरोपी के हाथों की धोनव की सीलबंद शीशी का मार्क-सी,रिश्वती रकम 2000/- रूपये का धोवन की सीलबंद शीशी मार्क-डी, नम्बर मिलान के पश्चात मार्क ई व आरोपी के फूलपैंट के पीछे दाहिना तरफ की जेब में स्वंय का 510/- रूपये की धोअन की सीलबंद शीशी मार्क एफ, उक्त जेब का धोअन का सीलबंद शीशी मार्क-एच, आदि का जप्ती पत्र (प्र.पी.13), प्रार्थी व आरोपी को छोडकर शेष ट्रैप दल के सदस्यों के हाथों की उंगलियों का रंगहीन घोल की सीलबंद शीशी मार्क बी,अजय शर्मा  के उंगलियों की गुलाबी रंग के घेाल की सीलबंद शीशी मार्क ई, जगदीश प्रसाद के हाथों की धोअन की सीलबंद शीशी मार्क जी, प्रार्थी उदय सिंह बघेल के दोनों हाथों की उंगलियों की सीलबंद शीशी मार्क आई का जप्ती पत्र (प्र.पी.14), प्रार्थी के जबाब का जप्ती पत्र (प्र.पी. 15), उदय सिंह बघेल का आवेदन पत्र दि.20.08.2007(प्र.पी.16), मस्टर रोल(प्र.पी.17), गिरफ्तारी पत्रक (प्र.पी.18), कैसेट का जप्ती पत्रक (प्र.पी.19), नोटशीट (प्र.पी.20),श्रम पदाधिकारी के कर्तव्यों की जानकारी (प्र.पी.21), अधिसूचना (प्र.पी.22), श्रमायुक्त कार्यालय छत्तीसगढ़, रायपुर द्वारा जारी निर्देश (प्र.पी.23), श्रम निरीक्षकों के कार्यक्षेत्र बंटवारा आदेश (प्र.पी. 24), सर्वशिक्षा अभियान के अंतर्गत भवन निर्माण हेतु प्रशासकीय स्वीकृति आदेश (प्र.पी.25), अभियोजन स्वीकृति आदेश (प्र.पी.26) विधि विज्ञान प्रयोगशाला को प्रेषित आवेदन पत्र (प्र.पी.27), प्रयोगशाला को प्रेषित वस्तुओं की सूची (प्र.पी.28), आरक्षक रामसेवक सिन्हा को जारी कर्तव्य प्रमाण-पत्र (प्र.पी.29), फोन बिल का जप्ती पत्रक(प्र.पी.30), तक के
दस्तावेजों को प्रदर्शाकित कराया है।
10. अभियुक्त की ओर से आर.के.गुप्ता (बचाव साक्षी क्र.01) की साक्ष्य कराई गई है तथा प्रार्थी उदय सिंह बघेल द्वारा दि.20.08.2007 को श्रम पदाधिकारी का प्रेषित पत्र (प्र.डी.01),चार हजार रूपये की मोहन सिंह द्वारा दी गई पावती (प्र.डी.0),अजय शर्मा  का कथन (प्र.डी.03),तक के दस्तावेजों को प्रदर्शाकित कराया है। 
11. प्रकरण के न्यायपूर्ण निराकरण के लिए मुख्यतः निम्न विचारणीय बिन्दु उद्भत होते है कि:-
क्या अभियुक्त राम बहोर ने दि.20.08.2007 को श्रम पदाधिकारी कार्यालय,जगदलपुर में, लोक सेवक की हैसियत से श्रम निरीक्षक के पद पर रहते हुये, प्रार्थी उदय सिंह बघेल से मजदूरों की मजदूरी भुगतान के मामले को रफा-दफा करने की बात कहकर वैध पारिश्रमिक से भिन्न पारितोषण 2000/-रूपये (दो हजार रूपये) की मांग की और उक्त अवैध पारितोषण को अभिप्राप्त कर आपराधिक अवचार कारित किया ?
 निष्कर्ष व उसके आधार
12. सर्वप्रथम यह देखा जाना है कि अभियुक्त शासकीय सेवक है ? अभियोजन की और से इस संबंध में तत्कालीन श्रम पदाधिकारी भंवर सिंह बरिहा आ.सा.05 की साक्ष्य कराई है। इस साक्षी ने एन्टी करप्शन ब्यूरो जगदलपुर को अभियुक्त के श्रम निरीक्षक के पर कार्यरत होने के संबंध में दस्तावेजों को उपलब्ध कराया था। इन दस्ताववेजों में श्रम निरीक्षक द्वारा किये जाने वाले कार्यो की जानकारी प्र.पी. 21, नोटिफिकेशन की प्रति प्र.पी. 22, कार्यालय श्रम पदाधिकारी जगदलपुर का कार्य विभाजन आदेश प्र.पी. 24 प्रमुख है। अतः अभियुक्त का श्रम अधिकारी के रूप में नियोजन में होना दस्तावेजी साक्ष्य से स्थापित है।
13. अभियुक्त पर सुसंगत धाराओं में अभियोजन चलाने के लिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 के तहत अनुमति प्राप्त करना आवश्यक है। अभियोजन की ओर से इस संबंध में अनुमति आदेश प्र.पी.26 सी को प्रस्तुत किया गया हैं तथा इसे प्रमाणित कराने के लिए विधि एवं विधायी विभाग कार्य विभाग रायपुर के साक्षी रण बहादुर ज्ञवाली आ.सा.11 की साक्ष्य कराई हैं। इस साक्षी का कहना रहा है कि दिनांक 13.05.09 को अतिरिक्त सचिव विधि व विधायी कार्य विभाग द्वारा अभियोजन की स्वीकृति प्रदान की गई थी। बचाव पक्ष के विद्वान अभिभाषक द्वारा यह तर्क दिया है कि अभियुक्त का नियोक्ता अधिकारी है, जबकि अभियोजन की स्वीकृति विधि विधायी कार्य विभाग द्वारा प्रदान की गई है जो कि स्वीकृति के लिए सक्षम प्राधिकारी नहीं है तथा अभियुक्त के नियोक्ता प्राधिकारी द्वारा ही अभियोजन स्वीकृति प्रदान की जा सकती है। अतः अभियोजन स्वीकृति को सक्षम अधिकारी द्वारा प्रदान न किये जाने के कारण अभियुक्त के विरूद्ध विचारण दूषित हो गया है।
14. विद्वान अभिभाषक द्वारा अभियोजन स्वीकृति को चुनौती देने वाले तर्को पर विचार किया गया। अभियोजन की ओर से स्वीकृति आदेश प्रदर्श.पी.26 सी को प्रस्तुत किया गया है। उक्त आदेश का अवलोकन करने पर प्रकट होता है कि दिनांक 12/05/09 के आदेश द्वारा अभियुक्त के विरूद्व अतिरिक्त सचिव श्री ए.के. सामन्तरे छ.ग.शासन विधि एवं विधायी कार्य विभाग ने अभियोजन स्वीकृति का आदेश जारी किया है। इस आदेश के अवलोकन से यह भी स्पष्ट है कि ए.सी.बी.जगदलपुर की ओर से प्रस्तुत किये गये समस्त तथ्‍यों और  पहलुओं पर विचार करने के उपरांत स्वीकृति प्रदान की गई है। स्वीकृति आदेश प्रदर्श पी 26 सी के अवलोकन से यह भी स्पष्ट है कि कथित आदेश अभियुक्त के प्रशासकीय विभाग राजस्व विभाग द्वारा जारी नहीं की गई है। धारा 19 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में यह उपबंध किया गया है कि ‘‘ 1- कोई न्यायालय धारा 7,10,11,13,और 15 के अधीन दंडनीय अपराध का संज्ञान जिसके संबंध में यह अधिकथित है कि वह लोक सेवक द्वारा किया गया है, निम्नलिखित की पूर्व स्वीकृति के बिना नही करेगा-
क------------------------------------
ख- ऐसे व्यक्ति की दशा में, जो राज्य के मामलों के संबंध में नियोजित है और जो अपने पद से राज्य सरकार द्वारा या उसकी मंजूरी से हटाए जानें के सिवाय नहीं हटाया जा सकता है, राज्य सरकार, 2-जहां किसी कारण से इस बाबत शंका उत्पन्न हो जाए, कि उपधारा 1 के अधीन अपेक्षित पूर्व मंजूरी केन्द्रीय या राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी में से किसके द्वारा दी जानी चाहिए वहॉं ऐसी मंजूरी उस सरकार या प्राघिकारी द्वारा जायेगी जो लोक सेवक को उसके पद से उस समय हटाने के लिए सक्षम था जिस समय अपराध किया जाना अभिकथित हैं
15. हस्तगत प्रकरण में इस बात पर कोई शंका नही है कि अभियुक्त राज्य सरकार के अधीन शासकीय सेवा में श्रम निरीक्षक के पदस्थ रहा है स्वीकृति भी राज्य सरकार के विधि व विधायी कार्य विभाग द्वारा प्रदान की गई है। अतः यह बिंदु अप्रासंगिक रह जाता है कि केन्द्र या सरकार में से आदेश किसके द्वारा दिया जाना चाहिए। जैसा कि अभियुक्त की ओर से तर्क के दौरान व्यक्त किया है कि अभियुक्त के विभागीय प्रमुख द्वारा ही अभियोजन की स्वीकृति प्रदान की जा सकती है तो इस संबंध में छ.ग. सामान्य प्रशासन विभाग मंत्रालय, डी.के.एस.भवन क्र.एफ 1-2/2003/1/6 रायपुर दिनांक 26 मई 2003 के अनुसार सचिव, विधि एवं विधायी कार्य विभाग मंत्रालय रायपुर द्वारा अभियोजन स्वीकृति के संबंध में दिशा निर्देश जारी किये है जो इस प्रकार है-
‘‘ इस विभाग के संदर्भित आदेश द्वारा पूर्ववर्ती म.प्र. शासन सामान्य प्रशासन विभाग के आदेश क्रमांक एफ.ए.3-37/99/एफ 1 दिनांक 5/8/2000 को संशोधित करते हुए इस आशय के आदेश प्रसारित किए गए है कि विधि एवं विधायी कार्य विभाग कें भारसाधक प्रमुख सचिव/सचिव निम्नलिखित श्रेणियों के शासकीय सेवकों के मामलों को छोड़कर शेष शासकीय सेवकों के अभियोजन स्वीकृति के मामलों का निपटारा करेंगें-
क- भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा तथा भारतीय वन सेवा के सदस्यों से संबंधित अभियोजन स्वीकृति के मामले,
ख-राज्य सेवा के ऐसे अधिकारी जो राज्य शासन के सचिव के वेतनमान या इससे उच्चतर वेतनमान में कार्यरत हों, से संबंधित
अभियोजन स्वीकृति के मामले,
ग-अभियोजन स्वीकृति के ऐसे मामले जिनमें प्रशासकीय विभाग द्वारा अभियोजन स्‍वीकृति दिए जाने पर असहमति व्यक्त की गई है
परंतु विधि विभाग का मत अभियोजन स्वीकृति प्रदान किए जाने के पक्ष में हैं।
