Tuesday, 3 January 2017

छ.ग.राज्य विरूद्ध मंतराम निषाद

 

आरोपी के विरूद्घ प्रथम दृष्टया मामला पाये जाने पर अन्तर्गत धारा 07 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं धारा 13(1)(डी)सहपठित धारा 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आरोप विरचित किया गया आरोपी का अभिवाक लिया गया, आरोपी के द्वारा अपराध अस्वीकार किया गया

न्यायालय:-विशेष न्यायाधीश (ए.सी.बी.)एवं प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश, बलौदाबाजार,छग. 
(पीठासीन अधिकारी -बृजेन्द्र कुमार शास्त्री) 
विशेष सत्र प्रक्ररण क्रमांक 02/2015 
संस्थित दिनांक-07-05-2015 
छ.ग.राज्य
द्वारा राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण एंटी करप्शन ब्यूरो रायपुर, (छ.ग.) - - - - - अभियोजन
/ वि रू द्ध / 
 मंतराम निषाद पिता स्व० महेत्तर निषाद,  उम्र 48 वर्ष
पटवारी हल्का नम्बर-12,
ग्राम-चंदेरी,तहसील सिमगा
जिला-बलौदाबाजार-भाटापारा (छ.ग.)                                          - - -- - - - -- - --अभियुक्त
 राज्य द्वारा श्री अमिय अग्रवाल अतिरिक्त लोक अभियोजक।
 आरोपी की ओर से श्री अनादिशंकर मिश्रा अधिवक्ता उपस्थित।

 / नि र्ण य / 
(आज दिनांक 04 /नवम्बर/2016 को घोषित) 
01 / - आरोपी मंतराम निषाद जो कि एक लोक सेवक के रूप में रहते हुए पदीय कृत्य के संबंध में वैध पारिश्रमिक से भिन्न रिश्वत के रूप में 12000/- (बारह हजार रूपये) मांग कर आपराधिक कदाचार किया एवं रिश्वत के रूप में 4000/-रूपये प्रतिग्रहीत किया इस प्रकार आरोपी के द्वारा अन्तर्गत धारा 07 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं धारा 13(1)(डी)सहपठित धारा 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दण्डनीय अपराध कारित करने का आरोप है। 
02/ - सारवान स्वीकृत तथ्यों का अभाव है। 
03/- अभियोजन का मामला संक्षेप में इस प्रकार है कि, प्रार्थी चोवाराम, ग्राम बछेरा द्वारा दिनांक 04-06-2014 को ए०सी०बी०कार्यालय रायपुर में उपस्थित होकर इस आशय का लिखित शिकायत पत्र प्रस्तुत किया था कि, उसके दादा घासीराम के नाम कृषि भूमि है वह अपनी भूमि को उसके नाम करना चाहता है, इसलिए उसने अपने आवेदन पत्र व स्टाम्प पेपर तथा ऋण पुस्तिका पटवारी हल्का नम्बर-12 श्री मंतराम निषाद को छ:माह पहले दिया था पटवारी मंतराम निषाद ने नामांतरण करने के एवज में प्रार्थी चोवाराम से 12000/-(बारह हजार रूपये)रिश्वत की मांग किया तथा 8000/-रूपये(आठ हजार रूपये)ले चुका था तथा4000/-रूपये( चार हजार रूपये) के लिए परेशान कर रहा था प्रार्थी उसे रिश्वत नहीं देना चाहता था बल्कि उसे रंगे हाथों पकडवाना चाहता था इसलिए उसने एन्टी करप्शन ब्यूरो रायपुर से सम्पर्क किया जहां एंटी करप्शन ब्यूरों द्वारा प्रार्थी की शिकायत का सत्यापन हेतु एक डिजिटल वाईस रिकार्डर को देकर कराया गया । प्रार्थी चोवाराम ने डिजिटल वाईस रिकार्डर को आरोपी मंतराम निषाद से सिमगा जाकर रिश्वत की मांग की वार्तालाप को रिकार्ड किया जिसके आधार पर एंटी करप्शन ब्यूरो द्वारा योजन तैयार कर दिनांक 05-06-2014 को ट्रेप दल पंच साक्षियों सहित रायपुर से सिमगा पहुंचा, प्रार्थी से द्वितीय शिकायत पत्र प्राप्त कर रिश्वत पूर्व बातचीत का वाईस रिकार्डर पंचसाक्षियों को सुना गया,पंचसाक्षियों द्वारा आवेदन पत्र पर कार्यवाही किये जाने की टीप अंकित किया गया उसके पश्चात् आरोपी के विरूद्घ प्रथम दृष्टया धारा 07 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं धारा 13(1)(डी)सहपठित धारा 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत अपराध कारित किया जाना पाये जाने पर नम्बरी अपराध पंजीबद्ध किया गया और औपचारिकताएं पूर्ण करते हुए आरोपी के घर के पीछे बाथरूम के पास खाली पडे स्थान से रिश्वती रकम बरामद किया उसके पश्चात् आवश्यक कार्यवाही पूर्ण कर अभियोजन की स्वीकृति शासन से प्राप्त कर अभियोगपत्र न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया । 
04 /- अभियोगपत्र प्रस्तुत होने पर आरोपी के विरूद्घ प्रथम दृष्टया मामला पाये जाने पर अन्तर्गत धारा 07 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं धारा 13(1)(डी)सहपठित धारा 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आरोप विरचित किया गया आरोपी का अभिवाक लिया गया, आरोपी के द्वारा अपराध अस्वीकार किया गया एवं विचारण चाहा गया। 
05 /- न्यायालय के सक्षम निम्न विचारणीय प्रश्न है :- 
(1) क्या आरोपी मंतराम निषाद के द्वारा लोक सेवक पटवारी के पद पर रहते हुए अपने पदीय कृत्य के संबंध में प्रार्थी चोवाराम से 12000/-रूपये (बारह हजार रूपये) वैध पारिश्रमिक से भिन्न रिश्वत के रूप में नामांतरण दर्ज करने के लिए मांग की गयी ? 
(2) क्या आरोपी मंतराम निषाद द्वारा नामांतरण दर्ज किये जाने हेतु रिश्वत के रूप में 4000/-रूपये(चार हजार रूपये )प्रतिग्रहीत किया गया ? 
(3) दोष सिद्धि अथवा दोषमुक्ति ? 
 06/- अभियोजन पक्ष के द्वारा अभियोग को प्रमाणित किये जाने हेतु कुल 10 साक्षियों को न्यायालय के समक्ष परीक्षण कराया गया है एवं प्र०पी० 01 से 4 38 तक के दस्तावेजों का अलंब लिया गया है । बचाव पक्ष की ओर से किसी भी बचाव साक्षी को परीक्षति नहीं कराया गया है और न ही किसी दस्तावेज का अवलंब लिया गया है। -; निष्कर्ष एवं निष्कर्ष के कारण :- विचारणीय प्रश्न क्रमांक 01 एवं 02:- सुविधा एवं साक्ष्य के दुहराव से बचने के लिए विचारणीय प्रश्न क्रमांक 01 एवं 02 का निराकरण एक साथ किया जा रहा है। 
 07 / - भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा-07 इस प्रकार है :- लोकसेवक द्वारा अपने पीदय कृत्य के संबंध में वैध पारिश्रमिक से भिन्न परितोषण प्रतिग्रहीत करना-जो कोई लोकसेवक होते हुए या होने की प्रत्याश रखते हुए,वैध पारिश्रमिक से भिन्न प्रकार का भी कोई परितोषण किसी बात करने के प्रयोजन से या ईनाम के रूप में किसी व्यक्ति से प्रतिग्रहीत या अभिप्राप्त करेगा या करने को सहमत होगा या करने का प्रत्यन करेगा कि वह लोक सेवक कोई पदीय कार्य करे या पदीय कार्य करने का लोप करे या किसी व्यक्ति को अपनी पदीय कार्यों के प्रयोग से कोई अनुग्रह करे या करने से प्रतिविरत करे अथवा केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार या संसद या राज्य के विधान मण्डल या किसी स्थानीय प्राधिकारी,निगम या धारा 2 के खण्ड (ग) में वर्णित शासकीय कम्पनी अथवा किसी लोक सेवक से ,चाहे नामित हो या अन्यथा ऐसे कारावास से जिसकी अवधि पॉच वर्ष तक की हो सकेगी किन्तु जो छह मास से कम की नहीं होगी दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। स्पटीकरण-(क) लोक सेवक होने की प्रत्याशा रखते हुए-यदि कोई व्यक्ति जो किसी पद पर होने की प्रत्याशा न रखते हुए दूसरों को प्रवंचना से विश्वास कराकर कि वह किसी पद पर पदासीन होने वाला है,और तब वह उसका अनुग्रह करेगा, उससे पारितोषण अभिप्राप्त करेगा, तो वह छल करने का दोषी हो सकेगा, किन्तु वह इस धारा में परिभाषित अपराध का दोषी नही है। (ख) परितोषण-''परितोषण'' शब्ध धन संबंधी परितोषण तक, या उन परितोषणों तक ही जो धन में आंके जाने योग्य है,सीमित नहीं है। (ग) वैध पारिश्रमिक-वैध पारिश्रमिक शब्द उस पारिश्रमिक तक ही सीमित नहीं है जिसकी मांग कोई लोकसेवक विधिपूर्ण रूप से कर सकता है, किन्तु उसके अन्तर्गत वह समस्त पारिश्रमिक आता है, जिसको प्रतिग्रहीत करने के लिए वह उस सरकार द्वारा या उस संगठन द्वारा, जिसकी सेवा में वह है,उसे दी गयी है। (घ) करने के लिए हेतुक या इनाम- वह व्यक्ति जो वह बात करने के लिए हेतुक या इनाम के रूप में जिसे करने का उसका आशय नहीं है या वह ऐसा करने की स्थिति में नहीं है। अथवा जो उसने नहीं की है,परितोषण प्राप्त करता है,इस स्पष्टीकरण के अन्तर्गत आता है। (ड.)जहां कोई लोक सेवक किसी व्यक्ति को गलत विश्वास करने के लिए उत्प्रेरित करता है कि उसके प्रभाव से उसने, उस व्यक्ति के लिए अभिलाभ प्राप्त किया है और इस प्रकार उस कार्य के लिए कोई रूपया या अन्य परितोषण इनाम के रूप में प्राप्त करने के लिए उत्प्रेरित करता है। तो ऐसे लोक सेवक ने इस धारा के अधीन अपराध किया है। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 07 के अनुसार आरोपित आरोप में अभियोजन को यह सिद्ध करना होता है कि, एक लोक सेवक के द्वारा अपने पदीय कर्तव्य के संबंध में अवैध परितोषण की मांग की गयी और अवैध परितोषण, प्रतिग्रहण किया गया। सर्वप्रथम यह देखा जाना है कि क्या आरोपी एक लोक सेवक है? 

