Wednesday 26 October 2016

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986

 

भारतीय संविधान के अंतर्गत उपभोक्ताओं को शोषण, मिलावटी वस्तुओं और सेवाओं की कमी से संरक्षण देने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम बनाया गया है। इस अधिनियम का उद्देश्य है कि प्रत्येक उपभोक्ता को शीघ्र व सरल तरीकों से कम धन खर्च करके न्याय मिल सके।
उपभोक्ता फोरम वस्तु की कीमत और कार्यवाही का वाद कारण पैदा होने के स्थान के आधार पर तीन प्रकार के होते हैं:-
1. जिला उपभोक्ता फोरम:- प्रत्येक जिले में उपभोक्ता विवाद विचारण फोरम का गठन किया गया है। उपभोक्ता द्वारा 20 लाख तक की कीमत क्षतिपूर्ति का दावा जिला उपभोक्ता फोरम में शिकायत करके किया जा सकता है।
जिला उपभोक्ता फोरम का एक अध्यक्ष होता है एवं दो सदस्य होते हैं, जिनमें से एक महिला सदस्य एवं एक पुरूष का होना अनिवार्य है।
2. राज्य उपभोक्ता कमीशन:- राज्य उपभोक्ता विवाद कमीशन प्रत्येक राज्य में होता है। जब वस्तु की कीमत, सेवा अथवा प्रतिकर (मुआवजा) 20 लाख से 1 करोड़ रूपये तक हो तो, राज्य उपभोक्ता कमीशन में शिकायत कर सकते हैं।
3. राष्ट्रीय उपभोक्ता कमीशन:- राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशन का क्षेत्राधिकार 1 करोड़ रूपये से अधिक मूल्य की वस्तु सेवा या प्रतिकर (मुआवजा) के लिए होता है।
शिकायत कहां दर्ज कराई जा सकती है:-
1. जहां पर वाद का कारण पैदा हुआ हो। 2. जहां दूसरा पक्ष रहता हो।
3. जहां दूसरा पक्ष अपना व्यवसाय करता हो।
शिकायत कौन व्यक्ति कर सकता है:- कोई भी उपभोक्ता जब कोई सामान खरीदता है, और उसमें खराबी या कमी होने के कारण उसका नुकसान होता है, या कोई सेवा उपलब्ध कराने के लिए उसे फीस देता है और उस सेवा में कमी होती है, तो उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज करवा सकता है या दावा दायर कर सकता है।
यद्यपि अधिनियम में डाक्टर, वकील आदि का उल्लेख नहीं है, परंतु जब ऐसे व्यवसायिक व्यक्तियों को पैसा देकर सेवा प्राप्त की जाती है और उसमें कमी होने के कारण नुकसान होता है, तो उसके विरूद्ध भी उपभोक्ता फोरम में शिकायत की जा सकती है।
शिकायत के लिए आवेदन पत्र कौन दे सकता है:-
1. कोई भी उपभोक्ता 2. कोई भी उपभोक्ता संघ जो कि भारतीय कम्पनीज अधिनियम 1956 के अंतर्गत रजिस्टर्ड हो। 3. राष्ट्रीय अथवा राज्य सरकार 4. कई उपभोक्ताओं के समान हित के लिए कोई एक या अधिक उपभोक्ता।
शिकायत में निम्नलिखित सूचनाएं होनी चाहिएः-
1. शिकायतकर्ता का नाम और पता 2. दूसरे पक्ष का नाम और पता आरोपों के समर्थन में निम्नलिखित दस्तावेजों का होना आवश्यक है।
1. कोई भी सामान या वस्तु खरीदने की पक्की रसीद पूर्ण विवरण सहित।
2. वारण्टी कार्ड की छायाप्रति।
3. शिकायतकर्ता द्वारा मांगा गया प्रतिकर (मुआवजा)
4. शिकायतकर्ता या उसके एजेंट द्वारा शिकायती प्रार्थना पत्र पर नाम, पता और हस्ताक्षर।
 इस अधिनियम के अंतर्गत शिकायत करने का तरीका अत्यंत सरल है । कोई भी उपभोक्ता शिकायतकर्ता के रूप में स्वयं या अपने प्रतिनिधि द्वारा शिकायत कर सकता है।
शिकायत डाक द्वारा भी भेजी जा सकती है। शिकायत करने के लिए कोई शुल्क नहीं देना होता है और न ही किसी वकील की आवश्यकता होती है। शिकायतकर्ता स्वयं अपना पक्ष प्रस्तुत कर सकता है।
उपभोक्ता का अधिकार:- जब वस्तु के दोष या सेवा में कमी सिद्ध हो जाती है, तब उपभोक्ता को निम्नलिखित अधिकार होते हैं:-
1. दोष वाली वस्तु के बदले दोष रहित नई वस्तु लेना या, 2. वस्तु सेवा के लिए दिया गया पैसा वापस लेना, या 3. नुकसान या क्षति के लिए प्रतिकर (मुआवजा) लेना, या 4. उपभोक्ता द्वारा खरीदे गए सामान या वस्तु के कारण हुई मानसिक क्षति का भी दावा कर सकता है।
शिकायत करने की समय सीमा:- उपभोक्ता द्वारा वस्तु में दोष पाए जाने या सेवा से नुकसान होने के दो साल के भीतर शिकायत की जा सकती है, परंतु फोरम इसके बाद शिकायत करने की अनुमति दे सकता है, अगर देरी का कारण उचित हो।
अपील:- जिला उपभोक्ता फोरम के विरूद्ध अपील राज्य उपभोक्ता कमीशन में, राज्य उपभोक्ता कमीशन के विरूद्ध अपील राष्ट्रीय उपभोक्ता कमीशन में की जाती है और राष्ट्रीय उपभोक्ता कमीशन के विरूद्ध उच्चतम न्यायालय में की जाती है। अपील, आदेश के तीस दिन के भीतर की जा सकती है। अपील के साथ आदेश की प्रमाणित छायाप्रति भी लगाना जरूरी है।

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महत्वपूर्ण सूचना- इस ब्लॉग में उपलब्ध जिला न्यायालयों के न्याय निर्णय https://services.ecourts.gov.in से ली गई है। पीडीएफ रूप में उपलब्ध निर्णयों को रूपांतरित कर टेक्स्ट डेटा बनाने में पूरी सावधानी बरती गई है, फिर भी ब्लॉग मॉडरेटर पाठकों से यह अनुरोध करता है कि इस ब्लॉग में प्रकाशित न्याय निर्णयों की मूल प्रति को ही संदर्भ के रूप में स्वीकार करें। यहां उपलब्ध समस्त सामग्री बहुजन हिताय के उद्देश्य से ज्ञान के प्रसार हेतु प्रकाशित किया गया है जिसका कोई व्यावसायिक उद्देश्य नहीं है।
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