न्यायालय- स्पेशल जज ऑफ स्पेशल कोर्ट फॅार ट्रायल ऑफ सी.बी.आई केसेज) रायपुर (छ0ग0)
(पीठासीन न्यायाधीश - पंकज कुमार जैन)
प्रकरण क्रमांक- CBI/70/2013
अपराध क्र.- RC1242013A0001
भारत संघ, द्वारा : सी.बी.आई.,
ए.सी.बी. ब्रांच भिलाई, जिला दुर्ग(छ0ग0) .............................. अभियोजन
// वि रू द्ध //
त्रिनाथ गौड, पिता-स्व. मंगला गौड,उम्र-लगभग 64वर्ष, क्लर्क(ग्रेड-1)
कार्यालय- सबएरिया मैनेजर, 1 एस.ई.सी.एलडोमन हिल कॅालेरी चिरमिरी।
पता- औल्ड माइनर्स क्वार्टर, ओरिया स्कूल के पास, पोस्ट- गुडरीपारास,
जिला-कोरिया, छ.ग.
स्थाई पता- द्वारा श्री रामचंद्र गौड, ग्राम/पोस्ट/थाना- पुरूषोत्तमपुर,
अमाडिया साही, जिला-गुंजाम, उडीसा। ............................. अभियुक्त
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एफ.आई.आर.की तारीख : 28.01.2013 अभियोग पत्र प्रस्तुति तारीख : 29.05.2013
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उपस्थिति
सी.बी.आई द्वारा लोक अभियोजक श्री अनिल पिल्लई ।
अभियुक्त की ओर से श्री प्रशान्त बाजपेयी अधिवक्ता ।
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नि र्ण य
(आज दिनांक 31/01/2017 को घोषित)
1- उपर्युक्त अभियुक्त पर धारा 7 एवं धारा 13(1) (डी) सहपठित धारा 13 (2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988(जिसे आगे संक्षेप में ‘‘अधिनियम‘‘ कहा जायेगा) का आरोप है कि उसने दिनांक 29.01.2013 को तथा उसके पूर्व सबएरिया मैनेजर,एस.ई.सी.एल.डोमनहिल कॅालेरी,चिरमिरी कार्यालय में क्लर्क ग्रेड-1 के पद पर लोक सेवक के रूप में पदस्थ रहते हुये, प्रार्थी कन्हैयालाल मेकेनिकल फिटर के सेवानिवृत्त होने के उपरांत पेंशन, सी.एम.पी.एफ.ग्रेज्युइटी आदि की फाइल प्रोसेसिंग हेतु 10,000/-रूपये की रिश्वत मांग कर दिनांक 29.01.2013 को लगभग 12.30 बजे अपने कार्यालय में प्रार्थी कन्हैयालाल से उक्त कार्य हेतु 10,000/-रूपये की रिश्वत, जो वैध पारिश्रमिक से भिन्न राशि थी, प्राप्त कर, अपने पद का दुरूपयोग कर, आपराधिक कदाचरण किया।
2- प्रकरण में आरोपी त्रिनाथ गौड का घटना के समय डोमनहिल कॅालेरी, चिरमिरी एस.ई.सी.एल. में क्लर्क ग्रेड-1 के पद पर कार्यरत होना स्वीकृत है। प्रकरण में प्रदर्श पी-12 दो बार अंकित है अतः साक्षी विजय कुमार पांडे के कथन में दर्शित सुपुर्दनामा प्रदर्श पी-12 के संबंध में द्वितीय दस्तावेज की स्थिति अंकित की गयी। < /br>3- अभियोजन का मामला संक्षेप में निम्नानुसार है :-
(3.1) दिनांक 28.01.2013 को शिकायतकर्ता कन्हैयालाल के द्वारा लिखित शिकायत सी.बी.आई., ए.सी.बी. भिलाई के समक्ष प्रस्तुत किये जाने पर उक्त प्रकरण पंजीबद्ध हुआ, जिसमें यह दर्शित किया गया कि आरोपी ने प्रार्थी कन्हैयालाल के पेंशन, सी.एम.पी.एफगेज्युइटी आदि की फाइल को बढाने के लिए अपने कार्यालय में दिनांक 31.12.2012 को 10,000/-रू. रिश्वत की मांग की।
(3.2) अन्वेषण के तहत पाया गया कि ट्रेप लेइंग आफीसर एस.के.सिन्हा द्वारा स्वतंत्र साक्षियों की उपस्थिति में शिकायत का वेरीफिकेशन कराया गया तथा वॅायस रिकार्डर एवं माइक्रो एस.डी.कार्ड की मदद से आरोपी एवं शिकायतकर्ता का वार्तालाप रिकार्ड किया गया। पश्चातवर्ती स्थिति में उक्त रिकार्डिंग को सुना गया, जिसमें यह पाया गया कि आरोपी ने शिकायतकर्ता को दिनांक 29.01.2013 को 1.00-1.30 बजे के मध्य 10,000/-रू. की रिश्वत की राशि लेकर उपस्थित रहने को कहा है।
(3.3) दिनांक 29.01.2013 को संबंधित टी.एल.ओ. द्वारा ट्रेप करने का निर्णय लिया गया तथा स्वतंत्र साक्षियों की मौजूदगी में शिकायतकर्ता का परिचय कराया गया। साक्षी पुनीतकुमार सिंह को छाया साक्षी के रूप में तथा परिस्थिति के अनुसार रोहित चौधरी को नजदीक उपस्थित रहने के लिए कहा गया।
(3.4) शिकायतकर्ता के द्वारा 10,000/-रू. के संबंध में 20 जी.सी.नोट प्रस्तुत करने पर उन नंबरों को लेखबद्ध किया गया तथा उन पर फिनाफ्थिलीन पाउडर लगाकर प्रदर्शन कार्यवाही के तहत यह दर्शित किया गया कि सोडियम कार्बोनेट के संपर्क में आने पर फिनाफ्थिलीन का रंग परिवर्तित होकर गुलाबी हो जाता है।
