Thursday, 26 January 2017

रमेश कुमार गुप्ता विरूद्ध कैलाश गुप्ता

 

वादी को स्वयं अपने पैरों पर खड़ा होना होता है। वह दूसरे की कमजोरी का लाभ नहीं उठा सकता। विधि का यह सुस्थापित सिद्धांत है कि-‘‘जो दस्तावेज जिसके आधिपत्य में है, उसी से उसको प्रस्तुत किये जाने या उसे प्रस्तुत करवाने की अपेक्षा की जाती है।’’ मूल दस्तावेज के प्रगटीकरण कराये जाने के संबंध में व्यवहार प्रक्रिया संहिता में दिये गये प्रावधान का बिना अवलम्ब लेकर और मात्र फोटोकॉपी दस्तावेज के आधार पर वादी वसीयतनामा को शून्य व अवैध घोषित करा पाने का अधिकारी नहीं है।

न्यायालय षष्ठम अपर जिला न्यायाधीश, दुर्ग, जिला दुर्ग (छ.ग.) 
(पीठासीन अधिकारी-कु. संघपुष्पा भतपहरी) 
CIS No.-00030/2016 
व्यवहार अपील क्र.-30ए/2016 
संस्थापित दिनांक-13/06/2016 
01.. रमेश कुमार गुप्ता पिता स्व. हरीप्रसाद गुप्ता, उम्र-61 वर्ष,
निवासी-बैगापारा, गोवर्धन चौक के पास, दुर्ग (छ.ग.)
02.. महेश कुमार गुप्ता आ. स्व. हरीप्रसाद गुप्ता, उम्र-59 वर्ष,
निवासी-गयानगर, दुर्ग (छ.ग.)
03.. ओंकार प्रसाद गुप्ता पिता स्व. हरीप्रसाद गुप्ता, 56 वर्ष,
04.. गोविन्द्र प्रसाद गुप्ता आ. स्व. हरीप्रसाद गुप्ता, उम्र-52 वर्ष,
हाउसिंग बोर्ड, ढांचा भवन, कुरूद, भिलाई, थाना-जामुल,
तहसील व जिला-दुर्ग (छ.ग.)                                    ............................अपीलार्थीगण/वादीगण
।। विरूद्ध ।। 
01.. कैलाश गुप्ता पिता स्व. हरीप्रसाद गुप्ता उम्र-48 वर्ष,
निवासी-कांग्रेस भवन के पास, गवली पारा, दुर्ग, तहसील व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
02.. श्रीमती विमला गुप्ता पत्नि श्री घनश्याम गुप्ता, उम्र-58 साल,
निवासी-बर्तन व्यापारी, पुराना बस स्टेण्ड के पास, अर्जुन्दा
थाना-अर्जुन्दा, तहसील-गुण्डरदेही, जिला-बालोद (छ.ग.)
03.. त्रियुगीनारायण गुप्ता पिता नामालूम, उम्र-65 वर्ष,
निवासी-कांग्रेस भवन के सामने, गवली पारा, दुर्ग,
तहसील व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
04.. श्रीमती गीता गुप्ता ध.प.मूलचंंद गुप्ता, उम्र-57 वर्ष,
निवासी-किराना व्यापारी, नवेगांव बांध, तहसील-साकोली,
जिला-गांदिया, महाराष्ट्र
05.. श्रीमती शैल कुमारी ध.प.कैलाश चंद्र गुप्ता, उम्र-54 वर्ष,
निवासी-श्रीराम किराना स्टोर्स, गांधी चौक के पास, अहेरी,
जिला-चिरौली, महाराष्ट्र                                   ..................................उत्तरवादीगण /प्रतिवादीगण

न्यायालय द्वितीय व्यवहार न्यायाधीश, वर्ग-1 दुर्ग, जिला-दुर्ग (छ.ग) द्वारा व्यवहार.वा.क्र-107अ/2001, रमेश कुमार गुप्ता अन्य वि. कैलाश गुप्ता व अन्य में पारित निर्णय एवं आज्ञप्ति दिनांक 30/04/2016 से उत्पन्न यह व्यवहार अपील।

अपीलार्थीगण द्वारा श्री नरेन्द्र गुप्ता अधिवक्ता। उत्तरवादी क्र.-01 द्वारा श्री आलाक कुमार सारस्वत अधिवक्ता। उत्तरवादी क्र.-02 से 05 एकपक्षीय।
।। निर्णय ।। 