08/- अभियोजन साक्षी सुन्दरलाल धृतलहरे(अ०सा०9) ने अपने अभिसाक्ष्य में बताया है कि,ए०सी०बी०के द्वारा चाही गयी जानकारी के अनुसार उसने मंतराम निषाद की शासकीय सेवा में प्रथम नियुक्ति दिनांक 24.04.1990 को हुई थी, मंतराम निषाद की सेवानिवृत्ति दिनांक 24.04.2029 मंतराम निषाद की पटवारी की पदस्थापना एवं सेवा पुस्तिका की सत्य प्रतिलिपि प्रदर्श पी०- 22 है,और सेवा पुस्तिका प्रदर्श पी० 23 है जो उसके कार्यालय की मूल पुस्तिका से अवलोकन कर भेजा गया है। इस प्रकार इस साक्षी के द्वारा आरोपी मंतराम निषाद का पटवारी के रूप मे लोक सेवक होना प्रमाणित किया है जिसका कोई खंडन बचाव पक्ष के द्वारा नहीं किया गया है। इस प्रकार आरोपी का एक लोक सेवक होना प्रमाणित है। 
09/- अब यह देखा जाना है कि, क्या अभियोजन द्वारा आरोपी पटवारी के विरूद्घ अभियोजन हेतु स्वीकृति प्राप्त की गयी थी ? प्रकरण में पेश प्रार्दश पी०-35 एवं 36 से यह स्पष्ट है कि अभियोजन द्वारा आरोपी मंतराम निषाद के विरूद्घ धारा 7,13(1)(डी),13(2)भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम-1988 के अन्तर्गत अभियोजन के लिए मंजूरी प्रदान की गयी थी न्याय निर्णयन विवासुल्ला रेड्डी बनाम राज्य पुलिस निरीक्षक 1994 क्रिमनल ला जजमेंट -558 आन्ध्र प्रदेश में माननीय उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि, उपधारणा,जहां सरकार मंजूरी प्रदान करता है-जहां सरकार द्वारा अभियोजन हेतु मंजूरी का आदेश पारित किया जाता है,वहां साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 114(ग) के अधीन यह उपधारणा की जाती है कि, शासकीय कार्य नियमित तौर पर सम्पादित किये गये होंगे। प्रश्नगत कानूनी उपधारणा को खंडन करने का भार अभियुक्त पर अधिक होता है जब एक बार वह कारित कर दिया जाता है तब यह स्थापित करने के लिए आवश्यक अभिलेख को प्रस्तुत करने का कर्तव्य है कि स्वविवेक का प्रयोग करने के पश्चात् और उसके प्रतिफल के अध्याधीन रहते हुए तथा मंजूरी को स्वीकृति प्रदान करने या अस्वीकृत करने का आदेश समुचित प्राधिकारी द्वारा पारित किया गया । मंजूरी का आदेश विशिष्ट तौर पर इस बात का उल्लेख करता था कि केस डायरी तथा साक्षियों के कथन को सम्मिलित करने वाले महत्वपूर्ण कागजातों पर समुचित प्राधिकारी द्वारा उचित तौर पर विचार किया गया । केस डायरी पुलिस अन्वेषण का एक पूर्ण अभिलेख है और यह नहीं कहा जा सकता है कि,मंजूरी प्रदान करने वाले प्राधिकारी द्वारा स्वविवेक का प्रयोग नहीं किया गया । आरोपी की ओर से अभियोजन की स्वीकृति को प्रतिकूल भी साबित करने का प्रयास नहीं किया गया है। अत: यह माना जाता है कि, अभियोजन के द्वारा अभियोजन हेतु विधिवत स्वीकृति शासन से प्राप्त की गयी थी। 
10/- अब यह देखा जाना आवश्यक है कि क्या आरोपी के द्वारा लोक सेवक रहते हुए वैध पारिश्रमिक से भिन्न रिश्वत के रूप में प्रार्थी चोवाराम ध्रुव से 12000/-रूपये (बाहर हजार रूपये) रिश्वत के रूप में मांग की गयी? प्रार्थी के द्वारा एक आवेदन पत्र प्र.पी.03 एंटी करप्शन ब्यूरों पुलिस अधीक्षक के समक्ष प्रस्तुत कर यह निवेदन किया गया था कि उसके दादा घासीराम ध्रुव के नाम पर लगभग चार एकड कृषि भूमि है जिसे वह अपने नाम पर नामांतरण कराना चाहता है उक्त भूमि का आवेदन स्टाम्प पेपर तथा ऋण पुस्तिका पटवारी आरोपी मंतराम निषाद को दे चुका है किन्तु पटवारी छ: माह से स्टाम्प पेपर को रखे रहा और नामांतरण कार्यवाही नहीं की व पटवारी 12000/-रूपये(बाहर हजार रूपये) रिश्वत की मांग कर रहा है और 8000/-(आठ हजार रूपये)ले लिया है, 4000 (चार हजार रूपये) के लिए तंग कर रहा है। पटवारी यह भी कहता है कि, 4000/-(चार हजार रूपये)दे दो और नामांतरण का कागज ले जाना,वह रिश्वत नहीं देना चाहता था बल्कि रंगे हाथ पकडवाना चाहता है। आवेदन पर पुलिस अधीक्षक एंटी करप्शन ब्यूरों ने निरीक्षक श्री एस.के.सेन को अग्रेसित किया जिस पर अधीक्षक श्री सेन ने कार्यवाही प्रारंभ करते हुए प्रार्थी की शिकायत पर सत्यापन करने के लिए डिजीटल वॉयस रिकार्डर दिया जिसका पंचनामा तैयार किया गया था जो प्र०पी० 01 है। 