(3.5) शिकायतकर्ता कन्हैयालाल को निर्देशित किया गया कि वह उन नोटों को तब तक न छुए जब तक कि आरोपी द्वारा मांग न की जाये तथा रिश्वत की राशि प्रदाय किये जाने पर सिर खुजलाकर इशारा करने के संबंध में स्थिति दर्शित की गयी। इस प्रकार प्री- ट्रेप कार्यवाही संपन्न की गयी।
(3.6) पुनः वॅायस रिकार्डर में नया एस.डी.कार्ड डालकर शिकायतकर्ता कन्हैयालाल को स्वतंत्र साक्षी के साथ आरोपी के कार्यालय की ओर रवाना किया गया तथा पीछे-पीछे सी.बी.आई. टीम ने जाकर सुविधानुसार स्थिति ले ली। लगभग 20 मिनट के पश्चात शिकायतकर्ता द्वारा कार्यालयीन भवन से बाहर आकर पूर्व निर्धारित संकेत किये जाने पर सी.बी.आई. की टीम आरोपी के कार्यालय की ओर गयी तथा शिकायतकर्ता से वॅायस रिकार्डर लेकर उसे स्विच ऑफ किया गया।
(3.7) शिकायतकर्ता द्वारा सी.बी.आई टीम को आरोपी की ओर इशारा करते हुए दर्शित किया गया कि उसके द्वारा 10,000/-रू. रिश्वत की राशि लेकर अपने टेबल के दराज में रखी गयी तथा उक्त राशि को आरोपी के द्वारा दिये गये लिफाफे में उसके निर्देश पर रखा गया। टी.एल.ओ. द्वारा अपनी पहचान दर्शित करते हुए आरोपी से पूछताछ की गयी, जिसमें उसके द्वारा रिश्वत की राशि लेना स्वीकार किया गया, किंतु उसके दोनो हाथ सोडियम कार्बोनेट में धुलाये जाने पर घोल का रंग परिवर्तित नहीं हुआ। इसी प्रकार कन्हैयालाल के हाथ सोडियम कार्बोनेट में धुलाये जाने पर उसके दांये हाथ की उंगलियों के संबंध में रंग परिवर्तित होकर गुलाबी हुआ, जिसे कांच की शीशी में सुरक्षित रखा गया।
(3.8) टी.एल.ओ. एस.के.सिन्हा के निर्देश पर रोहित चौधरी द्व ारा आरोपी के कार्यालयीन टेबल के दाहिने तरफ के दराज से लूज पेपर पर रखे लिफाफे के अंदर से रिश्वत की राशि निकाली गयी तथा स्वतंत्र साक्षियों द्वारा मिलान किये जाने पर पाया गया कि वही राशि थी, जिसको प्री-ट्रेप मेमो के तहत लेखबद्ध किया गया था। इस प्रकार जप्त की गयी रिश्वत राशि को लिफाफे में रखकर सीलबंद किया गया।
(3.9) जिस लिफाफे में राशि जप्त की गयी थी, उसके संबंध में सोडियम कार्बोनेट के घोल से धुलाये जाने पर घोल का रंग परिवर्तित होकर गुलाबी हो गया। उक्त घोल को भी कांच की शीशी में सीलबंद कर रखा गया तथा लिफाफे को भी सुरक्षित रखा गया।
(3.10) शिकायतकर्ता एवं आरोपी के मध्य रिकार्ड किये गये वार्तालाप के संबंध में पोस्ट ट्रेप मेमो के तहत लेखबद्ध किया गया। आरोपी एवं शिकायतकर्ता की आवाज नमूना लिया जाकर उन्हें परीक्षण हेतु सी.एफ.एस.एल. प्रेषित किया गया तथा रिपोर्ट प्राप्त की गयी।
(3.11) प्रकरण में जप्तशुदा आवश्यक संपत्ति परीक्षण हेतु सी.एफ.एस.एल.नई दिल्ली रासायनिक परीक्षण एवं अभिमत हेतु प्रेषित की गयी। इस प्रकार आरोपी के विरूद्ध सक्षम अधिकारिता के तहत अभियोजन स्वीकृति प्राप्त करते हुये अभियोगपत्र प्रस्तुत किया गया।
4- अभियुक्त के विरूद्ध अधिनियम की धारा 7 एवं 13(1)(डी) सहपठित धारा 13(2) का आरोप विरचित कर, उसे पढ़कर सुनाये व समझाये जाने पर उसने आरोप अस्वीकार कर, विचारण का दावा किया।
5- दं.प्र.सं. की धारा 313 के तहत, अभियुक्त का परीक्षण किये जाने पर उसने स्वयं को निर्दोष होना व झूठा फंसाया जाना बताया। < /br>// विचारणीय प्रश्न // < /br>6- प्रकरण में विचारणीय प्रश्न निम्न है :-
1. क्या अभियुक्त के विरूद्व अभियोजन स्वीकृति आदेश वैध रूप से जारी किया गया ?
2. क्या अभियुक्त के पास शिकायतकर्ता कन्हैयालाल से रिश्वत की राशि मांग करने का हेतुक (Motive) विद्यमान था ?
3. क्या अभियुक्त ने लोक सेवक के रूप में शिकायतकर्ता कन्हैयालाल से दिनांक 29.01.2013 तथा उसके पूर्व उसके पेंशन,सी.एम.पी.एफ. एवं ग्रेज्युइटी फाइल प्रोसेसिंग हेतु 10,000/-रू. मांग की?
4. क्या अभियुक्त ने लोकसेवक के रूप में अपने कार्यालय में दिनांक 29.01.2013 को लगभग 12.30 बजे रिश्वत राशि 10,000/-रू., जो वैध पारिश्रमिक से भिन्न थी, हेतुक या इनाम के रूप में प्राप्त कर अपने पद का दुरूपयोग कर आपराधिक अवचार/कदाचरण किया ?
