Tuesday 24 January 2023

CG State Vrs Sandeep Jain (Ravalmal Jain Mani Murder Mystery Case) District and Sessions Court, Durg Chhattisgarh

 

 न्यायालय-अपर सत्र न्यायाधीश, दुर्ग (छत्तीसगढ़) सत्र न्यायाधीश दुर्ग छत्तीसगढ़ (पीठासीन-शैलेश कुमार तिवारी) निर्णय दिनांक : 23 जनवरी, 2023 संस्थित दिनांक : 16.04.2018 सत्र प्रकरण कमांक 56 /2018 (चार च0-(.(ज1)1101-001240-2018 आरक्षी केन्द्र-दुर्ग कोतवाली, जिला-दुर्ग (छ.ग.) अपराध कमांक-01/2018 श्री सुरेश प्रसाद शर्मा, विशेष लोक अभियोजक अभियुक्तगण 01. संदीप जैन आ. स्व. रावलमल जैन, आयु लगभग-42 वर्ष, साकिन-गंजपारा आलोकचंद त्रिलोकचंद ज्वेलर्स के सामने, दुर्ग, थाना-दुर्ग, जिला-दुर्ग(छ.ग.) 02. भगत सिंह गुरूदत्ता आ. सतनाम सिंग गुरूदत्ता, आयु लगभग-47 वर्ष, साकिन-काली बाड़ी के पास, थाना-मोहन नगर, दुर्ग, जिला-दुर्ग(छ.ग.) 03. शैलेन्द्र सागर पिता अवतार सिंग, आयु लगभग-47 वर्ष, साकिन- गुरूनानक नगर, थाना-मोहन नगर, दुर्ग, जिला-दुर्ग (छ.ग.) अभियुक्तगण की ओर से 01. अभियुक्त संदीप जैन न्यायिक अभिरक्षा में, सहित श्री तारेन्द्र जैन, अधिवक्ता 02. अभियुक्त भगत सिंह गुरूदत्ता जमानत पर, सहित श्री ललित तिवारी, अधिवक्ता । 03. अभियुक्त शैलेन्द्र सागर जमानत पर, सहित श्री दुष्यन्त देवांगन, अधिवक्ता ।

 

 

उपार्पण आदेश न्यायालय- मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, दुर्ग, जिला-दुर्ग (छ.ग.) द्वारा दांडिक प्रकरण कमांक-2496/ 2018, राज्य वि. संदीप जैन वगैरह, में पारित उपार्पण आदेश दिनांक 13.04.2018 से उद्भूत । “ज्ञान दूर कुछ, किया भिन्‍न है, इच्छा क्यों पूरी हो मन की ; एक दूसरे से न मिल सके, यह विडंबना है जीवन की ।” -- जयशंकर प्रसाद ।। निर्णय ।। (आज दिनांक 23 जनवरी, 2023 को घोषित) @01- प्रकरण में आरोपी संदीप जैन के विरूद्ध रावलमल जैन के मकान में रावलमल जैन एवं सूरजीबाई को साशय व ज्ञानपूर्वक पिस्टल 7.65 कैलीबर से गोली मारकर उनकी मृत्यु कारित कर हत्या का अपराध कारित करने तथा ऐसा अपराध किये जाने में बिना किसी अनुज्ञप्ति या आज्ञापत्र के आयुध अधिनियम की धारा 3 के उल्लंघन में एक पिस्टल 7.65 कैलीबर को अपने आधिपत्य में रखकर आयुध अधिनियम की धारा 7 के उल्लंघन में एक पिस्टल 7.65 कैलीबर का प्रयोग किये जाने तथा अभियुक्तगण भगत सिंह गुरूदत्ता एवं शैलेन्द्र सागर के विरूद्ध आयुध अधिनियम की धारा 3 के उल्लंघन में एक पिस्टल 7.65 कैलीबर को अपने आधिपत्य में रखने तथा अवैध उद्देश्यों के लिए उपलब्ध कराये जाने के लिये निम्नानुसार आरोप का विचारण किया गया है :- ... चार्ट .... @02- प्रकरण में यह तथ्य स्वीकृत है कि :- आरोपी संदीप जैन, मृतकगण रावलमल जैन एवं श्रीमती सूरजी बाई जैन का पुत्र है। आरोपी संदीप जैन उसके भांजे सौरभ गोलछा के साथ साड़ी व्यापार का कार्य करता था। घटना स्थल वाले मकान में घटना दिनांक को, घटना के पूर्व तक रावलमल जैन, श्रीमती सूरजी बाई एवं आरोपी संदीप जैन के अलावा अन्य कोई मौजूद नहीं था। प्रकरण में यह भी अविवादित है कि, मृतक रावलमल के घर के अगल-बगल में मकान बने हुये हैं, खाली जगह नहीं है। प्रकरण में यह भी अविवादित है कि, मृतक रावलमल कारीडोर में गोली लगने से तथा मृतिका सूरजी बाई अपने कमरे में गोली लगने से मृत पाई गई। प्रकरण में यह भी अविवादित है कि, मृतक रावलमल एवं मृतिका सूरजी बाई की हत्या के मध्य 08 मिनट का अंतराल था। प्रकरण में यह भी अविवादित है कि, चौकीदार रोहित कुमार देशमुख (अ.सा.07) को घटना दिनांक 31.12.2017 की रात को आरोपी संदीप जैन द्दारा ड्यूटी में आने से मना किया गया था इस कारण वह दिनांक 31.12.2017 को मृतक रावलमल जैन के यहां ड्यूटी करने नहीं आया था। प्रकरण में यह भी अविवादित है कि, घटना दिनांक को आरोपी संदीप जैन की पत्नि श्रीमती संतोष जैन एवं उसका पुत्र संयम जैन गंजपारा स्थित उनके घर में नहीं थे बल्कि उन्हें आरोपी संदीप जैन व्दारा दल्‍ली राजहरा छोड़ दिया गया था तथा सुसंगत समय पर वे घटना स्थल में नहीं थे । प्रकरण में यह भी अविवादित है कि, घटना के बाद रावलमल जैन के घर का दरवाजा खुला था एवं घर में किसी भी स्थान में तोड़फोड़ नहीं हुई थी, घर का सामान सुरक्षित था अर्थात्‌ घर में सम्पत्ति संबंधी अपराध जैसे लूट अथवा डकैती न होना प्रमाणित है। प्रकरण में यह भी अविवादित है कि, घटना दिनांक 31.12.2017 की रात्रि से लेकर घटना के पूर्व तक, घटना स्थल में आरोपी अकेले ही था। @03-(1) अभियोजन का वृतान्त संक्षेप में इस प्रकार हैं कि :- आरोपी संदीप जैन, मृतक गण रावलमल जैन एवं सूरजी बाई का पुत्र है तथा अन्य आरोपीगण भगत सिंह गुरूदत्ता एवं शैलेन्द्र सागर, आरोपी संदीप जैन के साथीगण हैं। प्रार्थी सौरभ गोलछा आ. सतीश चंद गोलछा, उम्र-31 वर्ष, साकिन-ऋषभ नगर 14/9, दुर्ग, जिला-दुर्ग द्वारा दिनांक-01.01.2018 को समय 06:25 बजे सुबह, थाना-दुर्ग में इस आशय की सूचना दिया कि, प्रार्थी की नानी सूरजी बाई का उनके मोबाईल नंबर 9406419291 से प्रार्थी के मोबाईल नंबर 7000291510 में सुबह 05:54 बजे फोन आया कि, नाना जी को कुछ हो गया है, आवाज आयी है, जल्दी से गंजपारा स्थित घर में आओ, तो प्रार्थी तुरंत अपनी कार से गंजपारा स्थित अपनी नानी के घर पहुंचा, जहाँ जाकर देखा तो बाहर एवं अंदर के दरवाजे खुले थे। प्रार्थी घर के अंदर गया तो उसने उसके नाना जी को कारीडोर में बाथरूम के पास जमीन में गिरे पड़े देखा, वहाँ अंधेरा था, लेकिन कुछ समझ नहीं आया तो नानी को आवाज दिया। उनके बेडरूम में लाईट जल रही थी और नानी बिस्तर में मृत पड़ी थी, उनको किसी ने गोली मार दिया था। प्रार्थी की रिपोर्ट पर थाना दुर्ग में अप0कं0-1/2018 अंतर्गत धारा 302 भा.दं.सं. के तहत अपराध पंजीबद्ध कर प्रकरण विवेचना में लिया गया। @03-(02). अभियोजन वृतान्त के अनुसार दिनांक 01/01/2018 के प्रात: 06.15 बजे प्रार्थी सौरभ गोलछा अ.सा.8, निवासी ऋषभ नगर, दुर्ग की सूचना एवं रिपोर्ट पर प्रकरण के विवेचक अ.सा. 15 निरीक्षक भावेश साव के द्वारा मृतिका सूरजी बाई का प्रदर्श पी. 28 का मर्ग इंटीमेशन दर्ज किया गया। इसी दिनांक को 06.20 बजे सौरभ गोलछा ने रावलमल जैन की मृत्यु के संबंध में मर्ग सूचना प्रदर्श पी.29 दर्ज कराया। मर्ग सूचना के उपरांत दिनांक 01.01.2018 को प्रात: 06.25 बजे सौरभ गोलछा की रिपोर्ट पर प्रदर्श पी. 27 की प्रथम सूचना रिपोर्ट, मृतिका सूरजी बाई एवं मृतक रावलमल जैन के संबंध में धारा 302 भा.दं.सं. के अंतर्गत पंजीबद्ध की गई। विवेचक के द्वारा घटना की. जानकारी तत्काल वरिष्ठ अधिकारियों एवं काईम ब्रांच तथा एफ.एस.एल. रायपुर को दी गई एवं कंट्रोल रूम को भी अवगत कराने हेतु निर्देशित किया गया। तत्पश्चात्‌ मौके पर रावलमल जैन के निवास स्थान गंजपारा, दुर्ग में पहुंचकर धारा 175 दं.प्रसं. का नोटिस प्रपी. 30 एवं 31 साक्षियों को घटना स्थल पर उनकी उपस्थिति हेतु जारी किया। उसके पश्चात्‌ _ प्रदर्श पी. 32 के अनुसार सूरजी बाई एवं प्रपी. 33 के अनुसार रावलमल जैन का शव पंचनामा तैयार किया गया। विवेचक व्दारा शव पंचनामा में सूरजी बाई को तीन गोली तथा रावलमल जैन को तीन गोली मारकर हत्या करना पाया गया। रावलमल जैन का शव गलियारे में बाथरूम के पास तथा सूरजी बाई का शव कमरे में पलंग पर चित्त हालत में पड़ा था, जिसमें रावलमल जैन के पीठ में गोली लगने के निशान थे एवं सूरजी बाई के बांये छाती में, दाहिने हाथ के कोहनी के पास एवं सिर के पास गोली लगने के निशान थे। उसने उक्त दोनों शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल, दुर्ग रवाना किया। उसके पश्चात्‌ शव परीक्षा के लिए दिए गए आवेदन पत्र प्रदर्श पी.3 और प्रदर्श पी.5 की कार्यवाही उपनिरीक्षक आर.डी. मिश्रा के व्दारा की गई। पोस्टमार्टम उपरांत दोनों शव का सुपुर्दनामा मृतक के भाई भीखमचंद जैन को प्रदर्श पी. 61 एवं 62 दिया गया। 