 11 / - निरीक्षक एस॰के०सेन (अ०सा० 10) ने बताया है कि, दिनांक 06-04-2014 को प्रार्थी ने मोबाईल फोन के जरिये सूचना दिया कि पटवारी मंतराम निषाद से 05-06-2014 को रिश्वत की मांग की जाने वाली वार्ता का रिकार्ड कर लिया है, पटवारी मंतराम निषाद चार हजार रूपये लेने के लिए सहमत हो गया है और दिनांक 07-06-2014 को प्रात: 07.30 बजे रिकार्डर वार्तालाप तथा रिश्वत के रूप में दिये जाने वाली रकम को लेकर ए.सी.बी.कार्यालय रायपुर में उपस्थित हुआ । प्र०पी० 01 के साक्षी आरक्षक शिवशरण साहू एवं आरक्षक धनीराम भगत ने भी शिकायात सत्यापन ट्रेप पूर्व प्र.पी.01 का समर्थन किया है एवं यह बताया है । धनीराम भगत (अ०सा० 06)ने अपने अभिसाक्ष्य में यह बताया है कि, प्रार्थी चोवाराम ध्रुव ए.सी.बी.कार्यालय रायपुर आया था और उसने बताया था कि सिमगा के पटवारी मंतराम निषाद भूमि पर नामांतरण करने के लिए 12000/-रूपये(बारह हजार रूपये )रिश्वत की मांग कर रहा है जिसमें 8000/-रूपये(आठ हजार रूपये) दे चुका है और 4000/-रूपये (चार हजार रूपये ) की मांग कर रहा है जिसके संबंध में प्रार्थी ने एक लिखित आवेदन दिया था जिस पर शिकायत सत्यापन के लिए टेप रिकार्डर दिया गया था। 
 12/- अभियोजन साक्षी एस॰के०सेन (अ०सा० 10) ने आगे यह बताया है कि, दिनांक 7.06.2014 को प्रार्थी ए०सी०बी० कार्यालय में 7.30 बजे उपस्थित हुआ। इस बीच ट्रेप दल का गठन किया गया था जिसमें दो पंचसाक्षियों श्री एस.सी.आर्य तथा सुरेश कुमार लांबा को तलब किया गया था और दिनांक 07.06.2014 को प्रार्थी एसीबी कार्यालय में उपस्थित होकर द्वितीय शिकायत पत्र प्रस्तुत किया। रिकार्डेड वार्तालाप का डिजीटल वॉयस रिकार्डर तथा रिश्वत के रूप में देने के लिए चार हजार रूपया पांच-पांच सौ के आठ नोट प्रस्तुत किये। रिकार्डेड वार्तालाप को पंचसाक्षियों को सुनाया गया और द्वितीय शिकायत पत्र को पंचसाक्षियों को पढने के लिए दिया गया। पंचसाक्षियों ने प्रार्थी के द्वितीय शिकायत पत्र को पढकर प्रार्थी से मौखिक चर्चा कर अपनी टीप अंकित कर हस्ताक्षर किए। उक्त शिकायतपत्र प्र.पी.04 है जिसमें डी.एस.पी.श्री ने निर्देशित करते हुए लिखित आवेदन पत्र पर कार्यवाही करने के लिए उन्हें प्रदान किया था । प्र०पी० 04 पर टीप अंकित करने वाले पंच साक्षी सुरेश कुमार लांबा (अ०सा० 05)ने अपने अभिसाक्ष्य में जिला दण्डाधिकारी के निर्देश पर ए०॰सी०बी०कार्यालय उपस्थित हुआ था तब ए०सी०बी०कार्यालय में चोवाराम उपस्थित था और उसने बताया था कि, पटवारी के विरूद्घ रिश्वत के संबंध में शिकायत दिया था उक्त शिकायत पत्र को उसने पढा था। इस साक्षी के द्वारा बताया गया है कि, उसे आज याद नहीं है कि, उसमें क्या लिखा था किन्तु इस साक्षी के द्वारा उक्त शिकायत पत्र पर अपने हस्ताक्षर होना स्वीकार किया है जो कि निश्चित है कि एक लंबी अवधि के पश्चात् किस शिकायत पत्र में क्या -क्या तथ्य लिखे गये थे याद रखना मुश्किल है किन्तु तत्कालीन समय में पढकर उस पर हस्ताक्षर किया गया है तो निश्चित ही उसे सही होने की उपधारणा की जावेगी। 
 13/ - अभियोजन साक्षी चोवाराम ध्रुव (अ०सा० 03)जो कि मामले का प्रार्थी है ने अपने अभिसाक्ष्य में बताया है कि,आरोपी ग्राम बछेरा का पटवारी है। वर्ष 2012 के गर्मी की बात है उसके दादा जी के नाम पर चार एकड जमीन है जिसे उसके नाम पर नामांतरण कराने के लिए दादा जी के साथ जाकर पटवारी से सम्पर्क किया था,पटवारी को नामांतरण कराने के लिए स्टाम्प पेपर दिया था तो पटवारी ने उसका नामांतरण नहीं होगा कहकर स्टम्प पेपर वापस कर दिया था और तहसील आफिस जाने को कहा था । इस साक्षी के द्वारा आगे यह बताया गया है कि, पटवारी ने उससे पैसे की मांग नहीं की थी। तहसीलदार के यहां ही नामांतरण होगा। आगे साक्षी कहता है कि, तब उसने यह बात गांव वालों को बताया था तो गांव वालों ने ए०सी०बी०कार्यालय जाने को कहे तब ए०सी०बी०कार्यालय गया तो ए०सी०बी०वाले कहे कि चार हजार रूपया मांगना लिखाना तभी कार्यवाही कर पायेंगे। आगे यह कहता है कि, वह परेशान था और नामांतरण चार-पाँच माह से नहीं हुआ था इसलिए चार हजार रूपये मांगने की झूठी रिपोर्ट पुलिस में करा दिया था। आवेदन उसने दो बार लिखाया था । इस साक्षी ने प्र०पी० 03 एवं 04 पर अपना हस्ताक्षर होना प्रमाणित किया है। इस साक्षी का यह कथन विश्वसनीय नहीं है क्योंकि, प्रार्थी प्रथम आवेदन के पश्चात् द्वितीय आवेदन के पंच साक्षी सुरेश लांम्बा और सुभाष चन्द्र आर्य के समक्ष प्रस्तुत किया था और इन दोनों ही साक्षियों ने इस तथ्य की पुष्टि की है कि प्रार्थी चोवाराम ध्रुव ए०सी०बी०कार्यालय में उपस्थित होकर शिकायत प्रस्तुत किया था। यदि प्रार्थी चोवाराम ध्रुव वहां उपस्थित नहीं होता तो ऐसी स्थिति में इन साक्षियों के द्वारा प्रार्थी के द्वारा उपस्थिति होकर शिकायत प्रस्तुत किये जाने का कथन क्यों करता दोनों ही साक्षी राजपत्रित अधिकारी है जो विधि अनुसार ट्रेप कार्यवाही के लिए के स्वतंत्र साक्षी के लिए नामांकित किया गया था ऐसी स्थिति में इन साक्षियों से किसी झूठे कथन की कल्पना नहीं की जा सकती। प्रार्थी चोवाराम पक्षद्रोही होकर अभियोजन का समर्थन नहीं किया है किन्तु ट्रेप की कार्यवाही कोई मारपीट की घटना नहीं है कि, घटना नहीं देखना कह देने मात्र से संन्देह की स्थिति उत्पन्न होगी यह साधारण कल्पना की प्रश्न है कि,चोवाराम एंटी करप्शन ब्यूरो क्यों गया था यह प्रमाणित है और प्रार्थी द्वारा स्वीकृत है कि वह ब्यूरो गया था तो निश्चित ही अवैध मांग की शिकायत करने ही गया था उसके यह कह देने मात्र से कि पटवारी ने नामांतरण नहीं होगा कहा तो वह इस बात की शिकायत करने गया था । यदि ऐसी शिकायत करना ही था तो उच्च अधिकारियों को करता। पंच साक्षी सुरेश कुमार लांबा के साक्ष्य से यह स्पष्ट है कि प्रार्थी चोवाराम आया था और पटवारी द्वारा रिश्वत मांगे जाने की शिकायत किया था पंच साक्षी राजपत्रित अधिकारी है जो कलेक्टर के द्वारा ट्रेप कार्यवाही के लिए नामांकित थे जिनके अभिसाक्ष्य पर अविश्वास करने की कोई कारण नहीं है। 

