धारा 306 भारतीय दंड संहिता के आरोप को सिद्ध करने के लिये यह प्रमाणित किया जाना आवश्यक है कि अभियुक्तगण व्दारा मृतिका के साथ इस सीमा तक क्रूरता एवं प्रताड़ना की गयी कि उसके पास जान देने के अलावा अन्य कोई रास्ता नहीं था और ऐसी क्रूरता एवं मृत्यु के बीच अधिक अंतराल नहीं होना चाहिये।
न्यायालय- सत्र न्यायाधीश, दुर्ग, जिला-दुर्ग (छ.ग.)
(पीठासीन न्यायाधीश- नीलम चंद सांखला)
सत्र प्रकरण क्रमांक 72/2015
संस्थित दिनांक 17.07.2015
सी.आई.एस.नंबर 15000722015
अभियोजन --------- छत्तीसगढ़ राज्य की ओर से आरक्षी केन्द्र-सुपेला, जिला-दुर्ग विरूद्ध
अभियुक्तगण --------- (1) प्रकाश साहू आ. सुंदरलाल साहू, आयु-43 वर्ष, साकिन-मकान नंबर- 169, सुंदरनगर, भिलाई, थाना- सुपेला, जिला-दुर्ग (छ.ग.) (2) पूर्णानंद साहू आ. कृषलाल साहू, आयु-29 वर्ष,
साकिन-मोखला, थाना- लालबाग, जिला- राजनांदगॉंव (छ.ग.)
आरक्षी केन्द्र सुपेला, जिला-दुर्ग
अपराध क्रमांक 52/2015
अंतर्गत धारा धारा-306, धारा 304(ख) एवं 498(क) भारतीय दंड संहिता, 1860
गिरफ्तारी दिनांक 14.05.2015 एवं 20.05.2015
निर्णय दिनांक 10 फरवरी 2017
अधिनस्थ न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत अभियोग पत्र अभियोग पत्र प्रस्तुति दिनांक 25.06.2015 आपराधिक प्रकरण क्रमांक 4323/2015 उपार्पण आदेश दिनांक 10.07.2015
पैरवीकर्ता अधिवक्तागण : अभियोजन के लिये ............. श्री सुदर्शन महलवार, लोक अभियोजक। अभियुक्तगण के लिये ........ श्री पी. रविन्दर बाबू, अधिवक्ता। प्रार्थीगण के लिये ............. श्री एम.के. खान, अधिवक्ता
।। निर्णय ।।
( आज दिनांक 10 फरवरी 2017 को घोषित)
1- उपरोक्त वर्णित अभियुक्तगण पर धारा-306, 304(ख) एवं 498(क) भारतीय दंड संहिता, 1860 के अंतर्गत यह आरोप है कि उन्होंने दिनांक 10.09.2014 के पूर्व, सुंदरनगर, भिलाई में मृतिका सत्यभामा साहू को दहेज के लिये और अन्य घरेलू बातों को लेकर एवं उसके चरित्र पर सन्देह कर शारीरिक एवं मानसिक रूप से प्रताड़ित किये तथा उसके साथ कू्ररतापूर्ण व्यवहार किये जिसके कारण उसने घर में किसी जहरीली वस्तु का सेवन कर ली तथा चिकित्सालय में इलाज के दौरान दिनांक 12.09.2014 को उसकी मृत्यु हो गयी।
2- प्रकरण में यह अविवादित है कि साक्षी पालकराम साहू (अ.साक्र.01), सुषमा साहू (अ.सा.क्र.02), लेखराम साहू (अ.सा.क्रं 03), छबिलाल साहू (अ.सा.क्र.7), झुनिया बाई (अ.सा.क्र.9), दिपेश कुमार साहू (अ.सा.क्र.12) एवं श्रीमती ललिता सिन्हा (अ.सा.क्र.16) एवं अभियुक्तगण एक दूसरे को जानते हैं। मृतिका सत्यभामा साहू, पालकराम साहू (अ.सा.क्र.1) की बहन थी जिसकी शादी अभियुक्त प्रकाश साहू के साथ हुई थी। मृतिका सत्यभामा साहू, पति प्रकाश साहू व बच्चों के साथ रामनगर, सुपेला में रहती थी। सत्यभामा साहू को चन्दूलाल चन्द्राकर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। सत्यभामा साहू की मृत्यु के बाद शव पंचनामा नोटिस प्रदर्श पी.1 तैयार किया गया था। प्रकरण में यह भी अविवादित है कि पूर्णानन्द साहू ने प्रकाश साहू को बताया था कि सत्यभामा साहू ने कोई जहरीली वस्तु खा ली है। सत्यभामा साहू की दिनांक 12.09.2014 को चन्दूलाल चन्द्राकर अस्पताल में मृत्यु हो गयी थी। प्रकरण में अभियुक्तगण को गिरफ्तार किया गया था।
3- अभियोजन का मामला संक्षेप में यह है कि मृतिका सत्यभामा साहू का विवाह दिनांक 05.05.2001 को प्रकाश साहू के साथ सामाजिक रीतिरिवाज से हुआ था। मृतिका शादी के बाद उसके पति के साथ सुंदरनगर, भिलाई में रहने लगी। मृतिका और अभियुक्त के दो पुत्र दीपेश कुमार साहू तथा देव कुमार साहू है। अभियुक्त प्रकाश साहू, मृतिका सत्यभामा साहू को उसके मायके से पैसे लाने के लिये दबाव डालता था तथा उसके चरित्र पर सन्देह करके उसके साथ मारपीट करता था। अभियुक्त जब मकान बनवा रहा था तब मृतिका के मायके वालों पर दबाव डालकर 50,000/-रूपये की मांग किया था तब मृतिका के मायकेवालों व्दारा अभियुक्त को उक्त राशि दिया गया था। उसके बाद कार खरीदने हेतु 2 लाख रूपये की मांग किया जिसे देने हेतु अभियुक्त के मायके वालों व्दारा असमर्थता व्यक्त किया गया। उसके बाद होंडा सिटी कार खरीदने हेतु ससुर को जमानत लिये जाने हेतु दबाव बनाया किंतु ससुर व्दारा उसके सेवानिवृत्ति का समय नजदीक होने से जमानत लेने से इंकार कर दिया गया था। इन कारणों से अभियुक्त मृतिका सत्यभामा साहू से अच्छा बर्ताव नहीं करता था।
4- घटना दिनांक से एक दिन पूर्व मृतिका ने उसकी छोटी भाभी को फोन करके बताया था कि अभियुक्त उसे शारीरिक एवं मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहा है एवं स्वयं की जान को खतरा होना बताया था। उक्त सूचना के आधार पर मृतिका की माता दूसरे दिन मृतिका के घर आकर अभियुक्त से बात करने वाली थी किंतु दूसरे दिन मृतिका के मायके वालों को सूचना मिली कि मृतिका अत्यधिक गंभीर हालत में चन्दूलाल चन्द्राकर अस्पताल, भिलाई में भर्ती है। मृतिका सत्यभामा साहू व्दारा कीटनाशक जहरीले पदार्थ का सेवन किये जाने के कारण उसे आई.सी.यू. में रखा गया किंतु इलाज के दौरान दिनांक 12.09.2014 को उसकी मृत्यु हो गयी।
5- चन्दूलाल चन्द्राकर अस्पताल में सुपरवाईजर के पद पर पदस्थ शेख शमीम (अ.सा.क्र.8) ने दिनांक 12.09.2014 को मृतिका का इलाज करने वाले चिकित्सक व्दारा उसे मृतिका की मृत्यु की सूचना थाना सुपेला में पेश करने बाबत् प्रदर्श पी.7 अनुसार पत्र दिया था, जिसके आधार पर उसने थाना सुपेला में मर्ग इंटीमेशन क्रमांक-110/2014 प्रदर्श पी.8 दर्ज कराया था। थाना सुपेला में तत्कालीन पदस्थ सहायक उपनिरीक्षक मंशाराम साहू (अ.सा.क्र.11) ने प्रकरण में अपराध क्रमांक-52/2015 प्रदर्श पी.7 अनुसार दर्ज किया।
6- उक्त कार्यवाही पश्चात् प्रकरण की विवेचना सहायक उपनिरीक्षक एच.एन. सिंह (अ.सा.क्र.19) व्दारा की गयी है। उन्होंने विवेचना के दौरान दिनांक 06.02.2015 को घटनास्थल मृतिका का घर सुंदरनगर, भिलाई में गवाह दीपेश साहू के निशानदेही पर घटनास्थल का निरीक्षण कर नजरी नक्शा प्रदर्श पी.15 तैयार किया। विवेचना के दौरान साक्षीगण राकेश साहू, छबिलाल साहू, श्रीमती झुनियाबाई, संदीप सराफ, लेखराम साहू, दीपेश कुमार साहू, शेख शमीम, पालक राम साहू, श्रीमती सुषमा साहू के कथन उनके बताये अनुसार दर्ज किया। अभियुक्तगण पूर्णानन्द साहू एवं प्रकाश साहू व्दारा अपराध कारित किया जाना पाये जाने से उन्हें क्रमशः गिरफ्तारी पत्रक प्रदर्श पी.20 एवं 21 अनुसार गिरफ्तार किया गया है। प्रकरण में जप्तशुदा बिसरा को विधि विज्ञान प्रयोगशाला, रायपुर परीक्षण कराने हेतु पुलिस अधीक्षक, दुर्ग के माध्यम से भेजा। विधि विज्ञान प्रयोगशाला से प्राप्त परीक्षण रिपोर्ट प्रदर्श पी.18 अनुसार प्रदर्श ए एवं बी, मृतिका सत्यभामा साहू का बिसरा में आर्गेनो फास्फोरस कीटनाशक डाईक्लोरवास होना पाया गया है। मृतिका का पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सक डॉ. एनसी. राय (अ.सा.क्र.14) के अभिमत अनुसार मृतिका की मृत्यु का कारण आर्गेनो फास्फोरस पायजनिंग होना पाया गया है। इस संबंध में उनके व्दारा दी गयी रिपोर्ट प्रदर्श पी.11 है।