7- अभियोजन ने प्रकरण को अपने पक्ष में दर्शित करने के लिए 11 साक्षीगण के कथन कराये हैं तथा निम्न दस्तावेज भी प्रदर्श अंकित किये हैं, अतः साक्षीगण के नाम तथा प्रदर्श एवं उनकी स्थिति निम्नानुसार है :-
विचारणीय प्रश्नों पर निष्कर्ष एवं उसके आधार
विचारणीय प्रश्न क्र. 1
8- उक्त संबंध में सर्वप्रथम अभियुक्त की लोक सेवक की स्थिति देखा जाना आवश्यक है। आर.के.मांझी अ.सा.1 चीफ जनरल मैनेजर (सुरक्षा) एस.ईसी.एल. ने अभियोजन स्वीकृति आदेश प्रदर्श पी-1 के तहत आरोपी को एस.ईसी.एल. डोमनहिल कॅालेरी चिरमिरी एरिया में क्लर्क ग्रेड-1 के पद पर कार्यरत होना बताते हुए उसे सेवा से मुक्त करने अथवा अन्य कार्यवाही के संबंध में सक्षम अधिकारी होना बताया है तथा दर्शित किया है कि उसके समक्ष विजिलेन्स विभाग द्वारा प्रस्तुत किए गए पत्र एवं समस्त दस्तावेज एवं तथ्यों के आधार पर अभियुक्त के विरूद्ध अभियोजन चलाने हेतु प्रदर्श पी-1 का अभियोजन स्वीकृति आदेश दिया था।
9- आर.के.मांझी.अ.सा.1 ने दर्शित किया है कि आरोपी ने दिनांक 31.12. 2012 को सेवानिवृत्त हुए मेकेनिकल फिटर कन्हैयालाल से उसके पी.एफ. तथा पेंशन भुगतान के संबंध में रिश्वत की राशि की मांग की थी। यद्यपि प्रतिरक्षा पक्ष ने आक्षेपित करने का प्रयास किया कि आरोपी संबंधित कार्य करने के लिए अधिकृत नहीं था, किंतु साक्षी ने यह स्पष्ट किया है कि जिस समय आरोपी कार्य कर रहा था, वहां उसके वरिष्ठ अधिकारी भी थे तथा इस संबंध मे उसने जानकारी ले ली थी। कन्हैयालाल के संबंध में शासकीय आवास के दुरूपयोग तथा अन्य अनियमितताओं के संबंध में दर्शित तथ्य इस स्तर पर विचार योग्य नहीं हैं। इस प्रकार अभियोजन स्वीकृति देने वाले साक्षी ने आरोपी के विरूद्ध कार्यवाही करने की सक्षमता एवं मस्तिश्क का प्रयोग कर बिना किसी दबाव के स्वीकृति आदेश दिया जाना दर्शित किया है, तब प्रतिरक्षा पक्ष का उक्त तर्क आधारहीन हो जाता है। स्वीकृति का मुख्य उद्देश्य शासकीय सेवक को असत्य अभियोजन से बचाना है। अभिलेख पर ऐसा कोई तथ्य नहीं है, जिसके आधार पर अभियोजन स्वीकृति देने वाले साक्षी के संबंध में स्वीकृति देते समय यह स्थिति हो कि आरोपी को असत्य रूप से फंसाया जा रहा है। इस प्रकार अभियोजन स्वीकृति देने के संबंध में आर.के.मांझी अ.सा.1 द्वारा मस्तिष्क का प्रयोग स्वतंत्र रूप से किये जाने की स्थिति दर्शित है। न्याय दृष्टान्त मनसुखलाल विट्ठलदास चौहान विरूद्ध स्टेट ऑफ गुजरात(1997)7 एस सी सी-662 अनुसरित।
10- माननीय न्याय दृश्टांत प्रकाश सिंह बादल विरूद्व स्टेट आफ पंजाब 2007 (1) एस.सी.सी. 1 में अभिनिर्धारित किया गया था कि अधिनियम की धारा 19 (1) के तहत स्वीकृति प्रक्रिया का भाग है तथा यह क्षेत्राधिकार की जड़ को प्रभावित नहीं करती। एक अन्य न्याय दृश्टांत सुपरन्टिंडेंट आफ पुलिस (सी.बी.आई.) विरूद्व दीपक चौधरी एवं अन्य 1996 क्रि.ला.ज. 405 में अभियोजन स्वीकृति को प्रशासनिक कार्यवाही होना दर्शित किया है। ऐसी स्थिति में अभिलेख पर मौजूद तथ्य तथा उपरोक्त माननीय न्याय दृश्टांतों के परिप्रेक्ष्य में यह स्पश्ट है कि जहां स्वीकृति देने वाले साक्षी आर.के.मांझी अ.सा.1 ने यह स्पश्ट किया है कि उसने अपने मस्तिश्क का स्वतंत्र प्रयोग कर स्वीकृति आदेश दिया था। तब उक्त स्थिति में प्रदर्श पी-1 का आदेश अभियोजन स्वीकृति हेतु प्रक्रियात्मक रूप से उचित है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि प्रतिरक्षा पक्ष ने आरोपी की पदीय स्थिति को कोई चुनौती नहीं दी। ऐसी स्थिति में उपरोक्त साक्ष्य के आधार पर घटना के समयकाल में विशेष अधिनियम की धारा 2(ग) के प्रावधानों के तहत अभियुक्त का प्रश्नगत समय पर लोक सेवक होना साबित है तथा उपरोक्त दर्शित विवेचन से अभियोजन स्वीकृति भी प्रक्रियात्मक नियमों के तहत पालन सहित दर्शित किये जाने पर वैध रूप से दिया जाना साबित है।
विचारणीय प्रश्न क्र. 2
11- अब आगे देखा यह जाना है कि क्या अभियुक्त के पास शिकायतकर्ता/प्रार्थी कन्हैयालाल अ.सा.2 से रिश्वत राशि प्राप्त करने का हेतुक विद्यमान था ? इस संबंध में प्रतिरक्षा पक्ष द्वारा दर्शित किया गया है कि अभियोजन ने शिकायतकर्ता कन्हैयालाल श्रीवास्तव, जैसा कि उसने न्यायालय में अपना नाम बताया है, के संबंध में स्थिति को प्रमाणित नहीं किया है। साथ ही यह दर्शित किया कि आरोपी पेंशन एवं सी.एम.पी.एफ. प्रकरण के निराकरण हेतु सक्षम नहीं था। विजय कुमार पांडे अ.सा.5 ने यह स्वीकार किया है कि प्रकरण का अधीक्षण उसके द्वारा किया जाना था। स्वयं प्रतिरक्षा पक्ष द्वारा कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा.2 को उसके प्रतिपरीक्षण की कंडिका-43 में सुझाव दिया गया कि जब शिकायतकर्ता आरोपी से मिला था, तब आरोपी ने कागज एवं औपचारिकतायें पूरी करने के लिए कहा था। इस प्रकार उपरोक्त कंडिका-43 मे जिस प्रकार प्रतिरक्षा पक्ष ने वृहद रूप से विभिन्न दस्तावेजों की मांग आरोपी द्व ारा शिकायतकर्ता से किये जाने की स्थिति दर्शित की है, तब यह स्पष्ट है कि आरोपी भले ही सी.एम.पी.एफ., पेंशन निराकरण के लिए सक्षम नहीं था, किंतु यह तथ्य स्पष्ट रूप से दर्शित है कि संबंधित फाइल आरोपी के माध्यम से ही हैंडिल की जा रही थी। ऐसी स्थिति में रिश्वत की मांग के हेतुक बाबत अन्य साक्ष्य अथवा स्थिति की आवश्यकता नहीं मानी जा सकती। < /br> -ःविचारणीय प्रश्न क्र. 3 :-
12- अभियुक्त के विरूद्व अधिनियम की धारा 7, 8 एवं 13 (2) सहपठित धारा 13 (1) (डी) के अपराध को साबित किये जाने हेतु विधिक दृश्टिकोण में अभियोजन को निम्न बिन्दु सन्देह से परे साबित करना होगा :- क- अभियुक्त व्दारा शिकायतकर्ता से रिश्वत की मांग (DEMAND) ख- अभियुक्त व्दारा शिकायतकर्ता से रिश्वत की रकम प्राप्त किया जाना (ACCEPTANCE). ग- अभियुक्त के कब्जे से रिश्वत की रकम का बरामद किया जाना (RECEIVING).
