अभियोजन का मामला संक्षेप में इस प्रकार है कि, प्रार्थिया कुमारी परमेश्वरी पैकरा ने ए.सी.बी.कार्यालय रायपुर में उपस्थित होकर पुलिस अधीक्षक एंटी करप्शन ब्युरो रायपुर के समक्ष इस आशय का लिखित आवेदन प्रस्तुत की थी कि उसकी नियुक्ति जनपद पंचायत बिलाईगढ में शिक्षाकर्मी वर्ग 03 के पद पर नियुक्त हुई है,आर०के० देवांगन बी.ई.ओ. बिलाईगढ ने कतर्व्य स्थल एवं वेतन निकालने के लिए 5000/-(पॉच हजार रूपये) रिश्वत की मांग कर रहा है,उक्त शिकायत पर एस॰०पी० के द्वारा कार्यवाही किये जाने हेतु निरीक्षक सहदेव ठाकुर को निर्देशित किया जिस पर निरीक्षक सहदेव ठाकुर के द्वारा प्रार्थिया से चर्चा के पश्चात आरोपी द्वारा लेनदेन की बात रिकार्ड करने हेतु एक वायंस रिकार्डर प्रदान किया उस वायस रिकार्डर में प्रार्थिया ने आरोपी से लेनदेन की बात कर वापस कर निरीक्षक को सूचित किया जिस पर ए०सी०बी० कार्यालय के द्वारा विधिवत ट्रेप दल का गठन कर आरोपी रोहित कुमार देवांगन के विरूद्घ कार्यवाही किये जाने हेतु अग्रसर हुए और दिनांक 19.02.2008 को आरोपी से प्रार्थिया परमेश्वरी पैकरा से रिश्वत लेते रंगे हाथ पकडा उसके पश्चात कार्यवाही पूर्ण कर विधि एवं विधायी कार्य विभाग कार्यालय रायपुर से आरोपी के विरूद्घ अभियोजन की स्वीकृति आदेश प्राप्त कर अभियोगपत्र न्यायायलय के समक्ष प्रस्तुत किया ।
न्यायालय:-विशेष न्यायाधीश (ए.सी.बी. )एवं प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश
बलौदाबाजार,जिला-बलौदाबाजार छ.ग.
(पीठासीन अधिकारी-बृजेन्द्र कुमार शास्त्री)
विशेष दांडिक प्रक्ररण (भ्रष्टाचार निवा.अधि.) 10/ 13
छ.ग.राज्य
द्वारा राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण/ एंटी करप्शन ब्यूरो
रायपुर, (छ.ग.) - - - - - अभियोजन
11 वि रू द्व //-
रोहित कुमार देवांगन पिता सी.आर.देवांगन,उम्र 58 वर्ष
खण्ड शिक्षा अधिकारी (बी.ई.ओ.)बिलाईगढ
जिला-रायपुर-अब-बलौदाबाजार-भाटापारा, (छ.ग.) ------ अभियुक्त
राज्य द्वारा श्री अमिय अग्रवाल अतिरिक्त लोक अभियोजक।
आरोपी की ओर से श्री दिनेश यदु अधिवक्ता उपस्थित।
-// नि र्ण य //-
(आज दिनांक 06/दिसम्बर/2016 को घोषित)
01/- आरोपी रोहित कुमार देवांगन पिता सी०आर०देवांगन पर यह का आरोप है कि, बी.ई.ओ.के पद पर रहते हुए लोक सेवक होते हुए प्रार्थिया कुमारी परमेश्वरी पैकरा से शिक्षाकर्मी वर्ग 03 की नियुक्ति होने पर उससे कार्यभार ग्रहण कराने व वेतन निकलवाने के एवज में 5000/-रूपये रिश्वत की मांग किया और वैध पारिश्रमिक से भिन्न 5000/-रूपये (पॉच हजार रूपये) रिश्वत प्राप्त किया इस प्रकार आरोपी ने यअपने पद का दुरूपयोग कर आपराधिक कदाचरण कर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा - 07 एवं धारा 13(2)सहपठित धारा 13(1) (डी) के तहत अपराध कारित किया है।
02/- आरोपी रोहित कुमार देवांगन द्वारा अपने कथन अन्तर्गत यह स्वीकृत किया है कि, वर्ष 2007 में विकास खंड शिक्षा अधिकारी के पद पर बिलाईगढ में पदस्थ था तथा यह भी स्वीकृत है कि,शिक्षा कर्मी वर्ग 03 के पद पर कुमारी परमेश्वरी पैकरा का चयन हुआ था।
03/- अभियोजन का मामला संक्षेप में इस प्रकार है कि, प्रार्थिया कुमारी परमेश्वरी पैकरा ने ए.सी.बी.कार्यालय रायपुर में उपस्थित होकर पुलिस अधीक्षक एंटी करप्शन ब्युरो रायपुर के समक्ष इस आशय का लिखित आवेदन प्रस्तुत की थी कि उसकी नियुक्ति जनपद पंचायत बिलाईगढ में शिक्षाकर्मी वर्ग 03 के पद पर नियुक्त हुई है,आर०के० देवांगन बी.ई.ओ. बिलाईगढ ने कतर्व्य स्थल एवं वेतन निकालने के लिए 5000/-(पॉच हजार रूपये) रिश्वत की मांग कर रहा है,उक्त शिकायत पर एस॰०पी० के द्वारा कार्यवाही किये जाने हेतु निरीक्षक सहदेव ठाकुर को निर्देशित किया जिस पर निरीक्षक सहदेव ठाकुर के द्वारा प्रार्थिया से चर्चा के पश्चात आरोपी द्वारा लेनदेन की बात रिकार्ड करने हेतु एक वायंस रिकार्डर प्रदान किया उस वायस रिकार्डर में प्रार्थिया ने आरोपी से लेनदेन की बात कर वापस कर निरीक्षक को सूचित किया जिस पर ए०सी०बी० कार्यालय के द्वारा विधिवत ट्रेप दल का गठन कर आरोपी रोहित कुमार देवांगन के विरूद्घ कार्यवाही किये जाने हेतु अग्रसर हुए और दिनांक 19.02.2008 को आरोपी से प्रार्थिया परमेश्वरी पैकरा से रिश्वत लेते रंगे हाथ पकडा उसके पश्चात कार्यवाही पूर्ण कर विधि एवं विधायी कार्य विभाग कार्यालय रायपुर से आरोपी के विरूद्घ अभियोजन की स्वीकृति आदेश प्राप्त कर अभियोगपत्र न्यायायलय के समक्ष प्रस्तुत किया ।
04 / - आरोपी के विरूद्घ अभियोगपत्र प्राप्त होने पर आरोपी के विरूद्घ आरोप पूर्व तर्क सुना गया, आरोपी के विरूद्घ प्रथम दृष्टया मामला पाये जाने पर आरोपी के विरूद्घ अन्तर्गत धारा 07 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं धारा 13(2)सहपठित धारा 13(1) डी, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मेरे पूर्वाधिकारी द्वारा आरोप विरचित किया गया आरोपी का अभिवाक
लिया गया, आरोपी ने आरोप अस्वीकार किया एवं विचारण का दावा किया जिस पर साक्ष्यांकन की कार्यवाही प्रारंभ की गयी।
05/- आरोपी को प्रतिरक्षा में प्रविष्ट कराये जाने पर आरोपी ने बचाव में नेहरू महेश्वरी का परीक्षण कराया एवं आरोपी स्वयं ने बचाव के रूप में स्वयं का परीक्षण अन्तर्गत धारा 315 द०प्र०सं० के तहत कराया गया है।
06 /- न्यायालय के सक्षम निम्न विचारणीय प्रश्न है :-
(1) क्या अभियोजन पक्ष द्वारा आरोपी रोहित कुमार देवांगन के विरूद्घ अभियोजन हेतु शासन से स्वीकृति प्राप्त की गयी है ?
(2) क्या आरोपी रोहित कुमार देवांगन ने प्रार्थिया कुमारी परमेश्वरी पैकरा से शिक्षाकर्मी वर्ग 03 के पद पर कार्यभार ग्रहण कराने एवं वेतन निकालने के एवज में (पॉच हजार रूपये) रिश्वत की मांग किया?
(3) क्या आरोपी रोहित कुमार देवांगन ने कार्यभार ग्रहण कराने एवं वेतन निकालने के एवंज में 5000/- (पॉच हजार रूपये) प्रतिग्रहीत किया ?
(4) दोष सिद्धि अथवा दोषमुक्ति ?
