पटवारी हल्का नंबर 12, ग्राम टिकुलिया, भाटापारा
जिला-बलौदाबाजार, छ.ग.
6. पश्चात ट्रेप दल का गठन कर नोटों पर फिनाफथलीन पावडर लगाने वाले आरक्षक दशरथ धृतलहरे को ट्रेप दल में शामिल न कर उससे जप्त समान एवं फिनाफथलीन पावडर के डिब्बे के साथ ए.सी.बी.कार्यालय में रहने बोला गया तथा प्रार्थी को छाया साक्षी आरक्षक शिव प्रसाद साहू के साथ मोटर सायकल से आगे रवाना किया गया तथा ट्रेप दल के शेष सदस्यों एवं पंच साक्षी पीछे-पीछे शासकीय वाहन से पटवारी कार्यालय मोहता बिल्डिंग पहुंच कर प्रार्थी को आगे रवाना किया तथा ट्रेपदल के सभी सदस्य वाहन से उतर कर आपस में नजरी लगाव रखते हुए पटवारी कार्यालय के पास खडे हो गये तथा प्रार्थी एवं छाया साक्षी शिवप्रसाद साहू के साथ पटवारी के पास रिश्वत देने भेजा गया । प्रार्थी द्वारा आरोपी को रिश्वती रकम देकर पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार ईशारा किया गया तत्पचात् प्रार्थी के ईशारा पाकर ट्रेप दल के सभी सदस्य आरोपी राजीव तिवारी के कार्यालय में प्रवेश किये और आरेपी पटवारी राजीव तिवारी के दाहिने हाथ को निरीक्षक सेन एवं बांया हाथ को आरक्षक शिवप्रसाद साहू ने पकड लिये निरीक्षक सेन ने आरोपी को अपना परिचय दिया तथा आरोपी का नाम पता पूछने पर अपना नाम राजीव तिवारी पटवारी हल्का नं. 12 होना बताया गया ट्रेप दल प्रभारी श्री डी.एस.परिहार उप पुलिस अधीक्षक द्वारा आरोपी पटवारी से प्रार्थी गंगा प्रसाद वर्मा से दस हजार रूपये रिश्वत लेने की बात पूछने पर उसने रिश्वत लेने से इंकार किया तथा प्रार्थी से कोई रूपये नहीं लेना बताया गया । उसके पश्चात निरीक्षक सेन के निर्देश पर शिवप्रसाद साहू द्वारा आरोपी के हाथ छोडकर साफ कांच के गिलास में पानी लेकर सोडियम कार्बोनेट का जलीय घोल तैयार कर आरोपी एवं प्रार्थी को छोडकर ट्रेप दल के सभी सदस्यों का हाथ धुलाये जाने पर घोल रंगहीन रहा जिसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं हुआ जिसे कांच की शीशी में सीलबंद कर रखा गया । उसके बाद पुन: सोडियम कार्बोनेट का जलीय घोल तैयार कर आरोपी राजीव तिवारी के दोनों हाथों की उंगलियों को डुबाये जाने पर घोल का रंग गुलाबी हो गया जिसे एक साफ कांच की शीशी में सीलबंद किया गया । उसके बाद ट्रेप प्रभारी डी.एस.परिहार द्वारा प्रार्थी से लिया गया रिश्वती रकम लिये जाने के संबंध में पटवारी से पूछने पर रिश्वत लेने से इंकार किया तब प्रार्थी को बुलाकर पूछा गया तो प्रार्थी द्वारा बताया गया कि, आरोपी उसे अपने कंप्यूटर कक्ष में ले जाकर अपने हाथ में हाथ में रूपये लेना और कम्प्युटर टेंबल में रखना बताया जहां रिश्वती रकम दिखाई दे रहा था उक्त रिश्वती रकम को पंच साक्षी ए.के.प्रसाद द्वारा बरामद किया गया । संपूर्ण कार्यवाही में प्राप्त घोलों का रासायनिक परीक्षण कराया गया। परीक्षण रिपोर्ट में धनात्मक पाया गया। प्रार्थी से संबंधित दस्तावेज की जप्ती किया गया। घटनास्थल का नजरी नक्शा पटवारी के द्वारा तैयार करवाया गया तथा रिश्वत लेन-देन के समय की बातचीत के संबंध में लिप्यांतरण पंचनामा तैयार किया गया और सी.डी.