13- इस प्रकार मुख्य निर्णायक बिन्दु, जो निर्धारित किये जाने हैं, वह इस प्रकार है कि क्या अभियुक्त ने शिकायतकर्ता से रिश्वत की मांग की ? तथा उक्त मांग के अनुसरण में स्वेच्छया प्रतिग्रहण किया ? यदि दोनों प्रश्नों के उत्तर सकारात्मक प्राप्त होते हैं तो विशेश अधिनियम की धारा-7 एवं 13 (2) सहपठित धारा 13 (1) (डी) के संबंध में यह माना जाएगा कि अभियुक्त के विरूद्व विशेश अधिनियम की धारा 20 के अंतर्गत उपधारणा किये जाने योग्य पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध है। ऐसी स्थिति में उपधारणा किये जाने पर सबूत का भार अभियुक्त पर अधिरोपित माना जाएगा कि उसने अपने दायित्व का उन्मोचन किया है अथवा नहीं।
14- प्रतिरक्षा पक्ष की ओर से तर्क के तहत यह दर्शित किया गया कि ट्रेप प्रकरणों में प्रार्थी की स्थिति सह अपराधी की होती है तथा वास्तविक तथ्यों के संबंध में उसके साक्ष्य की सम्पुष्टि आवश्यक होती है तथा प्रार्थी के सह अपराधी होने के आधार पर साक्ष्य का गहराई से परीक्षण किया जाना आवश्यक होना बताया है। इस संबंध में प्रतिरक्षा पक्ष की ओर से निम्न न्याय दृष्टान्त प्रस्तुत किये गये :- 1. पंजाब राज्य बनाम मदन मोहनलाल वर्मा 2013(3)सी.सी.एस.सी 1549 2. आशा वर्मा एवं अन्य विरूद्ध स्टेट ऑफ एम.पी.(वर्तमान छत्तीसगढ) 2011(1) सी.जी.एल.आर.डब्लू.316
15- इस प्रकार उपरोक्त माननीय न्याय दृश्टांतों के परिप्रेक्ष्य में प्रकरण के तथ्यों को देखा जाये तथा इस स्थिति पर विचार किया जाये कि अभियुक्त द्वरा किस प्रकार से प्रार्थी से रिश्वत की राशि की डिमांड की गयी तथा किन-किन परिस्थितियों मे अभियुक्त तथा प्रार्थी की मुलाकात हुई ?
16- प्रतिरक्षा पक्ष ने माननीय न्याय दृष्टान्त बी0जयाराज विरूद्ध स्टेट आफ आन्ध्रप्रदेश (2014) 13 सुप्रीम कोर्ट केसेज-55 के आधार पर दर्शित किया गया है कि मात्र करेन्सी नोट की रिकव्हरी ही प्रकरण को प्रमाणित मानने के लिये पर्याप्त नहीं है, वस्तुतः डिमांड की स्थिति देखी जानी चाहिये।
17- प्रतिरक्षा पक्ष के द्वारा प्रस्तुत उपरोक्त न्याय दृष्टान्त में दर्शित विधिक स्थिति के संबंध में माननीय न्याय दृष्टान्त सी0सुकुमारन् विरूद्ध स्टेट ऑफ केरला(2015)11 सुप्रीम कोर्ट केसेज-314 का पैरा-13 का निम्न भाग सुसंगत है :- It has been continuously held by this Court in a catena of cases after interpretation of the provisions of Section 7 and 13(1)(d) of the Act that the demand of illegal gratification by the accused is the sine qua non for constituting an offence under the provision of theAct. अद्यतन नवीन न्याय दृष्टान्त किशनचंदर विरूद्ध स्टेट आफ देहली(2016)3 एस सी सी-108 में भी उक्त स्थिति को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पुनः परिभाषित किया है।
18- उपरोक्त न्याय दृष्टान्तों के आधार पर यह स्पष्ट है कि अभियोजन को रिश्वत की राशि की डिमांड किये जाने की स्थिति को प्रमाणित करना मात्र आवश्यक ही नहीं, बल्कि डिमांड एक ऐसी स्थिति है, जिसके अभाव में अभियोजन की अन्य महत्वपूर्ण कार्यवाहियां प्रमाणित होने के बावजूद पूर्णतः विफल मानी जायेंगी।
19- प्रतिरक्षा पक्ष ने अपने तर्क के तहत सर्वप्रथम प्रथम सूचना रिपोर्ट हेतु लिखित आवेदन प्रस्तुत करने की स्थिति के संबंध में अभिलेख के तथ्यों को विरोधाभाषी होना दर्शित किया है। इस प्रकार उक्त प्रतिरक्षा के परिप्रेक्ष्य में सर्वप्रथम प्रथम सूचना रिपोर्ट के स्थान एवं समय की स्थिति को देखा जाये-तो कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा.2/शिकायतकर्ता ने अपने मुख्य परीक्षण के तहत आरोपी के पास सेवानिवृत्त होने उपरांत उसकी पेंशन सी.एम.पी.एफ. की फाइल लंबित होना तथा उसके द्वारा पैसे की मांग की स्थिति दर्शित करते हुए अपने कथन की कंडिका-3 में दर्शित किया है कि उसने 28 जनवरी 2013 तक इंतजार करने के बाद काम न होने पर पैसा मांगने की शिकायत प्रदर्श पी-2 बैंकुंठपुर स्थित मयूरा होटल में सी.बी.आई को किया था। किंतु प्रतिपरीक्षण की कंडिका-32 में अपनी स्थिति को परिवर्तित करते हुये कन्हैयालाल श्रीवास्तव असा.2/शिकायतकर्ता ने दर्शित किया कि उसने प्रदर्श पी-2 का लिखित शिकायत दिनांक 29.01.2013 को दिया था।