-: निष्कर्ष एवं निष्कर्ष के कारण :-
विचारणीय प्रश्न क्रमांक 01 :-
07 / - सर्वप्रथम विचारणीय प्रश्न यह है कि, क्या अभियोजन के द्वारा आरोपी लोक सेवक रोहित कुमार देवांगन के विरूद्घ अभियोग चलाने हेतु विधवत स्वीकृति प्राप्त की गयी थी ? तत्संबंध में अभियोजन साक्षी मामले का विवेचक सहदेव ठाकुर (अ०सा० 12) के द्वारा न्यायालय के समक्ष बताया है कि, पुलिस अधीक्षक ए.सी.बी. के माध्यम सये छ०ग०शासन विधि एवं विधायी कार्य विभाग रायपुर से आरोपी के विरूद्घ कार्यवाही करने हेतु अनुमति चाही गयी थी जिस पर छ०ग०शासन विधि एवं विधायी कार्य विभाग रायपुर के द्वारा अपने ज्ञापन के साथ आरोपी के विरूद्घ कार्यवाही किये जाने हेतु अभियोजन स्वीकृति आदेश प्रदान किया था उक्त ज्ञापन प्र०पी० 10 है तथा स्वीकृति आदेश प्र०पी० 11 है। अभियोजन स्वीकृति आदेश के साथ अनुसूची ''अ'' एवं 'ब ' संलग्न किये गये हैं, अनुसूचि''अ'' प्रकरण में पेश दस्तावेज एवं अनुसूची ''ब'' प्रकरण में आवश्यक गवाहों का विवरण दिया गया है उक्त अनुसूची''अ'' प्र०पी० 11 ए एवं अनुसूची''ब'' प्र०पी० 11 बी में विधि विधायी कार्य विभाग के डिलिंग क्लर्क अरूण कुमार मिश्रा (अ०सा० 05) को परीक्षित कराया है जिसने अपने अभिसाक्ष्य में बताया है कि, विधि एवं विधायी विभाग से दिनांक 30.03.2009 को तत्कालीन अतिरिक्त सचिव श्री ए.के.सामंत राय के हस्ताक्षर से अभियोजन स्वीकृति जारी किया गया है एवं अभियोजन स्वीकृति आदेश जारी करने के संबंध में पत्र पुलिस अधीक्षक ए.सी.बी. का कव्हरिंग लकेटर क्रमांक 2477 / 21 क्रं(अभि.)/छ.ग.2009 रायपुर दिनांक 30.03.2009 के द्वारा स्वीकृति आदेश की दो प्रतियों के साथ भेजी गयी थी।
इन साक्षियों के साक्ष्य एवं प्रकरण में पेश प्र.पी. 10 एवं 11 से यह स्पष्ट होता है कि अभियोजन पक्ष के द्वारा आरोपी के विरूद्घ अभियोजन हेतु पूर्व स्वीकृति प्राप्त की गयी थी। साक्ष्य अधिनियम की धारा 114(ग) के अधीन यह उपधारणा की जाती है कि, शासकीय कार्य नियमित तौर पर सम्पादित किये गये होंगे। प्रश्नगत कानूनी उपधारणा को खंडन करने का भार अभियुक्त पर अधिक होता है। जब एक बार वह कारित कर दिया जाता है तब यह स्थापित करने के लिए आवश्यक अभिलेख को प्रस्तुत करने का कर्तव्य है कि स्वविवेक का प्रयोग करने के पश्चात् और उसके प्रतिफल के अध्याधीन रहते हुए तथा मंजूरी को स्वीकृति प्रदान करने एवं अस्वीकृत करने का आदेश समुचित प्राधिकारी द्वारा पारित किया गया । मंजूरी का आदेश विशिष्ट तौर पर इस बात का उल्लेख करता है कि केस डायरी तथा साक्षियों के कथन को सम्मिलित करने वाले महत्वपूर्ण कागजातों पर समुचित प्राधिकारी द्वारा उचित तौर पर विचार किया गया। केस डायरी पुलिस अन्वेषण का एक पूर्ण अभिलेख है और यह नहीं कहा जा सकता है कि,मंजूरी प्रदान करने वाले प्राधिकारी द्वारा स्वविवेक का प्रयोग नहीं किया गया । इस प्रकार यह स्पष्ट है कि, अभियोजनपक्ष के द्वारा आरोपी रोहित कुमार देवांगन के विरूद्घ अभियोजन हेतु शासन से स्वीकृति प्राप्त की गयी थी। उपरोक्तानुसार विचारणीय प्रश्न क्रमांक 01 का निष्कर्ष यह दिया जाता है कि, अभियोजन द्वारा आरोपी रोहित कुमार देवांगन के विरूद्घ अभियोजन हेतु शासन से स्वीकृति प्राप्त की गयी थी।
विचारणीय प्रश्न क्रमांक 02:-
08/- अभियोजन साक्षी मामले का विवेचक सहदेव ठाकुर(अ.सा.12) ने अपने अभिसाक्ष्य में बताया है कि, दिनांक 05.02.2008 को पुलिस अधीक्षक एंटी करप्शन ब्यूरों के द्वारा प्रार्थिया परमेश्वरी के लिखित शिकायत पर कार्यवाही करने हेतु निर्देशित किया गया था जो लिखित शिकायत पत्र प्रदर्श पी-26 है। प्रार्थिया के लिखित शिकायत प्राप्त होने पर प्रार्थिया से चर्चा करने के पश्चात् रिश्वत की लेन देन की बातचीत रिकार्ड करने के लिए दो गवाहों के समक्ष दिनांक 05.02.2008 को एक वायस रिकार्डर प्रार्थिया को प्रदान किया था जिसका पंचनामा तैयार किया था जो प्रदर्श पी०-27 है। दिनांक 18.02.2008 को प्रार्थिया ने उसे मोबाईल से बतायी कि आरोपी आर.के.देवांगन से रिश्वत लेन देन के संबंध में बातचीत कर रिकार्डिंग कर ली है। आरोपी के द्वारा यह कहा गया है कि जल्दी से व्यवस्था करके जितना देने चाहते हो उतना दे दो। उक्त बातचीत को इस साक्षी के द्वारा पुलिस अधीक्षक एंटी करप्शन ब्यूरों को अवगत कराया तथा अग्रिम कार्यवाही हेतु कलेक्टर रायपुर को पत्र दो पंचसाक्षी उपलब्ध कराये जाने हेतु लिखा गया। दिनांक 18.02.2008 को चार बजे शाम को ए.सी.बी. कार्यालय में पंचसाक्षी उपस्थित हुए तथा जिन्हें 19.02.2008 को सुबह 4.00 बजे ए.सी.बी. कार्यालय में उपस्थित होने के लिए पाबंद किया गया तथा कार्यालय के स्टाफ को भी दूसरे दिन सुबह 4.00 बजे उपस्थित होने के लिए पुलिस अधीक्षक के द्वारा निर्देशित किया गया। दिनांक 19.02.2008 को सुबह 4.00 बजे पंचसाक्षी और सभी स्टाप उपस्थित हुए। पंचसाक्षी और स्टाप का एक दूसरे से परिचय कराया गया। और प्रार्थिया से चर्चा के अनुसार शिवरीनारायण के लिए रवाना हो गये। शिवरीनारायण के रेस्टहाउस के तिराहा के पास प्रार्थिया मिली। जिन्हें साथ में लेकर पी.डब्ल्यू डी. रेस्टहाउस शिवरीनारायण में गए। प्रार्थिया का परिचय पंचसाक्षी एवं स्टाफ से कराया गया तथा प्रार्थिया की शिकायत के संबंध में पंचसाक्षी को बताया गया और प्रार्थिया को पूर्व में जो माईक्रो कैसेट रिकार्डर जो दिया गया था,उस रिकार्ड को प्रार्थिया ने प्रस्तुत किया गया जिसे पंचसाक्षियों ने सुना इस पर प्रार्थिया ने एक द्वितीय शिकायत पत्र लिखित में प्रस्तुत किया जो प्रदर्श पी- 12 है जिस पर ट्रेप दल के प्रभारी प्रमोद नायडू के द्वारा कार्यवाही करने हेतु टीप लिखा किया गया, पंचसाक्षियों ने प्रार्थिया के शिकायत का अवलोकन कर एवं पढकर शिकायत के संबंध में प्रार्थिया से पूछताछ करने के पश्चात् कार्यवाही करने हेतु टीप अंकित किया। तब प्रार्थिया की लिखित शिकायत पर धारा 7 पी.सी.एक्ट 1988 का देहाती नालसी पंजीबद्ध की गयी। प्रार्थिया के द्वारा प्रस्तुत टेप रिकार्डर को सुनने के पश्चात् उसका लिप्यांतरण किया गया, कैसेट का डबिंग कर मूल कैसेट को जप्त किया गया और उक्त लिप्यांतरण प्रदर्श पी-13 है। इस साक्षी के द्वारा प्रदर्श पी० 13 को प्रमाणित किया गया है और कैसेट प्रदर्श पी०-14 को भी प्रमाणित किया गया है।