03-(3). आगे अभियोजन वृतान्त के अनुसार घटनास्थल का नक्शा प्रदर्श पी.63 तैयार किया गया है, जिसमें घटनास्थल का पूर्ण विवरण, प्रदर्श पी.64 रावलमल जैन के घर के पीछे का नजरी नक्शा अनुसार घटनास्थल के पीछे एक वाहन का नक्शा बनाया गया जिसमें वाहन का डाला, वाहन की छत को नक्शे में दर्शाया गया है और दीवार से जो वाहन टाटा-एस खड़ी है, उसकी दूरी दर्शायी गई है, साथ ही इसमें 5.8 मीटर की दीवार की दूरी से “'सी' दर्शाया गया है और एक अन्य 4.3 मीटर की दूरी पर पुनः “'सी' दर्शाया गया है, जिसमें 'सी' का अर्थ कारतूस से है एवं बनाये गये नक्शे में “मकान के पीछे गली, जहां से पिस्टल और कारतूस बरामद हुए”, लेखबद्ध किया गया है, संकेत में 'एम' का अर्थ मैग्जीन, 'पी' का अर्थ पिस्तौल एवं 'सी' का अर्थ कारतूस दर्शाया गया है, साथ ही जहां टाटा-एस की छत पर पिस्टल पड़ी थी, वहां से आरोपी के घर की रैलिंग की उंचाई 8.5 फीट लेखबद्ध है। विवेचना के दौरान मृतक के निवास स्थान की वीडियोग्राफी एवं. फोटोग्राफी कराई गई। मौके पर घटनास्थल निरीक्षण के दौरान मृतिका सूरजी बाई एवं रावलमल जैन के शव के आसपास चले हुए गोली के खाली खोखे, कॉटन, खून आलूदा कॉटन को गवाहों के समक्ष जप्त किया गया, उसे सुरक्षित रखते हुए एफ.एस.एल. टीम, जो रायपुर से आ रही थी, उनके आने तक उसी तरह से सुरक्षित रहने दिया गया। एफ.एस.एल. टीम के पूरा घटनास्थल का मुआयना करने एवं मकान के पीछे का हिस्सा जहां पर पिस्टल, कारतूस, मैग्जीन आदि पड़ी थी, का मुआयना करने एवं फोटोग्राफी, विडियोग्राफी कराने के बाद सुरक्षित एफ.एस.एल. टीम के आने तक रखा गया। एफ.एस.एल. टीम के आने के पश्चात्‌ ही मौके पर जप्तशुदा सामग्री को सीलबंद किया गया। @03-(४). आगे अभियोजन वृतान्त के अनुसार दिनांक 01.01.2018 को गवाहों के समक्ष घटनास्थल मृतिका सूरजी बाई के शव के सिर के पास से पिस्टल की गोली का बुलेट खून लगा 01 नग, सूरजी देवी के बांए हाथ के कोहनी के पास से गोली का खाली खोखा, एक कॉटन के टुकड़े में लिया गया तथा मृतिका सूरजी देवी के सीने के पास बिस्तर से गोली का खाली खोखा, दोनों खाली खोखे के पेंदे में 7.65 के.एफ. लिखा था, मृतिका के बिस्तर जहां मृतिका मृत पड़ी थी, के पास मृतिका का सैमसंग कंपनी का एक मोबाईल, एक मेहरून कलर का चादर का टुकडा जिसमें खून का दाग लगा था, एक कॉटन के टुकड़े में बिस्तर में फैले खून के अंश, एक कॉटन के टुकड़े में बिस्तर के पास के सादी मिट्टी के अंश जप्ती पत्र प्रदर्श पी.50 अनुसार जप्त किया गया। घटनास्थल जहां मृतक रावलमल जैन के लाश के पास घटनास्थल से दरवाजे के चौखट के पास गोली का एक खाली खोखा, मृतक के पैर के पास एक खोखा, दाहिने पैर के एक फीट पर एक खोखा, दरवाजे के चौखट से 5-6 ईच दूर एक खाली खोखा, कुल गलियारे में चार नग खाली खोखा सभी खोखे के पेंदे में 7.65 के.एफ. लिखा था, एक कॉटन के टुकडा में मृतक रावलमल के शव के पास फैले खून के अंश, एक कॉटन के टुकडा में घटनास्थल के पास से सादी मिट्टी का अंश जप्ती पत्र प्रदर्श पी.51 अनुसार जप्त किया गया। विवेचना के दौरान डॉग स्कॉड को तलब कर घटनास्थल का निरीक्षण कराया गया। डॉग मास्टर के द्वारा दिए गए सर्टिफिकेट प्रदर्श पी.11 में बताया गया कि, डॉग घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद मृतक के पुत्र संदीप जैन के कमरे में जाकर भौंका था। उसके पश्चात विवेचक व्दारा दिनांक 01.01.18 के 07.30 बजे पूरे घटनास्थल का मुआयना कर नक्शा पंचनामा प्रदर्श पी.48 तैयार किया गया । प्रदर्श पी. 48 में पाया गया कि, मृतक के घर में घुसने का सिर्फ एक मुख्यद्वार है, जो कि ताला से अंदर से बंद रहता है, जिसे घर के अंदर का कोई सदस्य ही खोल सकता था, पीछे तरफ उपर ग्रील लगा था जिसमें हाथ डालकर नीचे खड़े टाटा-एस में हत्या में प्रयुक्त पिस्टल को फेंका गया था जो कि स्पष्ट रूप से मृतक के घर जहां मृतक के पुत्र आरोपी संदीप का कमरा है, उससे जुडा था। मृतक के मकान के दांये हिस्से में लोकेश शर्मा का तथा बांये पर प्रहलाद रूंगटा का मकान था जो पैक्ड था, पीछे उपर ग्रिल में पैक्ड जंग लगा ताला था जिसमें से कोई प्रवेश नहीं कर सकता, जिसको देखने से कभी खोला नहीं गया, दिख रहा था, कहीं भी आगे और पीछे के हिस्से किसी भी बाहरी व्यक्ति के घर के अंदर प्रवेश करने का कोई साक्ष्य नहीं था। @03-(५). आगे अभियोजन वृतान्त के अनुसार घटनास्थल का पृथक से फोटोग्राफ्स विवेचक के द्वारा तथा एफ.एस.एल. टीम के 15 द्वारा भी लिया गया एवं पुष्टि की गई। विवेचना के दौरान परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर आरोपी संदीप जैन से पूछताछ करने पर उसने अपने मेमोरेण्डम में गवाहों के समक्ष बताया कि “वह स्वतंत्र तथा खुले विचारों का इंसान है एवं उसके पिता रावलमल जैन पुरानी रूढीवादी विचारधारा के व्यक्ति थे, वे अक्सर इसे हर काम पर टोका करते थे, जैसे पूजा के लिए शिवनाथ नदी से प्रतिदिन नौकर से पानी मंगवाते थे, तथा उसके द्वारा घर के नल के पानी को ही उपयोग करने को कहने पर उसे डांट-डपट करते थे, आरोपी के पिता को उसकी महिला मित्रो से मिलना नागवार गुजरता था एवं कई बार संपत्ति से बेदखल करने की धमकी देते थे, जिसके कारण उसने व्यथित होकर अपने पिता को मारने की योजना बनाया, इस कारण उसने एक देसी पिस्टल और कारतूस अग्रसेन चौक निवासी भगत सिंह गुरूदत्ता से 1,35,000/- रू. में खरीदा एवं 27.12.2017 को पत्नी और बच्चो को मायके दल्‍ली राजहरा भेज दिया और नौकर रोहित देशमुख जो रात्रि में घर में रोज सोने आता था, उसे 31.12.2017 की रात्रि घर आने से मना कर दिया। @03-(06). आगे... अभियोजन कहानी... के अनुकम में योजनानुसार सुबह 05.45 बजे वह उपर से नीचे आकर मां के दरवाजे को बाहर से बंद किया, उस समय उसके पिता कॉरीडोर में बाथरूम से वापस आ रहे थे और कॉरीडोर का दरवाजा बंद कर रहे थे, उनकी पीठ उसकी तरफ थी, तभी उसने अपने पिता को पीछे से पीठ में गोली मार दिया, गोली की आवाज सुनकर उसकी मां के चिललाने पर वह अपने कमरे में उपर भाग गया, फिर उसके मोबाईल पर उसकी मां का फोन आने लगा, लेकिन उसने नहीं उठाया और नीचे मां के कमरे के पास पुनः वापस आया तो वह सौरभ को फोन लगाकर बुला रही थी, तब उसने मां के कमरे का दरवाजा खोला और उसका राज खुल जाने के डर से मां को भी गोली मारकर हत्या कर दिया। उसके बाद उसने बाहर जाने वाले कॉरीडोर का दरवाजा और फिर बैठक का दरवाजा खोल दिया तथा सबसे बाहर मेनगेट का ताला खोलकर चाबी उसी में छोड़ दिया, ताकि लगे कि कोई बाहर का आदमी आकर हत्या कर चला गया है, उसने गोली मारते समय काले रंग के दस्ताने पहन रखे थे, जो उसके कमरे में बिस्तर के सिरहाने के नीचे रखे हैं तथा घटना के समय पहना गया चेक आसमानी कलर का हाफ कुर्ता जिसमें खून के दाग लगे हैं, को बिस्तर के नीचे छिपाकर रखा है एवं जिस पिस्टल से उसने अपने माता-पिता की हत्या की है, उसे घर के पीछे उपर बाल्कनी से नीचे फेंक दिया, जो नीचे खड़ी टाटा-एस गाड़ी में गिरा है, साथ में एक लोडेड मैग्जीन और दो झिल्ली में जिंदा कारतूस को भी नीचें गली में फेंक दिया। @03-(07). विवेचना के दौरान आरोपी द्वारा मेमोरेण्डम प्रदर्श पी.52 में बताए गए तथ्यों के खुलासा के आधार पर आरोपी के बताये अनुसार मकान के पीछे घटना कारित करने के बाद फेंके गए 01 नग 7.65 कैलीबर का देसी पिस्टल सिल्वर कलर का खाली मैग्जीन सहित, वाहन टाटा-एस कं. सी.जी. 04 / जे.ए-8984 के केबिन के उपर से एक झिल्ली में 14 नग कारतूस एवं 02 नग खाली खोखा, सभी में 7.65 के.एफ. लिखा हुआ, एक झिल्ली में 12 नग कारतूस, 7.65 कैलीबर का, एक सिल्वर कलर का मैग्जीन जिसमें 06 नग कारतूस हैं, वाहन टाटा-एस कं. सी.जी. 04/ जे.ए-8984 के डाला के पीछे दरवाजे के पास जिसमें 7.65 कैलीबर लिखा है, समक्ष गवाहान जप्तीपत्र प्रदर्श पी. 53 अनुसार जप्त किया गया। आरोपी संदीप जैन के मेमोरेण्डम के आधार पर प्रदर्श पी. 54 के अनुसार 02 नग काले रंग का उलन का दस्ताना, 02 नग नोज मास्क कीम रंग का, एक आसमानी रंग चेकदार गोल कॉलर का कुर्ता जिसके दाहिने तरफ जेब के पास खून के दाग लगे हैं, एक ओप्पो कंपनी का मोबाईल, एक नग ताला एवं चाबी जिसमें अंग्रेजी में 50001 लिखा था, समक्ष गवाहान जप्त किया गया। @03-(08). आगे अभियोजन वृतान्त के अनुसार विवेचक के द्वारा विवेचना के दौरान्‌ आरक्षक कं. 1291 मुन्ना यादव के द्वारा डॉक्टर द्वारा सीलबंद किये गये पैकेट जिसमें सीलबंद डिब्बी में पर्ची में दो नग बुलेट लिखा था, एक सीलबंद पैकेट में मृतिका सूरजी देवी के घटना के समय पहने साडी एवं ब्लाउज खून लगा हुआ शासकीय अस्पताल, दुर्ग से आरक्षक मुन्ना लाल के पेश करने पर जप्ती पत्र प्रदर्श पी-65 के मुताबिक जप्त किया गया। आरक्षक मुन्नालाल द्वारा शासकीय अस्पताल से लाये गये सीलबंद डिब्बी के उपर पर्ची में पी.एम. के दौरान मृतक रावलमल जैन के शरीर से निकाली गई बुलेट थी तथा एक सीलबंद पैकेट में मृतक रावलमल द्वारा घटना के समय पहने हुए कपडे जिसमें खून लगे हुए दाग थे, जप्तीपत्र प्रदर्श पी. 