तैयार की गयी तथा आरोपी को गिरफ्तार किया गया और देहाती नालिसी को राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण /एंटी करप्शन ब्यूरो रायपुर के अपराध क्रमांक 42/2016 में प्रथम सूचनापत्र दर्ज किया गया जो प्र.पी. 15 है । जप्तशुदा घोल एवं फिनाफथलीन पावडर को रासायनिक जांच के लिए राज्य विधि विज्ञान प्रयोगशाला रायपुर प्र.पी.36 का प्रेषित किया गया । आरोपी की सेवा पुस्तिका हेतु तहसीलदार भाटापारा को प्र.पी. 42 का ज्ञापन भेजा गया उक्त ज्ञापन के परिपालन में तहसीलदार भाटापारा द्वारा प्र.पी. 22 के अनुसार ज्ञापन भेजा गया । तत्पश्चात गवाहों के कथन लेखबद्घ किया गया व राज्य शासन से आरोपी के संबंध में अभियोजन स्वीकृति हेतु विधि एवं विधायी कार्य विभाग न्यायिक रायपुर से प्राप्त किया गया जो प्र.पी. 26 है, तत्पश्चात विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) के समक्ष अभियोग पत्र दिनांक 23.12.2016 को प्रस्तुत किया गया ।
विचाणीय प्रश्न क्रमांक 04 ,05 व 06 पर निष्कर्ष एवं निष्कर्ष के आधार-
20. साक्षी से धारा 165 साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत प्रश्न पूछे गये हैं । जिसमें दलाल लोगों ने दस हजार रूपये स्वयं को देने के लिए कहा था बताया है और उसने सोचा कि पटवारी ने पैसे की मांग की है जिस कारण उसने पटवारी को ले जाकर दिया था। इस प्रकार स्वयं प्रार्थी ने आरोपी के द्वारा पैसे की मांग किये जाने की बात को समर्थन प्रदान नहीं किया है।
21, अभियोजन के द्वारा आरोपी की मांग के संबंध में टेप रिकार्ड और लिप्यांतरण पंचनामा जिसमें रिश्वत पूर्व बातचीत प्र०पी० 03 है और उसकी सी.डी.लेपटाप के माध्यम से तैयार की गयी जिसका जप्तीपत्र प्र०पी0 04 है। इस संबंध में अ०सा० 11 एस.के.सेन ने बताया है कि प्रार्थी के द्वारा दिनांक 28.05.2016 को ए.सी.बी. में आवेदन प्रस्तुत किया था जो प्र.पी. 19 है उक्त लिखत आवेदन के सत्यापन के लिए उसने प्रार्थी को डिजीटल वायस रिकार्डर को चलाने की विधि समझा कर दिया था जिसका पंचनामा प्र.पी.20 है जिसके ब से ब भाग पर उसके हस्ताक्षर है। दिनांक 30.05.2016 को प्रार्थी ने उसे फोन करके बताया कि, उसने आरोपी के साथ दिनांक 29.05.2016 को कार्यालय में जाकर बातचीत कर रिश्वत मांग वार्ता को रिकार्ड किया है जिसमें आरोपी दस हजार रूपये लेने के लिए सहमत हो गया है। तब उसने प्रार्थी को दिनांक 01.06.2016 को उक्त रिकार्डेड वार्तालाप और द्वितीय शिकायत आवेदनपत्र के साथ लिमतरा भाटापारा रोड मेहन्द्रा ट्रेक्टर शो-रूम के सामने मिलने के लिए कहा था।
22. प्रतिपरीक्षण में साक्षी ने स्वीकार किया है कि उक्त डिजीटल वायस रिकार्डर में पहले से कोई आवाज मौजूद थी या नहीं अथवा खाली था अथवा नहीं इसकी उसने कोई जांच नहीं किया है। साक्षी ने यह भी स्वीकार किया कि उसने दिनांक 28.05.2016 को डिजीटल वायंस रिकार्डर को प्रार्थी को दिया था जिसे प्रार्थी ने उसे दिनांक 01.06.2016 को वापस किया था। साक्षी ने स्वीकार किया कि उक्त अवधि में वाईस रिकार्डर प्रार्थी के पास था और यदि इस बीच प्रार्थी ने किसी और की बातचीत को पुन: रिकार्ड कर लिया