 (आज दिनांक ..........23/01/2017............. को घोषित) 
01.. यह सिविल अपील द्वितीय व्यवहार न्यायाधीश, वर्ग-1 दुर्ग, जिला-दुर्ग (छ.ग) द्वारा व्यवहार.वा.क्र-107अ/2001, रमेश कुमार गुप्ता अन्य वि. कैलाश गुप्ता व अन्य में पारित निर्णय एवं आज्ञप्ति दिनांक 30/04/2016 से क्षुब्ध होकर आदेश-41, नियम-01 सह धारा-151व्य.प्र.सं. अंतर्गत अपीलार्थीगण द्वारा उत्तरवादीगण के विरूद्ध दिनांक 13/06/2016 को पेश की गयी। 
02.. अपील के निराकरण हेतु वाद के आवश्यक तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि - पक्षकारगण के पिता स्व. हरिप्रसाद गुप्ता ने अपने जीवन काल में अपने स्वअर्जित संपत्ति से गवलीपारा, दुर्ग, वार्ड -29 में हल्का-78, बटांकन नंंबर 269, ख.नंं. -568/11 पर बने मकान दो मंंजिला निर्माण कर मृत्यु तक काबिज रहे हैं। मार्च-2001 में उनका स्वास्थ्य खराब हो जाने से सेक्टर-09 में इलाज करवाते रहे हैं तथा अस्वस्थ हालत में ही दिनांक 08/04/2001 को मृत्यु हो गयी। मृतक हरीप्रसाद गुप्ता की पत्नि श्रीमती सुशीला गुप्ता का देहांत दिनांक 10/02/1998 को हो गया था। इस तरह मृतक द्वारा उक्त स्वअर्जित संपत्ति में सभी पक्षकारगण सामान्य रूप से हिस्सेदार हैं। किन्तु प्रतिवादी क्र.-01 के द्वारा दिनांंक 23/03/2001 को कूटरचना के आधार पर अपने पक्ष में फर्जी वसीयतनामा तैयार करवाकर मकान को अपने नाम करवाने प्रयासरत होने से दिनांक 26/04/2001 को निम्न न्यायालय के समक्ष घोषणा वाद एवं वसीयतनामा दिनांंक 23/03/2001 को अवैध व शून्य घोषित कराए जाने एवं प्रतिवादीगण को स्थायी निषेधाज्ञा द्वारा निषेधित किए जाने बाबत वाद प्रस्तुत किया गया। किन्तु निम्न न्यायालय द्वारा वादीगण द्वारा वाद प्रमाणित न पाकर दिनांक 30/04/2016 को अस्वीकार कर निरस्त कर दिया गया। जिससे क्षुब्ध हाकर अपीलार्थीगण/वादीगण द्वारा यह अपील प्रस्तुत की गयी है। 
03.. अपील के आधार हैं कि- 
(1) विद्वान विचारण न्यायालय के द्वारा निर्णय पारित करने में विधि की भूल की है जो कि अपास्त किए जाने योग्य है। 
(2) विद्वान विचारण न्यायालय के समक्ष प्रतिवादी क्र.-01 द्वारा मूल दस्तावेज न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत न कर चोरी होने का कथन किया गया है, जिसे उसके द्वारा कहीं भी प्रमाणित नहीं किया गया है, न ही इस संबंध में उसके द्वारा स्थानीय थाने में शिकायत दर्ज किया जाना बताया है। फिर भी उसके साक्ष्य को प्रमाणित किया जाना विधि संगत न होने से निर्णय अपास्त किए जाने योग्य है। 
(3) विद्वान विचारण न्यायालय ने वादीगण/अपीलार्थीगण के द्वारा पूर्व में प्रस्तुत आवेदन धारा-45 साक्ष्य अधिनियम का भी कही निर्णय पारित किए जाने के समय उल्लेख नहीं किया जाना विधि की भूल होने से निर्णय स्थिर रखे जाने योग्य नहीं है। 