66 के अनुसार जप्त किया गया।. विवेचना के दौरान दिनांक 24.01.2018 को फोटोग्राफर प्रभात वर्मा के पेश करने पर वजह सबूत में घटनास्थल मृतक रावलमल जैन, दुर्ग के निवास स्थान दुगड़ निवास गंजपारा में खीचें गए अंदर, बाहर के फोटोग्राफ्स एवं मृतक तथा मृतिका के कुल 45 नग फोटोग्राफस को जप्ती पत्र प्रदर्श पी. 67 के अनुसार जप्त किया गया। विवेचना के दौरान डॉ० बी.एन. देवांगन, जिला अस्पताल, दुर्ग को आरोपी के द्वारा चलाई गई पिस्टल की क्यूरी बाबत प्रदर्श पी-6ए प्रेषित किया गया तथा आरोपी के पेश करने पर जप्तशुदा कुर्ता जिसमें खून के दाग लगे थे, को मुलाहिजा हेतु जिला चिकित्सालय, दुर्ग प्रदर्श पी.7-ए अनुसार भेजा गया । डॉ0 बी0एन0 देवांगन, जिला अस्पताल, दुर्ग को पोस्टमार्टम के दौरान रावलमल जैन के शरीर के पी0एम0 के पूर्व कराए गए एक्स-रे में तीन गोलियाँ दिखाई दे रही थी, किन्तु पी0एम0 के दौरान एक गोली मिली एवं शेष दो गोली क्यों नहीं मिली, इसके लिए राय प्रदर्श पी-8ए मांगा गया था। विवेचना के दौरान्‌ आरोपी संदीप जैन के मेमोरेण्डम के आधार पर उसने जिस कट्‌टे से सूरजी देवी एवं रावलमल जैन की हत्या किया, उसे आरोपी भगत सिंह गुरूदत्ता से खरीदना बताने पर, आरोपी भगत सिंह गुरूदत्ता को हिरासत में लिया गया। दिनांक 03.01.18 को 09.15 बजे आरोपी भगत सिंह गुरूदत्ता से पूछताछ करने पर मेमोरेण्डम प्रदर्श पी-56 में उसने बताया कि - “संदीप जैन निवासी गंजपारा दुर्ग जो उसका बचपन का दोस्त था जो घटना से पांच-छ: माह पूर्व उसके पास आया था और उससे एक लाख पैंतीस हजार रूपये में एक पिस्टल सिल्वर 7.65 कैलीबर का एवं उसने उसे 38 रांउड भी दिया था”। @03-(09). आगे अभियोजन अनुसार दिनांक 03.01.18 के 10.35 बजे विवेचक के द्वारा आरोपी शैलेन्द्र सागर का मेमोरेण्डम प्रदर्श पी. 57 लिया गया था जिसमें आरोपी शैलेन्द्र सागर ने बताया था कि “उससे भगत सिंह ने एक पिस्टल संदीप जैन को देने के लिए मांगी थी जो कि, वह सागर तरफ काम करने गया था तो दो तीन साल पहले एक व्यक्ति से 38 कारतूस और 01 पिस्टल उस समय 40-50 हजार रूपये में खरीदी थी, जिससे खरीदा था उससे खास पहचान नही थी, वर्तमान में वह कहाँ रहता है, नहीं जानता जिस पिस्टल से संदीप जैन ने हत्या की है, वह वही पिस्टल है, बताया था”। विवेचक के द्वारा दिनांक 03.01.18 को गवाहों के समक्ष आरोपी भगत सिंह गुरूदत्ता के द्वारा पिस्टल पहचान पंचनामा प्रदर्श पी. 58 तैयार किया था, जिसने जप्तशुदा पिस्टल को ही बेचना बताया था। विवेचना के दौरान दिनांक-01.01.2018 के 20.15 बजे आरोपी संदीप जैन को गिरफतार कर गिरफतारी पंचनामा प्रदर्श पी. 69 बनाया गया था। @03-(१0). विवेचक के द्वारा आरोपी भगत सिंह गुरूदत्ता एवं शैलेन्द्र सागर को दिनांक 03.01.2018 को गिरफतार कर गिरफतारी पंचनामा कमशः प्रदर्श पी. 70 एवं 71 बनाया था उसने आरोपीगण संदीप जैन, भगत सिंह गुरूदत्ता एवं शैलेन्द्र सागर के परिजनों को उनकी गिरफतारी की सूचना कमश: प्रदर्श पी-72, प्रदर्श पी-73 एवं प्रदर्श पी-74 के अनुसार दी थी। उसके द्वारा तहसीलदार, तहसील दुर्ग को घटनास्थल पटवारी नक्शा के लिए पत्र प्रदर्श पी-०० जारी किया गया था। उसके द्वारा पुलिस अधीक्षक, दुर्ग को इस प्रकरण में साक्ष्य की दृष्टिकोण से चलाई गई कारतूसों के बैलेस्टिक परीक्षण के लिए मिलान हेतु 04 नग कारतूस खरीदने हेतु अनुमति बाबत पत्र प्रदर्श पी-76 लिखा गया, जिला दंडाधिकारी द्वारा दिनांक 10.01.2018 को 04 कारतूस खरीदने की अनुमति प्रदान किया गया था, जिसके आधार पर उसने माँ शारदा ट्रेडर्स, आर्म्स एवं ऐमोनिसन डीलर से दिनांक 11.01.2018 को 500/- रूपये में 04 कारतूस 7.65 बोर का पिस्टल कारतूस खरीदा था, डीलर द्वारा दिया गया बिल प्रदर्श पी-39 सी होना जिसमें विवेचक के द्वारा पेड बाई मी लिखकर हस्ताक्षर किया गया था। इसके बाद विवेचक ने पुलिस अधीक्षक, दुर्ग को दिनांक 12.01.2018 को उक्त बिल के अनुसार खरीदे गए कारतूस की कीमत के आहरण के लिए पत्र प्रदर्श पी-77 लिखा तथा वरिष्ठ वैज्ञानिक एफ.एस.एल., रायपुर को प्रदर्श पी-03 का पत्र लिखकर घटनास्थल निरीक्षण के लिए आवेदन किया था। पुलिस अधीक्षक, दुर्ग कार्यालय द्वारा प्रदर्श पी-78, प्रदर्श पी-79 एवं प्रदर्श पी-80 का पत्र नोडल आफिसर जियो, आईडिया एवं रिलायंस को लिखा था, जिसके परिपालन में नोडल आफिसरों द्वारा सी.डी.आर. और 65 बी का प्रमाण पत्र प्रदान किया गया था। @03-(11). अभियोजन अनुसार पुलिस अधीक्षक, दुर्ग द्वारा प्रदर्श पी-60 सी का पत्र जिला दंडाधिकारी, दुर्ग को आरोपी संदीप जैन, आरोपी भगत सिंह गुरूदत्ता एवं आरोपी शैलेन्द्र सागर के विरूद्ध आर्म्स एक्ट में अभियोजन अनुमति बाबत पत्र लिखा गया था एवं पत्र के साथ प्रकरण की डायरी एवं दस्तावेज भेजे गए थे, जिसके आधार पर अभियोजन अनुमति जिला दंडाधिकारी द्वारा दिया गया था। उसके पश्चात्‌ प्रकरण में विवेचना के दौरान जप्तशुदा संपत्तियों को रासायनिक परीक्षण हेतु पुलिस अधीक्षक, दुर्ग के माध्यम से विधि विज्ञान प्रयोगशाला, रायपुर प्रदर्श पी-81 अनुसार भेजा गया, उक्त संपत्तियों की जांच पश्चात्‌ विधि विज्ञान प्रयोगशाला, रायपुर से परीक्षण प्रतिवेदन प्रदर्श पी. 82 प्राप्त हुआ । राज्य न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला रायपुर के परीक्षण प्रतिवेदन प्रदर्श पी-82 के अनुसार जप्तशुदा काटन-#, चादर का टुकड़ा-0, काटन-ए, हाफ कुर्ता-6, साड़ी-प-1, ब्लाउज-प्र-2, पेटीकोट-प्-3, ब्रा-्र-4, अंडरवियर-11, बनियान-12, स्वेटर-13, एवं बुलेट-प-1 में रक्त पाया गया तथा जप्तशुदा काटन-००, चादर का टुकड़ा-0, कॉटन-ए, हाफ कुर्ता-6, साड़ी-प-1, ब्लाउज-प्र-2, पेटीकोट-प्र-3, ब्रा-प्त-4, अंडरवियर-11, बनियान-12, स्वेटर 13 एवं बुलेट-प1 पर मानव रक्त होना पाया गया। उक्त कार्यवाही पश्चात्‌ प्रकरण में विवेचना पूर्ण होने के पश्चात्‌ विवेचक के द्वारा धारा-302,/34 भा.दं.सं. एवं धारा 25, 27 आयुध अधिनियम अंतर्गत अंतिम प्रतिवेदन तैयार कर न्यायालय में पेश किया था। @03-(12). प्रकरण में विवेचना कार्यवाही के दौरान विवेचक व्दारा दस्तावेज नजरी नक्शा प्रदर्श पी-1, शव परीक्षण प्रतिवेदन प्रदर्श पी-2, 3, 4, 5, थाना प्रभारी दुर्ग द्वारा डॉ. बी.एन. देवांगन, असि.सर्जन, जिला- अस्पताल, दुर्ग को प्रेषित पत्र प्रदर्श पी-6, मुलाहिजा फार्म प्रदर्श पी-7, 7ए, डॉ. बी.एन. देवांगन, वरि. चिकित्सा अधिकारी, जिला-चिकित्सालय, दुर्ग द्वारा थाना प्रभारी, दुर्ग को मृतक के प्राप्त एक्सरे रिपोर्ट की क्यूरी के संबंध में प्रेषित पत्र प्रदर्श पी-8, 8ए, मृतकों की पर्ची पत्रक प्रदर्श पी-9, 10, अपराध अनुसंधान फार्म प्रदर्श पी-11, साक्षी राजू सोनवानी का पुलिस कथन प्रदर्श पी-12, फोटोग्राफस प्रदर्श पी-13,14,15,16,17,18,19, एफ.एस.एल. से प्राप्त प्रतिवेदन प्रदर्श पी-20, 21, कार्यालय पुलिस अधीक्षक, जिला-दुर्ग द्वारा एफएसएल, रायपुर को प्रेषित जप्त सामग्रियों के परीक्षण के संबंध में पत्र प्रदर्श पी-22, कार्यालय राज्य न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला, छ.ग. शासन रायपुर से प्राप्त परीक्षण प्रतिवदेन / अभिमत पत्र प्रदर्श पी-22 एवं 24, मेन रोड गंजपारा, दुर्ग का रेखाचित्र प्रदर्श पी-25 एवं 26, प्रथम सूचना रिपोर्ट प्रदर्श पी-27, अकाल एवं अकास्मिक मृत्यु की सूचना पंजी प्रदर्श पी-28 एवं 29, नोटिस प्रदर्श पी-30 एवं 31, नक्शा पंचायतनामा प्रदर्श पी-32 एवं 33, पंचनामा घटनास्थल के सामने सी.सी.टी.व्ही. संबंधित प्रदर्श पी-34, सबस्काइबर डिटेल्स रिकार्डर प्रदर्श पी-35 एवं 36, आईडिया सेलुलर लिमिटेड रायपुर का प्रमाण पत्र प्रदर्श पी-37 एवं 38, माँ शारदा ट्रेडर्स आर्म्स एडं एमोनिसन डीलर का रसीद प्रदर्श पी-39 सी, दैनिक विकय पुस्तक प्रदर्श पी-40, रिलायंस जियो इनफोकॉम लिमिटेड का पत्र प्रदर्श पी-41 एवं प्रमाण पत्र प्रदर्श पी-42, सौरभ गोलछा का प्रीपेड कस्टमर आवेदन फार्म प्रदर्श पी-43, सौरभ गोलछा का आधार कार्ड प्रदर्श पी-44, कार्यालय पुलिस अधीक्षक, दुर्ग द्वारा नोडल आफिसर रिलायंस जिओ, रिलायंस जिओ इंफोकाम लिमिटेड से मोबाईल नंबर 7000291510 का सी.डी.