हो तो वह नहीं जानता । साक्षी ने यह भी स्वीकार किया कि उक्त वाईस रिकार्डर में कितने लोगों की आवाज थी वह नहीं बता सकता है। साक्षी ने यह भी स्वीकार किया कि वह घटना के पूर्व आरोपी के आवाज को नहीं पहचानता था। साक्षी यह भी स्वीकार करता है कि लिप्यांतरण पंचनामा में दस हजार रूपये दोगें तब प्रमाणीकरण नामांतरण और ऋणपुस्तिका बनाउंगा वाली बात नहीं है। साक्षी ने यह भी स्वीकार किया कि, उक्त वाईस रिकार्डर में किसी अन्य व्यक्ति की भी आवाज थी।
23, अ०सा० 04 गंगाप्रसाद वर्मा का कहना है कि इसे शिकायत प्रस्तुत करने के बाद एक माईक्रो वाईस रिकार्डर दिया गया था जिसके संबंध में पंचनामा प्र.पी.20 है वह उक्त टेप रिकार्ड को लेकर आरोपी के कार्यालय में गया था और वहां अत्यधिक भीड थी जिस कारण वह टेप रिकार्ड ठीक से चालू नहीं कर पाया था। प्रतिपरीक्षण में साक्षी ने दिनांक 01.06.2016 को लिमतरा भाटापारा रोड में महिन्द्रा शो-रूम के सामने ए.सी.बी.वालों द्वारा उक्त वायस रिकार्डर की रिकार्डिंग को सुना जाना इंकार किया है और उसका लिप्तयांतरण पंचनामा बनाया जाना भी याद नहीं होना कहा है। साक्षी ने उक्त टेप रिकार्ड की सी.डी.बनाये जाने को भी इंकार किया है।
24. अ०सा० 01ए.के.प्रसाद पंच साक्षी है जिसने अपने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि, उसने डिजीटल वायस रिकार्डर को सुना था जिसमें स्पष्ट आवाज नहीं थी और कौन क्या बोल रहा है यह समझ नहीं आ रहा था। अ०सा० 06 शादब मेमन जो भी अन्य पंच साक्षी है उसने अतिरिक्त लोक अभियोजक के द्वारा सूचक प्रश्न पूछे जाने पर प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत टेप रिकार्ड की रिकार्डिंग को सुनना इंकार किया है। अ०सा० 07 दशरथ लाल धृतलहरे सैनिक ने अपने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि जो सी.डी.जप्ती की गयी थी वह खाली थी। 25. प्रकरण में डिजीटल वॉयस रिकार्डर कैसेट के आधार पर रिकार्ड किया जाता है और ऐसे बातचीत को प्रमाणित करने के संबंध में उक्त टेप में जिन व्यक्तियों की आवाजें है उनका आवाज का नमुना लेकर परीक्षण किया जाता है परन्तु प्रकरण में ऐसी कोई जांच कराये जाने का उल्लेख नहीं है। ऐसी स्थिति में उक्त बातचीत आरोपी से ही की गयी है यह स्पष्ट नहीं हो पाता है साथ ही उक्त टेप की आवाजों का भी परीक्षण नहीं करवाया गया है तथा टेप रिकार्ड दो दिन विलंब से प्रार्थी द्वारा जमा किया गया है और उक्त टेप रिकार्ड सीलबंद भी नहीं किया गया था । तथा स्वयं प्रार्थी ने आरपी के पास जाने पर उक्त टेप रिकार्ड को चालू नहीं कर पाना बताया है। जिससे भी स्वयं प्रार्थी के साक्ष्य से उक्त वॉयस रिकार्डर की बातचीत और लिप्यांतरण पंचनामा की कार्यवाही को समर्थन प्राप्त नहीं हो पाता है।
26. टेप रिकार्डर से टेप की गई वार्ता को साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 के अंर्तगत दस्तावेज की श्रेणी में रखा गया है इस संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायदृष्टांत Ziyauddin Barhanuddin Bukhari Vs Brijmohan Ramdass Mehra and others में टेप रिकार्ड को साक्ष्य में ग्राहय होने की शर्ते बतायी गयी है-