14 /- पंच साक्षी एस०सी०आर्य एवं सुरेश कुमार लांबा ने लिप्यांतरण की कार्यवाही ट्रेप पूर्व रिश्वत की वार्ता प्र०पी० 05 को प्रमाणित किया है। लिप्यांतरण से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि, आरोपी के द्वारा प्रार्थी से चार हजार रूपये रिश्वत की मांग की थी। यह स्वाभाविक है कि जब प्रार्थी के द्वारा बातचीत रिकार्ड की गयी होगी तो निश्चित ही उसे छुपाकर किया गया होगा ऐसी स्थिति में कुछ शब्द आया होगा और कुछ नहीं आया होगा लेकिन लिप्यांतरण से स्पष्ट होता है कि, आरोपी के द्वारा प्रार्थी से चार हजार रूपये रिश्वत की मांग की गयी थी। इस प्रकार यह प्रमाणित है कि, अभियुक्त के द्वारा प्रार्थी चोवाराम से रिश्वत की मांग की गयी थी । 
15 /- अब प्रश्न यह है कि, क्या आरोपी ने प्रार्थी चोवाराम से चार हजार रूपये रिश्वत के रूप में दिनांक 07-06-2014 को प्रतिग्रहण किया ? 
16/- प्रार्थी चोवाराम (अ०सा० 03)ने अपने अभिसाक्ष्य में बताया है कि, ए०सी०बी० वालों ने उससे रूपये पटवारी को दिये जाने के लिए दिये थे उसका नम्बर- नोट किया था और उसे लिफाफा में भरकर उसे दिये थे। हालांकि यह साक्षी किसी प्रकार के रासायनिक कार्यवाही नहीं किये जाने का कथन करता है और यह भी कहता है कि, पटवारी ने उक्त रूपये को नहीं लिया था तो वापस आ कर ए०सी०बी०वालों को बताया कि पैसा नहीं ले रहा है तब ए०सी०बी०वालों ने कहा कि, जाकर किसी भी तरह पैसा देकर आओ उस समय पटवारी खाना-खाकर हाथ धो-रहा था तब उसने टेबल पर रख दिया था और पटवारी से हाथ मिलकर वापस आ गया था। प्रार्थी के इस प्रकार के कथन का किसी भी पंच साक्षी ने समर्थन नहीं किया है। खाना खाकर तुंरत हाथ मिलाने का कथन बिल्कुल अविश्वसनीय है। क्योंकि यदि आरोपी खाना खा रहा था ऐसी स्थिति में किस प्रकार से वह हाथ मिलाया । क्या आरोपी से उसकी इतनी गाढी दोस्ती थी कि वह हाथ मिलाने के लिए खाना खाते हुए भी उठ कर हाथ धोया,प्रार्थी चोवाराम का कथन बनावटी प्रतीत होता है संपूर्ण कथन का सारांश यह है कि आरोपी के द्वारा रिश्वत की मांग की गयी थी जिसकी शिकायत वह ए.सी.बी. में किया एवं गठित ट्रेप दल के साथ आरोपी को रंगे हाथ पकडवाया।
17/ - अभियोजन साक्षी सुभाषचन्द्र आर्य(अ०सा० 04) ने यह बताया है कि,आरोपी की तलाशी इसके सामने की गयी थी, तलाशी पंचनामा प्र०पी० 14 है। बरामद रिश्वती रकम की जप्ती कार्यवाही भी उसके सामने की गयी थी बरामदगी रिश्वती पंचनामा प्र०पी० 15 है। आरोपी से चार हजार रूपये बरामद हुआ था और ए०सी०बी० वालों ने प्रार्थी को जो रकम रिश्वत के रूप में दिये जाने के लिए नम्बर लिखकर दिया था यह वहीं रकम थी जिस समय आरोपी के घर में प्रवेश किये उस समय आरोपी हाथ धो रहा था और उसी समय आरोपी के दोनों हाथ पकड लिये थे उस समय जो भी कार्यवाही किये थे उसके सामने किये थे। 
 18/- अभियोजन साक्षी सुरेश लाम्बा (अ०सा० 05) ने अपने अभिसाक्ष्य में बताया है कि,प्रार्थी पटवारी के घर अंदर गया और करीब एक घंटे बाद ए०सी०बी० वाले दौडे और पटवारी के घर में गये वह भी पीछे-पीछे गया था और जब यह पहुंचा तो ए०सी०बी०वालों ने पटवारी का हाथ पकड कर बैठा लिए और पूछे कि पैसा कहां रखे हो तो पटवारी ने कहा कि पैसा नहीं लिया हूँ तब ए०सी०बी०के अधिकारी ने अपने कर्मचारी से कहा कि घर में देखों कहीं रखा है थोडी देर बाद एक कर्मचारी ने बताया कि बाथरूम के पास जो कचडा पडा है उसके नीचे पैसा रखा है। पैसा को कौन उठा कर लाया उसे याद नहीं है । घोल तैयार कर पटवारी के हाथ को धुलवाया गया तो घोल का रंग हल्का गुलाबी हो गया ।उसके सामने रिश्वती रकम ए०सी०बी०वालो ने बरामद किया था उसकी लिखा पढी किये थे जो प्र०पी० 05 है और उसके सामने रिश्वती रकम ए०सी०बी०वालों ने जप्त किया था जो रकम ए०सी०बी०वालों ने जप्त किया था यह वहीं रकम थी जो प्रार्थी को सुबह दिये थे । इस साक्षी के द्वारा प्र०पी० 16 जप्त रिश्वती रकम को प्रमाणित किया है फिर आगे यह भी कहता है कि, रासायनिक घोल में अभियुक्त का हाथ धुलवाया गया था तो उसका रंग गुलाबी हो गया था। ए०सी०बी०वालों ने उसकी जप्ती बनायी थी। यह साक्षी ए०सी०बी०वालों के कहने पर नोटों पर पावडर लगाया था। 