09/- अभियोजनसाक्षी प्रार्थीया कुमारी परमेश्वरी पैकरा (अ०सा०-07) ने भी निरीक्षक सहदेव ठाकुर (अ०सा०12) के कथनों का समर्थन करते हुए कथन की है कि, दिसम्बर 2007 को ए.सी.बी.कार्यालय रायपुर आकर आरोपी के विरूद्घ शिकायत पेश किया था लिखित शिकायत प्र०पी० 26 है जिस पर ए०सी०बी० वाले एक टेप रिकार्डर में नया कैसेट और सेल लगा कर दिया और चालू और बंद करने की विधि बतायी गयी थी और उसे आरोपी रोहित देवांगन के पास रिश्वती लेनदेन के संबंध में बातचीत को रिकार्ड कर वापस लाने को कहा था। तब आरोपी रोहित देवांगन के पास गया था और रोहित देवांगन रिश्वत लेने के संबंध में बातचीत को रिकार्ड की थी तब रोहित देवांगन ने उसे कहा था कि, जितना जल्दी हो सके व्यवस्था करके दे देना और उक्त बात टेलीफोन के जरिये ए.सी.बी. वालों को बतायी थी। इस साक्षी के द्वारा यह भी बताया गया है कि, वह फरवरी 2008 को सुबह तिराहे के पास पहुंच गयी थोडी देर बाद एक सुमों में ए०सी०बी० वाले के साथ शिवरीनारायण रेस्टहाउस में गयी और वहां ए०सी०बी० वाले ने एक-दूसरे का परिचय कराया और उसका परिचय लिया गया। उसके बाद उसने दूसरा आवेदन प्र ०पी० 12 दिया था उस शिकायत पत्र के संबंध में पूछताछ किया था और फिर टीप भी अंकित किया गया था। ए.सी.बी.वालों ने पूर्व में दिये गये टेप रिकार्डर को चालू कर बातचीत को सुने थे और उसका लिप्यांतरण भी किया था। फिर टेप रिकार्डर में लगे कैसेट ए०सी०बी०वाले उससे जप्त किये थे।
10/- अभियोजन साक्षी धनसिंग चन्द्राकर(अ०सा० 6) ने प्रार्थिया
के द्वारा प्रस्तुत द्वितीय शिकायत को प्रमाणित किया है एवं उस पर उसके द्वारा
लिखे गये टीप को भी प्रमाणित करते हुए कथन किया है कि, जब यह लोग
शासकीय वाहन से कसडोल तिराहा पहुंचे वहां पर एक लडकी मिली जिसे उसी
वाहन में बैठाकर शिवरीनारायण रेस्टहाउस गये वहां एक कक्ष को खुलवा कर बैठे
तब निरीक्षक ने लडकी से परिचय कराया था वह परमेश्वरी पैकरा थी और उसने
शिकायत के बारे में बतायी थी परमेश्वरी पैकरा ने टेप रिकार्डर प्रस्तुत किया था
जिसे सुने तथा एक लिखित शिकायत प्रस्तुत किया था जिसको अवलोकन करने
के लिए दिया था तब उसने प्रार्थिया से पूछताछ कर चर्चा किये और शिकायत
पत्र पढने के बाद उसने आर०एस०सेन उस पर टीप अंकित किये। इस प्रकार
इस साक्षी के द्वारा प्र०पी० 12 को प्रमाणित किया है। इसी साक्षी के द्वारा आगे
यह भी बताया गया है कि, उसके समक्ष प्रार्थिया के द्वारा प्रस्तुत टेप रिकार्डर से
लगे कैसेट के आवाज का लिप्यांतरण उसके समक्ष किया गया था जिसको उसने सुना था ।
11/- दूसरे पंच साक्षी रघुवीरशरण सेन (अ०सा० 08 )के द्वारा भी
लिप्यांतरण को प्रमाणित करते हुए यह बताया गया है कि,पीडिता का आवेदन एवं
टेप रिकार्ड को सुना गया था और उसका लिप्यांतरण भी किया गया था। इस
प्रकार दोनों ही पंच साक्षियों के द्वारा प्रार्थिया के द्वारा प्रस्तुत कैसेट की आवाज
का लिप्यांतरण को प्रमाणित किया गया है उक्त लिप्यांतरण का अवलोकन करने
से सारांश यह प्रकट होता है कि, आरोपी के द्वारा प्रार्थिया से रिश्वत के रूप में
कोई स्पष्ट राशि का कथन नहीं करते हुए केवल यह कहा गया है कि,जो भी हो वह
दे देना और किसी को मत बताना।
12/- लिप्यांतरण प्र०पी० 12 से यह स्पष्ट होता है कि, आरोपी
के द्वारा प्रार्थिया से रिश्वत की मांग तो की गयी थी किन्तु यह स्पष्टत: नहीं
बताया गया है कि, कूल कितनी राशि चाहता है किन्तु पंच साक्षियों के साक्ष्य एवं
लिप्यांतरण से स्पष्ट है कि आरोपी के द्वारा रिश्वत की मांग की गयी थी।
13/- पंच साक्षियों एवं विवेचक का बचाव पक्ष की ओर से लंबा
प्रतिपरीक्षण किया गया है किन्तु उक्त प्रतिपरीक्षण से आरोपी के द्वारा प्रार्थिया से
रिश्वत की मांग करने का खंडन नहीं होता है।
14/- आरोपी की ओर से तर्क किया गया है कि, टेप की आवाज
अस्पष्ट है और मांग का आशय प्रमाणित नहीं है तथा साक्षी अभियोजन का समर्थन
नही करते हैं। समर्थन में आरोपी की ओर से न्यायनिर्णयन् 201501%)१%ए३२-
(८5 एभाकतं २३० 53%शाता' 0५ का अवलंब लिया गया है जिसमें यह अभिनिर्धारित किया गया है कि, भ्रष्टाचार निवारण
अधिनियम-1988,धारा 13(1),13(2),7-अभियोजन ने टेप रिकार्डर की साक्ष्य
संस्थित की, किन्तु उसकी अनुलिपि से यह दर्शित होता है कि रिश्वत की
माँग की कोई साक्ष्य नहीं थी-मौखिक साक्ष्य विश्वसनीय नहीं है-रिश्वत की
मांग के बारे में कोई अकाट्य एवं विश्वसनीय साक्ष्य नहीं-शिकायतकर्ता एवं
अ.सा.01 (सहायक कर अधिकारी) के बयान के मध्य विसिंगति-
एक अन्य न्याय निर्णयन् 2011(1)€0.८-1..२.%. 422 1097198%
59ठ्ठा १9०8 ९५. 510९ ग (9058 ^)[)928 0
663 ग 2001 28,2011 का अवलंब लिया गया है जिसमें यह
अभिनिर्धारित किया गया है कि,भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम-1988,धारा 7,
13(1)(घ) तथा 13(2)-तथा 20-परिवादी के विरूद्घ जारी नोटिस के
निस्तारण के लिए 1000/-रूपये रिश्वत लेने के लिए -कृषि उपज मंडी के
सहायक उप-निरीक्षक के विरूद्घ परिवाद-विचारण न्यायालय ने अभियुक्त
सहायकउप-निरीक्षक को धारा 7, 13(1)(घ) तथा 13(2)-के अधीन दोषसिद्घ
किया - अपील में उच्च न्यायालय ने अभिलेख पर साक्ष्य का परीक्षण किया
तथा रिश्वत के मामले में साक्ष्य के मूल्यांकन की विधि को लागू कर, पाया
कि परिवादी का साक्ष्य ही अभियोजन पक्ष कथन का समर्थन नही कर रहा
था -रिश्वत की मांग के संबंध में साक्ष्य जिसको टेप रिकार्डर में अभिलिखित
किया गया था स्पष्ट तथा श्रव्य नहीं था-उसकी आवाज में बहुत अधिक
गडबडी थी-उस अभिलिखित प्रतिलेखन के तैयार करने के पंच साक्षी
इसकी अन्तर्वस्तु कोइसकी गडबडी तथा अस्पष्ट आवाज के कारण साबित
करने में विफल हुए-जैसा विधि द्वारा अपेक्षित धन को लेने का साक्ष्य भी सिद्घ
नहीं हुआ-इसके अलावा भी, अभियुक्त वह अधिकारी नही था जो नोटिस का
निस्तारण कर सके- दूसरी ओर यह अविवादित था कि पिछले तीन वर्षों से
अपनी अनुज्ञप्ति का नवीनीकरण करवाए बिना,परिवादी मण्डी में क्रय विक्रय
का अवैध व्यापार कर रहा था-अत: उसको नोटिस जारी किया गया था
-उसके पास अभियुक्त को फंसाने का हेतु था -रिश्वत की राशि के भुगतान
तथा बरामदगी के सबूत के अभाव में, धारा 20,जो अपराध की उपधारणा से