it was held by this court that taperecords of speeches were "documents". as defined by Section 3 of the Evidecne Act, which stood on no different footing than photograplhs, and that they were admissible in evidence on staisfying the following conditions : " (a) The voice of the person alleged to be speaking must be duly identified by the maker of the record or by others who know it. (b) Accuracy of what was actually recorded had to be proved by the maker of the record and satisfactory evidence , direct or circumstantial, had to be there so as to rule out possibilities of tamering with the record. (c) The subjectmatter recorded had to be shown to be relevant according to rules of 1 (1976) 2 SCC 17 : 1975(supp) SCR 281 relevancy found in the Evidence Act."27. इसी प्रकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्याय दृष्टांत R.M.Malkani v. State of Maharashtra में टेप अभिलिखित बातचीत के साक्ष्य में ग्राहय होने की शर्ते बतायी गयी है-
this Court has observed that tape recorded conversation is admissible provided first the conversation is rlevant to the matters in issue: secondly, there is identification of the voice; and, thirdly the accuracy of the tape recorded conversation is proved by eliminating the possiblility of erasing the tape record.28. इसके अतिरिक्त प्रकरण में रिश्वत मांगे जाने के संबंध में रिश्वत मांग वार्ता को प्रार्थी व आरोपी के मध्य हुए वार्तालाप को टेप रिकार्ड के माध्यम से टेप किया गया है जिसका लिप्यांतरण पंचनामा तैयार किया गया है। चूंकि लिप्यांतरण पंचनामा को इलेक्ट्रानिक माध्यम से तैयार किया गया है ऐसी स्थिति में वह इलेक्ट्रानिक साक्ष्य की श्रेणी में आता है और ऐसे इलेक्ट्रानिक साक्ष्य को साक्ष्य में ग्राह्य किये जाने हेतु धारा 65(8) साक्ष्य अधिनियम का प्रमाण पत्र होना आवश्यक है । इस संबंध में माननीय 2 (1973)19300471:1973 (2) 507 417 सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा प्रतिपादित न्याय दृष्टांत Anvar P.V. Vs P.K.Basheer & Others में इलेक्ट्रानिक एविडेंस की ग्राह्यता के संबंध में सिद्धांत प्रतिपादित किये गये हैं और प्रकरण में लिप्यांतरण पंचनामा के संबंध में धारा 65(B)साक्ष्य अधिनियम का कोई प्रमाण पत्र नहीं है ऐसी स्थिति में लिप्यांतरण पंचनामा एवं रिश्वत लेन-देन वार्ता से अभियोजन को कोई सहायता प्राप्त नहीं हो पाती है।