7- सम्पूर्ण अन्वेषण पश्चात अभियुक्तगण के खिलाफ धारा 306, 34 भा.दं.सं. का पर्याप्त साक्ष्य पाकर तत्कालीन मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, दुर्ग के न्यायालय में धारा 173(2) दं.प्र.सं. के अतर्गत अंतिम रिपोर्ट पेश की गई। प्रकरण धारा 209 दं.प्र.सं. के अंतर्गत दिनांक 10.07.2015 को विधिवत सत्र न्यायालय को उपार्पित हुआ।
8- अभियुक्तगण के विरूद्ध धारा 306 एवं विकल्प में धारा 304(ख), 498(क) भारतीय दण्ड संहिता, 1860 के अंतर्गत दंडनीय अपराध के आरोप को अधिरोपित किये जाने पर अभियुक्तगण ने अपराध अस्वीकार कर विचारण का दावा किया। अभियोजन साक्षियों के परीक्षण के उपरांत धारा 313 दं.प्र.सं., 1973 के अंतर्गत अभियुक्तगण का परीक्षण किया गया जिसमें उन्होंने स्वयं को निर्दोष होना तथा झूठा फंसाये जाने का कथन किया। अभियुक्तगण को प्रतिरक्षा में प्रवेश कराये जाने पर प्रतिरक्षा साक्ष्य दिया जाना व्यक्त किया तथा उनकी ओर से प्रतिरक्षा साक्षी के रूप में इन्द्रमणि पटेल ब.सा.क्र.1, रिंकी सोना ब.सा.क्र.2 एवं अभियुक्त स्वयं डॉ. प्रकाश साहू ब.सा.क्र.3 का न्यायालय में परीक्षण कराया गया है।
9- विचारणीय बिन्दु
1- क्या अभियुक्तगण ने दिनांक 10.09.2014 के पूर्व सुंदरनगर, भिलाई में मृतिका सत्यभामा साहू के चरित्र पर सन्देह कर उसे शारीरिक एवं मानसिक रूप से प्रताड़ित कर आत्महत्या करने के लिये दुष्प्रेरित किये जिसके फलस्वरूप उसने घर में जहरीली वस्तु का सेवन कर ली जिसकी अस्पताल में इलाज के दौरान मृत्यु हो गयी ?
2- क्या अभियुक्तगण ने दिनांक 10.09.2014 के पूर्व सुंदरनगर, भिलाई में मृतिका सत्यभामा साहू के चरित्र पर सन्देह कर उसे शारीरिक एवं मानसिक रूप से प्रताड़ित किये जिसके कारण उसने घर में जहरीली वस्तु का सेवन कर ली जिसकी अस्पताल में इलाज के दौरान मृत्यु हो गयी ?
3- क्या अभियुक्तगण ने मृतिका सत्यभामा साहू को दहेज के लिये एवं अन्य घरेलू बातों को लेकर शारीरिक एवं मानसिक रूप से प्रताड़ित कर उसके साथ कू्ररतापूर्ण व्यवहार किये?
10- उभयपक्ष का तर्क श्रवण किया गया। अभिलेख एवं प्रार्थीगण की ओर से प्रस्तुत लिखित तर्क का परिशीलन किया गया।
:ः विवेचना एवं निष्कर्ष :ः
11- विचारणीय बिन्दु क्रमांक-1, 2 एवं 3 पर निष्कर्ष :- साक्ष्य की पुनरावृत्ति को रोकने के उद्देश्य से इन तीनों ही विचारणीय बिन्दुओं का निराकरण साथ-साथ किया जा रहा है। अभियोजन पक्ष की ओर से तर्क के दौरान कहा गया है कि उन्होंने अपना मामला साबित किया है इसके विपरीत अभियुक्तगण के अधिवक्ता ने तर्क में कहा है कि इस प्रकरण में साक्षियों के कथन स्वाभाविक नहीं है इसलिये उसे साक्ष्य में ग्राह्य नहीं किया जाना चाहिये। अभियोजन पक्ष की ओर से अभियुक्तगण के विरूद्ध आरोप प्रमाणित करने के उद्देश्य से साक्षी पालकराम साहू (अ.सा.क्र.01), सुषमा साहू (अ.सा.क्र.02), लेखराम साहू (अ.सा.क्रं 03), सुशील कुमार धार्मिक (अ.सा.क्रं 04), जी. रामकुमार (अ.सा.क्र.5), डॉं. प्रभात पाण्डेय (अ.सा.क्र.6), छबिलाल साहू (अ.सा.क्र.7), शेख समीम (अ.सा.क्र.8), झुनिया बाई (अ.सा.क्र.9), डॉ. एम.पी. चन्द्राकर (अ.सा.क्र.10), सहायक उपनिरीक्षक मंशाराम साहू (अ.सा.क्र.11), दिपेश कुमार साहू (अ.सा.क्र. 12), आरक्षक महिपाल यादव (अ.सा.क्र.13) डॉं. एन.सी. राय (अ.सा.क्र. 14), ), सहायक उपनिरीक्षक फगनूराम सिन्हा (अ.सा.क्र.15), श्रीमती ललिता सिन्हा (अ.सा.क्र.16), आरक्षक मनेन्द्र वर्मा (अ.सा.क्र.17), प्रधान आरक्षक शहीद खान (अ.सा.क्र.18), सहायक उपनिरीक्षक एच.एन. सिंह (अ.सा.क्र.19), आरक्षक आशीष कुमार शुक्ला (अ.सा.क्र.20) एवं डॉनीलम चन्द्राकर (अ.सा.क्र.21) का परीक्षण कराया गया है।
12- सर्वप्रथम माननीय उच्चतम न्यायालय के न्यायदृष्टान्त गुरदीप सिंह वि. पंजाब राज्य 2013(भाग-4) सी.सी.एस.सी. 1712 (एस.सी.), दांडिक अपील क्रमांक-1308 वर्ष 2013, निर्णय तिथि 03.09.2013 का उल्लेख किया जाना उचित प्रतीत होता है जिसमें माननीय उच्चतम न्यायालय व्दारा यह टिप्पणी की है कि भारतीय दंड संहिता (जिसे आगे ‘‘संहिता‘‘ कहा जायेगा) की धारा 304(ख) एवं धारा 498(क) हेतु क्रूरता के प्रकरणों में संहिता की धारा 304(ख) को साबित करने हेतु अभियोजन को कौन-कौन से तथ्य प्रमाणित करना आवश्यक है एवं संहिता की धारा 498(क) में क्रूरता का क्या अर्थ है। यहां पर उक्त न्यायदृष्टांत के पैरा-5, पेज-1715 का उल्लेख किया जाना सुसंगत प्रतीत होता है जो इस प्रकार है:- भारतीय दंड संहिता में ‘‘दहेज मृत्यु‘‘ को धारा 304(ख) के अधीन 1986 के अधिनियम 43 के अनुसार पुन: स्थापित किया गया था। उक्त प्रावधान के अधीन, यदि विवाहिता की मृत्यु, (।) दाह या शारीरिक उपहति के कारण होती है या मृत्यु सामान्य परिस्थितियों के अधीन के अन्यथा होती है, (।।) ऐसी मृत्यु विवाह के सात वर्ष के भीतर होती है, (।।।) यह दर्शित किया जाता है कि उसे उसके पति या किसी नातेदार व्दारा कू्ररता या उत्पीड़न क्रे अधीन रखा गया था, (।अ) ऐसी कू्ररता या उत्पीड़न उसकी मृत्यु के ठीक पहले किया गया था, और (अ) पति या उसके नातेदार व्दारा ऐसी कू्ररता या उत्पीड़न दहेज की मांग के संबंध में है या के लिये है, ‘‘तो ऐसी मृत्यु को भारतीय दंड संहिता की धारा 304(ख) के अधीन दहेज मृत्यु कहा जाता है और यह उपधारणा की जायेगी कि पति या उस नातेदार ने दहेज मृत्यु कारित की है। भारतीय दंड संहिता की धारा 498(क) पति या उसके नातेदार व्दारा कू्ररता के अपराध के संबंध में प्रावधान करती है। यदि विवाहिता के साथ पति या उसके नातेदार व्दारा कू्ररतापूर्वक बर्ताव किया जाता है तो वह धारा 498(क) के अधीन दोषसिद्धि के लिये दायी है। धारा 498(क) के अधीन ऐसी कोई अपेक्षा नहीं है कि कू्ररता विवाह होने के सात वर्ष के भीतर ही होनी चाहिये। अभिन्न रूप से धारा 498(क) के अधीन यह भी आवश्यक नहीं है कि कू्ररता दहेज की मांग के संबंध में होनी चाहिये। यह उल्लेख करना यहां हितकर है कि धारा 498(क) ‘‘यथोचित रूप से न केवल दहेज मृत्यु के मामलों पर, बल्कि महिला के प्रति उसकी ससुराल वालों व्दारा कू्ररता के मामलो पर भी प्रभावी ढंग से विचार करने के लिये‘‘ 1983 के अधिनियम 46 के अनुसार पुन: स्थापित की गयी थी‘‘ और धारा 304(ख) दाण्डिक प्रावधानों को ‘‘अधिक कठोर और प्रभावी‘‘ बनाने के लिये 1986 के अधिनियम 43 व्दारा पुन: स्थापित की गयी थी।‘‘