सबंधित है, भी आकर्षित नहीं होती है-ऐसे मामलों में सबूत के लिए विधिक
अपेक्षा को दोहराते हुए तथा सविस्तार प्रतिपादित करते हुए, उच्च
न्यायालय ने अभियुक्त को यह अभिनिर्धारित करते हुए दोषमुक्त किया कि
विचारण न्यायालय ने उसको गलत ढंग से दोषसिद्ध किया था।
इस न्याय निर्णयन में टेप रिकार्डर के आवाज के संबंध में बताया
गया है इस विचारणीय मामले में टेप की आवाज स्पष्ट रूप से लिप्यांतरित है
जिसमें किसी प्रकार की कोई न समझने की बात नहीं है इसलिए यह न्याय
निर्णयन इस मामले में अवलंबनीय नहीं है।
15/- आरोपी की ओर से किये गये उक्त तर्क में कोई बल नहीं है
क्योंकि सर्वप्रथम तो यह धारा 07 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं धारा
13(2)सहपठित धारा 13(1) डी, के लिए आशय को प्रमाणित किये जाने
की आवश्यकता नहीं है धारा 07 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं धारा
13(2)सहपठित धारा 13(1) डी, के तहत केवल यह देखा जाना है कि क्या
आरोपी के द्वारा रिश्वत की मांग की गयी एवं प्रतिग्रहण किया गया अथवा नहीं,
साक्षियों के साक्ष्य में किसी प्रकार का कोई विरोधाभास नहीं है और इन दोनों
पंच साक्षियों के द्वारा जो कि स्वतंत्र साक्षी है इसके द्वारा लिप्यांतरण का पूरी
तरह से समर्थन किया गया है जहां अस्पष्ट होने का कथन है स्वाभाविक है कि
बातचीत के दौरान बातचीत जो कि छूपाव के रूप में रिकार्ड की जाती है
निश्चित ही कुछ ऐसे शब्द होंगे जो अस्पष्ट होगे ही। इस प्रकार बचाव पक्ष की
ओर से प्रस्तुत तर्क में कोई बल नहीं है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि, उपरोक्त
साक्ष्य अनुसार यह स्पष्ट है कि, आरोपी के द्वारा प्रार्थिया से रिश्वत की मांग की
गयी थी।
विचारणीय प्रश्न क्रमांक 03:-
16/- अभियोजन साक्षी विवेचक सहदेव ठाकुर(अ०सा० 12) ने
अपने अभिसाक्ष्य में बताया है कि, प्रार्थिया के द्वारा रिश्वत में देने के लिए पांच
हजार रूपया, पांच-पांच सौ रूपये के दस नोट प्रस्तुत किया गया जिसे
पंचसाक्षी आर.एस.सेन ने अपने हाथ में प्राप्त कर गिनती किया और नोटों के
नंबरों को प्रारंभिक कार्यवाही पंचनामा में दर्ज करवाया। तत्पश्चात् उन पांच
हजार रूपए को सैनिक पुरूषोत्तम वर्मा को दिलवाया गया, पुरूषोत्तम वर्मा ने
इन नोटों पर फिनाफथलीन पावडर की हल्की परत लगाया और फिनाफथलीन
पावडर लगाने के बाद नोटों को प्रार्थिया के बैग की तलाशी के पश्चात् बैग में
सावधानी पूर्वक रखवाया गया। प्रार्थिया तथा प्रार्थिया की जामा तलाशी प्रदर्श
पी- 15 है जिसे इस साक्षी ने प्रमाणित किया है। प्रार्थिया को हिदायत दी गयी
कि रिश्वती रकम को आरोपी को देने के पूर्व हाथ न मिलाए तथा आरोपी द्वारा
रिश्वत मांग किये जाने पर ही रिश्वती रकम को आरोपी को दे तथा आरोपी से
रिश्वत देने के पहले या बाद में हाथ न मिलाए तथा यह देखने का भी प्रयास करे
कि रिश्वती रकम को आरोपी कहां पर रखता है। रिश्वत देने के पश्चात् बाहर
निकलकर, सिर पर हाथ फेरकर ट्रेप दल को ईशारा करे। इसके पश्चात् प्रदर्शन
घोल की कार्यवाही तैयार किया गया और आरक्षक धनीराम भगत ने एक साफ
कांच की गिलास में साफ पानी लेकर सोडियम कार्बोनेट पावडर का जलीय घोल
बनाया गया जिसमें सैनिक पुरूषोत्तम को छोडकर समस्त टेप दल के सदस्यों के
हाथों की उंगलियों को डूबाया गया तो घोल रंगहीन रहा इसमें किसी प्रकार का
परिवर्तन नही हुआ उस घोल की आवश्यकता नही होने पर पंचसाक्षियों और
प्रार्थिया को दिखाकर फेका गया। उसके पश्चात पुन: आरक्षक धनीराम भगत ने
एक साफ कांच की गिलास में साफ पानी लेकर सोडियम कार्बोनेट पावडर का
जलीय घोल बनाया गया, उस घोल में फिनाफथलीन पावडर लगाने वाले
सैनिक पुरूषोत्तम वर्मा के दोनो हाथों की उंगलियों को धुलवाया गया तो घोल
का रंग परिवर्तित होकर गुलाबी हो गया। इस गुलाबी घोल को पंचसाक्षी और
प्रार्थी को दिखाकर बताया गया कि आरोपी रिश्वती रकम को प्राप्त करता है तो
उसके हाथ के उंगलियों को धुलवाने पर इसी तरह सोडियम कार्बोनेट का घोल
परिवर्तित होकर रंगीन हो जाएगा। इस घोल को एक साफ कांच की शीशी में
रखकर सीलबंद किया गया। उसके पश्चात सैनिक पुरूषोत्तम वर्मा ने
फिनाफथलीन पावडर का नमूना पुडिया तैयार किया जिसे एक लिफाफा में
रखकर सीलबंद किया गया। आरक्षक धनीराम भगत ने नमूना पुडिया उपयोग
किए जाने वाले पीतल के एसीबी सील का एक नमूना कोरा कागज में तैयार
किया। दोंनो को पृथक पृथक लिफाफा में रखकर सीलबंद किया गया। धनीराम
भगत से सोडियम कार्बोनेट एवं सील के नमूने को जप्त किया गया एवं गुलाबी
घोल की सीलबंद शीशीयां सैनिक द्वारा तैयार की गयी थी, सैनिक पुरूषोत्तम
वर्मा से जप्त किया गया तथा घोल एवं फिनाफथलीन पावडर का जप्ती किया
गया ।
17/ - पंच साक्षी धनसिंग चंद्राकर (अ०सा० 06)एवं साक्षी
रघुवीरशरण सेन(अ०सा० 08)ने बताया है कि प्रार्थिया ने रिश्वत की रकम देने
के लिए पॉच हजार रूपये प्रस्तुत किया था उन नोटों के नम्बर- को बोलकर
नोट कराया था उक्त नोट पॉच-पॉच सौ रूपये के दस नोट थे पश्चात उन नोंटों
को एक आरक्षक को दिया था जो उन नोटों पा फिनाफथलीन पावडर लगाया था
और उसके साथी सेन ने प्रार्थिया के बैग की तलाशी लिया और बैग में कुछ भी
रहने नहीं दिया था उसके पश्चात तलाशी पंचनामा लिया गया था जो
प्र०पी० 15 को साक्षी ने प्रमाणित किया है और उसके पश्चात पावडर लगे हुए
नोट को पावडर लगाने वाले आरक्षक के द्वारा प्रार्थिया के बैग में सावधानीपूर्क
रख दिया गया था।
18/- इसी प्रकार इन दोनों ही पंच साक्षियों ने घोल का प्रर्दशन
कार्यवाही का समर्थन करते हुए कथन किया है कि, एक सिपाही के द्वारा कांच
के साफा गिलास में सोडियम कार्बोनेट का जलीय घोल तैयार किया था
जिसमें पावडर लगाने वाले आरक्षक को छोडकर ट्रेप दल के सभी सदस्यों के
हाथों की उंगलियों में डुबाकर धुलाये जाने पर घोल का रंग अपरिवर्तित रहा
जिसकी आवश्यकता नहीं होने के कारण फेक दिया गया । पुन: कांच के साफ
गिलास में सोडियम कार्बोनेट का जलीय घोल तैयार किया गया जिसमें पावडर
लगाने वाले आरक्षक के हाथ की को डुबाकर धुलाये जाने पर घोल का
रंग गुलाबी हो गया । पश्चात निरीक्षक ठाकुर द्वारा समझायीश दी गयी कि