20- उपरोक्त तात्विक परिवर्तन की स्थिति के साथ-साथ कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा.2/शिकायतकर्ता ने अपने परीक्षण की कंडिका-31 में यह दर्शित किया है कि दिनांक 28.01.2013 को वह भिलाई आया था, किंतु उसने कोई लिखित शिकायत सी.बी.आई को नहीं दी थी। उक्त साक्षी ने सुबह 10.00 बजे के लगभग भिलाई पहुंचना बताया है तथा यह भी स्पष्ट किया है कि उसके साथ कण्डूराम नाम का व्यक्ति आया था और उसकी मुलाकात सी.बी.आई आफिस में प्रधान साहब से हुई थी। किन्तु पश्चातवर्ती स्थिति में कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा.2/शिकायतकर्ता दिनांक 18.06.2014 को अपने कथन हेतु उपस्थित रहा,तब उसने दिनांक 28.01.2013 को भिलाई पहुंचने की स्थिति से इंकार कर दिया। किंतु उक्त स्थिति के बावजूद प्रकरण के विवेचक डी.बी.प्रधान अ.सा.11 ने अपने परीक्षण की कंडिका-11 में यह स्वीकार किया है कि दिनांक 28.01.2013 को प्रार्थी भिलाई आया था तथा उसने शिकायत सी.बीआई. कार्यालय भिलाई में दिया था। इस प्रकार विवेचक द्वारा पुष्टि किये जाने के पश्चात यह स्पष्ट है कि दिनांक 28.01.2013 को प्रार्थी कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा.2/शिकायतकर्ता भिलाई में उपस्थित था और उसके द्वारा लिखित शिकायत भिलाई कार्यालय में दिया गया था।
21- किन्तु उक्त स्थिति के बावजूद संजीव कुमार सिन्हा, अ.सा.10 ने अपने मुख्य परीक्षण के तहत यह स्पष्ट नहीं किया है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट किस प्रकार पंजीबद्ध की गयी थी। संजीव कुमार सिन्हा अ.सा.10 ने प्रदर्श पी-16 की रिपोर्ट तत्कालीन पुलिस अधीक्षक प्रभारी, जे.एन.राणा द्वारा पंजीबद्ध किया जाना दर्शित किया है। किंतु साक्षी ने प्रतिपरीक्षण की कंडिका-20 में यह स्पष्ट किया है कि प्रदर्श पी-16 प्रथम सूचना पत्र में अभियोगी/सूचनाकर्ता के हस्ताक्षर एवं न्यायालय में भेजने का दिनांक एवं समय का उल्लेख नहीं है। प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि यदि कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा.2/शिकायतकर्ता दिनांक 28.01.2013 को भिलाई में उपस्थित था, तब उसका हस्ताक्षर क्यों नहीं लिया गया तथा अनावश्यक विलंब हुए बिना प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति न्यायालय को प्रेषित क्यों नहीं की गयी। ऐसी स्थिति में जहां कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा. 2/शिकायतकर्ता ने दिनांक 29.01.2013 के संबंध में भी रिपोर्ट प्रस्तुत करने की स्थिति दर्शित की है, तब विवेचनात्मक पुष्टि एवं कारणों के अभाव में प्रथम सूचना रिपोर्ट प्रदर्श पी-16 लेखबद्ध किये जाने हेतु कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा. 2/शिकायतकर्ता के लिखित आवेदन प्रदर्श पी-2 के संबंध में उसके प्रस्तुत किये जाने के समय, स्थान आदि को लेकर प्रमाणिक स्थिति अभिलेख पर नहीं है।
22- उक्त स्थिति के साथ-साथ अभिलेख से यह स्पष्ट है कि संजीव कुमार सिन्हा, अ.सा.10 टी.एल.ओ. ने शिकायतपत्र प्रदर्श पी-2 की पुष्टि हेतु वॅायस रिकार्डर के साथ कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा.2/शिकायतकर्ता एवं पुनीत कुमार सिंह को आरोपी के कार्यालय भेजा जाना एवं कार्यवाही पश्चात पंचनामा प्रदर्श पी-3 एवं वार्तालाप का लिप्यांतरण प्रदर्श पी-3(1) की पुष्टि की है तथा दर्शित किया है कि उक्त वार्तालाप के आधार पर यह स्पष्ट हुआ था कि आरोपी ने प्रार्थी को 10,000/-रू. लेकर दिनांक 29.01.2013 को आने को कहा था।
23- पुनीत कुमार सिंह अ.सा.3 ने भी उक्त कार्यवाही का समर्थन किया है। किंतु कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा.2/शिकायतकर्ता के कथन से यह दर्शित है कि वेरीफिकेशन कार्यवाही के दौरान उसकी आरोपी से मुलाकात डोमनहिल के गेट पर ही हुई थी। जबकि पुनीत कुमार सिंह अ.सा.3 का कहना है कि उसने शिकायतकर्ता कन्हैयालाल को अकेले ही आरोपी के कार्यालय में प्रवेश करते तथा वहां से लौटते हुए देखा। दोनों ही स्थिति में तात्विक अंतर है।
24- उपरोक्त स्थिति के साथ-साथ महत्वपूर्ण प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि दिनांक 28.01.2013 की कार्यवाही प्रदर्श पी-3 13.30 बजे से 18.30 बजे के मध्य होटल आश्रय बैकुंठपुर में संपन्न की गयी, जिसमें शिकायकर्ता कन्हैयालाल एवं पुनीत कुमार सिंह की उपस्थिति दर्शित की गयी तथा समस्त कार्यवाही का अभिलेख भी तैयार किया गया। कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा. 2/शिकायतकर्ता एवं प्रकरण के विवेचक के कथन के आधार पर यदि इस स्थिति को निर्मित माना जाये कि दिनांक 28.01.2013 को सुबह 10.00 बजे कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा.2/शिकायतकर्ता भिलाई ए.सी.बी. सी.बी.आई कार्यालय उपस्थित हुआ था, तब प्रदर्श पी-16 में दर्शित घटनास्थल की दूरी 300 कि.मी. के संबंध में यह संभव नहीं है कि लगभग एक-दो घंटे के अंतराल पर उक्त कार्यवाही अर्थात वेरीफिकेशन की कार्यवाही उस स्थान पर संपन्न की गयी हो, जो कि शिकायतकर्ता की उपस्थिति भिलाई से लगभग 300 कि.मी.की दूरी पर हो।