आर., कैप एवं साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 बी का प्रमाण पत्र हेतु प्रेषित पत्र प्रदर्श पी-45 एवं डिटेल्स प्रदर्श पी-46 एवं 47, घटनास्थल का नक्शा पंचायतनामा प्रदर्श पी-48, नोटिस प्रदर्श पी-49, जप्तीपत्रक प्रदर्श पी-50 एवं 51, मेमोरेण्डम कथन प्रदर्श पी-52,जप्ती पत्रक प्रदर्श पी-53 एवं 54, जप्ती पत्रक प्रदर्श पी-55, मेमोरेण्डम प्रदर्श पी-56 एवं 57, पहचान पंचनामा प्रदर्श पी-58, कार्यालय जिला मजिस्ट्रेट,दुर्ग का आदेश प्रदर्श पी-59, कार्यालय पुलिस अधीक्षक, दुर्ग द्वारा कलेक्टर, दुर्ग को आरोपीगण के विरूद्ध अभियोजन चलाने की अनुमति बाबत्‌ प्रेषित पत्र प्रदर्श पी-60 सी, शव सुपुर्दनामा प्रदर्श पी-61 एवं 62, मौका नजरी नक्शा प्रदर्श पी-63 एवं 64, जप्तीपत्रक प्रदर्श पी-65, 66, 67, कार्यालय थाना प्रभारी दुर्ग द्वारा प्रभारी डॉग स्क्वाड, पुलिस लाईन, दुर्ग को प्रेषित पत्र प्रदर्श पी-68, गिरफतारी पत्रक प्रदर्श पी-69, 70, 71, गिरफतारी की सूचना प्रदर्श पी-72, 73, 74, कार्यालय थाना प्रभारी दुर्ग द्वारा श्रीमान्‌ तहसीलदार दुर्ग को पटवारी नक्शा चाहने बाबत्‌ प्रेषित पत्र प्रदर्श पी-75, कार्यालय थाना प्रभारी, थाना दुर्ग द्वारा पुलिस अधीक्षक, दुर्ग से थाना दुर्ग के अप.क. 01/2018 धारा 302, 34 एवं 25, 27 आयुध अधिनियम में 04 नग 7.65 कैलिबर के जिंदा कारतूस खरीदने की अनुमति चाहने बाबत्‌ प्रेषित पत्र प्रदर्श पी-76, कार्यालय थाना प्रभारी, दुर्ग द्वारा पुलिस अधीक्षक, दुर्ग से थाना दुर्ग के अप.क. 01/2018, धारा. 302, 34 भारतीय दंड संहिता एवं 25, 27 आयुध अधिनियम में परीक्षण हेतु खरीदा गया कारतूस के बिल भुगतान के संबंध में प्रेषित पत्र प्रदर्श पी-77, कार्यालय पुलिस अधीक्षक,दुर्ग द्वारा नोडल आफिसर रिलायंस जिओ, रिलायंस जिओ इंफोकाम लिमिटेड, रायपुर से थाना दुर्ग के अप.कं. 01/2018, धारा. 302, 34 एवं 25, 27 आयुध अधिनियम में आरोपी संदीप जैन के मो.नं. 7000831319 का सी.डी.आर. एवं 65 बी का प्रमाण पत्र चाहने बाबत पत्र प्रदर्श पी-78, कार्यालय पुलिस अधीक्षक, दुर्ग द्वारा. नोडल आफिसर, आईडिया. रिलायंस कम्युनिकेशन्स, रायपुर से थाना दुर्ग के अप.कं. 01/2018, धारा 302, 34 एवं 25, 27 आयुध अधिनियम में आरोपी संदीप जैन के मो. नं. 7697562121 का सी.डी.आर.एवं 65 बी का प्रमाण पत्र चाहने बाबत पत्र प्रदर्श पी-79, कार्यालय पुलिस अधीक्षक,दुर्ग द्वारा नोडल आफिसर, रिलायंस, रिलायंस कम्युनिकेशन्स, रायपुर से थाना दुर्ग के अप.क. 01/2018 धारा. 302, 34 एवं 25, 27 आयुध अधिनियम में आरोपी संदीप जैन के मो.नं. 9301801008 का सी.डी.आर.एवं 65 बी का प्रमाण पत्र चाहने बाबत पत्र प्रदर्श पी-80, कार्यालय पुलिस अधीक्षक, जिला-दुर्ग द्वारा संचालक, राज्य न्यायालयिक विज्ञान प्रयोग शाला टिकरापारा रायपुर को थाना दुर्ग के अप.क. 01/2018 धारा 302, 34 एवं 25, 27 आयुध अधिनियम के प्रकरण में जप्त सामग्रियों का परीक्षण रिपोर्ट देने बाबत प्रेषित पत्र प्रदर्श पी-81, एफ.एस.एल. रायपुर से प्राप्त परीक्षण प्रतिवेदन अभिमत पत्र प्रदर्श पी-82, आरोपी संदीप जैन द्वारा आदरणीय भैया भंवर लाल जी बोहरा को प्रेषित पत्र प्रदर्श पी-83, कार्यालय अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट, दुर्ग का आदेश प्रदर्श पी-84 सी एवं साक्षी सौरभ गोलछा का पुलिस कथन प्रदर्श पी-85 एवं पुलिस द्वारा प्रस्तुत सी.सी.टी.व्ही. फुटेज की रिकार्डिंग 10 डी.व्ही.डी. में आर्टिकल अंकित किया गया है, को पेश किया गया है। @03-(13). तत्पश्चात विवेचना उपरांत अभियोग पत्र न्यायालय-मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, दुर्ग के समक्ष प्रस्तुत किया गया। उनके द्दारा प्रकरण दिनांक 13.04.2018 को सत्र न्यायालय के विचारण योग्य होने से प्रकरण माननीय सत्र न्यायाधीश, दुर्ग को उपार्पित किया गया, जिसके पश्चात यह प्रकरण दिनांक 16.04.2018 को माननीय सत्र न्यायाधीश को प्राप्ति उपरांत सत्र प्रकरण क्रमांक-56 / 2018 के तौर पर दर्ज किया गया और तत्पश्चात यह प्रकरण अंतरण पर दिनांक 16.04.2018 को ही इस न्यायालय को प्रारंभिक स्तर पर विचारण हेतु प्राप्त हुआ। @04- मेरे पूर्वांधिकारी व्दारा आरोपी संदीप जैन को उसके विरूद्ध धारा 302 (दो बार) भारतीय दंड संहिता एवं आयुध अधिनियम की धारा 25(1-ख) (क) एवं 27 (2) तथा आरोपीगण भगत सिंह गुरूदत्ता एवं शैलेन्द्र सागर के विरूद्ध आयुध अधिनियम की धारा 25(1-ख) (क) के आरोप को पढ़कर सुनाया गया, जिसे उन्होंने अस्वीकार किया है। अभियोजन की ओर से कूल 15 साक्षियों का परीक्षण कराया गया है, तदुपरांत धारा 313 दं0प्र0सं0 के अंतर्गत आरोपीगण का परीक्षण किया गया। जिस पर आरोपीगण ने स्वयं को निर्दोष होना तथा झूठा फंसाया जाना कहा । अभियुक्तगण से बचाव साक्ष्य की अपेक्षा किये जाने पर अभियुक्तगण भगत सिंह गुरूदत्ता एवं शैलेन्द्र सिंह सागर की ओर से बचाव साक्ष्य नहीं दिया जाना तथा आरोपी संदीप जैन व्दारा बचाव साक्ष्य दिया जाना व्यक्त किये जाने पर उनका अभिवाक्‌ दर्ज किया गया। आरोपी संदीप जैन की ओर से श्रीमती संतोष जैन (ब.सा.1) का न्यायालय में परीक्षण कराया गया है। @05- अभियोजन की ओर से अ.सा.1 छगन लाल सिन्हा (पटवारी), अ.सा.2 प्रभात कुमार वर्मा (रिटायर्ड पुलिस फोटोग्राफर), अ.सा.3 डॉ. बी.एन. देवांगन (मेडिकल आफिसर), अ.सा.4 अमित कुमार कुर्र (आरक्षक), अ.सा.5 राजू सोनवानी, अ.सा.6 डॉ. टी.एल. चंद्रा (वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी), अ.सा.7 रोहित कुमार 28 देशमुख (चपरासी कार्य-रावलमल के घर), अ.सा.8 सौरभ गोलछा, अ.सा.-9 सुरेन्द्र साहू (आरक्षक), अ.सा.10 हुसैन एम. जैदी (नोडल आफिसर वोडाफोन आइडिया लिमिटेड), अ.सा.11 कुशल प्रसाद दुबे (गन डीलर), अ.सा.12 संजीव नेमा (नोडल आफिसर), अ.सा.13 शेख कलीम, अ.सा.14 नरसिंह राम एवं अ.सा.15 भावेश साव (निरीक्षक) का कथन कराया गया है। @06- उभयपक्ष व्दारा साक्ष्य की समाप्ति के उपरांत लिखित तर्क प्रस्तुत किया गया है और अपने-अपने पक्ष समर्थन में न्याय दृष्टान्त भी प्रस्तुत किये गये हैं। उभय पक्ष व्दारा मौखिक अंतिम तर्क भी प्रस्तुत किये गये है, जिनका संक्षेप में उल्लेख यहां किया जा रहा है, ताकि प्रकरण का न्यायसंगत निराकरण हो सके। राज्य की ओर से विशेष लोक अभियोजक श्री सुरेश प्रसाद शर्मा व्दारा प्रकरण में विस्तृत मौखिक तथा लिखित तर्क पेश किया गया है, जो इस प्रकार है :-- @01. रावलमल जैन का कारीडोर पर गोली लगने से मृत मिलना एवं मृतिका सूरजी बाई का अपने कमरे में गोली लगने से बिस्तर पर मृत मिलना एवं चोंट से खून बहना यह प्रमाणित करता है कि, चोंट तत्काल कारित की गई थी। @02. समय 05.54 मिनट 50 सेकंड में सूरजी बाई का फोन सौरभ गोलछा को आना और यह कहना कि, नाना गिर गये है जल्दी आओं, यह प्रमाणित करता है कि, 05.54 मिनट 50 सेकंड के तुरंत पहले रावलमल की हत्या कारित की गई थी एवं 06.02 मिनट 36 सेकंड के पूर्व सूरजी बाई की हत्या कारित किया है। यह तथ्य अकाट्य रूप से प्रमाणित है क्योकि कॉल डिटेल को फर्जी तैयार नहीं किया जा सकता और उपरोक्त के संबंध में कॉल डिटेल विधि अनुसार प्रमाणित हो चुका है जिसे आरोपी ने भी चुनौती नहीं दिया है। @03. घटना स्थल घर में दिनांक 31.12.2017 के शाम से एवं दिनांक 31.12.2017 के रात्रि तक एवं 01.01.2018 के सुबह सौरभ गोलछा के आने तक आरोपी संदीप जैन घटना स्थल पर अकेला मौजूद था। जिसकी पुष्टि आरोपी संदीप जैन के मोबाईल के सीडीआर से होती है जिससे यह सहज रूप से सिद्ध हो जाता है कि, आरोपी ने अपने माता-पिता सूरजी देवी एवं रावलमल का हत्या कारित किया है। @04. साक्ष्य अधिनियम धारा 106 - विशेषत: - ज्ञात तथ्य को साबित करने का भार- जबकि कोई तथ्य विशेषतः किसी व्यक्ति के ज्ञान में है, तब, उस तथ्य को साबित करने का भार उस पर है। जब घर में सिर्फ आरोपी एवं उसके 30 माता-पिता है तब हत्या किसने किया, यह बताने का दायित्व आरोपी का है क्योकि यह मान्य तथ्य है कि, घर का दरवाजा स्वाभाविक रूप से अंदर से बंद रहता है, दरवाजा किसने खोला, उसके दस्ताना में बारूद का कण कैसे आया। इन सभी तथ्यों का स्पष्टीकरण सिर्फ आरोपी दे सकता है, इस बिन्दु पर आरोपी ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है। @05. इस प्रकरण में आरोपी का आचरण एक अभ्यस्त अपराधी की तरह है क्योकि इसने 294 द.प्र.