आरोपी पावडर लगे नाट को अपने हाथ में प्राप्त करता है तो उसके हाथ में भी
पावडर लग जायेगा और हाथों कके उंगलियों को सोडियम कार्बोनेट के जलीय
घोल से धुलाये जाने पर उसका रंग गुलाबी हो जायेगा । उस गुलाबी घोल को
कांच के साफ शीशी में सीलबंद कर रखा गया और आरक्षक से फिनाफथली
पावडर का नमूना तैयार कराया गया और सीलबंद शीशी एवं नमूना पुडिया को
आरक्षक से निरीक्षक ठाकुर द्वारा जप्त किया गया था इस प्रकार इन दोनों ही
साक्षियों के द्वारा प्रर्दश पी० 16 को प्रमाणित किया गया है।
19/- अभियोजन साक्षी धनीराम भगत (अ०सा० 03) जो भी ट्रेप
दल का सदस्य था इसने भी घोल की प्रर्दशन कार्यवाही एवं प्रार्थिया के द्वारा
पॉच हजार रूपये पॉच-पॉच सौ रूपये के दस नोट प्रस्तुत किये जाने का
समर्थन किया है। इसके पश्चात प्रारंभिक घोल की कार्यवाही के पश्चात की
गयी कार्यवाही के संबंध में अभियोजन साक्षी सहदेव ठाकुर (अ०सा० 12)
के द्वारा यह बताया गया है कि, प्रार्थिया को,रिश्वत देने के समय की बातचीत
को रिकार्ड करने हेतु एक माईक्रो वायस रिकार्डर देने का पंचनामा प्रदर्श पी- 17
को पंच साक्षी धनसिंग चन्द्राकर एवं रघुवरशरण सेन जो मामले के स्वतंत्र साक्षी
है के द्वारा प्रमाणित किया गया है। इस साक्षी के द्वारा आगे यह बताया गया है
कि पुन: ट्रेप-दल का गठन किया गया जिसमें सैनिक पुरूषोत्तम वर्मा को शामिल
नही किया गया तथा ट्रेप दल में दोनो पंचसाक्षी, प्रार्थिया, डी.एस.॰पी नायडू,
निरीक्षक एस.एल.भगत, वह स्वयं, आरक्षक धनीराम भगत एवं चालक
सत्यनारायण को शामिल किया गया। सैनिक पुरूषोत्तम को फिनाफथलीन डिब्बा
जप्ती माल के साथ वापस कार्यालय जाने के लिए छोडा गया और योजना
अनुसार सरकारी गाडी से बिलाईगढ में आरोपी के कार्यालय के लिए रवाना हुए।
प्रारंभिक पंचनामा प्रदर्श पी-18 को सभी साक्षियों के द्वारा समर्थन किया गया
है।
20/- अभियोजन साक्षी सहदेव ठाकुर (अ०सा० 12) ने आगे
अपने अभिसाक्ष्य में बताया है कि, योजना अनुसार आरोपी रोहित कुमार
देवांगन के कार्यालय में कुछ दूर पहले गाडी खडी कर प्रार्थिया को आरोपी के
कार्यालय में भेजा गया तथा ट्रेप दल के अन्य सदस्य गाडी से उतरकर बी.ई.ओ.
कार्यालय के आसपास अपनी उपस्थिति छिपाते हुए खडे हो गए। कुछ देर में
प्रार्थिया परमेश्वरी पैकरा, बी.ई.ओ. कार्यालय से निकली और रिश्वत देने का
निर्धारित ईशारा सिर में हाथ फेरकर किया फिर ट्रेप दल के सभी सदस्य
बी.ई.ओ. कार्यालय में आरोपी के कक्ष में पहुंच गए और प्रार्थिया ने ईशारा कर
कुर्सी में बैठे है बताया। ट्रेप दल के सदस्य भी अंदर चले गए और
आर.के.देवांगन को अपना परिचय दिया गया। आर.के.देवांगन कुर्सी पर बैठे थे,
उनका नाम पूछने पर रोहित कुमार देवांगन बी.ई.ओ. बिलाईगढ बताया तब
उसके द्वारा आरोपी के दाहिने हाथ को कलाई के पास पकड लिया और बांये
हाथ की कलाई को पंचसाक्षी श्री सेन ने पकडा। आरोपी घबरा गया जिसे
समझाया गया और अपनी सीट में बैठने और शांत रहने के लिए कहा गया।
इसके पश्चात आरक्षक धनीराम भगत ने एक साफ कांच की गिलास में साफ
पानी लेकर सोडियम कार्बोनेट पावडर का जलीय घोल तैयार किया जिसमें
आरोपी एवं प्रार्थिया को छोडकर ट्रेप दल के सभी सदस्यों के दोनो हाथों की
उंगलियों को धुलवाया गया तो घोल के रंग में कोई परिवर्तन नही हुआ। इस
घोल को एक साफ कांच की शीशी में भरकर सीलबंद किया गया। उसके
पश्चात पुन: आरक्षक धनीराम भगत ने एक साफ कांच की गिलास में साफ पानी
लेकर सोडियम कार्बोनेट पावडर का जलीय घोल तैयार किया और उस घोल में
आरोपी रोहित कुमार देवांगन के हाथों की उंगलियों को डूबोकर धुलवाया गया
तो घोल का रंग गुलाबी हो गया, इस घोल को एक साफ कांच की शीशी में
भरकर सीलबंद कर रखा गया। प्रार्थिया के द्वारा दिये गये रिश्वत को आरोपी ने
अपने पहने फूल पेंट के दाहिने जेब में होना बताया तब पंचसाक्षी श्री
आर.एस.सेन का जामा तलाशी आरोपी से कराया गया और पंचसाक्षी के पास
कुछ भी रहने नहीं दिया गया। तत्पश्चात् पंचसाक्षी श्री सेन ने रोहित कुमार
देवांगन बी.ई.ओ. के पहने पेंट के दांहिने जेब से रिश्वती रकम निकाला जो पांच
पांच सौ के दस नोट थे इन नोटों का नंबर प्रारंभिक पंचनामा में लिखे नोटों के
नंबरों से मिलान किया गया तो ये वही नोट होना पाया गया जो कि,प्रारंभिक
पंचनामा कार्यावाही के समय रिश्वत के रूप में दिये जाने के लिए प्रार्थिया ने
प्रस्तुत किया किया था और जिस पर फिनाफथलीन पावडर लगाकर प्रार्थिया
को रिश्वते देने के लिए दिया गया था। उसके बाद आरक्षक धनीराम भगत ने एक
साफ कांच की गिलास में साफ पानी लेकर सोडियम कार्बोनेट पावडर का
जलीय घोल तैयार किया इस घोल में आरोपी की जेब से प्राप्त रकम को डूबाया
गया तो घोल का रंग गुलाबी हो गया। इस घोल को एक साफ कांच की शीशी में
भरकर सीलबंद किया गया। उसके पश्चात् पुन: आरक्षक धनीराम भगत ने एक
साफ कांच की गिलास में साफ पानी लेकर सोडियम कार्बोनेट पावडर का
जलीय घोल तैयार किया इस घोल में आरोपी के फूल पेंट को उतरवाकर पंच
साक्षी श्री चंद्राकर से जिस जेब में आरोपी रिश्वती रकम रखा था, उस जेब को
उलटवा कर घोल में डूबाया गया तो घोल का रंग गुलाबी हो गया। इस घोल को
एक साफ कांच की शीशी में भरकर सीलबंद किया गया। उसके पश्चात् पुन:
आरक्षक धनीराम भगत ने एक साफ कांच की गिलास में साफ पानी लेकर
सोडियम कार्बोनेट पावडर का जलीय घोल तैयार किया गया, इस घोल में
प्रार्थिया परमेश्वरी पैकरा के दोनों हाथों की उंगलियों को धुलवाया गया तो घोल
का रंग गुलाबी हो गया। इस घोल को एक साफ कांच की शीशी में भरकर
सीलबंद कर रखा गया। आरोपी रोहित कुमार देवांगन से प्राप्त रिश्वती रकम
को उसके पहने हुए फूलपेंट को जप्त किया गया।
21 /- विवेचक के उक्त कथनों का समर्थन पंच साक्षी धनसिंग
चंद्राकर (अ०सा० 06) के द्वारा भी पूणर्त: किया गया है। इसके द्वारा यह
बताया गया है कि, बी.ई.ओ. बिलाईगढ पहुंचकर वाहन से उतर गये और
प्रार्थिया कुमारी परमेश्वरी पैकरा को आरोपी के कार्यालय भेजा गया था और
ट्रेप दल के सभी सदस्य प्रार्थिया पर नजरी लगाव रखते हुए आप-पास खडे
हो गये,प्रार्थिया कार्यालय के अंदर गयी और कुछ देर बाद कार्यालय से
निकलकर पूर्व निर्धारित योजना अनुसार अपने सिर पर हाथ फेरकर रिश्वत