19/- अभियोजन साक्षी एस॰के०सेन (अ०सा० 10) ने अपने अभिसाक्ष्य में बताया है कि, ट्रेप की कार्यवाही के लिए ए०सी०बी० कार्यालय से रवाना होकर सिमगा पहुंचे थे आरोपी के कार्यालय जहां वह स्वयं अपने परिवार के साथ मकान मालिक बीरबल जायसवाल के मकान में निवासरत था, पहुंचे ट्रेप दल के सभी सदस्य अपनी उपस्थितियों को छुपाते हुए इधर उधर खडे हो गए, प्रार्थी को आरोपी के पास भेजा गया था और थोडी देर बाद प्रार्थी ने आकर पूर्व निर्धारित इशारा किया। ईशारा पाकर आरोपी के कार्यालय में प्रवेश किए तो उस समय आरोपी के घर में अपने पुत्र पुत्रिया और पत्नी भी थी तथा कार्यालय में दो तीन अन्य व्यक्ति भी थे, आरोपी खाना खाने के लिए बैठा हुआ था जिसे उठाया गया, आरोपी के दांया हाथ को शिवशरण साहू ने पकड लिया और अपना परिचय दिया तथा ट्रेप दल का भी परिचय दिया, आरोपी से प्रार्थी से चार हजार रूपये रिश्वत लेने की बात पूछने पर रिश्वत लेने से इंकार किया तब आरक्षक शिवशरण साहू ने एक साफ कांच की गिलास में सोडियम कार्बोनेट का जलीय घोल तैयार किया इस घोल में प्रार्थी और आरोपी को छोडकर ट्रेप दल के सदस्यों के हाथों की उंगलियों को डूबोकर धुलवाया गया तो घोल का रंग रंगहीन रहा था उसके पश्चात पुन: बनाकर आरोपी मंतराम निषाद के दोनों हाथों की उंगलियों को डूबोकर धुलवाया गया तो घोल का रंग हल्का गुलाबी हो गया, इस घोल को सीलबंद कर जप्त किया था उसके बाद आरोपी से रिश्वती रकम के बारे में पूछा गया तथा आरोपी की तलाशी लेने के पूर्व पंचसाक्षी श्री आर्य की तलाशी लेने को कहा गया तब आरोपी से पंचसाक्षी आर्य की तलाशी लिवाया गया उसके पश्चात पंच साक्षी आर्य ने आरोपी की तलाशी लिया था। उसके पश्चात् प्रार्थी को बुलाकर पूछा गया तो प्रार्थी ने बताया कि वह घर के पीछे तरफ ले जाकर बाथरूम के पास खाली पडे स्थान पर जहा सामान रखा हुआ था उसकी तलाशी ली गयी तो वहां पर रिश्वती रकम बरामद हुयी जिसे पंचसाक्षी आर्य ने अपने हाथों में लेकर उठाया और गिनकर बताया गया जो कि पांच पांच सौ के आठ नोट कुल चार हजार रूपये थे उनमें पूर्व में लिखे गये नंबरों से मिलान किया गया तो वह वहीं नोट थे उसके पश्चात् शिवशरण साहू ने साफ कांच के गिलास में सोडियम कार्बोनेट का जलीय घोल तैयार किया जिसमें आरोपी का हाथ धुलाया गया तो घोल का रंग गुलाबी हो गया जिसे सीलबंद कर रखा गया | उसके पश्चात् उन नोटों को सोडियम कार्बोनेट के जलीय घोल में डूबोकर धुलवाया गया तो घोल का रंग गुलाबी हो गया उन नोटों को सुखाकर सीलबंद किया गया था एवं घोल को एक साफ कांच की शीशी में सीलबंद किया गया। धोअन कार्यावही के पश्चात सभी शीशियों को पंच साक्षी के समक्ष जप्त किया गया और जप्त रिश्वती रकम तैयार किया गया जो प्रदर्श पी- 16 है और उसे आरोपी को पढने के लिए दिया गया आरोपी ने पढकर हस्ताक्षर किया । मौके पर किए गए समस्त घोलो की कार्यवाही पश्चात आरक्षक शिव शरण साहू के पेश करने पर सभी सीलबंद घोलो की शीशीयों को उसके द्वारा जप्त किया गया और एक लिफाफे में सोडियम कार्बोनेट का नमूना पुडिया को भी जप्त किया गया जिसका जप्ती पत्रक प्रदर्श पी-2 है । कार्यवाही के दौरान प्रार्थी के द्वारा डिजीटल वायस रिकार्डर प्रस्तुत किया गया जिसे सुना गया लेकिन आवाज स्पष्ट नही होने के कारण लिप्यांतरण नही किया जा सका। इसके पश्चात् आरोपी मंतराम निषाद को धारा 91 दं.प्र.सं. का नोटिस देकर प्रार्थी के लंबित कार्य से संबंधित दस्तावेज को प्रस्तुत करने के लिए कहा गया तो मौखिक बताया था कि प्रार्थी का कागज उसने वापस कर दिया है किंतु आरोपी के कार्यालय में अभिलेखों का अवलोकन करने पर नामांतरण पंजी, खसरा पंचशाला तथा बी-वन आरोपी द्वारा प्रस्तुत की गयी। उन दस्तावेजों में प्रार्थी के दादा के नाम से संबंधित प्रविष्टीयां पायी गयी तथा प्रार्थी का नाम भी दर्ज होना पाया गया। इस साक्षी के द्वारा आरोपी को दी गयी नोटिस प्रदर्श पी- 26 है जिसके ए से ए भाग पर उसके हस्ताक्षर है। इसके पश्चात आरोपी को गिरफ्तार किया गया। संपूर्ण कार्यवाही का पंचनामा तैयार किया गया जो प्रदर्श पी०- 12 है जिसे आरोपी को भी पढकर सुनाया गया और आरोपी के हस्ताक्षर लिए गये थे। संपूर्ण कार्यवाही को पुलिस अधीक्षक ए०सी०बी० को अवगत कराया गया और पुलिस अधीक्षक ए०सी०बी० के द्वारा थाना प्रभारी एंटी करप्श्न ब्यूरो को देहाती नालसी दर्ज कर उसे असल में दर्ज करने हेतु प्रेषित किया गया पत्र प्रदर्श पी- 29 है जिसके आधार पर राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण/ एंटी करप्शन ब्यूरो रायपुर में प्रथम सूचना प्रतिवेदन क्रमांक 25/2014 भ्रस्टाचार निवारण अधिनयम की धारा 7 के तहत् आरोपी मंतराम निषाद के विरूद्घ प्रथम सूचना प्रतिवेदन दर्ज किया गया था प्रथम सूचना प्रतिवेदन प्रदर्श पी- 20 है। विवेचना कार्यवाही के दौरान जप्तशुदा समस्त घोलो की शीशियों एवं नमूना पावडर का रासायनिक परीक्षण कराने हेतु राज्य विधि विज्ञान प्रयोगशाला रायपुर प्रेषित किया गया जिसका आवेदन पत्र प्रदर्श पी- 30 है एवं राज्य न्यायिक विज्ञान प्रयोगशाला द्वारा उक्त जांच हेतु वस्तुएं पाए जाने की प्राप्ति रसीद प्रदान किया गया था जो प्रदर्श पी- 31 है एवं राज्य न्यायिक विज्ञान प्रयोगशाला से उक्त वस्तुओं के परीक्षण रिपोर्ट प्रदर्श पी०- 32 है उसे विवेचना के दौरान आरोपी मंतराम निषाद की प्रथम नियुक्ति दिनांक, सेवानिवृत्ति दिनांक तथा सेवा पुस्तिका की प्रमाणित प्रतिलिपी प्राप्त करने के लिए तहसीलदार सिमगा को उसके द्वारा पत्र भेजा गया था जो प्रदर्श पी- 34 है जिसके ए से ए भाग पर उसके हस्ताक्षर है। उक्त पत्र के परिपालन में तहसीलदार सिमगा के द्वारा उसके द्वारा मांगी गयी समस्त जानकारी प्रस्तुत की गयी है जो प्रदर्श पी०- 22 है। 
 20/- अभियोजन साक्षी लारेंश खेस(अ०सा० ०7) ने अपने अभिसाक्ष्य में बताया है कि, एंटी करप्शन ब्यूरो रायपुर के पुलिस अधीक्षक के पत्र क्रमांक/ ए.सी.बी./ 2014 रायपुर दिनांक 09.06.2014 के पत्र के आधार पर आरक्षक धनीराम भगत द्वारा लाये गये देहाती नालसी को अपराध पंजीबद्ध करने के लिए प्रस्तुत करने पर नम्बरी अपराध क्रमांक 25/2014 दिनांक 09.06.2014 समय 15.10 बजे थाना राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ए०सी०बी०रायपुर में आरोपी मंतराम निषाद के विरूद्घ अपराध पंजीबद्ध किया था जिसका प्रथम सूचना पत्र प्र०पी० 20 है और अपराध पंजीबद्ध करने के उपरांत उसकी सूचना ए०सी०बी० रायपुर को पत्र क्रमांक /ब्यूरो /राय./थाना / 49/ 2014 रायपुर दिनांक 09.06.2014 के अनुसार दिया था जो प्र०पी० 21 है। 

21 /- अभियोजन पक्ष की ओर से तर्क किया गया है कि, ए.सी.बी. के द्वारा ट्रेप की कार्यवाही में उपलब्ध होने वाले समस्त प्रक्रिया का विधिवत पालन करते हुए आरोपी को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया है जिसकी पुष्टि पंच साक्षियों के साक्ष्य एवं पेश दस्तावेजों से होती है। हालांकि प्रार्थी पक्ष द्रोही हो गया है किन्तु उसके कथनों से स्पष्ट है कि आरोपी के द्वारा रिश्वत की मांग किये जाने के कारण ए.सी.बी. कार्यालय गया था और वहां उसने उक्त शिकायत की थी हालांकि वह किन कारणों से पक्षद्रोही हो गया है, किन्तु उसके कथनों से स्पष्ट है कि, आरोपी के द्वारा रिश्वत की मांग को लेकर उसने शिकायत किया और उसे रंगे हाथ पकडवाया था। ए.सी.बी.कार्यालय में उसका दो बार जाना, समय पर पहुंचना और कार्यवाही कराया जाना आरोपी की मांग को प्रकट करते हुए रिश्वत की मांग की जांच के संबंध में प्रार्थी को दिये गये वॉयस रिकार्डर के लिप्यांतरण से भी आरोपी के द्वारा रिश्वत का मांगा जाना स्पष्ट होता है। पंच साक्षियों के साक्ष्य से स्पष्ट है कि आरोपी के द्वारा रिश्वत की मांग किये जाने का कथन प्रार्थी के द्वारा बताया गया और उसके पश्चात् संपूर्ण कार्यवाही कर आरोपी के कब्जे से रिश्वती रकम जिस पर फिनाफथलीन पावडर लगाकर दिया गया था आरोपी से पकडा गया। प्रार्थी आरोपी से प्रभावित होकर पक्ष द्रोही रहा है किन्तु संपूर्ण साक्ष्य आरोपी के द्वारा रिश्वत की मांग एवं उसके प्रतिग्रहण की पुष्टि करता है । इस प्रकार अभियोजन पक्ष आरोपी के विरूद्घ आरोप सिद्घ करने में सफल रहा है। समर्थन में न्याय निर्णयन- Dilip Sagorkar(dead)V. State of M.P. 2014(III)MPWN 33 का अवलंब लिया है जिसमें यह अभिनिर्धारित किया गया है कि, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988-धारा 7, 13(1)(घ) तथा 13(2)-रिश्वत का मामला- अभियुक्त धन के साथ रंगे हाथ पकडा गया -आवश्यक मंजूरी प्राप्त की गयी जिसे आक्षेपित नहीं किया गया -प्रतिरक्षा कथन शंकास्पद-अभियुक्त ठीक -ही दोषिसद्घ तथा दण्डादिष्ट किया गया, का अवलंब लिया गया है। 