सं. के तहत अभियोजन द्वारा पेश आवेदन पत्र पर वर्णित समस्त तथ्यों को इंकार किया है। जिसमें घटना स्थल का नक्शा जहाँ आरोपी निवास करता है। माता-पिता का शव पंचनामा एवं सीन ऑफ क्राईम में पाई गई वस्तुयें सम्मिलित हैं । @06. मृतकगण की हत्या किये जाने का हेतुक सिर्फ आरोपी संदीप जैन के पास है अन्य किसी के पास नहीं है क्योकि रावलमल एवं सूरजी देवी के हत्या हो जाने से समस्त संपत्ति का मालिक आरोपी संदीप जैन हो गया है जो कि, रावलमल एवं सूरजी देवी के रहते संभव नहीं था एवं रावलमल ने संदीप के आचरणों को देखते हुये संपत्ति से बेदखल करने की धमकी दिया था, जिसके कारण आरोपी रावलमल की हत्या किया एवं सूरजी देवी ने इसके संबंध में अपने नाती सौरभ गोलछा को फोन किया, जिसके कारण आरोपी ने अपने विरूद्ध साक्ष्य आ जायेगा समझकर अपने माँ की हत्या कारित कर दिया। पूरे प्रकरण में किसी बाहरी व्यक्ति का अपराध कारित करने का उद्धेश्य नहीं है, जो कि बचाव पक्ष के अधिवक्ता द्वारा किये गये प्रतिपरीक्षण की कंडिका 15 से भी स्पष्ट है। जिसमें बताया गया है, कि, यह कहना सही है कि जब वह अपने नाना रावलमल जैन के घर गया तो बाहर का दरवाजा खुला था और कोई बाहरी व्यक्ति नहीं था और यह कहना भी सही है कि घर के सभी सामान सुरक्षित अवस्था में थे। @07- अभियोजन पक्ष की ओर से अपने पक्ष के समर्थन में प्रस्तुत न्यायदृष्टांत Supreme Court of India. Trimukh Maroti Kirkan vs State of Maharashtra on 11 Octo- ber 2006, Appeal (crl) 1341 of 2005 की कंडिका क्र. 12, 13, 16 एवं 17 अवलोकनीय है| - @Para. 12 If an offence takes place inside the privacy of a house and n such circum- stances where the assailants have all the oppor- tunity to plan and commit the offence at the time and in circumstances of their choice, it will be extremely difficult for the prosecution to lead evidence to establish the guilt of the ac- cused if the strict principle of circumstantial evidence, as noticed above, is insisted upon by the Courts. A Judge does not preside over a criminal trial merely to see that no innocent man is punished. A Judge also presides to see that a guilty man does not escape. Both are public duties. (see Stirland v. Director of Public Prosecution 1944 AC 315 quoted with approval by Arjit by Arijit pasayat, J. in state of Punjab vs. Karnail Singh (2003) 11 SCC 271). The law does not enjion a duty on the prosecution to lead evidence of such character which is almost impossible to be lead or at any rate extremely difficult to be lead. the duty on the prosecution is to lead such evidence which it is capable of leading, having regard to the facts and circum- stances of the case. Here it is necessary to keep in mind Section 106 of the Evidence Act which says that when any fact is especially within the knowledge of any person, the burden of proving that fact is upon him. @The law does not require the prosecution to prove the impossible. All that it requires is the establishment of such a degree of probabil- ity that a prudent man may, on its basis, be- lieve in the existence of the fact in issue. Thus, legal proof is not necessarily perfect proof; of- ten it is nothing more than a prudent man's es- timate as to the probabilities of the case. @31. The other cardinal principle having an important bearing on incidence of burden of proof is that sufficiency and weight of the evidence is to be considered- to use the words of Lord Mansfield in Blatch v. Archer (1774) I cowp 63 at p.65 " according to the proof which it was in the power of one side to prove and in the power of the have contradicted". Since it is exceedingly difficult, if not absolutely impossible for the prosecution to prove facts which are especially within the knowledge of the opponent or the accused, it is not obloged to prove them as parts of its primary burden. @16. In a case based on circumstantial evidence where no eye- witness account is available, there is another principle of law which must be kept in mind. The principle is that an incriminating circumstance is put to the accused and the said accused either offers no explanation or offers an explanation which is found to be untrue, then the same becomes an additional link in the chain of circumstances to make it complete. This view has been taken in a catena of decisions of this Court. ( see State of Tamil Nadu v. jajendran (199) 8 SCC 679 (para6); State of U.P. v. Dr. Ravindra Prakash Mittal AIR 1992 SC 2045 (para 40); State of Maharashtra v. Suresh (2000) I SCC 471 (para27); Ganesh lal V. State of Rajashthan (2002) I SCC 731 (para15) and Gulab Chand v. State of M.P. (199) 3 SCC 574 (para 4)} @ 08- माननीय उच्च न्यायालय, गुवाहाटी के निर्णय 2016 क्रिमिनल लॉ जनरल पेज 4627 की कंडिका 35 एवं 36 अवलोकनीय होना बताया गया है। इसके अलावा माननीय उच्च न्यायालय छ.ग. बिलासपुर के निर्णय सी.जी.एल.जे. 20111) पेज नं. 149 (डी.बी.) में माननीय न्यायाधीश ने व्यक्त किया है कि, @ Admittedly this is a special circumstance and it must be within the knowledge of the ac- cused, therefore, in accordance with Section 106 of the Evidence Act, the appellant was un- der obligation to prove the fact that how his wife received injury and how she died. While dealing with the same question in the matter of Trimukh Maroti Kiran Vs. State of Maharashtra (supra), the Supreme Court held that if the of- fence was commited in the dwelling house. where the husband also resided and if the ac- cused husnand did not offer any explanation as to the injuries received by his wife of the ex- planation is false, then there is strong circum- stance which indicates that he committed the crime. @09- माननीय उच्च न्यायालय, छ.ग. बिलासपुर का निर्णय सी.जी.एल.जे. 2018 (1) पेज नं. 72 (डी.बी.) की कंडिका 10 में माननीय न्यायाधीश ने व्यक्त किया है कि, @If an offence takes place inside the privacy of a house and such circumstances where the asailants have all the opportunity to plan and commit the offence at the time and in circumstances of their choice, it will be extremely difficult for the prosecution to lead evidence to establish the guilt of the accused if the strict principle of circumstantail evidence, as noticed above, is insisted upon by the courts. A judge does not preside over a criminal trial merely to see that no innocent man is punished. A judge also presides to see that a guilty man does not ascape. Both are public duties. (See Stirland v. Director of public prosecutions (1944 AC 315)- quoted with approval by Arjit Pasayat, J in Satte of Punjab v. Karnail Singh (2003) 11 SCC 271). The law does not enjion a duty on the prosecution to lead evidence of such character which is almost impossible to be led or at any rate extermely difficult to be held. The duty on _ the prosecution is to lead such evidence which it is capable of leading, having regard to the facts and circumstances of the case. Here it is necessary to keep in mind Section 106 of the Evidence Act Which says that then any fact is especially within the knowledge of any person, the burden of proving that fact is upon him. @10- माननीय उच्च न्यायालय मद्रास हाईकोर्ट (मदुरई बैंच) 2018 क्रिमिनल लॉ जनरल पेज नं. 2627 की कंडिका 18012) अवलोकनीय है :- @ When the deceased was under the care and custody of the first accused having taken asylum under one roof, it is within the personal knowledge of the first accused to explain the circumstances under which the deceased sustained penile injury. This is expected of the accused under Section (sic) 106 of the Indian Evidence Act. In the absence of the explanation comming from the mouth of the first accused. Then the first accused is impliedly responsible for the penile injuries sustained by the deceased. @ 11- माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक दृष्टांत 2014 क्रिमिनल लॉ जनरल पेज नं. 