29. अ०सा० 04 गंगाप्रसाद वर्मा ने बताया है कि, घटना दिनांक को रिश्वती रकम को उसे फिनाफथलीन पावडर लगाकर दिया गया तथा उसके साथ ए.सी.बी.का एक अधिकारी रिश्वती रकम दिये जाते समय गया था उसे निर्देश दिया गया था कि, रिश्वती रकम देने के पश्चात वह सिर का गमछा खोलकर संकेत देगा। वह जब आरोपी के कार्यालय गया तब उस समय वह कार्यालय में नही था उसके पश्चात उसने आरोपी को फोन करके कहा कि, उसे तहसीलदार बुला रहे हैं तब आरोपी आया उस समय बहुत धूल उड रही थी इसलिए वह अपने आंख को पोछने के लिए सिर से गमछा उतार कर आंख पोछने लगा । जिसे ए.सी.बी.वाले ईशारा समझ कर आ गये तब उसने हडबडाहट में रिश्वती रकम को आरोपी के टेबल में रख दिया था। उस समय आरोपी वहां पर मौजूद नहीं था। इसके पश्चात ए.सी.बी.वाले कार्यालय में आकर उससे पूछे कि पटवारी कौन है तब उसने आरोपी की ओर ईशारा किया तब ए.सी.बी.वाले आरोपी को पकड लिए और उसके पश्चात ए.सी.बी.वालों ने उससे पूछा कि, रूपया कहां है तब उसने बताया कि, रूपया टेबल के उपर है।
30. प्रतिपरीक्षण में साक्षी ने स्वीकार किया है कि, आरोपी से दस हजार रूपये रिश्वत लेने की बात पूछे जाने पर आरोपी ने इंकार किया था। साक्षी ने यह भी स्वीकार किया कि,घटना दिनांक को उसने आरेपी को कोई रकम नहीं दिया था | इस साक्षी से धारा 165 साक्ष्य अधिनियम के अन्तर्गत प्रश्न पूछे गये हैं जिसमें पूछा गया है कि, जब साक्षी ने पटवारी को पैसा नहीं दिया है और टेबल पर रख दिया है उक्त बात को ए.सी.बी.को बताया था या नहीं जिस पर प्रार्थी ने बताया कि उसने उक्त बात ए.सी.बी.को नहीं बतायी उक्त बात नहीं बताने का कारण पूछे जाने पर साक्षी ने बताया कि, ए.सी.बी.वालों ने उससे पैसा कहां है पूछा था और पैसे देने के संबंध में पूछा था जिसे उसने टेबल पर रखना बताया था। इस संबंध में पुन: साक्षी से प्रश्न पूछा गया कि किसे पैसा देना बताये थे तब साक्षी ने पटवारी को दस हजार रूपये नामांतरण के लिए देना बताया था। तत्पश्चात साक्षी से पुन: पूछा गया कि, नामांतरण के लिए दस हजार रूपये देने की बात किसने बतायी थी जिस पर साक्षी ने बताया कि उसे दलाल लोगों ने बताया था और दलाल लोगों ने स्वयं को पैसा देने के लिए कहा था। साक्षी का कहना है कि उसने सोचा कि पटवारी ने पैसे की मांग की है जिस कारण पटवारी को लेकर दिया था।
31. प्रकरण में प्रार्थी ने आरोपी को रिश्वती रकम नही देने की बात कही है और आरोपी के टेबल में रिश्वती रकम को रख देना बताया है और उस समय आरोपी को वहां पर मौजूद नहीं रहना बताया है। अ०सा० 1 ए.के. प्रसाद जो कि पंचसाक्षी है ने बताया है कि आरपी की तलाशी लेने पर कोई पैसा नहीं मिला तब प्रार्थी से पूछने पर प्रार्थी ने बताया कि पैसा उसने टेबल पर रखा है तब टेबल से पैसे को उठाकर नंबर का मिलान किया गया था । तथा साक्षी ने बताया है कि, ए.सी.बी.के कर्मचारी ने सादा पानी लेकर घाल बनाया था जिसमें आरोपी का हाथ धुलाये जाने पर घोल का रंग परिवर्तित नहीं हुआ था। प्रतिपरीक्षण में साक्षी ने यह स्वीकार किया है कि पटवारी कार्यालय के पास तोड-फोड चल रही थी और धूल उड रही थी। साक्षी यह भी स्वीकार करता है कि जहां वह खडा था वहां से आरोपी का कमरा नहीं दिखाई देता है।