25- इस प्रकार हस्तगत प्रकरण में यह स्पष्ट है कि विवेचक डी.बी. प्रधान अ.सा.11 ने अभियोगपत्र प्रस्तुत करते समय इस स्थिति के संबंध में स्पष्टीकरण क्यों नहीं दिया कि दिनांक 28.01.2013 को प्रार्थी के भिलाई में उपस्थित रहने के बावजूद ठीक उसी समय के लगभग वेरीफिकेशन मेमोरेंडम प्रदर्श पी-3 की कार्यवाही, जो पूर्णतः असंभव है, किस प्रकार तथा किन कारणों के तहत अभिलेख में प्रस्तुत की गयी। संबंधित विवेचक द्वारा उक्त तथ्यों को छुपाया जाना अर्थात दृष्टिगत न करना उसकी स्पष्ट लापरवाही को दर्शित करता है। वस्तुतः उक्त तथ्यों के आधार पर जहां प्रदर्श पी-3 एवं संलग्न लिप्यांतरण प्रदर्श पी-3(1) की कार्यवाही आधारहीन हो गयी है, तब ऐसी स्थिति में आरोपी द्वारा रिश्वत की मांग की स्थिति उक्त तथ्यों के आधार पर प्रमाणित नहीं मानी जा सकती।
26- डी.बी.प्रधान अ.सा.11 ने यह स्वीकार किया है कि विवेचना के तहत ऐसा कोई साक्ष्य संकलित नहीं किया गया, जिससे यह दर्शित हो कि 31. 12.2012 को प्रार्थी ने आरोपी कन्हैयालाल से मुलाकात की हो। स्वयं कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा.2/शिकायतकर्ता ने यह स्पष्ट नहीं किया कि पूर्व में उसकी मुलाकात आरोपी से कब हुई तथा आरोपी ने किस प्रकार उससे मांग की। ऐसी स्थिति में दिनांक 29.01.2013 के पूर्व आरोपी द्वारा रिश्वत की किसी मांग को प्रमाणित करने में अभियोजन पूर्णतया असफल है। इस प्रकार उपरोक्त तथ्य एवं विवेचनात्मक निष्कर्ष को देखते हुये डिमांड के बिंदु पर प्रस्तुत साक्ष्य के विवेचन से अभियोजन के पक्ष में स्थिति प्रमाणित नहीं है।
-ः विचारणीय बिन्दु क्रमांक-4 :-
27- संजीव कुमार सिन्हा अ.सा.10 टी.एल.ओ. ने दिनांक 29.01.2013 को आश्रय होटल में कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा.2/शिकायतकर्ता तथा स्वतंत्र साक्षीगण की मौजूदगी में प्रदर्शन कार्यवाही के तहत प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत करेन्सी नोटों का प्रधान आरक्षक दिनेश कुमार के द्वारा फिनाफ्थिलीन पाउडर लगाने तथा रोहित चौधरी द्वारा छूने पर तथा सोडियम कार्बोनेट के रंगहीन घोल में उंगलियों को डुबोने पर रंगहीन घोल के गुलाबी रंग में परिवर्तित होने संबंधी प्रदर्शन कार्यवाही की स्थिति दर्शित की है, किंतु कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा. 2/शिकायतकर्ता ने उक्त समस्त कार्यवाही आरक्षक दिनेश कुमार के स्थान पर पुनीत द्वारा किया जाना दर्शित किया है। इस प्रकार उक्त कार्यवाही के संबंध में भी तात्विक विभेद की स्थिति अभिलेख पर है।
28- फिनाफ्थिलीन पाउडर लगे नोटों को टी.एल.ओ. संजीव कुमार सिन्हा अ.सा.10 के अनुसार प्रार्थी के पहने हुए पैंन्ट के सामने के दांये तरफ के जेब में रखा गया था। उक्त स्थिति को कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा. 2/शिकायतकर्ता ने भी सम्पुष्ट किया है। किंतु स्वतंत्र साक्षी पुनीत कुमार सिंह ने अपने परीक्षण की कंडिका-5 तथा रोहित चौधरी अ.सा.4 ने अपने परीक्षण की कंडिका-5 में उक्त कार्यवाही के तहत 10,000/-रू. नोट कन्हैयालाल के शर्ट के पॉकेट में रखा जाना दर्शित किया है। महत्वपूर्ण रूप से पुनीत कुमार सिंह ने अपने परीक्षण की कंडिका-29 के पश्चात किये गये प्रश्न के उत्तर में दर्शित किया है कि फिनाफ्थिलीन पाउडर लगे नोटों को लिफाफे में रखा गया था। इस प्रकार पुनीत कुमार सिंह अ.सा.3 ने दर्शित किया है कि सी.बी.आई टीम के किसी सदस्य ने नोटों को लिफाफे में रखा था। महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि हस्तगत प्रकरण में सी.बी.आई प्रकरण के तथ्यों के अनुसार ट्रेप मनी टेबल के दराज में एक लिफाफे में रखी जप्त की गयी। ऐसी स्थिति में प्रतिरक्षा पक्ष का यह तर्क महत्वपूर्ण हो जाता है कि इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि पूर्व से लिफाफे में रिश्वत की राशि को रखकर आरोपी को फंसाने का प्रयास किया गया हो।
29- कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा.2/शिकायतकर्ता ने अपने मुख्य परीक्षण की कंडिका-11 के तहत दर्शित किया कि जब वह पुनीत के साथ आरोपी के कार्यालय में गया, तब आरोपी ने उससे बोला कि पैसे लाये हो, तब उसने आरोपी के कहने पर तथा उसके द्वारा दिये जाने पर लिफाफे के अंदर पैसे को डाल दिया था तथा आरोपी के कहने पर उस लिफाफे को दराज में रख दिया था। किंतु पोस्ट ट्रेप मेमोरेंडम प्रदर्श पी-5 के साथ संलग्न लिप्यांतरण में उक्त स्थिति रिकार्ड न होने की स्थिति अभिलेख से दर्शित है। डी.बी.प्रधान अ.सा. 11 ने यह स्वीकार किया है कि साक्षी कन्हैयालाल के कथन में उल्लेखित है कि आरोपी के कहने पर उसने पैसे लिफाफे में रखे थे, न कि इशारे के आधार पर। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि यदि उक्त वार्तालाप हुआ था, तो निश्चित रूप से प्रदर्श पी-5 के साथ संलग्न लिप्यांतरण में भी उक्त स्थिति स्पष्ट होती।