 22 / - आरोपी की ओर से तर्क दिया गया है कि, आरोप असिद्ध करने का भार अभियुक्त पर नहीं होता है आरोप को सिद्घ किये जाने का भार अभियोजन पर होता है जो कि उसके द्वारा नहीं किया गया है। नामांतरण करने का अधिकार पटवारी को नहीं होता है भू राजस्व संहिता के अनुसार तहसीलदार के आदेशानुसार किया जाता है। प्रार्थी के द्वारा नामांतरण बाबत् रिश्वत के संबंध में शिकायत किया जाना बताया गया है वह भूमि,उस भूमि के अर्जन के संबंध में प्रार्थी के पास कोई दस्तावेज नहीं था भूमि का अर्जन,विक्रय के द्वारा,वसीयत के द्वारा, वसीयती उत्तराधिकार के द्वारा,दान के द्वारा और विभिन्न प्रकार से प्राप्त किया जाता है जिसके संबंध में प्रार्थी के पास ऐसा कोई दस्तावेज नहीं था इसके पश्चात् भी प्रार्थी के द्वारा अपने दादा की भूमि पर नामांतरण किये जाने हेतु आरोपी को दबाव डाला जा रहा था तब आरोपी के द्वारा यह कहा गया कि, नामांतरण नहीं हो सकता , तहसीलदार के पास जाओ तब उसने इस बात पर शिकायत करने के लिए ए.सी.बी. के पास गया था । आरोपी की ओर से इस तर्क के समर्थन में मध्यप्रदेश भू राजस्व संहिता की धारा-109 के अन्तर्गत भूमि के अर्जन के संबंध में धारा-109 में उल्लेखित प्रतिकूल कब्जा, नीलाम दान, विक्रय, उत्तराधिकार, वसीयत, उत्तरजीविता एवं अधिनिर्णय पंच का अवलंब लिया गया है। आरोपी की ओर से प्रस्तुत इस तर्क में कोई बल नहीं है क्योंकि यहां पर विचार आरोपी के द्वारा रिश्वत मांगना और प्रतिग्रहण के संबंध में है आरोपी किन कारणों से रिश्वत मांग रहा था उसे कार्य करने का अधिकार था अथवा नहीं विचारणीय प्रश्न नहीं हैं। यहां केवल यह देखा जाना है कि क्या आरोपी के द्वारा रिश्वत की मांग की गयी और रिश्वत के रूप में चार हजार रूपये प्रतिग्रहण किया गया या नहीं ? 
23/- आरोपी की ओर से एक तर्क यहभी दिया गया है कि, टेप की आवाज में खरखरा रहा था स्पष्ट नहीं था,लिप्यांतरण को पंच साक्षियों ने समर्थन नही किया है तथा प्रार्थी चोवाराम ने भी अपने बयान में बताया है कि,टेप की आवाज खरखरा रहा था। आरोपी की ओर से प्रस्तुत इस तर्क में कोई बल नहीं है क्योंकि जब आवाज टेप की जाती है तो आवाज में खरखराने की संभावना हमेशा बनी रहेगी क्योंकि आवाज छीपाकर और ऐसे ढंग से की जाती है कि जिससे आरोपी को उसका भान न हो इसके अलावा पंच साक्षियों के साक्ष्य से स्पष्ट है कि, पंच साक्षी द्वारा टेप की आवाज सुना गया था और उनके आवाज के अनुसार उनके आवाज को लिप्यांतरण किया गया था। 
24 / - आरोपी की ओर से यह भी तर्क दिया गया है कि, रिश्वत की मांग प्रमाणित नहीं है और रिश्वत की राशि स्वीकार नहीं की गयी है प्रकरण में आये साक्ष्य एवं पेश दस्तावेज से जो कि पंच साक्षियों के द्वारा प्रमाणित किया गया है से यह स्पष्ट है कि आरोपी के द्वारा रिश्वत की मांग की गयी थी और आरोपी के कब्जे से रिश्वत की राशि प्रतिग्रहीत हुई थी रिश्वत की राशि प्रतिग्रहण के पश्चात् आरोपी का हाथ धुलाएं जाने पर जलीय घोल का रंग गुलाबी हो गया था जिससे स्पष्ट है कि, आरोपी के द्वारा रिश्वत की राशि स्वयं प्राप्त की गयी थी उसके पश्चात् उसे अन्य स्थान पर रख दिया गया था । साक्षी सुभाषचन्द्र आर्य के द्वारा अभियोजन का समर्थन नहीं किया गया है, किन्तु इस साक्षी के साक्ष्य का अवलोकन करने से स्पष्ट होता है कि, उसने बहुत से तथ्य को याद नहीं होना बताया है किन्तु इंकार नहीं किया है और न ही उन्हें गलत बताया है,यह अवश्य है कि, समय के अंतराल होने के कारण वह सभी कार्यवाही एक साथ होने के कारण हो सकता है उसे बहुत सी चीज याद नहीं है जबकि दूसरे पंच साक्षी सुरेश कुमार लाम्बा जो कि सहायक अभियंता है,राजपत्रित अधिकारी है जिसके द्वारा स्पष्ट रूप से ट्रेप कार्यवाही को क्रमवार बताया गया है जिस पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है। 

25/ - आरोपी की ओर से एक तर्क यह भी दिया गया है कि, वॉयस रिकार्डर की आवाज का नमूना लेकर नहीं किया गया है । इस तर्क में भी कोई बल नहीं है क्योंकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अनुसार किसी ट्रेप की कार्यवाही में जांच के लिए यदि किसी वॉयस रिकार्डर का उपयोग किया जाता है तो उसकी आवाज की जाचं आवश्यक है। स्पष्ट रूप से इसकी जांच के विषय में कोई भी प्रावधान नहीं है। इसके आधार पर कार्यवाही प्रारंभ की जाती है और कार्यवाही में आरोपी के द्वारा रिश्वत लेने की पुष्टि होने पर वॉयस रिकार्डर की पुष्टि स्वमेंव हो जाती है। 
26/ - आरोपी के द्वारा एक तर्क यह भी दिया गया है कि, उसे षडयंत्र के तहत झूठा फंसाया गया है किन्तु इस तर्क के समर्थन में आरोपी के द्वारा ऐसा कोई दस्तावेज एवं साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है कि उसे झूठ क्यों फंसाया जायेगा। आरोपी ग्राम का पटवारी था और निश्चित है कि ग्राम के प्रत्येक व्यक्ति को जो भी भूमिधारी है उन्हें पटवारी से हर समय कोई न कोई आवश्यकता पडती है ऐसी स्थिति में पटवारी को झूठा फंसाने के तर्क में कोई बल नहीं है। 
 27 | - आरोपी की ओर से अवलंबित प्रथम न्याय निर्णयन् ASHOK KUMAR CHANDRAKAR Vs. STATE OF C.G.2011(2)C.G.L.J. 23 का अवलंब लिया गया है जिसमें यह अभिनिर्धारित किया गया है कि, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा-7 एवं 13(1)(डी)सहपठित धारा 13(2)- परिवादी नथलूराम कुन्जाम का कलीराम पिता है-कलीराम जल उपभोक्ता संस्था सिहरीनाला का अध्यक्ष था -संस्था के द्वारा नहर और तालाब पानी निकासी के फाटक की मरम्मत की गयी थी-नथलूराम कुंजाम ने एस.पी. लोकायुक्त जगदलपुर के समक्ष शिकायत की कि अपीलार्थी सब इंजीनियर कार्य का मूल्यांकन करने के लिए रूपये 3,000/-मांग किया था-छाया टीम गठित की गयी और सभी छापा पूर्ण तैयारी पूर्व की गई-छापापार्टी दिनांक 22-03-2002 को 10.00 बजे सुबह अपीलार्थी के घर के पास पहुंची- नथलूराम अपीलार्थी के घर में घुसा और करीब आधा घंटे बाद बाहर निकला और इशारा किया तब छापा पार्टी के बचे हुए सदस्य मकान में प्रवेश किये- परिवादी ने बताया कि अपीलार्थी के निर्देश पर राशि टेबल के नीचे रखी गयी थी-करेंसी नोट जप्त किये गये और सभी औपचारिकताएं पूर्ण कर ली गयी और अपीलार्थी को गिरफ्तार कर लिया गया -अपीलार्थी का बचाव यह था कि,अपीलार्थी ने अध्यक्ष कलीराम के विरूद्घ कार्यवाही प्रांरभ किया है इसलिए उसके पुत्र द्वारा उसको झूठा फंसाया गया है- दोषसिद्धि के विरूद्घ अपील- उपरोक्त सोसायटी का परिवादी नथलूराम अ.सा.01 अध्यक्ष नहीं है परन्तु कलीराम अध्यक्ष था-यह सिद्घ किया गया कि अपीलार्थी के द्वारा 10-03- 2002 को पत्र दिया गया था जिसमें रूपये 24,800/-की वसूली के लिए चेतावनी थी- अ.सा.01 नथलूराम सोसायटी का कर्मचारी नहीं था और न ही सोसायटी द्वारा अधिकृत था- अ.सा.01 ने स्वीकार किया है कि, अनधिकृत रूप से उसने सिंचाई कर वसूल किया है और अपीलार्थी के द्वारा उसको डांट-फटकार की गयी थी-अ.सा.04 रमेश रूपये 3,000/-मांग करने का गवाह है परन्तु रमेश का साक्ष्य कमजोर है विश्वास नहीं किया जा सकता -दिनांक 14-03-2002 को मांग किया गया था और शिकायत विलंब से 20 मार्च को की गई-पंचगवाह अ.सा.14 रामनारायण कमडी ने यह कथन नहीं किया है कि उन्होंने नथलूराम और अपीलार्थी के मध्य कोई वार्तालाप सुना-उनके साक्ष्य में अनेक विसंगतिया है उसमें से एक महत्वपूर्ण यह है कि, किसने रिश्वत की राशि को उठाया- अपीलार्थी ने अज्ञानता व्यक्त किया और परिवादी के पहल पर नोट बरामद किये गये जो टेबल के नीचे छिपाकर रखे गये थे क्योंकि नथलूराम ने कथन किया है कि वह कमरे में प्रवेश करने के बाद पानी मांगा था-दोषसिद्धि और दण्डादेश निरस्त। इस प्रकरण मे अपीलार्थी के विरूद्घ आरोपी के द्वारा 24800/- वसूली के संबंध में चेतावनी दी गयी थी जो कि अनाधिकृत रूप से सिंचाई कर वसूल किया गया था जिसके कारण अपीलार्थी के द्वारा झूठा फंसाये जाने के संबंध में बताया गया है जबकि यह मामला इस मामले से अत्यंत ही भिन्न है इसलिए इस मामले में अवलंबनीय नहीं है। 