16. अभियोजन स्‍वीकृति आदेश प्र.पी.26 सी में अभियोजन स्वीकृति के विधि विधायी कार्य विभाग के सचिव को अधिकृत होने के आधार का उल्लेख इस प्रकार किया गया है कि ‘‘ भारत के संविधान के अनुच्छेद 166 के खंड 2 एवं 3 के अंर्तगत छ.ग. के राज्यपाल द्वारा निर्मित छ.ग. शासन के कार्य नियम के नियम 13 के अधीन जारी किए गए अनुपूरक अनुदेश भाग-5 के निर्देश क्र. 2 क के अंर्तगत प्रदत्त अधिकार के अंर्तगत अतिरिक्त सचिव, विधि विधायी कार्य विभाग राज्य शासन की ओर से ऐसा अभियोजन स्वीकृति का कार्य निपटाने के लिए सक्षम है।‘‘ इस प्रकार विधिक उपबधों के प्रकाश में प्रदत्त अभियोजन स्‍वीकृति विधिमान्य है तथा विभाग प्रमुख द्वारा स्वीकृति प्रदान न किये जाने विषयक किया गया आक्षेप ग्राह योग्य नहीं है।
17. बचाव पक्ष के विद्वान अभिभाषक द्वारा अभियोजन स्वीकृति के संबंध में प्रस्तुत न्याय दृष्टांत 2008 सी आर.एल.जे. 4209 श्रीमति अनिता देवी श्रीवास्तव व अन्य बनाम सेन्टल ब्यूरो आफ इंवेस्टिगेशन जबलपुर में अभियोजन की स्‍वीकृति का मामला अंर्तग्रस्त था। उक्त मामले में अपीलार्थी वरिष्ठ लिपिक के पर डी.आर.एम. के कार्यालय में पदस्थ था वह केन्द्र सरकार का कर्मचारी था तथा अभियोजन स्वीकृति आदेश सेन्टल रेल्वे के सीनियर मैकेनिकल इंजीनियर द्वारा जारी किया गया जो कि डीआर.एम. के कनिष्ठ पद पर था। अभियोजन स्वीकृति आदेश वैध नही माना गया। एक अन्य प्रस्तुत न्याय दृष्टांत 1995(1) एम.पी.डब्ल्यू.एन. 88 अशोक रंगशाही बनाम म.प्र.राज्य में धारा 197 द.प्र.सं. के अर्तगत प्रदान की गई अभियोजन स्वीकृति को विधिमान्य न होना निरूपित करते हुए विचारण को दूषित माना गया। हस्तगत मामलें में छ.ग.शासन के विधि व विधायी कार्य विभाग द्वारा अभियोजन स्वीकृति प्रदान की गई है जो राजपत्र के अनुसार इस हेतु अधिकृत है। अभियोजन स्‍वीकृति में कोई अन्य विसंगति नहीं पाई गई है। अतः प्रस्तुत किये गये न्याय दृष्टातों के तथ्य व परिस्थितियॉ हस्तगत प्रकरण के तथ्य व परिस्थितियों से भिन्न है।
18. न्याय दृष्टान्त एम.पी.राज्य विरूध्द जियालाल ए.आई.आर.2010 एस.एस.सी. 1451 में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभि निर्धारित किया गया है कि,यदि यह निष्कर्ष निकाल भी लिया जाय कि अभियोजन की अनुमति मशीनी तरीके से प्रदान की गई है, तब भी इस आधार पर उसकी दोषसिध्द अपास्त नही की जा सकती है व अभियुक्त को यह बताना होगा कि वह गम्भीर रूप से अपने बचाव में उक्त कारण से ही प्रिज्युडिस हुआ है। वर्तमान प्रकरण में भी ऐसी स्थिति निर्मित नही हुई है जिसके कारण का अभियोजन स्वीकृति की उक्त कमी के कारण ही प्रतिरक्षा पर प्रभाव पडा है। अतः उक्त संबंध में बचाव पक्ष की आपत्ति अग्राह्य की जाती है।
19. अधिनियम की धारा 19 में यह उपबंध किया गया है कि ‘‘उपधारा 3- द.प्र.सं. में किसी बात के होते हुए भी-
क- उपधारा 1 के अधीन अपेक्षित मंजूरी में किसी अनियमितता लोप या मंजूरी के कारण अपील न्यायालय द्वारा पुनरीक्षण, पुष्टिकरण, या अपील में, विशेष न्यायालय द्वारा पारित कोई निष्कर्ष, दंण्डादेश या आदेश तब तक परिवर्तित या उल्टा नही जाएगा, जब तक कि उस न्यायालय की राय में उसके कारण यथार्थ में न्याय नही हो सका,
ख- इस अधिनियम के अधीन की किसी कार्यवाही को किसी न्यायालय द्वारा प्राधिकारी द्वारा दी गई मंजूरी में किसी अनियमितता या लोप या त्रुटि के कारण रोका नही जाएगा जब तक कि यह समाधान न हो जाए कि ऐसी अनियमितता, लोप या त्रुटि के परिणामस्वरूप न्याय नहीं हो सका है,
20. उक्त उपबंध के परिप्रेक्ष्य में वर्तमान प्रकरण पर विचार किया जाये तो ऐसा कुछ भी दर्शित नहीं होता है कि कथित आदेश को पारित करने में कोई लोप, त्रुटि या अनियमितता की गई थी। ऐसा भी प्रकट नही होता है कि कथित आदेश को अति.सचिव विधि विधायी कार्य विभाग जारी कर देने से अभियुक्त के साथ न्याय नहीं हो सका है या वह न्याय प्राप्ति से वंचित हो गया है। अतः अभियोजन स्वीकृति के संबंध में अभियुक्त की ओर से की गई आपत्ति ग्राह्य योग्‍य नहीं होने से अस्वीकार की जाती है तथा यह निष्कर्ष दिया जाता है कि अभियोजन स्वीकृति आदेश विधिवत् रूप से पारित किया गया है।
21. अब यह देखा जाना है कि क्या अभियुक्त ने रिश्वत की मांग की और रिश्वत को प्राप्त किया। अभियोजन ने उक्त तथ्यों को साबित करने के लिए प्रार्थी उदय सिंह बघेल की साक्ष्य तथा उसके द्वारा आवेदनों के साथ साथ पंच साक्षियों के समक्ष टैप की कार्यवाही को मुख्य आधार के रूप में प्रस्तुत किया है। अभियोजन की ओर से प्रस्तुत की सामग्री से यह भी स्पष्ट है कि प्रार्थी उदय सिंह बघेल अ.सा. 01 द्वारा ए. सी.बी. जगदलपुर में दिये गये आवेदन प्र.पी.01 के आधार कार्यवाही प्रारंभ की गई। उक्त आवेदन के अनुरूप तथ्यों के अनुरूप कथन किया है जिनके अनुसार प्रार्थी ग्राम डोंगरीगुडा में शिक्षाकर्मी वर्ग-3 के पद पर पदस्थ होकर शाला की जनभागीदारी समिति का सचिव था। जिसके द्वारा पाठशाला भवन का निर्मा ण कराया जाना था। इस कार्य को ठेकेदार मोहन सिंह ठाकुर द्वारा कराया गया था। उसने कार्य में मजदूरों को भी लगाया था। ठेकेदार मोहनसिंह ठाकुर को प्रार्थी ने चार हजार रूपये की मजदूरी का भुगतान किया। कुछ दिन काम करने के बाद उसने काम बंद कर दिया। जब ठेकेदार वापस काम पर नही लौटा तो प्रार्थी ने दूसरे मजदूरों को बुलाकर काम कराना शुरू कर दिया। इसी बीच मोहन सिंह ठाकुर द्वारा काम पर रखे गये मजदूरों ने आकर मजदूरी की मॉग शुरू कर दी।
22. प्रार्थी उदय सिंह बघेल अ.सा.01 का आगे यह भी कहना रहा है कि मोहन सिंह ठेकेदार के कार्यकाल में काम पर लगे मजदूरों नें बाद में श्रम पदाधिकारी से उसकी शिकायत कर दी। जिस पर उसे दिनांक 13.08.07 को श्रम पदाधिकारी का एक पत्र मिला था। उक्त पत्र का उसने जबाब प्रस्तुत न करते हुए श्रम न्यायालय में जाकर अभियुक्त आर.बी.सिंह से मिला, तब उसने कहा कि यदि मजदूरी का भुगतान नहीं करो गे तो तुम्हारी नौकरी चली जायेगी।
23. श्रम कार्यालय में प्रार्थी के विरूद्ध मजदूरी भुगतान न करनें के संबंध में की गई शिकायत आवेदन को अभियोजन की ओर से साबित कराया है। तत्कालीन श्रम पदाधिकारी साक्षी भंवर सिंह बरिहा अ.सा.05 ने साक्ष्य में इस बात को पुष्ट किया है कि फगनूराम नें कार्यालय में आकर शिकायत की थी कि प्राथमिक शाला भवन ग्राम अलवा के निर्माण कार्य में मजदूरों को भुगतान नही किया गया है। इस शिकायत पर उसने प्रतिवेदन मंगाया था। इस साक्षी का यह भी कहना है उसने अभियुक्त आर.बी.सिंह को जांच के लिए नही कहा था। उसने उदय ध्रुव को नोटिस प्र.पी. 04 दिया था। श्रम कार्यालय में सहायक ग्रेड-3 ने भी अपनी साक्ष्य में इस बात को पुष्ट किया है कि शिकायतकर्ता फगनूराम से संबंधित नस्तियों को एन्टी करप्शन ब्यूरो के अधिकारी द्वारा दिनांक 21.08.07 को जप्त किया था और जप्ती पत्र प्र.पी.12 तैयार किया था। इस साक्षी ने जप्ती पत्र पर अपने हस्ताक्षर होना भी स्वीकार किया है। साक्षी ए.के. कौशिक अ.सा. 04 से प्रार्थी का उक्त आवेदन के जबाब को जप्ती पत्र प्रपी. 15 के अनुसार जप्त किया जाना स्वीकार किया है।
24. जहां तक प्रार्थी उदय सिंह के विरूद्ध श्रम कार्यालय में की गई शिकायत का प्रश्न है तो इस संबंध में उक्त कार्यालय के कर्मचारियों श्रीमति नमिता जैन अ.सा.01, साक्षी ए.के. कौशिक अ.सा.04 तथा साक्षी भंवरसिंह बरिहा अ.सा. 05 के कथनों में पर्याप्त तथ्य आये है। अभियुक्त आर.बी.सिंह ने भी धारा 313 द.प्र.सं. के लेखबद्ध कथनों में भी यह स्वीकार किया है कि उदय सिंह ने श्रम कार्यालय से प्राप्त नोटिस को उसे दिखाया था। उल्लेखनीय है यह नोटिस प्रार्थी के विरूद्ध की गई शिकायत पर जारी किया गया था। अभियुक्त आर.बी.सिंह ने धारा 313 द.प्र.सं. के कथनों में यह भी स्वीकार किया है कि एक कर्मचारी ने प्रार्थी को अभियुक्त से मिलवाया था, तथा अभियुक्त ने प्रार्थी से यह कहा था कि यदि तुम मजदूरी का भुगतान नहीं करोगे तो तुम्हारी नौकरी चली जायेगी। अभिलेख पर उपलब्ध उक्त सामग्री से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रार्थी अपने विरूद्ध की गई शिकायत के संदर्भ में अभियुक्त के सम्पर्क में आया था।