30- इसी प्रकार कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा.2/शिकायतकर्ता के कथन की कंडिका-12 के अनुसार अभियुक्त द्वारा पुनीत के बारे में पूछे जाने तथा जवाब की स्थिति संलग्न लिप्यांतरण में नहीं है। स्वयं डी.बी.प्रधान अ.सा.11 ने भी प्रदर्श पी-5(1) के लिप्यांतरण में उक्त वार्तालाप कि लिफाफा लो और पैसा डालकर रख दो, दर्शित नहीं होना बताया है।
31- महत्वपूर्ण रूप से रिश्वत की राशि देने के तात्विक समय पर उपस्थित पुनीत कुमार सिंह, अ.सा.3 की स्थिति को देखा जाये तो उसने अभियोजन प्रकरण के तथ्यों के विपरीत कन्हैयालाल द्वारा अपने शर्ट के जेब से पैसे निकालकर देना बताया है तथा दर्शित किया है कि वह यह नहीं देख पाया कि आरोपी ने किस प्रकार पैसे लिये। महत्वपूर्ण प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि घटनास्थल के नजरी नक्शा प्रदर्श पी-6 तथा कन्हैयालाल श्रीवास्तव असा.2/शिकायतकर्ता के अनुसार यदि पुनीत कुमार सिंह नजदीक ही मौजूद था, तब यदि आरोपी द्वारा लिफाफा दिया गया था और उसने कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा.2/शिकायतकर्ता ने रिश्वत की राशि रखकर उसे दराज में रखा था, तो यह किसी परिस्थिति में संभव नहीं है कि पुनीत कुमार सिंह उक्त परिस्थिति को न देखता। वस्तुस्थिति जो भी हो, यदि पुनीत कुमार सिंह के कथन की स्थिति को देखा जाये तो भी कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा.2/शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी को उसके द्वारा दिये गये लिफाफे में उसके निर्देशानुसार कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा.2/शिकायतकर्ता द्वारा रिश्वत की राशि दिया जाना प्रमाणित नहीं माना जा सकता।
32- इसी प्रकार प्रदर्श पी-6 के नजरी नक्शा के आधार पर घटनास्थल की स्थिति एवं कार्यवाही को देखा जाये तो कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा. 2/शिकायतकर्ता ने अपने परीक्षण की कंडिका-63 के पश्चात किये गये प्रश्न के उत्तर में बताया कि लंच का समय होने के कारण अभियुक्त अपने टेबल को छोडकर दूसरे टेबल के पास बैठ गया था और अभियुक्त के बैठने के स्थान के सामने वाली टेबल से पैसा बरामद हुआ था। कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा. 2/शिकायतकर्ता ने अपने प्रतिपरीक्षण की कंडिका-73 एवं पुनीत कुमार सिंह अ.सा.3 ने अपने प्रतिपरीक्षण की कंडिका-32 में यह स्वीकार किया है कि जिस टेबल के दराज से पैसा मिला था, वह टेबल किसका था नहीं बता सकता।
33- इसी प्रकार संजीव कुमार सिन्हा अ.सा.10 ने प्रतिपरीक्षण की कंडिका-25 में यह स्वीकार किया है कि वह यह नहीं बता सकता कि जिस तथाकथित टेबल से पैसे की जप्ती बतायी जा रही है, वह किस क्रम में था। इससे भी ज्यादा हास्यास्पद स्थिति डी.बी.प्रधान अ.सा.11 के प्रतिपरीक्षण की कंडिका-12 के आधार पर दर्शित है, जिससे यह स्पष्ट है कि संबंधित विवेचक ने यह पुष्टि करने का प्रयास नहीं किया कि वास्तव में आरोपी के कार्यालय में कितने टेबल थे तथा किस क्रम में आरोपी का टेबल रखा था। ऐसी स्थिति में यह प्रमाणित नहीं है कि वास्तव में आरोपी के आधिपत्य वाले टेबल से रिश्वत की राशि जप्त की गयी। ऐसी स्थिति में पूर्व से किसी भी टेबल में रिश्वत की राशि रखे जाने तथा उक्त आधार पर ही जप्ती की कार्यवाही संपन्न होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि हस्तगत प्रकरण में विवेचना एजेन्सी के तथ्यों के आधार पर ही आरोपी के हैंडवॅाश सकारात्मक होने अर्थात उनके गुलाबी होने के आधार पर उसके रंगे हाथों पकडे जाने की स्थिति प्रमाणित नहीं है। ऐसी स्थिति में उपरोक्त विवेचन के आधार पर आरोपी द्वारा स्वेच्छ्या रिश्वत की राशि प्राप्त किया जाना तथा उससे राशि जप्त किया जाना भी प्रमाणित नहीं माना जा सकता। माननीय न्याय दृष्टान्त स्टेट ऑफ पंजाब विरूद्ध मदनमोहनलाल वर्मा (2013)14 सुप्रीम कोर्ट केसेज-153 अनुसरित।
34- इस प्रकार उक्त संपूर्ण साक्ष्य के विवेचन से निम्न विमर्शित परिस्थितियां अभिलेख के आधार पर अभिलिखित किये जाने योग्य हैं, जो निम्न हैं :-