13- जहां तक इस प्रकरण का प्रश्न है तो साक्षी अ.सा.क्र.2 सुषमा साहू ने उसके कथन में बतायी है कि उसे पता चला था कि उसकी बहन की मृत्यु जहर खाने से हुई थी। अ.सा.क्र.3 लेखराम साहू ने उसके कथन में बताया है कि उसे अभियुक्त प्रकाश साहू ने फोन करके बताया था कि सत्यभामा कुछ जहरीली वस्तु खा ली है और घर में बेहोश पड़ी है। वह मृतिका सत्यभामा को देखने चन्दूलाल चन्द्राकर अस्पताल, भिलाई गया था। दिनांक 12.09.2014 को ईलाज के दौरान सत्यभामा की मृत्यु हो गयी। अ.साक्र.12 दिपेश कुमार साहू जो अभियुक्त क्रमांक-1 प्रकाश साहू एवं मृतिका सत्यभामा का पुत्र है, ने बताया है कि भर्ती होने के दूसरे दिन वह उसकी मां को देखने अस्पताल गया था। उसे पता चला था कि उसकी मां ने जहर खा लिया है और बाद में ईलाज के दौरान भर्ती होने के तीसरे दिन उसकी मां की मृत्यु हो गयी थी।
14- चिकित्सकीय साक्ष्य पर नजर डालें तो दिनांक 10 सितम्बर 2014 को हुई घटना के बाद मृतिका को सबसे पहले चन्दूलाल चन्द्राकर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उक्त अस्पताल में डॉ. एम.पी. चन्द्राकर (अ.सा.क्र. 10), डॉ. नीलम चन्द्राकर (अ.सा.क्र.21) एवं डॉ. प्रभात पाण्डेय (अ.साक्र.6) व्दारा इलाज किया गया है किंतु इलाज के दौरान दिनांक 12.09.2014 को मृतिका की मृत्यु हो गयी। इन चिकित्सकीय साक्षियों ने भी इनके कथनों में बताया है कि मृतिका ने जहर सेवन की थी। शासकीय चिकित्सालय, दुर्ग में पदस्थ वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ. एन.सी. राय (अ.सा.क्र.14) व्दारा श्रीमती सत्यभामा साहू पत्नि प्रकाश साहू के शव का शव परीक्षण किया गया है और निम्नानुसार बातें पायी हैं :-
1- शरीर ठंडा था। अकड़न मौजूद नहीं थी। आंख, मुंह बंद था। जीभ अंदर थी, नखों में नीलापन मौजूद था। नाक से झाग व खून आ रहा था। कोई बाह्य चोट नहीं थी और न ही कोई लिगेचर मार्क था। यह एक सामान्य कद काठी की महिला का शरीर था।
2- मस्तिष्क एवं उसकी झिल्यिं कन्जस्टेड थी। छाती के सभी अंग फेफड़े, श्वांसनली कंजस्टेड थे। पेट की आंत की झिल्ली तथा ग्रासनली तथा लीवर, स्पलीन व गुर्दे कंजस्टेड थे।
3- पेट के अंदर हरे रंग का लसलसा पदार्थ मौजूद था जो कि दुर्गन्ध वाला था तथा अंतड़ियों में पचा हुआ खाद्य पदार्थ मौजूद था। सभी जन्नेद्रियां सामान्य थी। चिकित्सक ने अभिमत दिया है कि मृत्यु का कारण आर्गेना फास्फोरस पायजनिंग है जो कि बिसरा परीक्षण के बाद कनफर्म होगा। आगे साक्षी का कहना है कि मृत्यु का सही समय बताना संभव नहीं है क्योंकि बाडी फ्रीजर में थी। इस संबंध में उनके व्दारा दी गयी रिपोर्ट प्रदर्श पी.11 है जिसके अ से अ भाग पर उनके हस्ताक्षर है। इस चिकित्सक साक्षी ने बताया है कि मृतिका का विसरा जिसमें किडनी का एक हिस्सा, दोनों गुदार्ं का एक हिस्सा तथा दोनों फेफड़ों का एक हिस्सा एवं पेट के समस्त कन्टेन्ट, छोती अंतड़ी का एक हिस्सा एवं बड़ी अंतड़ी का एक हिस्सा एवं उसके कन्टेन्ट प्रिसर्व किये गये थे तथा उन्हें राज्य न्यायालयिक विज्ञान प्रयागशाला, रायपुर परीक्षण हेतु भेजा गया था। इस संबंध में विधि विज्ञान प्रयोगशाला से प्राप्त परीक्षण रिपोर्ट प्रदर्श पी.18 अनुसार प्रदर्श ए एवं बी अर्थात् मृतिका का विसरा जिसमें किडनी का एक हिस्सा, दानों गुर्दों को एक हिस्सा तथा दोनां फेफडों का एक हिस्सा एवं पेट के समस्त कन्टेन्ट, छोती अंतड़ी का एक हिस्सा एवं बड़ी अंतडी का एक हिस्सा एवं उसके कन्टेन्ट प्रिसर्व किये गये थे, में आर्गेनोफास्फोरस कीटनाशक डाईक्लोरवास होना पाया गया है।
15- इस तरह स्पष्ट है कि मृतिका श्रीमती सत्यभामा साहू की मृत्यु स्वाभाविक मृत्यु न होकर सामान्य परिस्थितियों से अन्यथा जहर सेवन से हुई है। प्रकरण में इस आशय की स्पष्ट साक्ष्य उपलब्ध नहीं है कि अभियुक्तगण ने मृतिका को जहर पिलाया हो जिसके कारण ही उसकी मृत्यु हुई। हालांकि मृतिका सत्यभामा के भाई अ.सा.क्र.1 पालकराम साहू, बहन अ.सा.क्र.2 सुषमा साहू, पिता अ.सा.क्र.7 छबिलाल साहू एवं माता अ.सा.क्र.9 झुनिया बाई ने कहे हैं कि अभियुक्तगण ने मृतिका को जहर पिलाया होगा। इस संबंध में अभियुक्त क्रमांक-1 प्रकाश साहू एवं मृतिका सत्यभामा के पुत्र अ.सा.क्र.12 दिपेश कुमार साहू जो इस प्रकरण का महत्वपूर्ण साक्षी है तथा जिसे अभियोजन पक्ष ने पक्षविरोधी साक्षी घोषित किया है, ने इस संबंध में कोई कथन नहीं किया है तथा न तो इस आशय का अभियोग पत्र पेश किया गया है इसलिये उपरोक्त विवेचन से यह तो प्रमाणित है कि मृतिका ने उसकी मृत्यु के पूर्व जहर सेवन किया था किंतु अभियोजन पक्ष ने यह प्रमाणित नहीं किया है कि मृतिका को जहर अभियुक्तगण व्दारा ही दिया गया था।
16- अभियुक्त क्रमांक-1 प्रकाश साहू एवं अभियुक्त क्रमांक-2 पूर्णानन्द साहू, मृतिका के क्रमशः पति एवं देवर है यह अविवादित है। संहिता की धारा 498(क) के तहत् अभियोजन को निम्नलिखित तथ्य अभियुक्त को दोषी करार देने के लिये साबित करना होता है :- (1) औरत शादीशुदा हो, (2) उसके साथ कू्ररता या उत्पीड़न किया गया हो, (3) ऐसी कू्ररता या उत्पीड़न उसके पति के व्दारा या पति के नातेदारों व्दारा की गयी हो।
17- इस प्रकरण में अभियुक्त क्रमांक-1 प्रकाश साहू और अभियुक्त क्रमांक-2 पूर्णानन्द साहू क्रमशः मृतिका के पति और देवर है अतः उनके विरूद्ध यदि उपरोक्त तथ्यों को जो भारतीय दंड संहिता की धारा 304(ख) के 5 तत्व है जो पूर्व में पैरा-12 में तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 498(क) के 3 तत्व है जो पूर्व में पैरा-16 में बताये गये हैं, को यदि अभियोजन व्दारा साबित कर दिया जाता है तो अभियुक्तगण को भारतीय दंड संहिता की धारा 304(ख) एवं धारा 498(क) के तहत् दोषी करार दिया जा सकता है।
18- चूंकि प्रकरण में उपलब्ध साक्ष्य से यह स्पष्ट है कि मृतिका जो अभियुक्त क्रमांक-1 प्रकाश साहू की पत्नि है, की मृत्यु और उनकी शादी होने का अंतराल सात वर्ष से अधिक है ऐसी स्थिति में माननीय उच्चतम न्यायालय व्दारा न्यायदृष्टांत गुरदीप सिंह वि. पंजाब राज्य (उपरोक्त) में की गयी टिप्पणी के प्रकाश में अभियुक्तगण को भारतीय दंड संहिता की धारा 304(ख) के अंर्तगत दोषसिद्ध नहीं ठहराया जा सकता।