32. अ०सा० 06 शादाब मेमन पंच साक्षी ने बताया है कि, आरोपी जहां था वहां ए.सी.बी.वालें कुछ कार्यवाही कर रहे थे जिसे वह स्पष्ट रूप से नहीं देख पाया था।अतिरिक्त लोक अभियोजक के द्वारा सूचक प्रश्न पूछने पर साक्षी ने इस बात की जानकारी नहीं होना कहा है कि अरोपी से रिश्वत की बात पूछने पर आरोपी ने इंकार किया था और यह स्वीकार किया कि प्रार्थी को बुलाकर पूछने पर प्रार्थी ने बताया कि आरोपी ने कम्प्यूटर कक्ष में ले जाकर रूपये लेकर कम्प्यूटर टेबल में रखा है। साक्षी ने स्वीकार किया है कि पंच साक्षी ए.के. प्रसाद ने उक्त नोट को कम्प्यूटर टेबल से उठाया था । साक्षी ने इस बात की जानकारी नहीं होना कहा कि घोल में आरोपी का हाथ धुलाये जाने पर उसका रंग गुलाबी हो गया था।
33. प्रतिपरीक्षण में साक्षी ने स्वीकार किया है कि, पटवारी कार्यालय के आस- पास तोड-फोड की कार्यवाही चल रही थी और वहां बहुत भीड थी और धूल भी उड रहा था। साक्षी ने स्वीकार किया कि, पटवारी कार्यालय के अंदर थोडी देर रूक कर नास्ता करने बाहर चला गया था। साक्षी ने यह स्वीकार किया कि आरोपी के कार्यालय में कम्प्यूटर टेबल में नोट को किसने रखा है उसने नहीं देखा है और यह भी स्वीकार करता है कि ए.सी.बी.वालों ने प्रार्थी से पूछा था तब प्रार्थी ने बताया कि उसने कम्प्यूटर टेबल में नोट को रखा है। 34. अ०सा० 08 रविशंकर तिवारी निरीक्षक हमराह ने बताया है कि, प्रार्थी के द्वारा ईशारा करने के पश्चात तब वे लोग आरेपी के कार्यालय में गये और आरेपी से रिश्वती रकम लेने के संबंध में पूछने पर आरोपी ने इंकार किया और रिश्वती रकम कहां रखे हो यह पूछने पर आरेपी ने रिश्वत लेने से इंकार किया तब प्रार्थी को बुलाकर पूछा गया जिसमें प्रार्थी ने बताया कि उसे कम्प्यूटर रूम ले गये थे जिसमें कम्प्यूटर टेबल के उपर रिश्वती रकम को रखे थे। साक्षी का कहना है कि आरोपी का हाथ घोल में डुबाये जाने पर घोल का रंग हल्का परिवर्तित हुआ था जो गुलाबी नहीं हुआ था।
35. प्रतिपरीक्षण में साक्षी ने यह स्वीकार किया कि आरोपी के कार्यालय के आस-पास तोड-फोड की कार्यवाही चल रही थी जिस कारण बहुत भीड थी और बहुत धुल उड रहा था। साक्षी ने स्वीकार किया कि, पटवारी कार्यालय में चार रूम थे और जिस रूम में आरोपी को पकडे थे उस रूम में रिश्वती रकम नहीं थी और वहां से कम्प्यूटर टेबल नहीं दिख रहा था। साक्षी ने यह भी स्वीकार किया कि, आरपी की तलाशी लेने पर उसकी जेब से कुछ नहीं निकला था। तब प्रार्थी को बुलाकर रिश्वती रकम के संबंध में पूछताछ करने पर प्रार्थी ने बताया था कि रिश्वती रकम कम्प्यूटर टेबल के पास रखा है।
36. अ०सा० 09 शिव प्रसाद साहू आरक्षक ने बताया है कि उसे छाया साक्षी के रूप में प्रार्थी के साथ भेजा गया था और जब प्रार्थी रिश्वत देने आरोपी के कार्यालय के अंदर गया था तब वह बाहर ही खडा था । उसके पश्चात प्रार्थी के ईशारा मिलने पर ए.सी.बी.वाले अंदर चले गये और आरोपी को पकड लिये थे। तब उसने घाल कार्यवाही की थी। आरेपी से रिश्वती रकम के संबंध में पूछने पर आरोपी ने रिश्वत लेने से इंकार किया था इसके पश्चात प्रार्थी को बुलाकर पूछने पर प्रार्थी ने रिश्वती रकम को कम्प्यूटर टेबल में रखना बताया था। उक्त कम्प्यूटर कक्ष में आरोपी को साथ ले जाकर प्रार्थी द्वारा बताये गये कम्प्यूटर टेबल से पंच साक्षियों द्वारा ढूढने पर नोट प्राप्त हुआ था। साक्षी ने बताया कि उसने आरोपी के उंगलियों को घोल में डुबाया था तब घोल का रंग हल्का गुलाबी हो गया था।