25. प्रार्थी उदयसिंह द्वारा ए.सी.बी. कार्यालय में प्रस्तुत आवेदन की अंर्तवस्तु की पुष्टि पंच साक्षियों अजय शर्मा  अ.सा.03 तथा जगदीश प्रसाद अ.सा.07 ने भी की है। साक्षी अजय शर्मा  ने कथन किया है कि शिकायत पत्र उसे पढ़ने को दिया गया था। शिकायत पत्र पढ़ने के बाद उसने प्रार्थी से पूछताछ की थी, तब उसने बताया था कि दरभा ब्लॉक में बिल्डिंग निर्माण में मजदूरों को पेमेंट करनें के संबंध में को समस्या आई है। जिसके संबंध में श्रम निरीक्षक रामबहोर सिंह के द्वारा रूपया मांगा जा रहा है। इस साक्षी के अनुसार उसने शिकायत पत्र पढ़ने की टीप आवेदन प्र.पी.01 में अंकित की थी। इसी प्रकार साक्षी जगदीश प्रसाद ने भी इस बात की पुष्टि की है कि आवेदन उसे दिखाया गया था, जिसे उसने पढ़ा था और पढ़ने के पश्चात् अपने हस्ताक्षर किये थे। प्रार्थी उदय सिंह बघेल ने प्रति परीक्षण की कंडिका 19 में आवेदन की प्रमाणिकता के संबंध में पूछे गये प्रश्‍नों पर स्पष्टीकरण देते हुए यह व्यक्त किया है कि वह शिकायत पत्र को अपने घर से लिखकर ले गया था, तथा ए.सी.बी. कार्यालय में नेगी साहब ने उसे सारी बात बताकर ऐसा नहीं कहा था कि शिकायत पत्र लिखकर लेकर आओ तब उसने आवेदन लिखा था। इस प्रकार कार्यवाही किये जाने के संबंध में जो आवेदन प्रस्तुत किया गया था उसमें ए.सी.बी. के अधिकारियों द्वारा किसी प्रकार का सहयोग किया जाना दर्शित नहीं होता है।
26. रिश्वत की मांग के संबंध में अभिलेख पर उपलब्ध सामग्री पर विचार किया जावे तो मांग की बातचीत को कोई टेप या वार्तालाप तो ए.सी.बी. की ओर से प्रस्तुत नहीं किया गया है, पर इस संबंध में प्रार्थी द्वारा कथन किया है कि जब वह श्रम कार्यालय में नोटिस लेकर गया और नोटिस को आर.बी.सिंह को दिखाया तो उसने कहा कि तुम मजदूरी का भुगतान नहीं करोगे तो तुम्हारी नौकरी चली जायेगी। कार्यालय के बाहर निकलनें के बाद आर.बी.सिंह ने नोटिस के पीछे दो हजार रूपये लिख दिया था और कहा था कि अगले दिन 21.08.07 को कार्यालय में आना। प्रार्थी ने उक्त राशि को रिश्वत की मांग के रूप में होना अपने कथन में स्पष्ट रूप से नहीं कहा है किन्‍तु कंडिका 03 में यह स्पष्टीकरण दिया है कि आरोपी ने दिनांक 20.08.2007 को उसके साथ गाली गलौच की थी और कहा था कि तुम्हारी नौकरी चली जायेगी और उसने पूछा था कि पैसे लाये हो तब मैने कहा था कि नहीं लाया हॅू तब उसने नोटिस के पीछे दो हजार रूपये लिख दिया इस कारण से वह ए.सी.बी. के कार्यालय आ गया था।
27. यद्यपि प्रार्थी की साक्ष्य में आये उक्त कथनों से सीधे तौर पर रिश्वत की मांग किया जाना तो प्रकट नहीं होता है। प्रार्थी के प्रति परीक्षण की कंडिका 14 में आये तथ्यों से यही प्रकट होता है कि आरोपी ने प्रार्थी उदय सिंह से दो हजार रूपये लाने को कहा था तथा मजदूरी के भुगतान के रूप में 9730/- रूपये दिये जाने की जानकारी प्रार्थी को होने के तथ्य भी आये है, पर अभियुक्त के धारा 313 द.प्र.सं. के कथनो में आये तथ्यों से यह दर्शित होता है कि उसने अभियुक्त को 2000 रूपये लाने को कहा था। अभियुक्त आर.बी.सिंह ने धारा 313 द.प्र.सं. के तहत लेखबद्ध कथनों में यह स्पष्टीकरण दिया है कि ‘‘ प्रार्थी द्वारा उसे दी गई मजदूरी भुगतान की राशि अधिक होने के कारण 2000/- रूपये देकर समय चाहता था उसके निवेदन पर मैने समय दिलाये जाने का आश्वासन दिया रिश्वत की मांग नहीं किया था।‘‘ अभियुक्त द्वारा दिये उक्त स्पष्टीकरण से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि उसने प्रार्थी से 2000 रूपये लाने को कहा था। अब देखना है कि उक्त मांग मजदूरी के भुगतान के रूप में अथवा रिश्वत के रूप में की गई थी। इस संबंध में प्रार्थी को दिये गये नोटिस प्र.पी. 04 का अवलोकन किया जावे तो परिलक्षित होता है कि प्रार्थी से मजदूरी भुगतान से संबंधित अभिलेखों का सत्यापन कराने की सूचना दी गई थी। उक्त नोटिस में मजदूरी के भुगतान के संबंध में कोई निर्देश नही था।
28. श्रम पदाधिकारी भंवरसिंह बरिहा अ.सा.05 की साक्ष्य में आये तथ्यों से यह भी स्पष्ट है कि प्रार्थी के विरूद्ध की गई शिकायत के संबंध में अभियुक्त को जांच नहीं सौपी गई थी। अभियोजन के दस्तावेज कार्य विभाजन आदेश प्र.पी. 24 के अनुसार अभियुक्त आर.बी.सिंह का कार्यक्षेत्र ग्राम डोंगरीगुड़ा नही है जहां पर निर्माण कार्य के एवज में मजदूरी का भुगतान करने की शिकायत प्राप्त हुई थी। उक्त स्थिति में अभियुक्त द्वारा प्रार्थी से दो हजार रूपये लेकर आने के संबंध कहा जाना मजदूरी के भुगतान की रकम की मांग करना नहीं कहा जा सकता है। हांलाकि अभियुक्त की ओर से प्रार्थी का जो प्रति परीक्षण किया गया है उसमें इस बात लाने का प्रयास किया गया है कि अभियुक्त ने यह कहा था कि दो हजार रूपये लाकर देने पर उसकी रसीद दी जानी थी और शेष राशि के लिए समय दिलाया जाना था। पर यहां पर प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि अभियुक्त को प्रार्थी के संबंध में कोई भी कार्यवाही करने का अधिकार नही था तब अभियुक्त द्वारा प्रार्थी को दो हजार रूपये के भुगतान की रसीद दिलाने का तथा शेष राशि के लिए अतिरिक्त समय दिलाये जाने का आश्वासन दिये जाने विषयक लिया गया आधार विश्वसनीय प्रतीत नहीं होता है। प्रार्थी ने भी प्रति परीक्षण की कंडिका 15 व 16 में बचाव पक्ष के उक्त सुझाव से इंकार करते हुए यह स्पष्टीकरण दिया है कि आरोपी ने उससे दो हजार रूपये की मांग की थी परंतु रसीद देने की बात नहीं की थी। अतः साक्ष्य के सूक्ष्म विश्लेषण के पश्चात् यह स्थापित पाया जाता है कि अभियुक्त द्वारा की दो हजार रूपये की मांग मजदूरी के भुगतान की मांग न होकर वस्तुतः रिश्वत के रूप में ही थी।
29. अब रिश्वत की रकम को प्रतिग्रहित के संबंध में आई साक्ष्य पर विचार करना है। अभियुक्त द्वारा रिश्वत को प्रतिग्रहित किये जाने के संबंध में ट्रैप कार्यवाही के संबंध में आई साक्ष्य को मुख्य आधार बनाया है। अब यह देखा जाना है कि क्या अभियुक्त के विरूध्द हुई कार्यवाही के संबंध में आई साक्ष्य में विश्वसनीय आधार उपलब्ध है ? प्रार्थी के आवेदन के पश्चात अभियुक्त के विरूध्द ट्रैप कार्यवाही किये जाने में ट्रैप दल को गठित किये जाने की पुष्टि विवेचक लारेंस खेस (अ.सा.13) ने की है। ट्रैप कार्यवाही के विभिन्न प्रक्रियाओं के संबंध में आई साक्ष्य पर सिलसिलेवार विचार करनें के उपरांत उनके क्रमों में विभाजित करना उचित होगाः-
01. एंटी करप्शन ब्यूरो, कार्यालय में फिनाफ्थलीन व सोडियम कार्बोनेट के पावडर का प्रदर्शन करके ट्रेप दल को कार्यवाही की प्रक्रिया के बारे में समझाया गया।
02. प्रार्थी को ट्रैप कार्यवाही के लिये तैयार करना जिसके अंतर्गत प्रार्थी स्वयं, जिस राशि को प्राप्त रिश्वत के रूप में अभियुक्त को दिया जाना है, उस राशि पर फिनाफ्थलीन पावडर लगाकर इस संबंध में प्रार्थी को समझाता है।
03. ट्रैप दल के मौके पर पहुँचाने के पश्चात प्रार्थी द्वारा अभियुक्त के पास जाकर उसे रिश्वत देकर ट्रेप दल को संकेत देना।
04. तत्पश्चात ट्रैप दल द्वारा मौके पर पहुँच कर रिश्वती रकम जप्त कर अन्य कार्यवाही करना।
30. बिदु क्र. 01 व 02 के संदर्भ में प्रार्थी उदय सिंह बघेल, पंच साक्षी अजय शर्मा(अ.सा.03), जगदीशप्रसाद(अ.सा.07), एम.एल.नेगी(अ.सा.11), विवेचक लारेंस खेस (अ.सा.13), ने फिनाफ्थलीन पावडर लगाकर सोडियम कार्बोनेट के घोल में प्रदर्शन को अपनी साक्ष्य में विस्तृत कथन करते हुये पुष्ट किया है। साक्षी लारेंस खेस का कथन रहा है कि प्रार्थी उदय सिंह बघेल नें ट्रेप कार्यवाही के लिए 2000/- रूपये के नोटों को प्रस्तुत किया, जिसमें एक हजार रूपये का एक नोट तथा पॉच सौ रूपये का एक नोट और सौ रूपये के पॉच नोट थे। इन नोटों पर आरक्षक रामसेवक सिन्हा द्वारा फिनाफथलीन पाउडर नोटों के दोनों तरफ हल्की परत लगाकर प्रार्थी की शर्ट की जेब में रखवाया गया और प्रार्थी को यह समझाया गया कि वह रिश्वती नोटों को हाथ न लगाये और कार्यालय के बाहर आकर सिर खुजलाकर ट्रेप दल को संकेत देवे।