19- जहां तक भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 113(ख) में दहेज प्रतिषेध (संशाधन) अधिनियम, 1986 (अधिनियम 43) व्दारा (19.11.1986 से प्रभावी) पुन: स्थापित कर भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113(ख) जोड़ा गया है जिसका यहां उल्लेख किया जाना आवश्यक प्रतीत होता है :- धारा 113-(ख) :- जब प्रश्न यह है कि किसी व्यक्ति ने किसी स्त्री की दहेज मृत्युकारित की है और यह दर्शित किया जाता है कि मृत्यु के कुछ पूर्व ऐसे व्यक्ति ने दहेज की किसी मांग के लिए या उसके संबंध में उस स्त्री के साथ कू्ररता की थी या उसको तंग किया था, तो न्यायालय यह उपधारणा करेगा कि ऐसे व्यक्ति ने दहेज मृत्युकारित की थी। धारा 113-(ख) के तहत् कब उपधारणा की जायेगी इस संबंध में माननीय उच्चतम न्यायालय व्दारा न्यायदृष्टांत <b>गुरदीप सिंह वि. पंजाब राज्य (उपरोक्त)</b> के पैरा-9 का यहां उल्लेख किया जाना आवश्यक प्रतीत होता है :- धारा 304(ख) के अधीन अभियुक्त के दोषी आचरण पर आज्ञापक उपधारणा होने के कारण, अभियोजन को पहले अपराध के सभी आवश्यक तथ्यों की उपलब्धता को दर्शित करना है, जिससे की साक्ष्य अधिनियम की धारा 113-(ख) के निबन्धनों में सबूत के भार को अंतरित किया जा सके। यदि एक बार सभी आवश्यक तत्व विद्यमान हैं, तो निर्दोषिता की उपधारणा समाप्त हो जाती है। फिर भी भारतीय विधि आयोग की 91 वीं रिपोर्ट में पैरा 1.8 का अन्य प्रसंग इस संदर्भ में लाभदायक होगा : ‘‘1.8. जिन्होंने अपराध और उसके प्रभाव का अध्ययन किया है, वे यह जानते हैं कि यदि एक बार गंभीर अपराध कारित किया जाता है, तो उसका पता लगाना कठोर मामला होता है और फिर भी अपेक्षाकृत अधिक कठिनाई तो अपराधी का सफल अभियोजन होता है। जो अपराध दहेज मृत्यु को अग्रसर करते हैं, वे बहुधा निरपवाद ढंग से आवासीय गृह के सुरक्षित परिसरों के भीतर कारित किये जाते हैं। अपराधी परिवार का सदस्य होता है, परिवार के अन्य सदस्य (यदि उसी समान घर में निवास कर रहे हैं) या तो अपराध में दोषी सहयोगी होते हैं या तटस्थ, किंतु वे उसके षडयंत्रकारी किंतु उसमें षडयंत्र करने वाले साक्षीगण होते हैं। किसी मामले में तो परिवार का बंधन इतना सुदृढ़ होता है कि सत्य सम्मुख नहीं आ सकेगा। पारिवारिक सदस्यों के सिवाय उसका कोई अन्य प्रत्यक्षदर्शी साक्षी नहीं होगा।‘‘
20- अतः उपरोक्त परिस्थितियों के मद्देनजर चूंकि मृतिका जो अभियुक्त क्रमांक-1 प्रकाश साहू की पत्नि है, की मृत्यु और उनकी शादी होने का अंतराल सात वर्ष से अधिक हो चुका है क्योंकि उनकी शादी वर्ष 2001 में हुई थी तथा मृतिका की मृत्यु वर्ष 2014 में हुई है अर्थात् शादी के लगभग 14 वर्ष पश्चात् मृत्यु हुई है। यह साबित करने का भार अभियोजन पक्ष पर है कि मृतिका की मृत्यु और शादी के सात वर्ष के भीतर घटना हुई हो। उक्त तथ्य को अभियोजन पक्ष ने साबित नहीं किया है इसलिये इस प्रकरण में धारा 113-(ख) के तहत् कोई उपधारणा नहीं की जा सकती तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 304(ख) के अपराध हेतु विवाह एवं मृत्यु के बीच 7 वर्ष की अवधि होनी चाहिये जिसे अभियोजन ने प्रमाणित नहीं किया है। अब धारा 306, 107 भारतीय दंड संहिता 1860 व धारा 113-ए भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1860 का अवलोकन करें :- धारा 306 : यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करें, तो जो कोई ऐसी आत्महत्या का दुष्प्ररेण करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा। धारा 107- वह व्यक्ति किसी बात के लिए किए जाने का दुष्प्रेरण करता है जो - पहला- उस बात को करने के लिये किसी व्यक्ति को उकसाता है अथवा दूसरा- उस बात को करने के लिये किसी षडयंत्र में एक या अधिक अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के साथ सम्मिलित होता है, यदि उस षडयंत्र के अनुसरण में, और उस बात को करने के उद्देश्य से, कोई कार्य या अवैध लोप घटित हो जाए, अथवा तीसरा- उस बात के लिये किए जाने में किसी कार्य या अवैध लोप द्वारा साशय सहायता करता है। स्पष्टीकरण 1- जो कोई व्यक्ति जानबूझकर दुर्व्यपदेशन द्वारा, या तात्विक तथ्य, जिसे प्रकट करने के लिये वह आबद्ध है, जानबूझकर छिपाने द्वारा, स्वेच्छया किसी बात का किया जाना कारित या उपाप्त करता है अथवा कारित या उपाप्त करने का प्रयत्न करता है, वह उस बात का किया जाना उकसाता है, यह कहा जाता है। स्पष्टीकरण 2- जो कोई या तो किसी कार्य के किए जाने से पूर्व या किए जाने के समय उस कार्य के किए जाने को सुकर बनाने के लिये बात करता है और तद्द्वारा उसके किए जाने को सुकर बनाता है, वह उस कार्य के करने में सहायता करता है, यह कहा जाता है। धारा 113-ए- जब प्रश्न यह है कि किसी स्त्री द्वारा आत्महत्या का करना उसके पति या उसके पति के किसी नातेदार द्वारा दुष्प्रेरित किया गया है और यह दर्शित किया गया है कि उसने अपने विवाह की तारीख से सात वर्ष की अवधि के भीतर आत्महत्या की थी और यह कि उसके पति या उसके पति के ऐसे नातेदार ने उसके प्रति कू्ररता की थी, तो न्यायालय मामले की सभी अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह उपधारणा कर सकेगा कि ऐसी आत्महत्या उसके पति या उसके पति के ऐसे नातेदार द्वारा दुष्प्रेरित की गई थी।
21- पूर्व में किये गये विवेचन से स्पष्ट है कि मृतिका एवं अभियुक्त क्रमांक-1 प्रकाश साहू की शादी के सात वर्ष व्यतीत होने के पश्चात् घटना हुई है। धारा 306 भारतीय दंड संहिता के आरोप को सिद्ध करने के लिये यह प्रमाणित किया जाना आवश्यक है कि अभियुक्तगण व्दारा मृतिका के साथ इस सीमा तक कू्ररता एवं प्रताड़ना की गयी कि उसके पास जान देने के अलावा अन्य कोई रास्ता नहीं था और ऐसी कू्ररता एवं मृत्यु के बीच अधिक अंतराल नहीं होना चाहिये। न्यायदृष्टान्त <b>रविन्द्र प्यारेलाल बिदलान एवं अन्य वि. महाराष्ट्र राज्य 1993 क्रि.ला.ज.3019</b> में भी यह दिशानिर्देश मौजूद है कि कू्ररता और आत्महत्या के बीच एक युक्तियुक्त संबंध का स्थापित होना आवश्यक है सिर्फ कू्ररता या आत्महत्या का सिद्ध किया जाना पर्याप्त नहीं है।
