122- आरोपी सत्यन माधवन के बयान मेमोरेण्डम के आधार पर थाना सुपेला के क्षेत्राधिकार के अंडरब्रिज के खंभे के पास भूमि के नीचे से देसी कट्टा 315 बोर का, जिसके बैरल के अंदर कारतूस खोखा फंसा हुआ था, को जप्त किया गया है। इस संबंध में अ.सा.77 राकेश भट्ट ने अपने साक्ष्य की कंडिका 72 में यह स्वीकार किया है कि यह कहना सही है कि सुपेला थाना क्षेत्राधिकार में रेलवे के दो अंडरब्रिज हैं, यह कहना सही है कि प्रदर्श पी 71 के बयान मेमोरेण्डम में इस तथ्य का उल्लेख नहीं है कि उक्त दो अंडरब्रिज में से किस अंडरब्रिज के पास में आरोपी ने कट्टा जमीन में गाड़ना बताया था। अतः आरोपी सत्यन माधवन के विद्वान अधिवक्ता ने आरोपी की यह प्रतिरक्षा रखी है कि अ.सा.77 राकेश भट्ट ने उक्त कट्टे को अपनी सुविधा अनुसार के अंडरब्रिज के पास के जमीन के नीचे प्लांट किया है। इसके अतिरिक्त आरोपी सत्यन माधवन की यह भी प्रतिरक्षा है कि दोनों अंडरब्रिज खुली जगह है और वहां कोई भी आना जाना कर सकता है। अतः ऐसी स्थिति में आरोपी सत्यन माधवन से की गयी जप्ती संदेहास्पद हो जाती है एवं प्रमाणित नहीं होती है।
123- आरोपी सत्यन माधवन की उक्त दोनों प्रतिरक्षाएं स्वीकार योग्य नहीं है, क्योंकि जो कट्टा अंडरब्रिज के पास से बरामद किया गया है, वह आरोपी सत्यन माधवन की निशानदेही पर ही बरामद किया गया है। अर्थात आरोपी सत्यन माधवन ने ही अंडरब्रिज को बताया है, तभी अ.सा.77 राकेश भट्ट ने कट्टे की जप्ती की है। इसके अतिरिक्त खुले स्थान से जप्ती के संबंध में माननीय उच्चतम न्यायालय ने न्यायदृष्टांत 2010 LAWS (SC)-10-94 में भी खुले स्थान से बरामदगी के संबंध में अवलोकित किया है कि जो जप्तियां खुले स्थान से होती है, वह हमेशा संदेहास्पद नही होती है। यदि खुले स्थान से की गयी जप्तियों को हमेशा संदेहास्पद माना जावेगा, तो बहुत से अपराधी खुले स्थान में वस्तुओं को रखकर बच जावेंगे।
आरोपी प्रभाष सिंह के संबंध में
124- आरोपी प्रभाष सिंह का बयान मेमोरेण्डम उपपुलिस अधीक्षक, अ.सा.76 आर0के0 राय द्वारा अभिलिखित किया गया है। अ.सा. 76 आर0के0 राय ने अपने साक्ष्य की कंडिका 14 में कथन किया है कि उन्होंने दिनांक 24/07/05 को आरोपी प्रभाष सिंह को अभिरक्षा में लेकर गवाह गणेश कुमार एवं ईश्वरलाल के समक्ष पूछताछ कर मेमोरेण्डम कथन लेखबद्ध किया था, जो प्रदर्श पी 50 है, जिसमें आरोपी प्रभाष सिंह ने यह बताया था कि उसने कट्टे तथा चला हुआ कारतूस के खोखा को अपने घर की आलमारी में छिपाकर रखा है और मोटरसायकल हीरो होण्डा को घर में रखा है, चलो चलकर बरामद करा देगा। उसका मेमोरेण्डम बयान प्रदर्श पी 50 है जिसके स से स भाग पर उसके और द से द भाग पर आरोपी प्रभाष सिंह के व गवाहों के हस्ताक्षर है। इस साक्षी का अपने साक्ष्य की कंडिका 15 व 16 में कथन है कि दिनांक 24/07/05 को ही आरोपी प्रभाष सिंह से गवाह गणेश कुमार और ईश्वरलाल के समक्ष एक हीरोहोण्डा पैसन काले रंग की रजिस्टेंशन नंबर-सी.जी.-07-जी/3099 जप्त कर जप्तीपत्र प्रदर्श पी 53 तैयार किया था। उसके पश्चात् उन्होंने गवाह गणेश कुमार और ईश्वरलाल के समक्ष एक लोहे का कट्टा 315 बोर का, जिस पर लकड़ी की मूंठ लगी थी, मूंठ पर एक तरफ स्क्रू लगा था तथा एक 315 बोर का कारतूस का खाली खोखा जप्त कर जप्तीपत्र प्रदर्श पी 54 तैयार किया था जिसके स से स भाग पर उसके और द से द भाग में आरोपी प्रभाष सिंह के हस्ताक्षर है।