(4) प्रतिवादी क्र.-01 के द्वारा अपने पक्ष में मात्र हीरासिंह को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत कर वसीयतनामा निष्पादन किए जाने की बात को स्वीकार करवाया गया है, किन्तु उसके ब से ब भाग पर उसके सामने लिखे जाने का कथन नहीं किया गया है, जो कि वसीयतनामा को फर्जी निरूपित करता है जिससे निम्न न्यायालय द्वारा किसी निष्कर्ष पर पहुंचे बिना निर्णय पारित किया जाना विधि की भूल है, जो कि अपास्त किये जाने योग्य है। 
(5) प्रतिवादी क्र.-01 के अलावा शेष प्रतिवादीगण के द्वारा साक्ष्य दौरान समर्थन नहीं किया गया बल्कि वसीयतनामा निष्पादन किए जाने से इंकार किया गया है, जिस पर भी निम्न न्यायालय द्वारा विचार न कर भारी भूल की गयी है। 
(6) विद्वान निम्न न्यायलाय द्वारा पारित आदेश त्रुटियुक्त होने से भी निर्णय स्थिर रखे जाने योग्य न होने से अपास्त करने के लायक है। 
(7) प्रतिवादी क्र.-10 स्वयंं अपने दस्तावेज को प्रमाणित करने में असफल रहा है, जबकि वादीगण/अपीलार्थी के दावे को शेष प्रतिवादी एवं साक्षी घनश्याम गुप्ता ने भी समर्थन दिया है, इसलिये पारित निर्णय पुनः संशोधित किए जाने योग्य है। 
(8) अपीलार्थी के द्वारा अपील प्रकरण में उचित न्यायशुल्क चस्पा कर दिया गया है। 
04.. अपील पर उभयपक्ष के विद्वान अभिभाषक को विस्तार से सुना गया। आलोच्य निर्णय एवं आज्ञप्ति, संबंधित अभिलेख, उपलब्ध दस्तावेज एवं साक्ष्य का परिशीलन किया गया। 
05.. इस न्यायालय के समक्ष विचारणीय प्रश्न है कि- ‘‘क्या व्यवहार.वा.क्र-107अ/2001, रमेश कुमार गुप्ता अन्य वि. कैलाश गुप्ता व अन्य में पारित निर्णय एवं आज्ञप्ति दिनांक 30/04/2016 से क्षुब्ध होकर आदेश-41, नियम-01 सह धारा-151व्य.प्र.सं. अंतर्गत अपीलार्थीगण द्वारा उत्तरवादीगण के विरूद्ध दिनांक 13/06/2016 को पारित निर्णय एवं आज्ञप्ति, तथ्य एवं विधि अनुरूप है? 
।। निष्कर्ष के आधार ।। 
।। विचारणीय प्रश्न का सकारण निष्कर्ष ।।
06.. प्रकरण में यह स्वीकत तथ्य है कि उभयपक्षकारगण एक ही परिवार के सदस्य होकर आपस में भाई-बहन हैं और विवादित भूमि उनके स्व. पिता हरिप्रसाद गुप्ता की स्व अर्जित संपत्ति है। प्रतिवादी क्र.-01 वाद मकान में अपनी बहन मीरा गुप्ता के साथ निवासरत था, जिसकी वाद के लंबन काल में मृत्यु हो चुकी है। 
07.. वादीगण ने यह दावा इस आधार पर प्रस्तुत किया है कि उनके पिता भिलाई इस्पात संयंत्र में विधि विभाग में नौकरी करते थे। स्वेच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर दुर्ग न्यायालय में वकालत करते थे। उनका स्वास्थ्य खराब रहता था। उन्हें डायलिसिस पर रखा जाता था। उनके पिता ने अपने स्व अर्जित संपत्ति से गवलीपारा, वार्ड नं.-29, कांग्रेस भवन के पास, गवली पारा, दुर्ग, तहसील व जिला-दुर्ग (छ.ग.) प.ह.नं.-78, बटांकन क्र.-269 के ख.नं.-568/11 पर दो मंजिला मकाना बनाया था। उनकी माता श्रीमती सुशीला गुप्ता की मृत्यु दिनांक 10/02/1998 को हुई और पिता की मृत्यु दिनांक 08/04/2001 को हुई। मृत्यु के पूर्व वे काफी अस्वस्थ थे। सोचने-समझने की शक्ति खो चुके थे। मृत्यु शैया पर पड़े थे। उनके पिता हरिप्रसाद गुप्ता वाद मकान में प्रतिवादी क्र.