37. प्रतिपरीक्षण में साक्षी ने स्वीकार किया कि, जिस कमरे में आरोपी को पकडे थे उसके दूसरे कमरे में रिश्वती रकम बरामद हुआ था। साक्षी यह भी स्वीकार करता है कि जिस रूम में आरोपी को पकडा गया था वहां से रिश्वती रकम रखा हुआ कम्प्यूटर टेबल नहीं दिखायी देता। साक्षी यह स्वीकार करता है कि पटवारी कार्यालय के कम्प्यूटर टेबल पर किसने रिश्वती रकम को रखा था वह नहीं देख पाया था।
38. अ०सा० 11 एस.के.सेन विवेचना अधिकारी ने बताया है कि, प्रार्थी का ईशारा पाकर जब वे लोग आरोपी के कार्यालय के अंदर गये तब आरोपी से पूछने पर आरोपी ने रिश्वत लेने से इंकार किया तब प्रार्थी को बुलाकर पूछने पर प्रार्थी ने बताया कि आरोपी ने कम्प्यूटर कक्ष में ले जाकर रिश्वती रकम को अपने हाथ में लिया और कम्प्यूटर टेबल पर रखवा दिया था। आरोपी का हाथ घोल से धुलाये जाने पर घोल का रंग परिवर्तित होकर हल्का गुलाबी हो गया । साक्षी ने आरोपी के हाथ के घोल को प्र.पी.45 के रूप में पहचाना है। 39. प्रतिपरीक्षण में साक्षी ने इंकार किया कि प्र.पी.45 में गुलाबी घोल नहीं है। साक्षी ने आरेपी के कार्यालय के पास तोडफोड की कार्यवाही होने की जानकारी नहीं होना कहा। साक्षी ने स्वीकार किया कि आरेपी की तलाशी लेने पर आरिपी के पास से रिश्वती रकम की बरामदगी नहीं हुई थी। साक्षी ने यह भी स्वीकार किया कि, आरोपी से रिश्वती रकम के संबंध में पूछने पर आरापी ने अनभिज्ञता जाहिर की थी और किसी से रिश्वती रकम नहीं लेना कहा था। साक्षी ने स्वीकार किया कि, तत्पश्चात प्रार्थी को बुलाकर पूछने पर प्रार्थी ने दूसरे कमरे में कम्प्यूटर टेबल के उपर रिश्वती रकम को रखा होना बताया था। साक्षी ने यह भी स्वीकार किया कि जिस कमरे में उन्होंने आरोपी को पकडा था उस कमरे से दूसरे कमरे में रखा हुआ कम्प्यूटर टेबल दिखाई नहीं देता था | साक्षी ने यह स्वीकार किया कि, रिश्वती रकम दूसरे कमरे के कम्प्यूटर टेबल में रखा हुआ था।
40. प्रकरण में स्वयं प्रार्थी ने आरापी को रिश्वती रकम देने से इंकार है और रिश्वती रकम को टेबल पर रख देना बताया है और प्रकरण में रिश्वती रकम आरोपी के शरीर से बरामद नहीं हुई है साथ ही जिस कक्ष में आरोपी था उस कक्ष से भी रिश्वती रकम बरामद नही हुई है और रिश्वती रकम दूसरे कमरे में रखे कम्प्यूटर टेबल से बरामद हुआ है। आरोपी का हाथ धुलाने पर घोल का रंग परिवर्तित नही होना पंच साक्षी ए.के. प्रसाद ने स्वीकार किया है। जिससे दर्शित होता है कि, आरोपी ने रिश्वती रकम को हाथ में नहीं लिया है इसके अतिरिक्त अन्य साक्षियों ने आरापी का हाथ धुलाये जाने पर हल्का गुलाबी होना बताया है जिससे इस बिन्दु पर विरोधाभाष की स्थिति दर्शित हो रही है। साथ ही आरोपी के द्वारा प्रार्थी से रिश्वती रकम की मांग किया जाना भी प्रमाणित नही हुआ है जो ऐसे अपराधों में आवश्यक शर्त है साथ ही आरोपी के समक्ष प्रार्थी का कार्य लंबित नही था और आरोपी प्रार्थी का कार्य करने हेतु सक्षम प्राधिकारी भी नहीं है जिससे उपरोक्त आधारों पर अभियोजन के प्रकरण पर सन्देह करने का आधार उत्पन्न हो जाता है।