दिये जाने का ईशारा किया। इसके पश्चात् ट्रेप दल के सभी सदस्य आरोपी के
कक्ष में पहुंच गये और निरीक्षक ठाकुर ने अपना एवं ट्रेप दल का परिचय देकर
आरोपी से परिचय पूछा तब उसने अपना परिचय बी.ई.ओ. रोहित देवांगन होना
बताया था तब ट्रेप दल के सदस्य कलाई के पास आरोपी का हाथ पकड लिया
तब आरोपी घबरा गया तब उसे समझा कर शांत कर कुर्सी में बिठाया गया और
सोडियम कार्बोनेट का जलीय घोल तैयार किया उस घोल में प्रार्थिया और
आरोपी को छोडकर ट्रेप दल के सभी सदस्यों के हाथ की को डुबाकर
धोया गया तो घोल का रंग अपरिवर्तित रहा जिसे कांच की साफ शीशी में
सीलबंद कर रखा गया । पुन: कांच की साफ गिलास में सोडियम कार्बोनेट की
जलीय घोल तैयार कर उस घोल में आरोपी के हाथ की उंगलियों को डुबाकर
धोया गया तो घोल का रंग गुलाबी हो गया जिसे कांच की साफ शीशी में सीलबंद
कर रखा गया । निरीक्षक ठाकुर ने आरोपी से रिश्वती रकम के बारे में पूछा तब
वह बताया था कि पहने हुए फूलपेंट की दाहिने जेब में रखा है, उसके पश्चात
सोडियम कार्बोनेट की जलीय घोल तैयार कर आरोपी के पहने हुए फुलपेंट के
दाहिने जेब में रखे नोट को निकाल कर जलीय घोल में डुबा कर धोया गया तो
घोल का रंग गुलाबी हो गया जिसे कांच की साफ शीशी में सीलबंद कर रखा
गया । आरोपी के पेंट की जेब से निकालकर रिश्वती रकम को प्रारंभिक पंचनामा
के नोटों का नम्बर से मिलान किया गया तो वह वहीं नोट होना पाया गया उस
नोट को सोडियम कार्बोनेट के जलीय घोल में डुबाकर धोया गया तो घोल का
रंग गुलाबी हो गया ।
22 / - आरोपी से रिश्वती रकम को जप्ती के संबंध में प्रकरण के
दूसरे पंच साक्षी रघुवीर शरण सेन के द्वारा भी पूर्णत: समर्थन किया गया है
और उसके द्वारा भी यह बताया गया है कि, आरोपी से रिश्वत की रकम प्राप्त
हुआ था जिसका मिलान प्रारंभिक पंचनामा में लिखे गये रूपयों से किया गया था
जो वहीं नोट पाया गया था। सोडियम कार्बोनेट के जलीय घोल तैयार कर
प्रार्थिया एवं आरोपी के हाथों की उंगलियों से धुलाये जाने पर घोल का रंग
गुलाबी हो गया ।
23/ - अभियोजन साक्षी एस.एस.॰भगत (अ०सा० 09)ने भी
अपने अभिसाक्ष्य में बताया है कि, वह ट्रेप दल के सदस्य के रूप में शामिल
था। उसने परमेश्वरी की शिकायत की सत्यापन के लिए एक टेप रिकार्डर दिया
गया था जिसमें रिश्वत की लेनदेन संबंधी बातचीत को टेप किया गया था और
रिश्वत के रूप में परमेश्वरी पैकरा ने पॉच हजार रूपये दिया था जिस पर
फिनाफथलीन पावडर लगाकर प्रार्थिया को दिया गया था,फिनाफथलीन पावडर
लगाने के बाद आरोपी को देने के लिए प्रार्थिया को दिया गया था। परमेश्वरी
पैकरा ने आरोपी को पैसा दे कर जब बाहर निकल कर ट्रेप दल के सदस्यों को
पैसा देने की बात ईशारे से बतायी तो ट्रेप दल के सदस्य अंदर जाकर आरेपी
को पकडे थे आरोपी के जेब से पॉच हजार रूपये मिला था । प्रारंभिक
कार्यवाही में प्रार्थिया ने पॉच हजार रूपये रिश्वत के रूप में आरोपी को देने के
लिए दिया गया था उस नोटों का नंबर लिखा गया था उन नोटों का नंबर
मिलान किये जाने पर वह वही नोट था जो आरोपी को रिश्वत में देने के लिए
प्रार्थिया को फिनाफथलीन पावडर लगाकर दिये थे जिसकी पुष्टि सोडियम
कार्बोनेट की जलीय घोल में प्रार्थिया और आरोपी के हाथों की उंगलियों को
धुलाया गया था ।
इस प्रकार पंच साक्षी,विवेचक एवं ट्रेप दल के सभी सदस्यों के
साक्ष्य से स्पष्ट होता है कि आरोपी के द्वारा प्रार्थिया से पॉच हजार रूपये रिश्वत
की रकम लेते हुए पकडा गया था और ट्रेप दल के द्वारा विधिवत कार्यवाही
करते हुए आरोपी के द्वारा रिश्वत के रूप में पॉच हजार रूपये लिये जाने की पुष्टि
सोडियम कार्बोनेट के घोल के द्वारा की गयी है। सोडियम कार्बोनेट का जलीय
घोल,प्रारंभिक कार्यवाही के पश्चात जप्त किया गया था जप्त किया गया था उन
घोलों को रासायनिक परीक्षण के लिये राज्य न्यायालयीक विज्ञान प्रयोगशाला
रायपुर भेजा गया था जिसकी रिपोर्ट से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि उन
घोल में फिनाफथलीन पावडर लगाने वाले के द्वारा नोट पर फिनाफथलीन
पावडर लगाया गया था और आरोपी के पेट की जेब का घोल तथा आरोपी के
हाथ की उंगली को डुबाने बाद रखे गये घोल में फिनाफथलीन पाया गया था।
उन घोलो में जो कि ट्रेप दल के अन्य सदस्य जिन्होंने फिनाफथलीन पावडर
नहीं छुआ था उन घोल में कोई फिनाफथलीन पावडर नहीं पाया गया।चूकि
आरोपी के द्वारा फिनाफथलीन पावडर लगे हुए नोटों को प्राप्त किया गया था
इसलिए आरोपी के हाथों को धुलाये जाने पर भी घोल का रंग गुलाबी हुआ।
इस प्रकार प्रकरण में आये साक्ष्य से स्पष्ट होता है कि, ट्रेप दल के द्वारा आरोपी
को पकडने के लिए जो योजना बनायी गयी थी उसके अनुसार आरोपी ने
प्रार्थिया से रिश्वत की रकम प्राप्त किया और उसे रिश्वत की रकम लेने के
तत्काल पश्चात ही गिरफ्तार किया गया ।
24 / - आरोपी से रिश्वत की रकम प्राप्त होने के पश्चात विवेचक
के द्वारा आरोपी के विरूद्घ धारा 13(1)डी तथा धारा 13(2) पी.सी.एक्ट
के तहत अपराध दर्ज किया था। | जे०एस॰गंभीर (अ०सा० 01) ने यह बताया
है कि, पुलिस अधीक्षक एंटी करप्शन ब्यूरो रायपुर छ०ग० के पत्र क्रमांक 690
दिनांक 20.02.2008 के आधार पर आर०के०देवांगन बी०ई०ओ०बिलाईढ
के विरूद्घ नियमित नम्बर पर अपराध पंजीबद्ध करने हेतु देहाती नालिसी
दिनांक 19.02.2008 को प्राप्त हुआ था जिसके आधार पर प्रथम सूचना
रिपोर्ट आरोपी आर०के०देवांगन के विरूद्घ दर्ज किया था।
25 / - आरोपी की ओर से नेहरू महेश्वरी को बचाव साक्षी के रूप
परीक्षिति कराया गया है जिसने केवल प्रार्थिया को शिक्षाकर्मी वर्ग 03 के पद
पर नियुक्ति का आदेश जारी करने के संबंध में बताया है और यह भी बताया है
कि, शिक्षाकर्मियों का वेतन सी.ई.ओ.कार्यालय से संकुल को जारी किया जाता
है और वहां से शिक्षाकर्मियों का वेतन प्राप्त होता है। इस साक्षी के साक्ष्य से
रिश्वत की मांग या प्रतिग्रहण का किसी प्रकार से खंडन नहीं होता । प्रकरण में
यह स्वीकृत तथ्य है कि, प्रार्थिया शिक्षाकर्मी वर्ग 03 में नियुक्ति हुई थी जिसके
ज्वाईनिंग एवं वेतन निकालने के लिए आरोपी के द्वारा रिश्वत की मांग की गयी
थी इसलिए इस साक्षी के साक्ष्य से मांग एवं प्रतिग्रहण का कोई खंडन नहीं होता
है।
26/- आरोपी की ओर से न्याय निर्णयन् 2011(1)0.८.1..२.५१.