31. आरक्षक रामसेवक सिन्हा के हाथों को तथा ट्रैप दल के सदस्यों का हाथ जलीय घोल में घुलाया गया। साक्षी राम सेवक सिन्हा ने कार्यालय में बुलाकर घोल के प्रदर्शन की सम्पूर्ण कार्यवाही को प्रदर्शित किया है। इस साक्षी ने उक्त कार्यवाही को पुष्ट करते हुये यह कथन किया है कि दि.21.08.2007 को कार्यालय में करीब 12.00 बजे प्रार्थी उदय सिंह बघेल आये। उस समय पांच साक्षी अजय शर्मा  व जगदीश बघेल भी उपस्थित थे। प्रार्थी ने ट्रेप कार्यवाही के लिये दो हजार रूपये निकाल कर खेस के समक्ष प्रस्तुत किये जिसमें एक हजार रूपये का एक नोंट, पॉच सौ रूपये का एक नोंट व सौ-सौ रूपये के पाँच नोंट थे। इन रूपयों के नम्बरों को साथी के द्वारा प्रारम्भिक पंचनामा में उल्लेख किया गया। उसके बाद उसने नोटों के दोनों तरफ फिनाफ्थलीन पावडर की हल्की परत लगाकर उन्‍हें प्रार्थी की शर्ट की बांई खुली जेब में रख दिया तथा प्रार्थी को यह समझाईश दी गई थी कि अभियुक्त को रूपये देने के पूर्व उन रूपयों को हाथ नही लगाना है और रूपये देने के पश्चात भी अभियुक्त से हाथ नही मिलाना है एवं रिश्वत देने के बाद बाहर आकर बांये हाथ से सिर खुजलाकर ट्रैप दल को संकेत देना है। साक्षी का यह भी कहना रहा है कि आरक्षक घनश्याम साहू ने उसके बाद कांच के एक गिलास में सोडियम कार्बोनेट के जलीय घोल तैयार करके उसके दोनों हाथों को धुलाया तो घोल का रंग गुलाबी हो गया। जिसे कांच की शीशी में भरकर पंच साक्षियों के हस्ताक्षर की गई पर्ची लगाकर हस्ताक्षर किये गये। प्रार्थी को इसके पश्चात यह समझाईश भी दी गई कि जब इन रूपयों की मांग की जावेगी तो उसके हाथ भी सोडियम कार्बोनेट के जलीय घोल में डुबोये जाने पर घोल का रंग गुलाबी हो जायेगा।
32. धनश्याम साहू (अ.सा.08) ने भी कार्यालय में प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत किये गये नोटों की संख्या के पंचनामा पर लिखने एवं आरक्षक रामसेवक सिन्हा द्वारा नोंटों पर फिनाफ्थलीन लगाये जाने का समर्थन किया है। जिसके साथ साथ वह स्वयं के द्वारा जलीय घोल तैयार कर आरक्षक राम सेवक सिन्हा के हाथ धुलाये जाने एवं घोल का रंग गुलाबी हो जाने विषयक कार्यवाही की भी पुष्टि की है। एंटी करप्शन ब्यूरो कार्यालय में की गई कार्यवाही का प्राथमिक पंचनामा प्र.पी.02 को विवेचक लारेंस खेस (अ.सा.13) ने बनाने की पुष्टि की है। इस प्रकार ट्रैप कार्यवाही के दौरान फिनाफ्थलीन पावडर व सोडियम कार्बोनेट के घोल के संबंध में रिश्वती रकम के तथ्य को प्राप्त करने के लिये जो कार्यवाही मौके पर की जानी थी, उसे ए.सी.बी. कार्यालय में प्रदर्शन कर ट्रेप दल के सभी सदस्यों को अवगत कराया जाना वर्तमान प्रकरण में पाया जाता है।
33. बिंदु क्र. 03 व 04 के संबंध में निरीक्षक लारेंस खेस अ.सा.13 तथा निरीक्षक एम.एल.नेगी अ.सा. 12 की साक्ष्य में आये तथ्यों से यह स्पष्ट है कि कार्यवाही के लिए ट्रैप दल का गठन किया गया जिसमें लारेंस खेस, निरीक्षक एम.एल.नेगी, पंच साक्षी अजय शर्मा, जगदीश प्रसाद, प्रार्थी उदयसिंह बघेल, घनश्याम साहू, बलराम नाग को शामिल किया गया तथा प्रार्थी उदयसिंह बघेल और उसके साथी बलराम नाग को छोड़कर शेष टैप दल के सदस्य मार्शल वाहन क्र. सी.जी.19-0107 से रवाना हुए एवं प्रार्थी व बलराम नाग अपनी मोटर साईकिल पर रवाना हुए। टैप कार्यवाही के आगामी स्तर के संबंध में प्रार्थी उदयसिंह बघेल अ.सा.01 का अभिसाक्ष्य है कि जब वह श्रम कार्यालय पहुचा तब अभियुक्त अपने चेम्बर में बैठा मिला उसने बैठने को कहा और पूछा कि रूपये लेकर आये हो, जिस पर उसने दो हजार रूपये अपनी जेब से निकाला और अभियुक्त को दे दिया। अभियुक्त ने रिश्वती रकम दो हजार को अपनी जेब में रख लिया। उसके बाद पूर्व में दिये गये जबाब की प्रति अभियुक्त ने मांगी और उस पर पावती स्वरूप हस्ताक्षर करके उसे दे दिया।
34. प्रार्थी उदय सिंह बघेल अ.सा.01 की साक्ष्य की कंडिका 16 में आये तथ्यों से यह भी स्पष्ट है कि जब प्रार्थी अभियुक्त के कार्यालय में गया था तब उसके साथ उसका एक साथी बलराम नाग भी मौजूद था तथा जब ए.सी.बी. कार्यालय में शिकायत की थी, तब बलराम नाग को ए.सी.बी. कार्यालय से एक टेप रिकार्ड को वार्तालाप करने लिए दिया गया था। प्रार्थी उदय सिंह ने हालांकि उक्त कंडिका में यह भी व्यक्त किया है कि जब वे लोग कार्यालय में गये, उस समय टेप रिकार्ड चालू था या बंद था, इस बात को बलराम नाग ही बता सकता है। यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि अभियोजन की ओर से बलराम नाग की साक्ष्य नहीं कराई गई है पर अभियोजन की ओर से श्रम कार्यालय में हुई बातचीत के टेप की स्क्रिप्ट प्र.पी. 08 को प्रस्तुत किया गया है।
35. साक्षी लारेंस खेस अ.सा.12 की साक्ष्य की कंडिका 11 में आये तथ्यों यह भी स्पष्ट है कि रिश्वत को देने के समय की बातचीत के वृतांत को टेप करनें के लिए प्रार्थी तथा उसके साथी बलराम नाग को एक टेप दिया गया था। प्रार्थी उदय सिंह वघेल अ.सा.01 भी परीक्षण की कंडिका 09 में व्यक्त किया है कि उसके तथा अभियुक्त के बीच में हुई बातचीत का स्क्रीप्ट प्र.पी.08 तैयार किया गया था। टेप रिकार्ड द्वारा रिकार्ड की गयी आवाज क्या साक्ष्य है और उसकी ग्राह्यता पर विचार करने के लिये न्यायालय को क्या-क्या देखना है ? इस संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्याय दृष्टांत जियाउद्दीन बुरहानुद्दीन बुखारी विरूद्ध बृजमोहन रामदास मेहरा एवं अन्य ए0आई0आर0 1975 सुप्रीम कोर्ट-1788, के मामले मे तीन न्याय मूर्तिगण की पीठ द्वारा पद क्र019 में यह मार्गदर्शक सिद्धांत अभिनिर्धारित किये गये हैं कि टेप रिकार्ड में रिकार्ड की गई वार्ता साक्ष्य अधिनियम की धारा-3 में परिपाषित दस्तावेज की श्रेणी में आता है एवं यदि निम्न 3 शर्तें पूरी हो तो वह साक्ष्य में ग्राह्य है- (1) जिसके द्वारा यह वार्ता रिकार्ड की गयी उसके द्वारा इस आवाज की पहचान, कि यह अमुक व्यक्ति की आवाज है या उन व्यक्तियों द्वारा जो उसको जानते हो, की जानी चाहिए। (2) क्या वस्तुतः रिकार्ड किया गया वह सही है यह उस रिकार्ड को बनाने वाले व्यक्ति की संतोषप्रद साक्ष्य जो कि सीधे एवं परिस्थितिजन्य भी हो सकती है, के द्वारा सिद्ध की जानी चाहिए ताकि रिकार्ड के साथ किसी भी तरह की भी छेड़खानी किये जाने के संभावना समाप्त हो जाए। (3) एवं रिकार्ड की गई वार्ता की विषयवस्तु साक्ष्य अधिनियम में प्रतिपादित नियमों के अनुसार प्रकरण के मामले से सुसंगत होनी चाहिए। यदि यह तीनों शर्तें पूरी होती है तो टेपरिकार्ड की गई वार्ता साक्ष्य में विधि अनुसार ग्राह्य है। इस सिद्धांत की पुष्टि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तुकाराम एस0 डिघोले वि0 मानिकराव शिवाजी कोकटे ए0 आई0आर0 2010 सुप्रीम कोर्ट-965, में की गई है जिसमें पूर्वोक्त न्याय दृष्टांत को इस बिन्दु पर अनुसरित किया गया है।
36. ए.सी.बी. द्वारा उपरोक्त हस्तलिपि में हुये वार्तालाप को प्रार्थी के साथी और अभियुक्त के मध्य संवाद होना व्यक्त करते हुये अभियुक्त द्वारा रिश्वत की मांग की जाना बतलाया गया है। प्रार्थी उदय सिंह बघेल के कथनों की कंडिका 09 में यह तथ्य आया है कि विवेचक नेगी ने उसके और अभियुक्त के बीच बातचीत का रिकार्ड तैयार किया था तथा रिकार्ड प्र.पी.08 पर उसने हस्ताक्षर किये थे। साक्षी एम.एल. नेगी(अ.सा.12) ने परीक्षण की कंडिका 10 में यह व्यक्त किया है कि प्रार्थी के साथ बलराम नाग को आरोपी से रिश्वत के लेन-देन के समय बात चीत को टेप करनें में एक टेप वाईस रिकार्डर तथा एक छोटा खाली कैसेट के साथ जप्त किया था तथा कैसेट के ए साईड पर ‘‘ रफा-दफा ’’ मार्क का उल्लेख कर बलराम को टेप चलाना सिखाया था। निरीक्षक नेगी की साक्ष्य में आये उक्त तथ्यों से यह प्रकट होता है कि रिश्वती की मांग की पूछ ताछ के संबंध में टेप रिकार्डर में उचित चालन की प्रक्रिया प्रार्थी के साथी बलराम नाग को बताई गई थी जिससे यह परिलक्षित होता है कि पूछताछ के लिये कथित टेप रिकार्डर बलराम नाग को दिया गया था।