41. प्रकरण में मात्र रिश्वती रकम की बरामदगी से आरोपी को दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता। इस संबंध विभिन्न न्यायदृष्टांतों में सिद्धांत प्रतिपादित किये गये हैं जिनमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय Krishan Chander Vs. State of Delhi तथा C.M.Girish Babu v. CBI, Cochin तथा M.Narsinga Rao v. State of A.P. माननीय छ.ग. माननीय छ.ग.उच्च न्यायालय के न्यायदृष्टांत S.K.Nande v State of Madhya Pradesh में इसी प्रकार के सिद्धांत प्रतिपादित किये गये हैं।
42, उपरोक्त साक्ष्य की विवेचना के आधार पर आरोपी के समक्ष प्रार्थी का कोई कार्य लंबित रहना प्रमाणित नहीं हुआ है इससे आरोपी के द्वारा रिश्वत की मांग किया जाना और रिश्वत की रकम स्वेच्छापूर्वक प्राप्त किया जाना भी सन्देह से परे प्रमाणित नहीं हो पाता है तथा आरोपी के कब्जे से रिश्वती रकम की जप्ती भी नहीं हुई है । ऐसी स्थिति में आरोपी के द्वारा लोक सेवक के रूप में प्रार्थी से रिश्वत की राशि प्राप्त करना और लोक सेवक के रूप में अवचार कारित किया जाना सन्देह से परे प्रमाणित नहीं हो पाता है।
43. उपरोक्त सभी आधारों पर अभियोजन अपना प्रकरण आरोपी के विरूद्घ धारा (डी) व 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अन्तर्गत सन्देह से परे प्रमाणित करने में असफल रहा है। अत: सन्देह का लाभ देकर आरोपी राजीव तिवारी को धारा 07,13(1)(डी) व 13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के आरोप से दोष मुक्त किया जाता है।
44. आरोपी दिनांक 01.06.2016 से 04.08.2016 तक कुल दो माह 05 दिन न्यायिक अभिरक्षा में निरूद्ध रहा है। 45. प्रकरण में जप्त संपत्ति 10,000/-(दस हजार रूपये) 1000/-, 1000/-(एक-एक हजार रूपये का दस नोट) की राशि अपील अवधि पश्चात् प्रार्थी को वापस किया जावे अन्यथा किसी दावेदार के उपस्थित न होने पर धारा 458 दं.प्र.सं. के अन्तर्गत कार्यवाही की जावे । प्रकरण में जप्तशुदा 7 नग सीलबंद घोल की शीशियां, दो नग सीलबंद लिफाफा, एक पैकेट में फुलपेंट एवं पर्स, दो नग सी.डी. अपील अवधि बाद नष्ट किया जावे। प्रकरण में जप्त ग्राम टिकुलिया पटवारी हल्का नं. 12 रा.नि.मं. भाटापारा का नामांतरण पंजी वापस किया जावे, अपील होने की दशा में माननीय अपीलीय न्यायालय के निर्देशानुसार निराकरण किया जावे।
निर्णय खुले न्यायालय में दिनांकित हस्ताक्षरित व मुद्रांकित कर घोषित।
मेरे निर्देश में टंकित।
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Write commentsमहत्वपूर्ण सूचना- इस ब्लॉग में उपलब्ध जिला न्यायालयों के न्याय निर्णय https://services.ecourts.gov.in से ली गई है। पीडीएफ रूप में उपलब्ध निर्णयों को रूपांतरित कर टेक्स्ट डेटा बनाने में पूरी सावधानी बरती गई है, फिर भी ब्लॉग मॉडरेटर पाठकों से यह अनुरोध करता है कि इस ब्लॉग में प्रकाशित न्याय निर्णयों की मूल प्रति को ही संदर्भ के रूप में स्वीकार करें। यहां उपलब्ध समस्त सामग्री बहुजन हिताय के उद्देश्य से ज्ञान के प्रसार हेतु प्रकाशित किया गया है जिसका कोई व्यावसायिक उद्देश्य नहीं है।
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