316 ^3आ8 थाते १७.5७0७९ ण १।.?.(00०५ 5७1९ णं
का अवलंब लिया गया है जिसमें यह अभिनिर्धारित किया
गया है कि,भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम-1988,धारा 7, 13(1)(घ) तथा
13(2)-रिश्वत लेने के लिए दोषसिद्धि-का औचित्य अभियुक्त तहसील
कार्यालय में लिपिक था -जहां दो प्रकरण एक नामांतरण का तथा दूसरा
शान्तिभंग के संबंध में, लंबित थे, जिसमें परिवादी पक्षकार था -अभियोजन
का पक्ष कथन था कि अभियुक्त ने नामांतरण के प्रकरण को निरस्त करवाने
के लिए रिश्वत मांगी थी-वह ट्रेप पार्टी द्वारा रिश्वत लेते हुए पकडा गया तथा
उसकी उक्त अपराध के लिए दोषसिद्धि की गयी -उच्च न्यायालय ने रिश्वत
देने तथा लेने के मामलों में विधि को प्रक्षेपित किया तथा स्पष्टीकृत किया कि
परिवादी जो रिश्वत देता है उसके साक्ष्य का- गहराई से परीक्षण किया जाना
चाहिए-क्योंकि वह हितधारी साक्षी तथा सह अपराधी भी होता है-जब तक
कि उसका साक्ष्य विश्वसनीय नहीं पाया जाता तथा संगत सामग्री पर
सम्पुष्टनही पाया जाता-दोषसिद्धि को मान्य नहीं किया जा सकता- वर्तमान
मामलें में परिवादी के साक्ष्य को अविश्वसनीय पाया गया -जब प्रकरण के
कागज-पत्रों के साथ परीक्षण किया गया तो विरोधात्मक पाया गया -यह
अभिनिर्धारित करते हुए कि परिवादी युक्तियुक्त सन्देह के परे अपने पक्ष को
सिद्घ करने में विफल रहा,उच्च न्यायालय ने अभियुक्त को दोषमुक्त किया
-पूरे साक्ष्य का परीक्षण करने के पश्चात अभियोजन वृतांत भी अत्यधिक
सन्देहास्पद पाया गया ।
इस न्याय निर्णयन के मामले में पेश दस्तावेजों का परीक्षण में
विरोधात्मक पाया गया है तथा इस न्यायनिर्णयन में रिश्वत लेने तथा देने के
मामले को प्रतिक्षेपित किया है तथा यह निर्देशित किया गया है कि गहराई से
परीक्षण किया जाना चाहिए, इस प्रकरण के तथ्य इस विचारणीय मामले से
पूर्णत: भिन्न है। इस मामले में साक्षियों ने पूर्णत: अभियोजन पक्ष का समर्थन
किया है इसलिए इस मामले में अवलंबनीय नहीं है।
27 |- आरोपी की ओर से एक न्याय निर्णयन
2015(5)0.७.1..}) 367
\. 07 १.2. (१0५! ८.७.) का अवलंब
लिया गया है जिसमें यह अभिनिर्धारित किया गया है कि, छापा पूर्व पंचनामा
साबित नहीं किया जा सका-मांग का स्थान और समय विरोधाभाषी होने से
संन्देहास्पद हैं और कोई स्वतंत्र गवाह नहीं थे-अपीलार्थी और परिवादी के
मध्य बातचीत गवाहों द्वारा नहीं सुनी गई-अपीलार्थी से रंगे नोटों की जप्ती
शंकास्पद है-क्योंकि रिश्वत की मांग साबित नहीं की गयी इसलिए
अधिनियम 1947 की धारा-4 के अंतर्गत उपधारणा नहीं किया जा सकता
-अपीलार्थी की दोषसिद्धि निरस्त-
इस मामले में मांग का स्थान और समय में विरोधाभाषी होने से
सन्देहास्पद था और मांग का स्वतंत्र गवाह नहीं थे जबकि इस मामले में मांग का
स्थान में कोई विरोधाभष नहीं है और स्वतंत्र गवाह के रूप में दो पंच साक्षी
जिला कलेक्टर के द्वारा नियुक्त होकर ट्रेप दल के सदस्य थे और उन्होनें प्रकरण
का पूर्णत: समर्थन किया है इसलिए यह न्यायनिर्णयन इस मामला में
अवलंबनीय नहीं है।
28/- एक अन्य न्याय निर्णयन 2006(3)0.८.1..
1.4, 50 ४५. 51^ए१1' 07 १.?.(0%५ 0.७.) का
अवलंब लिया गया है जिसमें यह अभिनिर्धारित किया गया है कि,भ्रष्टाचार
निवारण अधिनियम- धारा 7 एवं 13(1)( डी) सहपठित धारा 13(2)-झूठा
फंसाया -अपीलार्थी सहायक खाद्य अधिकारी था और परिवादी बजरंग लाल
सोनी उस समय उचित मूल्य दुकान चला रहा था -बजरंग लाल सोनी के
विरूद्घ शिकायत होने के कारण अपीलार्थी ने बजरंग लाल सोनी को नोटिस
दिया -यह आरोप है कि,अपीलार्थी शिकायत को दबाने के लिए बजरंग लाल
सोनी से रूपये 500/- की मांग किया -बजरंगलाल सोनी ने डी.एस.पी.
(विजिलेंस) को शिकायत किया और छापा का आयोजन किया गया और
बजरंग लाल सोनी ने अपीलार्थी को 500/- दिया जो छापा मार पार्टी द्वारा
जप्त किया गया -विचारण न्यायालय ने अपीलार्थी को दोषसिद्ध कर दंडित
किया -अत: यह अपील रिश्वत की मांग सबूत नहीं की गयी- बजरंग लाल की
उचित मूल्य की दुकान छापा के पूर्व ही निलंबित कर दी गयी थी। अत:
दुकान निलंबित किये जाने से बचने के लिए रिश्वत का लेना अस्वाभाविक
है-छापा के दिनांक को बजरंग लाल सोनी जब पहली बार गया तो अपीलार्थी
ने रिश्वत स्वीकार नहीं किया यह संभावना है कि किसी अन्य दस्तावेज के
रूप में धोखा देकर द्वितीय बार रिश्वत की राशि लेने के लिए आकर्षित किया
हो क्योकि फिनाप्थिलीन पावडर युक्त नोट बिखरे पडे हालत में जप्त किए
गए थे और वहां पर कागज भी पडा था और वह अंधेरी रात का समय था
-नोट अपीलार्थी ने जेब में नहीं रखा -बजरंग लाल सोनी का आपराधिक पूर्व
इतिहास उसकी उचित मूल्य की दुकान का पूर्व से निलंबित होना इस बात से
इंकार नहीं किया जा सकता कि बजरंगलाल सोनी ने धोखा देकर अपीलार्थी
को छापा में पकडवाया था -अत: साक्षी क्र. का अभिसाक्ष्य प्रदर्शित करता
है कि ट्रेप पार्टी ने परिसर में तभी प्रवेश किया जब बजरंगलाल सोनी बाहर
निकल गया और करेंसी नोट लान में बिखरे हुए थे-धारा 20(2) के अंतर्गत
अपीलार्थी के विरूद्घ अनुमान पूर्णत: खण्डित हो जाता है और यह संभव है
कि अपीलार्थी ने करेंसी नाट स्वीकार नहीं किया जो उसके हाथ में जबरन
कुछ कागजों सहित बजरंग लाल सोनी ने धोखा पूर्ण तरीके से पकडवाया हो
और तुरंत नोटों को जमीन में फेंक दिया हो -अपीलार्थी दोषमुक्ति का
अधिकारी है।
इस मामले में रिश्वत की मांग को सबूत नहीं किया गया था जिसके संबंध
में सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है जबकि इस विचारणीय मामले में रिश्वत की
मांग पूर्णत: प्रमाणित है इसलिए यह न्याय निर्णयन इस मामले में अवलंबनीय
नहीं है।
29/- एक अन्य न्याय निर्णयन 2011(4)0.0.5.0.2198
पी०सत्यनारायण मूर्ति बनाम जिला पुलिस निरीक्षक एवं एक अन्य का
अवलंब लिया गया है जिसमें यह अभिनिर्धारित किया गया है कि,भ्रष्टाचार
निवारण अधिनियम-1988,धारा 13(1)(घ) ()(@)तथा 13(2) एवं 7-अवैध
परितोषण -की मांग-दोषसिद्धि और दण्डादेश -अभियोजन युक्तियुक्त सन्देह
से परदे मांग के तथ्य को साबित करने में समर्थ नहीं -अ०सा ०1 का साक्ष्य
समानता और अवैध परितोषण की मांग के सबूत की निश्चायकता सेकम-