28/- द्वितीय अवलंबित न्याय निर्णयन State of M.P. Vs. Rafque Khan 2012(3) M.P.H.T. 24(DB) का अवलंब लिया गया है जिसमें यह अभिनिर्धारित किया गया है कि,भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा-7 एवं 13(1)(घ)और 13(2)-दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 धारा- 378-अधिनियम, 1988 की धारा-7, 13(1)(घ)और 13(2)-के अधीन आरोपों से प्रत्यर्थी /अभियुक्त की दोषमुक्ति के विरूद्घ अपील-यह अभिकथित किया गया कि प्रत्यर्थी /अभियुक्त ने, परिवादी और उसके भाईयों की भूमि का नांमातरण किए जाने के लिए रिश्वत की मांग की और ली-अभिनिर्धारित- अवैध परितोषण साबित करने के लिए केवल साक्षी,स्वयं परिवादी था -उसकी सत्यता शंकास्पद हो गई-अत:, विशेष न्यायाधीश ने,उसकी परिसाक्ष्य स्वीकार नहीं की-अवैध परितोषण देने बाबत् परिवादी के कथन में अत्यधिक त्रुटियां थीं-परिवादी की परिसाक्ष्य की अधिक सावधानी से परीक्षा की जाना होती है-यदि हो मत संभव हों-तो एक जो अभियुक्त के पक्ष में जाता हो,उसे स्वीकार करना चाहिए इस मामले में दोषमुक्ति के विरूद्घ अपील प्रस्तुत की गयी है जिसके संबंध में विद्वान विचारण न्यायालय के द्वारा दोषमुक्ति के निर्णय को माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा सही ठहराते हुए अपील को निरस्त किया है इस मामले में कोई सिद्धांत प्रतिपादित नहीं किया है केवल परिवादी के एक मात्र कथन के आधार पर दोष सिद्ध विचारण न्यायालय के द्वारा नहीं किया गया है जिसे सही ठहराया है। इस प्रकार यह न्याय निर्णय भी इस मामले में अवलंबनीय नहीं है। 

29 / - आरोपी की ओर से प्रस्तुत तृतीय अवलंबित न्याय निर्णयन् Dr.Ashok Nayas Vs.State of M.P.2012(1)M.P.H.T. 113(DB) का अवलंब लिया गया है |जिसमें यह अभिनिर्धारित किया गया है कि,भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 धारा-7, 13(1)(घ)सहपठित धारा 13(2)-और धारा 20-धारा 20 के अन्तर्गत कानूनी उपधारणा को विस्थापित करने का प्रमाण भार जो अभियुक्त पर रहता है वह उतना बोझिल नहीं होता है जितना अभियोजन का अपने प्रकरण को सिद्ध करने का- अभियुक्त,गांधी मेडीकल कॉलेज के एक लेक्चरर के विरूद्घ यह आरोप था कि उन्होंने,फिटनेश सर्टिफिकेट देने के लिए,अभियोगी प्रेमसिंह(अ.सा.04),जो म.प्र.वि.मं. में लाईनमैन है, से रूपये 500/- मांगे और प्राप्त किये- अभियुक्त की यह वचन थी कि उन्होंने उक्त राशि,अपनी परामर्श फीस के रूप में प्राप्त की थी,क्योंकि अभियोगी उसकी क्लिनिक में पांच बार परामर्श के लिए आ चुका था-अभियुक्त ने यह बात तत्काल ''रैड पार्टी' को ट्रैप के समय ही बता दी थी -इस तथ्य को ट्रैप में शामिल कुछ अभियोजन साक्षीगण द्वारा भी स्वीकार किया गया था-अभियुक्त ने एक रजिस्टर (प्रदर्श डी० 1) भी प्रस्तुत किया था जिसमें फीस दर्ज की जाती थी और जिसमें अभियोगी से प्राप्त हुई रूपये 500/- की राशि की प्रविष्टि भी थी- अभियुक्त ने यही स्पष्टीकरण धारा 313 द.प्र.सं. के अन्तर्गत दिये गये अपने बयान में भी दिया था- अभिनिर्धारि,अभियुक्त द्वारा दिया गया स्पष्टीकरण प्रामाणिक ,युक्तियुक्त और अधिसंभाव्य दिखता था- विशेष न्यायाधीश ने उक्त स्पष्टीकरण को अस्वीकार करने में त्रुटि की थी- अभियोजन की घटना युक्तियुक्त सन्देह से परे प्रमाणित नहीं हुई थी अभियुक्त की भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 में धारा 7 सहपठित धारा-13(1)(घ)और 13(2)-के अन्तर्गत अंकित दोषसिद्धि और दंडाज्ञा को अपास्त कर, उसे दोषमुक्त किया गया -अपील स्वीकार की गयी। इस मामले के तथ्य भी इस प्रकरण के तथ्य के अत्यधिक भिन्न है इसलिए यह न्यायनिर्णयन इस मामलें में अवलंबनीय नहीं है। 
 30/- अन्य N.Sunkanna v.State of Andhra Pradesh. AIR 2015 SC(Criminal)1943 का अवलंब लिया गया है जिसमें यह अभिनिर्धारित किया गया है कि, Prevention of Corruption Act.(49 of 1988)Ss.7,13(1)(d),20-Illegal gratifcation-Proof of demand-Essential Accused alleged to have demanded and accepted bribe of Rs.300/-from complainant. a fair price Shop dealer by threatening to seize stocks and foist a false case against him-Complainant himself had disowned his complainant and has turned hostile- There is no other evidence to prove that the accused had made any demand-Mere possession and recovery of currency notes from accused without proof of demand would not constitute ofence under.S. 7--Un-less there is proof of demand of illegal gratifcation proof of acceptance will not follo-Legal presumption under S.20 hence cannot be drawn-Accused ac-quitted. इस मामले में प्रार्थी पक्षद्रोही रहा है और प्रकरण में अन्य कोई साक्ष्य नहीं था किन्तु इस विचारणीय मामले में प्रार्थी पूरी तरह पक्षद्रोही रहा है एवं आरोपी के द्वारा रिश्वत के प्रतिग्रहण एवं मांग के पर्याप्त साक्ष्य है इसलिए यह न्याय निर्णयन इस मामले में अवलंबनीय नहीं है। 
31/- आरोपी की ओर से प्रस्तुत अन्य अवलंबित न्याय निर्णयन गणपती सान्या नाइक बनाम कर्नाटक राज्य- 2007(3) सी.सी.एस.॰सी.1487(5) का अवलंब लिया गया है जिसमें यह अभिनिर्धारित किया गया है कि,भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा-7 एवं 13- रिश्वतखोरी का जाल-विचारण न्यायालय का संपरीक्षण कि अत्यधिक प्रारम्भिक प्रक्रमपर ही प्रतिरक्षा का अभिवाक यह कि परिवादी की अपीलार्थी के प्रति घोर शत्रुता -और यह कि करेन्सी नोट पूर्ववर्ती के द्वारा मेज पर रखे गये,जो सम्भाव्य स्पष्टीकरण -यह दर्शित करने वाला साक्ष्य कि करेन्सी नोटोंका अपीलार्थी द्वारा स्पर्श तक नहीं, या उसके शरीर से उसकी बरामदगी नहीं - अभियोजनमामला यह कि मेज पर धन रख दिये जाने के तत्काल बाद परिवादी को सुसंगत दस्तावेज हस्तगत-अत:, तर्क कि रिश्वत की मांग करने का कोई अवसर नहीं -भी सम्भाव्य-विचारण न्यायालय द्वारा दोषमुक्ति के विरूद्घ अपील में-उच्च न्यायालय के लिए विचारण न्यायालय के निर्णय को उलटने का कोई न्यायोचित्य ही नहीं-उच्च न्यायालय का निर्णय अपास्त का अवलंब लिया गया है। इस मामले में परिवादी और अपीलार्थी के बीच घोर शत्रुता बतायी गयी है एवं आरोपी के द्वारा रिश्वत की रकम को स्पर्श नहीं करने का तथ्य है और उसके शरीर से बरामदगी नहीं होने का तथ्य है जबकि इस मामले में आरोपी का हाथ धुलाएं जाने पर उसके हाथ का धोअन गुलाबी होना पाया गया है एवं रिश्वत की रकम भी उसके आधिपत्य से प्राप्त की गयी है। इसलिए यह मामला भी अवलंबनीय नहीं है। 
32 / - आरोपी की ओर से अन्य न्याय निर्णयन State of Madhya Pradesh vs. Anil Kumar Varma on 19February.2007 था 33/- एक अन्य न्याय निर्णयन् A.Subair vs. State of Kerla on 26 May,2009. 
34 / - एक अन्य न्याय निर्णयन C.M. Girish Babu vs. Cbi,Cochin.High Court of Kerala on 24 February.2009 की फोटों कांपी प्रस्तुत की गयी है किन्तु इस मामले में किन तथ्यों का वह अवलंब लेना चाहते है इसका कोई उल्लेख तर्क के दौरान नहीं बताया गया है जिससे यह स्पष्ट नहीं होता है कि, इस मामले में किस प्रकार से अवलंबनीय है। 
35 /- प्रकरण में प्रस्तुत संपूर्ण मौखिक एवं दस्तावेजी साक्ष्य के विशेषण से यह स्पष्ट रूप से प्रकट होता है कि, आरोपी के द्वारा प्रार्थी से रिश्वत की मांग किया था जिसकी शिकायत उसने ए.सी.बी. कार्यालय में जाकर किया था और ए.सी.बी.के द्वारा ट्रेप दल का गठन कर विधिवत कार्यवाही करते हुए आरोपी को पकड कर हाथ धुलाएं जाने पर रिश्वत की रकम जो फिनाफथलीन पावडर लगाकर प्रार्थी को दिया गया था जिसे आरोपी ने प्राप्त किया था जिसके कारण आरोपी को पकडे जाने पर हाथ धुलाये जाने पर उसका रंग गुलाबी हो गया था । इस प्रकार आरोपी के द्वारा रिश्वत की प्रतिग्रहण की पुष्टि हुई है। 
36/- भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा-20 के अनुसार जहां लोक सेवक वैध पारिश्रमिक से भिन्न पारिश्रमिक ग्रहण करता है, या करने का प्रयत्न करता है, या करने की सहमित देता है वहां पर जबतक प्रतिकूल साबित न कर दिया जाये कि यह उपधारणा की जायेगी कि उसने अवैध पारिश्रमिक ग्रहण किया है। इस प्रकरण में आरोपी के विरूद्घ धारा 7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं धारा 13(1) (डी)सहपठित धारा 13(2)भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अनुसार आरोपी के द्वारा रिश्वत की मांग एवं प्रतिग्रहण को साबित किया गया है किन्तु आरोपी की ओर से उसे प्रतिकूल साबित नहीं किया गया है। 
37 / - अतएव उपरोक्त साक्ष्य मूल्यांकन पश्चात न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि,अभियोजन पक्ष आरोपी के विरूद्घ आरोपित अपराध अन्तर्गत धारा 7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं धारा 13(1)(डी)सहपठित धारा 13(2)भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, प्रमाणित करने में सफल रहा है। 
38/- फलस्वरूप आरोपी मंतराम निषाद को आरोप अन्तर्गत धारा 7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं धारा 13(1)(डी)सहपठित धारा 13(2)भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोष सिद्घ किया जाता है। 