37. साक्षी एम एल नेगी(अ.सा.11) ने उक्त प्रक्रिया के संबंध में परीक्षण की कंडिका 25 में यह भी व्यक्त किया है कि प्रार्थी के साथी बलराम नाग ने रिश्वती लेन-देन के समय आरोपी के साथ बातचीत की थी। बातचीत को टेप रिकार्डर में टेप किया। इस साक्षी के अनुसार उक्त रिकार्ड को पंच साक्षियों को सुना कर टेप रिकार्ड सुरक्षित रखा गया। टेप रिकार्डर की बातचीत के आधार पर तैयार की गई स्क्रिप्ट प्र.पी.08 अभिलेख पर है। उसके सामने पर प्रार्थी उदय सिंह बघेल के हस्ताक्षरों के साथ साथ पंच साक्षी अजय शर्मा (अ.सा.03) के भी हस्ताक्षर है। उक्त साक्षी ने परीक्षण की कंडिका 12 में यह व्यक्त किया है कि टेप कार्यवाही के आरोप के दूसरे दिन सुबह एंटी करप्शन ब्यूरो कार्यालय, जगदलपुर में उसे एक टेप सुनवाया गया था। उस समय जगदीश प्रसाद, उदय सिंह बघेल वहाँ पर मौजूद थे। उसके पश्चात् टेप में रिकार्ड की गई बात चीत की स्क्रिप्ट वार्तालाप के अनुसार ही तैयार की गई थी। तत्पश्चात् बात-चीत की कैसेट को जप्त कर जप्ती पत्र प्र.पी.19 तैयार किया गया था जिस पर ए से ए भाग पर उसने हस्ताक्षर किये हैं। साक्षी अजय शर्मा एवं जगदीश प्रसाद ने अपने परीक्षण में स्क्रिप्ट प्र.पी.08 व कैसेट जप्ती पत्र प्र.पी.19 पर अपने हस्ताक्षर होना स्वीकार किया है।
38. स्क्रिप्ट प्र.पी. 08 को निष्कर्ष का आधार बनाने से पहले उसकी प्रमाणिकता व सत्यता की जांच अभियोजन साक्ष्य से करना आवश्यक है। विवेचना अधिकारी लारेंस खेस अ.सा.12 का इस संबंध अभिसाक्ष्य रहा है कि प्रार्थी उदय सिंह के साथी बलराम नाग रे रिश्वत के लेन देन के समय की आरोपी आर.बी.सिंह की आवाज को बातचीत को रिकार्ड के टेप को प्रस्तुत किया। इस टेप की बातचीत का उसके द्वारा स्क्रीप्ट तैयार किया गया, स्क्रीप्ट प्र.पी. 08 पर उक्त साक्षी ने अपने हस्ताक्षरों को भी पुष्ट किया है। स्क्रीप्ट प्र.पी.08 की अंर्तवस्तु को बचाव पक्ष की ओर से प्रति परीक्षण में चुनौती दी है। इस साक्षी ने प्रति परीक्षण की कंडिका 47 में यह स्वीकार किया है कि स्क्रीप्ट प्र.पी.08 में जिन स्थानों पर  ‘‘ - - - ‘‘ की लाइन है उस स्थान की भाषा समझ में नहीं आ रही थी। स्क्रीप्ट में भी उक्त प्रकार के लाइनें कुछ वाक्यों के बीच में होना प्रकट होती है। पंच साक्षी अजय शर्मा अ.सा.03 ने भी स्क्रीप्ट पर अपने हस्ताक्षर को तथा स्क्रीप्ट को अपने सामने बनाया जाना पुष्ट किया है। इस साक्षी ने परीक्षण की कंडिका 12 में व्यक्त किया है कि टेप की कार्यवाही की रात के दूसरे दिन सुबह ए.सी.बी. कार्यालय में उसे एक टेप को सुनाया गया था। उस समय जगदीश प्रसाद उपस्थित थे, प्रार्थी उदय सिंह बघेल भी उपस्थित था। टेप को सुनने के उपरांत ए.सी.बी. के अधिकारी ने कहा था कि आप चाहों तो दुबारा सुन सकते हो, उसके पश्चात् वार्तालाप की सक्रीप्ट तैयार की गई थी, जिस पर उसनें हस्ताक्षर किये थे। साक्षी जगदीश प्रसाद असा. 07 नें उक्त कार्यवाही का समर्थ न करते स्क्रीप्ट प्र.पी. 08 पर अपने हस्ताक्षरों को पुष्ट किया है।
39. जहां तक स्क्रीप्ट प्र.पी. 08 में आवाज के वाक्यों के बीच खाली स्थान होने का प्रश्न है तो स्क्रीप्ट तैयार करने वाले अधिकारी लारेंस खेस ने उक्त स्थानों की आवाज समझ में नहीं आना स्वीकार किया हैं। स्क्रीप्ट में उन खाली स्थानों को छोड़ दिया जाये तो भी अभियुक्त तथा प्रार्थी और उसके साथी बलराम नाग की बातचीत के वृत्तांत को समझने में किसी प्रकार कठिनाई नहीं होती है। इसलिए खाली स्थानों के होने पर भी स्क्रीप्ट में आये वृतांत को विचार में लिया जा सकता है। इस प्रकार स्क्रीप्ट प्र.पी.08 की प्रमाणिकता को जियाउद्दीन मामलें में दिये गये दिशा निर्देशों व मानक के अनुरूप होना वर्तमान मामलें में पाया गया। स्क्रीप्ट बनाने वाले की साक्ष्य विश्वसनीय होना पाई गई है तथा आवाज की पहचान भी भलीभांति की गई है। आवाज के संबंध में कोई संदेह नहीं है तथा टेप के साथ किसी प्रकार छेड़छाड़ किया जाने के संबंध में भी कोई विपरीत साक्ष्य नही है। अतः अब स्क्रीप्ट की अंर्तवस्तु का अवलोकन करनें के पश्चात् यह सुनिश्चित करना होगा कि अभियुक्त तथा प्रार्थी और उसके साथी बलराम नाग की बीच हुई बातचीत में रिश्वत की मांग के संबंध में कोई तथ्य आये है। स्क्रीप्ट की अंर्तवस्तु का अवलोकन करने पर यह तो स्पष्ट रूप से प्रकट होता है कि बलराम नाग की बातों को अभियुक्त द्वारा जो जबाब दिया गया है उसमें रिश्वत की मांग का उल्लेख तो नही आया है किंतु यह अवश्य पूछा है कि ‘‘ पैसा हो गया ‘‘। बलराम नाग द्वारा पूछे गये प्रश्न के उत्तर में अभियुक्त द्वारा यह जबाब दिया गया है कि केस रफा दफा हो जायेगा।
40. उपरोक्त वृतांत से यह तो स्पष्ट है कि अभियुक्त द्वारा पैसों के संबंध में पूछा था। बचाव पक्ष द्वारा यह तर्क दिया है कि अभियुक्त ने प्रार्थी से मजदूरी के भुगतान के पैसो को लाने के लिए कहा था और उसकी रसीद देना कहा था अभियुक्त ने रिश्वत की मांग नही की थी। बचाव पक्ष द्वारा किये तर्क के परिप्रेक्ष्य में स्क्रीप्ट प्र.पी.08 का अवलोकन करने पर उसमें इस बात को उल्लेख आया है कि अभियुक्त ने यहा कहा था कि ‘‘ मै तो कल ही बोल रहा था ‘‘ बातचीत के अंश में अभियुक्त को पावती दिये जाने के बारे में भी कहा गया है। विवेचक लारेंस खेस ने भी उक्त अंशों का स्क्रीप्ट में उल्लेख होना स्वीकार किया है। स्क्रीप्ट प्रपी.08 में आये अंशों से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि सुसंगत समय पर अभियुक्त के कार्यालय में पैसो को देने के बारें में बातचीत हुई थी, तथा पावती के संबंध में भी बातचीत हुई थी। बचाव पक्ष की ओर से यह तर्क भी दिया है कि अभियुक्त को जो पैसा दिया गया था उसकी पावती उसके द्वारा दिया जाना था। इसलिए जो पैसा दिया गया था, वह वस्तुतः रिश्वत की रकम नहीं थी।
41. अभियोजन की ओर से पावती का आशय पर तर्क करते हुए व्यक्त किया है कि प्रार्थी द्वारा जो पावती की मांग की गई थी वह प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत जबाब की पावती थी। वह रकम जमा करने की पावती नहीं थी इसलिए पावती का अर्थ रकम के भुगतान की पावती के संबंध में न लगाया जाए। उक्त तर्क के संदर्भ में प्रार्थी उदय सिंह बघेल के कथनों में आये तथ्यों को देखा जाये तो उसने कंडिका 15 में यह स्वीकार किया है कि आर.बी.सिंह ने उससे यह कहा था कि दो हजार रूपये लेकर आने पर उसे आफिस से पावती मिलेगी। यदि उक्त कथनों को सत्य मान लिया जावे तो अभियुक्त को श्रम कार्यालय की उस प्रक्रिया से संबंधित दस्तावेजों को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए था। जिसमें कार्यालय में पैसे जमा करने के बाद उसकी पावती प्रदान की जाती है। उक्त तथ्य उसके पक्ष को समर्थ न प्रदान करता किंतु तत्संबंध में अभियुक्त की ओर से कोई सुसंगत दस्तावेज प्रस्तुत नही किया है। पावती के आशय को प्रार्थी उदय सिंह बघेल ने कंडिका 16 में स्पष्ट किया है जिसके अनुसार उसने दो हजार देने के एवज में पावती की मांग नहीं की थी बल्कि जो आवेदन दिया था, उसकी पावती की मांग की थी। जबाब प्र.डी.01 का अवलोकन करने पर जबाब की पावती होना प्रकट होता है जिस पर अभियुक्त ने पावती के रूप में हस्ताक्षर भी किये है। अतः स्क्रीप्ट प्र.पी.08 में पावती दिये जाने के संदर्भ में जो जिक्र किया गया था वह वस्तुतः जबाब की पावती के संबंध में ही था।
42. इस प्रकार अभियुक्त व उसके साथी बलराम नाग और अभियुक्त के बीच रकम प्रदान किये जाने के संबंध में प्रर्याप्त तथ्य स्क्रीप्ट प्र.पी.08 में आये हैं तथा स्क्रिप्ट की प्रमाणिकता सुस्थापित विधिक मापदंडों के अनुरूप होना पाई गई है। उक्त साक्ष्य के साथ साथ रिश्वती रकम को अभियुक्त के श्रम कार्यालय में दिये जाने के संबंध में प्रार्थी का साक्ष्य उपलबध है। प्रार्थी उदय सिंह बघेल अ.सा.01 का इस संबंध में कहना है कि उसके बाद बलराम ने आरोपी से कहा कि चलो बाहर चाय पीयेंगे तब वह, बलराम, और आरोपी आर.बी.सिंह तीनों लोग चेम्बर से बाहर चाय पीने के लिए निकले। कार्यालय से बाहर उसने सिर खुजलाकर ट्रैप दल को संकेत दिया। जब वे लोग चाय पीने जा रहे ही थे तभी ट्रैप दल के सदस्य आ गये और उन्होंने आरोपी को पकड़ लिया। उसके आरोपी को उसके कार्यालय में ले गये। वह तथा उसका साथी बलराम नाग कार्यालय के बाहर रह गये और ट्रैप दल के सदस्य चेम्बर में चले गये। उसके बाद क्या हुआ, उसे जानकारी नहीं है।