22- अभियुक्तगण व्दारा मृतिका सत्यभामा के साथ कू्ररता या उसे उत्पीड़ित किये जाने के संबंध में प्रकरण में उपलब्ध साक्ष्य पर नजर डालें तो मृतिका के भाई अ.सा.क्र.1 पालकराम साहू ने उसके कथन में बताया है कि उसकी बहन की शादी अभियुक्त क्रमांक-1 प्रकाश साहू के साथ हुई थी। शादी के बाद उसकी बहन रामनगर, सुपेला में पति और बच्चों के साथ रहती थी। उसे अभियुक्त प्रकाश साहू ने बताया था कि उसकी बहन सीढ़ी से गिर गयी है इसलिये आई.सी.यू. में भर्ती है। आगे साक्षी का कहना है कि उसने उसकी बहन को देखा था जिससे शरीर के कई हिस्सों में एवं सिर में चोट थी। चोट को देखने से ऐसा लगता था कि उसकी बहन के साथ मारपीट की गयी होगी। उसकी बहन उसे बतायी थी कि अभियुक्त प्रकाश साहू हमेशा पैसे की मांग करता था। मृतिका मृत्यु के पहले उसके छोटे बेटे के साथ उसकी दुकान आयी थी तथा बतायी थी कि प्रकाश साहू ने उसके साथ मारपीट किया है क्योंकि उसके माता-पिता ने प्रकाश साहू को कार खरीदने के लिये पैसे नहीं दिये थे।
23- मृतिका की बहन अ.सा.क्र.2 सुषमा साहू ने उसके कथन में बताया है कि सत्यभामा उसकी बहन थी जिसकी शादी अभियुक्त प्रकाश के साथ हुई थी। अभियुक्त प्रकाश साहू उसकी बहन को मायके में लाकर छोड़ दिया था कि वह डिलिवरी नहीं करा सकता तब उसके माता-पिता ने डिलिवरी करवाया था। उसकी बहन जब उससे मिलती थी तो बताती थी कि अभियुक्त उसकी बहन के साथ शराब पीकर मारपीट करता है। उसके जीजा अर्थात् अभियुक्त प्रकाश साहू कुछ भी डिमाण्ड करते थे। उसकी शादी में बाईक दिये तो उन्होंने भी बाईक की मांग किये। उसकी बहन का मंगलसूत्र गुम गया था तब अभियुक्त प्रकाश साहू ने कहा था नया मंगलसूत्र खरीदकर लाओ तभी घर आना जिस पर उसके माता-पिता ने उसकी बहन को नया मंगलसूत्र खरीदकर दिये थे। अभियुक्त प्रकाश साहू ने कार खरीदा था तब उसके पिता अर्थात् अभियुक्त प्रकाश साहू के ससुर को जमानत दो नहीं तो दो लाख रूपये दो बोला था जिस पर उसके पिता ने जमानत नहीं लिये और दो लाख रूपये भी नहीं दिये थे। अभियुक्त शादी के बाद से ही अवैध रूप से कभी मोटरसाईकिल कभी पैसा, जेवर की मांग करता था।
24- अभियुक्त प्रकाश साहू के साढू/मृतिका सत्यभामा के जीजा अ.सा.क्र.3 लेखराम साहू ने उसके कथन में बताया है कि उसे उसकी पत्नि सुषमा के माध्यम से पता चला था कि सत्यभामा को उसका पति अर्थात् अभियुक्त प्रकाश साहू अक्सर पैसे की मांग को लेकर तंग करता है और मां-बाप को भी पैसे की मांग को लेकर तंग करता है। उसकी पत्नि ने उसे यह भी बताया था कि अभियुक्त प्रकाश साहू शराब पीकर सत्यभामा के साथ मारपीट करता था।
25- मृतिका के पिता अ.सा.क्र.7 छबिलाल साहू ने उसके कथन में बताया है कि विवाह के बाद अभियुक्त प्रकाश साहू से उसकी पुत्री सत्यभामा साहू के कुछ ही समय संबंध ठीक थे। उसकी लड़की और दामाद के बीच अक्सर वाद विवाद होता था, वाद विवाद पैसे के संबंध में होता था। उसका दामाद उसकी लड़की से कहलवाकर उससे पैसों की मांग करता था। वह लड़की के माध्यम से अभियुक्त प्रकाश साहू को पैसे दिया करता था। उसे आखिरी बार अभियुक्त व्दारा मकान बनवाने के समय पचास हजार रूपये उसकी लड़की की मृत्यु के एक-डेढ साल पहले दिया था। वह दो हजार-चार हजार रूपये अक्सर दिया करता था। वह पैसे इसलिये दिया करता था जिससे दोनों के बीच लड़ाई झगड़ा न हो। उसकी लड़की बताती थी कि उसका दामाद उसकी लड़की को प्रताड़ित करता है। उसका दामाद कार खरीदने के लिये उससे दो लाख रूपये मांगा था तथा वाहन खरीदने के लिये जमानतदार बनने हेतु दबाव डाला था। उसकी पुत्री की संदेहास्पद परिस्थिति में मृत्यु अभियुक्त प्रकाश साहू के प्रताड़ना के कारण हुई थी। मृतिका की माता अ.सा.क्र.9 ने भी उसके कथन में अभियुक्त व्दारा प्रताड़ित किये जाने की बात बतायी हे।
26- साक्षी दिपेश कुमार साहू अ.सा.क्र.12 जो अभियुक्त क्रमांक-1 प्रकाश साहू एवं मृतिका सत्यभामा का पुत्र है तथा प्रकरण का महत्वपूर्ण साक्षी ने है, ने उसके कथन में बताया है कि घटना दिनांक को सुबह करीब 09.30 बजे काम वाली आई। उसके पिता अर्थात् अभियुक्त क्रमांक-1 प्रकाश साहू करीब 10 बजे डिस्पेंसरी चला गया था। वह कपड़ा प्रेस कर रहा था फिर वह उसकी मम्मी अर्थात् मृतिका सत्यभामा के बेडरूम में गया जहां उसकी मम्मी फोन से हैदराबाद जाने की बात बसंत से कर रही थी। उसकी मम्मी उसे रूम से भगा दी उसके बाद वह उसके छोटे भाई के साथ स्कूल जाने के लिये निकला। बॉटल भूलने के कारण घर वापस आया तो उसकी मम्मी बरामदे में खड़ी होकर किसी से मोबाईल में बात कर रही थी और गुस्से में थी, फिर वह स्कूल चला गया। वह शाम को 5 बजे घर वापस आया तो घर में ताला लगा था तो पड़ोसी के घर से मम्मी को फोन लगाया तो उसके चाचा अर्थात् अभियुक्त पूर्णानन्द ने फोन उठाया तथा उसे उसकी मम्मी के अस्पताल में भर्ती होने की बात बताया। अस्पताल में भर्ती होने के तीन दिन बाद उसकी मम्मी की मृत्यु हुई। इस साक्षी को अभियोजन पक्ष व्दारा पक्ष विरोधी साक्षी घोषित किया गया है। अभियोजन व्दारा किये गये कूटपरीक्षण में कंडिका-6 में इसने स्वीकार किया है कि उसकी मम्मी दूसरे आदमी से बात करती थी तथा बात करते वक्त बसंत का नाम लेती थी। वह बसंत को जानता है जो इनोवा का चालक है।
27- साक्षी दिपेश कुमार साहू अ.सा.क्र.12 ने प्रतिपरीक्षण की कंडिका-13 में बताया है कि वह बसंत की गाड़ी से उसके मौसी, मौसा, मम्मी, पापा एवं भाइ के साथ भोरमदेव गया था। कंडिका-15 में इस साक्षी का कहना है कि उसकी मम्मी ने बसंत से बातचीत शुरू कर दी थी। उसके पापा जब डिस्पेंसरी चले जाते थे तब बसंत उनके घर आता था। कंडिका-16 में बताया है कि उसकी मम्मी और बसंत को बिस्तर में बैठकर बात करते हुये उसने कई बार देखा था। उसकी मां छत से बसंत के घर के पीछे खड़ी होकर बात करती थी। कंडिका-19 में इस साक्षी का कहना है कि उसके नाना-नानी, उसके मम्मी को पापा व्दारा मारने वाली बात झूठ बता रहे हैं। आगे साक्षी ने स्वतः बताया है कि दिनांक 12.07.2014 को जब वह उसकी मम्मी के मोबाईल को देख रहा था तब उसकी मम्मी और मौसी बात की रिकार्डिंग उसे मिली थी उसमें उसकी मौसी के पूछने पर उसकी मम्मी बतायी थी उसका रिश्ता बसंत से सब कुछ हो चुका है। उसकी मम्मी बोली थी वह बसंत के बिना नहीं रह सकती, यदि वह जिन्दा रहती है तो सौ तरीके के सवाल उठेंगे। उसी मम्मी यह भी बोली थी कि वह बसंत के चक्कर में खाना भी नहीं खाती। बसंत कॉल का जवाब भी नहीं देता। उसकी मम्मी उसकी मौसी से यह भी बोली थी कि बसंत उसे रखने से इंकार कर रहा है और कह रहा है कि उसका भी परिवार है। आगे साक्षी ने स्वतः बताया है कि उसकी मम्मी ने गोली खा ली बसंत के चक्कर में।