1. अभिलेख से यह स्पश्ट है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट प्रदर्श पी-16 लेखबद्ध किये जाने के संबध में प्रस्तुत लिखित आवेदन प्रदर्श पी-2 के प्रस्तुत करने के स्थान एवं समय तथा न्यायालय में प्रति प्रेषित किये जाने की स्थिति प्रमाणित नहीं है। ऐसी स्थिति में प्रथम सूचना रिपोर्ट जिसे प्रकरण का महत्वपूर्ण आधार कहा जाता है, के संबंध में स्थिति सन्देहप्रद है कि वास्तविक रूप से कब एवं किन परिस्थितियों में उसे लेखबद्ध किया गया।
2. दिनांक 28.01.2013 को कन्हैयालाल श्रीवास्तव अ.सा. 2/शिकायतकर्ता के भिलाई में उपस्थित रहने के बावजूद प्रदर्श पी-3 की वेरीफिकेशन कार्यवाही समानांतर रूप से 300 कि.मी. की दूरी पर उसी समय होना संभव न होने के बावजूद, वह अभिलेख का भाग है एवं संबंधित विवेचक द्वारा इस तथ्य का कोई स्पष्टीकरण नही ंदिया गया कि एक ही तिथि पर एक ही समय में दो कार्यवाही होने की स्थिति कैसे संभव हुई। वस्तुस्थिति जो भी हो, या तो प्रथम सूचना रिपोर्ट का लेखबद्ध होना असंभव है अथवा वेरीफिकेशन कार्यवाही उसी समय होना असंभव है।
3. प्रकरण में स्वतंत्र साक्षीगण ने प्रकरण के तथ्यों के विपरीत फिनाफ्थिलीन लगे प्रस्तावित रिश्वत की राशि को प्रार्थी की शर्ट की जेब में रखना बताया है। विशेष रूप से यह तथ्य भी अभिलेख पर है कि पूर्व से राशि लिफाफे में रख दी गयी थी। ऐसी स्थिति में प्रतिरक्षा पक्ष के तर्क के तहत प्रस्तुत आरोपी को फंसाये जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
4. प्रकरण में आरोपी द्वारा रिश्वत की राशि की स्वेच्छ्या स्वीकारोक्ति तथा उससे जप्ती के संबंध में लिफाफे में राशि रखवाने तथा आरोपी के आधिपत्य की टेबल के बाबत संदेह से परे स्थिति भी प्रमाणित नहीं है।
35- इस प्रकार आरोपी के दोनों हाथों के संबंध में फिनाफ्थिलीन की उपस्थिति के सकारात्मक तथ्य न होने के आधार पर दर्शित उक्त स्थिति के तहत उत्पन्न सन्देह, दोषसिद्धी हेतु निर्णायक परिस्थितियां गठित नहीं करते। कलीराम विरूद्व हिमाचल प्रदेश राज्य ए.आई.आर. 1973 एस.सी. 2773 में अभिनिर्धारित किया गया है कि यदि आरोपी के दोष बाबत कोई युक्ति युक्त संदेह उत्पन्न हो जाय तो उसके लाभ से आरोपी को वंचित नहीं किया जा सकता है।
36- जोगेन्दर सिंह विरूद्व हरियाणा राज्य 1974 क्रि.ला.जं. 177 के पैरा 12 में दर्शित किया गया है कि आरोपी के विरूद्व कितना भी संदेह हो और न्यायाधीश का कितना भी प्रबल नैतिक विश्वास एवं निश्चिय हो परंतु जब तक वैध साक्ष्य अभिलेख की विशय वस्तु के आधार पर युक्ति युक्त शंका से परे दोषारोपण हेतु सिद्व नहीं होता है, तब तक आरोपी को दंडित नहीं किया जा सकता।
37- इस प्रकार उपरोक्त साक्ष्य के विवेचन से यह स्पश्ट है कि अभियोजन, प्रकरण के तथ्यों के आधार पर आरोपी के विरूद्ध रिश्वत मांगने का हेतुक एवं रिश्वत की मांग की स्थिति को प्रमाणित करने में सफल नहीं है। ऐसी स्थिति में उपरोक्त कारण तथा सन्देह से परे आरोप प्रमाणित न होने तथा भ्रश्टाचार निवारण अधिनियम के तहत रिश्वत की मांग प्रमाणित न होने पर माननीय न्याय दृश्टांत सीसुकुमारन में दर्शित डिमांड के संदर्भ में विधिक sine qua non बाबत स्थिति को देखते हुये आरेपी को प्रश्नगत आरोपों के संबंध में चाहे लोक सेवक के रूप में हो अथवा अन्यथा स्थिति के संबंध में, उपरोक्त आरोप सन्देह से परे प्रमाणित न होने के कारण दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
38- अतः प्राप्त निश्कर्श के आधार पर आरोपी को धारा-7 एवं धारा 13(1) (डी) सहपठित धारा 13 (2) भ्रश्टाचार निवारण अधिनियम,1988 के आरोप से दोषमुक्त घोषित किया जाता है।
39- अभियुक्त के व्दारा प्रस्तुत जमानत एवं बंधपत्र भारहीन करते हुए उसे स्वतंत्र किया जाता है।
40- इस प्रकरण में अभियुक्त की निरोध अवधि दिनांक 30.01.2013 से दिनांक 01.04.2013 है, जिसके संबंध में धारा 428 दं.प्र.सं. का निरोध अवधि प्रमाण पत्र पृथक से तैयार किया जाये।
41- प्रकरण में जप्त रिश्वती रकम रूपये 10,000/- (दस हजार रूपये) अपील न होने की दशा में, अपील अवधि बाद, शिकायकर्ता/प्रार्थी कन्हैयालाल को लौटायी जावे। प्रकरण में जप्तशुदा मूल्यहीन सम्पत्ति (धोवन, नमूना पुड़िया इत्यादि), अपील अवधि पष्चात्, अपील न होने की दशा में, नश्ट किया जावे। उक्त सभी संपत्तियों का निराकरण अपील होने की दशा में माननीय अपीलीय न्यायालय के निर्देर्शों के अनुसार किया जावे।
निर्णय मेरे निर्देश पर टंकित एवं खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित कर घोषित किया गया।
सही/-
(पंकज कुमार जैन)
स्पेशल जज ऑफ स्पेशल कोर्ट रायपुर,
फॅार ट्रायल ऑफ सी.बी.आई केसेस
31.01.2017 रायपुर (छ0ग0)
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