125- यह बात सही है कि प्रदर्श पी 50, पी 53 व पी 54 के दस्तावेजों में उल्लेखित मेमोरेण्डम बयान और जप्ती की कार्यवाही की पुष्टि अ.सा.17 गणेश कुमार देवदास और अ.सा.41 ईश्वरलाल गेन्डे ने अपने-अपने साक्ष्य में नहीं की है । अ.सा.17 गणेश कुमार देवदास एवं अ.सा.41 ईश्वरलाल गेन्डे ने अपने-अपने साक्ष्य में आरोपी प्रभाष सिंह को पहचानने से ही इंकार कर दिया है। लेकिन उक्त दोनों साक्षियों ने अपने-अपने साक्ष्य में आरोपी प्रभाष के बयान मेमोरेण्डम एवं बयान मेमोरेण्डम के आधार पर की गयी कट्टे व कारतूस की जप्ती की कार्यवाही की पुष्टि नही की है। अ.सा.17 गणेश कुमार देवदास एवं अ. सा.41 ईश्वरलाल गेन्डे ने जप्तीपत्र एवं मेमोरेण्डम बयान में अपने-अपने हस्ताक्षर को स्वीकार किया है। वैसे भी यह विधि की आवश्यकता नहीं है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत लिए गए कथन के आधार पर की गयी बरामदगी की पुष्टि स्वतंत्र साक्षियों द्वारा भी होनी चाहिए। आरोपीगण के विद्वान अधिवक्ता ने आरोपीगण के बयान मेमोरेण्डम एवं बयान मेमोरेण्डम के आधार पर की गयी जप्ती के संबंध में मुख्य रूप से सभी आरोपियों के लिए यही तर्क प्रस्तुत किया है कि उसकी पुष्टि स्वतंत्र साक्षियों द्वारा नहीं की गयी है। इस प्रकरण में जैसा कि इस निर्णय में विवेचित किया गया है, प्रकरण के प्रत्यक्षदर्शी साक्षी भी हैं और उन्होंने अपने-अपने साक्ष्य में मृतक महादेव महार की हत्या के संबंध में आरोपीगण के हाथों में रखे गए हथियार, कट्टा, दांव, चाकू, लाठी आदि की पुष्टि की है।
126- प्रकरण में सी.एफ.एस.एल. चंडीगढ़ के बैलेस्टिक एक्सपर्ट अ.सा.63 डॉ.पी.सिद्दम्बरी का भी साक्ष्य है, जिसकी विवेचना आगे इस निर्णय में की जावेगी, जिन्होंने मौके पर पड़े दो खाली खोखे सी-1 एवं सी-2 एवं मौके पर पड़े फायर्ड गोली बी-1, बी-2 और एल-1 की जिन्दा गोली को मिलान कर प्रदर्श पी 134 की रिपोर्ट दी है। अतः प्रकरण के प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों एवं अ.सा.63 डॉ. पी.सिद्दम्बरी की रिपोर्ट को दृष्टिगत रखते हुए यह महत्वहीन हो जाता है कि आरोपीगण के बयान मेमोरेण्डम और जप्ती की कार्यवाही स्वतंत्र साक्षियों ने प्रमाणित नहीं किया है। स्वतंत्र साक्षियों के साक्ष्य की आवश्यकता के संबंध में माननीय उच्चतम न्यायालय के न्यायदृष्टांत 2010 LAWS (SC)-1-94 की कंडिका -25 अवलोकनीय है, जिसमें माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह अवलोकित किया है कि:-
25- this court has held in larg number of cases that merely because the pansch witnesses have turned hostile is no ground to reject the evidence if the same is based on testimony of the investigating officer alone.CRL appeal No. 212 - DB of 2005 (O&M) Chandigarh Ompal Singh V/S The State of Chandigarh निर्णय दिनांक 03 जुलाई 2012 का कंडिका 23 अवलोकनीय है-