28- विवेचक ने बसंत वर्मा का कथन लेना व्यक्त किया है जो प्रदर्श डी.5 है। उक्त कथन में बसंत वर्मा ने उसका मृतिका से संबंध रहना बताया है। बचाव साक्षी क्रमांक-2 रिंकी सोना जो घटना के समय अभियुक्त के घर काम करती थी, का कथन अभियुक्तगण की ओर से न्यायालय में कराया गया है जिसने बताया है कि वह घटना दिनांक को सुबह 9 बजे काम में आई थी तब अभियुक्त प्रकाश साहू, सत्यभामा और दो बच्चे पलंग पर बैठकर चाय पी रहे थे। उसके बाद मृतिका नास्ता बनाने गयी और उसे सफाई करने कही तथा अभियुक्त प्रकाश नहाने गया और उसके बाद लगभग 10 बजे क्लीनिक चला गया। वह काम कर रही थी तब मृतिका पीछे बालकनी में मोबाईल से बात कर रही थी। उसके बाद अभियुक्त पूर्णानंद आया और आवाज लगाया रिंकी जल्दी आ, भाभी बेहोश हो गयी। उसने देखी थी मृतिका के मुंह से झाग निकल रही थी। उसके अभियुक्त प्रकाश साहू को फोन करके बुलवाया गया तथा मृतिका को हास्पीटल ले गये।
29- बचाव साक्षी के रूप में अभियुक्त प्रकाश साहू ने स्वयं का बचाव साक्षी क्रमांक-3 के रूप में न्यायालय में परीक्षण कराया है। इसने बताया है कि उसका विवाह 05 मई 2001 को हुआ था। उसके दो बच्चे है। उसके बड़े बच्चे का नाम दीपेश कुमार एवं छोटे बेटे का नाम देव कुमार साहू है। उसके दोनो बच्चे इन्दू आईटी स्कूल मे पढ़ते है। 9 फरवरी 2014 को उसका परिवार एवं उसके साढू भाई का परिवार बसन्त वर्मा की इनोवा गाड़ी किराये मे लेकर भोरमदेव घूमने गये थे। वहॉ से घूमकर आने के बाद सब ठीक था। एक महीना बाद उसकी पत्नी और उसके माता-पिता बसन्त बर्मा की इनोवा गाड़ी से बिलासपुर गये थे। घटना दिनॉक को वह क्लीनिक गया हुआ था उसका छोटा भाई वापस घर आया तो देखा कि मृतिका उसकी पत्नी सत्यभामा जहर खा ली है, तब उसका छोटा भाई पूर्णानन्द ने उसे फान करके जानकारी दी थी। घटना की जानकारी पाकर वह घर आया तो देखा कि उसकी पत्नी सत्यभामा के मुह से झॉग निकल रहा था तथा वह बेहाश थी। वह इसकी जानकारी उसके ससुराल वाले ससुर एवं अन्य को दी। फिर पत्नी को चन्दूलाल चन्द्राकर अस्पताल लेकर गया था। वहॉ उसका ईलाज हुआ था जहॉ ईलाज के दौरान उसकी मृत्यु हा गई थी। कांउसिलिंग मे जितने दिन उसकी पत्नी अस्पताल मे भर्ती थी उतने दिन बताया गया था कि उसकी पत्नी के शरीर मे जहर फैल गया है। साक्षी का कहना है कि उक्त जानकारी दिये जाने पर उसके सास-ससुर भी लगातार तीन दिन गये थे और उन्हे भी उक्त जानकारी दी गई थी। अंतिम संस्कार जिस दिन हुआ उसी रात में उसका लड़का दीपेश कुमार उसकी पत्नी का मोबाईल मॉगा और खेलते-खेलते उसमें उसकी पत्नी और मैरी, जा उसकी पत्नी की सहेली है की बातचीत की रिर्काडि़ग सुना, रिर्काडिंग की जानकारी उसे भी दिया। रिर्काडिंग मे मुख्य बात यह थी कि मैरी ने उसकी पत्नी से पूछा कि उसकी पत्नी और बसन्त वर्मा के बीच क्या रिश्ता है तब उसकी पत्नी ने मैरी को बताई थी कि सब कुछ हो चुका है और मेरी उसकी मैरी को यह भी बाली की वह बसन्त वर्मा के बिना नही रह सकती। मैरी पूछी कि बसन्त वर्मा क्या कहता है तब उसकी पत्नी बोली कि बसन्त वर्मा उसकी पत्नी (सत्यभामा) का रखने के लिये तैयार नही है इसी बात का लेकर मैरी ने उसकी पत्नी से कहा कि इसी बात को लेकर टेंशन ले रहे हो क्या। उसकी पत्नी ने मैरी से कहा कि बसन्त वर्मा अपने साथ उसे नही रखना चाहता है तो उसके पास झक मारने आता है क्या। उसकी पत्नी मैरी से बोली कि वह जीयेगी तो उसके उपर लोग गई तरह के सवाल करेंगे और उसके घर वाले परेशान हागे। उसकी पत्नी मैरी से यह भी बोली कि बसन्त वर्मा उसका फोन नही उठाता और पता चलता है कि वह दोस्तो के साथ बार मे बैठा है।
30- आगे साक्षी का कहना है कि उसकी पत्नी और पत्नी की सहेली मैरी के बीच जो बातचीत हुई है उसके संबंध मे उसने सी.डी. पेश किया है वह वस्तु ’’अ’’ है तथा सीडी का रूपान्तरण जो उसके अधिवक्ता द्वारा किया गया है वह भी पेश किया है जा वस्तु ’’ब’’ है। सीडी में जो आवाज है वह उसकी पत्नी और पत्नि की सहेली मैरी की आवाज है। उसने पत्नी को लगभग 8 तोला सोना खरीदकर दिया था इस संबंध मे रसीद प्रदर्श डी-06 से लगातार प्रदर्श डी-14 है। उसका और उसकी पत्नि के बीच अच्छे संबंध थे उसने सुन्दर नगर भिलाई और नेवेई मे प्लाट लिया था। बसन्त वर्मा की शिकायत, रिकार्डिग मिलने के बाद आई.जी., कलेक्टर एवं एसपी के पास किया था। शिकायत के संबंध मे उसका और बसन्त वर्मा का बयान भी लिये थे। बसन्त वर्मा ने उसके सामने ही बयान दिया था और बोला था कि बसन्त वर्मा और उसकी पत्नी के बीच प्रतिदिन फोन मे बात हाती थी। बसन्त वर्मा ने बयान मे बोला था कि उसकी पत्नि बसन्त वर्मा से कहती थी कि बसन्त वर्मा उसकी पत्नी को पत्नी बनाकर रखे। बसन्त वर्मा ने बोला था कि वह सत्यभामा को पत्नी बनाकर नही रख सकता क्योकि उन दोना के दो-दो बच्चे है और उसकी इतनी आय नही है कि वह दो पत्नी का खर्चा चला सके। बसन्त वर्मा ने बयान मे यह भी बताया था कि मैरी ने बसन्त वर्मा को बताया था कि सत्यभामा नीद की 10 गोली खा ली है आप कुछ करिये। बसन्त वर्मा के बयान की कॉपी प्रदर्श डी-05 जा सूचना के अधिकार के तहत लिया गया है वह पेश किया है।
31- आगे साक्षी का कहना है कि ससुराल वाले एवं उसके बीच काई विवाद नही था। उसकी पत्नी भी हर सप्ताह अपने मायके जाती थी और वह भी कभी-कभी अपने ससुराल जाता है। वह बसन्त को पूर्व से नही जानता था उसके साथ भोरमदेव गया था और सत्यभामा की मृत्यु के बाद रिकार्डिग सुना था तब से जानता था। उसका बड़ा लड़का दीपेश कुमार साहू ने बताया था कि बसन्त कुमार वर्मा उसकी अनुपस्थिति मे उसके घर आया जाया करता था। उसकी पत्नी जब भी सेक्टर-06 जाती थी बसन्त वर्मा उसे घुमाने ले जाता था यह बात उसके बड़े लड़के दीपेश ने बताई थी।
32- दंड विधि का यह सुस्थापित सिद्धांत है कि अभियोजन को उसका मामला हर सन्देह से परे प्रमाणित करना हाता है और अभियुक्त की यह कोशिश होती है कि वह उक्त प्रकरण में उसकी दोषिता नहीं होने के संबंध में सन्देह करें।
33- इस प्रकरण में साक्षियों ने अभियुक्तगण व्दारा मृतिका के साथ किस-किस तारीख में प्रताड़ना की गयी है और कब-कब पैसों की मांग की गयी है, के संबंध में कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं दिया है। मृतिका के भाई पालकराम साहू (अ.सा.क्र.1) ने प्रतिपरीक्षण की कंडिका-71 में यह स्पष्ट रूप से कहा है कि अभियुक्त उसका जीजा किन-किन तिथियों में उसकी बहन सत्यभामा के साथ मारपीट किया, अन्य तरीके से तंग किया, दहेज की मांग किया, उसकी निश्चित तिथि, वार, महिना, वर्ष नहीं बता सकता। प्रतिपरीक्षण की कंडिका-72 में कहता है कि शादी और उसकी बहन की मृत्यु के बीच के अंतराल में अभियुक्त व्दारा प्रताड़ित किये जाने के संबंध में काई शिकायत नहीं किये।