4238 की कंडिका 7 अवलोकनीय है :- @We have also carefully considered the conspectus of the case and we do not harbour any doubt as to the guilt of the Convict. We reiterate the series of Judments passed by this Court Which effectively transfer the burden of proving innocence to those accused. who were living with the deceased within the confines of the home. In the present case, the bodies of the three deceased victims were exhumed after three to six weeks of their unnatral deat and no convincing explanation has been proffered by the Convict as to why he did not report their prolonged absence to the police. @12- माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक दृष्टांत 2014 राजस्थान शासन विरूद्ध ठाकुर सिंह, निर्णय दिनांक 30. 06.2014 के कंडिका 16 एवं 17 अवलोकनीय है| @16. " This [Section 101] lays down the general rule that in a criminal case the burden of proof is on the prosecution and Section 106 is certainly not intended to relieve it of that duty. on the contrary, it is designed to meet ceratain exceptional cases in which it would be impossible, or at any rate disprotionately difficult, for the prosecution to establish facts which are "especially" within the knowledge of the accused and which he could prove without difficulty or inconvenience. the word "especially" stresses that. It means facts that are pre-eminently or exceptionally within his knowledge. If the section were to _ be interprected otherwise, it would lead to the very starling conclusion that in a murder case the burden lies on the accused to prove that he did not commit the murder because who could know better than he whether he did or did not. @17. In a spcific instance in Trimukh Maroti Kirkan v. State of Maharashtra{3} this court held that when the wife is injured in the dwelling home where the husband ordinarily resides, and the husband offers no explanation for the injuries to his wife, then the cicumstances sould indicate that the husband is responsible for the injuries. It was said : " Where an accused is alleged to have committed the murder of his wife and the prosecution succeeds in leading evidence to show that shortly before the commission of crime they seen together of the offence takes place in the dwelling home where the husband also normally resided, it has been consistently held that if the accused does not offer any explanation how the wife received injuries or offer an explanation which is found to be false, it is a strong circumstance which indicates that he is responsible for commission of the crime. @ 13- मेमोरेंडम और जप्ती कार्यवाही के संबंध में न्याय दृष्टान्त Rameshbhai Mohanbhai Koli & Ors vs State Of Gujarat on 20 October, 2010 Para 7 and 8 पेश किया गया है :- @7) In the instant case, all the eye- witnesses examined on the prosecution side have en bloc turned hostile due to influence and pressure of the accused persons which included a sitting MLA of the ruling party. This aspect has been analyzed by the trial Court while convicting and awardingsentence on the accused/appellants. This Court has noted and observed in a large number of cases that witnesses may lie but circumstances do not. On going through the entire materials, particularly, the chain of circumstances, we are satisfied that the prosecution has been successful in bringing home the guilt of the appellants herein for the commission of murder of Prakashbhai Raveshia and the eye-witnesses turning hostile, do not, in any manner, crate a dent in the case of the prosecution. @Hostile witness- @8) It is settled legal proposition that the evidence of a prosecution witness cannot be rejected in toto merely because the prosecution chose to treat him as hostile and cross examine him. The evidence of such witnesses cannot be treated as effaced or washed off the record altogether but the same can be accepted to the extent that their version is found to be dependable on a careful scrutiny thereof. (vide Bhagwan Singh v. The State of Haryana, AIR 1976 SC 202; Rabindra Kumar Dey v. State of Orissa, AIR 1977 SC 170; Syad Akbar v. State of Karnataka, AIR 1979 SC 1848 and Khujji @ Surendra Tiwari v. State of Madhya Pradesh, AIR 1991 SC 1853). @(9) In State of U.P. v. Ramesh Prasad Misra and Anr., AIR 1996 SC 2766, this Court held that evidence of a hostile witness would not be totally rejected if spoken in favour of the prosecution or the accused but required to be subjected to close scrutiny and that portion of the evidence which is consistent with the case of the prosecution or defence can _ be relied upon. A similar view has been reiterated by this Court in Balu Sonba Shinde v. State of Maharashtra, (2002) 7 SCC 543;Gagan Kanojia and Anr. v. State of Punjab, (2006) 13 SCC 516; Radha Mohan Singh @ Lal Saheb and Ors. v. State of U.P., AIR 2006 SC 951; Sarvesh Naraian Shukla v. Daroga Singh and Ors., AIR 2008 SC 320 and Subbu Singh v. State, (2009) 6 SCC 462. @(10)In C. Muniappan & Ors. vs. State of Tamil Nadu, JT 2010 (9) SC 95, this Court, after considering all the earlier decisions on this point, summarized the law applicable to the case of hostile witnesses as under: @"70.1 The evidence of a hostile witness cannot be discarded as a whole, and relevant parts thereof which are admissible in law, can be used by the prosecution or the defence. @70.2 In the instant case, some of the material witnesses i.e. B. Kamal (PW.86); and R. Maruthu (PW.51) turned hostile. Their evidence has been taken into consideration by the courts below strictly in accordance with law. @70.3 Some omissions, improvements in the evidence of the PWs have been pointed out by the learned Counsel for the appellants, but we find them to be very trivial in nature. @71. It is settled proposition of law that even if there are some _ omissions, contradictions and discrepancies, the entire evidence cannot be disregarded. After exercising care and caution and_ sifting through the evidence to separate truth from untruth,exaggeration and improvements, the court comes to a conclusion as to whether the residuary evidence is sufficient to convict the accused. Thus, an undue importance should not be attached to omissions, contradictions and discrepancies which do not go to the heart of the matter and shake the basic version of the prosecution's witness. As the mental abilities of a human being cannot be expected to be attuned to absorb all the details of the incident, minor discrepancies are bound to’ occur in the statements of witnesses.