43. श्रम कार्यालय में अभियुक्त के चेम्बर में हुई कार्यवाही में अभियुक्त से उस रकम को बरामद किया गया जो प्रार्थी द्वारा उसे दी गई थी। इसके साथ साथ फिनाफ्थलीन व सोडियम कार्बोनेट घोल की कार्यवाही की गई। उक्त कार्यवाहियों का ट्रैप दल के सदस्यों तथा अभियोजन साक्षियों अजय शर्मा, जगदीश प्रसाद, घनश्याम साहू, एम.एल.नेगी, लारेंस खेस ने अपनी साक्ष्य में विस्तार से विवरण दिया है। साक्षी लारेंस खेस अ.सा.13 ने कार्यवाही के संबंध में कथन किया है कि अभियुक्त से रिश्वती रकम 2000 रूपये के संबंध में पूछताछ की गई, जिन्होंने रिश्वती रकम को अपने फुलपेंट में पीछे के दाहिने जेब में रखना बताया जिस पर उसकी पेंट की जेब से रिश्वती रकम दो हजार रूपये एवं उसके अन्य रकम 510 रूपये निकाले गये। अभियुक्त की पेंट की जेब से दो हजार रूपये पाये जाने की पुष्टि पंच साक्षी अजय शर्मा  और जगदीश प्रसाद के अलावा साक्षी एम.एल.नेगी नें भी की है। यह भी स्पष्ट है कि प्रारंभिक पंचनामा प्र.पी.02 में रिश्वती रकम के नोटों के नंबरों को दर्ज किया था, मौके पर अभियुक्त की जेब से उन्हीं नोटों को पाया गया।
44. साक्षी घनश्याम साहू अ.सा. 08 नें मौके पर घोल बनाने तथा हाथ धुलवाने की कार्यवाही करना व्यक्त किया है। इस साक्षी के कथनों में तथ्यों के अनुसार उसने रिश्वती रकम, अभियुक्त के पेंट की जेब, ट्रैप दल के सदस्यों के हाथों, तथा अभियुक्त और प्रार्थी के हाथों को धुलवाया था। उक्त कार्यवाही में सोडियम कार्बोनेट के घोल का रंग गुलाबी हो गया था। उक्त समस्त कार्यवाही इस बात को पुष्ट करती है कि मौके पर टैप दल द्वारा की गई कार्यवाही में अभियुक्त के पास से दो हजार रूपये पाये गये। साक्ष्य से यह भी स्थापित पाया गया है कि प्रार्थी द्वारा दिये गये दो हजार रूपये की रकम ही अभियुक्त के पास से पाई गई है। प्रार्थी द्वारा अभियुक्त को दिये जाने वाले जिन 2000/- रूपये की रकम को ए.सी.बी.कार्यालय में ट्रैप करने के प्रयोजन से जमा किया गया था। उन्हीं नम्बरों के नोंट ट्रेप कार्यवाही के दौरान अभियुक्त के पास से बरामद किये गये हैं। इस प्रकार अभियुक्त द्वारा रिश्वत की रकम को प्रतिग्रहित किये जाने के संबंध में पर्याप्त सामग्री अभिलेख पर है।
45. इस प्रकार अभियोजन साक्ष्य से यह तथ्य तो स्थापित पाया गया है कि प्रार्थी उदय सिंह बघेल से जिस 2000/- रूपये की मांग अभियुक्त द्वारा की गई थी। वह राशि ट्रैप कार्यवाही के पश्चात अभियुक्त के कब्जे से बरामद की गई। हस्तगत प्रकरण में अभियोजन को सुसंगत धारा के आवश्यक तत्वों के अंतर्गत प्रथमतः रिश्वती रकम की मांग किये जाने और द्वितीयतः उसे प्रतिग्रहित किये जाने को साबित किया जाना है। अभियोजन की ओर से उक्त दोनों बिन्दुओं के बारे में जो साक्ष्य प्रस्तुत की गई है, उसकी रिश्वत की मांग के संबंध में अभियोजन सामग्री के प्रमुख आधार के रूप में प्रार्थी उदय सिंह बघेल के कथन विश्वसनीय पाये गये है तथा धारा 313 द.प्र.सं. के तहत लेखबद्ध कथनों में प्रश्न क्र. 23 के उत्तर में साक्षी द्वारा दिया गया उत्तर इस बात की संपुष्टि करता है कि प्रार्थी को दो हजार रूपये जमा करने के लिए कहा गया था। उक्त प्रश्न उत्तर का यहां पर उल्लेख करना उचित होगा जो इस प्रकार है:-
प्र.क्रं. 23- साक्षी उदयसिंह बघेल का यह भी कहना है कि बाहर निकलने के बाद आपने उसके नोटिस के पीछे दो हजार रूपये लिख दिया था और कहा कि अगले दिन 21.08.07 को उसके कार्यालय में मिलना ?
उत्तर- गलत है, मैनें कहा था रकम पटाना होगा, वर्तमान में दो हजार रूपये पटाओ बाकी के लिए समय दिला देगे।
46. जहां तक रकम के प्रतिग्रहण का प्रश्न है तो इस संबंध में स्क्रिप्ट प्र.पी.08 के साथ अभियोजन साक्षियों लारेंस खेस, प्रार्थी उदय सिंह बघेल, पंच साक्षी अजय शर्मा, जगदीश प्रसाद तथा आरक्षक घनश्याम साहू की साक्ष्य उक्त बिंदु एक दूसरे से परस्पर समर्थित होना पाई गई है अभियुक्त द्वारा धारा 313 द.प्र.सं. के किये प्रनों के संदर्भ में जो उत्तर दिया है उनसे भी स्पष्ट हो जाता है कि अभियुक्त द्वारा प्रार्थी से दो हजार रूपये प्राप्त किये थे। यहां यह उल्लेख करना भी उचित होगा कि अभियुक्त द्वारा रकम को प्राप्त करने का जो निष्कर्ष धारित किया गया वह मात्र उसके धारा 313 द.प्र.सं. के अंर्तगत किये प्रश्नों के उत्तर की स्वीकारोक्ति के आधार पर ही नहीं किया गया है। अपितु अभियोजन की ओर से प्रस्तुत की गई साक्ष्य के सूक्ष्म विश्लेषण के पश्चात् रकम के प्रतिग्रहण को पुष्ट पाया गया है। धारा 313 द.प्र.सं. के तहत अभियुक्त से किये गये प्रश्न तथा उनके उत्तरों का यहां पर उल्लेख करना समीचीन होगाः-
प्र.क्र. 172- साक्षी जगदीश प्रसाद का कहना है कि प्रार्थी और उसका साथी आपके कार्यालय में अंदर घुसे थे?
उत्तर- सही है।
प्र.क्र.173 - इसी साक्षी जगदीश प्रसाद का यह भी कहना है कि थोड़ी देर बाद प्रार्थी और आप दोनों बाहर निकले थे ?
उत्तर - सही है
प्र.क्र.175 - इसी साक्षी जगदीश प्रसाद का यह भी कहना है कि वे सभी ट्रैप दल के सदस्य वहां पर पहुँच गये थे ?
उत्तर - सही है
प्र.क्र.176 - इसी साक्षी जगदीश प्रसाद का यह भी कहना है कि वहां पर नेगी ने आपके बांए हाथ को तथा खेस ने दायें हाथ को
पकड़ा और अपना परिचय दिया था ?
उत्तर -सही है
प्र.क्र.178 - इसी साक्षी जगदीश प्रसाद का यह भी कहना है कि आपसे रिश्वती रकम के बारे में पूछ ताछ की गई थी ?
उत्तर - सही है
प्र.क्र.179 - इसी साक्षी जगदीश प्रसाद का यह भी कहना है कि आपने बताया कि रिश्वती रकम को पेंट के पीछे के जेब के दायें
तरफ रखी है ?
उत्तर - सही है
प्र.क्र.180 - इसी साक्षी जगदीश प्रसाद का यह भी कहना है कि पंच साक्षी अजय शर्मा  ने पेंट से रिश्वती रकम को निकाला और उन
नोंटों के नम्बरों को प्रारम्भिक पंचनामा के नोटों से मिलान किया गया था ?
उत्तर - सही है
प्र.क्र.181 - इसी साक्षी जगदीश प्रसाद का यह भी कहना है कि मिलान करने पर वही नोंट पाये गये जो प्रारम्भिक पंचनामा में नोंट
किये गये थे ?
उत्तर - सही है
प्र.क्र.182 - इसी साक्षी जगदीश प्रसाद का यह भी कहना है कि रिश्वती रकम के अलावा पांच सौ दस रूपये अतिरिक्त पाये गये ?
उत्तर - सही है
प्र.क्र.183 - इसी साक्षी जगदीश प्रसाद का यह भी कहना है कि सोडियम कार्बोनेट का घोल तैयार किया गया और उस घोल में
रिश्वती रकम को डुबाया गया तो घोल का रंग हल्का गुलाबी हो गया ?
उत्तर - सही है
प्र.क्र.184 - इसी साक्षी जगदीश प्रसाद का यह भी कहना है कि उक्त घोल को एक कांच की शीशी में रखकर उस पर पंच साक्षियों
के हस्ताक्षर युक्त पर्ची लगाई गई थी ?
उत्तर - सही है
प्र.क्र.185 - इसी साक्षी जगदीश प्रसाद का यह भी कहना है कि पंच साक्षी अजय शर्मा  के हाथों की उंगलियों को सोडियम कार्बोनेट
के घोल में डुबोकर धुलाया गया तो उक्त घोल का रंग हल्का गुलाबी हो गया था ?
उत्तर - सही है
प्र.क्र.186 - इसी साक्षी जगदीश प्रसाद का यह भी कहना है कि आपसे जप्त 510/- रूपये को भी अलग से डुबाया गया तो घोल
का रंग हल्का गुलाबी हो गया ?
उत्तर - सही है
प्र.क्र.187 -इसी साक्षी जगदीश प्रसाद का यह भी कहना है कि आपके पहने हुए पेंट को उतरवाकर जिस जेब में रिश्वती रकम रखी
थी उसे सोडियम कार्बोनेट के घोल में धुलाया गया तो घोल का रंग हल्का गुलाबी हो गया ?
उत्तर - सही है
प्र.क्र.188 - इसी साक्षी जगदीश प्रसाद का यह भी कहना है कि आपके हाथों की उंगलियों को भी सोडियम कार्बोनेट के घोल में
डुबाया गया तो घोल का रंग हल्का गुलाबी हो गया ?
उत्तर - सही है
प्र.क्र.189 - इसी साक्षी जगदीश प्रसाद का यह भी कहना है कि उक्त घोल को भी कांच की शीशी में बंद कर उस पर पंच साक्षियों
की हस्ताक्षरयुक्त पर्ची लगाई गई थी ?
उत्तर - सही है
प्र.क्र.190 - इसी साक्षी जगदीश प्रसाद का यह भी कहना है कि प्रार्थी के हाथों की उंगलियों को भी सोडियम कार्बोनेट के घोल में
डुबोया गया तो उक्त घोल हल्का गुलाबी हो गया व उक्त घोल को भी कांच की शीशी में बंद कर उस पर पंच साक्षियों के हस्ताक्षर
युक्त पर्ची लगाई गयी थी ?