34- मृतिका की बहन सुषमा साहू (अ.सा.क्र.2) ने पैरा-41 में यह स्पष्ट रूप से कहा है कि उसके जीजा प्रकाश साहू ने स्वयं के पैसे से कार खरीदा था। उसकी बहन के कहने पर उसके जीजा प्रकाश साहू ने प्लाट खरीदा, मकान बनवाया है। अभियुक्त प्रकाश साहू के साढू लेखराम साहू (अ.सा.क्र.3) का मुख्य रूप से कहना है कि उसे सारी जानकारी उसकी पत्नि सुषमा साहू (अ.सा.क्र.2) से प्राप्त होती थी। उसका मृतिका के घर आना-जाना था। इस साक्षी ने प्रतिपरीक्षण की कंडिका-41 में यह स्वीकार किया है कि वह दिन, तारीख और सन नहीं बता सकता जब उसकी पत्नि ने उसे बताया हो कि प्रकाश साहू ने सत्यभामा को मारपीट किया हो या कोई मांग की हो। मृतिका के पिता छबिलाल साहू (अ.सा.क्र.7) ने प्रतिपरीक्षण की कंडिका-47 में बताया है कि ईलाज का पूरा पैसा चन्दूलाल चन्द्राकर अस्पताल में प्रकाश साहू ने दिया है। उपरोक्त साक्ष्य के आधार पर अभियुक्त प्रकाश साहू व्दारा मृतिका सत्यभामा को पैसों की मांग का लेकर प्रताड़ित किया गया हो यह साबित नहीं होता साथ ही अभिलेख में इस आशय की भी साक्ष्य नहीं है कि मृतिका ने अभियुक्त प्रकाश साहू की प्रताड़ना के कारण ही आत्महत्या की हो। साक्षी झुनिया बाई (अ.सा.क्र.9) जा मृतिका की मॉं है ने उसके कथन के पैरा-3 में बताया है कि उसकी लड़की घटना के 15-20 दिन पहले मायके आयी थी तब उसने लड़की को बोली रात का रूक जाओ तो उसकी लड़की बाली नहीं रूक सकती क्योंकि उसके पति और देवर प्रताड़ित करते हैं।
35- साक्षी छबिलाल साहू (अ.सा.क्र.7) जो मृतिका का पिता है ने उसके परीक्षण के कंडिका-10 में बताया है कि घटना के एक दिन पहले उसकी छोटी पुत्रवधू सीता का उसकी लड़की ने बतायी थी कि उसका पति अर्थात् अभियुक्त प्रकाश साहू उसे शारीरिक रूप से प्रताड़ित कर रहा है और उसे जान का खतरा है तब उसने कहा था कि अगले दिन आकर वह उसको समझायेगी। किंतु उक्त तथ्य से संबंधित महत्वपूर्ण साक्षी सीता का अभियोजन व्दारा परीक्षण नहीं कराया गया है इसलिये भी ऐसा नहीं कहा जा सकता कि प्रताड़ना और आत्महत्या के बीच सीधा संबंध है या दूसरे शब्दों में ऐसा कहा जा सकता है कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में असफल रहा है कि प्रताड़ना के कारण ही मृतिका सत्यभामा साहू व्दारा आत्महत्या किया गया। इस संबंध में अभियुक्तगण के अधिवक्ता व्दारा प्रस्तुत न्यायदृष्टांत गोरेलाल वि. छ.ग. राज्य आपराधिक अपील क्रमांक-767/2008, छ.ग. उच्च न्यायालय, पवन कुमार एवं अन्य वि. हरियाणा राज्य 1998(1) सुप्रीम 505, आपराधिक अपील क्रमांक-604, वर्ष 1991, निर्णय तिथि 09.02.1998 अवलोकनीय है। अभियोजन की ओर से प्रस्तुत न्यायदृष्टांत धनीराम वि. म.प्र. राज्य, आपराधिक अपील क्रमांक-241/1999, निर्णय तिथि 11.09.2012 सु.को. के तथ्य वर्तमान प्रकरण के तथ्यों से भिन्न होने से उसका लाभ अभियोजन को नहीं दिया जा सकता क्योंकि अभियुक्तगण के विरूद्ध उन्हें भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 306 एवं 304(ख) के तहत् दोषिसिद्ध करार दिये जाने हेतु अभिलेख में साक्ष्य उपलब्ध नहीं है।
36- अब भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498(क) के अपराध के संबंध में विचार करें तो सर्वप्रथम माननीय उच्चतम न्यायालय के न्यायदृष्टान्त गुरदीप सिंह वि. पंजाब राज्य 2013(भाग-4) सी.सी.एस.सी. 1712 (एस.सी.), दांडिक अपील क्रमांक-1308 वर्ष 2013, निर्णय तिथि 03.09.2013 का उल्लेख किया जाना उचित प्रतीत होता है जिसमें माननीय उच्चतम न्यायालय व्दारा यह टिप्पणी की है कि संहिता की धारा 304(ख) एवं धारा 498(क) हेतु क्रूरता के प्रकरणों में संहिता की धारा 304(ख) को साबित करने हेतु अभियोजन को कौन-कौन से तथ्य प्रमाणित करना आवश्यक है एवं संहिता की धारा 498(क) में क्रूरता का क्या अर्थ है। यहां पर उक्त न्यायदृष्टांत के पैरा-5 पेज-1715 का उल्लेख किया जाना सुसंगत प्रतीत होता है जो इस प्रकार है :- भारतीय दंड संहिता में ‘‘दहेज मृत्यु‘‘ को धारा 304(ख) के अधीन 1986 के अधिनियम 43 के अनुसार पुरः स्थापित किया गया था। उक्त प्रावधान के अधीन, यदि विवाहिता की मृत्यु, (।) दाह या शारीरिक उपहति के कारण होती है या मृत्यु सामान्य परिस्थितियों के अधीन के अन्यथा होती है, (।।) ऐसी मृत्यु विवाह के सात वर्ष के भीतर होती है, (।।।) यह दर्शित किया जाता है कि उसे उसके पति या किसी नातेदार व्दारा कू्ररता या उत्पीड़न क्रे अधीन रखा गया था, (।अ) ऐसी कू्ररता या उत्पीड़न उसकी मृत्यु के ठीक पहले किया गया था, और (अ) पति या उसके नातेदार व्दारा ऐसी कू्ररता या उत्पीड़न दहेज की मांग के संबंध में है या के लिये है, ‘‘तो ऐसी मृत्यु को भारतीय दंड संहिता की धारा 304(ख) के अधीन दहेज मृत्यु कहा जाता है और यह उपधारणा की जायेगी कि पति या उस नातेदार ने दहेज मृत्यु कारित की है। भारतीय दंड संहिता की धारा 498(क) पति या उसके नातेदार व्दारा कू्ररता के अपराध के संबंध में प्रावधान करती है। यदि विवाहिता के साथ पति या उसके नातेदार व्दारा कू्ररतापूर्वक बर्ताव किया जाता है तो वह धारा 498(क) के अधीन दोषसिद्धि के लिये दायी है। धारा 498(क) के अधीन ऐसी कोई अपेक्षा नहीं है कि कू्ररता विवाह होने के सात वर्ष के भीतर ही होनी चाहिये। अभिन्न रूप से धारा 498(क) के अधीन यह भी आवश्यक नहीं है कि कू्ररता दहेज की मांग के संबंध में होनी चाहिये। यह उल्लेख करना यहां हितकर है कि धारा 498(क) ‘‘यथोचित रूप से न केवल दहेज मृत्यु के मामलों पर, बल्कि महिला के प्रति उसकी ससुराल वालों व्दारा कू्ररता के मामलों पर भी प्रभावी ढंग से विचार करने के लिये‘‘ 1983 के अधिनियम 46 के अनुसार पुरः स्थापित की गयी थी‘‘ और धारा 304(ख) दाण्डिक प्रावधानां को ‘‘अधिक कठोर और प्रभावी‘‘ बनाने के लिये 1986 के अधिनियम 43 व्दारा पुरः स्थापित की गयी थी।‘‘