परिवादी की मृत्यु पर,मांग का प्राथमिक साक्ष्य,यदि कोई हो,सम्मुख नहीं
आया -अपीलार्थी द्वारा परिवादी से मांग वास्तव में 03.10.1996 को की गयी
-उसके परिवाद पर छापा 04.10.1996 को डाला गया-जैसे भी
हो,अ०सा० 01 का परिसाक्ष्य अपीलार्थी द्वारा परिवादी से अभिकथित रूप
से की गयी मांग को उद्भुत नहीं करता है -निर्णीत,अभिलेख पर इस साक्ष्य के
आधार पर कि धारा 7एवं 13(1)(घ) ()तथा) के अधीन साबित
अपीलार्थी की अपराधिकता विधि के अधीन अननुज्ञेय अनुमान संबंधी कमी
होगी-अभियोजन स्पष्ट रूप से अवैध परितोषण की मांग को साबित करने में
असफल -दोषसिद्धि का आक्षेपित निर्णय और आदेश अपास्त।
इस मामले में भी रिश्वत की मांग या अवैध परितोषण की मांग को
अभियोजन पक्ष साबित करने में सफल नहीं हुआ था जिसके लिए दोष सिद्धि
के निर्णय को अपास्त किया गया था किन्तु इस विचारणीय मामले में रिश्वत की
मांग , प्रतिग्रहण पूर्णत: प्रमाणित है जिसमें कोई सन्देह नहीं है, अभियोजन पक्ष
की ओर से परीक्षित साक्षियों ने स्पष्टत: मांग के संबंध में एवं पेश दस्तावेज से
रिश्वत की मांग एवं प्रतिग्रहण प्रमाणित है । अत: यह न्याय निर्णयन भी इस
मामले में अवलंबनीय नहीं है।
विचाणीय प्रश्न क्रमांक 04:-
30/- उपरोक्तानुसार संपूर्ण साक्ष्य के मूल्यांकन से यह स्पष्ट है कि
आरोपी के द्वारा प्रार्थिया कुमारी परमेश्वरी पैकरा से शिक्षाकर्मी वर्ग 03 पर
पदभार ग्रहण कराने एवं वेतन निकालने के लिए 5000/- (पांच हजार रूपये)
रिश्वत की मांग की गयी थी और उसके द्वारा पॉच हजार रूपये रिश्वत के रूप में
प्रार्थिया से प्राप्त किया गया था जिसकी शिकायत एंटी करप्शन ब्युरो को प्राप्त
होने पर एंटी करप्शन ब्युरो ने योजना बनाकर आरोपी को रिश्वत लेते हुए रंगे
हाथ पकडा था।
31 /- अतएव आरोपी के विरूद्घ अभियोजन पक्ष आरोप अन्तर्गत
धारा 7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं धारा 13(1) (डी)सहपठित धारा
13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम का आरोप सन्देह से परे सिद्घ करने में
पूर्णत: सफल रहा है।
32 / - फलस्वरूप आरोपी रोहित कुमार देवांगन को आरोप
अन्तर्गत धारा 7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं धारा 13(1) (डी)सहपठित
धारा 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोष सिद्घ किया जाता है।
33/- आरोपी जमानत पर है उसके जमानत मुचलका निरस्त
किया जाता है।
34 / - आरोपी को अभिरक्षा में लिया जावे।
35/ - दण्ड के प्रश्न पर सुनने के लिए निर्णय थोडी देर, स्थगित
किया जाता है।
सही /
(बृजेन्द्र कुमार शास्त्री)
विशेष न्यायाधीश (ए.सी.बी.)
एवं प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश,
बलौदाबाजार,छ.ग.
पुनश्च:-
36/ - दण्ड के प्रश्न पर आरोपी एवं उसके अधिवक्ता एवं
अभियोजन पक्ष को सुना गया।
37 / - अभियोजन पक्ष की ओर से व्यक्त किया गया है कि,आरोपी
के द्वारा किया गया कृत्य अत्यंत गंभीर है उसके द्वारा अपने ही विभाग में नियुक्त
एक कर्मचारी से रिश्वत की मांग कर गंभीर अपराध किया है इसलिए आरोपी को
अधिक से अधिक दण्ड से दण्डित किया जावे।
38/- आरोपी की ओर से व्यक्त किया गया है कि, आरोपी की
आयु को देखते हुए उसे कम से कम दण्ड से दण्डित किया जावे।
39/- अभिलेख का अवलोकन किया गया । प्रकरण में आये साक्ष्य एवं
पेश दस्तावेजों से यह प्रकट होता है कि, आरोपी के द्वारा उसी के विभाग में
नियुक्त एक कर्मचारी से पदभार ग्रहण कराने एवं वेतन निकालने के लिए रिश्वत
की मांग की गयी है जो कि निश्चित ही एक अत्यंत ही गंभीर एवं दुखदायी है।
एक कर्मचारी के द्वारा अपने कमर्चारी से ही वेतन निकलाने के एवज में रिश्वत
की मांग किया जाना भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा है ऐसे व्यक्ति के प्रति निश्चित ही
किसी प्रकार की सदभावना रखा जाना उचित नहीं पाया जाता है।
40 / - फलस्वरूप आरोपी रोहित कुमार देवांगन को धारा 7 भ्रष्टाचार
निवारण अधिनियम के तहत दोष सिद्ध आरोप के लिए 03 वर्ष का सश्रम कारावास
एवं 5000/-रूपये (पॉच हजार रूपये)के अर्थ दण्ड से दंडित किया जाता है,अर्थ
दण्ड की राशि अदा न किये जाने की स्थिति में 03 माह(तीन माह) का साधारण
कारावास भुगताया जावे ।
41 / - धारा 13(1)(डी)सहपठित धारा 13(2) भ्रष्टाचार निवारण
अधिनियम के तहत 03 वर्ष का सश्रम कारावास एवं 5000/-रूपये (पॉच हजार
रूपये)के अर्थ दण्ड से दंडित किया जाता है,अर्थ दण्ड की राशि अदा न किये जाने
की स्थिति में 03 माह(तीन माह) का साधारण कारावास भुगताया जावे।
42 / - आरोपी को दोनों ही धाराओं में दी गयी कारावासीय दण्ड साथ-
साथ भुगतायी जावे।
43 / - आरोपी के द्वारा अभिरक्षा में बीतायी गयी अविध उसे दी गयी
कारावासीय दण्ड में समायोजित किया जावे।
44 / - धारा-428 द.प्र.सं. का प्रमाणपत्र बनाया जावे।
45 /- प्रकरण में जप्तशुदा सम्पत्ति प्रार्थिया के द्वारा रिश्वत में दिये जाने
के लिए प्रदान किया गया था उक्त सम्पत्ति 500/-(पांच सौ रूपये )के 10
नोट जो कि वर्तमान में प्रचलन से बाहर रिजर्व बैंक द्वारा कर दिया गया है
जिसके संबंध में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा दिशा निर्देश प्राप्त होने पर उक्त
निर्देश अनुसार व्ययन किया जावे। अपील अवधि पश्चात् शेष जप्तशुदा 06 नग
घोलों की शीशियां, एक नग आरोपी का फुलपेंट,02 नग कैसेट एवं एक नग
रजिस्टर अपील अविध पश्चात् नष्ट किया जावे अपील होने की दशा में
माननीय अपीलीय न्यायालय के निर्णयानुसार व्ययन किया जावे।
46/- निर्णय की एक प्रति अभियुक्त को नि:शुल्क प्रदान की जावे ।
47 | - निर्णय की प्रति विशेष लोक अभियोजन अधिकारी एवं एक प्रति
ए०सी०बी०कार्यालय रायपुर की ओर प्रेषित किया जावे।
निर्णय हस्ताक्षरित व दिनांकित कर मेरे निर्देशानुसार टंकित
घोषित किया गया । किया गया।
सही/- सही/-
(बृजेन्द्र कुमार शास्त्री) (बृजेन्द्र कुमार शास्त्री)
विशेष न्यायाधीश (ए.सी.बी.) विशेष न्यायाधीश
एवं प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश एवं प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश
बलौदाबाजार,छ.ग. बलौदाबाजार,छ.ग.
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