उत्तर - सही है
47. अभियुक्त द्वारा दिये गये उपरोक्त उत्तरों से इसी बात को समर्थ न प्राप्त होता है कि अभियुक्त की जेब से उस रकम को ए.सीबी. ने टेप कार्यवाही के दौरान जप्त किया था, जिसके नंबर प्रारंभिक पंचनामा में उल्लेखित नोंटों के नंबरों से मेल खाते थे। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि अभियुक्त ने रकम को प्राप्त किये जाने के संबंध में कोई प्रतिवाद नहीं किया है। अभियुक्त ने उक्त रकम को रिश्वत की रकम होने से इंकार किया है तथा प्रतिरक्षा का आधार धारा 313 द.प्र.संके कथनों में प्रस्तुत किया है जिस पर आगे की कंडिकाओं में विस्तार से विचार किया जा रहा है।
48. बचाव पक्ष के विद्वान अभिभाषक ने तर्क के दौरान अभियोजन साक्षियों के साक्ष्य के अंशों पर विशेष प्रकाश डालते हुए कतिपय विरोधाभासों को लाने का प्रयास किया है तथा अभियोजन के मामलें को संदेहास्पद होना व्यक्त किया है। अपने तर्को के समर्थ न में न्याय दृष्टांत 2011(3) एम.पी.डब्ल्यू.एन. 89 एस.सी. केरल राज्य व अन्य बनाम सी.पी.राव प्रस्तुत किया है जिसमें माननीय न्यायालय द्वारा यह अभिमत दिया है कि रिश्वत की मांग के संबंध में परिवादी की साक्ष्य संपुष्ट नहीं थी तथा परिवादी की साक्ष्य का अवलंबन नही लेते हुए अभियुक्त की दोषमुक्ति का निष्कर्ष धारित किया गया। प्रस्तुत न्याय दृष्टांत 2007(2) सी.जी.एल.जे. 536 म.प्र.राज्य (अब छ.ग.) बनाम विजय कुमार में रकम की मांग, समय व स्थान के बारे में और मॉग के कारण के बारे में महत्वपूर्ण विसंगतियॉ होने के कारण मामलें को संदेहास्पद माना गया। उपरोक्त मामलों के तथ्य व परिस्थितियॉ वर्तमान मामलें से मेल नहीं खाती है। वर्तमान प्रकरण में अभियुक्त नें इस बिंदु पर कोई प्रतिवाद नहीं किया है कि उसने रकम को प्राप्त किया था, किंतु उसने  प्रतिरक्षा के रूप में यह आधार लिया है कि उसने मजदूरी की रकम को प्राप्त किया था।
49. प्रार्थी उदय सिंह बघेल द्वारा अभियुक्त पर लगाये गये आक्षेपों के संबंध में अभियुक्त ने प्रतिरक्षा का यह आधार लिया है कि, अपीलार्थी के विरूध्द श्रम कार्यालय ने इस आशय की शिकायत दर्ज कराई गई थी कि उसने मजदूरों को उनकी मजदूरी का भुगतान नहीं किया है। इस शिकायत पर अभियुक्त को कार्यालय द्वारा मजदूरों के भुगतान के संबंध में जो नेाटिस जारी किया गया था। मजदूरों को दी जाने वाली मजदूरी के भुगतान की मांग अभियुक्त नें प्रार्थी से की थी। प्रार्थी ने मजदूरी के 2000/-रूपये लाकर अभियुक्त को दिये थे किन्तु प्रार्थी ने दुर्भावनावश झूठे आधारों पर अभियुक्त को रिश्वत की मांग के झूठे प्रकरण में फंसा दिया है।
50. चूंकि अभियुक्त ने कथित रकम को रिश्वत के रूप में न लेना व्यक्त करते हुए उसे मजदूरों के भुगतान की रकम होना बताया है अतः उक्त तथ्य को साबित करने का भार उस पर है। सुस्थापित विधिक सिंद्धातों से यह भी स्पष्ट है कि अभियुक्त को अपने प्रतिरक्षा में लिये गये तत्वों को उस घनत्व तथा मानकों के अनुरूप साबित नहीं करना होता है जितना सबूत के भार का घनत्व को अभियोजन पर अधिरोपित किया गया है। अभियुक्त द्वारा लिये गये आधार के संबंध में संभाव्यता की प्रबलता महत्वपूर्ण होती है। अतः उक्त मानकों के प्रकाश में अभियुक्त के प्रतिरक्षा के बिंदु पर विचार करना है। बचाव पक्ष के विद्वान अभिभाषक द्वारा प्रस्तुत न्याय दृष्टांत 2007(11) सी.जी.एल.जे.187 सुरेन्द तिवारी बनाम म.प्र.राज्य (अब छ.ग.राज्य) में इस न्यायालय का ध्यान इस ओर आकृष्ठ कराया गया है कि बचाव पक्ष की ओर से प्रस्तुत साक्ष्य को भी उसी प्रकार से विचार में लिया जाना चाहिए जिस प्रकार से अभियोजन की साक्ष्य को विचार में लिया जाता है। यह न्यायालय विद्वान अभिभाषक के उक्त तर्क से सहमत है पर यहां यह उल्लेख कर देना भी उचित होगा कि बचाव पक्ष को अपनी साक्ष्य को संभाव्यता की बाहुल्यता के मानकों के अनुरूप प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जाती है।
51. अभियुक्त ने प्रतिरक्षा के उक्त आधार पर बचाव साक्ष्य के रूप में साक्षी आर.के.गुप्ता ब.सा.01 की साक्ष्य कराई है। उक्त साक्षी सुसंगत समय पर अभियुक्त के साथ ही पदस्थ रहा है। इस साक्षी का कथन रहा है कि वह वर्ष 2004 से 2007 तक श्रम कार्यालय, जगदलपुर में श्रम निरीक्षक के पद पर पदस्थ रहा था। अगस्त 2007 में ए.सी.बी. द्वारा अभियुक्त के विरूध्द ट्रैप की कार्यवाही की थी। बचाव साक्षी आर.के.गुप्ता वा.सा.01 का यह कथन भी रहा है कि उदयसिंह नामक व्यक्ति ने अभियुक्त को सन 2007 में कार्यालय में लेबर पेमेंट के संबंध में 2000/- रूपये दिये थे। उक्त रकम को कार्यालय अवधि में 12.00-12.15 बजे दिया था। उदय सिंह ने उसके समक्ष आर.बी.सिंह को 2000/-रूपये देते हुये यह कहा था कि शेष रकम वह अभी नही दे पा रहा है। इसके लिये समय दिलाया जावे। उस समय उदय सिंह के साथ उसका एक साथी भी मौजूद था। जिसने आर.बी.सिंह से यह कहा था कि क्या उसे 2000/- रूपये की पावती मिलेगी तब आर.बी.सिंह ने कहा था कि उसने तो पहले ही कहा था कि उसे पावती मिलेगी। बचाव साक्षी आर.के.गुप्ता (अ.सा.01) की साक्ष्य में जो तथ्य आये हैं वह अभियोजन के इस आधार को दृढ़ता प्रदान करता है कि अभियुक्त द्वारा प्रार्थी से 2000/-रूपये प्राप्त किये गये थे।
52. उभय पक्ष द्वारा प्रस्‍तुत किये गये आधारों के परिप्रेक्ष्य में यह प्रश्न अत्यन्त महत्वपूर्ण हो जाता है कि अभियुक्त द्वारा प्राप्त की गई 2000/-रूपये की रकम मजदूरी के भुगतान के रूप में अथवा रिश्वती रकम के रूप में थी ? इस संबंध में अभियुक्त द्वारा श्रम कार्यालय से किसी अन्य साक्षी अथवा दस्ताव ेज को प्रस्तुत नही किया है। अभियोजन की ओर से श्रम कार्यालय के मुख्य पदाधिकारी के रूप में भंवर सिंह (असा.05) की साक्ष्य कराई है। उक्त साक्षी के कथनों में आये तथ्यों से यह तो साबित पाया गया है कि शिकायतकर्ता फगनूराम ने मजदूरी का भुगतान नहीं कराये जाने की शिकायत श्रम कार्यालय में की थी। इस शिकायत पर प्रार्थी उदय सिंह बघेल को श्रम कार्यालय से एक नोटिस प्रपी.04 जारी किया गया था। उक्त साक्षी ने अपने कथनों में यह भी स्पष्ट कर दिया है कि कथित शिकायत के संबंध में अभियुक्त को जांच के लिये नही कहा था। अतः यह भी स्पष्ट हो जाता है कि प्रार्थी के विरूध्द श्रम कार्यालय में की गई शिकायत का अभियुक्त से कोई संबंध नही रहा था।
53. बचाव पक्ष की ओर से साक्षी भंवरसिंह के प्रति परीक्षण में इस आशय का लेश मात्र भी सुझाव नही लाया गया है कि अभियुक्त आर.बी.सिंह द्वारा प्रार्थी से 2000/-रूपये की मांग की गई वह वस्तुतः मजदूरी के भुगतान के रूप में थी। इस साक्षी से इस संबंध में भी कोई स्पष्टीकरण बचाव पक्ष की ओर से नही लाया गया है कि प्रार्थी उदय सिंह को मजदूरों की मजदूरी भुगतान करनें का निर्देश देने के संबंध में भी नोटिस जारी किया गया था तथा उक्त राशि को जमा करने के लिये प्रार्थी का अवसर प्रदान किया गया था। उसके साथ साथ बचाव पक्ष ने उक्त साक्षी से इस आशय का कोई सुझाव नही लिया है कि अभियुक्त आर.बी.सिंह द्वारा प्रार्थी से जो 2000/-रूपये प्राप्त किये गये थे वह मजदूरी के भुगतान के रूप में प्राप्त किये गये थे। जिसकी पावती प्रार्थी पक्ष को दी गई थी। अभियुक्त की ओर से श्रम कार्यालय, जगदलपुर से ऐसा कोई दस्तावेजी साक्ष्य भी प्रस्तुत नही किया है जिससे यह दर्शित हो सके कि अभियुक्त ने जिस 2000/-रूपये की रकम को प्रार्थी उदय सिंह से प्राप्त किया था वह मजदूरी के भुगतान के रूप में दी जानी थी।
54. इस बिन्दु पर भी अभियुक्त ने कोई समाधानप्रद साक्ष्य प्रस्तुत नही की है कि जिस रकम को उसने मजदूरी के रूप में प्राप्त किया था, उसकी विधिक उपबंध अनुसार पावती दिया जाना भी अपेक्षित था। श्रम कार्यालय के श्रम पदाधिकारी भंवर सिंह बरिहा से बचाव पक्ष ने मजदूरी भुगतान के नियम या उससे संबंधित प्रक्रिया को भी स्पष्ट नहीं कराया है कि मजदूरी के रकम के भुगतान आंशिक रूप से करने पर शेष रकम के लिए समय प्रदान किया जा सकता है तथा मजदूरी के भुगतान की पावती दी जाती है। इस प्रकार बचाव पक्ष की ओर से प्रस्तुत साक्षी आर.के.गुप्ता ब.सा.01 की साक्ष्य से यह तो साबित पाया गया है कि अभियुक्त ने प्रार्थी से श्रम कार्यालय में 2000/-रूपये प्राप्त किये थे किन्तु उक्त 2000/-रूपये को मजदूरी के भुगतान के रूप में प्राप्त करने के तथ्य को अभियुक्त ने सुसंगत साक्ष्य से साबित नही किया है। उक्त स्थिति में उसकी ओर से प्रतिरक्षा का जो आधार लिया गया है, वह साक्ष्य के अभाव में ग्राह्य योग्य नही है।
55. न्याय दृष्टांत 2010(3)सी.सी.एस.सी. 1412 (एस.सी.) बिल्ला नागूल शरीफ बनाम आन्ध्रप्रदेश राज्य में माननीय न्यायालय यह पाया कि अभिलेख पर यह प्रचुर साक्ष्य कि तथ्यतः परिवादी को संहत अनुज्ञप्ति मुजूद करने के प्रयोजनार्थ  अपीलार्थी ने रिश्वत मांगी, जिसका भुगतान उसको किया गया और जिसे उसके कब्जे से बरामद किया गया। अपीलार्थी द्वारा पेश किये गये इस अभिवाक पर कि धन उसकी जेब में डाल दिया गया था, अभियोजन साक्षियों से सुस्पष्ट एवं संगत साक्ष्य में प्रत्यक्षतः विश्वास किया जाना उपयुक्त नहीं है। विचारण और अपीलीय न्यायालय द्वारा पारित दोषसिद्धि को बरकरार रखा गया। वर्तमान प्रकरण में अभियुक्त ने यद्यपि रकम को प्राप्त किया जाना तो स्वीकार किया है किंतु उसने उक्त रकम को मजदूरी के भुगतान के रूप में प्राप्त किया जाना व्यक्त किया है और उसने मजदूरी के रूप में रकम प्राप्त करने के तथ्य को समाधान योग्य साक्ष्य से पुष्ट नही किया है।