39/- आरोपी जमानत पर है उसके जमानत मुचलका निरस्त किया जाता है। 
40/- आरोपी को अभिरक्षा में लिया जावे। 
41 / - दण्ड के प्रश्न पर सुनने के लिए निर्णय थोडी देर, स्थगित किया जाता है। 
सही / 
(बृजेन्द्र कुमार शास्त्री)
विशेष न्यायाधीश (ए.सी.बी.) एवं प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश, 
बलौदाबाजार,छ.ग. 
 पुनश्च: - 
42 / - दण्ड के प्रश्न पर आरोपी,आरोपी के अधिवक्ता एवं अभियोज पक्ष को सुना गया। 
43 / - अभियोजन पक्ष की ओर से विरोध व्यक्त करते हुए व्यक्त किया गया है कि,देश में जिस प्रकार से भ्रष्टाचार बढ रहा है ऐसी स्थिति में भ्रष्टाचार पर नियंत्रण रखे जाने के लिए आवश्यक है कि अधिनियम के अनुसार विहित अधिकतम दण्ड से दंडित किया जावे। 
44 / - आरोपी की ओर से व्यक्त किया गया है कि, आरोपी का यह प्रथम अपराध है वह परिवार का एक मात्र कमाने वाला व्यक्ति है इसलिए उसे न्यायिक अभिरक्षा में बतायी गयी अवधि तक के दण्ड से दंडित किया जावे। 
45 /- अभिलेख का अवलोकन किया गया जिस प्रकार से आरोपी के द्वारा शासकीय कार्य के लिए रिश्वत की मांग की गयी है वह निश्चित रूप से अत्यंत गंभीर। आरोपी एक पटवारी है और वह ग्राम के भूमि से संबंधित प्रत्येक व्यक्ति का कार्य करना होता है यदि रिश्वत के रूप में अपने कार्य के विरूद्घ रिश्वत की मांग करते है तो निश्चित ही अत्यंत गंभीर है उसके प्रति किसी प्रकार का सदभावना रखा जाना उचित नहीं पाया जाता है। 
46/ - अत: आरोपी मंतराम को आरोप अन्तर्गत धारा 7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अन्तर्गत दोष सिद्धि के लिए 03 वर्ष का सश्रम कारावास एवं 5000/-रूपये (पॉच हजार रूपये)के अर्थ दण्ड से दंडित किया जाता है,अर्थ दण्ड की राशि अदा न किये जाने की स्थिति में 03 माह(तीन माह) का साधारण कारावास भुगताया जावे । 
47 | - धारा 13(1)(डी)भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अन्तर्गत दोष सिद्धि के लिए अन्तर्गत धारा 13(2)भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत 03 वर्ष का सश्रम कारावास एवं 5000/-रूपये (पॉच हजार रूपये)के अर्थ दण्ड से दंडित किया जाता है,अर्थ दण्ड की राशि अदा न किये जाने की स्थिति में 03 माह(तीन माह) का साधारण कारावास भुगताया जावे। 
48/ - आरोपी को दोनों ही धाराओं में दी गयी कारावासीय दण्ड साथ-साथ भुगतायी जावे। 
49/- आरोपी के द्वारा अभिरक्षा में बीतायी गयी अविध को दिये गये कारावासीय दण्ड में समायोजित किया जावे। 
50 / - धारा-428 द.प्र.सं. का प्रमाणपत्र बनाया जावे। 
51/- प्रकरण में जप्तशुदा सम्पत्ति प्रार्थी के द्वारा रिश्वत में दिये जाने के लिए प्रदान किया गया था उक्त सम्पत्ति अपील अवधि पश्चात् प्रार्थी को वापस किया जावे एवं शेष जप्तशुदा एक सीलबंद पैकेट में 6 नग सीलबंद घोल की शीशी,दो नग सीलबंद लिफाफा में नमूना एवं दो नग सीलबंद लिफाफा में सीडी ,अपील अविध पश्चात् नष्ट किया जावे अपील होने की दशा में माननीय अपीलीय न्यायालय के निर्णयानुसार व्ययन किया जावे। 
52 / - निर्णय की एक प्रति अभियुक्त को नि:शुल्क प्रदान की जावे । 
53 /- निर्णय की प्रति विशेष लोक अभियोजन अधिकारी एवं ए०सी०बी०कार्यालय रायपुर की ओर प्रेषित किया जावे। 
निर्णय हस्ताक्षरित व दिनांकित कर मेरे निर्देशानुसार टंकित घोषित किया गया ।
सही/-
(बृजेन्द्र कुमार शास्त्री)
विशेष न्यायाधीश (ए.सी.बी.) बलौदाबाजार,छ.ग. 

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