There is no such requirement of law that it is imperative to join an independent witness at the time of recovery under section 27 of the evidence Act. The recovery in pursuance of disclosure statement under section 27 of the evidence Act. Stands on a different footing then the recoveries made on search as envisaged under section 100 CRPC. In these view of the matter, the failure of PW- 17 Mehaboob Khan to support the ase of prosecution does not cause any dent in the testimonies of the official witnesses who have successfully with stood the test of cross examination, to which they were subjected.इस संबंध में माननीय छ.ग. उच्च न्यायालय का न्यायदृष्टांत प्रभाकर रेड्डी बनाम छ0ग0 राज्य 2011 क्रि.लॉ.जन. पेज 4650 का पैरा-23 भी अवलोकनीय है, जिसमें माननीय छ0ग0 उच्च न्यायालय ने चाकू की जप्ती और मेमोरेण्डम के गवाहों के द्वारा समर्थन नहीं किए जाने पर मात्र विवेचक के साक्ष्य के आधार पर चाकू की जप्ती को प्रमाणित माना था ।
127- इस संबंध में आरोपी प्रभाष सिंह के अधिवक्ता ने इस न्यायालय के समक्ष यह तर्क प्रस्तुत किया है कि प्रदर्श पी 54 में यह उल्लेख नहीं है कि आलमारी से छिपे हालत में बरामद हुआ। इस संबंध में अ.सा.76 आर0के0 राय ने अपने साक्ष्य की कंडिका 70 में कथन किया है कि कट्टा, कारतूस घर में कहां रखा था और कौन निकालकर दिया था, इसका उल्लेख प्रदर्श पी 54 के जप्तीपत्र में नहीं है। इसी प्रकार अ. सा.76 आर0के0 राय ने अपने साक्ष्य की कंडिका 69 में यह भी नहीं बताया है कि प्रभाष सिंह के घर में कितने कमरे हैं और कौन-कौन रहता है जो जप्तशुदा कट्टे का आरोपी प्रभाष सिंह के अनन्य आधिपत्य को प्रमाणित नहीं करती है। लेकिन आरोपी प्रभाष सिंह की यह प्रतिरक्षा भी स्वीकार योग्य नहीं है, क्योंकि जप्तीपत्र प्रदर्श पी 54 में ऐसा कुछ उल्लेख नहीं है कि आरोपी के घर की तलाशी ली गयी। अतः तलाशी के अभाव में यही माना जावेगा कि जप्तशुदा 315 बोर के कट्टे और कारतूस की बरामदगी आरोपी के घर से उसके द्वारा निकालकर प्रस्तुत करने पर की गयी है। जहां तक अनन्य आधिपत्य का प्रश्न है, तो बयान मेमोरेण्डम के आधार पर की गयी जप्ती के लिए अनन्य आधिपत्य का सिद्धांत लागू नहीं होता है, क्योंकि वह आरोपी के बताए अनुसार ही जप्त किया जाता है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत आरोपी का ज्ञान, कि अमुक वस्तु अमुक स्थान पर रखी है, सुसंगत होता है। अतः स्पष्ट है कि आरोपी प्रभाष सिंह से की गयी जप्ती के संबंध में मकान के अनन्य आधिपत्य का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता है।
आरोपी मंगल सिंह के संबंध में
128- उपपुलिस अधीक्षक अ.सा.76 आर0के0 राय का अपने साक्ष्य की कंडिका 33 में कथन है कि दिनांक 10/09/05 को आरोपी मंगल सिंह को अभिरक्षा में लेकर गवाहों के समक्ष पूछताछ कर प्रदर्श पी 111 का मेमोरेण्डम कथन लेखबद्ध किया था, जिसमें आरोपी ने बताया था कि उसने पिस्टल, कारतूस के चले हुए खोखे को अपने घर में पूजा के कमरे में गाड़ दिया है, चलो चलकर कट्टा, कारतू का खोखा बरामद करा देगा। उसका मेमोरेण्डम बयान प्रदर्श पी 111 है जिसके ब से ब भाग पर अ.सा.76 आर0के0राय एवं स से स भाग पर आरोपी मंगल सिंह के और अन्य स्थानों पर गवाहों के हस्ताक्षर है।