56. न्याय दृष्‍टांत 2012(3)सी.सी.एस.सी.1691 एस.सी. नरेन्द्र चम्पकलाल त्रिवेदी बनाम गुजरात राज्य में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया है कि अवैध परितोषण के रूप में धनराशि की मॉंग और उसका प्रतिग्रहण भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अधीन अपराध गठित करने के लिए अनिवार्य है। विधितः यह भी स्थापित है कि अधिनियम की धारा 20 के अधीन जो कानूनी उपधारणा है उसे अभियुक्त द्वारा अभिलेख पर या तो प्रत्यक्ष या परिस्थितिजन्य साक्ष्य लोकर अमान्य किया जा सकता है यह कि धन उस हेतु या परितोषिक से भिन्न अन्यथा प्राप्त किया गया था जैसा कि अधिनियम की धारा 7 के अधीन नियत है। न्यायालय की ओर से अधिनियम की धारा 20 के अधीन अभियुक्त द्वारा प्रस्तावित स्पष्टीकरण पर विचार करना बाध्यकर है और स्पष्टीकरण का विचारा सम्भाव्यता की प्रबलता के आधार पर होना चाहिये। उसे सभी युक्तियुक्त संदेहों से परे साबित नही किया जाना है। यहां यह अधिकथित करना आवश्यक है कि अभियोजन यह साबित करने लिए आबद्ध है कि रिश्वत का एक अवैध प्रस्ताव और उसका प्रतिग्रहण था। उसे तथ्यों पर आधारित होना है। माननीय न्यायालय द्वारा यह भी आभिनिर्धारित किया है कि हस्तगत मामलें में धन अभियुक्त अपीलार्थीगण की जेब से बरामद हुआ था। अधिनियम की धारा 20 अधीन उपधारणा बाध्यकारी हो जाती है। यह विधि की उपधारणा बाध्यकारी हो जाती है। यह विधि की उपधारणा है और वह न्यायालय पर अधिनियम की धारा 7 के अधीन लाये गये प्रत्येक मामलें में उसे लागू करने की बाध्यता अधिरोपित करती है। उक्त स्पष्टीकरण को स्वीकार नही किया गया है ओर उचित रूप से ही वैसा किया गया है। ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिसके आधार पर यह कहा जा सकता हो कि उपधारणा का खण्डन किया गया है।
57. अभियुक्त द्वारा रिश्वत की रकम की मांग और उसे ग्रहण करना स्थापित पाया गया है। अतः अभियुक्त के विरूद्ध अधिनियम की धारा 20 के अधीन उपधारणा उत्पन्न होती है तथा इस उपधारणा का खंडन अभियुक्त द्वारा नहीं किया जा सका है। इस प्रकार अभियोजन ने इस तथ्य को युक्तियुक्त संदेह से परे साबित किया है कि अभियुक्त ने लोक सेवक के रूप में अपने पद का दुरूपयेाग करते हुये वैध पारिश्रमिक से भिन्न 2000/-रूपये की रिश्वत की मांग की एवं रकम को प्राप्त किया। अभियोजन धारा-7(1),13(1)(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के उन समस्त आवश्यक तत्वों को साबित किया है जो उपरोक्त धाराओं में दोष सिध्दि का आधार प्रदान करते हैं। परिणाम स्वरूप अभियुक्त को 7(1),13(1),(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अपराध में दोषसिद्ध किया जाता है। अभियुक्त पूर्व से जमानत पर रिहा है। उसके जमानत व मुचलके निरस्त कर उसे अभिरक्षा में लिया जाता है। दंड के प्रश्न पर सुने जाने के लिए निर्णय कुछ समय के लिए स्थगित किया जाता है।
58. माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राज्य वि0 ए0 पार्थीबन ए0 आई0आर0 2007 सुप्रीम कोर्ट-51, एवं राज्य वि0 रतनलाल अरोड़ा ए0आई0आर0 2004 सुप्रीम कोर्ट 2364, के मामलों में स्पष्ट रूप से अभिनिर्धारित किया है कि अधिनियम की धारा-7 एवं 13 के मामलों में दोषसिद्ध पाये जाने पर परीवीक्षा अधिनियम एवं धारा 360 द0प्र0सं0 के प्रावधानों का लाभ अभियुक्त को नही दिया जाना चाहिए। अतः अभियुक्त आर.बी.सिंह को अपराधी परिवीक्षा अधिनियम एवं धारा 360 द0प्र0सं0 के प्रावधानों का लाभ नही दिया जा रहा है। दण्ड के प्रश्न पर सुनने के लिये निर्णय स्थगित किया जाता है।
(एस.शर्मा )
विशेष न्यायाधीश
(भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम)
जगदलपुर
59. दण्ड के प्रश्न पर अभियुक्त एवं उनके विद्वान अभिभाषक तथा लोक अभियोजक को सुना गया। अभियुक्त के विद्वान अभिभाषक का तर्क है कि, अभियुक्त का यह प्रथम अपराध है। अभियुक्त की स्थाई नौकरी है, तथा इतने वर्षों तक की गई अच्छी सेवा के कारण अभियुक्त को पेन्शन आदि लाभ प्राप्त होने से रह जाएंगे एवं उसके परिवार का जीवीकोपार्जन कठिन होगा। अतः अभियुक्त की आयु, उसके पूर्व के अच्छे रिकार्ड को देखते हुए न्यूनतम दण्ड से दंडित किया जाए। विद्वान विशेष लोक अभियोजक का तर्क रहा है कि अभियुक्त ने लोक सेवक होते हुए भ्रष्ट साधनों का उपयांग किया है तथा रिश्वत लेकर अवैध लाभ प्राप्त करने का प्रयास किया है। अभियुक्त को कठोर दंड से दंडित किया जाना चाहिए।
60. उभयपक्ष द्वारा रखे गये तर्को पर विचार किया गया। भ्रष्टाचार के मामलों में दंड के प्रश्न पर माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा राज्य विरूध्द प्रार्थीबन ए.आई.आर. 2007 एस.सी.- 51 एवं राज्य विरतनलाल अरोड़ा ए.आई.आर.2004 एस. सी.-2364 में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि,इस प्रकार क मामलों में जहां अभियुक्त की दोषसिध्दि हो वहॉ न्यायालय को नरमी का रूख नहीं अपनाना चाहिये तथा शिक्षाप्रद दण्ड देना चाहिये। न्याय दृष्टान्त 2006(3) सी सी एस सी 1530 (एस सी) म.प्र.राज्य बनाम शम्भू दयाल नागर में भी माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा कंडिका 31 में यह उल्लेखित किया है कि-
61. प्रत्युत्तरदाता के इस अनुरोध को स्वीकार करना कठिन है कि इस मामले में उदार दृष्टिकोण अंगीकार किया जावे। लोक सेवकों द्वारा भ्रष्टाचार विकराल समस्या बन गई है। यह सर्व़ व्याप्त हो गया है। सार्वजनिक क्रिया कलापों के किसी भी पहलू को भ्रष्टाचार के डंक से अप्रभावित हुये बिना नही छोड़ा गया है। इसका सम्पूर्ण देश के कृत्यों पर भी गम्भीर एवं व्यापक प्रभाव है। व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार राष्ट्र निर्माण के क्रिया-कलापों को व्यवधानित करता है और प्रत्येक व्यक्ति को उसके कारण पीड़ित होना पड़ता है। स्वतन्तर सिंह बनाम स्टेट आफ हरियाणा 1997 (4) एस सी सी 14 में जैसा कि उचित रूप से सम्परीक्षण किया गया है कि भ्रष्टाचार कैंसर युक्त लसिका ग्रन्थि, राजनीति रूपी शरीर की व्यापक की नसों, लोक सेवा में सामाजिक दक्षता रूपी तन्तुओं में क्षयकारी है एवं ईमानदार अधिकारी को हतोत्साहित करनें वाला है। सार्वजनिक सेवा दक्षता में केवल तभी सुधार होगा जब लोक सेवक अपने गम्भीर ध्यान से प्रतिबध्द हो तथा अपना कर्तव्य तत्परता से, सत्यता से, ईमानदारी से करता हो एवं स्वंय को अपने पद के कर्तव्यों के पालन के प्रति अध्यवसायी ढंग से स्वयं को प्रतिबध्द करता हो। भ्रष्ट ख्याति अधिकारी के आचरण को चारों तरफ से मोटी एवं अनियंत्रित योग्य पर्तों से घेर लेगी और धुम्र की अपेक्षा अधिक गति से उन्हे कुख्यातिपूर्ण ढंग से लाभान्वित करेगी।
62. प्रकरण के तथ्यों एवं परिस्थितियों एवं देश एवं समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार को दृष्टिगत रखते हुये इस प्रकरण में अभियुक्त को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा-07 के अंतर्गत 01 वर्ष (एक वर्ष) के सश्रम कारावास तथा 3000.00 रूपये ( तीन हजार रूपये) के अर्थ दंड से दंडित किया गया है। अर्थ दंड अदा करने में व्यतिक्रम होने पर अभियुक्त 03 माह (तीन मास) का अतिरिक्त सश्रम कारावास भोगेगा। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा - (13-1) सहपठित धारा (13-2) के अंतर्गत 02 वर्ष (दो़ वर्ष) के सश्रम कारावास तथा 3000.00 रूपये (तीन हजार रूपये) के अर्थ दंड से दंडित किया गया है। अर्थ दंड अदा करने में व्यतिक्रम होने पर अभियुक्त 03 माह(तीन मास) का अतिरिक्त सश्रम कारावास भोगेगा। अभियुक्त को दी गई कारावास की दोनों सजायें साथ साथ चलेगी।
63. यदि अभियुक्त अभिरक्षा में रहा है तो अभिरक्षा में बितायी गयी अवधि कारावास के दंड में समायोजित की जावे। अभियुक्त की न्यायिक अभिरक्षा में बिताई गई अवधि का पृथक से धारा-428 दं.प्र.सं. के अंतर्गत प्रमाण-पत्र तैयार किया जावे।
64. अभियुक्त को सजा भुगताये जाने सजा वारंट तैयार कर केन्द्रीय कारागार जगदलपुर को प्रेषित किया जावे।
65. प्रकरण में जप्तशुदा दो हजार रूपये अपीलावधि पश्चात प्रार्थी उदय सिंह बघेल को वापस लौटाये जावे तथा प्रकरण में जप्तशुदा जलीय घोलों की सीलबंद शीशियॉ अपीलावधि पश्चात नष्ट की जावे। अपील होने की दशा में उपरोक्त समस्त वस्तुओं का निराकरण माननीय उच्च न्यायालय के आदेशानुसार किया जावे।
निर्णय खुले न्यायालय में मेरे निर्देशानुसार टंकित
घोषित एवं पारित किया गया।
जगदलपुर,
दिनांक-29/09/2014
(एस.शर्मा )
विशेष न्यायाधीश
(भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम)
जगदलपुर
फोटो नेट से साभार

The Prevention of Corruption Act, 1988 Judgment of Special Court Jagdalpur, Chhattisgarh

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