(vide Sohrab and Anr. v. The State of M.P., AIR 1972 SC 2020; State of U.P. v. M.K. Anthony, AIR 1985 SC 48; Bharwada Bhogini Bhai Hirji Bhai v. State of Gujarat, AIR 1983 SC 753; State of Rajasthan v. Om Prakash, AIR 2007 SC 2257;Prithu @ Prithi Chand and Anr. v. State of Himachal Pradesh, (2009) 11 SCC 588; State of U.P. v. Santosh Kumar and Ors., (2009) 9 SCC 626 and State v. Saravanan and Anr, AIR 2009 SC 151)"11) From the analysis of the statements, answers in the cross-examination, earlier statement under Section 164 of Cr.P.C. before the Magistrate and in the light of the above principles, we agree with the conclusion arrived at by the trial Court and approved by the High Court. @14- माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय (2000) Supreme (SC) 1913 4 fear 19 vd 20 में व्यक्त किये है कि, The court has to consider the evidence of the Investigating officer who deposed to the fact of recovery bassed on the statement elicited from the accuesd on its own worth. इसी तरह का न्यायिक दुष्टांत CRLJ_ 2012 पेज नं0 672 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस को विश्वसनीय साक्षी माना है। मेमोरेंडम जप्ती के साक्षी जो कि, किसी अन्य प्रकरण में साक्षी रहा हो तो उसके साक्ष्य को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मान्य किया है। इस संबंध में न्याय दृष्टान्त CRLJ 2012 पेज नंबर 4011 अवलोकनीय है। @The court cannot start with the presumption that the police record are untrustworthy. As a proposition of law the presumption should be the other way around. that official acts of the police have been regulary performed is a wise principle of presumption and recogised even by the legistaiture. Hence when a police officer gives evidence in court that a certion article was recovered by him on the strength of the statement made by the accused it is open to the court to believe the version to be correct if it is not otherwise shown to be unreliable. It is for the accused. @15- उपरोक्त बिन्दु पर पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के न्याय दृष्टांत Om pal Singh vs The State of U.T. Chhandigarh on 3 July 2012 की कंडिका 23 में व्यक्त है कि, मेमोरंडम जप्ती के लिए स्वतंत्र साक्षी का होना नियम में नहीं है। इस हेतु इस निर्णय की कंडिका 23 अवलोकनीय है :-- @There is no such requirement of law that it is imperative to join an independent witness at the time of recovery under Section 27 of the Evidence act. The recovery in pursuance of disclosure statement under Section 27 of the Evidence act stands on a different footing than recoveries made on search, as envisaged under Section 100 cr.p.c.. In this view of the matter, the failure of PW-17 Mehboob Khan to support the case of the prosecution, does not cause any dent in the testimonies of the official witnesses, who have successfully withstood the test of cross examination, to shich they were subjected. 16- इसी तरह खुले स्थान से जप्ती के संबंध में उपरोक्त न्यायिक दृष्टांत की कंडिका 24 अवलोकनीय है :- @There is another aspect of the case with refer- ence to the recovery effected from the appellant. The recovery has been effected from an open place, which may be accessible to the public. Recoveries effected from a place which is open and accessible to all, cannot be rendered doubtfull. if contrary view is taken by the court, most crimanals would be able to escape by keeping incriminating articles at a place which can be accessible to others. Refer- ence in this context can made to limbaji v. State of maharashtra 2002(1) RCR (Crl.) 266. @1७ए- अभियुक्त संदीप जैन के विद्वान अधिवक्ता श्री तारेन्द्र जैन व्दारा भी प्रकरण में विस्तृत मौखिक तर्क तथा लिखित तर्क भी पेश किया गया है, जो इस प्रकार है :- प्रकरण परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर अवलंबित है, प्रकरण के न्यायिक निराकरण के लिए परिस्थितिजन्य साक्ष्य के संबंध में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा सरद विरदीचंद सारडा वि. महाराष्ट्र राज्य के प्रकरण में बनाए गए सिद्धांत की पूर्ति किया जाना अति आवश्यक है जो निम्नवत्‌ है :- @A The circumstance from which the conclusion of guilt is to be drawn should be fully established. @B The facts so established should be consistent only with the hypothesis of the guilt of the accused that is to say they should not explainable on any others hypothesis except that the accused is guilty. @C The circumstance should be of conclusive nature and tendency. @D They should exclude every possible hypothesis except the one to be proved and @E There must be a chain of evidence so complete as not to leave any reasonable ground for the conclusion consistent with the innocence of the accused and must so that in all human probability that the act must have been done by the accused. @A case can be said to be proved only when this is certain and explicit evidence and no person can be convicted and pure moral conviction. @18- एक अन्य परिस्थितिजन्य साक्ष्य के संदर्भ में माननीय उच्चतम न्यायालय व्दारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि :- Where though a grave suspicion arowse that the accused might have committed the crime but the circumstances established in case did not lead to the irresistible and the only conclusion that the accused was the author of crime and was the murderer, the accused is entitle to get benefit of doubt. @Mere suspicion, however strong cannot take the place of legal proof 1979 Cri.L.J.566 (S.C.), 1981 Cr. L.J. (NOC) 188 (Orissa) Arjun Charan Jena Vs. The State @19- निराधार अभिकथनों के आधार पर ऐसे संगीन अपराध में किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता निष्कर्षित करते हुये अपीलार्थी को दोषमुक्त घोषित किया गया है। इस संबंध में न्याय दृष्टान्त 2003(2) C.G.L.J. - Page — 104 RAJKUMAR Vs. STATE OF M.P.(NOW_C.G.) पेश किया गया है। @20- परीक्षण हेतु लाए गए कपड़े को सीलबंद नहीं होने का कथन किया है जो कि, अभियोजन की कहानी को संदिग्ध बनाती है और ऐसे साक्षी के संबंध में निम्न न्यायदृष्टांत पेश किया गया है :- @Evidence Act. 1872-8.45 — Doctor examined as a witness— no presumption that doctor is always a witness of truth his statement has to be appreciated and examined like that of any witness-1983 J.L.J (S.N.12) Supreme Court. MAYUR PANABHAISHAH Vs. STATE OF GUJRAT. @21-- दाण्डिक प्रथा-शंका कितनी भी बलवान क्यों न हो, निश्चयात्मक साक्ष्य का स्थान नहीं ले सकती। इस संबंध में न्याय दृष्टान्त 1999(1) MPWN Note-—61 KARANLAL Vs. STATE OF MP अवलोकनीय होना उल्लेखित किया गया है। @ Acquittal - Murder Trial - Case based on circumstantial evidence -Chain not complete and conclusive-Conviction, set aside. @Indian Penal Code, 1860-Sec.300-Murder- Circumstatantial evidence -No independent witness was joined at the time of recovery despite presence of many persons on the spot-Statements of witnesses on the mode of travelling to the place of recovery inconsistent-Report of the ballistic expert with respect to the fire arm belonging to the appellant used for committing the offence inconclusive-Having accepted the views of the rial court holding that the @last seen theory has not been proved, the High Court could not render conviction on the basis of evidence, which was rejected qua motive, through the mouth of PW2-No sufficient link to come to the irresistible conclusion pointing the guilt only to the appellant-Conviction, set aside.2022 SAR _ (CRI.) Page- 932 (S.C.) RAVI SHARMA Vs. STATE (GOVT. OF NCT OF DELHI & ANR. @23- अन्वेषण अधिकारी द्वारा पिस्टल बदलकर साक्ष्य गढ़ा गया है, इस संबंध में निम्न न्याय दृष्टांत अवलोकनीय है :- @Criminal Trial—Fingerprints—Failure to examine the weapon of Murder for fingerprints to connect the accused with it extremely fatal to prosecution case. 1975 S.C.C.(Cri.) 530 — 531(Para- 23) DATAR SINGH Vs. THE STATE OF PUNJAB @24- मध्यप्रदेश पुलिस विनियमन तथा दण्ड संहिता - धारा-302- अन्वेषण पक्षपात रीति से आरंभ हुआ- अन्वेषण अधिकारी उपस्थित नहीं होने से रोजनामचे में विलंब से प्रविष्टि हुई-- अभियुक्त को कब बुलाने भेजा का समय उल्लेखित नहीं - पांव के खोजों की छाप लेने हेतु प्रयत्न नहीं किए गए - नाखूनों की कतरन, लूंछित केस और रक्त के दाग लगी वस्तुयें खो गई - प्रविष्टियों के लिखित होने के पश्चात्‌ भी अभियुक्त को चिकित्सकीय परीक्षा हेतु नहीं भेजा- अभिनिर्धारित की दोषसिद्धि अपास्त करने योग्य है। 