-01 और 02 के साथ में रहते थे। प्रतिवादी क्र.-01 व 02 ने पिता की अस्वस्थता का लाभ उठाकर वादीगण को सूचना दिये बिना अपने पक्ष में वसीयतनामा दिनांक 23/03/2001 में पिता हरिप्रसाद गुप्ता का अंगूठा निशानी व फर्जी हस्ताक्षर करवाकर अपने पक्ष में निष्पादित करवा दिये। वसीयतनामा अपंजीकृत है। अधिवक्ता उमेश उपाध्याय से ड्राफ्टिंग करवाया गया था। उक्त वसीयतनामा शून्य व अवैध घोषित करने के लिये दावा प्रस्तुत किया गया है। प्रतिवादीगण ने वादीगण के दावा से इन्कार किया है। पिता हरिप्रसाद गुप्ता को अपने जीवनकाल में स्वेच्छया से वसीयतनामा दिनांक 23/03/2001 को गवाहों के समक्ष वसीयत करना बताया गया है। वसीयतनामा के आधार पर प्रतिवादी क्र. -01 वादभूमि का स्वामी व आधिपत्यधारी हुआ और वसीयत के आधार पर वह राजस्व अभिलेखां व नजूल व नगर पालिक निगम के अभिलेखां में अपना नाम नामांतरण कराने का अधिकारी है। 
08.. वादीगण ने अपने पक्ष के समर्थन में वादी महेश गुप्ता वा.सा.-01, रामविशाल वा. सा.-02, गोविन्द गुप्ता वा.सा.-03, घनश्याम गुप्ता वा.सा.-04 का मौखिक साक्ष्य न्यायालय में अंकित कराया गया है तथा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में पिता हरिप्रसाद गुप्ता के द्वारा कार्य ग्रहण करने बाबत् शपथ पत्र की छायाप्रति प्र.पी. -01, एल.टी.सी. आवेदन प्र.पी.-02, स्वेच्छिक सेवा निवृत्ति का आवेदन प्र.पी. -03, वसीयतनामा की छायाप्रति प्र.पी.-04 तथा पेपर प्रकाशन विज्ञापन सूचना प्रपी.-05 पेश की गयी है। 
09.. दूसरी ओर प्रतिवादीगण की ओर से प्रतिवादी कैलाश गुप्ता प्र.सा.-01, हीरा सिंग साहू प्र.सा.-02, श्रीमती विमला गुप्ता प्र.सा.-03, तथा श्रीमती पुष्पा गुप्ता प्र.सा. -04 का मौखिक साक्ष्य न्यायालय में अंकित कराया गया है। वसीयतनामा निष्पादन के समय नोटरी का रजिस्टर प्र.डी.-02 पेश किया गया है। 
10.. आलोच्य निर्णय की कंडिका-06 में विरचित वाद-प्रश्नां पर निम्नानुसार निष्कर्ष विद्वान विचारण न्यायालय ने दिया है - 
वाद-प्रश्न - निष्कर्ष 
01.. क्या दिनांक 23/03/2001 को प्रतिवादी क्र.-01 एवं प्रतिवादी क्र.-02 के पक्ष में निष्पादित वसीयतनामा अवैध एवं शून्य है? - ‘‘प्रमाणित नहीं’’
02.. क्या दिनांक 23/03/2001 को निष्पादित वसीयतनामा कूटरचित है? - ‘‘प्रमाणित नहीं’’ 
03.. सहायता एवं व्यय? - ‘‘निर्णयानुसार’’ 
11.. प्रकरण में मुख्य रूप से यह विवादित है कि क्या मृतक हरिप्रसाद गुप्ता, जिसने अपनी स्व अर्जित संपत्ति से वाद मकान का निर्माण कराया था और उसके वादीगण एवं प्रतिवादीगण पुत्र-पुत्रियां हैं फिर भी मात्र प्रतिवादी क्र.-01 और 02 के नाम पर ही वसीयत का निष्पादन किया गया है। प्रकरण में यह भी विवादित है कि क्या वसीयतनामा दिनांक 23/03/2001 को मृतक हरिप्रसाद गुप्ता शारीरिक व मानसिक तौर पर अस्वस्थ थे। यह भी विवादित है कि क्या वसीयतनामा में मृतक हरिप्रसाद गुप्ता के हस्ताक्षर व अंगूठा निशानी फर्जी व कूटरचित है। 