129- आरोपी मंगल सिंह के बयान मेमोरेण्डम के आधार पर जप्ती की कार्यवाही तत्कालीन थाना प्रभारी, थाना सुपेला अ.सा.77 राकेश भट्ट ने की है। अ.सा.77 राकेश भट्ट ने अपने साक्ष्य की कंडिका 16 में कथन किया है कि दिनांक 10/02/05 को उनके द्वारा आरोपी मंगल सिंह के मेमोरेण्डम कथन प्रदर्श पी 111 के आधार पर आरोपी मंगल सिंह के पेश करने पर पंच साक्षी मटारू उर्फ धीरज एवं नागेश के समक्ष आरोपी मंगलसिंह द्वारा अपने घर के पूजा के कमरे के कोने से खोदकर निकालकर पॉलिथिन में रखेएक लोहे का 9एमएम का पिस्टल लकड़ी का मूंठ लगा, मूंठ के दोनों तरफ दो-दो स्क्रू लगा हुआ, पिस्टल में स्लाइड, डेंगर, हेमर, मेगजीन केप लगा हुआ है, स्लाइड के दोनों तरफ अंग्रेजी में अस्पष्ट लिखा हुआ है तथा 9 एमएम कारतूस का खोखा पीतल का जिसके पेंदे में केएफ 95 9एमएम 2एल लिखा हुआ है, बीच का हिस्सा पेंदे का अंदर दबा हुआ है, गवाहों के समक्ष जप्त किया था, जिसका जप्तीपत्र प्रदर्श पी 112 है जिसके ब से ब भाग पर उसके व स से स भाग पर आरोपी मंगल सिंह के हस्ताक्षर है।
130- अ.सा.76 आर0के0 राय ने आरोपी मंगल सिंह का बयान मेमोरेण्डम दिनांक 10/09/05 को प्रातः 9.15 बजे लिया था, आरोपी मंगल सिंह से जप्ती दिनांक 10/09/05 को दोपहर 12.10 बजे की गयी है तथा बयान मेमोरेण्डम प्रदर्श पी 111 एवं जप्ती की कार्यवाही प्रदर्श पी 112 को अ.सा.45 धीरज शर्मा ने अपने साक्ष्य में प्रमाणित किया है। अ.सा.45 धीरज शर्मा ने अपने साक्ष्य की कंडिका 1 में कथन किया है कि उसके सामने आरोपी मंगल सिंह ने पुलिस को बताया कि उसने पिस्टल को अपने घर के पूजा घर में गाड़कर रखा है, तब पुलिस द्वारा आरोपी मंगल के मेमोरेण्डम की लिखापढ़ी की गयी जो प्रदर्श पी 111 है, जिस पर अ से अ भाग पर उसके हस्ताक्षर है, उसके बाद पुलिस वाले आरोपी मंगल सिंह को लेकर उसके घर गए, जहां आरोपी मंगल ने अपने पूजा घर से जमीन को खोदकर लोहे का पिस्टल लकड़ी का मूंठ लगा हुआ, खोखा और कारतूस की जप्ती कराया था, जिसका जप्तीपत्र प्रदर्श पी 112 है, जिसके अ से अ भाग पर उसके हस्ताक्षर है। इस साक्षी का प्रतिपरीक्षण आरोपी मंगल सिंह के विद्वान अधिवक्ता द्वारा किया गया है, जिससे केवल दो ही सुझाव दिया गया है, जिन्हें अ.सा.45 धीरज शर्मा ने अपने साक्ष्य की कंडिका 25 में गलत होने का कथन किया है।
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Write commentsमहत्वपूर्ण सूचना- इस ब्लॉग में उपलब्ध जिला न्यायालयों के न्याय निर्णय https://services.ecourts.gov.in से ली गई है। पीडीएफ रूप में उपलब्ध निर्णयों को रूपांतरित कर टेक्स्ट डेटा बनाने में पूरी सावधानी बरती गई है, फिर भी ब्लॉग मॉडरेटर पाठकों से यह अनुरोध करता है कि इस ब्लॉग में प्रकाशित न्याय निर्णयों की मूल प्रति को ही संदर्भ के रूप में स्वीकार करें। यहां उपलब्ध समस्त सामग्री बहुजन हिताय के उद्देश्य से ज्ञान के प्रसार हेतु प्रकाशित किया गया है जिसका कोई व्यावसायिक उद्देश्य नहीं है।
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