1990 Cr.L.R.(M.P.) 99 ISHWAR SINGH Vs. SATE OF M.P. @25- साक्षी के बयान को प्रकरण में प्रस्तुत ना करना एवं उन्हें छिपाया जाना अभियोजन की कहानी एवं विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगाता है एवं संदिग्ध बनाता है, इस संबंध में निम्न न्यायदृष्टांत अवलोकनीय है :- @Where the prosecution did not choose to rely on the earlier version of the prosecution witness recorded by the Head Constable after the receipt of first Information but relied on their statement subsequently related by the Sub-Inspector the suppression of the earlier statement is serious flow in the prosecution case and makes the court reasonably suspect that the earliest statements were not in line with the prosecution case and were deliberately suppressed. 1978 Cr.L.J. NOC — 134 (M.P.) GANPAT LAL & ORS. Vs. THE STATE OF M.P. @26- जहां तक पुलिस कथन का प्रश्न है तो उसका उद्देश्य केवल लोप एवं खण्डन के लिए होता है, इस संबंध में दंड प्रकिया संहिता की निम्न धारायें अवलोकनीय होना उलल्‍्लेखित किया गया है :- @धारा-161, 16202) द.प्र.सं.- अन्वेषण के दौरान पुलिस को दिया गया बयान साक्ष्य का सारवान भाग नहीं होने एवं इसे केवल कर्ता का विरोध करने के लिए किया जा सकता है, इस संबंध में न्याय दृष्टान्त 2022(2) CDHC-862 PARASRAM Vs. STATE OF CHHATTISGARH उल्लेखनीय होना व्यक्त किया गया है। @27- आपराधिक ट्रायल - अभियुक्त द्वारा निरपराध प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं किन्तु अभियोजन को संदेह से परे अपराध स्थापित करना होता है। इस संबंध में न्याय दृष्टान्त 1987 CR.LR.(MP) Page No.- 69 BHANGADIYA Vs. STATE OF MP अवलोकनीय होना उल्लेखित किया है। @28- दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा-100() - जहाँ जप्ती धारा-100(4) के उपबंधों के अनुसार नहीं की गई है और दो या अधिक स्वतंत्र प्रतिष्ठित साक्षी उसी क्षेत्र के नहीं बुलवाए गए हैं वहाँ जब तक की स्थानीय दो स्वतंत्र प्रतिष्ठित व्यक्तियों को न बुलाने के बारे में स्पष्टीकरण नहीं दिया जावे, वहाँ जप्ती संदेहात्मक हो जाती है। इस संबंध में न्याय दृष्टान्त मध्यप्रदेश राज्य विरूद्ध रामप्रकाश और अन्य 1989 मनिसा नोट नं.-50, पेज नं.-209-210 अवलोकनीय होना उलल्‍्लेखित किया है। @29- भारतीय दण्ड संहिता-1860 की धारा-302 के प्रकरण में अभियुक्त के कपड़ों के रासायनिक परीक्षण या सीरम विज्ञानी के रिपोर्ट के अभाव में तथा खुले स्थान से लोहे के रॉड की जब्ती के 41-- उपरोक्त न्याय दृष्टान्तों में विवेचित तथ्यों के प्रकाश में आरोपी संदीप जैन के विद्वान अधिवक्ता दव्दारा प्रकरण के चिकित्सक साक्षी डॉ. बी.एन. देवांगन (अ.सा.3) के साक्ष्य में आये बिन्दुओं की ओर इस न्यायालय का ध्यान आकृष्ट कराया है जो इस प्रकार है :- यह साक्षी प्रकरण का महत्वपूर्ण साक्षी है जिसने मृतकगण का पोस्टमार्टम किया है, इस साक्षी ने मृतकगण को आई सभी चोटों को मृत्यु पूर्व की होना अपने मुख्य परीक्षण की कंडिका-5 एवं 15 में बताया है तथा सभी चोंट गनशॉट इन्जुरी में आना बताया है एवं कंडिका-17 में कथन किया है कि, सूरजीबाई के शरीर के अंदर की बुलेट की स्थिति जानने के लिए एक्स-रे फिल्‍म लिया गया था जो दो बुलेट सीने के दाहिने तरफ था, इस साक्षी ने अपने मुख्य परीक्षण की कंडिका-3, 4 एवं 5 में मृतक रावलमल के शरीर में एब्रेजन पाया जाना स्वीकार किया है, इस साक्षी ने अपने प्रति परीक्षण की कंडिका-28 में यह स्वीकार किया है कि, दोनों शवों के पोस्टमार्टम की कोई विडियो रिकार्डिंग नहीं की गई है, इस साक्षी ने पैरा-29 में यह कथन किया है कि, “यह आवश्यक नहीं है कि, पोस्टमार्टम दो चिकित्सकों द्वारा किया जाए जबकि दो चिकित्सकों द्वारा पोस्टमार्टम किए जाने का सामान्य नियम विधि में निर्धारित है।” तथा अन्वेषण अधिकारी ने भी अपने पोस्टमार्टम हेतु आवेदन में दो चिकित्सकों से परीक्षण कराए जाने का अनुरोध किया है। 42- इस साक्षी ने अपने प्रति परीक्षण की कंडिका-31 एवं 32 में यह स्वीकार किया है कि, इसने पोस्टमार्टम समाप्ति का समय नहीं लिखा है तथा पैरा-36 में यह स्वीकार किया है कि, “यह कहना सही है कि, किसी व्यक्ति से हाथापाई होने पर मृतक रावलमल जैन को आई खरोंचे आना संभावित है, ऐसी स्थिति में अभियुक्त संदीप के नाखून आदि का. परीक्षण अन्वेषण अधिकारी द्वारा ना कराया जाना संदिग्धता को जन्म देता है कि, मृतक रावलमल जैन और उसे मारने वाले के बीच में हाथापाई हुई होगी परन्तु वास्तविक अपराधी को छोड़कर एवं ढूंढ़ने का प्रयास ना कर अन्वेषण अधिकारी द्वारा आरोपी संदीप के विरूद्ध झूठा अभियोग पत्र प्रस्तुत किया गया है और इस हेतु अन्वेषण अधिकारी के पास पर्याप्त हेतुक उपलब्ध था । 43- साक्षी ने कंडिका-38 में एक्स-रे रिपोर्ट को प्र. पी.-9 एवं प्र.पी.10 अंकित कराया है परन्तु अपने प्रति परीक्षण की कंडिका-40 में यह स्वीकार किया है कि, “उसने उक्त दोनों शवों का एक्स-रे नहीं किया था तथा आगे यह साक्षी यह भी कथन किया है कि, उसने पुलिस को ऐसी कोई सलाह नहीं दी थी कि, शवों के पोस्टमार्टम के पहले एक्स-रे कराया जाये। इस साक्षी ने पैरा-37 के अंतिम तीन लाईनों में यह भी स्वीकार किया है कि, मृतक रावलमल जैन को उक्त खरोंचे कैसे आई है, वह नहीं बता सकता। पुलिस ने उससे मृतक रावलमल जैन को आई खरोंचों के बारे में कोई क्वेरी नहीं की थी, साक्षी के उक्त कथन से भी संदिग्धता का जनम होता है कि, प्रकरण में अन्वेषण अधिकारी द्वारा स्वच्छ एवं निष्पक्ष अन्वेषण नहीं किया गया है। 44-- यह साक्षी पैरा-38 में यह भी स्वीकार किया है कि, दोनों पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कोई मोड ऑफ डेथ नहीं बताया है, इस साक्षी के प्रति परीक्षण की कंडिका-41 का अवलोकन करें तो साक्षी ने कथन किया है कि, “उसने मृतक रावलमल जैन के शरीर में फंसी दो गोलियों को नहीं निकाला था, नहीं निकालने का कारण नहीं बता सकता ।” साथ ही इस साक्षी ने अपने प्रति परीक्षण की कंडिका-39 में यह स्वीकार किया है कि, “उस पर दोनों शवों का पोस्टमार्टम करते समय कोई दबाव शीघ्र करने हेतु नहीं था ।” इसने अपने प्रति परीक्षण की कंडिका-54 में पास से मारने पर गोली प्रवेश करने के भाग जिगजेग जैसा होना एवं कंडिका-53 में लेसरेटेड 60 जैसा होना बताया है जबकि पैरा-55 में लेसरेटेड वुंड और जिगजेग वुंड॒ की प्रकृति को अलग होना बताया है तथा पैरा-56 में परीक्षण हेतु लाए गए कपड़े को शील बंद नहीं होने का कथन किया है जो कि, अभियोजन की कहानी को संदिग्ध बनाती है।

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03 A Explosive Substances Act 149 IPC 295 (a) IPC 302 IPC 304 IPC 307 IPC 34 IPC 354 (3) IPC 399 IPC. 201 IPC 402 IPC 428 IPC 437 IPC 498 (a) IPC 66 IT Act Aanand Math Abhishek Vaishnav Ajay Sahu Ajeet Kumar Rajbhanu Anticipatory bail Arun Thakur Awdhesh Singh Bail CGPSC Chaman Lal Sinha Civil Appeal D.K.Vaidya Dallirajhara Durg H.K.Tiwari HIGH COURT OF CHHATTISGARH Kauhi Lalit Joshi Mandir Trust Motor accident claim News Patan Rajkumar Rastogi Ravi Sharma Ravindra Singh Ravishankar Singh Sarvarakar SC Shantanu Kumar Deshlahare Shayara Bano Smita Ratnavat Temporary injunction Varsha Dongre VHP अजीत कुमार राजभानू अनिल पिल्लई आदेश-41 नियम-01 आनंद प्रकाश दीक्षित आयुध अधिनियम ऋषि कुमार बर्मन एस.के.फरहान एस.के.शर्मा कु.संघपुष्पा भतपहरी छ.ग.टोनही प्रताड़ना निवारण अधिनियम छत्‍तीसगढ़ राज्‍य विधिक सेवा प्राधिकरण जितेन्द्र कुमार जैन डी.एस.राजपूत दंतेवाड़ा दिलीप सुखदेव दुर्ग न्‍यायालय देवा देवांगन नीलम चंद सांखला पंकज कुमार जैन पी. रविन्दर बाबू प्रफुल्ल सोनवानी प्रशान्त बाजपेयी बृजेन्द्र कुमार शास्त्री भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम मुकेश गुप्ता मोटर दुर्घटना दावा राजेश श्रीवास्तव रायपुर रेवा खरे श्री एम.के. खान संतोष वर्मा संतोष शर्मा सत्‍येन्‍द्र कुमार साहू सरल कानूनी शिक्षा सुदर्शन महलवार स्थायी निषेधाज्ञा स्मिता रत्नावत हरे कृष्ण तिवारी