12.. मृतक हरिप्रसाद गुप्ता की, वाद मकान स्व अर्जित संपत्ति थी। वह बी.एस.पी. में विधि अधिकारी के तौर पर नौकरी करता थां उसके द्वारा स्वेच्छया सेवा निवृत्ति ली गयी थी। उसके पश्चात् वे वकालत का व्यवसाय करते थे। इसका आशय यह है कि मृतक पढाा लिखा था और विधि का ज्ञाता था। यह स्वीकृत तथ्य है कि मृतक, प्रतिवादी क्र.-01, 02 एवं मृतिका मीरा के साथ में वाद मकान में अपनी मृत्यु के उपरांत तक निवासरत रहा। स्व. हरिप्रसाद गुप्ता की मृत्यु होने के बाद उसकी मृत्यु की तेरहवीं कार्यक्रम के दौरान उसके मित्र अधिवक्ता उमेश श्रीवास्तव के द्वारा मृतक हरिप्रसाद गुप्ता द्वारा निष्पादित वसीयतनामा की जानकारी दी गयी और उसकी छायाप्रति दिखायी गयी। इसका आशय यह है कि वसीयतनामा के संबंध में वसीयतकर्ता के अधिवक्ता मित्र उमेश श्रीवास्तव को जानकारी थी। 
13.. प्रतिवादीगण की ओर से उपस्थित साक्षी हीरा सिंग साहू प्र.सा.-02 जो नोटरी अधिवक्ता है, के द्वारा दिनांक 23/03/2001 की मूल रजिस्टर में सी.नंं.-275 में एक वसीयतनामा हरिप्रसाद गुप्ता अधिवक्ता आ. एफ.एल.गुप्ता, गवलीपारा, दुर्ग का इंद्राज होना और उक्त रजिस्ट्री में हस्ताक्षर के कालम में अंगूठा निशानी और हस्ताक्षर होने के तथ्य को प्रमाणित किया है। इस साक्षी के दस्तावेजी साक्ष्य से यह पाया जाता है कि दिनांक 23/03/2001 को इस नोटरी साक्षी के समक्ष वसीयतनामा का नोटरी कराया गया था और नोटरी रजिस्टर में वसीयतकर्ता हरिप्रसाद गुप्ता के द्वारा हस्ताक्षर व अंगूठा निशानी लगया गया था। यह साक्षी प्रतिपरीक्षण में खण्डित नहीं हुआ है। उक्त रजिस्टर को प्र.डी.-02 के रूप में विद्वान विचारण न्यायालय के द्वारा अंकित किया गया है। यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि इस प्रकरण में प्र.डी.-01 के रूप में कोई दस्तावेज प्रदर्श पर अंकित नहीं हुआ है। 
14.. वादीगण का कहना है कि वसीयतनामा दिनांक 23/03/2001 के पूर्व मृतक हरिप्रसाद गुप्ता उनके पिता काफी बीमार थे, सोचने समझने की शक्ति उन्हें नहीं थी परंतु इस संबंध में दिनांक 23/03/2001 की तिथि या उसके पूर्व या मृत्यु के 15-20 दिन पूर्व की तिथि में वे अस्वस्थ थे, के संबंध में किस डॉक्टर के समक्ष अपना इलाज करवाये थे और उन्हें क्या बीमारी थी, के संबंध में कोई दस्तावेजी एवं मौखिक चिकित्सीय साक्ष्य पेश करके इस तथ्य को विचारण न्यायालय के समक्ष प्रमाणित नहीं किया गया है। दूसरी ओर उभयपक्ष के साक्ष्य से यह बात आयी है कि मृत्यु के एक सप्ताह पूर्व मृतक हरिप्रसाद गुप्ता अस्वस्थ थे। दिनांक 23/03/2001 को अस्वस्थ थे यह प्रमाणित नहीं हुआ है। दिनांक 23/03/2001 के लगभग 15 दिवस के पश्चात् मृतक हरिप्रसाद की मृत्यु हुई है। मृत्यु के 15 दिवस पूर्व दिनांक 23/03/2001 की तिथि को अस्वस्थ होना प्रमाणित नहीं हो रहा है। 