37- उपरोक्त न्यायदृष्टांत के प्रकाश में तथा भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498(क) के तहत् कू्ररता को दो भागों में बांटा गया है (1) शारीरिक एवं मानसिक (2) दहेज की मांग कर। इस प्रकरण में दहेज की मांग के संबंध में प्रकरण में कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है किंतु पूरे प्रकरण के सूक्ष्म अध्ययन से पता चलता है कि मृतिका के भाई पालकराम साहू (अ.सा.क्र. 1) ने पैरा-17 में यह बताया है कि दुकान में उसकी बहन ने उसे यह बतायी थी कि अभियुक्त प्रकाश साहू का अन्य महिला के साथ अफेयर है। मृतिका की बहन सुषमा (अ.सा.क्र.2) ने कंडिका-5 में बतायी है कि उसकी बहन सत्यभामा जब उसे मिलती थी तो बताती थी उसका जीजा अभियुक्त प्रकाश साहू शराब पीकर उसकी बहन के साथ मारपीट करता है। अभियुक्त प्रकाश साहू का साढू लेखराम साहू (अ.सा.क्र.3) ने बताया है कि उसे प्रताड़ना की जानकारी उसकी पत्नि सुषमा (अ.सा.क्र.2) से होती थी। मृतिका के पिता छबिलाल साहू (अ.सा.क्र.7) ने पैरा-4 में कहा है कि उसकी लड़की को तकलीफ महसूस होती थी कि वह किस घर में आ गयी। अभियुक्त के प्रताड़ना से उसकी लड़की को तकलीफ होती थी। उक्त बात उसे उसकी लड़की बताती थी तब वह यह कहकर समझाता था कि उसके दो बच्चे हैं, उसी घर में उसे रहना है और धीरे-धीरे स्थिति सुधर जायेगी इसलिये परिवार में समझदारी से रहो। यह साक्षी पैरा-14 में कहता है कि अभियुक्त प्रकाश साहू, सत्यभामा के चरित्र पर सन्देह करता था और उससे मारपीट करता था। स्वयं अभियुक्तगण की ओर से इस प्रकरण के महत्वपूर्ण साक्षी दिपेश कुमार साहू (अ.सा.क्र.12) को जिसे अभियोजन व्दारा पक्षविरोधी साक्षी घोषित किया गया है, को सत्यभामा का बसंत वर्मा नामक लड़के से संबंध होने का तथ्य पूछा गया है। विवेचक एच.एन. सिंह (अ.सा.क्र.19) ने पैरा-22 में बताया है कि उसके व्दारा अनुसंधान के दौरान पाया गया कि सत्यभामा के चरित्र पर सन्देह कर उसके साथ मारपीट किया गया था।
38- ऐसी दशा में उपरोक्त बिन्दु पर अभियोजन व्दारा जो साक्ष्य पेश की गयी है जिससे भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498(क) के तहत् मानसिक रूप से अभियुक्त प्रकाश साहू के व्दारा उसकी पत्नि मृतिका सत्यभामा साहू को प्रताड़ित किये जाने से संबंधित साक्ष्य अभिलेख में उपलब्ध है। पूर्व में किये गये विवेचन से यह स्पष्ट है कि अभियुक्त प्रकाश साहू एवं मृतिका सत्यभामा साहू आपस में पति-पत्नि होने के कारण नातेदार है इसलिये अभियुक्त प्रकाश साहू के विरूद्ध भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498(क) के अपराध हेतु पर्याप्त साक्ष्य होना पाया जाता है। जहां तक अभियुक्त पूर्णानन्द का प्रश्न है तो उसके संबंध में उसे दोषी करार दिये जाने हेतु प्रकरण में साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। अभियुक्तगण की ओर से इस संबंध में प्रस्तुत न्यायदृष्टांत गोरेलाल वि. छ.ग. राज्य (उपरोक्त) के तथ्य भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498(क) के संबंध में वर्तमान प्रकरण के तथ्यों से भिन्न होने से उसका लाभ उन्हें नहीं दिया जा सकता।
39- इस प्रकार, पूर्व में किये गये विस्तृत विवेचन के प्रकाश में अभियोजन पक्ष, अभियुक्तगण प्रकाश साहू एवं पूर्णानन्द साहू के विरूद्ध भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 306 एवं धारा 304(बी) एवं इसके अलावा अभियुक्त पूर्णानन्द साहू के विरूद्ध भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498(क) के तहत् अपराध प्रमाणित करने में असफल रहा है। अतः अभियुक्तगण प्रकाश साहू एवं पूर्णानन्द साहू को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 306 एवं धारा 304(बी) एवं इसके अलावा अभियुक्त पूर्णानन्द साहू को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498(क) के आरोप से दोषमुक्त किया जाता है।
40- अभियोजन पक्ष, अभियुक्त प्रकाश साहू के विरूद्ध भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498(क) के तहत दण्डनीय अपराध को प्रमाणित करने में सफल रहा है, अतः अभियुक्त प्रकाश साहू को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498(क) के तहत दण्डनीय अपराध का दोषी पाकर सजा के प्रश्न पर सुने जाने हेतु निर्णय लेखन थोड़ी देर के लिये स्थगित किया जाता है।
सही/-
(नीलम चंद सांखला)
सत्र न्यायाधीश, दुर्ग (छ0ग0)
पश्चात् दण्डादेश
41- दण्ड के प्रश्न पर अभियुक्त, उसके अधिवक्ता, प्रार्थी पक्ष के अधिवक्ता और अभियोजन की ओर से उपस्थित लोक अभियोजक को सुना गया।
42- अभियोजन पक्ष एवं प्रार्थीपक्ष के अधिवक्ता का कहना है कि अभियुक्त को कड़े दंड से दंडित किया जावे। अभियुक्त की ओर से उसके अधिवक्ता ने व्यक्त किया कि अभियुक्त का यह प्रथम अपराध है, उसके दो छोटे बच्चे हैं तथा वह लगभग 21 माह से निरोध में है इसलिये उसके प्रति उदारतापूर्ण दृष्ट्कोण अपनाया जावे।
43- उभयपक्ष को सुना गया। अभिलेख का अवलोकन किया गया।
44- अभिलेख के अवलोकन तथा अभियुक्त व्दारा कारित कृत्य को देखते हुये व प्रकरण के सभी तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए अभियुक्त प्रकाश साहू को भारतीय दण्ड संहिता-1860, की धारा-498(क) में दो वर्ष (02 वर्ष) के सश्रम कारावास एवं 2,000/-रुपये (अक्षरी दो हजार रुपये) के अर्थदण्ड से दंडित किया जाता है। अर्थदंड की राशि नहीं पटाने पर अभियुक्त तीन माह का कठोर कारावास पृथक से भुगतेगा।
45- अभियुक्त विचारण के दौरान दिनांक 14.05.2015 से आज निर्णय दिनांक 10.02.2017 तक (01 वर्ष 08 माह 27 दिन) निरोध में है। उक्त अवधि उसकी सजा में समायोजित की जावे। इस संबंध में दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा-428 का प्रमाण-पत्र बनाया जावे, जो निर्णय का भाग होगा और उसे सजा वारंट में संलग्न किया जावे।
46- प्रकरण में जप्त एक नग माइक्रोमेक्स मोबाईल जिसका स्क्रीन क्रेक है, सामने काला कलर, पीछे ढक्कन सफेद रंग का है तथा एक मेमोरी कार्ड सेनडिस्क 4 जी.बी. का सक्षम व्यक्ति को प्रदान किया जावे। प्रकरण में जप्त की गयी अन्य संपत्ति मृतिका सत्यभामा साहू का विसरा एक सीलबंद प्लास्टिक बरनी में लंग्स, लीवर, किडनी, स्पलीन, मृतिका का स्टमक इंस्टेटाइन, एक सीलबंद सीसी में सेम्पल मूल्यहीन होने से नष्ट की जावें। यह आदेश अपील अवधि बाद लागू होगा, अपील होने पर माननीय अपीलीय न्यायालय के आदेषानुसार संपत्तियों का निराकरण किया जावे।
47- निर्णय की एक प्रति अभियुक्त को निःशुल्क प्रदान की जावे तथा निर्णय की एक-एक प्रति जिला दण्डाधिकारी, दुर्ग तथा जेल अधीक्षक, केन्द्रीय जेल, दुर्ग को भी भेजी जावे।
सही/-
(नीलम चंद सांखला)
सत्र न्यायाधीश, दुर्ग (छ0ग0)
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Write commentsमहत्वपूर्ण सूचना- इस ब्लॉग में उपलब्ध जिला न्यायालयों के न्याय निर्णय https://services.ecourts.gov.in से ली गई है। पीडीएफ रूप में उपलब्ध निर्णयों को रूपांतरित कर टेक्स्ट डेटा बनाने में पूरी सावधानी बरती गई है, फिर भी ब्लॉग मॉडरेटर पाठकों से यह अनुरोध करता है कि इस ब्लॉग में प्रकाशित न्याय निर्णयों की मूल प्रति को ही संदर्भ के रूप में स्वीकार करें। यहां उपलब्ध समस्त सामग्री बहुजन हिताय के उद्देश्य से ज्ञान के प्रसार हेतु प्रकाशित किया गया है जिसका कोई व्यावसायिक उद्देश्य नहीं है।
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