Thursday 27 October 2016

चैकों का अनादरण

 

चैकों का अनादरण क्या है ?
आज के युग में प्रायः लेने-देन का कार्य बैंकों के माध्यम से किया जाना अधिक सुविधापूर्ण हो चुका है। बैंक एक वैश्वासिक संस्थान है, जो आपके मध्य हुए अनुबंध शर्तों के अध्यधीन आपके के खाते में जमा राशि को आपके आदेशानुसार ही आहरित कर आपको अथवा आपके द्वारा आदेशित व्यक्ति को भुगतान करता है। जमा धन का आहरण बैंक निकासी फार्म, बैंक चैक या एटीएम के माध्यम से किया जा सकता है। इन सबमें चैकों का महत्वपूर्ण एवं अहम भूमिका होता है, जिसके माध्यम से आप स्वयं ही नहीं वरन् अन्य किसी व्यक्ति को भी ’’किसी लिए गए ऋण या अन्य दायित्व के पूर्णतः या अंशतः उन्मोचन के लिए किसी बैंक में अपने खाते में जमा राशि में से जो उक्त बैंक के साथ अनुबंधित ठहराव के लिए पर्याप्त हो, छोड़कर बचत राशि में से भुगतान हेतु ऐसे व्यक्ति के पक्ष में चैक जारी कर सकते हैं। यदि आपके द्वारा लिखा गया चैक, बैंक द्वारा बिना भुगतान किए गए इस कारण वापस लौटा दिया जाता है कि आपके खाते में भुगतान हेतु पर्याप्त धन राशि नहीं है या उस रकम से अधिक है, जिसका बैंक के साथ किए गए करार के द्वारा उस खाते में से संदाय करने का ठहराव किया गया है, तो आपका यही कृत्य चैक के प्रति अनादरण अर्थात् उपेक्षापूर्ण आचरण होगा। जो धारा 138 चैकों का अनादरण अधिनियम अर्थात् परक्राम्य लिखत अधिनियम के अंतर्गत दंडनीय अपराध है।
पीड़ित व्यक्ति के लिए ध्यान देने योग्य बातें:-
पीड़ित व्यक्ति अर्थात् जिसके पक्ष में जारी चैक की अनादरित होने की सूचना सहित उक्त चैक बिना भुगतान किए बैंक द्वारा वापस लौटा दी जाती है, तो ऐसे व्यक्ति को चैक जारीकर्ता के विरूद्ध न्यायालय में परिवाद संस्थित करने के पूर्व चैक अनादरण के संबंध में निम्नलिखित आवश्यक तत्व को ध्यान में रखा जाना चाहिएः-
चैक अनादरण के आवश्यक तत्व -
अधिनियम के तहत अपराध के गठन हेतु आवश्यक है 
1. चैक ऋण के संपूर्ण अथवा  आंशिक उन्मोचन अथवा अन्य किसी दायित्व के उन्मोचन के संबंध में राशि भुगतान हेतु होना चाहिए।
2. चैक बिना भुगतान किए बैंक द्वारा वापस आया हो।
3. चैक के भुगतान होने के कारण धन की अपर्याप्तता अथवा खाते में से भुगतान की व्यवस्था की गई राशि से अधिक हो।
अधिनियम में दिए गए परन्तुक यह भी अपेक्षा करते हैं कि -
(क) बैंक में चैक को उस दिनांक से छह माह के भीतर प्रस्तुत किया जाना चाहिए, जिस पर कि इसको लिखा गया था अथवा इसकी विधिमान्यता की अवधि के भीतर जो भी पहले हो, इसे प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
(ख) भुगतान पाने वाले अथवा सम्यक् अनुक्रम में बैंक के धारक को चैक के अधीन होने वाली राशि की मांग बैंक से चैक के अनादरण के संबंध में जानकारी प्राप्त होने के 15 दिवस के भीतर लेखीवाल अर्थात् चैक जारीकर्ता से करना चाहिए।
(ग) चैक का लेखीवाल कथित सूचना के 15 दिवस के भीतर राशि का भुगतान करने में विफल रहा हो।
अपराधों का संज्ञान:-
अधिनियम की धारा 142 के उपबंध के अनुसार दं.प्र.सं. 1973 (1974 का 2) के किसी बात के होते हुए भी:-
(क) कोई भी न्यायालय धारा 138 के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का संज्ञान, चैक के पाने वाले या धारक द्वारा सम्यक् अनुक्रम में किए गए लिखित परिवाद पर ही करेगा अन्यथा नहीं।
(ख) ऐसा परिवाद उस तारीख के एक माह के भीतर किया जाता है, जिसको धारा 138 के परन्तुक के खण्ड (ग) के अधीन वाद हेतु उद्भूत होता है। परन्तु यह कि विहित अवधि के उपरांत न्यायालय के द्वारा परिवाद पर संज्ञान लिया जा सकेगा, यदि परिवादी न्यायालय को यह संतुष्ट कर देता है कि ऐसी अवधि के भीतर परिवाद न करने का उसके पास समुचित कारण था ।
(ग) महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय से और कोई न्यायालय धारा 138 के अधीन दंडनीय किसी अपराध का विचारण नहीं करेगा।
न्यायालय की क्षेत्रीय अधिकारिता - मामला संस्थित करने की क्षेत्रीय अधिकारिता के संबंध में न्यायदृष्टांत ’’मुरलीधरन बनाम परीद (1992 भाग-1 केरल लॉ टाइम्स-50) के मामले में यह प्रकट किया गया है कि परिवाद पेश करने हेतु निम्न स्थानों पर वाद कारण उत्पन्न होता है:-
(1) जहां से चैक जारी किया गया था, अथवा (2) जहां चैक परिदान किया गया था, अथवा (3) वह स्थान जहां पर की व्यक्त रूप से अथवा विवक्षित रूप से राशि भुगतान योग्य हो।
उपरोक्तानुसार न्यायालय जिसकी अधिकारिता के अधीन उपरोक्त वर्णित स्थानों में से कोई स्थान आता है, को अधिनियम की धारा 138 के अंतर्गत अपराध का विचारण करने की अधिकारिता होगी।

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