15.. प्रकरण में वसीयतनामा को शून्य व अवैध घोषित करने का अनुतोष चाहा गया है, परंंतु प्रकरण में मूल वसीयतनामा पेश नहीं किया गया है। जो दस्तावेज प्र.पी. -01 को विद्वान विचारण न्यायालय ने प्रदर्श पर अंकित किया है, वह फोटोकॉपी है। फोटोकॉपी दस्तावेज साक्ष्य में ग्राह्य नहीं है। प्रतिवादीगण का यह अभिवाक् है कि उक्त मूल दस्तावेज श्रीमती विमला गुप्ता के द्वारा अपने पास रख लिया गया है या चोरी से रख लिया गया है, परंंतु जब श्रीमती विमला गुप्ता प्र.सा.-03 के रूप में न्यायालय में उपस्थित होने तब उसे इस संबंध में प्रतिवादी क्र.-01 की ओर से कोई प्रतिपरीक्षण नहीं किया गया है या ऐसा प्रतीत होता है कि उसने प्रतिपरीक्षण करने का अवसर प्राप्त नहीं किया गया है या उसने न्यायालय से कोई मांग भी नहीं की है तथा वादी ने भी इस तथ्य को प्रतिपरीक्षण में प्रश्न करके स्पष्ट नहीं किया है, जो प्रतिवादी क्र.-01 जो कह रहा है कि मूल वसीयतनामा श्रीमती विमला गुप्ता प्र.सा.-03 के आधिपत्य में है, वह झूठी या असत्य बात है अथवा क्या श्रीमती विमला गुप्ता वसीयतनामा दिनांक 23/03/2001 के आधिपत्य में है अथवा नहीं। श्रीमती विमला गुप्ता प्र.सा.-03 ने भी अपने मुख्य परीक्षण में यह कहीं कथन नहीं की है कि प्रतिवादी क्र.-01 जो जवाबदावा में या अपने कथन में कह रहा है कि वसीयतनामा श्रीमती विमला गुप्ता के आधिपत्य में है, वह उस पर झूठा या मनगढंंत आधार पर आरोप लगा रहा है। 
16.. As a general rule, documents are proved by leading primary evidence. Section 64 of the Evidence Act provides that documents must be proved by the primary evidence except in cases mention in Section 65 of the Evidence Act. In the absence of primary evidence, documents can be proved by secondary evidence as contemplated under Section 63 of the Act .Section 65 of the Act deals with the circumstances under which secondary evidence relating to documents may be given to prove the existence, condition or contents of the documents.The party has to lay down the factual foundation to establish the right to give secondary evidence where the original document cannot be produced. It is equally well settled that neither mere admission of a document in evidence amounts to its proof nor mere making of an exhibit of a document dispense with its proof, which is otherwise required to be done in accordance with law. It is true that a document which is produced in Court is ordinarily exhibited after its proof. But, exhibiting a document does not mean that the document is proved .A document is required to be proved in accordance with the provisions of the Evidence Act. Merely for administrative convenience of locating or identifying a document, it is given an Exhibit number in courts. Exhibiting a document has nothing to do with the proof . 
17.. प्रकरण में प्रतिवादी क्र.-01 से न्यायालय में वसीयतनामा को प्रस्तुत कराये जाने के संबंध में नोटिस टू प्रोड्यूस डॉक्यूमेंट अंतर्गत आदेश-11, नियम-12, 14 व्य. प्र.सं. के तहत् देकर के प्रतिवादी क्र.-01 से न्यायालय में वसीयतनामा के मूल दस्तावेज को न्यायालय में प्रस्तुत कराये जाने का कभी कोई प्रयास किया गया हो, ऐसा अभिलेख से प्रतीत नहीं हो रहा है। जिस दस्तावेज को अवैध व शून्य घोषित करने का अनुतोष चाहा गया है वह दस्तावेज अस्तित्व में है अथवा नहीं तथा किसके आधिपत्य में है, यह प्रमाणित नहीं हुआ है। बिना मूल वसीयतनामा के दस्तावेज के यह अनुमान लगाना भी विधिक रूप से अमान्य होगा कि उसमें मृतक हरिप्रसाद गुप्ता के द्वारा किये गये हस्ताक्षर अथवा अंगूठा निशानी फर्जी अथवा कूटरचित है। वादी को स्वयं अपने पैरों पर खड़ा होना होता है। वह दूसरे की कमजोरी का लाभ नहीं उठा सकता। विधि का यह सुस्थापित सिद्धांत है कि-‘‘जो दस्तावेज जिसके आधिपत्य में है, उसी से उसको प्रस्तुत किये जाने या उसे प्रस्तुत करवाने की अपेक्षा की जाती है।’’ मूल दस्तावेज के प्रगटीकरण कराये जाने के संबंध में व्यवहार प्रक्रिया संहिता में दिये गये प्रावधान का बिना अवलम्ब लेकर और मात्र फोटोकॉपी दस्तावेज के आधार पर वादी वसीयतनामा को शून्य व अवैध घोषित करा पाने का अधिकारी नहीं है। 
18.. अतः विद्वान विचारण न्यायालय ने अपने निर्णय की कंडिका-07 से लेकर 17 तक में वाद-प्रश्न क्रमांक-01 व 02 कि -‘‘क्या वसीयतनामा दिनांक 23/03/2001 अवैध व शून्य है’’ और ‘‘क्या उक्त वसीयतनामा कूट रचित है’’ के संबंध में दिये गये उभयपक्ष के साक्ष्य का विश्लेषण करते हुए निष्कर्ष ‘‘प्रमाणित नहीं’’ विधिक रूप से स्थिर रखे जाने योग्य है, कोई त्रुटि नहीं की गयी है। 
19.. इसी प्रकार से विद्वान विचारण न्यायालय ने वादीगण द्वारा अपने दावा को प्रमाणित करने में असफल होना पाते हुए जो वादीगण के दावे को अस्वीकर कर निरस्त किया गया है, उसमें कोई त्रुटि नहीं की गयी है, वह हस्तक्षेप किये जाने योग्य नहीं है। अतः विद्वान विचारण न्यायालय द्वारा पारित निर्णय व डिक्री दिनांक 30/04/2016 की पुष्टि की जाती है। 
20.. उपरोक्त अनुसार व्यवहार वाद क्र.-107ए/2001 में आलोच्य निर्णय दिनांक 30/04/2016 के द्वारा वादीगण द्वारा प्रस्तुत वाद को अस्वीकार कर निरस्त किया गया है, उसकी पुष्टि की जाती है। 21.. अपील सारहीन होने से निरस्त किये जाने योग्य है। अतः निरस्त किया जाता है। अपीलार्थीगण/वादीगण स्वयं का तथा उत्तरवादीगण/प्रतिवादीगण का अपील व्यय वहन करेंगे। अधिवक्ता शुल्क प्रमाणित होने पर नियमानुसार देय होगा। 
 मेरे निर्देश पर टंकित।
दुर्ग
(कु.संघपुष्पा भतपहरी)
दिनांक -23/01/2017
षष्ठम अपर जिला न्यायाधीश, दुर्ग जिला-दुर्ग (छ.ग.)
प्रमाण पत्र मैं पुष्टि करता हूं कि इस पी.डी.एफ. फाईल की अंर्तवस्तु अक्षरशः वैसी ही है जो मूल निर्णय में टंकित की गयी है।
स्टेनोग्राफर का नाम- अजय कुमार देवांगन

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